भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र

भारत में 12 ज्योतिर्लिंग (Jyotirlinga) भगवान शिव के पवित्र स्थानों को संकेत करते हैं, जिन्हें उनके दिव्य प्रकाश रूप की स्थानीय अवतारों के रूप में माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इन ज्योतिर्लिंगों की पूजा शिव भक्तों के लिए आध्यात्मिक साक्षात्कार का स्रोत है और यात्रा का अद्वितीय अनुभव प्रदान करते है। ये स्थल धार्मिकता, सांस्कृतिक धरोहर और शिव भक्ति के प्रतीक हैं, जो भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

भगवान शिव, महादेव, भोले बाबा, बोल बम, शंकर भगवान, त्रिकालदर्शी, बाबा वैद्यनाथ आदि अनेक नामों से जाने जाने वाले शिव जी के इन बारह ज्योतिर्लिंग के तेजोमय और पवित्र स्थानों की महिमा अनोखी और निराली है।

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शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंग का संक्षिप्त परिचय

भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग के नाम, स्थान, और स्तुति मंत्र निम्नलिखित है:

  1. श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग:
    • स्थान: प्रभास पट्टण, गुजरात, भारत
    • इतिहास: सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ मंदिर में स्थापित किया गया है, जो सुप्रासिद्ध और प्राचीन मंदिरों में से एक है।
    • स्तुति मंत्र: ॐ सोमनाथाय नमः।
  2. श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग:
    • स्थान: श्रीशैलम, आंध्र प्रदेश, भारत
    • इतिहास: श्रीशैलम के मल्लिकार्जुन मंदिर में स्थित है और यह एक प्राचीन और महत्वपूर्ण पूजा स्थल है।
    • स्तुति मंत्र: ॐ मल्लिकार्जुनाय नमः।
  3. श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग:
    • स्थान: उज्जैन, मध्य प्रदेश, भारत
    • इतिहास: महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन में स्थित है और कुंभ मेला के साथ-साथ इसका अत्यधिक महत्व है।
    • स्तुति मंत्र: ॐ महाकालेश्वराय नमः।
  4. श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग:
    • स्थान: ओंकारेश्वर, वेरुल, महाराष्ट्र, भारत
    • इतिहास: ओंकारेश्वर मंदिर वेरुल में स्थित है और यह एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है।
    • स्तुति मंत्र: ॐ ओंकारेश्वराय नमः।
  5. श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग:
    • स्थान: केदारनाथ, उत्तराखंड, भारत
    • इतिहास: केदारनाथ मंदिर हिमालय की गहराईयों में स्थित है और यह चार धाम यात्रा का एक महत्वपूर्ण भाग है।
    • स्तुति मंत्र: ॐ केदारेश्वराय नमः।
  6. श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग:
    • स्थान: पुणे, महाराष्ट्र, भारत
    • इतिहास: भीमाशंकर मंदिर पुणे के पास गहोला नामक गाँव में स्थित है।
    • स्तुति मंत्र: ॐ भीमाशंकराय नमः।
  7. श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग
    • स्थान: काशी( वाराणसी), उत्तरप्रदेश, भारत
    • इतिहास: काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी में स्थित है और यह एक प्रमुख पूजा स्थल है।
    • स्तुति मंत्र: आनन्दकन्दं हतपापवृन्दम्। श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये।
    • ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।
  8. श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग:
    • स्थान: नासिक, महाराष्ट्र, भारत
    • इतिहास: त्र्यम्बकेश्वर मंदिर नासिक में स्थित है और यह त्रयम्बका कुंभ मेला के लिए जाना जाता है।
    • स्तुति मंत्र: ॐ त्र्यम्बकेश्वराय नमः।
  9. श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग:
    • स्थान: देवघर, झारखंड, भारत
    • इतिहास: वैद्यनाथ मंदिर देवघर में स्थित है और यह भगवान शिव के अत्यधिक प्रमुख पूजा स्थलों में से एक है।
    • स्तुति मंत्र: ॐ वैद्यनाथाय नमः।
  10. श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग:
    • स्थान: द्वारका, गुजरात, भारत
    • इतिहास: रामेश्वरम का मंदिर पेशवरम समुद्र किनारे स्थित है और यह एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।
    • स्तुति मंत्र: ॐ नागेश्वराय नमः।
  11. श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग:
    • स्थान: रामेश्वरम, तमिलनाडु, भारत
    • इतिहास: रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना भगवान श्रीराम द्वारा लंका पर आक्रमण करने से पहले की गयी थी।
    • स्तुति मंत्र: ॐ रामेश्वराय नमः।
  1. श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग:
    • स्थान: एल्लोरा (औरंगाबाद), महाराष्ट्र, (छत्रपती संभाजीनगर, महाराष्ट्र), भारत
    • इतिहास: गृष्णेश्वर मंदिर एल्लोरा में स्थित है और यह एक प्राचीन मंदिर है।
    • स्तुति मंत्र: ॐ गृष्णेश्वराय नमः।

