भारत का संविधान (Constitution of India), भारत का सबसे महत्वपूर्ण न्यायिक दस्तावेज है जो भारत की संविधानिक और राजनीतिक व्यवस्था को संरक्षित करने और निर्देशित करने के लिए बनाया गया है। भारत का संविधान संघ की सदस्य राज्यों के बीच संबंधों, नागरिकों के अधिकारों, न्यायपालिका की स्थापना, शासन के तंत्र, और राष्ट्रीय एकता के माध्यम से संघीय व्यवस्था के प्रमुख सिद्धांतों को निर्धारित करता है।
भारत का संविधान (Constitution of India) भारत का सर्वोच्च विधान है। भारतीय संविधान को बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर ने तैयार किया था और यह देश के न्यायिक, संघीय, और संवैधानिक तंत्र के सिद्धांतों को निर्धारित करता है। इसका उद्देश्य भारत के नागरिकों को स्वतंत्रता, सामान्यता, न्याय, समानता, और बंधुत्व के मूल्यों के साथ एक न्यायाधीशीय, संघीय और संवैधानिक तंत्र की व्यवस्था प्रदान करना है।
भारतीय संविधान (Indian Constitution) देश के निर्माण के समय, संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ। इसे भारतीय संविधान सभा द्वारा तैयार किया गया था, जिसमें नेहरू के प्रमुख नेतृत्व में संविधान निर्माण की कमेटी गठित की गई थी। इसी कारन से 26 नवम्बर को भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया है और 26 जनवरी का दिन भारत में गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।
परिचय
भारत का संविधान (Constitution of India) विश्व के किसी भी गणतान्त्रिक देश का सबसे लम्बा लिखित संविधान है। डॉ भीमराव अम्बेडकर को भारतीय संविधान का जनक कहा जाता हैं। भारतीय संविधान का मुख्य उद्देश्य भारत के नागरिकों को स्वतंत्रता, सामान्यता, न्याय, समानता और बंधुत्व के मूल्यों के साथ एक न्यायाधीशीय, संघीय और संवैधानिक तंत्र की व्यवस्था प्रदान करना है। इसे चार मुख्य भागों में विभाजित किया गया है: प्रस्तावना, अनुच्छेद, अनुसूची, और अतिरिक्त लेख।
भारतीय संविधान में संघीयता का सिद्धांत, भाषा का संबंध, धर्मनिरपेक्षता, मौलिक अधिकार, पंचायती राज, नागरिकता, न्यायपालिका, और राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और उपराष्ट्रपति की भूमिका जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर विवरण संयुक्त रूप से दिए गए हैं।
भारतीय संविधान द्वारा स्थापित न्यायपालिका सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से अपेक्षाकृत बढ़ते न्यायिकी अधिकार और संविधानिक व्यावसायिकता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय लेती है। इसके अलावा, यह नागरिकों को विभिन्न मौलिक अधिकार और स्वतंत्रताओं की रक्षा करने के लिए एक माध्यम प्रदान करता है। भारतीय संविधान को संशोधित भी किया जा सकता है यदि ऐसी आवश्यकता होती है।
भारत का संविधान (Constitution of India) देश के नागरिकों को संविधानिक और राजनीतिक माध्यमों के माध्यम से सशक्त बनाने का प्रमुख साधन है और भारत के लोगोंको न्यायाधीशीय, संघीय और संवैधानिक तंत्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका उद्देश्य भारतीय समाज को एक न्यायाधीशीय और संवैधानिक तंत्र के माध्यम से सुरक्षित रखना है, जो समानता, न्याय, स्वतंत्रता और बंधुत्व के मूल्यों को स्थापित करता है। भारत का संविधान (Constitution of India) देश की व्यवस्था में न्यायपालिका, संघीयता, समानता, धर्मनिरपेक्षता, नागरिकों के मौलिक अधिकार, पंचायती राज, नागरिकता, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को महत्वपूर्ण स्थान दिया है।
भारत का संविधान (Constitution of India) के मुख्य अंशों में शामिल हैं:
- प्रस्तावना (Preamble): यह भारत के संविधान की प्राथमिक भूमिका है और इसमें देश के आदर्शों, नीतियों और संविधान के महत्वपूर्ण उद्देश्यों का वर्णन किया गया है।
- अनुच्छेद (Article): इसमें संविधान के मूल अधिकार, नागरिकों के अधिकार, तंत्रिका व्यवस्था, न्यायपालिका, संघीयता, धर्मनिरपेक्षता, अपराध और दण्डनीति, संविधानिक संशोधन, और राजनीतिक प्रतिष्ठान को विवरण से बताया गया है।
- अनुसूची (Schedule): यह भारतीय संविधान की उपाधि है और इसमें नागरिकता, राष्ट्रीय प्रतीक, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सूची, संविधानिक संशोधनों की प्रक्रिया, और अन्य महत्वपूर्ण विवरण हैं।
- अतिरिक्त लेख (Additional Articles): इसमें भारतीय संविधान के अतिरिक्त मामलों और विशेष विधियों का वर्णन किया गया है।
