दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की चुनौती लगातार गंभीर होती जा रही है। बढ़ते औद्योगीकरण, शहरीकरण और ऊर्जा उपभोग के कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और अन्य ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा तेज़ी से बढ़ रही है, जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि और पर्यावरणीय असंतुलन जैसी समस्याएँ पैदा हो रही हैं।
भारत सरकार 2026 से कार्बन बाजार (Carbon Market) शुरू करने की दिशा में तैयारी कर रही है, जिसके तहत कार्बन उत्सर्जन को कम करने वाली तकनीकों को बढ़ावा मिलेगा। इसी संदर्भ में, एक तकनीक जो कृषि और पर्यावरण—दोनों के लिए लाभकारी है, वह है बायोचार (Biochar)। यह एक उच्च-कार्बन सामग्री है जो कृषि एवं नगरपालिका अपशिष्टों के पायरोलेसिस (Pyrolysis) से बनती है और नकारात्मक उत्सर्जन (Negative Emissions) के लिए एक व्यवहारिक समाधान मानी जाती है।
बायोचार क्या है?
बायोचार एक महीन, काले रंग का, उच्च-कार्बन वाला ठोस पदार्थ है, जिसे बिना ऑक्सीजन या बहुत कम ऑक्सीजन की उपस्थिति में बायोमास (जैसे फसल अवशेष, लकड़ी, पत्तियाँ, नगर अपशिष्ट आदि) को गर्म करके तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया को आधुनिक पायरोलेसिस कहते हैं।
पायरोलेसिस में बायोमास का तापीय विघटन (Thermal Decomposition) होता है, और इसमें तीन मुख्य उत्पाद प्राप्त होते हैं:
- ठोस – बायोचार
- द्रव – बायो-ऑयल (Bio-oil)
- गैस – सिंगैस (Syngas)
बायोचार बनाने की प्रक्रिया
बायोचार निर्माण की प्रक्रिया सरल दिखने के बावजूद वैज्ञानिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। इसके मुख्य चरण इस प्रकार हैं:
- कच्चा माल चुनना – कृषि अवशेष, लकड़ी, पत्तियाँ, गन्ने का बगास, नारियल के छिलके, नगर ठोस अपशिष्ट, आदि।
- सुखाना – नमी की मात्रा 15–20% से कम करने के लिए।
- पायरोलेसिस – बायोमास को 300–700°C तक गर्म किया जाता है, ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में।
- उत्पाद अलग करना – ठोस बायोचार, द्रव बायो-ऑयल और सिंगैस को अलग किया जाता है।
- शुद्धिकरण और उपयोग – बायोचार को मृदा संशोधन, कार्बन भंडारण या अन्य औद्योगिक उपयोगों में लगाया जाता है।
बायोचार के उपयोग
बायोचार के अनेक कृषि, पर्यावरणीय और औद्योगिक उपयोग हैं:
- मृदा उर्वरता बढ़ाना – अम्लीय मिट्टी का pH संतुलित कर इसे उपजाऊ बनाना।
- कृषि उत्पादन में वृद्धि – पोषक तत्वों और पानी की उपलब्धता में सुधार के कारण फसल उपज में वृद्धि।
- मिट्टी जनित रोगों में कमी – बायोचार की सूक्ष्म संरचना रोगाणुओं के लिए प्रतिकूल परिस्थितियाँ बनाती है।
- जल संरक्षण – इसकी हाइग्रोस्कोपिक प्रकृति के कारण पानी का संचय।
- कार्बन भंडारण – लंबे समय तक कार्बन को स्थिर रूप में संरक्षित करना।
- अपशिष्ट प्रबंधन – कृषि और शहरी ठोस अपशिष्ट का उपयोगी पुनर्चक्रण।
बायोचार के लाभ
1. कार्बन सिंक (Carbon Sink)
- सामान्यत: बायोमास को जलाने या सड़ने पर CO₂ और मीथेन (CH₄) वातावरण में निकलते हैं।