इन बारह ज्योतिर्लिंगों की स्तुति मंत्रों का जाप करने से भक्त शिवजी के आशीर्वाद को प्राप्त करते हैं और उनके जीवन में शांति और सुख की प्राप्ति होती है।

श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के तट पर सोमनाथ नामक विश्वप्रसिद्ध मंदिर है। इसी मंदिर में यह ज्योतिर्लिंग स्थापित है। पूर्व में यह क्षेत्र प्रभास क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। शिवजी के बारह ज्योतिर्लिंग में से सोमनाथ को आद्य ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह भगवान शिव जी के स्वयंभू देवस्थान होने के कारण और हमेशा जागृत होने के कारण यहाँ लाखों भक्तगण आकर शिव जी के दर्शन करके पवित्र-पावन हो जाते है। यहीं भगवान्‌ श्रीकृष्ण को जरा नामक व्याध का बाण लगा था जिससे उनकी लीला समाप्त हो गयी थी। श्रीसोमनाथ ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ निम्न है-

श्लोकश्लोक का अर्थ
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये
ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं
सोमनाथं शरणं प्रपद्ये॥
जय सोमनाथ, जय सोमनाथ॥
जो अपनी भक्ति प्रदान करनेके लिये
अत्यन्त रमणीय तथा निर्मल सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में
दयापूर्वक अवतीर्ण हुए हैं,
चन्द्रमा जिनके मस्तकका आभूषण है,
उन ज्योतिर्लिंगस्वरूप भगवान् श्रीसोमनाथकी शरणमें मैं जाता हूँ॥
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र से श्रीसोमनाथ ज्योतिर्लिंग का श्लोक

सोमनाथ मंदिर का नामकरण (पौराणिक मान्यता)

हिन्दू धर्म में पौराणिक मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए चंद्रदेव ने यहाँ पर कठोर तपस्या की थी, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ प्रकट हुए और उनको आशीर्वाद दिया। चंद्रदेव का दूसरा नाम सोम है इसलिए उनके नाम सोम पर ही इस स्थान का नाम सोमदेव मंदिर पड़ा।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के महत्वपूर्ण तथ्य

सोमनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता हैं। यह मंदिर वास्तुकला की चालुक्य शैली में निर्मित हुआ हैं। यह काठियावाड़ जिला, वेरावल गुजरात (अरब महासागर के तट पर बना हुआ हैं) में स्थित हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण चन्द्रमा द्वारा सोने से किया गया था जिसको बाद में त्रेता युग में रावण द्वारा चाँदी से नवीनीकरण किया गया।

इसके पश्चात् द्वापर युग में इस मंदिर को भगवान श्री कृष्ण द्वारा चन्दन से और पुनः द्वापर युग बीत जाने के पश्चात भीमदेव ने पत्थर से इसका निर्माण करवाया था। आजादी के बाद 1947 में सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा इसका जीर्णोद्धार करवाया गया था। मुस्लिम आक्रमणकारी महमूद गजनी ने इस मंदिर से सोना लूटने के लिए सोलह बार आक्रमण किया।

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

यह मंदिर आँध्रप्रदेश के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के समीप श्रीशैल पर्वत में स्थित हैं। इस ज्योतिर्लिंग मंदिर में शिव जी माता पार्वती के साथ ज्योति रूप में विराजमान हैं। ऐसा कहा जाता हैं कि इस मंदिर में दर्शन करने से जो पुण्य मिलता है वह अश्वमेध यज्ञ के बराबर होता हैं। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ निम्न है-

श्लोकश्लोक का अर्थ
श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे
तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम्।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं
नमामि संसारसमुद्रसेतुम्॥
जो ऊँचाईके आदर्शभूत पर्वतोंसे भी बढ़कर ऊँचे श्रीशैलके शिखरपर,
जहाँ देवताओंका अत्यन्त समागम होता रहता है,
प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं तथा
जो संसार-सागरसे पार करानेके लिये पुलके समान हैं,
उन एकमात्र प्रभु मल्लिकार्जुनको मैं नमस्कार करता हूँ॥
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के महत्वपूर्ण तथ्य

