बहमनी वंश | 1347 ई.-1538 ई.

बहमनी वंश दक्कन का एक इस्लामी राज्य था। इस वंश की स्थापना 3 अगस्त 1347 ई. को एक तुर्क- अफगान सूबेदार अलाउद्दीन बहमन शाह ने की थी। इसका प्रतिद्वंदी साम्राज्य विजयनगर था, जो एक हिन्दू साम्राज्य था। 1518 ई. में इसका विघटन हो गया जिसके फलस्वरूप – बरार, बीदर, अहमदनगर, गोलकुण्डा और बीजापुर के राज्यों का उदय हुआ। इन पाँचों को सम्मिलित रूप से दक्कन सल्तनत भी कहा जाता है।

मुहम्मद बिन तुग़लक़ के शासन काल के अन्तिम दिनो में दक्कन में ‘अमीरान-ए-सादाह’ के विद्रोह के परिणामस्वरूप 1347 ई. में ‘बहमनी साम्राज्य’ की स्थापना हुई। दक्कन के सरदारों ने दौलताबाद के क़िले पर अधिकार कर’ इस्माइल’ अफ़ग़ान को’ नासिरूद्दीन शाह’ के नाम से दक्कन का राजा घोषित किया। इस्माइल बूढ़ा और आराम तलब होने के कारण इस पद के अयोग्य सिद्ध हुआ। शीघ्र ही नासिरूद्दीन शाह को अपने से अधिक योग्य नेता हसन, जिसकी उपाधि ‘जफ़र ख़ाँ’ थी, के लिए में गद्दी छोड़नी पड़ी। जफ़र ख़ाँ को सरदारों ने 3 अगस्त, 1347 ई. को ‘अलाउद्दीन बहमनशाह’ के नाम से सुल्तान घोषित किया।

उसने अपने को ईरान के ‘इस्फन्दियार’ के वीर पुत्र ‘बहमनशाह’ का वंशज बताया, जबकि फ़रिश्ता के अनुसार- वह प्रारंभ में एक ब्राह्मण गंगू का नौकर था। उसके प्रति सम्मान प्रकट करने के उद्देश्य से शासक बनने के बाद हसन ने बहमनशाह की उपाधि ली। अलाउद्दीन हसन ने गुलबर्गा को अपनी राजधानी बनाया तथा उसका नाम बदलकर ‘अहसानाबाद’ कर दिया। उसने साम्राज्य को चार प्रान्तों- गुलबर्गा, दौलताबाद, बरार और बीदर में बांट दिया था। 4 फ़रवरी, 1358 ई. को उसकी मृत्यु हो गयी। इसके उपरान्त सिंहासनारूढ़ होने वाले शासको में फ़िरोज शाह बहमनी ही सबसे योग्य शासक था।

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बहमनी वंश का इतिहास

  • शासन काल -1347-1518 ई.
  • संस्थापक –  अलाउद्दीन बहमन शाह

मुहम्मद बिन तुगलक ने दक्षिण में साम्राज्यवादी नीति का पालन करते हुए दक्षिण के अधिकतर भाग पर अधिकार कर लिया था। मुहम्मद बिन तुगलक ने इनके प्रशासन के लिए ‘अमीरान ए सदह’ नामक अधिकारी नियुक्त किए इन्हें ‘सादी’ भी कहा जाता था। ये अधिकारी राजस्व वसूल किया करते थे साथ ही सैनिक टुकड़ियों के भी प्रधान होते थे। ये बहुत शक्तिशाली थे।

बहमनी वंश | 1347 ई.-1538 ई.

