बौद्ध धर्म (Buddhism) की स्थापना गौतम बुद्ध ने की थी। वैदिक सभ्यता के उपरान्त भारत में हिन्दु धर्म से कई अन्य धर्मों की उत्पत्ति हुई, जिनमें से एक धर्म ‘बौद्ध धर्म’ था। इस धर्म को आगे इनके अनुयायियों के द्वारा बढ़ाया गया। वैदिक काल से अलग हटकर इन्होंने अपनी भाषा ‘पाली’ को अपनाया। आज बौद्ध धर्म विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। इस धर्म को मानने वाले ज्यादातर चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, कंबोडिया, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और भारत जैसे कई देशों में रहते है।
बौद्ध धर्म का इतिहास
बौद्ध धर्म का इतिहास गौतम बुद्ध से आरंभ होता है। बुद्ध शुद्धोधन के पुत्र थे। उन्हीं की शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म की नींव पड़ी। अहिंसा के मार्ग को दिखाने वाले भगवान बुद्ध दिव्य आध्यात्मिक विभूतियों में अग्रणी माने जाते हैं। भारत समेत दुनिया भर में करोड़ो लोग हैं जो भगवान बुद्ध के बताए सिद्धांतों को मानते है।
गौतम बुद्ध का संक्षिप्त परिचय
नाम | सिद्धार्थ वशिष्ठ |
उपनाम | गौतम बुद्ध, सिद्धार्थ गौतम, शाक्यामुनि, बुद्धा |
संस्थापक | बौद्ध धर्म के संस्थापक |
जन्मतिथि | 563 ईसा पूर्व. |
जन्मस्थान | लुंबिनी, नेपाल |
मृत्यु तिथि | 483 ईसा पूर्व |
मृत्यु स्थल | कुशीनगर, भारत |
आयु (मृत्यु के समय) | 80 वर्ष |
गृहनगर | लुंबिनी, नेपाल |
धर्म | बौद्ध धर्म |
जाति | क्षत्रिय (शाक्य) |
परिवार | पिता – शुद्धोधन, माता – मायादेवी, महाप्रजावती उर्फ़ गौतमी (सौतेली माँ) |
पत्नी | राजकुमारी यशोधरा |
पुत्र | राहुल |
गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) का जीवन परिचय
गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) को गौतम बुद्ध, सिद्धार्थ और तथागत भी कहा जाता है। बुद्ध के पिता कपिलवस्तु के राजा ‘शुद्धोधन’ थे और इनकी माता का नाम महारानी ‘महामाया देवी’ था। बुद्ध की पत्नी का नाम ‘यशोधरा’ और पुत्र का नाम ‘राहुल’ था। वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में 563 ईसा पूर्व को हुआ।
गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण वे गौतम भी कहलाए। शाक्यों के राजा शुद्धोधन उनके पिता थे। परंपरागत कथा के अनुसार, सिद्धार्थ की माता मायादेवी जो कोली वन्श की थी का उनके जन्म के सात दिन बाद निधन हो गया था। उनका पालन पोषण उनकी मौसी और शुद्दोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती (गौतमी) ने किया। शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया, जिसका अर्थ है “वह जो सिद्धी प्राप्ति के लिए जन्मा हो”। जन्म समारोह के दौरान, साधु द्रष्टा आसित ने अपने पहाड़ के निवास से घोषणा की- बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र पथ प्रदर्शक बनेगा।
उन्होंने निर्वाण का जो मार्ग मानव मात्र को सुझाया था,वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व था, मानवता की मुक्ति का मार्ग ढूंढने के लिए उन्होंने स्वयं राजसी भोग विलास त्याग दिया और अनेक प्रकार की शारीरिक यंत्रणाए झेली। गहरे चिंतन – मनन और कठोर साधना के पश्चात् ही उन्हें गया (बिहार) में बोधिवृक्ष के निचे तत्वज्ञान प्राप्त हुआ था। और उन्होंने सर्व प्रथम पांच शिष्यों को दिक्षा दी थी। तत्पश्चात अनेक प्रतापी राजा भी उनके अनुयायी बन गये। उनका धर्म भारत के बाहर भी तेजी से फैला और आज भी बौद्ध धर्म चीन, जपान आदि कई देशों का प्रधान धर्म है।
गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ) की शिक्षा
सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र के पास वेद और उपनिषद् तो पढ़े ही, राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली। कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हाँकने में कोई उसकी बराबरी नहीं कर पाता। लेकिन विवाह के बाद उनका मन वैराग्य में चला जाता है और सम्यक सुख-शांति के लिए उन्होंने आपने परिवार का त्याग कर दिया।
गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ) का विवाह
सिद्धार्थ बचपन से ही करुणायुक्त और गंभीर स्वभाव के थे । बड़े होने पर भी उनकी प्रवृत्ति नहीं बदली । तब उनके पिता ने सोलह वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ का कोली कन्या यशोधरा के साथ विवाह कर दिया । पिता द्वारा ऋतुओं के अनुरूप बनाए गए वैभवशाली और समस्त भोगों से युक्त महल में वे यशोधरा के साथ रहने लगे । यशोधरा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम राहुल रखा गया। परंतु सिद्धार्थ का मन गृहस्थी में नहीं रमा। सिद्धार्थ के पिता ने पूरी कोशिश की कि उनके लड़के का मन गृहस्थी में लगे । और वह अपने पिता का राज्य संभाले ।
परन्तु विधाता को कुछ और ही मंजूर था। सिद्धार्थ का जन्म तो ससार को दुखों से मुक्त करने के लिए हुआ था इसी क्रम में वह एक दिन व भ्रमण के लिए निकले । रास्ते में रोगी वृद्ध और मृतक को देखा तो उनका मन द्रवित हो गया। और तब उन्हें जीवन की सच्चाई का पता चला। यह सब देखकर वह बेचैन हो उठे। फिर एक रात्रिकाल में जब महल में सभी सो रहे थे सिद्धार्थ चुपके से उठे और पत्नी एव बच्चों को सोता छोड़ वन को चल दिए।
गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ) का वन गमन एवं तपस्या