इस मंदिर का निर्माण होयसल राजा वीर नरसिम्हा द्वारा वर्ष 1234 ई. में किया गया था। इस ज्योतिर्लिंग को भ्रामराम्बा मल्लिकार्जुन मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं। इस मंदिर का निर्माण द्रविड़ शैली वास्तुकला से किया गया हैं।

श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

यह मंदिर मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित हैं। इस मंदिर के पास हरसिद्धि माता का मंदिर भी है जो 52 शक्तिपीठ में शामिल हैं। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से यह एकमात्र ऐसा मंदिर हैं जो दक्षिण मुखी हैं। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ निम्नलिखित है-

श्लोकश्लोक का अर्थ
अवन्तिकायां विहितावतारं
मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं
वन्दे महाकालमहासुरेशम्॥
संतजनोंको मोक्ष देनेके लिये
जिन्होंने अवन्तिपुरी (उज्जैन) में अवतार धारण किया है,
उन महाकाल नामसे विख्यात महादेवजीको
मैं अकालमृत्युसे बचनेके लिये नमस्कार करता हूँ॥
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के महत्वपूर्ण तथ्य

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग शिप्रा नदी के किनारे स्थित हैं। महाकालेश्वर मंदिर में प्रातः काल भस्म आरती होती है। यह भस्म आरती बहुत अद्भुद होती है। इस मंदिर के बारे में मान्यता हैं की इसका निर्माण श्रीकर नाम के एक पाँच वर्ष के बच्चे द्वारा करवाया गया था। नागपंचमी और सावन के महीने में यहाँ बहुत भीड़ रहती है। यहाँ पर कुम्भ का मेला भी लगता हैं।

श्री ओंकारेश्वर (ॐकारेश्वर) ज्योतिर्लिंग

बारह ज्योतिर्लिंगों में ओंकारेश्वर मंदिर चौथा ज्योतिर्लिंग हैं। मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी के किनारे, इंदौर शहर से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर भगवान शिव का ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित हैं। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है कि एक बार देवता और दानवों के बीच लड़ाई हुई थी, जिसमे देवताओ ने अपनी सहायता के लिए भगवान शिव की आराधना की थी।देवताओं की प्रार्थना सुन कर भगवान शिव ओंकारेश्वर रूप में प्रकट हुए और दानवों का नाश किया। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ निम्नलिखित है-

श्लोकश्लोक का अर्थ
कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे
समागमे सज्जनतारणाय।
सदैवमान्धातृपुरे वसन्त-
मोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे॥
जो सत्पुरुषोंको संसार-सागरसे पार उतारनेके लिये
कावेरी और नर्मदाके पवित्र संगमके निकट
मान्धाताके पुरमें सदा निवास करते हैं,
उन अद्वितीय कल्याणमय भगवान् ॐकारेश्वरका मैं स्तवन करता हूँ॥
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ

ओंकारेश्वर (ॐकारेश्वर) ज्योतिर्लिंग के महत्वपूर्ण तथ्य

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग जिस पहाड़ी पर यह स्थित हैं उसके चारों तरफ नदी बहती हैं, इस कारण से यह एक द्वीप का रूप ले लेता है जिसे शिवपुरी द्वीप कहते हैं। ऊंचाई से देखने पर यह पर्वत ॐ के आकार का दिखाई देता हैं। इसलिए इसे ओंकारेश्वर के नाम से जाना जाता हैं। यह मंदिर ग्रेनाइट से बना हुआ है और तीन मंजिला है।

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

उत्तराखंड के रूद्र प्रयाग में स्थित केदारनाथ ज्योतिर्लिंग पहाड़ों में स्थित हैं। बारह ज्योतिर्लिंगों की सूचि में इसका स्थान पांचवां हैं चार धामों में से एक इस ज्योतिर्लिंग के बारे में माना जाता है कि महाभारत काल में भगवान शिव जी ने पांडवों को बेल के रूप में इस स्थान पर दर्शन दिए थे। इस मंदिर का निर्माण 8 वीं या 9 वीं सदी में शंकराचार्य जी द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया था। इससे पहले यह ज्योतिर्लिंग कई सालों तक बर्फ से ढका था। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ निम्नलिखित है-