जब तुगलक शासन के विरूद्ध सर्वत्र विद्रोह प्रारंभ हुआ तब इसका लाभ उठाकर ‘सादी अमीरों’ ने भी विद्रोह कर दिया, और दौलताबाद में नियुक्त तुगलक वायसराय को पराजित कर दौलताबाद पर अधिकार कर लिया। इस्माइल को इन अमीरों ने अपना नेता चुना।

इस्माइल ने अमीरों के इस संघ के मुख्य व्यक्ति हसन को अमीर-उल-उमरा एवं जफ़र खां की उपाधियों से विभूषित किया। जफ़र खां ने सागर और गुलबर्गा पर अधिकार कर लिया। अपनी ताकत एवं सफलताओं के कारण जफर खां बहुत लोकप्रिय हो गया तथा इस्माइल शाह ने उसके पक्ष में सत्ता समर्पित कर दी। 1346 ई. में जफ़र खान ने अलाउद्दीन हसन बहमन शाह की उपाधि धारण की और नए बहमनी वंश का संस्थापक बन गया।

बहमनी वंश के शासको की सूची

बहमनी वंश के शासको की सूची और उनका शासन काल निम्नलिखित है –

शासकशासन काल
अलाउद्दीन बहमन शाह प्रथम1347-1358 ई.
मुहम्मद बहमनी शाह प्रथम1358-1373 ई.
मुज़ाहिद बहमनी1373-1377 ई.
दाऊद बहमनी1378 ई.
मुहम्मद बहमनी शाह द्वितीय1378-1397 ई.
ग़यासुद्दीन बहमनी1397 ई.
शम्सुद्दीन बहमनी1397 ई.
फ़िरोज शाह बहमनी1397-1422 ई.
अहमदशाह प्रथम1422-1435 ई.
अलाउद्दीन अहमदशाह द्वितीय1435-1457 ई.
हुमायूँ शाह बहमनी1457-1461 ई.
निज़ाम शाह बहमनी1461-63 ई.
मुहम्मद बहमनी शाह तृतीय1463-1482 ई.
महमूद शाह बहमनी1482-1518 ई.
कलीमुल्ला बहमनी शाह1526-1538 ई.

बहमनी वंश के शासको का संक्षिप्त परिचय

बहमनी वंश के शासको का संक्षिप्त परिचय नीचे दिया गया है-

अलाउद्दीन हसन बहमन शाह (हसन गंगू)

अलाउद्दीन हसन बहमन शाह ने बहमनी साम्राज्य की स्थापना की। इस समय दिल्ली सल्तनत पर मुहम्मद बिन तुगलक का शासन था। अलाउद्दीन हसन बहमन शाह ने कंधार, कोट्टगिरी, कल्याणी, बीदर, गुलबर्गा एवं दाबुल पर अधिकार किया।

मुहम्मद शाह प्रथम (मुहम्मद प्रथम)

मुहम्मद शाह प्रथम ने संपूर्ण बहमनी साम्राज्य को 4 प्रांतों में विभक्त था – 1. दौलताबाद 2. बरार 3. बीदर 4. गुलबर्गा

मुहम्मद प्रथम के काल में बारूद का उपयोग पहली बार प्रारंभ हुआ, जिसने रक्षा संगठन में एक नई क्रांति पैदा की। सेना नायक को अमीर-उल-उमरा कहते थे। उसने  शासन का कुशल संगठन किया। उसके काल की मुख्य घटना विजयनगर तथा वारंगल से युद्ध तथा विजय थी। इसी काल में बारूद का प्रयोग पहली बार हुआ जिससे रक्षा संगठन में एक नई क्रांति पैदा हुई।

ताजुद्दीन फिरोज

ताजुद्दीन फिरोज बहमनी वंश का सर्वाधिक विद्वान सुल्तानों में से एक है। विदेशों से अनेक प्रसिद्ध विद्वानों को दक्षिण में आकर बसने के लिए प्रेरित किया। इसने मुहम्मदाबाद भीमा नदी के किनारे नगर की नींव डाली।

ताजुद्दीन फिरोज एशियाई विदेशियों या अफाकियों को बहमनी साम्राज्य में आकर स्थायी रूप से बसने के लिए प्रोत्साहित किया। जिसके परिणामस्वरूप बहमनी अमीर वर्ग अफीकी और दक्कनी दो गुटों में विभाजित हो गया। यह दलबंदी बहमनी साम्राज्य के पतन और विघटन का मुख्य कारण सिद्ध हुआ।

शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम

इसने राजधानी को गुलबर्गा के स्थान पर बीदर स्थानांतरित किया। नवीन राजधानी का नाम मुहम्मदाबाद रखा। इसे इतिहास में अहमद शाह वली या संत भी कहते है। इसके शासन काल में इस दलगत राजनीति (दक्कनी एवं अफाकी) ने साम्प्रदायिक रूप ले लिया, क्योंकि सुल्तान ने ईरान से शिया संतों को भी आमंत्रित किया।

महमूद गंवा

महमूद गंवा अफाकी (ईरानी) मूल का था। प्रारंभ में यह एक व्यापारी था। बहमन सुल्तानों में हुमायुं के पुत्र निजामुद्दीन अहमद के वयस्क होने पर उसके संरक्षण के लिए एक प्रशासनिक परिषद का निर्माण किया गया। महमूद गंवा इस परिषद का सदस्य था।

प्रशासनिक परिषद के सदस्य एवं सुल्तान हुमायूँ के शासन काल में प्रधानमंत्री के रूप में महमूद गवाँ बहमनी साम्राज्य की राजनीतिक समस्याओं का निराकरण कर उसे बहमनी साम्राज्य को उत्कर्ष की पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया। सबसे पहले उसने मालवा पर अधिकार किया। उसकी सबसे महत्वपूर्ण सैनिक सफलता गोवा पर अधिकार प्राप्त करना थी। गोवा पश्चिमी समुद्री तट का सर्वाधिक प्रसिद्ध बंदरगाह था। यह विजयनगर का संरक्षित राज्य था।

महमूद-तृतीय

महमूद तृतीय के राज्यारोहण के समय महमूद गंवा को प्रधानमंत्री बनाया गया। महमूद गवां को ख्वाजा जहां की उपाधि दी गयी। महमूद गवां ने पूर्व के 4 प्रांतों को 8 प्रांतों में विभाजित किया।

मुहम्मद बहमनी शाह तृतीय ने 1463 से 1482 ई. तक राज्य किया था। निज़ाम शाह बहमनी का अनुज ‘मुहम्मद बहमनी शाह तृतीय‘ 9 वर्ष की अवस्था में सिंहासन पर बैठा था। उसके शासन काल में महमूद गवाँ का व्यक्तित्व प्रभावशाली ढंग से उभरा। ‘ख्वाजा जहाँ’ की उपाधि से महमूद गवाँ को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। बहमनी वंश का आगे का 20 वर्ष का इतिहास महमूद गवाँ के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह गया।

बहमनी सल्तनत (बहमनी वंश) का विजयनगर से युद्ध

बहमनी सल्तनत की अपने पड़ोसी विजयनगर के हिन्दू राज्य से लगातार अनबन चलती रही। विजयनगर राज्य उस समय तुंगभद्रा नदी के दक्षिण और कृष्णा नदी के उत्तरी क्षेत्र में फैला हुआ था और उसकी पश्चिमी सीमा बहमनी राज्य से मिली हुई थी। विजयनगर राज्य के दो मज़बूत क़िले मुदगल और रायचूर बहमनी सीमा के निकट स्थित थे। इन क़िलों पर बहमनी सल्तनत और विजयनगर राज्य दोनों दाँत लगाये हुए थे। इन दोनों राज्यों में धर्म का अन्तर भी था।

