भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन ‘भारतीय इतिहास’ में लम्बे समय तक चलने वाला एक प्रमुख राष्ट्रीय आन्दोलन था। इस आन्दोलन की औपचारिक शुरुआत सन1885 ई. में कांग्रेस की स्थापना के साथ हुई थी, यह आन्दोलन कुछ उतार-चढ़ावों के साथ 15 अगस्त, 1947 ई. तक अनवरत रूप से जारी रहा। सन 1857 ई. से भारतीय राष्ट्रवाद के उदय का आरंभ माना जाता है। राष्ट्रीय साहित्य और देश के आर्थिक शोषण ने भी राष्ट्रवाद को जगाने मेंअपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के चरण
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
प्रथम चरण (1885-1905 ई. तक)
इस काल में ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना हुई, परन्तु इस समय तक इसका लक्ष्य पूरी तरह से स्पष्ट नहीं था अर्थात अस्पष्ट था। उस समय इस आन्दोलन का प्रतिनिधित्व अल्प शिक्षित, बुद्धिजीवी मध्यम वर्गीय लोग कर रहे थे। यह वर्ग पश्चिम की उदारवादी एवं अतिवादी विचारधारा से प्रभावित था।
द्वितीय चरण (1905 से 1919 ई. तक)
इस समय तक ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ काफ़ी परिपक्व हो चुकी थी तथा उसके लक्ष्य एवं उद्देश्य भी काफी हद तक स्पष्ट हो चुके थे। राष्ट्रीय कांग्रेस के इस मंच से भारतीय जनता के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक विकास के लिए प्रयास शुरू किये गये। इस दौरान कुछ उग्रवादी विचारधारा वाले संगठनों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को समाप्त करने के लिए पश्चिम के ही क्रांतिकारी ढंग का भी प्रयोग किया।
तृतीय एवं अन्तिम चरण (1919 से 1947 ई. तक)
इस काल में महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने पूर्ण स्वरज्य की प्राप्ति के लिए आन्दोलन प्रारम्भ किया।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की सूची
यहाँ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों की एक सूची दी गई है:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना | 28 दिसंबर 1885 |
स्वदशी और बहिष्कार संकल्प | 1905 |
मुस्लिम लीग की स्थापना | 1906 |
गदर आंदोलन | 1913 |
होम रूल मूवमेंट | अप्रैल 1916 |
चंपारण सत्याग्रह | 1917 |
खेडा सत्याग्रह | 1917 |
अहमदाबाद मिल स्ट्राइक | 1918 |
रॉलैट एक्ट सत्याग्रह फरवरी | 1919 |
असहयोग आंदोलन | 1920 |
सविनय अवज्ञा आंदोलन | 1930 |
भारत आंदोलन छोड़ो | 1942 |
कांग्रेस के गठन से पूर्व की राजनीतिक संस्थायें
कांग्रेस के गठन से पूर्व की राजनीतिक संस्थाओं की सूची इस प्रकार है :
- 1836 बंगभाषा प्रकाशक सभा
- 1838 जमींदारी एसोसिएशन
- 1843 बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसायटी
- 1851 ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन
- 1866 ईस्ट इंडिया एसोसिएशन
- 1867 पूना सार्वजनिक सभा
- 1875 इण्डियन लीग
- 1876 कलकत्ता भारतीय एसोसिएशन
- 1884 मद्रास महाजन सभा
- 1885 बाम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन
1857 ई. का विद्रोह
1857 ई. का विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता के लिए पहला युद्ध था। इसकी शुरुआत 10 मई, 1857 को मेरठ में हुई थी। यह ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ पहला बड़े पैमाने पर विद्रोह था। हालाँकि यह विद्रोह असफल रहा लेकिन इसने जनता पर एक बड़ा प्रभाव डाला और भारत में पूरे स्वतंत्रता आंदोलन को उभारा। मंगल पांडे इस क्रांति के प्रमुख हिस्सों में से एक थे क्योंकि उन्होंने ही अपने कमांडरों के खिलाफ विद्रोह की घोषणा की और ब्रिटिश अधिकारी पर पहली गोली चलाई।