श्लोकश्लोक का अर्थ
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं
सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः
केदारमीशं शिवमेकमीडे॥
जो महागिरि हिमालयके पास केदारशृंगके तटपर
सदा निवास करते हुए मुनीश्वरोंद्वारा पूजित होते हैं
तथा देवता, असुर, यक्ष और महान् सर्प आदि भी जिनकी पूजा करते हैं,
उन एक कल्याणकारक भगवान् केदारनाथका मैं स्तवन करता हूँ॥
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के महत्वपूर्ण तथ्य

इस मंदिर की ऊंचाई 11755 feet अर्थात 3583 मीटर है यह सभी ज्योतिर्लिंगों में से सबसे अधिक ऊंचाई पर है। यह मंदिर लगभग 3000 साल पुराना हैं। इस मंदिर को 8 वीं सदी में खोजा गया। यह मंदिर अप्रैल माह से नवंबर माह तक खुला रहता हैं और सर्दी के दिनों में बंद रहता हैं। भगवान भोलेनाथ का यह ज्योतिर्लिंग चार धाम में शामिल हैं।

श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग है। इसको मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता हैं। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्री पर्वत पर स्थित हैं। इस ज्योतिर्लिंग की यह मान्यता हैं कि त्रेता युग में भीमकाय (विशाल) शरीर वाला कुम्भकरण देवताओं को पराजित करने के लिए भगवान शिव को प्रसन्न किया था। और भगवन शिव उसको यहाँ पर दर्शन दिए थे इस कारण से इसका नाम भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग पड़ा। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ निम्नलिखित है-

श्लोकश्लोक का अर्थ
यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे
निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्दं तं
शङ्करं भक्तहितं नमामि॥
जो डाकिनी और शाकिनीवृन्दमें प्रेतों द्वारा सदैव सेवित होते हैं,
उन भक्तहितकारी भगवान् भीमशंकरको मैं प्रणाम करता हूँ॥
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के महत्वपूर्ण तथ्य

मराठा नाना फडणवीस द्वारा 18 वीं सदी में यहाँ स्थित मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया था। इस मंदिर की दीवारों पर प्रभु श्रीराम और रामायण, शिव लीला, श्री कृष्ण लीला एवं महाभारत से सम्बंधित दृश्यों को दर्शाया गया हैं। इस मंदिर की वास्तुकला “नागर शैली” में हैं।

श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ निम्नलिखित है-

काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिवजी के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग वाराणसी (काशी) उत्तरप्रदेश में स्थित हैं। यहाँ बाबा विश्च नाथ का अनादिकाल से शिवलिंग हैं। काशी और यह मंदिर दोनों हिंदू धर्म के लिए बहुत ही खास है। मान्यता है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिका हुआ है। काशी पुरातन समय से ही अध्यात्म का केंद्र रहा है।

श्लोकश्लोक का अर्थ
सानन्दमानन्दवने वसन्त-
मानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।
वाराणसीनाथमनाथनाथं
श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये॥
जो स्वयं आनन्दकन्द हैं और आनन्दपूर्वक
आनन्दवन (काशीक्षेत्र) में वास करते हैं,
जो पापसमूहके नाश करनेवाले हैं,
उन अनाथोंके नाथ काशीपति श्रीविश्वनाथकी शरणमें मैं जाता हूँ॥
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ

काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण की कहानी

ऐसा माना जाता है कि विश्वनाथ मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। यह मंदिर गंगा नदी के पश्चिमी तट पर विराजमान है। कहा जाता है कि इस मंदिर का पुनर्निर्माण 11वीं शताब्दी में राजा हरिश्चंद्र ने कराया था। इसे 1194 ई. में मुहम्मद गोरी ने नष्ट कर दिया था। हालाँकि, मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया, लेकिन 1447 ई. में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने इसे फिर से ध्वस्त कर दिया।

इतिहास पर नजर डालने से पता चलता है कि काशी मंदिर का निर्माण और विध्वंस 11वीं से 15वीं शताब्दी तक चलता रहा। 1585 में पंडित नारायण भट्ट ने राजा टोडरमल की मदद से दोबारा विश्वनाथ मंदिर के निर्माण का आदेश दिया, लेकिन 1632 में शाहजहाँ ने मंदिर को नष्ट करने के लिए फिर से अपनी सेना भेजी, लेकिन सेना अपने लक्ष्य को हासिल करने में असफल रही। इसके बाद औरंगजेब ने 18 अप्रैल 1669 को इस मंदिर को नष्ट कर दिया।

