भारत का विशाल उत्तरी मैदान भारत के उत्तर में स्थित विशाल मैदान है। यह विशाल मैदान हिमालय के बाद मध्य अक्षांश पर स्थित एक उपजाऊ भूमि हैं। इस पूरे मैदान का निर्माण हिमालय से निकलने वाली सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र तथा उनकी सहायक नदियों द्वारा लायी गयी जलोढ़ मिट्टी से होता है।
उत्तर भारत का विशाल मैदानी क्षेत्र शिवालिक श्रेणी के दक्षिण में स्थित है। भारत के विशाल उत्तरी मैदान के दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार है। तथा पूर्व में, पूर्वांचल की पहाड़ियां है। भारत का उत्तरी मैदान भारत की सबसे कम उम्र की भौगोलिक विशेषता है।
भारत के उत्तरी मैदान का परिचय
भारत एक विशाल देश है। इसकी भौतिक विशेषताओं में अत्यधिक विविधता है। इसकी भौगोलिक संरचना का वर्गीकरण किया जाये तो भारत के 29.3 प्रतिशत क्षेत्र पर पहाड़ियाँ और 27.7 प्रतिशत भाग पर पठार और 43 प्रतिशत भाग पर मैदान स्थित हैं।
भारत का महान उत्तरी मैदान, उत्तर में हिमालय और दक्षिण में महान भारतीय पठार के बीच तथा पश्चिम में राजस्थान के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र घाटी तक फैला हुआ है। नदियों द्वारा लायी गयी जलोढ़ मिटटी से निर्माण होने के कारण यह मैदान अत्यंत उपजाऊ है। और इसी वजह से भारतीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस क्षेत्र में रहता है।
भारत के उत्तरी मैदान का निर्माण / विकास
भारत के उत्तरी मैदान का निर्माण के बारे में माना जाता हैं की हिमालय के निर्माण के साथ ही उत्तरी मैदान का निर्माण प्रारभं हो गया था। जब टेथिस सागर में हिमालय का उत्थान हुआ उस समय, भारतीय प्रायद्वीप का उत्तरी भाग जलमग्न हो गया, और एक विशाल घाटी का निर्माण हुआ। धीरे धीरे यह घाटी उन नदियों की तलछट से भरा गया, जो उत्तर में पहाड़ों से और दक्षिण में प्रायद्वीप से उत्पन्न हुई थी।
इस कार्य में करोड़ो वर्षों तक गंगा और ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों के निक्षेपण ने इस मैदान के निर्माण में अपना योगदान दिया । इन नदियों द्वारा लाई गयी मिट्टियों के परिणामस्वरूप इस मैदान का निर्माण होने के कारण, इस मैदान को भारत के गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान के रूप में भी जाना जाता है। इसका कुल आकार लगभग 5,80,000 वर्ग किलोमीटर है।
भारत के उत्तरी मैदान की विशेषता
- भारत का उत्तरी मैदान तीन नदियों, अर्थात सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र तथा उनकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित है।
- भारत का महान उत्तरी मैदान दुनिया का सबसे बड़ा जलोढ़ क्षेत्र है।
- भारत का विशाल उत्तरी मैदान सिंधु नदी के मुहाने से गंगा नदी के मुहाने तक लगभग 3,200 किमी तक के क्षेत्र में फैला हुआ है।
- इन मैदानों की औसत चौड़ाई 150 और 300 किमी है। सामान्य तौर पर, उत्तरी मैदानी इलाकों की चौड़ाई पूर्व से पश्चिम तक (असम में 90-100 किमी और पंजाब में लगभग 500 किमी) तक बढ़ जाती है।