बहमनी राज्य इस्लामी और विजयनगर राज्य हिन्दू था। बहमनी सल्तनत की स्थापना के बाद ही उन दोनों राज्यों में लड़ाइयाँ शुरू हो गईं और वे तब तक चलती रहीं जब तक बहमनी सल्तनत क़ायम रही। बहमनी सुल्तानों के द्वारा पड़ोसी हिन्दू राज्य को नष्ट करने के सभी प्रयास निष्फल सिद्ध हुए, यद्यपि इन युद्धों में अनेक बार बहमनी सुल्तानों की विजय हुई और रायचूर के दोआब पर विजयनगर के राजाओं के मुक़ाबले में बहमनी सुल्तानों का अधिकार अधिक समय तक रहा।

बहमनी वंश में प्रशासनिक पद

बहमनी राज्य की आबादी में मुसलमान अल्पसंख्यक थे, इसलिए सुल्तान ने राज्य के बाहर के मुसलमानों को वहाँ आकर बसने के लिए प्रोत्साहित किया। परिणामस्वरूप बहुत से विदेशी मुसलमान वहाँ आकर बस गये जो अधिकतर शिया थे। उनमें से बहुत से लोगों को राज्य के महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया। विदेशी मुसलमानों के बढ़ते हुए प्रभाव से खिन्न होकर दक्खिनी मुसलमान, जो ज़्यादातर सुन्नी थे, उनसे शत्रुता रखने लगे।

बहमनी वंश का पतन

दसवें सुल्तान अलाउद्दीन द्वितीय (1435-57 ई.) के शासनकाल में दक्खिनी और विदेशी मुसलमानों के संघर्ष ने अत्यन्त उग्र रूप धारण कर लिया। 1481 ई. में 13वें सुल्तान मुहम्मद तृतीय के राज्य काल में महमूद गवाँ को फाँसी दे दी गई, जो ग्यारहवें सुल्तान हमायूँ के समय से बहमनी सल्तनत का बड़ा वज़ीर था और उसने राज्य की बड़ी सेवा की थी। मुहम्मद गवाँ की मौत के बाद बहमनी सल्तनत का पतन शुरू हो गया।

बहमनी वंश के पतन का कारण

  • दक्खिनियों एवं अफाकियों (ईरानी, अरब और तुर्कों) के मध्य विद्वेष एवं अंतर्विरोध।
  • सुलतान फिरोज का हिन्दुओं की ओर विशेष झुकाव।
  • सुल्तान शिहाबुद्दीन अहमद द्वारा ईरान के शिया संतों को आमंत्रित करना इससे दक्खिनी सुन्नी मुसलमानों में असंतोष बढ़ा।
  • बहमन सुल्तानों द्वारा लड़े गए अनेक अनिर्णित युद्ध।
  • बहमनी वंश एवं विजयनगर साम्राज्य के लगातार युद्ध।
  • बहमन वंश की आंतरिक षड़यंत्र एवं एकता का अभाव।

बहमनी वंश से स्वतंत्र हुए राज्य

अगले और आख़िरी सुलतान महमूद के राज्यकाल में बहमनी राज्य के पाँच स्वतंत्र राज्य बरार बीदर अहमदनगर गोलकुण्डा और बीजापुर बन गये। जिनके सूबेदारों ने अपने को स्वतंत्र सुल्तान घोषित कर दिया। इन पाँचों राज्यों ने 17वीं शताब्दी तक अपनी स्वतंत्रता बनाये रखी। तब इन सबको मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया गया।

राज्यसंस्थापकराजवंशराजधानीसमय
बरारफ़तेहउल्ला इमादशाहइमादशाही वंशएलिचपुर, गाविलगढ़1484 ई.
बीजापुरयूसुफ़ आदिल ख़ाँआदिलशाही वंशनौरसपुर1489-90 ई.
अहमदनगरमलिक अहमदनिज़ामशाही वंशजुन्नार, अहमदनगर1490 ई.
गोलकुण्डाकुली कुतुबशाहकुतुबशाही वंशगोलकुण्डा1512-18 ई.
बीदरअमीर अली बरीदबरीदशाही वंशबीदर1526-27 ई.