सिद्धार्थ के मन में धीरे धीरे परिवर्तन होने लगा। राजकुमार बुद्ध ने नगर में घुमने की इच्छा प्रकट की। नगर भ्रमण की उन्हें इजाज़त मिल गई। राजा ने नगर के रक्षकों को संदेश दिया कि वे राजकुमार केा सामने कोई भी ऐसा दृश्य न लायें जिससे उनके मन में संसार के प्रति वैराग्य भावना पैदा हो। सिद्धार्थ नगर में घूमने गए। उन्होंने नगर में बूढ़े को देखा। उसे देखते ही उन्होंने सारथी से पूछा यह कौन है? इसकी यह दशा क्यों हुई है? सारथी ने कहा- यह एक बूढ़ा आदमी है। बुढ़ापे में प्राय सभी आदमियों की यह हालत हो जाती है।
सिद्धार्थ ने एक दिन रोगी को देखा। रोगी को देखकर उन्होंने सारथी से उसके बारे में पूछा। सारथी ने बताया- यह रोगी है और रोग से मनुष्य की ऐसी हालत हो जाती है। इन घटनाओं से सिद्धार्थ का वैराग्य भाव और बढ़ गया। सांसारिक सुखों से उनका मन हट गया। उन्होंने जीवन के रहस्य को जानने के लिए संसार को छोड़ने का निश्चय किया।
फिर एक रात्रिकाल में जब महल में सभी सो रहे थे सिद्धार्थ चुपके से उठे और पत्नी एव बच्चों को सोता छोड़ वन को चल दिए। उन्होंने वन में कठोर तपस्या आरंभ की । तपस्या से उनका शरीर दुर्बल हो गया परंतु मन को शांति नहीं मिली । तब उन्होंने कठोर तपस्या छोड्कर मध्यम मार्ग चुना । अंत में वे बिहार के गया नामक स्थान पर पहुँचे और एक पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बैठ गए । एक दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई । वे सिद्धार्थ से ‘बुद्ध‘ बन गए । वह पेड़ ‘ बोधिवृक्ष ‘ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
भगवन बुद्ध द्वारा दी गई शिक्षा
भगवान बुद्ध की मूल देशना अथवा शिक्षा पर प्रचुर मात्रा में विवाद है। महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात बौद्ध धर्म के अनुयायियों में बहुत मतभेद हो गया जिसके फलस्वरूप कालांतर में अलग-अलग संप्रदायों का जन्म और विकास हुआ और वे सभी संप्रदाय अपने को बुद्ध से अनुप्राणित मानते हैं।
अधिकांश आधुनिक विद्वान पालि त्रिपिटक के अंतर्गत विनयपिटक और सुत्तपिटक में संगृहीत सिद्धांतों को मूल बुद्धदेशना मान लेते हैं। कुछ विद्वान सर्वास्तिवाद अथवा महायान के सारांश को मूल देशना स्वीकार करना चाहते हैं। अन्य विद्वान मूल ग्रंथों के ऐतिहासिक विश्लेषण से प्रारंभिक और उत्तरकालीन सिद्धांतों में अधिकाधिक विवेक करना चाहते हैं, जबकि इसके विपरीत कुछ अन्य विद्वान इस प्रकार के विवेक के प्रयास को प्रायः असंभव समझते हैं।
बुद्ध की शिक्षाएँ- आर्यसत्य, अष्टांगिक मार्ग, दस पारमिता, पंचशील आदि के रूप में समझी जा सकतीं हैं।
बौद्ध धर्म (Buddhism) के चार आर्य सत्य
तथागत बुद्ध का पहला धर्मोपदेश, जो उन्होने अपने साथ के कुछ साधुओं को दिया था, इन चार आर्य सत्यों के बारे में था। बुद्ध ने चार आर्य सत्य बताये हैं।
1. दुःख – इस दुनिया में दुःख है। जन्म में, बूढे होने में, बीमारी में, मौत में, प्रियतम से दूर होने में, नापसंद चीज़ों के साथ में, चाहत को न पाने में, सब में दुःख है।
2. दुःख कारण – तृष्णा, या चाहत, दुःख का कारण है और फ़िर से सशरीर करके संसार को जारी रखती है।
3. दुःख निरोध – दुःख-निरोध के आठ साधन बताये गये हैं जिन्हें ‘अष्टांगिक मार्ग’ कहा गया है। तृष्णा से मुक्ति पाई जा सकती है।
4. दुःख निरोध का मार्ग – तृष्णा से मुक्ति अष्टांगिक मार्ग के अनुसार जीने से पाई जा सकती है।
बौद्ध धर्म (Buddhism) के अष्टांगिक मार्ग
बौद्ध धर्म के अनुसार, चौथे आर्य सत्य का आर्य अष्टांग मार्ग है दुःख निरोध पाने का रास्ता। गौतम बुद्ध कहते थे कि चार आर्य सत्य की सत्यता का निश्चय करने के लिए इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए :
- सम्यक् दृष्टि – वस्तुओं के यथार्थ स्वरूप को जानना ही सम्यक् दृष्टि है।
- सम्यक् संकल्प – आसक्ति, द्वेष तथा हिंसा से मुक्त विचार रखना ही सम्यक् संकल्प है।
- सम्यक् वाक् – सदा सत्य तथा मृदु वाणी का प्रयोग करना ही सम्यक् वाक् है।
- सम्यक् कर्मान्त – इसका आशय अच्छे कर्मों में संलग्न होने तथा बुरे कर्मों के परित्याग से है।
- सम्यक् आजीव – विशुद्ध रूप से सदाचरण से जीवन-यापन करना ही सम्यक् आजीव है।
- सम्यक् व्यायाम – अकुशल धर्मों का त्याग तथा कुशल धर्मों का अनुसरण ही सम्यक् व्यायाम है।
- सम्यक् स्मृति – इसका आशय वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप के संबंध में सदैव जागरूक रहना है।
- सम्यक् समाधि – चित्त की समुचित एकाग्रता ही सम्यक् समाधि है।
कुछ लोग अष्टांग मार्ग को पथ की तरह समझते है, जिसमें आगे बढ़ने के लिए, पिछले के स्तर को पाना आवश्यक है। और लोगों को लगता है कि इस मार्ग के स्तर सब साथ-साथ पाए जाते है। और इस मार्ग को तीन हिस्सों में वर्गीकृत कर दिया : प्रज्ञा, शील और समाधि।
बौद्ध धर्म के पंचशील सिद्धांत
भगवान बुद्ध ने अपने अनुयाईयों को पांच शीलों का पालन करने की शिक्षा दी है। जो इस प्रकार है:-
- अहिंसा
- अस्तेय
- अपरिग्रह
- सत्य
- सभी नशा से विरत
बौद्ध धर्म (Buddhism) के दस पारमिता
प्रत्येक धर्म में कुछ अगर देख जाये तो यदि कोई व्यक्ति ईसाई नहीं है तो वह पोप नहीं बन सकता, मुसलमान नहीं है तो पैगंबर नहीं बन सकता। इसी प्रकार हर हिंदू शंकराचार्य नहीं बन सकता। परन्तु हर मनुष्य बुद्ध बन सकता है। बौद्ध धर्म में बुद्ध बनने के उपाय बताए गए हैं।