- इसकी उत्तरी सीमा को शिवालिक श्रेणी द्वारा अच्छी तरह से चिह्नित किया जाता है। और दक्षिणी सीमा को प्रायद्वीपीय भारत के उत्तरी किनारों द्वारा चिन्हित किया जाता है।
- इसका पश्चिमी भाग सुलेमान और कीर्थार श्रेणियों द्वारा विभाजित है।
- इस मैदान के जलोढ़ क्षेत्रों की गहराई अलग-अलग स्थांनो पर अलग –अलग होती है। कुछ भागों में तलछट की गहराई 2000 से 3000 मीटर तक है।
- जलोढ़ क्षेत्र की अधिकतम गहराई पृथ्वी की सतह के नीचे की चट्टानों में लगभग 6,100 मीटर है।
- इस समतल मैदान की मुख्य विशेषता इसकी अत्यधिक क्षैतिजता है।
- भारत के उत्तरी मैदान की सामान्य ऊँचाई समुद्र तल से लगभग 200 मी. है। इसकी सबसे अधिक ऊँचाई अंबाला के नजदीक समुद्र तल से 291 मी. है। यह ऊँचाई सिंधु नदी तंत्र और गंगा नदी तंत्र के बीच जल विभाजक का काम करती है।
- इसके भौतिक भूदृश्य अर्थात नदी का किनारा, तटबंध आदि नदी के प्रवाह से टूट जाते है।
- किसी नदी घाटी का वह हिस्सा जो नदी प्रणाली के समीप होता है, और बाढ़ के समय जिसके ऊपर से जल की धारा बहती है, बाढ़ प्रवण क्षेत्र कहलाता है।
- नदी का ऐसा उठा हुआ किनारा, जो नदी प्रणाली को प्रवाहित करता है और मुख्त: बाढ़ प्रवण क्षेत्र के स्तर से ऊपर रहता है, तटबंध कहलाता है।
भारत के विशाल उत्तरी मैदान का भौतिक विभाजन
भारत के विशाल उत्तरी मैदानों में अनेकों विविधताये हैं। इन विविधताओं के अनुसार, उत्तरी मैदानों को चार क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है। जो निम्नलिखित हैं :-
- भाबर
- तराई अथवा जलोढ़ मैदान
- बांगर
- खादर
भाबर
- भाबर के मैदान जम्मू से असम तक शिवालिक श्रेणी के दक्षिण में स्थित है।
- यह गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदान का एक संकीर्ण, पारगम्य तथा सबसे उत्तरी भाग है।
- इसकी चौड़ाई लगभग 8-16 किमी है जो शिवालिक के निचले क्षेत्रों (जलोढ़) में पूर्व-पश्चिम दिशा में समानांतर विस्तृत है।
- सिंधु से तीस्ता तक इनमे निरंतरता देखने को मिलती हैं।
- हिमालय से निकलने वाली नदियाँ निचले क्षेत्रों में जलोढ़ पंखे के रूप में अपना भार/गाद/निक्षेपण जमा करती हैं। इन जलोढ़ पंखो मे अक्सर कंकड़ वाली मिट्टी रहती है। इन्ही मित्त्यों द्वारा ही मुख्त: भाबर बेल्ट का निर्माण होता है।
- संरंध्रता के कारण भाबर क्षेत्र में आने पर धाराएँ प्रमुखतः लुप्त हो जाती हैं। जिसके बाद, इस क्षेत्र को बारिश के मौसम को छोड़कर बाकी के मैसम में सूखी नदी का मार्ग भी कहा जाता है।
- भाबर बेल्ट पूर्व में संकरा और पश्चिम में चौड़ा है।
- यह क्षेत्र अपनी झरझरा प्रकृति और कंकड़ जड़ी चट्टानों की उपस्थिति के कारण खेती के लिए उपयुक्त नहीं है।
- भाबर क्षेत्र पूर्व में पतला है, लेकिन पश्चिम और उत्तर-पश्चिम पहाड़ी क्षेत्रों में चौड़ा है।
- इस क्षेत्र में केवल बड़ी जड़ों वाले विशाल पेड़ ही उगते हैं, जो खेती के लिए अनुपयुक्त है।
- भाबर बेल्ट के दक्षिण में तराई बेल्ट स्थित है, जो एक खराब जल निकास वाला, गीला, दलदल और घने जंगलों वाला संकरा मार्ग है। यह दक्षिण में भाबर के समानांतर चलता है। तराई लगभग 15-30 किलोमीटर तक फैली हुई है।
