सम्राट बिन्दुसार | Bindusara | 298-272 ई.पू.

बिन्दुसार मौर्य साम्राज्य का दूसरा शासक था। लगभग 2400 वर्ष पहले प्राचीन भारत में मौर्य साम्राज्य का राज हुआ करता था। मौर्य साम्राज्य का पूरी दुनिया में नाम प्रसिद्ध था। प्राचीन भारत के सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य को एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम बिन्दुसार था।

बालक बिन्दुसार के जन्म के पहले ही विषैले भोजन के कारण उसकी माता दुर्धरा की मृत्यु हो गई। वह अपने पिता की इकलौती संतान थे क्योंकि उनके बड़े भाई केशनाक भी जन्म के तुरंत बाद ही मृत्यु को प्राप्त हो गए थे।

बिन्दुसार मौर्य साम्राज्य के दुसरे शासक थे। इस साम्राज्य की स्थापना इनके पिता चन्द्रगुप्त मौर्य ने की थी। बिन्दुसार और उनके पिता चन्द्रगुप्त मौर्य के बारे में जितनी कहानियां सुनने को मिलती है, उतनी कहानिया पढने को नहीं मिलती। इतिहास के पन्नों के अंदर जितनी भी जानकारियाँ मिलती है वे सभी उनकी मृत्यु जे लगभग 1000 साल बाद लिखी गयी थी। इसलिए इसके बारे में निशित रूप से कुछ भी कहना मुश्किल है।

सम्राट बिन्दुसार का संक्षिप्त परिचय

नामसम्राट बिन्दुसार
जन्म तिथिलगभग 320 ई.पू.
मृत्यु तिथिलगभग 272 ई.पू. (52 वर्ष)
पिता/माताचंद्रगुप्त मौर्य और दुर्धरा
पति/पत्नीसुभद्रांगी और 15 अन्य
संतानअशोक, विताशोक, सुसीम और 98 अन्य
उपाधिसम्राट
भाईकेशनाक (जन्म के बाद ही देहांत हो गया)
राज्य सीमासम्पूर्ण भारत (लगभग)
शासन काल298 से 272 ई.पू.
शासन अवधि26 वर्ष (लगभग)
राज्याभिषेक298 ई.पू.
प्रधानमंत्रीआचार्य चाणक्य/कौटिल्य (विष्णुगुप्त)
धार्मिक मान्यताआजीवक और जैन
पूर्वाधिकारीचन्द्रगुप्त मौर्य
उत्तराधिकारीअशोक
राजघरानामौर्य
वंशमौर्य वंश
संबंधित लेखचन्द्रगुप्त मौर्यचाणक्यअशोक आदि
अन्य जानकारीयूनानी लेखों के अनुसार बिन्दुसार का नाम ‘अमित्रकेटे’ था। विद्वानों के अनुसार अमित्रकेटे का संस्कृत रूप है अमित्रघात या अमित्रखाद।

जब भारतवर्ष के महान राजाओं की बात होती है तो चक्रवर्ती सम्राट बिन्दुसार मौर्य का नाम भी बड़े गर्व के साथ लिया जाता है। चक्रवर्ती सम्राट बिन्दुसार मौर्य कुशल प्रबंधक, वीर, दूरदर्शी, महान, विजेता और एक प्रतापी राजा थे। मौर्य साम्राज्य की कुछ चुनिंदा शासकों में चक्रवर्ती सम्राट बिंदुसार मौर्य का नाम भी शामिल है।

चक्रवर्ती सम्राट बिन्दुसार मौर्य इतने भाग्यशाली थे कि उनके पिता का नाम चंद्रगुप्त मौर्य था जो कि मौर्य साम्राज्य के संस्थापक थे। इसके अलावा चक्रवर्ती सम्राट बिन्दुसार मौर्य ने सम्राट अशोक महान जैसे वीर और युगो युगो तक याद किए जाने वाले पुत्र को जन्म दिया था। बिन्दुसार के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत ही मृदुभाषी अर्थात अपनी मीठी वाणी के लिए जाने जाते थे, इतना ही नहीं वह बात करने में बहुत चतुर और एक साहसी राजा थे।