बौद्ध धर्म की मान्यता है कि बुद्ध बनने की इच्छा रखने वाले को दस पारमिताएं पूरी करनी पड़ती हैं। ये पारमिताएं हैं –
- दान
- शील
- नैष्क्रम्य
- प्रज्ञा
- वीर्य
- शांति
- सत्य
- अधिष्ठान
- मैत्री
- उपेक्षा
जब कोई व्यक्ति ‘दान’ पारमिता को आरंभ करता हुआ ‘उपेक्षा’ की पूर्ति तक पहुंचता है, तब तक वह बोधिसत्व रहता है। लेकिन इन सबको पूरा करने के बाद वह बुद्ध बन जाता है। पारमिताएं नैतिक मूल्य होती हैं, जिनका अनुशीलन बुद्धत्व की ओर ले जाता है।
दान पारमिता – दान का अर्थ उदारतापूर्ण देना होता है। त्याग को भी दान माना जाता है। बौद्ध धर्म में भोजन दान, वस्त्र दान व नेत्र दान की प्रथा है। दान बुद्धत्व की पहली सीढ़ी है। इसके पीछे कर्तव्य की भावना होनी चाहिए। प्रशंसा व यश के लिए दिया गया दान, दान नहीं होता।
शील पारमिता – सब प्रकार के शारीरिक, वाचिक, मानसिक और सब शुभ व नैतिक कर्म, शील के अंतर्गत आते हैं। मनुष्य को हत्या चोरी व व्यभिचार, झूठ व बकवास शराब तथा मादक द्रव्यों से दूर रहना चाहिए। बुद्ध ने इनमें भिक्खुओं के लिए तीन शील और जोड़ दिए हैं – कुसमय भोजन नहीं करना, गद्देदार आसन पर नहीं सोना और नाच-गाना तथा माला-सुगंध आदि के प्रयोग से बचना।
नैष्क्रम्य पारमिता – इसका अर्थ महान त्याग होता है। बोधिसत्व राज्य व अन्य भौतिक भोगों को तिनके के समान त्याग देते हैं। चूलपुत्र सोन के प्रसंग में आया है कि उसने महाराज्य के प्राप्त होने पर भी उसका त्याग कर दिया।
प्रज्ञा पारमिता – प्रज्ञा का अर्थ होता है जानना। अर्थात नीर-क्षीर विवेक की बुद्धि, सत्य का ज्ञान। जैसी वस्तु है, उसे उसी प्रकार की देखना प्रज्ञा होती है। आधुनिक भाषा में वैज्ञानिक दृष्टि व तर्क पर आधारित ज्ञान होता है। बौद्ध धर्म में प्रज्ञा, शील, समाधि ही बुद्धत्व की प्राप्ति के महत्वपूर्ण माध्यम होते हैं।
वीर्य पारमिता – इसका अर्थ है कि आलस्यहीन होकर भीतरी शक्तियों को पूरी तरह जाग्रत करके लोक-कल्याण, अध्यात्म-साधना व धर्म के मार्ग में अधिक से अधिक उद्यम करना. ऐसे उद्यम के बिना मनुष्य किसी भी दिशा में उन्नति एवं विकास नहीं कर सकता।
क्षांति पारमिता – क्षांति का अर्थ है सहनशीलता. बोधिसत्व सहनशीलता को धारण करते हुए, इसका मूक भाव से अभ्यास करता है. वह लाभ-अलाभ, यश-अपयश, निंदा-प्रशंसा, सुख-दुख सबको समान समझकर आगे बढ़ता है।
सत्य पारमिता – सत्य की स्वीकृति व प्रतिपादन ही सत्य पारमिता है। इसे सम्यक दृष्टि भी कहते हैं। जैसी वस्तु है, उसे वैसा ही देखना, वैसा कहना व वैसा ही प्रतिपादन करना सत्य है। यह बहुत ही कठिन कार्य है। सत्य में सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प व सम्यक वाचा का समावेश होता है।
अधिष्ठान पारमिता – अधिष्ठान पारमिता का अर्थ दृढ़ संकल्प होता है। शुभ व नैतिक कर्मों के संपादन में अधिष्ठान परम आवश्यक होता है। पारमिताओं के अभ्यास के लिए दृढ़-संकल्प की आवश्यकता पड़ती है। दृढ़-संकल्प होने पर ही बोधिसत्व गृहत्याग करते हैं।
मैत्री पारमिता – इसका अर्थ है उदारता व करुणा। सभी प्राणियों, जीवों व पेड़ – पौधों के प्रति मैत्री भाव रखना। बोधिसत्व मन में क्रोध, वैर व द्वेष नहीं रखते है। जैसे मां अपने प्राणों की चिंता किए बिना बेटे की रक्षा करती है, उसी प्रकार बोधिसत्व को मैत्री की रक्षा करनी चाहिए।
उपेक्षा पारमिता – उपेक्षा पारमिता का अर्थ है पक्षपात-रहित भाव रखकर बुद्धत्व की ओर आगे बढ़ना।
कोई भी बोधिसत्व इन दस पारमिताओं में पूर्णता प्राप्त करके स्वयं बुद्ध बन सकता है। इन दस पारमिताओं को प्राप्त करने के कारण ही बाबासाहब डॉ. भीम राव अम्बेडकर को बोधिसत्व कहा जता है।
बौद्ध धर्म के मुख्यतीर्थ
भगवान बुद्ध के अनुयायीओं के लिए विश्व भर में पांच मुख्य तीर्थ माने जाते हैं –
- लुम्बिनी – जहां भगवान बुद्ध का जन्म हुआ।
- बोधगया – जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त हुआ।
- सारनाथ – जहां से बुद्ध ने दिव्यज्ञान देना प्रारंभ किया।
- कुशीनगर – जहां बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ।
- दीक्षाभूमि, नागपुर – जहां भारत में बौद्ध धर्म का पुनरूत्थान हुआ।
महात्मा बुद्ध की मृत्यु
महात्मा बुद्ध सारी आयु धर्म का प्रचार करते रहे। अन्त में इसका प्रचार करते करते 483 ईसा पूर्व को 80 वर्ष की उम्र में भारत के कुशीनगर में महापरिनिर्वाण (मृत्यु) को प्राप्त हुए। वे मर कर भी अमर हो गए। आज भी उनके लाखों अनुभवी उन्हें भगवान के समान पूजते हैं।
बौद्ध धर्म के संप्रदाय
गौतम बुद्ध की मृत्यु के बाद, बौद्ध धर्म दो संप्रदायों में विभाजित हो गया-
- महायान
- हीनयान।
महायान संप्रदाय, जिसका संस्कृत में अर्थ है ‘महान वाहन’, बुद्ध की दिव्यता में विश्वास करता था। संप्रदाय ने बौद्ध धर्म में मूर्ति पूजा को प्रोत्साहित किया। हीनयान संप्रदाय, जिसका संस्कृत में अर्थ है ‘छोटा वाहन’, बुद्ध की दिव्यता में विश्वास नहीं करता था। इसने आत्म-अनुशासन और मध्यस्थता के माध्यम से व्यक्तिगत मुक्ति पर जोर दिया।
हीनयान सम्प्रदाय के लोग अपने को मूल बौद्ध धर्म का संरक्षक मानते हैं और उसमें किसी प्रकार के परिवर्तन को स्वीकार नहीं करते। दूसरी ओर महायान सम्प्रदाय के लोग बौद्ध धर्म के सुधरे हुए स्वरूप को मानते हैं।