- इस क्षेत्र में भाबर बेल्ट में भूमिगत हुई धाराएँ फिर से सतह पर आ जाती हैं। यह क्षेत्र अत्यधिक वन क्षेत्र होने के कारण विभिन्न प्रकार के जानवरों का घर है। असम में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और उत्तराखंड में जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान तराई क्षेत्र के हिस्से हैं।
तराई / जलोढ़ मैदान
- तराई एक सूखा, नम और घने जंगलों वाला क्षेत्र है इसके दक्षिण में इसके समानांतर भाभर के चौड़े क्षेत्र पाए जाते है।
- तराई क्षेत्र लगभग 15-30 किमी चौड़ा हैं।
- इस बेल्ट में भाबर बेल्ट की भूमिगत धाराएँ बहती हैं।
- तराई के पूर्वी भागों में पश्चिमी भागों की तुलना में अधिक मात्रा में वर्षा होती है, जिसके कारण पूर्वी भाग में अधिक नमी/तराई रहती है। तराई क्षेत्र का अधिकांश भाग, विशेष रूप से पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में, कृषि भूमि में परिवर्तित हो गया है, जिससे गन्ना, चावल और गेहूं की अच्छी पैदावार होती है।
- तराई पूर्वी हिस्से में पश्चिम की तुलना में अधिक होती है क्योंकि पूर्वी भागों में तुलनात्मक रूप से अधिक वर्षा होती है।
- तराई की मिट्टी गाद-भरी और नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर होती है लेकिन इसमें प्रमुख्त: फॉस्फेट की कमी पाई जाती है।
- हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, और उत्तर प्रदेश में तराई क्षेत्र को खेती के लिए उपयोग में लाया जा रहा है क्योंकि यह खाद और कार्बनिक पदार्थों में समृद्ध है।
- यह गेहूं, चावल, मक्का, गन्ना आदि की खेती के लिए उपर्युक्त है।
- नए और पुराने जलोढ़ निक्षेप तराई बेल्ट की दक्षिणी भाग को परिभाषित करते हैं। भंगेर और खादर जलोढ़ मैदानों के नए नाम हैं।
- इन मैदानों में सैंडबार, मेन्डर्स, ऑक्सबो झीलें और ब्रेडेड चैनल हैं, जो परिपक्व नदी के कटाव और निक्षेपण विशेषताओं के विशिष्ट हैं।
- सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र के मैदानों के नदी द्वीप और रेतीली चट्टानें प्रसिद्ध हैं। इन क्षेत्रों में बाढ़ और नदी के पैटर्न में उतार-चढ़ाव सामान्य बात है।
भांगर
- भांगर एक पुराना जलोढ़ है जो नदी के किनारे बाढ़ के मैदान के ऊपर छतों का निर्माण करता है। यह बाढ़प्रवण क्षेत्रों की तुलना में अधिक ऊंचे होते हैं। डेक अक्सर चूनेदार पत्थर जैसे कंकड़ से ढके होते हैं, जिन्हें ‘कांकर’ के नाम से जाना जाता है।
- ऊंचाई वाले भागो को नियमित रूप से (चुना –पत्थर), कैल्सियम सॉलिडेशंस (चूने के नोडल्स के बेड) के द्वारा भरा जाता है, जिन्हें ‘कंकर’ के रूप में भी जाना जाता है।
- भांगर के क्षेत्रीय जगहों में बंगाल के डेल्टा क्षेत्र में ‘बारिंद मैदान’ और मध्य गंगा और यमुना दोआब में ‘भूर संरचनाएं’ शामिल हैं।
- भूर गंगा नदी के किनारे, विशेष रूप से ऊपरी गंगा-यमुना दोआब में एक ऊंचे भूमि क्षेत्र को संदर्भित करता है। वर्ष के गर्म, शुष्क महीनों के दौरान, यह हवा से उड़ने वाली रेत के निर्माण से उत्पन्न होता है।