बिन्दुसार का जन्म एवं जीवन परिचय

प्राचीन ग्रंथों और महाकाव्यों के आधार पर देखा जाए तो मौर्य साम्राज्य में सिर्फ चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक के इतिहास को ही विस्तृत रूप में दर्शाया गया है। जबकि चक्रवर्ती सम्राट बिंदुसार मौर्य को किसी भी ग्रंथ या महाकाव्य में ज्यादा जगह नहीं मिली है। लेकिन कई विदेशी लेखकों इतिहासकारों और विदेशी दूतों के भारत आगमन पर लिखित पुस्तकों के आधार पर बिंदुसार के इतिहास का वर्णन मिलता है।

बौद्ध लेखों में सम्राट बिन्दुसार के जीवन की झलक देखने को मिलती हैं। बिन्दुसार के जीवन के बारे में बुद्ध महामानवों ने अपने लेखों में विस्तृत रूप से बताया गया है। चक्रवर्ती राजा बिंदुसार मौर्य का नाम भारत के कुछ चुनिंदा महान शासकों में शामिल हैं। राजा बिन्दुसार महान सेनानायक, कुशल राजनीतिज्ञ और प्रजा पालक होने के साथ-साथ एक सफल शासक भी थे।

जब बिन्दुसार की अल्पायु थी, तब इनकी माता का देहांत हो गया। माता के देहांत के पश्चात इनका बचपन बड़ी कठिनाइयों में बीता क्योंकि मां की जगह कोई नहीं ले सकता है। राजा बिन्दुसार का नाम चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री आचार्य चाणक्य ने रखा था। राजा बिन्दुसार का नाम बिन्दुसार रखने के पीछे एक कहानी है। कुछ जैन ग्रंथों में यह वर्णन मिलता है कि आचार्य चाणक्य/कौटिल्य (विष्णुगुप्त), चंद्रगुप्त मौर्य को जहर खाने का अभ्यास करवाते थे, ताकि भविष्य में इस तरह की परिस्थिति आने पर आसानी के साथ सामना किया जा सके।

सम्राट बिन्दुसार | Bindusara | 298-272 ई.पू.

एक दिन की बात है कि विष के प्रभाव से चंद्रगुप्त मौर्य की रानी (बिन्दुसार की मा) का निधन हो गया। इस समय राजा बिंदुसार गर्भ में थे, तभी आचार्य चाणक्य के आदेशानुसार चंद्रगुप्त मौर्य की पत्नी के पेट को चीर कर बच्चे को सुरक्षित बाहर निकाल दिया गया, परंतु बच्चे के सिर में जहर की कुछ बूंदें पहुंच चुकी थी पर आचार्य चाणक्य ने बड़ी ही कुशलता पूर्वक उसे जहर से मुक्त कर दिया और उसे बचा लिया।

इस जहर की बूंद की वजह से आचार्य चाणक्य ने इस बच्चे के सर पर एक बिंदु सा निशान (लासन) बन गया था। इसी आधार पर आचार्य चाणक्य के द्वारा उसका नामकरण बिंदुसार किया गया। और उसके बाद उसका पालन पोषण शाही दासियों द्वारा राज महल में ही किया गया।

चक्रवर्ती सम्राट राजा बिन्दुसार मौर्य महत्वकांक्षी शासक भी थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी बिन्दुसार का जीवन बहुत ही शान शौकत और खुशी के साथ व्यतीत हुआ, विलासिता पूर्ण जीवन उन्हें बहुत पसंद था। बिन्दुसार अपने माता-पिता की इकलौती जीवित संतान थे क्योंकि उनके बड़े भाई केशनाक जन्म लेते ही मृत्यु को प्यारे हो गए।

बिन्दुसार ने 16 महिलाओं से विवाह किए थे। जबकि उनके पिता चंद्रगुप्त मौर्य ने दो महिलाओं से विवाह किए थे। बिन्दुसार के 101 पुत्र थे। जिनमें अशोक, विताशोक, और सुसीम का नाम प्रचलित रहा है। अशोक बिन्दुसार का सर्वप्रिय पुत्र नहीं था। बिन्दुसार नहीं चाहते थे कि अशोक सम्राट बने बल्कि बिन्दुसार का मन था कि उनका सर्वप्रिय पुत्र सुसीम सम्राट बने।