- बायोचार उत्पादन के दौरान भी कुछ CO₂ उत्सर्जित होती है (लगभग 50%), लेकिन बाकी कार्बन एक स्थिर रूप में बायोचार में संरक्षित हो जाता है और सैकड़ों वर्षों तक वातावरण में नहीं जाता।
- इस प्रकार बायोचार कार्बन को स्थायी रूप से मिट्टी में संग्रहित कर नकारात्मक उत्सर्जन में योगदान देता है।
2. मृदा संशोधन (Soil Amendment)
- बायोचार की झरझरी (Porous) संरचना मिट्टी में पानी और पोषक तत्वों को रोककर धीरे-धीरे पौधों को उपलब्ध कराती है।
- यह मिट्टी की संरचना में सुधार लाकर जड़ों की वृद्धि और सूक्ष्मजीव गतिविधि को प्रोत्साहित करता है।
3. जल धारण क्षमता (Water Retention)
- इसकी हाइग्रोस्कोपिक प्रकृति के कारण यह शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में जल धारण क्षमता बढ़ाने में मदद करता है।
- यह सिंचाई की आवश्यकता को कम कर सकता है, जिससे जल संकटग्रस्त क्षेत्रों में कृषि टिकाऊ बनती है।
भारत में बायोचार उत्पादन की संभावनाएँ
कृषि और नगर अपशिष्ट की उपलब्धता
- भारत हर वर्ष लगभग 600 मिलियन मीट्रिक टन कृषि अपशिष्ट और 60 मिलियन मीट्रिक टन नगर ठोस अपशिष्ट उत्पन्न करता है।
- वर्तमान में इसका एक बड़ा हिस्सा खुले में जलाया या फेंका जाता है, जिससे वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है।
उत्पादन क्षमता और कार्बन न्यूनीकरण
- यदि कुल अपशिष्ट का केवल 30–50% भी बायोचार उत्पादन के लिए उपयोग किया जाए, तो भारत प्रति वर्ष 15–26 मिलियन टन बायोचार बना सकता है।
- इससे हर साल लगभग 1 गीगाटन CO₂ समतुल्य (GtCO₂e) गैस को वातावरण से हटाया जा सकता है।
उप-उत्पाद और ऊर्जा क्षमता
1. सिंगैस (Syngas)
- पायरोलेसिस के दौरान उत्पन्न एक ज्वलनशील गैस मिश्रण।
- भारत में हर साल 20–30 मिलियन टन सिंगैस का उत्पादन संभव है।
- इससे 8–13 टेरावॉट-घंटा (TWh) बिजली बनाई जा सकती है, जो भारत की वार्षिक बिजली खपत का लगभग 0.7–5% है।
- यह 4–7 लाख टन कोयले की जगह ले सकता है।
2. बायो-ऑयल (Bio-oil)
- हर वर्ष 24–40 मिलियन टन बायो-ऑयल उत्पादन संभव है।
- इससे 12–19 मिलियन टन डीजल या केरोसीन की जगह ली जा सकती है, जो देश की कुल मांग का लगभग 8% है।
- इससे कच्चे तेल के आयात में कमी और जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन में 2% से अधिक की कटौती संभव है।
बायोचार और जलवायु परिवर्तन
बायोचार, कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) की तरह ही वातावरण से CO₂ को हटाकर लंबे समय तक संरक्षित करने की क्षमता रखता है। यह न केवल जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करता है, बल्कि सतत कृषि और ऊर्जा सुरक्षा में भी योगदान देता है।
चुनौतियाँ
हालाँकि बायोचार एक संभावनाओं से भरी तकनीक है, लेकिन इसके प्रसार में कुछ चुनौतियाँ हैं:
- तकनीकी अवसंरचना की कमी
- कच्चे माल का संग्रह और परिवहन
- लागत और वित्तीय प्रोत्साहन
- किसानों में जागरूकता की कमी
- मानकीकरण और गुणवत्ता नियंत्रण की आवश्यकता
