स्वास्थ्य ही जीवन की सबसे बड़ी पूँजी है, और इस स्वास्थ्य को बनाए रखने में केवल औषधियाँ ही नहीं बल्कि गतिशीलता और शारीरिक कार्यक्षमता भी उतनी ही आवश्यक हैं। आधुनिक जीवनशैली और बढ़ती उम्र के साथ लोग अक्सर कमर दर्द, गठिया, हड्डियों की कमजोरी, स्ट्रोक या न्यूरोलॉजिकल विकारों जैसी समस्याओं से जूझते हैं। इन स्थितियों में दवाइयाँ ही नहीं, बल्कि फिजियोथेरेपी (Physiotherapy) एक प्रभावी उपचार और पुनर्वास का साधन बनकर सामने आती है।
इसी संदर्भ में हर वर्ष 8 सितंबर को विश्व फिजियोथेरेपी दिवस (World Physiotherapy Day) मनाया जाता है। यह दिन न केवल फिजियोथेरेपिस्टों के योगदान को सम्मानित करता है बल्कि आम जनता को यह भी बताता है कि फिजियोथेरेपी किस तरह जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बना सकती है।
विश्व फिजियोथेरेपी दिवस का इतिहास
- संस्थापक संगठन: वर्ल्ड फिजियोथेरेपी (World Physiotherapy), जिसकी स्थापना 8 सितंबर 1951 को लंदन, यूनाइटेड किंगडम (यूके) में हुई।
- पहली बार मनाया गया: 1996 में, जब संगठन ने अपनी स्थापना दिवस को वैश्विक फिजियोथेरेपी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया।
- भारत की भूमिका: भारत 1967 से वर्ल्ड फिजियोथेरेपी का सदस्य है, और यहां फिजियोथेरेपिस्टों का विशाल नेटवर्क लाखों लोगों के पुनर्वास में योगदान दे रहा है।
👉 यह संगठन आज एक गैर-लाभकारी वैश्विक संस्था के रूप में 127 देशों के 6 लाख से अधिक फिजियोथेरेपिस्टों का प्रतिनिधित्व करता है। इसका मुख्य उद्देश्य है – सुरक्षित, प्रभावी और साक्ष्य-आधारित फिजियोथेरेपी प्रथाओं को बढ़ावा देना।
2025 की थीम
“Healthy Ageing: Preventing Frailty and Falls”
(स्वस्थ वृद्धावस्था: दुर्बलता और गिरने से बचाव)
थीम का महत्व
- उम्र बढ़ने के साथ दुर्बलता (Frailty) और गिरना (Falls) बुजुर्गों में सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या है।
- यह न केवल चोट और विकलांगता का कारण बनता है बल्कि कई बार लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहने की स्थिति भी उत्पन्न करता है।
- इस थीम का फोकस है – फिजियोथेरेपी के माध्यम से बुजुर्गों को स्वतंत्र, सुरक्षित और सक्रिय जीवन जीने में सक्षम बनाना।
फिजियोथेरेपी द्वारा समाधान
- स्ट्रेंथ ट्रेनिंग – मांसपेशियों की शक्ति को बढ़ाना।
- बैलेंस ट्रेनिंग – संतुलन और समन्वय में सुधार।
- मोबिलिटी एक्सरसाइज – गतिशीलता को बनाए रखना।
- पुनर्वास तकनीकें – चोट या सर्जरी के बाद रिकवरी।
- जीवन की गुणवत्ता – स्वतंत्र जीवन जीने और मानसिक आत्मविश्वास बनाए रखने में मदद।
👉 यह थीम सीधे तौर पर संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (SDG-3: अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण) से भी जुड़ी है।
फिजियोथेरेपी क्यों महत्वपूर्ण है?