स्वदेशी बहिष्कार आंदोलन
20 वीं शताब्दी की शुरुआत में, ब्रिटिशों ने राष्ट्रवाद की एकता को कमज़ोर करने के उद्देश्य से बंगाल के विभाजन की घोषणा की। प्रमुख भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के बीच, स्वदेशी बॉयकॉट आंदोलन वर्ष 1903 ई. में बंगाल के विभाजन के खिलाफ एक प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया, लेकिन जुलाई 1905 ई. में औपचारिक रूप से घोषणा की गई और पूरी तरह से अक्टूबर 1905 ई. से लागू हुआ। इसको दो प्रमुख चरणों में विभाजित किया गया था –
- विभाजन विरोधी आंदोलन
- स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन
विभाजन विरोधी आंदोलन
सुरेन्द्रनाथ बेनर्जी, के.के. मित्रा और दादा भाई नारोजी जैसे नरमपंथियों के नेतृत्व में, इस भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रारंभिक चरण 1903-1905 ई. तक हुआ। विभाजन विरोधी आंदोलन सार्वजनिक बैठकों, ज्ञापन, याचिकाओं आदि के माध्यम से किया गया था।
स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन
1905 से 1908 ई. तक, बिपिन चंद्रा पाल, टीला, लाला लाजपत राय और अरबिंदो घोष जैसे चरमपंथियों द्वारा स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन शुरू किया गया था। आम जनता को विदेशी वस्तुओं के उपयोग से परहेज करने के लिए एवं उनका बहिष्कार करने के लिए कहा गया और उन्हें भारतीय घर के सामान के साथ स्थानापन्न करने के लिए प्रेरित किया गया। भारतीय त्योहारों, गीतों, कविताओं और चित्रों जैसी प्रमुख घटनाओं का उपयोग इस भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रचारित करने के लिए किया जाता था।
होम रूल लीग मूवमेंट
आम आदमी में स्व-शासन की भावना को व्यक्त करने और प्रचारित करने के लिए, यह भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन भारत में किया गया था क्योंकि यह आयरलैंड में एक साथ हुआ था। मुख्य रूप से, नीचे दिए गए लीगों ने समाचार पत्रों, पोस्टरों, पैम्फलेट्स आदि का उपयोग करके होम रूल लीग मूवमेंट के समूह में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- बाल गंगाधर तिलक लीग अप्रैल 1916 ई. में शुरू हुई थी, और महाराष्ट्र, कर्नाटक, बरार और मध्य प्रांतों में फैल गई थी।
- एनी बेसेंट लीग सितंबर 1916 ई. में देश के विभिन्न अन्य हिस्सों में शुरू हुई।
सत्याग्रह
पहला सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व वर्ष 1917 ई. में बिहार के चंपारण जिले में महात्मा गांधी ने किया था। चंपारण जिले में लगभग दशो (10) हज़ार भूमिहीन सर्फ़ थे। दबाए गए इंडिगो खेती करने वालों में से एक, पंडित राज कुमार शुक्ला ने गांधी जी को इस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए राज़ी किया। इसके कारण अन्य सत्याग्रह आंदोलन भी शुरू हुए।
खिलाफत असहयोग आंदोलन
असहयोग आंदोलन ब्रिटिशों के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण चरणों में से एक था। यह आंदोलन जिन प्रमुख कारणों से हुआ, वे इस प्रकार हैं।
- खलीफा के बीमार व्यवहार, ब्रिटिशों द्वारा मुसलमानों के आध्यात्मिक नेता ने भारत और दुनिया भर में पूरे मुस्लिम समुदाय को उत्तेजित किया।