भगवन बुद्ध के महापरिनिर्वाण के अगले पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला और अगले दो हजार वर्षों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया में भी फैल गया। इसी के साथ बौद्ध धर्म अब सिर्फ दो सम्प्रदायों में न रहकर अनेकों सम्प्रदायों में विभक्त हो गया, जिसमे प्रमुख संप्रदाय हैं-
- हीनयान
- थेरवाद
- महायान
- वज्रयान
दुनिया के करीब 2 अरब (29%) लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। परन्तु अमेरिका के प्यु रिसर्च के अनुसार विश्व में लगभग 54 करोड़ लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी है और यह दुनिया की आबादी का लगभग 7% हिस्सा है। प्यु रिसर्च ने चीन, जापान व वियतनाम देशों के बौद्धों की संख्या बहुत ही कम बताई हैं, जबकि यह देश सर्वाधिक बौद्ध आबादी वाले शीर्ष के तीन देश हैं।
प्रबुद्ध सोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. श्री प्रकाश बरनवाल के अनुसार दुनिया के 200 से अधिक देशों में बौद्ध अनुयायी हैं। किन्तु चीन, जापान, वियतनाम, थाईलैंड, म्यान्मार, भूटान, श्रीलंका, कंबोडिया, मंगोलिया, लाओस, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया समेत कुल 13 देशों में बौद्ध धर्म ‘प्रमुख धर्म’ है।भारत, नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रूस, ब्रुनेई, मलेशिया आदि देशों में भी करोड़ों बौद्ध अनुयायी हैं।
हीनयान संप्रदाय क्या है?
प्रप्रारंभ में बौद्ध धर्म की दो ही शाखाएं थीं, हीनयान और महायान। हीनयान को निम्न वर्ग और महायान को उच्च वर्ग कहा गया। हीनयान एक व्यक्त वादी धर्म था इसका शाब्दिक अर्थ है निम्न मार्ग। यह मार्ग केवल भिुक्षुओं के ही संभव था। हीनयान संप्रदाय के लोग परिवर्तन अथवा सुधार के विरोधी थे। यह बौद्ध धर्म के प्राचीन आदर्शों को ज्यों त्यों बनाए रखना चाहते थे।
हीनयान संप्रदाय के सभी ग्रंथ पाली भाषा मे लिखे गए हैं। हीनयान संप्रदाय बुद्धजी की पूजा भगवान के रूप मे न करके बुद्धजी को केवल महापुरुष मानते थे। हीनयान की साधना अत्यंत कठोर थी तथा वे भिक्षुु जीवन के हिमायती थे। हीनयान संप्रदाय श्रीलंका, बर्मा, जावा आदि देशों मे फैला हुआ है। बाद मे यह संप्रदाय दो भागों मे विभक्त हो गया-
- वैभाष्क एवं
- सौतांत्रिक।
वैभाष्क मत की उत्पत्ति कश्मीर मे हुई थी तथा सौतांत्रिक तंत्र मंत्र से संबंधित था। सौतांत्रिक संप्रदाय का सिद्धांत मंजूश्रीमूलकल्प एवं गुहा सामाज नामक ग्रंथ मे मिलता है। हीनयान को ‘स्थविरवाद’ अथवा रूढिवादी बौद्ध परम्परा कहते है।
हीनयान बौद्ध गौतम बुद्ध को निर्वाण प्राप्त करने वाला एक साधारण मनुष्य मानते हैं। यह मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता है और आत्म अनुशासन और ध्यान के माध्यम से व्यक्तिगत मोक्ष प्राप्त करने का प्रयास करता है। हीनयान अभ्यासी का लक्ष्य स्वयं के प्रति आसक्ति को समाप्त करना और इस प्रकार, एक अर्हत बनना है, जिसका कोई और पुनर्जन्म नहीं होता है। श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया और लाओस में हीनयान बौद्ध धर्म का पालन किया जाता है। अशोक ने हीनयान संप्रदाय का संरक्षण किया था।
हीनयान के उप-संप्रदायों में से एक थेरवाद है। पहले ‘थेरवाद‘ को ‘हीनयान शाखा’ कहा जाता था, लेकिन अब बहुत विद्वान कहते हैं कि यह दोनों अलग हैं।
महायान संप्रदाय क्या है?
महायान, वर्तमान काल में बौद्ध धर्म की दो प्रमुख शाखाओं में से एक शाखा है। दूसरी शाखा का नाम थेरवाद है। महायान बुद्ध धर्म का विस्तार भारत से आरम्भ होकर उत्तर की ओर बहुत से अन्य एशियाई देशों में फैल गया। ये देश है चीन, जापान, कोरिया, ताइवान, तिब्बत, भूटान, मंगोलिया और सिंगापुर। महायान सम्प्रदाय आगे चलकर अनेक उपशाखाओं में विभक्त हो गया ये उपशाखाए है-
- ज़ेन/चान
- पवित्र भूमि
- तियानताई
- निचिरेन
- शिन्गोन
- तेन्दाई
- तिब्बती बौद्ध धर्म
महायान बौद्ध मानते हैं कि वे बुद्ध की शिक्षाओं का पालन करके आत्मज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। एक महायान बौद्ध का लक्ष्य बोधिसत्व बनना हो सकता है और यह छह सिद्धियों के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। महायान बौद्ध धर्म में करुणा का बहुत महत्व है। प्रारंभ में बुद्ध के साथी के रूप में समझे जाने वाले, बोधिसत्व आध्यात्मिक प्राणी हैं जो करुणापूर्वक बुद्धत्व प्राप्त करने की प्रतिज्ञा करते हैं, लेकिन ब्रह्मांड में सभी प्राणियों को पीड़ा से मुक्त करने के लिए इस आकांक्षा को स्थगित कर दिया है। अतः बोधिसत्व संसार के चक्र में रहना चुनते हैं, ताकि दूसरों को भी आत्मज्ञान प्राप्त करने में मदद मिल सके।
मूर्तिकला और चित्रकला में दिखाई देने वाले सबसे लोकप्रिय बोधिसत्वों में अवलोकितेश्वर (दया और करुणा का बोधिसत्व), मैत्रेय (भविष्य का बुद्ध), और मंजुश्री (ज्ञान का बोधिसत्व) शामिल हैं। महायान दक्षिण पूर्व एशिया में भी फैल गया, हालांकि इसका सबसे बड़ा प्रभाव पूर्वी एशियाई देशों चीन, कोरिया और जापान में महसूस किया गया है। महायान के उप-संप्रदायों में से एक वज्रयान है।
महायान बौद्ध धर्म के अनुयायी
- चीन (78%)
- जापान (95%)
- वियतनाम (80%)
- दक्षिण कोरिया (50%)
- उत्तर कोरिया (70%)
- सिंगापुर (30%)
थेरवाद संप्रदाय क्या है?