इसके बाद करीब 125 साल तक वहा कोई मंदिर नहीं था। बाबा विश्वनाथ का वर्तमान मंदिर 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा बनवाया गया था। बाद में 1853 में महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर को 1000 किलो सोना दान किया। इस मंदिर में आदि शंकराचार्य, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, महर्षि दयानंद और गोस्वामी तुलसीदास जैसे महान संतों ने भी बाबा विश्वनाथ के दर्शन किये हैं।

विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानव्यापी मस्जिद

मंदिर के बगल में ज्ञानव्यापी मस्जिद भी स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि यह मस्जिद उस स्थान पर बनाई गई थी जहां मूल रूप से एक मंदिर था। मुग़ल बादशाह औरंगजेब द्वारा मंदिर को नष्ट करने के बाद ज्ञानव्यापी मस्जिद का निर्माण किया गया था। मशहूर इतिहासकार डॉक्टर विश्वंभर नाथ पांडेय ने पट्टाभि सीतारमैया की पुस्तक ‘फेदर्स एंड स्टोन्स’ का सन्दर्भ लेते हुए अपनी पुस्तक “भारतीय संस्कृति, मुगल विरासत: औरंगजेब के फ़रमान” के पृष्ठ संख्या 119 और 120 में इसका उल्लेख करते हुए कहते हैं कि औरंगजेब एक बार वाराणसी क्षेत्र से गुजर रहा था। उनके साथ उनके सभी हिन्दू दरबारी भी अपने परिवार सहित काशी में गंगा स्नान और विश्वनाथ के दर्शन करने के लिए आये थे।

बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने के बाद जब लोग बाहर आये तो देखा कि कच्छ राजा की रानी गायब है। जब उन्होंने खोजबीन की तो उन्हें भयभीत रानी मंदिर के नीचे तहखाने में वस्त्राभूषण विहीन अवस्था में मिली। जब औरंगजेब को पंडों की इस कलि करतूत का पता चला तो वह बहुत क्रोधित हुआ और उसने कहा कि जिस स्थान के मंदिर में इस तरह की चोरियां और बलात्कार होते हों वह स्थान कभी भी भगवान का घर नहीं हो सकता। उसने तुरंत मंदिर को नष्ट करने का आदेश दिया।

औरंगजेब के आदेशों का जल्द ही पालन किया गया, लेकिन यह सुनकर कच्छ की रानी ने औरंगजेब को एक संदेश भेजा, जिसमें उसे बताया गया कि इस मामले में इसमें मंदिर का कोई दोष नहीं है, बल्कि दोषी तो वहां के पंडे हैं। रानी ने मंदिर के जीर्णोद्धार की इच्छा व्यक्त की । हालाँकि, औरंगजेब अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण कोई नया मंदिर नहीं बनवा सकता था, इसलिए उसने मंदिर की जगह मस्जिद बनवाकर रानी की इच्छा पूरी की।

कुछ मान्यताओं के अनुसार, अकबर ने 1585 में नए धर्म दीन-ए-इलाही के हिस्से के रूप में विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया था। मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फुट गहरा एक कुआँ है जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है। मस्जिद का नाम इसी कुएं के नाम से पड़ा है।

स्कंद पुराण के अनुसार, लिंगाभिषेक के लिए भगवान शिव ने स्वयं अपने त्रिशूल से इस झरने का निर्माण किया था। यहां शिवजी ने अपनी पत्नी माता पार्वती को ज्ञान दिया था, इसलिए इस स्थान को ज्ञानवापी या ज्ञान का स्रोत कहा जाता है। आम लोगों की किंवदंतियों और मान्यताओं में इस कुएं का सीधा संबंध पौराणिक काल से है।

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के महत्वपूर्ण तथ्य

यह मंदिर गंगा नदी के किनारे स्थित हैं। देवर्षि नारद और सभी देवता गण यहाँ भगवान भोलेनाथ जी की आराधना करने आते हैं। यहाँ भगवान शिव जी के साथ माता पार्वती जी भी विराजमान हैं। लोगों का ऐसा विश्वास है कि काशी में जिसकी मृत्यु होती हैं उसे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। औरंगजेब ने इस मंदिर को नष्ट किया और उसके स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया। वर्तमान में मंदिर जिस स्वरुप में हैं उसका निर्माण राजमाता अहिल्याबाई होल्कर द्वारा सन 1780 ई. में कराया गया था। माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा साल 2021 में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण कराया गया।