बहमनी वंश से राज्यों के स्वतंत्र होने के कारण

राज्यकारण
बरारबुरहान इमादशाह के मंत्री तूफाल ने इसे कैद कर लिया एवं स्वयं गद्दी पर अधिकार कर लिया। अंत में अहमदनगर के शासक मुर्तजा निजाम शाह ने बुरहान को कैद से आजाद किया एवं बरार को 1574 ई. में अहमदनगर में मिला लिया।
बीजापुरजापुर के आदिलशाही राजवंश का संस्थापक युसुफ आदिलशाह खां था। आदिलशाही सुल्तान स्वयं को तुर्की ऑटोमन राजवंश के वंशज मानते थे।
अहमदनगरअहमदनगर के निजामशाही वंश का संस्थापक अहमदशाह था। इसको निजामुल्मुल्क की उपाधि प्रदान की गयी थी।
गोलकुण्डागोलकुण्डा के कुतुबशाही वंश का संस्थापक कुली कुतुब शाह था गोलकुण्डा साहित्यकारों की बौद्धिक क्रीडा स्थली थी
बीदरबीदर में बारीदशाही वंश का संस्थापक अमीर अली बारीद था अमीर अली बारीद को दक्कन का लोमड़ी कहते है इब्राहिम आदिलशाह-2 ने बीदर पर आक्रमण कर 1619 ई. में इसे बीजापुर में शामिल कर लिया था।

बहमनी वंश से सम्बंधित कुछ तथ्य

बहमनी वंश से सम्बंधित कुछ तथ्यों को आगे दिया गया है –

बहमनी वंश (साम्राज्य) में इस्लामी शिक्षा

बहमनी सल्तनत से कोई ख़ास फ़ायदा नहीं पहुँचा। कुछ बहमनी सुल्तानों ने इस्लामी शिक्षा को प्रोत्साहन दिया और राज्य के पूर्वी भाग में सिंचाई का प्रबंध किया। लेकिन उनकी लड़ाइयों, नरसंहार और आगजनी से प्रजा को बहुत नुक़सान पहुँचा।

बहमनी वंश (साम्राज्य) में तख़्त के लिए रक्तपात

बहमनी सुल्तानों में तख़्त के लिए प्रायः रक्तपात होता रहा। चार सुल्तानों को क़त्ल कर दिया गया। दो अन्य को गद्दी से जबरन उतार कर अंधा कर दिया गया। चौदह सुल्तानों में से केवल पाँच सुल्तान ही अपनी मौत से मरे। नवें सुल्तान अहमद ने राजधानी गुलबर्ग से हटाकर बीदर बनायी, जहाँ उसने अनेक आलीशान इमारतों का निर्माण कराया।

बहमनी वंश (साम्राज्य) में समृद्धि और ऐश्वर्य

इस सल्तनत में साधारण प्रजा की दशा बहुत दयनीय थी, जैसा कि रूसी व्यापारी एथानासियस निकितिन ने लिखा है, जिसने बहमनी राज्य का चार वर्ष (1470-74 ई.) तक भ्रमण किया। उसने लिखा है कि भूमि पर जनसंख्या का भार अत्यधिक है, जबकि अमीर लोग समृद्धि और ऐश्वर्य का जीवन बिताते हैं। वे जहाँ कहीं जाते हैं, उनके लिए चांदी के पलंग पहले से ही रवाना कर दिये जाते हैं। उनके साथ बहुत घुड़सवार और सिपाही, मशालची और गवैये चलते हैं।

बहमनी वंश (साम्राज्य) में क़िले और मस्जिदें

बहमनी वंश

बहमनी सुल्तानों ने गाबिलगढ़ और नरनाल में मज़बूत क़िले बनवाये और गुलबर्ग एवं बीदर में कुछ मस्जिदें भी बनवायीं। बहमनी सल्तनत के इतिहास से प्रकट होता है कि हिन्दू आबादी को सामूहिक रूप से जबरन मुसलमान बनाने का सुल्तानों का प्रयास किस प्रकार विफल हुआ।


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