‘थेरवाद‘ शब्द का अर्थ है ‘श्रेष्ठ जनों की बात’। बौद्ध धर्म की इस शाखा में पाली भाषा में लिखे हुए प्राचीन त्रिपिटक धार्मिक ग्रंथों का पालन करने पर बल दिया जाता है। थेरवाद अनुयायियों का कहना है कि इस से वे बौद्ध धर्म को उसके मूल रूप में मानते हैं। इनके लिए तथागत बुद्ध एक महापुरुष अवश्य हैं लेकिन कोई देवता नहीं।
थेरवाद या स्थविरवाद वर्तमान काल में बौद्ध धर्म की दो प्रमुख शाखाओं में से एक है। दूसरी शाखा का नाम महायान है। थेरवाद बौद्ध धर्म भारत से आरम्भ होकर दक्षिण और दक्षिण-पूर्व की ओर बहुत से अन्य एशियाई देशों में फैल गया, जैसे श्रीलंका, बर्मा, कम्बोडिया, वियतनाम, थाईलैंड और लाओस। यह एक रूढ़िवादी परम्परा है, अर्थात् प्राचीन बौद्ध धर्म जैसा था, उसी मार्ग पर चलने पर बल देता है।
वज्रयान संप्रदाय क्या है?
तांत्रिक या गूढ़ बौद्ध धर्म, जिसे कभी-कभी वज्रयान (वज्र का वाहन) कहा जाता है, भारत में लगभग 500-600 सीई में विकसित हुआ। वज्रयान संस्कृत शब्द, अर्थात हीरा या तड़ित का वाहन है, जो तांत्रिक बौद्ध धर्म भी कहलाता है तथा भारत व पड़ोसी देशों में, विशेषकर तिब्बत में बौद्ध धर्म का महत्त्वपूर्ण विकास समझा जाता है। बौद्ध धर्म के इतिहास में वज्रयान का उल्लेख महायान के आनुमानिक चिंतन से व्यक्तिगत जीवन में बौद्ध विचारों के पालन तक की यात्रा के लिये किया गया है।
‘वज्र’ शब्द का प्रयोग मनुष्य द्वारा स्वयं अपने व अपनी प्रकृति के बारे में की गई कल्पनाओं के विपरीत मनुष्य में निहित वास्तविक एवं अविनाशी स्वरूप के लिये किया जाता है।
‘यान’ वास्तव में अंतिम मोक्ष और अविनाशी तत्त्व को प्राप्त करने की आध्यात्मिक यात्रा है।
महायान बौद्ध धर्म की एक शाखा, तांत्रिक बौद्ध धर्म की उत्पत्ति प्राचीन हिंदू और वैदिक प्रथाओं के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सफलताओं को प्राप्त करने के लिए डिज़ाइन किए गए गूढ़ अनुष्ठान ग्रंथों सहित की जा सकती है। तांत्रिक बौद्ध धर्म को कभी-कभी आत्मज्ञान के लिए एक शॉर्टकट की पेशकश के रूप में वर्णित किया जाता है। क्योंकि कुछ प्रथाओं ने मुख्यधारा के बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म को विकृत कर दिया था, अन्यथा वर्जित माने जाने वाले कृत्यों में संलग्न होने के कारण, इसके अभ्यासी गुप्त थे।
वज्रयान विकसित होने वाले तीन प्राचीन रूपों में से अंतिम था, और अन्य दो की तुलना में ज्ञानोदय के लिए एक तेज मार्ग प्रदान करता है। उनका मानना है कि भौतिक का आध्यात्मिक पर प्रभाव पड़ता है और आध्यात्मिक, बदले में, भौतिक को प्रभावित करता है। वज्रयान बौद्ध, थेरवाद और महायान विद्यालयों की मौलिक समझ के साथ-साथ ज्ञानोदय प्राप्त करने के तरीके के रूप में अनुष्ठान, जप और तांत्रिक तकनीकों को प्रोत्साहित करते हैं।
वज्रयान बौद्ध धर्म तिब्बत और नेपाल में प्रमुख है। हालाँकि, इसने दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया के कुछ हिस्सों को भी प्रभावित किया।
थेरवाद, महायान, और भारतयान बौद्ध धर्म में अंतर
‘थेरवाद’ शब्द का अर्थ है ‘श्रेष्ठ जनों की बात’। बौद्ध धर्म की इस शाखा में पाली भाषा में लिखे हुए प्राचीन त्रिपिटक धार्मिक ग्रंथों का पालन करने पर बल दिया जाता है। थेरवाद अनुयायियों का कहना है कि इस से वे बौद्ध धर्म को उसके मूल रूप में मानते हैं। इनके लिए तथागत बुद्ध एक महापुरुष अवश्य हैं लेकिन कोई देवता नहीं। वे उन्हें पूजते नहीं और न ही उनके धार्मिक समारोहों में बुद्ध-पूजा होती है।
जहाँ महायान बौद्ध परम्पराओं में देवी-देवताओं जैसे बहुत से दिव्य जीवों को माना जाता है वहाँ थेरवाद बौद्ध परम्पराओं में ऐसी किसी हस्ती को नहीं पूजा जाता। थेरवादियों का मानना है कि हर मनुष्य को स्वयं ही निर्वाण का मार्ग ढूंढना होता है। इन समुदायों में युवकों के भिक्षुक बनने को बहुत शुभ माना जाता है और यहाँ यह रिवायत भी है कि युवक कुछ दिनों के लिए भिक्षु बनकर फिर गृहस्थ में लौट जाता है। पहले ज़माने में ‘थेरवाद’ को ‘हीनयान शाखा’ कहा जाता था, लेकिन अब बहुत विद्वान कहते हैं कि यह दोनों अलग हैं।
महायान बौद्ध धर्म के अनुयायी कहते हैं कि अधिकतर मनुष्यों के लिए निर्वाण-मार्ग अकेले ढूंढना मुश्किल या असम्भव है और उन्हें इस कार्य में सहायता मिलनी चाहिए। वे समझते हैं कि ब्रह्माण्ड के सभी प्राणी एक-दुसरे से जुड़े हैं और सभी से प्रेम करना और सभी के निर्वाण के लिए प्रयत्न करना ज़रूरी है। किसी भी प्राणी के लिए दुष्भावना नहीं रखनी चाहिए क्योंकि सभी जन्म-मृत्यु के जंजाल में फंसे हैं।
एक हत्यारा या एक तुच्छ जीव अपना ही कोई फिर से जन्मा पूर्वज भी हो सकता है इसलिए उनकी भी सहायता करनी चाहिए। प्रेरणा और सहायता के लिए बोधिसत्त्वों को माना जाता है जो वे प्राणी हैं जो निर्वाण पा चुके हैं। महायान शाखा में ऐसे हज़ारों बोधिसत्त्वों को पूजा जाता है और उनका इस सम्प्रदाय में देवताओं-जैसा दर्जा है।