अशोक व विताशोक दोनों एक ही माता के पुत्र थे। उनकी माता का नाम सुभद्रांगी था जो कि एक ब्राह्मण थी। जब सुभद्रांगी का जन्म हुआ था तब एक ज्योतिषी ने यह भविष्यवाणी की थी कि उसका पुत्र महान राजा बनेगा।

जब सुभद्रांगी बड़ी हो गई तो उसे एक दिन उसके पिता पाटलिपुत्र में बिन्दुसार के महल में लेकर गए थे। वहां राजा की पत्नियां उसकी सुंदरता से जलती थी और इसलिए उन्होंने सुभद्रांगी को नाई का काम सौंप दिया।

बिन्दुसार सुभद्रांगी के बनाए हुए बालों से प्रसन्न हुए और उसको कुछ मांगने का विकल्प दिया। सुभद्रांगी ने उनकी रानी बनने की इच्छा जाहिर की। बिन्दुसार ने पहले सोचा कि वह निम्न वर्ग की लड़की है परंतु बाद में पता चला कि यह ब्राह्मण हैं तो दोनों ने विवाह कर लिया। उसके पश्चात् सुभाद्रंगी के दो पुत्र हुए जिनका नाम था अशोक और विताशोक। परंतु, बिन्दुसार ने कभी अशोक को पसंद नहीं किया।

बिन्दुसार का शासन

विश्व के सबसे बड़े साम्राज्य में शामिल मौर्य साम्राज्य का शासन करना और कानून व्यवस्था को संभालना इतना आसान नहीं होता है, लेकिन राजा बिंदुसार जैसे महान सम्राट ने ना सिर्फ कुशल नेतृत्व किया बल्कि आम जनता और प्रजा का दिल भी जीत लिया। राजा बिंदुसार के बारे में कहा जाता है कि यह प्रजा को बहुत प्रिय थे।

सम्राट बिन्दुसार | Bindusara | 298-272 ई.पू.

बिन्दुसार ने मौर्य साम्राज्य का शासन 297 ईसा पूर्व में संभाला था। 297 में ईसा पूर्व में ही उसके पिता चंद्रगुप्त चन्द्रागिरि (कर्नाटक) की पहाड़ियों में चले गए थे। उस समय मौर्य साम्राज्य चंद्रगुप्त के अधीन था जो कांधार से लेकर पाटलिपुत्र तक और तक्षशिला से लेकर सुवर्णगिरी तक फैला हुआ था। लगभग पूरे प्राचीन भारत पर मौर्य साम्राज्य का झंडा फहरा रहा था। वर्तमान समय के बांग्लादेश, केरल, कर्नाटक और उड़ीसा इत्यादि क्षेत्र ही मौर्य साम्राज्य के अधीन नहीं थे। 

अपार और सर्वशक्तिमान राजा बिंदुसार उदार और निरंकुशवाद पर चलने वाले शासक थे। राजा बिंदुसार का इतिहास दर्शाता है कि वह संपूर्ण साम्राज्य की शक्ति को अपने हाथ में ना रख कर सब पदाधिकारियों में आवश्यकता अनुसार कार्यों का विभाजन कर रखा था। राजा बिंदुसार के साम्राज्य में राजा को परामर्श देने के लिए भी एक अलग से मंत्री परिषद बनाई गई थी। राजा बिंदुसार के मंत्री परिषद का प्रधान “खल्लटक” था।

बिन्दुसार के राजा बनने के बाद उसने राज्य का ज्यादा विस्तार तो नहीं किया परंतु राज्य को संरक्षित किया। सम्राट बिंदुसार ने न्याय व्यवस्था के लिए प्रत्येक स्तर पर अलग-अलग न्यायालय बना रखे थे, जो वहां के मुकदमों को देखते थे ताकी छोटे-बड़े झगड़े उच्च स्तर तक ना आ पाए।