- देश में बिगड़ती आर्थिक स्थिति के साथ-साथ जलियावाला बाग़ नरसंहार, रॉलैट अधिनियम आदि जैसी प्रमुख घटनाएं मुख्य कारण थीं कि जिससे यह एक महत्वपूर्ण भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले लिया।
असहयोग आंदोलन को आधिकारिक तौर पर अगस्त 1920 ई. में खलीफा समिति द्वारा शुरू किया गया था। साथ ही, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने दिसंबर 1920 ई. में अपने नागपुर सत्र के बाद आंदोलन को अपनाया। जिसके बाद सरकारी सामानों, स्कूलों, कॉलेजों, भोजन, कपड़ों आदि का पूरी तरह से बहिष्कार हुआ और राष्ट्रीय स्कूलों में अध्ययन पर जोर दिया गया और खाडी उत्पादों का उपयोग किया गया। 4 फरवरी, 1922 ई. को चौरी चौरा घटना हुई, जिसमें 22 पुलिसकर्मियों के साथ पुलिस स्टेशन को जला दिया गया था। इसके कारण महात्मा गांधी द्वारा इस भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को बंद कर दिया गया।
साइमन कमिशन
यह बात भारत की स्वतंत्रता से पहले वर्ष 1928 ई. की है, जब 7 सांसदों का एक समूह ब्रिटेन से भारत आया था। इन सांसदों का मुख्य उद्देश्य भारत का दौरा करने के साथ साथ कॉन्स्टिट्यूशनल रिफॉर्म्स पर एक व्यापक अध्ययन करना था, ताकि तत्काल रूलिंग गवर्मेंट को सिफारिशें दी जा सके। इसको मूल रूप से भारतीय संवैधानिक आयोग इंडियन स्टैच्युटरी कमीशन कहा जाता था।
इसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे, और इन्ही के नाम पर इसका नाम साइमन कमीशन रखा गया। यह सर जॉन साइमन के नेतृत्व में था, एक अंग्रेजी आधारित समूह भारत का दौरा कर रहा था। साइमन कमीशन के इन प्रतिनिधियों ने जमीन पर लहर प्रभाव पैदा किया, जवाहरलाल नेहरू, गांधी, जिन्ना, मुस्लिम लीग और इंडियन नेशनल कांग्रेस जैसे प्रसिद्ध राजनेताओं से मज़बूत प्रतिक्रिया देखी गईं। क्योकि रिपोर्ट तैयार करते समय उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन
पहला सविनय अवज्ञा आंदोलन
12 मार्च 1930 ई. को महात्मा गांधी द्वारा दांडी मार्च के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया गया था। यह 6 अप्रैल को समाप्त हुआ जब गांधी जी ने दांडी में नमक कानून को तोड़ दिया। बाद में, आंदोलन को सी राजगोपालाचारी द्वारा आगे बढ़ाया गया। महिलाओं, किसानों और व्यापारियों की बड़े पैमाने पर भागीदारी हुई और देश भर में फैले इस भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के रूप में नमक सत्याग्रह, नो-टेक्स आंदोलन और नो-रेंट आंदोलन द्वारा सफल हुआ। बाद में, यह मार्च 1931 ई. में गांधी-इरविन संधि के कारण वापस ले लिया गया।
दूसरा सविनय अवज्ञा आंदोलन
दूसरे गोलमेज सम्मेलन की असफल संधि के कारण दिसंबर 1931 ई. से अप्रैल 1934 ई. तक दूसरे नागरिक अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई। इससे शराब की दुकानों, नमक सत्याग्रह, वन कानून के उल्लंघन जैसे विभिन्न व्यवहार हुए। लेकिन ब्रिटिश सरकार आगामी घटनाओं से अवगत थी, इस कारण से , ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी के आश्रमों के बाहर सभाओं पर प्रतिबंध के साथ मार्शल लॉ लागू किया।
भारत छोड़ो आंदोलन
1942 ई. में क्विट इंडिया (Quit India) मूवमेंट के लॉन्च के पीछे मुख्य कारण यह है कि यह शक्तिशाली भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों में से एक बन गया था –
- क्रिप्स प्रस्ताव की विफलता भारतीयों के लिए जागृत कॉल बन जाती है।
- विश्व युद्ध द्वारा लाई गई कठिनाइयों के साथ आम जनता का असंतोष।
कांग्रेस के महत्वपूर्ण अधिवेशन
कांग्रेस अधिवेशन | महत्वपूर्ण तथ्य |