हीनयान, महायान और वज्रयान बौद्ध धर्म के बीच अंतर
हीनयान, महायान और वज्रयान बौद्ध धर्म के बीच अंतर इस प्रकार है-
हीनयान (छोटा वाहन) | महायान (बड़ा वाहन) | वज्रयान (हीरा या तड़ित का वाहन ) |
हीनयान बौद्ध गौतम बुद्ध को निर्वाण प्राप्त करने वाला एक साधारण मनुष्य मानते हैं। | महायान बौद्ध धर्म गौतम बुद्ध को एक दिव्य प्राणी मानता है जो अपने अनुयायियों को निर्वाण प्राप्त करने में मदद करेगा। महायान बौद्ध दूसरों के प्रति करुणा के कारण संसार के चक्र में रहने का विकल्प चुन सकते हैं। | वज्रयान में, बुद्ध को एक व्यक्ति नहीं माना जाता है; बल्कि वह हमारे अपने मन का दर्पण है। मुख्य देवता तारा (एक महिला) हैं। |
यह मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता है और आत्म अनुशासन और ध्यान के माध्यम से व्यक्तिगत मोक्ष प्राप्त करने का प्रयास करता है। हीनयान अभ्यासी का लक्ष्य स्वयं के प्रति आसक्ति को समाप्त करना और इस प्रकार, एक अर्हत बनना है, जिसका कोई और पुनर्जन्म नहीं होता है। | यह बुद्ध की स्वर्गीयता और बुद्ध की मूर्ति पूजा और बुद्ध प्रकृति को मूर्त रूप देने वाले बोधिसत्वों में विश्वास करता है। महायान के तहत अंतिम लक्ष्य “आध्यात्मिक उत्थान” है। बोधिसत्व की अवधारणा महायान बौद्ध धर्म का परिणाम है। | यह तंत्र, मंत्र और यंत्रों की श्रेष्ठता में विश्वास करता है। |
श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया और लाओस में हीनयान बौद्ध धर्म का पालन किया जाता है। | महायान बौद्ध धर्म के अनुयायी चीन, (दक्षिण) कोरिया, जापान और तिब्बत में पाए जा सकते हैं। | वज्रयान बौद्ध धर्म तिब्बत, भूटान और हिमालयी क्षेत्र में प्रमुख है। |
हीनयान बौद्ध धर्म के ग्रंथ पाली में लिखे गए थे। | महायान बौद्ध धर्म के ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए थे। | शास्त्र संस्कृत में लिखे गए थे। |
नालंदा और वल्लभी हीनयान बौद्ध धर्म के केंद्र थे। | नालंदा महायान बौद्ध धर्म का केंद्र था। | विक्रमशिला वज्रयान बौद्ध धर्म का केंद्र था। |
अशोक ने हीनयान संप्रदाय का संरक्षण किया। | कनिष्क ने महायान संप्रदाय का संरक्षण किया। | पाल-वंश ने वज्रयान संप्रदाय को संरक्षण दिया। |
हीनयान के उप-संप्रदायों में से एक थेरवाद है। | महायान के उप-संप्रदायों में से एक वज्रयान है। | – |
बौद्ध धर्म से संबंधित महत्वपूर्ण स्थान
लुम्बिनी : माया देवी मंदिर, लुंबिनी, नेपाल
ईसा पूर्व 563 में राजकुमार सिद्धार्थ गौतम (बुद्ध) का जन्म यहीं हुआ था। हालांकि, यहां के बुद्ध के समय के अधिकतर प्राचीन विहार नष्ट हो चुके हैं। केवल सम्राट अशोक का एक स्तंभ अवशेष के रूप में इस बात की गवाही देता है कि भगवान बुद्ध का जन्म यहां हुआ था। इस स्तंभ के अलावा एक समाधि स्तूप में बुद्ध की एक मूर्ति है। नेपाल सरकार ने भी यहां पर दो स्तूप और बनवाए हैं।
बोधगया : महाबोधि बिहार, बोधगया
लगभग छह वर्ष तक जगह-जगह और विभिन्न गुरुओं के पास भटकने के बाद भी बुद्ध को कहीं परम ज्ञान न मिला। इसके बाद वे गया, बिहार पहुंचे। आखिर में उन्होंने प्रण लिया कि जब तक असली ज्ञान उपलब्ध नहीं होता, तब तक वह पिपल वृक्ष के नीचे से नहीं उठेंगे, चाहे उनके प्राण ही क्यों न निकल जाएं। इसके बाद उन्होंने करीब छह साल तक दिन रात एक पीपल वृक्ष के नीचे भूखे-प्यासे तप किया। अंत में उन्हें परम ज्ञान या बुद्धत्व प्राप्त हुआ। जिस पिपल वृक्ष के नीचे वह बैठे, उसे बोधि वृक्ष अर्थात् ‘ज्ञान का वृक्ष’ कहलाया। वहीं गया को बोधगया के नाम से जाना जाता है।
सारनाथ : धामेक स्तूप के पास प्राचीण बौद्ध मठ, सारनाथ, उत्तर प्रदेश, भारत
सारनाथ में बौद्ध-धर्मशाला है। यह बौद्ध तीर्थ है। भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था। सदियों पहले इसी स्थान से उन्होंने धर्म-चक्र-प्रवर्तन प्रारंभ किया था। बौद्ध अनुयायी सारनाथ के मिट्टी, पत्थर एवं कंकरों को भी पवित्र मानते हैं। सारनाथ की दर्शनीय वस्तुओं में अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तंभ, भगवान बुद्ध का प्राचीन मंदिर, धामेक स्तूप, चौखंडी स्तूप, आदि शामिल हैं।
कुशीनगर : महापरिनिर्वाण स्तूप, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश, भारत
कुशीनगर बौद्ध अनुयायीओं का बहुत बड़ा पवित्र तीर्थ स्थल है। भगवान बुद्ध कुशीनगर में ही महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुए। कुशीनगर के समीप हिरन्यवती नदी के समीप बुद्ध ने 80 वर्ष की आयु में आखरी सांस ली। रंभर स्तूप के निकट उनका अंतिम संस्कार किया गया।
दीक्षाभूमि : दीक्षाभूमि, नागपुर, महाराष्ट्र, भारत