श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग

भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के समीप स्थित हैं। यहाँ 12 साल में एक बार कुम्भ का मेला लगता हैं। यहाँ भगवान के तीन रूप हैं जो ब्रह्मा,विष्णु और शिव हैं। इसीलिए इसे त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग कहते हैं। त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ निम्नलिखित है-

श्लोकश्लोक का अर्थ
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं
गोदावरितीरपवित्रदेशे।
यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं
प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे॥
जो गोदावरीतटके पवित्र देशमें
सह्यपर्वतके विमल शिखरपर वास करते हैं,
जिनके दर्शनसे तुरंत ही पातक नष्ट हो जाता है,
उन श्रीत्र्यम्बकेश्वरका मैं स्तवन करता हूँ॥
त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के महत्वपूर्ण तथ्य

ब्रह्मगिरि, नीलगिरि और कलागिरि पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य स्थित मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण पेशवा बालाजी बाजीराव द्वारा करवाया गया था।

श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखण्ड राज्य के देवघर में स्थित है। इस जगह को देवताओं का घर कहते हैं इसलिए इस जगह का नाम देवघर अर्थात देवताओं का घर रखा गया है। हिन्दू धर्म में पौराणिक मान्यता के अनुसार माता सती का ह्रदय यहाँ पर गिरा था, इसलिए इस स्थान को शक्तिपीठ के रूप में भी पूजा जाता हैं।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना के पीछे एक रोचक कहानी हैं, ऐसा कहा जाता है कि, लंकापति रावण जो भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था, शिव जी को प्रसन्न करने के लिए हिमालय में शिवलिंग बनाकर उसके सामने बैठकर तपस्या करने लगा। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उसको दर्शन दिए और उसको इच्छित वर मांगने के लिए कहा। रावण ने उनसे वर माँगा कि वह इस शिवलिंग को लंका में स्थापित करना चाहता हैं।

भगवान शिव ने उसको यह वर तो दे दिया लेकिन उन्होंने उसके साथ यह भी कहा की जिस स्थान पर तुम इस शिवलिंग को रखोगे यह वहीं स्थापित हो जाएगी। इसलिए इसको अन्यत्र कही जमीन पर मत रखना। शिवलिंग को लंका ले जाते समय रास्ते में कुछ ऐसी घटनाये घटी कि रावण यह बात भूल गया और कुछ परिस्थितियों बस गलती से शिवलिंग को निचे रख दिया। जिसे वह वापस नहीं उठा सका। यह वही जगह है जहाँ वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई। वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ निम्नलिखित है-

श्लोकश्लोक का अर्थ
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने
सदा वसन्तं गिरिजासमेतम्।
सुरासुराराधितपादपद्मं
श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि॥
जो पूर्वोत्तर दिशामें चिताभूमि (वैद्यनाथ-धाम) के भीतर
सदा ही गिरिजाके साथ वास करते हैं,
देवता और असुर जिनके चरण कमलोंकी आराधना करते हैं,
उन श्रीवैद्यनाथको मैं प्रणाम करता हूँ॥
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के महत्वपूर्ण तथ्य

इस मंदिर को बाबा बैद्यनाथ या बैजनाथ के नाम से भी जाना जाता हैं। इस ज्योतिर्लिंग को बाबा धाम के नाम से भी जाना जाता हैं। यह 51 शक्तिपीठों में से एक हैं। राजा पूरणमल द्वारा वर्ष 1596 ई. में इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया था।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

यह मंदिर गुजरात के द्वारका में स्थित हैं। द्वारका से इस मंदिर की दूरी 17 किलोमीटर हैं। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के पीछे यह कहा जाता कि एक बार जब शिवभक्त सुप्रिय शिवजी की भक्ति में लीन था। उस समय दारुका नामक राक्षस ने उन्हें मारने का आदेश दिया। परन्तु उसके इस आदेश से शिवभक्त सुप्रिय को जरा भी भय नहीं लगा और वह शिवजी की आराधना में लीन था।

इस पर दारुका राक्षस अत्यंत क्रोधित हो गया तथा वह और उसका सहायक तुरंत सुप्रिय को मारने के लिए जैसे ही आगे बढे उसी समय अपने भक्त की रक्षा के भगवान भोलेनाथ प्रकट हुये। और सुप्रिय को पाशुपतास्त्र प्रदान किया जिससे सुप्रिय ने दारुका और उसके सहायक को समाप्त कर दिया।