- मुख्य रूप से शुष्क क्षेत्रों में, भांगर नमकीन और क्षारीय छोटे पथों (way) को प्रदर्शित करता है जिन्हें ‘रेह ‘, कल्लर’ या ‘भूर’ ’के नाम से जाना जाता है।
- रेह क्षेत्रों में हाल के दिनों में सिंचाई में वृद्धि हुई है।
- इन क्षेत्रों में केशिका क्रिया द्वारा सतह पर लवण लायी जाती है।
- बंगाल के डेल्टा क्षेत्र में ‘बरिंड क्षेत्र’ और मध्य गंगा और यमुना दोआब में ‘भुर संरचनाओं’ भांगर के क्षेत्रीय रूपांतर हैं।
- भांगर में गैंडे, दरियाई घोड़े, और हाथी जैसे जीवों के जीवाश्म हैं।
- इस क्षेत्र में दोमट मिट्टी पाई जाती है, जो आम तौर पर यह गहरे रंग की होती है।
खादर
- नदी के किनारे बाढ़ के मैदानों का निर्माण खादर से होता है, जो नवीन जलोढ़ से बना होता है।
- हर साल नदी की बाढ़ से जलोढ़ की एक नई परत का निर्माण होता है। यह इसको उत्तरी मैदानों का सबसे उपजाऊ भाग बनाता है।
- ये गंगा क्षेत्र की सबसे उपजाऊ मिट्टी हैं।
- यह प्रमुख्त: रेतीले और दोमट मिट्टी होते हैं। जिसमे सोखने, अधिक प्रक्षालित और अस्थिर होने की क्षमता होती है।
- पंजाब में, खादर के समृद्ध बाढ़ के मैदानों को स्थानीय रूप से ‘बेटलैंड्स’ अथवा ‘बेट्स’ के रूप में जाना जाता है।
- पंजाब-हरियाणा के मैदानी इलाकों में नदियाँ खाड़ की विस्तृत बाढ़ के मैदान हैं, जिन्हें स्थानीय तौर पर धाय (Dhaya=Heavily gullied bluffs) के नाम से जाना जाता है। ये 3 मीटर तक ऊंचे होते हैं।
- विश्व का सबसे अविश्वसनीय डेल्टा इन्हीं मैदानों में बनता है। जिसमे सबसे उल्लेखनीय उदाहरण सुंदरवन डेल्टा है।
- भारत के उत्तरी मैदानों की इन विशेषताओं के अलावा, ये मुख्य रूप से सुविधाहीन हैं। ये क्षेत्र औसतन समुद्र तल से अधिकतम 100 से 150 मीटर तक ही ऊपर हैं।
भारत के उत्तरी मैदान का क्षेत्रीय विभाजन
भारत के विशाल उत्तरी मैदान का क्षेत्र के आधार पर निम्न प्रकार से विभाजन किया गया है :-
- पंजाब का मैदान
- गंगा का मैदान
- ब्रह्मपुत्र का मैदान
पंजाब का मैदान
- उत्तर पश्चिमी भारत में पंजाब के मैदान बड़े जलोढ़ मिटटी के मैदान हैं। इनका क्षेत्रफल लगभग 38,300 वर्ग मील (99,200 वर्ग किमी) है।
- इसमें शाहदरा अंचल को छोड़कर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं।
- यह उत्तर में शिवालिक रेंज, पूर्व में यमुना नदी, दक्षिण में राजस्थान राज्य के शुष्क क्षेत्र, उत्तर में रावी नदी और दक्षिण-पश्चिम में सतलज नदी से घिरा हुआ है।
- यह मैदान में सिंधु तंत्र की पांच प्रमुख नदियों का प्रवाह होता है।
- यह मैदान मुख्य रूप से ‘दोआब’ से बना है। अर्थात इसको दो नदियों के बीच की क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है।
- नदियों द्वारा निक्षेपण प्रक्रिया इन दोआब में शामिल हो कर एक सजातीय स्वरूप लेता है।
- पंजाब का तात्पर्य “द लैंड ऑफ फाइव रिवेर्स” अर्थात पांच नदियों के बहने वाला क्षेत्र से है। इस पांच नदियों के नाम है: झेलम, चिनाब, रावी, सतलज और ब्यास।