दीक्षाभूमि, नागपुर महाराष्ट्र राज्य के नागपुर शहर में स्थित पवित्र एवं महत्त्वपूर्ण बौद्ध तीर्थ स्थल है। यहीं पर डॉ॰ बाबासाहेब अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 को विजयादशमी दशहरा के दिन पहले स्वयं अपनी पत्नी डॉ- सविता अम्बेडकर के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली और फिर अपने 5,00,000 हिंदू दलित समर्थकों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। 1956 से आज तक हर साल यहाँ देश-विदश से 20 से 25 लाख बुद्ध और बाबासाहेब के बौद्ध अनुयायी दर्शन करने के लिए आते है।
बौद्ध संगीति (बौद्ध सभाये)
क्र.सं. | स्थान और संरक्षक | परिणाम |
---|---|---|
प्रथम बौद्ध संगीति | 1. राजगृह के सप्तपूर्णि गुफा में 483 ई.पू. में 2. “अजातशत्रु” के संरक्षण में आयोजित इस संगीति के अध्यक्ष भिक्षु “महाकस्सप उपलि” थे| | इस संगीति के दौरान बुद्ध की शिक्षाओं को (सुत्तपिटक) और शिष्यों के लिए निर्धारित नियमों को (विनयपिटक) में संरक्षित किया गया था। बुद्ध के शिष्य “आनन्द” ने सुत्तपिटक का और “उपालि” ने विनयपिटक का संकलन किया था| |
द्वित्तीय बौद्ध संगीति | 1. वैशाली में 383 ई.पू. में 2. शिशुनाग वंश के शासक “कालाशोक” के संरक्षण में आयोजित इस संगीति के अध्यक्ष सब्ब्कामि थे| | विनयपिटक और अनुशासन के नियमों में विवाद के कारण इस संगीति के दौरान बौद्ध धर्म “स्थाविर” और “महासंघिक” नामक दो गुटों में बंट गया| |
तृतीय बौद्ध संगीति | 1. पाटलिपुत्र में 250 ई.पू. में 2. “अशोक” के संरक्षण में आयोजित इस संगीति के अध्यक्ष “मोग्गलिपुत्त तिस्स” थे| | इस संगीति के दौरान अभिधम्म पिटक का संकलन किया गया तथा संघभेद रोकने के लिये कुछ कठोर नियमों का निर्माण किया गया| इस प्रकार अब बौद्ध की शिक्षाओं को तीन ग्रंथों में संकलित किया गया जिन्हें “त्रिपिटक” भी कहा जाता है| |
चतुर्थ बौद्ध संगीति | 1. कुण्डलवन, कश्मीर में 72 ईस्वी में 2. कुषाण शासक “कनिष्क” के संरक्षण में आयोजित इस संगीति के अध्यक्ष “वसुमित्र” और उपाध्यक्ष “अश्वघोष” थे| | इस संगीति के दौरान “विभाषाशास्त्र” नामक टीका का संकलन किया गया तथा बौद्ध धर्म दो सम्प्रदायों “हीनयान” और “महायान” में विभाजित हो गया| |
पांचवां बौद्ध संगीति | 1. मांडले, बर्मा में 1871 ईस्वी में 2. “मिन्दन मिन” के संरक्षण में आयोजित इस संगीति के अध्यक्ष “जगरभिवामसा”, “नारिन्दभीधजा” और “सुमंगल्समी” थे| | इस संगीति के दौरान बुद्ध की सभी शिक्षाओं की व्याख्या एवं व्यवस्थित जांच की गई ताकि यह पता लगाया जा सके की इनमें से किसी नियम को बदला या हटाया गया है| |
छठी बौद्ध संगीति | 1. काबा अये में 1954 ईस्वी में 2. बर्मा सरकार के संरक्षण में प्रधानमंत्री “यू नू” के नेतृत्व में आयोजित इस संगीति की अध्यक्षता “महसि सयादव” और “भंदंता विसित्तसाराभिवाम्सा” ने की थी| | इस संगीति का आयोजन मूल “धम्म” और “विनय” पिटक को संरक्षित करने के उद्देश्य से किया गया था| इस संगीति के दौरान “महापाषाण गुहा” का निर्माण किया गया था जो भारत के सप्तपूर्णि गुफा के समान है जहाँ प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया था| इस संगीति में 8 देशों के 500 बौद्ध विद्वानों ने भाग लिया था| |
भगवान बुद्ध और उनका धम्म
भगवान बुद्ध और उनका धम्म यह डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में डॉ॰ अम्बेडकर ने भगवान बुद्ध, महात्मा बुद्ध के विचारों की व्याख्या की है। यह ग्रन्थ तथागत बुद्ध के जीवन और बौद्ध धम्म के सिद्धान्तों पर प्रकाश डालता है। डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा रचित यह अंतिम ग्रन्थ है। यह ग्रंथ बुधिस्टी बौद्ध अनुयायिओं का धम्मग्रंथ है और उनके द्वारा एक पवित्र ग्रन्थ के रूप में उपयोग किया जाता है। संपूर्ण विश्व में और मुख्यतः बौद्ध जगत में यह ग्रंथ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
यह ग्रंथ मूलतः अंग्रेज़ी में ‘द बुद्धा ऐण्ड हिज़ धम्मा’ (The Buddha and His Dhamma) नाम से लिखा हुआ है और इसका अनुवाद हिन्दी, गुजराती, तेलुगु, तमिल, मराठी, मलयालम, कन्नड़, जापानी सहित और कई भाषाओं में किया गया है। प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान और भिक्षु डॉ. भदन्त आनंद कौसल्यायन जी ने इस ग्रंथ का हिंदी अनुवाद किया है।
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने उल्लेख किया है कि उनकी बौद्ध धम्म की सोच जानने के लिए उनकी तीन किताबें पढनी आवश्यक है-
- भगवान बुद्ध और उनका धम्म
- बुद्ध और कार्ल मार्क्स
- भारत में क्रांति और प्रतिक्रांति।
ब्रिटेन के एक बौद्ध विहार में डॉ॰ बाबासाहेब की मूर्ति स्थापित है, और वहां डॉ. बाबासाहेब के हाथ में ‘भगवान बुद्ध और उनका धम्म’ ग्रंथ है।
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का ग्रंथ लिखने का उद्देश्य
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा यह ग्रन्थ लिखने का उद्देश्य इस प्रकार है जो उन्ही के शब्दों में है:-