तभी से शिवजी स्वभूं नागेश्वर ज्योर्तिलिंग के रुप में सदा के लिये यहां पर स्थापित हो गये। भगवान शिव को नागों का देवता कहा जाता है जिसका अर्थ होता हैं नागों के ईश्वर, इसीलिए उनका एक नाम नागेश्वर भी है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में विष से संबंधित सभी रोग से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ निम्नलिखित है-

श्लोकश्लोक का अर्थ
याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये
विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं
श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये॥
जो दक्षिणके अत्यन्त रमणीय सदंग नगरमें
विविध भोगोंसे सम्पन्न होकर
सुन्दर आभूषणोंसे भूषित हो रहे हैं,
जो एकमात्र सद्भक्ति और मुक्तिको देनेवाले हैं,
उन प्रभु श्रीनागनाथकी मैं शरणमें जाता हूँ॥
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के महत्वपूर्ण तथ्य

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर को “नागनाथ मंदिर” के नाम से भी जाना जाता हैं. इस मंदिर का निर्माण में गुलाबी पत्थरों का प्रयोग किया गया है। गुलशन कुमार ने वर्ष 1996 में इस मंदिर जीर्णोद्धार करवाया था। भारत के द्वारिकापुरी में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के परिसर में भगवान शिव की एक विशाल प्रतिमा बनाई गयी है जिसमे भगवान भोलेनाथ मनमोहक ध्यान की मुद्रा में बैठे हैं।

भगवान भोलेनाथ जी की मूर्ति को ऊंचाई 80 फीट तथा चौड़ाई 25 फीट है। जिसकी वजह से मंदिर 3 किलोमीटर की दूरी से ही दिखाई देने लगता है। इस मंदिर का मुख्य द्वार अत्यंत सुंदर है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग में भगवान भोलेनाथ की पूजा नागदेवता के रूप में होती हैं ऐसा माना जाता है की नागेश्वर अर्थात शिवजी के गले में नागों के देवता वासुकी जी कुंडली मार कर बैठे रहते है ।

श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों की सूची (List Of 12 Jyotirlinga) में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग ग्यारहवें नंबर का ज्योतिर्लिंग हैं।तमिलनाडु के रामनाथपुरम में स्थित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान राम के द्वारा की गई है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, जब प्रभु श्रीराम लंका पर आक्रमण करने जा रहे थे, उस समय उन्होंने समुद्र के किनारे शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा अर्चना की थी।भगवान राम शिव को अपना अराध्य देवता मानते हैं, इसीलिए उन्होंने युद्ध से पहले शिव जी की पूजा की। यही स्थान रामेश्वरम् नाम से प्रसिद्द हुआ। रामेश्वरम का अर्थ होता है ‘राम के ईश्वर’ है। रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ निम्नलिखित है-

श्लोकश्लोक का अर्थ
सुताम्रपर्णीजलराशियोगे
निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं
रामेश्वराख्यं नियतं नमामि॥
जो भगवान् श्रीरामचन्द्रजीके द्वारा ताम्रपर्णी और सागरके संगमपर
अनेक बाणोंद्वारा पुल बाँधकर स्थापित किये गये हैं,
उन श्रीरामेश्वरको मैं नियमसे प्रणाम करता हूँ॥
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के महत्वपूर्ण तथ्य

रामेश्वरम सनातन धर्म के चार धामों में से एक हैं। रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग को दक्षिण का वाराणसी नाम से भी जाना जाता हैं। रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना भगवान श्रीराम द्वारा लंका पर आक्रमण करने से पहले की गयी थी। पाण्ड्य राजवंश के शासकों द्वारा 12 वीं सदी में इस मंदिर का विस्तार किया गया। इस मंदिर के गर्भगृह का जीर्णोद्धार जयवीरा सिंकैरियान और गुणवीरा सिंकैरियान द्वारा किया गया।

श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग अथवा श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग 

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग अंतिम और 12 वा ज्योतिर्लिंग हैं। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग को घुश्मेश्वर या घृसणेश्वर के नाम से भी जाना जाता हैं।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना के पीछे एक बहुत ही रोचक कहानी हैं। कहानी के अनुसार सुधर्मा नाम का एक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। काफी समय बीत जाने के बाद भी उनके कोई संतान नहीं हुई। जिससे वे काफी दुखी थे। फिर उसकी पत्नी ने संतान प्राप्ति के लिए अपनी छोटी बहन घृश्मा का विवाह अपने पति से करा दिया। जिससे उनको एक पुत्र प्राप्त हुआ। परन्तु समय बीतने के साथ सुदेहा को अपनी बहन घृश्मा और उसके बेटे से नफरत होने लगी। और इसी के चलते उसने एक दिन अपने बहन घृश्मा के बेटे की हत्या कर दी।