चक्रवर्ती सम्राट राजा बिंदुसार मौर्य की सेना में जल सेना, थल सेना, रथ सेना, घुड़सवार, हाथी आदि शामिल थे। सिर्फ दुश्मनों के लिए ही नहीं मौर्य साम्राज्य के अधिकारियों और जनता के बीच में राजा बिंदुसार ने कई गुप्तचरों को छोड़ रखा था, जो प्रत्येक घटना से राजा बिंदुसार को अवगत कराते थे।

जब बिन्दुसार को खबर मिली कि तक्षशिला के लोग उसके खिलाफ रोष जता रहे हैं। तो उसने अपने पुत्र अशोक को तक्षशिला भेजा। परंतु, बिन्दुसार ने अशोक को हथियार और रथ नहीं दिए। तब अशोक बिना अस्त्र-शस्त्र के ही गए थे। ऐसा माना जाता है कि देवताओं ने उनके लिए सेना और हथियार उपलब्ध करवाये। अशोक ने वहा जा कर बड़ी ही सूझ बुझ का परिचय दिया और विद्रोह को शांत करने में सफलता प्राप्त किया।

जब अशोक तक्षशिला कर वहा के लोगों से मिले और उनकी समस्याओं के बारे में पूछा, तब वहां के लोग आकर बोले कि हमें राजा एवं राजकुमार से कोई समस्या नहीं है। हमें तो मंत्रियों से समस्या है। अशोक ने यह बात स्वीकार कर ली और बड़ी ही सूझ बुझ के साथ लोगों को शांत कराया। तब देवताओं ने घोषणा की कि एक दिन अशोक पूरे भारत का राजा बनेगा।

सम्राट बिन्दुसार द्वारा साम्राज्य का विस्तार

किसी भी देश या स्थान के राजा कि यह महत्वकांक्षा होती है कि वह अपने साम्राज्य का विस्तार करें। चक्रवर्ती सम्राट राजा बिंदुसार मौर्य भी एक ऐसे ही महत्वकांक्षी राजा थे। पिता चंद्रगुप्त मौर्य से विशाल और सुव्यवस्थित साम्राज्य इन्हें मिला था। इन्होने अपने साम्राज्य का विस्तार तो नहीं किया परन्तु साम्राज्य की सीमाओं को कम भी नहीं होने दिया। इन्होने सीमाओं को सुरक्षित रखा।

डियोडोरस नामक एक इतिहासकार लिखते हैं कि उस समय पाटलिपुत्र के राजा बिंदुसार ने आयंबुलस (एक यूनानी लेखक) का स्वागत और सत्कार किया था। चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के पश्चात भी उनके समय प्रधानमंत्री रहे आचार्य चाणक्य ने राजा बिंदुसार का पूरा सहयोग किया और 16 राज्यों के सामंतों और राजाओं का विनाश करते हुए बिंदुसार को वहां का सम्राट घोषित कर दिया।

परन्तु इतिहास में कुछ ऐसे प्रमाण भी मिलते हैं जो यह बताते हैं कि, बिन्दुसार एक ऐश्वर्य और भोग विलास तथा राजसी जीवन जीने का इच्छुक था, और इसी तरह का जीवन वह जीता भी था। जिनसे एक विजेता के रूप में बिंदुसार की क्षमता पर से विश्वास कुछ उठ-सा जाता है, क्योंकि उसके शासनकाल में उसके साम्राज्य के उत्तर-पश्चिमी प्रांत तक्षशिला में विद्रोह उठ खड़ा हुआ था और इस विद्रोह का दमन करने के लिए उसे अपने सुयोग्य पुत्र अशोक को नियुक्त करना पड़ा था।

यह बात मानी जा सकती है जो विस्तृत सामाज्य उसे अपने पिता से उत्तराधिकार में मिला था, उसे सँभालना ही उस-जैसे ऐश्वर्य प्रिय व्यक्ति के लिए बहुत बड़ा काम था, जिसके लिए जीवन का सबसे बड़ा सुख “अंजीरों और अंगूर की शराब” में था, जो उसने अपने मित्र यूनान के राजा ऐंटिओकस से मँगवाई थीं। उसे इस बात का श्रेय देना कठिन है कि उसने स्वयं कोई विजय प्राप्त करके अपने राज्य में कोई वृद्धि की होगी।