इस किताब को लिखने के लिए में आग्रह करता हूं कि यह एक अलग कार्य है। 1951 में कलकत्ता की महाबोधि सोसायटी के संपादक ने मुझसे कहा वैशाख (बुद्ध जयंती) के लिए एक लेख लिखिए। मैंने लेख लिखा तथा उस लेख में मैंने तर्क दिया कि बुद्ध का धम्म ही वह धर्म है जो भारतीय समाज को विज्ञान से जागृत कर, स्वीकार कर, विकसित कर सकता है।
मैंने यह भी बताया है कि आधुनिक दुनिया के लिए बौद्ध धम्म ही उत्तम धर्म है जो वह इस दुनिया को विज्ञानवाद को बढ़ाते हुए विकसित कराते हुए सुख शांति प्रदान करते हुए आगे ले जायेगा। बौद्ध धम्म का तत्व ही विज्ञान है । बौद्ध धम्म का साहित्य इतना विशाल है। कोई भी इस बुद्ध धम्म के बारे में पूरा पढ़ सकते है। इसी वजह से यह विकास की गति को बढ़ाता है। इस लेख के प्रकाशन पर मैंने कई फोन, लिखित पत्र और मौखिक संबोधन प्राप्त किया है, तथा सभी ने मुझे बुद्ध और उनका धम्म ( buddha and his Dhamma ) किताब लिखने को कहा।
बौद्ध धर्म से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे।
- गौतम बुद्ध को एशिया का ज्योति पुंज भी कहा जाता है।
- गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल की तराई में स्थित कपिलवस्तु के समीप लुम्बिनी ग्राम में हुआ था।
- इनकी माता का नाम महामाया था।इनके पिता का नाम शुद्धोधन था।जो शाल्क क्षत्रिय कुल के राजा थे।
- इनकी माता की मृत्यु इनके जन्म के सातवें दिन हो गई थी।
- इनका पालन पोषण इनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया था।
- गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
- इनके पुत्र का नाम राहुल था।
- गौतम बुद्ध का विवाह 16 वर्ष की आयु यशोधरा से कर दिया गया।
- गौतम बुद्ध ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग दिया था।
- गौतम बुद्ध की गृह त्यागने की धटना को महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है
- बुद्ध के सारथी का नाम चाण तथा घोडे का नाम कन्थक था।
- गृह त्याग के बाद बुद्ध ने वैशाली के आलारकलाम से सांख्य दर्शन की शिक्षा ग्रहण की थी।
- बुद्ध ने गया जाकर एक पीपल के वृक्ष के नीचे समाधि लगाई थी।
- समाधि लगाने के आठवें दिन यानि वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
- ज्ञान प्राप्ति के पश्चात गया में ही महात्मा बुद्ध ने दो बंजारों तपस्तु और मल्लिक को अपना सेवक बना लिया था।
- जिस स्थान पर बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी वह स्थान बोधगया के नाम से प्रसिद्ध है।
- गौतम बुद्ध ने प्रथन उपदेश सारनाथ में दिया था।जिसे बौद्ध ग्रंथों में धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है
- गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश जनसाधारण की भाषा पलि में दिये थे।
- गौतम बुद्ध ने उपदेश कोसल, वैशाली, कौशाम्बी, एवं अन्य राज्यो में दिये थे।
- गौतम बुद्ध ने सर्वाधिक उपदेश कोसल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिये थे।
- बौद्ध धर्म को ग्रहण करने वाली प्रथम महिला प्रजापति गौतमी थी।
- इनके प्रमुख अनुयायी शासक बिम्बिसार, प्रसेनजित तथा उदयन थे।
- सर्वप्रथम मगध का राजा बिम्बिसार बौद्ध धर्म का अनुयायी बना था।
- भारत में पूजित पहली प्रतिमा महात्मा बुद्ध की है।
- बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता हैगौतम बुद्ध की मृत्यु 80 वर्ष की अवस्था में कुशीनगर में हो गई थी। जिसे बौद्ध ग्रंथों में महापरिनिर्वाण कहा जाता है।
- बुद्ध की मृत्यु के पश्चात उनके शरीर के अवशेषों को आठ भागों में बॉटकर उन पर आठ स्तूपों का निर्माण कराया गया था।
- गृहस्थ जीवन में रहकर ही बौद्ध धर्म को मानते वाले लागों को उपासक कहा जाता है।
- गृहस्थ जीवन का त्याग प्रवज्या कहलाता था तथा प्रवज्या ग्रहण करने वाले को श्रामणेर कहा जाता है।
- बौद्ध धर्म भगवन बुद्ध की मृत्यु के पश्चात अनेक सम्प्रदायों में बंट गया, जिनमे मुख्यतः हीनयान, थेरवाद, महायान और वज्रयान हैं।
- हीनयान बौद्ध धर्म का प्रमुख सम्प्रदाय है।
Religion – KnowledgeSthali
इन्हें भी देखें –
- सूफी और भक्ति आंदोलन: मध्यकालीन भारतीय समाज में सामाजिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक पुनर्जागरण
- सूफी सिलसिले: चिश्ती, सुहरावर्दी, फिरदौसी, कादिरी, नक्शबंदी, और शत्तारी सम्प्रदायों का अध्ययन
- निर्गुण भक्ति और सगुण भक्ति: एक दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
- विभिन्न दार्शनिक मत और उनके प्रवर्तक
- बौद्ध धर्म | Buddhism | गौतम बुद्ध | 563-483BC
- जैन धर्म | Jainism
- इस्लाम का महाशक्तिशाली उदय और सार्वजनिक विस्तार
- अमर सनातन हिन्दू धर्म: निर्माण की शक्ति का संचार
- ईसाई धर्म (1ई.-Present)
- भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र
- दुनिया के प्रमुख धर्म | Major religions of the world | टॉप 10
1 thought on “बौद्ध धर्म | Buddhism | गौतम बुद्ध | 563-483BC”