- इस समतल क्षेत्र की औसत ऊँचाई समुद्र तल से लगभग 250 मी. ऊपर है।
- पंजाब -हरियाणा मैदान की पूर्वी सीमा को दिल्ली-अरावली पर्वत श्रेणी द्वारा अलग किया जाता है।
- सतलुज नदी के दक्षिण में, “पंजाब का मालवा” मैदान स्थित है।
- यह मैदान थोड़ा ऊँचा है। इसकी ऊंचाई उत्तर पूर्व में 2,140 फीट (650 मीटर) और दक्षिण पूर्व में 700 फीट (200 मीटर) है। रावी, ब्यास, सतलज और यमुना यहाँ की बारहमासी नदियाँ हैं।
- इस मैदान के दक्षिण-पूर्व में मुख्त: उपोष्णकटिबंधीय कंटीले जंगल हैं, तथा साथ ही इसमें शुष्क पर्णपाती वन भी पाए जाते हैं।
- यहाँ की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है। अधिकांशत: मैदानी क्षेत्र पर खेती की जाती है और अनाज, कपास, गन्ना, और तिलहन उगाए जाते हैं।
- अधिकांश क्षेत्र सिंचाई नहरों से भरा हुआ है।
- इन भागों में बसे हुए शहर दिल्ली, अमृतसर, लुधियाना, जालंधर और चंडीगढ़ में बड़े पैमाने पर उद्योग विभिन्न प्रकार के सामानों का उत्पादन करते हैं, जिनमें कपड़ा, साइकिल पार्ट्स, मशीन टूल्स, कृषि उपकरण, खेल के सामान, रोज़िन, तारपीन और वार्निश शामिल हैं।
गंगा का मैदान
- गंगा का मैदान दिल्ली से कोलकाता तक लगभग 75 लाख वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैला हुआ है।
- गंगा का मैदान भारत के विशाल मैदान का सबसे बड़ा क्षेत्र है।
- गंगा नदी अपनी सहायक नदियों की विशाल संख्या के साथ इस मैदान में जल निकासी करती है।
- हिमालय में निकलने वाली ये धाराएँ पहाड़ों से बड़ी मात्रा में जलोढ़ मिटटी लाती हैं और इस व्यापक मैदान को बनाने के लिए इसे यहाँ जमा करती हैं।
- चंबल, बेतवा, केन, सोन आदि प्रायद्वीपीय नदियों ने गंगा नदी प्रणाली में शामिल होकर इस मैदान के विकास में अपना योगदान दिया है |
- नदियाँ गंगा के निचले क्षेत्रों में धीमी गति से बहती हैं जिसके कारण इस क्षेत्र को स्थानीय क्षेत्र से अलग किया जाता है जैसे कि तटबंध, नदी के किनारे, गोखुर झील, दलदल, घाटी इत्यादि।
- लगभग सभी नदियाँ अपने मार्गों को बदलते रहती हैं जिससे इस क्षेत्र में बार-बार बाढ़ आती है।
- इस संबंध में (बाढ़ लाने में) बिहार में बहने वाली कोसी नदी बेहद प्रमुख है। इस नदी को लंबे समय तक बिहार का ‘दुःख'(शोक ) कहा जाता रहा है।
- उत्तरी राज्य हरियाणा, दिल्ली, यूपी, बिहार, पूर्व में झारखंड और पश्चिम बंगाल का हिस्सा गंगा के मैदान में स्थित है।
- दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा इसी क्षेत्र में है, जिसे गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी के द्वारा बनाया जाता है। इस तटीय डेल्टा के एक बड़े हिस्से पर सुंदरबन नामक ज्वारीय पाए जाते है।
- सुंदरबन, सबसे बड़े मैंग्रोव दलदल है जिसका नामकरण इसमें वृहद् पैमाना पर पाए जाने वाले सुन्दरी नामक वृक्ष पर हुआ है जो दलदली भूमि में अच्छी तरह से बढ़ता है। सुंदरबन का यह हिस्सा रॉयल टाइगर और मगरमच्छों का प्राकृतिक निवास स्थान है।
गंगा के मैदानी भागों का विभाजन