बिन्दुसार की चाणक्य के प्रति घृणा

जब चंद्रगुप्त ने राजा के पद का त्याग कर दिया था तब चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को संन्यास लेने के लिए कहा। चंद्रगुप्त वन में जाकर रहने लग गए। परंतु, आचार्य चाणक्य बिन्दुसार के प्रधानमंत्री बने रहे। एक दिन चाणक्य ने बिन्दुसार को कहा कि “सुबन्धु” को आप मंत्री बना लो। 

परंतु, सुबन्धु चाणक्य से जलता था और उच्च पद का मंत्री बनना चाहता था तो उसने बिन्दुसार को बता दिया कि उसकी माता दुर्धरा का चाणक्य ने पेट चीर दिया था। तो बिन्दुसार ने इस बात की स्त्री नर्सों (दाइयों) से जाँच पड़ताल की। और उसने इस बात को सत्य पाया। इसके बाद बिन्दुसार ने चाणक्य से घृणा करनी शुरू कर दी। चाणक्य उस समय वृद्ध हो चुके थे और इस घृणा की वजह से उन्होंने पद त्याग दिया। और उसके पश्चात् चाणक्य समाधि लेने के बारे में विचार करने लगे ।

परंतु जब बिन्दुसार को पूरी बात का पता चला कि उसे बचाने के लिए चाणक्य ने ये सब किया था। तो उसने चाणक्य से विनती की कि आप दोबारा प्रधानमंत्री बन जाइए। परंतु, चाणक्य ने मना कर दिया। बिन्दुसार ने सुबन्धु को चाणक्य को शांत कराने के लिए भेजा। इतिहासकार यह बताते हैं कि सुबन्धु ने वृद्ध चाणक्य के आवास में जाकर उनको जलाकर मार दिया। इसके बाद सुबन्धु भी पागल हो गए और सेवानिवृत्ति ले ली।

बिन्दुसार की मृत्यु

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चक्रवर्ती सम्राट राजा बिंदुसार ने 24 वर्षों तक पाटलिपुत्र पर राज किया था, किंतु अन्य ग्रंथ “महावंश” का अध्ययन किया जाए तो उसके अनुसार उन्होंने लगभग 27 वर्षों तक राज्य किया था। महज 52 वर्ष की आयु में 272 ई.पू. में चक्रवर्ती सम्राट राजा बिंदुसार की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु का मुख्य कारण उनकी कमजोर स्वास्थ्य स्थिति थी जिसके उपरांत वे ज्यादा बीमार पड़ गए और उनका देहांत हो गया। डॉ. राधा कुमुद मुकर्जी ने बिन्दुसार की मृत्यु तिथि ईसा पूर्व 272 निर्धारित की है। कुछ अन्य विद्वान् यह मानते हैं कि बिन्दुसार की मृत्यु ईसा पूर्व 270 में हुई।

बिन्दुसार ने 298 ईसा पूर्व से 272 ईसा पूर्व तक प्राचीन भारत पर मौर्य साम्राज्य के शासक के रूप में लगभग 27 वर्षों तक शासन किया। पुराणों के अनुसार बिन्दुसार ने 24 वर्ष तक, किन्तु  महावंश के अनुसार 27 वर्ष तक राज्य किया। उन्होंने अपने राज्य के विस्तार पर ज्यादा ध्यान न देकर सरंक्षण पर दिया। उस समय उनका साम्राज्य पहले से ही बहुत बड़ा था।

बिन्दुसार की मृत्यु के पश्चात उसका उत्तराधिकारी

बिन्दुसार की मृत्यु के पश्चात् अशोक मौर्य साम्राज्य का सम्राट बना। अशोक के सम्राट बनने के पीछे दो कहानियां हैं-