फिजियोथेरेपी को अक्सर लोग केवल दर्द निवारण या चोट के बाद पुनर्वास तक सीमित मानते हैं, लेकिन इसका दायरा इससे कहीं अधिक व्यापक है। यह एक मूवमेंट साइंस (Movement Science) है, जो शरीर की कार्यक्षमता को बेहतर बनाती है और रोगों की रोकथाम करती है।
प्रमुख भूमिकाएँ
- चोट या आघात – फ्रैक्चर, मोच, या किसी दुर्घटना के बाद मांसपेशियों और हड्डियों की सामान्य स्थिति में वापसी।
- दीर्घकालिक रोग – गठिया, स्ट्रोक, पार्किंसन, मल्टीपल स्क्लेरोसिस जैसी बीमारियों में सहायक।
- उम्र से संबंधित कमजोरी – बुजुर्गों में मांसपेशियों की कमजोरी, संतुलन की कमी और गिरने की संभावना को कम करना।
- हृदय-फेफड़े संबंधी विकार – कार्डियक रिहैब, अस्थमा या COPD जैसी समस्याओं में सुधार।
- न्यूरोलॉजिकल विकार – रीढ़ की हड्डी की चोट, पैरालिसिस या ब्रेन इंजरी में रिकवरी।
फिजियोथेरेपी के मुख्य कार्यक्षेत्र
- संतुलन और समन्वय (Balance & Coordination)
- गतिशीलता और लचीलापन (Mobility & Flexibility)
- मांसपेशी प्रदर्शन और पॉस्चर कंट्रोल
- हृदय-फेफड़े की क्षमता में सुधार
- न्यूरोमस्कुलर फंक्शन
- सर्जरी के बाद रिकवरी – जैसे घुटना बदलने की सर्जरी, स्पाइनल सर्जरी आदि।
- खेलकूद में पुनर्वास – खिलाड़ियों के लिए फिजियोथेरेपी विशेष रूप से महत्वपूर्ण।
विश्व फिजियोथेरेपी दिवस पर गतिविधियाँ
- जन-जागरूकता अभियान – स्वास्थ्य शिविर, सेमिनार और वर्कशॉप।
- फिजियोथेरेपिस्ट्स का सम्मान – समाज में उनके योगदान को रेखांकित करना।
- सुरक्षित व्यायाम का प्रचार – लोगों को सही एक्सरसाइज तकनीक सिखाना।
- डिजिटल मीडिया पर जागरूकता – सोशल मीडिया कैंपेन, ऑनलाइन वेबिनार।
भारत में फिजियोथेरेपी की स्थिति
भारत में फिजियोथेरेपी तेजी से विकसित हो रही है।
- मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल्स में फिजियोथेरेपी विभाग अनिवार्य हो गए हैं।
- गाँव से लेकर शहर तक लोग इसे अपनाने लगे हैं।
- स्पोर्ट्स फिजियोथेरेपी ने भारत के एथलीट्स के प्रदर्शन और रिकवरी में अहम योगदान दिया है।
👉 1967 से भारत वर्ल्ड फिजियोथेरेपी का सदस्य होने के कारण यहां की फिजियोथेरेपिस्ट कम्युनिटी वैश्विक मानकों के साथ लगातार जुड़ी हुई है।
भविष्य की चुनौतियाँ और संभावनाएँ
- जन-जागरूकता की कमी – ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अभी भी फिजियोथेरेपी को “मालिश” समझते हैं।
- प्रशिक्षित फिजियोथेरेपिस्ट की कमी – जनसंख्या की तुलना में विशेषज्ञ कम हैं।
- तकनीकी नवाचार की आवश्यकता – रोबोटिक थेरेपी, टेलि-रिहैब जैसी सेवाएँ बड़े स्तर पर लागू करनी होंगी।
- नीतिगत सहयोग – सरकार द्वारा फिजियोथेरेपी को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में अधिक स्थान देने की आवश्यकता।
परीक्षा हेतु मुख्य तथ्य
- विश्व फिजियोथेरेपी दिवस: 8 सितंबर (हर वर्ष)
- पहली बार मनाया गया: 1996
- स्थापना संगठन: World Physiotherapy (1951, यूके)
- 2025 की थीम: Healthy Ageing – Preventing Frailty and Falls
- भारत सदस्यता: 1967 से
- फिजियोथेरेपिस्ट्स की संख्या: विश्वभर में 6 लाख से अधिक
निष्कर्ष
विश्व फिजियोथेरेपी दिवस केवल एक स्मरण दिवस नहीं है, बल्कि यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि स्वास्थ्य केवल दवाइयों और ऑपरेशन तक सीमित नहीं है। सही समय पर की गई फिजियोथेरेपी व्यक्ति को न केवल बीमारियों से उबारती है, बल्कि उसे स्वतंत्र, सक्रिय और गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने में सक्षम भी बनाती है।
2025 की थीम – “स्वस्थ वृद्धावस्था: कमज़ोरी और गिरने से बचाव” इस बात पर बल देती है कि जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, हमें अपनी मांसपेशियों, संतुलन और गतिशीलता पर ध्यान देना चाहिए। इस दिशा में फिजियोथेरेपी एक सुरक्षित और वैज्ञानिक तरीका है, जो हर उम्र के व्यक्ति को जीवनभर स्वस्थ और सक्रिय बनाए रख सकती है।
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