गंगा के मैदानी भागों को अलग अलग स्थानों के नाम पर निम्नलिखित उपभागों में विभाजित किया जाता है:-
- रोहिलखंड मैदान
- अवध के मैदान
- मिथिला का मैदान
- मगध का मैदान।
ब्रह्मपुत्र का मैदान
- ब्रह्मपुत्र मैदान को ब्रह्मपुत्र घाटी / असम घाटी अथवा असम मैदान के रूप में भी जाना जाता है। क्योंकि ब्रह्मपुत्र घाटी का अधिकांश हिस्सा असम में स्थित है।
- ब्रह्मपुत्र मैदान की पश्चिमी सीमा भारत-बांग्लादेश सीमा के साथ-साथ निचले गंगा मैदान की सीमा से मिलती है। इसकी पूर्वी सीमा पर पूर्वांचल की पहाड़ियां स्थित हैं।
- यह ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों के निक्षेप द्वारा विकसित निक्षेपित मैदान है।
- उत्तरी भाग से निकलने वाली ब्रह्मपुत्र नदी की अनेक सहायक नदियां जलोढ़ पंख का निर्माण करती है। इसलिए, सहायक नदियां कई चैनलों / नालों में विभाजित हो जाती है।
- इस प्रकार से ब्रह्मपुत्र नदी तथा उसकी सहायक नदियों के अनेक चैनलों में विभाजन के कारण नदी विसर्पों का निर्माण होता है जो अंत मे गोखुर झील के रूप मे बदल जाती है।
- यह क्षेत्र विशाल दलदली इलाकों से भरा हैं।
- इस क्मोषेत्टेर में जलोढ़ मलबे के द्वारा निर्मित जलोढ़ पंख के कारण तराई या अर्ध-तराई क्षेत्र का निर्माण होता है।
- ब्रह्मपुत्र नदी की माजुली नदी द्वीप, विश्व में सबसे बड़ा नदी तटीय द्वीप है।
- माजुली द्वीप समहू को भारतीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा यूनेस्को के विश्व धोरहर स्थल के लिए नामित किया गया था। परन्तु 2020 की सूची में इसको शामिल नहीं किया गया था।
भारत के विशाल उत्तरी मैदान का महत्व
- भारत के उत्तरी विशाल मैदान पर इस समय देश की लगभग आधी आबादी निवास करती है। जबकि यह भूमि देश की भूमि का लगभग एक चौथाई हिस्सा है।
- इस उत्तरी मैदान में उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी, सपाट सतह, धीमी गति से चलने वाली बारहमासी नदियां और आदर्श वातावरण कृषि गतिविधियों को प्रोत्साहित करते हैं ।
- भारत के विशाल उत्तरी मैदान की अवसादी चट्टानों में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के भंडार भी मिले है।
- इन नदियों में बहुत कम ढाल होता हैं जो इन्हे लंबी दूरी तक जाने में मददगार साबित होता हैं ।
- सिंचाई के व्यापक उपयोग द्वारा पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग भारत के अन्न भंडार के रूप मे उभर कर सामने आये है।
- प्रेयरी को दुनिया के अन्न भंडार के रूप में जाना जाता है।
- थार रेगिस्तान को छोड़कर पूरे मैदानी क्षेत्र में सड़कों और रेलवे का एक गहरा नेटवर्क है। जिसने औद्योगीकरण और शहरीकरण की अपार संभावनाओं को प्रेरित किया है ।
- गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों के किनारे कई धार्मिक स्थल स्थित हैं। ये धार्मिक स्थल हिंदुओं, बौद्धों और जैन धर्म मे बहुत मान्य हैं। इनके नाम है – हरिद्वार, वाराणसी, इलाहाबाद, गया, अमृतसर।
- ये धार्मिक स्थल सांस्कृतिक पर्यटन का केंद्र बन गए हैं।