---|---|
1887 मद्रास | सर्वप्रथम देशी भाषाओँ में भाषण |
1888 इलाहबाद | प्रथम बार कांग्रेस संविधान का निर्माण,अध्यक्ष जॉर्ज यूल, प्रथम ईसाई अध्यक्ष |
1889 मुंबई | मताधिकार की आयु 21 वर्ष, सार्वभौम मताधिकार की मांग |
1891 नागपुर | कांग्रेस ने अपना संविधान पारित किया |
1893 लाहौर | भारत में सिविल सेवा परीक्षा के आयोजन की मांग |
1896 कलकत्ता | प्रथम बार वन्दे मातरम का गायन |
1905 बनारस | स्वराज्य प्राप्ति का संकल्प पारित, अनिवार्य शिक्षा पर बल |
1907 सूरत | कांग्रेस का प्रथम विभाजन |
1909 लाहौर | कांग्रेस का रजत जयंती अधिवेशन |
1911 कलकत्ता | राष्ट्रगान का प्रथम बार गायन |
1916 लखनऊ | प्रथम विभाजन समाप्त, कांग्रेस लीग समझौता |
1918 दिल्ली | कांग्रेस का दूसरा विभाजन, उदारवादी कांग्रेस से अलग हो गए |
1920 नागपुर | तिलक द्वारा स्वराज पार्टी का गठन,भाषाई अधार पर प्रान्तों के गठन की मांग |
1920 कलकत्ता (विशेष अधिवेशन) | असहयोग कार्यक्रम को स्वीकृति |
1921 अहमदाबाद | प्रथम बार राष्ट्रीय ध्वज का आरोप,अध्यक्ष चितरंजन दास, लेकिन जेल में होने के कारण अध्यक्षता हकीम अजमल खां ने की |
1924 बेलगाम (कर्नाटक) | अध्यक्षता महात्मा गाँधी ने की |
1925 कानपुर | अध्यक्ष हसरत मोहानी, पूर्ण स्वधीनता का प्रस्ताव रखा गया |
1926 गुवाहाटी | -कांग्रेसियों के लिए खद्दर पहनना अनिवार्य |
1927 मद्रास | साइमन आयोग के बहिष्कार का प्रस्ताव रखा गय |
1929 लाहौर | अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरु, पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव रखा गया |
क्रांतिकारी आंदोलन के मुख्य कारण (काण्ड)
क्रांतिकारी आंदोलन के मुख्य कारण निम्नलिखित है :-
- 1909-1910 में नासिक काण्ड वी.डी. सावरकर को आजीवन कारावास
- अलीपुर काण्ड- अरविन्द घोष पर मुकदमा
- 1908मे ढाका काण्ड- पुलिन दास को 7 साल की सजा
- 1915 में दिल्ली काण्ड- लार्ड हार्डिंग पर बम फेंकने का मामला
- 1916 में रेशमी पत्र काण्ड
- 1925 में काकोरी काण्ड- लखनऊ के पास रेल लूट
- 1930 में लाहौर काण्ड- भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी
- 1922-1924 में पेशावर काण्ड- भारत में साम्यवादियों को पकड़ना
- 1924 में कानपुर काण्ड- साम्यवादियों की गिरफ़्तारी
- 1929-1933 में मेरठ काण्ड- श्रमिकों एवं साम्यवादियों पर मुकदमा
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों के लिए महत्वपूर्ण संगठन
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों के दौरान कई संगठन बनाए गए थे, जी इस प्रकार है –
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 ई. को हुई थी। इसकी स्थापना बॉम्बे के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत स्कूल के परिसर में हुई थी। अध्यक्ष डब्ल्यू.सी. बैनर्जी, के साथ इसमें 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। ए.ओ. ह्यूम ने INC (INDIAN NATIONAL CONGRESS) अर्कीथात भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की नींव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मुस्लिम लीग
मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 ई. में आगा खान और मोहशिन मुल्क ने 1906 ई. में की थी। इसका गठन भारतीय मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा के लिए किया गया था।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास (1857-1947 ई.)