नीतिगत सुझाव
- बायोचार उत्पादन इकाइयों के लिए सरकारी सब्सिडी और कर छूट।
- कार्बन क्रेडिट प्रणाली में बायोचार को प्राथमिकता।
- ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे पैमाने के पायरोलेसिस संयंत्र स्थापित करना।
- किसानों और स्थानीय निकायों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम।
- अपशिष्ट प्रबंधन नीतियों में बायोचार को शामिल करना।
बायोचार (Biochar) से सम्बंधित आंकड़ें
पायरोलेसिस से प्राप्त मुख्य उत्पाद
उत्पाद | विवरण | संभावित उपयोग |
---|---|---|
बायोचार (Biochar) | उच्च-कार्बन ठोस अवशेष | मृदा उर्वरक, कार्बन भंडारण, जल संरक्षण |
बायो-ऑयल (Bio-oil) | गाढ़ा द्रव ईंधन | डीजल/केरोसीन का विकल्प, औद्योगिक ईंधन |
सिंगैस (Syngas) | ज्वलनशील गैस मिश्रण | बिजली उत्पादन, ऊष्मा स्रोत |
भारत में अपशिष्ट और संभावित बायोचार उत्पादन
श्रेणी | वार्षिक उत्पादन | वर्तमान स्थिति | बायोचार हेतु संभावित उपयोग | संभावित बायोचार उत्पादन |
---|---|---|---|---|
कृषि अपशिष्ट | 600 मिलियन मीट्रिक टन | खुला जलाना/फेंकना | 30–50% उपयोग | 15–26 मिलियन टन/वर्ष |
नगर ठोस अपशिष्ट | 60 मिलियन मीट्रिक टन | डंपिंग/जलाना | 30–50% उपयोग | उपरोक्त में शामिल |
संभावित कार्बन न्यूनीकरण
पैरामीटर | अनुमानित मान |
---|---|
वार्षिक कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य (CO₂e) हटाव | ~1 गीगाटन (GtCO₂e) |
कार्बन स्थायित्व अवधि | सैकड़ों वर्ष |
उप-उत्पाद और ऊर्जा क्षमता
उप-उत्पाद | वार्षिक संभावित उत्पादन | ऊर्जा/ईंधन विकल्प | संभावित प्रतिस्थापन | जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन में कटौती |
---|---|---|---|---|
सिंगैस | 20–30 मिलियन टन | 8–13 TWh बिजली | 4–7 लाख टन कोयला | ~5% (बिजली क्षेत्र) |
बायो-ऑयल | 24–40 मिलियन टन | 12–19 मिलियन टन डीजल/केरोसीन | कुल मांग का ~8% | ~2% (जीवाश्म ईंधन) |
बायोचार के कृषि लाभ
लाभ | विवरण |
---|---|
मृदा उर्वरता | अम्लीय मिट्टी का pH सुधारकर पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाना |
जल संरक्षण | शुष्क क्षेत्रों में जल धारण क्षमता बढ़ाना |
रोग नियंत्रण | मृदा जनित रोगाणुओं के प्रकोप में कमी |
फसल उत्पादन | पोषक तत्वों और जल प्रबंधन में सुधार के कारण उपज में वृद्धि |
निष्कर्ष
बायोचार न केवल वातावरण से अतिरिक्त कार्बन को हटाने में मदद करता है, बल्कि कृषि उत्पादकता, जल संरक्षण और ऊर्जा उत्पादन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत जैसे कृषि प्रधान और उच्च जनसंख्या वाले देश में बायोचार एक ऐसा समाधान है जो जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण, सतत विकास और ऊर्जा आत्मनिर्भरता—तीनों को एक साथ आगे बढ़ा सकता है।
यदि नीति-निर्माता, उद्योग और किसान मिलकर इस दिशा में कदम उठाएँ, तो बायोचार आने वाले वर्षों में भारत की हरित अर्थव्यवस्था का एक अहम स्तंभ बन सकता है।
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