इससे घृश्मा काफी दुखी हुई। और जब उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ऐसी परिस्थिति में क्या किया जाये तो उसने भगवान भोलेनाथ की कठोर तपस्या करना शुरू कर दिया। उसकी कठोर तपस्या से भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हो गए और वहा पर प्रकट हो गए, तथा उसके बेटे को जीवित कर दिए। घृश्मा ने शिवजी से विनती की अब आप यहीं रहें, उसकी बात मानकर भगवान भोलेनाथ वहीं विराजमान हो गए। इस प्रकार घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ निम्नलिखित है-

श्लोकश्लोक का अर्थ
इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन्
समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्।
वन्दे महोदारतरस्वभावं
घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये॥
जो इलापुरके सुरम्य मन्दिरमें विराजमान होकर
समस्त जगत के आराधनीय हो रहे हैं,
जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है,
उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान् शिवकी शरणमें मैं जाता हूँ॥
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का श्लोक एवं उसका अर्थ

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के महत्वपूर्ण तथ्य

इस मंदिर का निर्माण लाल और काले पत्थर से हुआ हैं। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने 13 वीं और 14 वीं सदी के मध्य इस मंदिर को अनेकों बार नष्ट किया। मराठा और मुग़लों के मध्य हुए युद्ध के दौरान भी यह मंदिर कई बार टूटा और बनाया गया। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की वर्तमान संरचना राजमाता अहिल्याबाई होल्कर द्वारा करायी गयी थी।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति मंत्र

सावन के महीने में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों की पूजा का विशेष विधान है। पुराणों के अनुसार संसार में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं। ऐसा माना जाता है कि ज्योतिर्लिंग की स्थापना पृथ्वी पर उस स्थान पर हुई थी जहां भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे। इन सभी ज्योतिर्लिंगों के अलग-अलग नाम और अलग-अलग पूजा विधियां हैं।

इन 12 ज्योतिर्लिंगों और उनकी महिमा का वर्णन शिवपुराण की रुद्र संहिता में किया गया है। शिव पुराण के अनुसार प्रत्येक ज्योतिर्लिंग के उपलिंग भी है। ऐसी मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग का प्रतिदिन स्मरण करने से सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।

सावन का महीना भगवान भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय है भक्तों का विश्सवास है कि सावन माह में द्वादश ज्योतिर्लिंग की स्तुति करने से भगवान शिव तुरंत प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। सभी 12 ज्योतिर्लिंग का एक साथ स्तुति करने का मंत्र निम्नलिखित है-

श्लोकश्लोक का अर्थ
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥

एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥
सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्री सोमनाथ,
श्रीशैल पर श्री मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में श्री महाकाल,
ओंकारेश्वर में अमलेश्वर (अमरेश्वर), परली में वैद्यनाथ,
डाकिनी नामक स्थान में श्री भीमशंकर,
सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर,
वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ,
गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर,
हिमालय पर श्रीकेदारनाथ और
शिवालय में श्री घृष्णेश्वर।
जो मनुष्य प्रतिदिन, प्रातःकाल और संध्या समय,
इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है,
उसके सात जन्मों के पाप इन लिंगों के
स्मरण-मात्र से मिट जाते है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति मंत्र एवं उसका अर्थ

भारत के वे राज्य जहाँ ज्योतिर्लिंग स्थापित है

भारत के किस राज्य में कितने ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं? और उनके क्या नाम हैं ? उसका विवरण निचे दिया गया है-

  1. गुजरात
    • सोमनाथ ज्योतिर्लिंग और नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
    • कुल संख्या 2
  2. मध्यप्रदेश
    • महाकालेश्वर और ओंकारेश्वर
    • कुल संख्या 2
  3. महाराष्ट्र
    • भीमाशंकर, त्र्यंबकेश्वर और घृष्णेश्वर
    • कुल संख्या 3
  4. उत्तराखंड
    • केदारनाथ
    • कुल संख्या 1
  5. आंध्रप्रदेश
    • मल्लिकार्जुन
    • कुल संख्या 1
  6. झारखण्ड
    • वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
    • कुल संख्या 1
  7. तमिलनाडु
    • रामेश्वरम
    • कुल संख्या 1
  8. उत्तरप्रदेश
    • विश्वनाथ
    • कुल संख्या 1

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सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.