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास की विषय सूची इस प्रकार है :-
- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का इतिहास जानने के साधन
- अंग्रेजी शासन का प्रतिरोध एवं 1857 ई. का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम
- भारत में सामाजिक-धार्मिक आन्दोलन
- 1858 ई., 1861 ई. व 1892 ई. के अधिनियम
- राजनीतिक जागृति, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना एवं उदारवादी आन्दोलन
- स्वदेशी आन्दोलन
- उग्रवादी आन्दोलन
- युद्ध के वर्ष एवं भारतीय राष्ट्रवाद का विकास
- क्रान्तिकारी आन्दोलन
- 1909 ई. एवं 1919 ई. के भारतीय अधिनियम
- खिलाफत आन्दोलन
- जलियांवाला काण्ड एवं असहयोग आन्दोलन
- स्वराज्य दल का उदय एवं 1929 ई. तक प्रमुख राजनीतिक घटनाएं
- सविनय अवज्ञा आन्दोलन एवं गोलमेज सम्मेलन
- 1935 ई. का अधिनियम व प्रान्तों में कांग्रेसी मन्त्रिमण्डल
- मुस्लिम साम्प्रदायिकता का विकास
- भारत में वामपन्थी आन्दोलन
- कृषक संगठन तथा व्यापार संघ आन्दोलन
- क्रिप्स योजना तथा भारत छोड़ो आन्दोलन
- सुभाषचन्द्र बोस, आजाद हिन्द फौज एवं जल एवं वायु सेना में विद्रोह
- विभाजन की भूमिका, विभाजन एवं स्वतन्त्रता प्राप्ति
- रियासतों का विलय एवं भारतीय संविधान की प्र्रमुख विशेषताएं
- आधुनिक भारत के प्रमुख व्यक्तित्व
राष्ट्रवाद उदय के कारण
1857 ई. का वर्ष भारतीय राष्ट्रवाद के उदय का आरंभ माना जाता है। इसके उदय के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे-
पाश्चात्य शिक्षा एवं संस्कृति
पाश्चात्य शिक्षा एवं संस्कृति ने राष्ट्रवादी भावना को जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। अंग्रेज़ों ने भारतीयों को इसलिए शिक्षित नहीं किया, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उनमें किसी भी तरह की राष्ट्रीयता की भावना जागे।
अंग्रेजो का उद्देश्य तो ब्रिटिश प्रशासन एवं व्यापारिक फ़र्मों के लिए लिपिक की आवश्यकता की पूर्ति करना था, परन्तु यह अंग्रेज़ों का दुर्भाग्य बन गया जो कि भारतीयों को बर्क, मिल, ग्लैडस्टोन, ब्राइट और लॉर्ड मैकाले जैसे प्रमुख विचारकों के विचार सुनने का अवसर मिला तथा मिल्टर, शेली, बायरन जैसे महान् कवियों, जो स्वयं ही ब्रिटेन की बर्बर नीतियों से जूझ रहे थे, उनकी कविताओं को पढ़ने एवं वाल्टेयर, रूसो, मैजिनी जैसे लोगों के विचारों को जानने का सौभाग्य मिला।
इस तरह पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव से लोगों में राष्ट्रवादी भावनायें पनपने लगीं। 1833 ई. में अंग्रेज़ी को शिक्षा का माध्यम बनाया गया। पश्चिमी देशों के साथ सम्बन्ध, पाश्चात्य साहित्य, विज्ञान, इतिहास एवं दर्शन के अध्ययन से भारतीयों को भारत में प्रचलित कुप्रथाओं के बारे में जानकारी मिली, साथ ही साथ उनमें राष्ट्रवाद की भावना का भी उदय हुआ।
राष्ट्रवाद का उदय
राष्ट्रवाद के उदय में समाचार-पत्रों एवं प्रेस का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत में राजा राममोहन राय ने ‘राष्ट्रीय प्रेस’ की नींव डाली। उन्होंने ‘संवाद कौमुदी’ बंगला भाषा में एवं ‘मिरात उल अख़बार’ फ़ारसी में, जैसे पत्रों का सम्पादन कर भारत में राजनीतिक जागरण की दिशा में सर्वप्रथम प्रयास किया। सन 1859 ई. में राष्ट्रवादी भावना से ओत-प्रोत साप्ताहिक पत्र ‘सोम प्रकाश’ का सम्पादन ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने किया। इसके अलावा बंगदूत, अमृत बाज़ार पत्रिका, केसरी, हिन्दू, पायनियर, मराठा, इण्डियन मिरर, आदि ने ब्रिटिश हुकूमत की ग़लत नीतियों की आलोचना करके भारतीयों के अन्दर राष्ट्रवाद की भावना को जगाया।