  • उज्जैन से आकर अपने भाइयों का कत्ल कर देना : अशोक उज्जैन में वायसराय के पद पर नियुक्त था जब अशोक को यह बात पता चली कि उसके पिता का स्वास्थ्य बहुत खराब हो गया है तो वह जल्द से जल्द उज्जैन से पाटलिपुत्र लौट आया। पाटलिपुत्र आने के कारण उसके भाइयों ने उसका विरोध किया और वे खुद सम्राट बनना चाहते थे और उन्होंने अशोक से इस बात की चर्चा भी की। परन्तु अशोक ने अपने सगे भाई विताशोक को छोड़कर सभी 99 भाइयों का कत्ल कर दिया। उसके बाद अशोक 269-268 ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य का सम्राट बन गया।
  • सभागणों के द्वारा अशोक को सम्राट बनाना : बिन्दुसार का प्रिय पुत्र सुसीम ने प्रधानमंत्री खलातक के मुंह पर चमड़े से बने हुए दस्ताने फेंक दिए थे। तो इस व्यवहार से प्रधानमंत्री ने सोचा कि सुसीम सम्राट बनने के लायक नहीं है। इसलिए वह अशोक को सम्राट बनाने के पक्ष में थे । इसलिए उन्होंने 500 सभागणों को बताया कि बिन्दुसार की मृत्यु के बाद अशोक को सम्राट बनाना है। क्योंकि देवताओं ने बताया था कि वह सार्वत्रिक सम्राट है।

इसके कुछ समय बाद ही बिन्दुसार बीमार पड़ गये। तब बिन्दुसार ने उत्तराधिकारी के बारे में बताया और कहा कि उसके प्रिय पुत्र सुसीम को सम्राट बनाया जाए।

परंतु, उस समय सुसीम तक्षशिला के विद्रोह को शांत कराने के लिए गया हुआ था। (जहा जब विद्रोह शांत नहीं होता है तब बिन्दुसार अशोक को भी भेजता है और अशोक विद्रोह को शांत करने में सफल हो जाता है ) मंत्रियों ने अशोक को सम्राट बनाने के लिए प्रस्ताव रखा और कहा कि जब तक सुसीम नहीं आ जाता तब तक अशोक सम्राट बना रहेगा। 

जब यह बात बिन्दुसार ने सुनी तो वह गुस्से से क्रोधित हो गये और कहा कि अशोक कभी भी सम्राट नहीं बनेगा। परंतु इसके बाद बिन्दुसार का स्वास्थ्य और गिर गया। और इसी समय अशोक ने यह घोषणा की कि आज से वह ही सम्राट है।

उसके बाद बिन्दुसार की मौत हो गई और अशोक मौर्य साम्राज्य का सम्राट बन गया। जब यह बात सुसीम को पता चली तो वह तक्षशिला से पाटलिपुत्र भागा चला आया। अशोक के शुभचिंतक राधागुप्त ने उसके रास्ते में एक गड्ढे में बहुत गर्म चारकोल डाल दिया और उस चारकोल में सुसीम गिरकर मर गया। 

इस तरह अशोक मौर्य साम्राज्य का सम्राट बन गये।

राजा बिंदुसार का खजाना

उत्तर -मौर्य साम्राज्य के राजा बिंदुसार का खजाना बिहार के राजगीर में आज भी मौजूद हैं। राजा बिंदुसार का खजाना राजगीर में इसलिए हैं क्योंकि यह उस समय मगध की राजधानी था। राजगीर में सोन भण्डार नामक एक गुफा हैं जहाँ राजा बिंदुसार का खजाना छुपा हुआ हैं। लेकिन आज तक कोई भी राजा बिंदुसार के खजाना को नहीं खोज पाया हैं।

सोन भंडार गुफा जहां राजा बिंदुसार का खजाना छुपा हुआ हैं वहां प्रवेश करते समय 10.4 मीटर लम्बा , 5.2 मीटर चौड़ा और 1.5 मीटर ऊँचा एक कमरा बना हुआ हैं, कहते हैं की यह कमरा राजा बिंदुसार का खजाना की रक्षा करने वाले सैनिकों के लिए बनाया गया था। यह एक बड़े पत्थर के द्वारा अवरुद्ध किया गया हैं, जिसे आज तक खोल पाना मुश्किल हैं। गुफा की एक दीवार पर शंख लिपि में लिखा हुआ सन्देश आज तक कोई नहीं पढ़ पाया हैं। ऐसा कहा जाता हैं की राजा बिंदुसार का खजाना खोलने की विधि लिखी गई हैं।


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