राष्ट्रीय साहित्य
राष्ट्रीय साहित्य भी राष्ट्रवादी भावना की उत्पत्ति के लिए ज़िम्मेदार है। आधुनिक खड़ी हिन्दी के पितामह भारतेन्दु हरिशचंद्र ने सन 1876 ई. में लिखे अपने नाटक ‘भारत दुर्दशा’ में अंग्रेज़ों की भारत के प्रति आक्रामक नीति का उल्लेख किया है। इस क्षेत्र में हरिश्चन्द्र के अतिरिक्त पंडित प्रताप नारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट, बद्रीनारायण चौधरी भी आते हैं, जिनकी रचनायें देश प्रेम की भावना से परिपूर्ण थी। अन्य भाषाओं, जैसे उर्दू के साहित्य में मुहम्मद हुसैन, अल्ताप हुसैन की रचनाओं, बंगला में बंकिमचन्द्र चटर्जी, मराठी में चिपलुकर, गुजराती में नर्मदा, तमिल में सुब्रह्मण्यम भारती आदि की रचनाओं में देश में प्रेम की भावना देखने को मिलती है।
देश का आर्थिक शोषण
अंग्रेज़ों के द्वारा देश का जो आर्थिक शोषण किया जा रहा था, उसने भी राष्ट्रवाद को जगाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। दादाभाई नौरोजी ने धन निष्कासन के सिद्धांत को समझाकर अंग्रेज़ों के शोषण का खुलासा किया। अंग्रेज़ों की भारत विरोधी आर्थिक नीति ने भारतीयों के मन में विदेशी राज्य के प्रति नफ़रत एवं स्वदेशी माल एवं राज्य के प्रति प्रेम को जगाया। लॉर्ड लिटन के शासन काल में भारत के आर्थिक शोषण की पराकाष्ठा पर हो गयी थी।
राष्ट्रवाद उदय के अन्य महत्त्वपूर्ण कारण
- अंग्रेज़ों के भारत में आने से पहले यहाँ राजनीतिक एकीकरण का अभाव था। मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब के बाद भारतीय सीमा छिन्न-भिन्न हो चुकी थी, पर अंग्रेज़ी साम्राज्य की स्थापना से भारत में राजनीतिक एकीकरण हुआ।
- तीव्र परिवहन तथा संचार साधनों में रेल, डाक व तार आदि के विकास ने भी भारत में राष्ट्रवाद की जड़ को मज़बूत किया। रेलवे ने इसमें मुख्य भूमिका का निर्वाह किया। एडविन आरनोल्ड ने लिखा है कि- “रेलवे भारत के लिए वह कार्य कर देगीं, जो बड़े-बड़े वंशो ने पहले कभी नहीं किया, जो अकबर अपनी दयाशीलता व टीपू सुल्तान अपनी उग्रता द्वारा नहीं कर सका, वे भारत को एक राष्ट्र नहीं बना सके।”
- बौद्धिक पुनर्जागरण ने राष्ट्रवाद के उदय में एक अहम् भूमिका निभायी। राजा राममोहन राय, दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद आदि ने भारतीयों के अन्तर्मन को झकझोर दिया। इस संदर्भ में दयानंद सरस्वती ने कहा कि- “स्वदेशी राज्य सर्वोपरि एवं सर्वोत्तम होता है।’ स्वामी रामतीर्थ ने कहा कि ‘मै सशरीर भारत हूँ और सारा भारत मेरा शरीर है।”
- यूरोपीय विद्वान् सर विलियम जोंस, मोनियर विलियम्ज, मैक्समूलर, विलियम रोथ, सैमसन, मैकडॉनल्ड आदि ने शोधों के द्वारा भारत की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर से सबका परिचय कराया और निश्चित रूप से इससे भारतीयों के मन से हीन भावना समाप्त हुई। उनमें आत्म-सम्मान एवं आत्म-विश्वास की भावना जग उठी, जिससे भारतियों के अन्दर देश-भक्ति एवं राष्ट्रवाद की भावना प्रोत्साहित हुई।
- अंग्रेज़ों द्वारा भारतीयों के प्रति हर जगह सेना, उद्योग, सरकारी नौकरियों एवं आर्थिक क्षेत्र में अपनायी जाने वाली भेदभाव पूर्ण नीति ने भी राष्ट्रवादिता को जन्म दिया।
- लॉर्ड लिटन के प्रतिक्रियावादी कार्य, जैसे- दिल्ली दरबार, वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, आर्म्स एक्ट, इंडियन सिविल सर्विस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) की आयु को 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष करना तथा द्वितीय आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध आदि ने भी राष्ट्रवाद के उदय के मार्ग को प्रशस्त किया।
ह्यूम का योगदान
‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना से पूर्व इस दिशा में किये गये महत्त्वपूर्ण प्रयासों के अन्तर्गत 1 मार्च, 1883 ई. को ए.ओ. ह्यूम ने ‘कलकत्ता विश्वविद्यालय’ के स्नातकों के नाम एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने सब से मिल-जुलकर स्वाधीनता के लिए प्रयत्न करने की अपील की। इस अपील का शिक्षित भारतीयों पर बहुत ही अच्छा प्रभाव पड़ा। और यह भी इसका एक कारण बना।
इस समय भारतीय एक अखिल भारतीय संगठन की आवश्यकता महसूस करने लगे। इस दिशा में निश्चित रूप से पहला क़दम सितम्बर, 1884 ई. में उठाया गया, जब ‘अडयार’ (मद्रास) में ‘थियोसोफ़िकल सोसाइटी’ का वार्षिक अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में ह्यूम सहित दादाभाई नौरोजी, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी आदि शामिल हुए। इसी अधिवेशन के बाद 1884 ई. में ‘इण्डियन नेशनल यूनियन’ नामक देशव्यापी संगठन स्थापित हुआ। इस संगठन की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य भारतीय लोगों द्वारा देश की सामाजिक समस्याओं के सम्बन्ध में विचार-विमर्श करना था।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
इसी समय ह्यूम ने तत्कालीन वायसराय लार्ड डफ़रिन से सलाह ली और ऐसा कहा जाता है कि ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ डफ़रिन के दिमाग की ही उपज थी। डफ़रिन भी चाहता था कि भारतीय राजनीतिज्ञ वर्ष में एक बार एकत्र हों, और वे प्रशासन के कार्यों के दोष एवं उनके निवारणार्थ सुझावों द्वारा सरकार के प्रति अपनी वास्तविक भावना प्रकट करें, ताकि प्रशासन भविष्य में घटने वाली किसी घटना के प्रति सतर्क रहे। और ह्यूम डफ़रिन की योजना से सहमत हो गये।
इस संगठन की स्थापना से पूर्व ए.ओ. ह्यूम इंग्लैण्ड गये, जहाँ उन्होंने लॉर्ड रिपन, लॉर्ड डलहौज़ी जॉन व्राइट एवं स्लेग जैसे राजनीतिज्ञों से इस विषय पर व्यापक विचार-विमर्श किया। भारत आने से पहले ह्यूम ने इंग्लैण्ड में भारतीय समस्याओं के प्रति ब्रिटिश संसद के सदस्यों में रुचि पैदा करने के उद्देश्य से एक ‘भारत संसदीय समिति’ की भी स्थापना की।
भारत आने पर ए.ओ. ह्यूम ने ‘इण्डियन नेशनल यूनियन’ की एक बैठक बम्बई में 25 दिसम्बर, 1885 ई. को की, जहाँ पर व्यापक विचार-विमर्श के बाद ‘इण्डियन नेशनल युनियन’ का नाम बदलकर ‘इण्डियन नेशनल कांग्रेस’ या ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ रखा गया। यहीं पर इस संस्था ने जन्म लिया। पहले इसका सम्मेलन पूना में होना था, परन्तु वहाँ हैजा फैल जाने के कारण स्थान परिवर्तित कर बम्बई में इस सम्मेलन का आयोजन किया गया।
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रथम चरण (1885-1905 ई. तक)
1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ ही इस पर उदारवादी राष्ट्रीय नेताओं का वर्चस्व स्थापित हो गया। तत्कालीन उदारवादी राष्ट्रवादी नेताओं में प्रमुख थे- दादाभाई नौरोजी, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, दीनशा वाचा, व्योमेश चन्द्र बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले, मदन मोहन मालवीय, महादेव गोविन्द रानाडे, फ़िरोजशाह मेहता, आदि।
कांग्रेस की स्थापना के आरम्भिक 20 वर्षो में उसकी नीति अत्यन्त ही उदार थी, इसलिए इस काल को कांग्रेस के इतिहास में ‘उदारवादी राष्ट्रीयता का काल’ कहा जाता है। कांग्रेस के संस्थापक सदस्य भारतीयों के लिए धर्म और जाति के पक्षपात का अभाव, मानव में समानता, क़ानून के समक्ष समानता, नागरिक स्वतंत्रताओं का प्रसार और प्रतिनिधि संस्थओं के विकास की कामना करते थे। उदारवादी नेताओं का मानना था कि संवैधनिक तरीके अपना कर के ही हम अपने देश को अंग्रेजों से आज़ाद करा सकते है।
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन का द्वितीय चरण (1905 से 1919 ई. तक)
आन्दोलन के इस चरण में एक ओर उग्रवादी तो दूसरी ओर क्रांतिकारी आन्दोलन चलाये गये। दोनों ही एक मात्र उद्देश्य, ब्रिटिश राज्य से मुक्ति एवं पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति, के लिए लड़ रहे थे। एक तरफ़ उग्रवादी विचारधारा के लोग ‘बहिष्कार आन्दोलन’ को आधार बनाकर लड़ रहे थे तो वही दूसरी ओर क्रांतिकारी विचारधारा के लोग बमों और बन्दूकों के उपयोग से स्वतन्त्रता प्राप्त करना चाहते थे। जहाँ एक ओर उग्रवादी शान्तिपूर्ण सक्रिय राजनीतिक आन्दोलनों में विश्वास करते थे, तो वहीं दूसरी तरफ क्रांतिकारी अंग्रेजो को भारत से भगाने में शक्ति एवं हिंसा के उपयोग में विश्वास करते थे।
राजनीतिक लक्ष्य एवं कार्य प्रणाली
कांग्रेस के चार प्रमुख नेताओं- बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, विपिन चन्द्र पाल एवं अरविन्द घोष ने भारत में उग्रवादी आन्दोलन का नेतृत्व किया। इन नेताओं ने स्वराज्य प्राप्ति को ही अपना प्रमुख लक्ष्य एवं उद्देश्य बनाया। बल गंगा धर तिलक ने नारा दिया कि ‘स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।’
इसके अलावा उन्होंने कहा ‘स्वराज्य अथवा स्वशासन स्वधर्म के लिए आवश्यकता है।’ स्वराज्य के बिना न कोई सामाजिक सुधार हो सकता है, न कोई औद्योगिक प्रगति, न कोई उपयोगी शिक्षा और न ही राष्ट्रीय जीवन की परिपूर्णता। यही हम चाहते हैं और इसी के लिए ईश्वर ने मुझे इस संसार में पैदा किया है।’ अरविन्द घोष ने कहा कि ‘राजनीतिक स्वतन्त्रता एक राष्ट्र का जीवन श्वास है। बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता के सामाजिक तथा शैक्षिणक सुधार, औद्योगिक प्रसार, एक जाति की नैतिक उन्नति आदि की बात सोचना मूर्खता की चरम सीमा है।’
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन का तृतीय एवं अन्तिम चरण (1919 से 1947 ई. तक)
‘भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन’ का तृतीय चरण सन 1919 ई. से सन 1947 ई. तक रहा। आन्दोलन के इस चरण में मुख्य रूप से गाँधी जी ही भारतीय राजनीतिक मंच पर छाए रहे। गाँधी जी के इस कार्यकाल को भारतीय इतिहास में ‘गाँधी युग’ के नाम सेभी जाना जाता है।
इन्हें भी देखें –
- भारत का विभाजन
- भारत का एकीकरण
- सम्राट स्कन्दगुप्त | 455 ईस्वी – 467 ईस्वी
- चौहान वंश (7वीं शताब्दी-12वीं शताब्दी)
- सम्राट हर्षवर्धन (590-647 ई.)
- काकतीय वंश |1000 ई.-1326 ई.
- प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857-1858
- भाषा एवं उसके विभिन्न रूप
- हिंदी वर्णमाला- स्वर और व्यंजन (Hindi Alphabet)
- संधि – परिभाषा एवं उसके भेद (Joining)
- वर्तनी किसे कहते है? उसके नियम और उदहारण
- भारत के प्रमुख संस्था, संस्थापक, संस्थान एवं उनके मुख्यालय
- 250+ पुस्तकें एवं उनके लेखक | Books and their Authors
- भारत रत्न से सम्मानित व्यक्ति | Bharat Ratna Award
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