भारतीय संविधान ने भारतीय नागरिकों को व्यावसायिक स्वतंत्रता, न्याय, समानता, और अधिकारों की रक्षा करने के लिए एक माध्यम प्रदान किया है। यह देश की विचारधारा, संविधानिक मान्यताओं और संघीय व्यवस्था के सिद्धांतों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे संविधानिक संशोधनों के माध्यम से समय-समय पर संशोधित भी किया जा सकता है ताकि यह समय के साथ सामर्थ्यशाली और उच्चतर आदर्शों के अनुरूप रह सके।
भारत का संविधान (Constitution of India)
भारतीय संविधान भारत में राजनीतिक व्यवस्था के लिए मूलभूत संरचना और रूपरेखा प्रदान करता है। इसके द्वारा भारत के लोगों को शासित किया जाता है। संविधान राज्य के मुख्य अंगों की स्थापना करता है ये अंग है –
- विधायिका (Legislature)
- कार्यपालिका (Executive)
- न्यायपालिका (Judiciary)
भारत का संविधान (Constitution of India) भारतीय राज्य की शक्तियों, भूमिकाओं और उत्तरदायित्व को परिभाषित करता है और लोगों के साथ इनके संबंधों को विनियमित करता है। भारतीय संविधान को 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा मंजूरी दी गई थी और 26 जनवरी 1950 से पूर्णतः प्रभावी हो गया। यह मूल रूप से 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियों से मिलकर बना है। इसमें कई बार संशोधन किए गए हैं, जिसके कारण नई अनुसूचियां जोड़ी गईं और अनुच्छेदों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। भारतीय संविधान की मुख्य विशेषता यह है कि यह आधारिक संरचना और दिशा निर्देशों का एक समुच्चय प्रदान करता है।
भारत का संविधान (Constitution of India) में वर्तमान में 470 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ हैं, जो 25 भागों में विभाजित हैं। जबकि इसके निर्माण के समय मूल संविधानमें 395 अनुच्छेद थे जो 22 भागों में विभाजित थे। इसके अलावा संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था है, जिसमें कुछ अपवादों के अतिरिक्त संघीय तत्व है। राष्ट्रपति केन्द्रीय कार्यपालिका का संविधानिक प्रमुख है।
भारत का संविधान (Constitution of India) की धारा 79 के अनुसार, केन्द्रीय संसद में राष्ट्रपति और दो सदन हैं, जिन्हें राज्यों की परिषद (राज्य सभा) तथा लोगों का सदन (लोक सभा) के नाम से जाना जाता है। संविधान की धारा 74 (1) में यह व्यवस्था दी गई है कि राष्ट्रपति की सहायता करने तथा उसे सलाह देने के लिए एक मंत्री परिषद होगी। राष्ट्रपति इस मन्त्रिपरिषद की सलाह के आधार पर अपने कार्यों को निष्पादित करता है। इस प्रकार, वास्तविक कार्यकारी शक्ति मन्त्रिपरिषद में होती है जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होता है। मन्त्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। प्रत्येक राज्य में एक विधानसभा है।
उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में एक ऊपरी सदन है जिसे विधानपरिषद कहा जाता है। प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होता है और राज्य की कार्यकारी शक्ति उसके अधीन होती है। मन्त्रिपरिषद, जिसका प्रमुख मुख्यमंत्री होता है, राज्यपाल को उसके कार्यकारी कार्यों के निष्पादन में सलाह देती है। राज्य की मन्त्रिपरिषद विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।
संविधान की सातवीं अनुसूची में संसद और राज्य विधायिकाओं के बीच विधायी शक्तियों का वितरण किया गया है। इस अनुसूची में संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची शामिल हैं। अवशिष्ट शक्तियाँ संसद में विहित हैं। केन्द्रीय प्रशासित भू-भागों को संघराज्य क्षेत्र कहा जाता है।
इस प्रकार, भारत का संविधान (Constitution of India) का व्यापक सारांश यह है:
- संविधान में कुल 448 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ हैं, जो 25 भागों में विभाजित हैं। जब हमारे संविधान की रचना हुई थी तब इसमें 395 अनुच्छेद/धारायें (articles) थीं । मूल अनुच्छेद/धाराओं (articles) की संख्या संविधान में आज भी इतनी ही है । हालाँकि समय समय पर होने वाले संशोधनों के कारण आज कुल अनुच्छेदों की संख्या 448 हो गई है, लेकिन ये मूल अनुच्छेद के ही विस्तार के रूप में स्थापित किये गये हैं ।
- केन्द्रीय संसद में राष्ट्रपति और दो सदन होते हैं, जिन्हें राज्यों की प्रमुखमंत्री और राष्ट्रपति के सलाहकारी मन्त्रिपरिषद द्वारा चुना जाता है।
- संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था है, जिसमें कुछ अपवादों के अतिरिक्त संघीय तत्व है।
- राष्ट्रपति केन्द्रीय कार्यपालिका का संविधानिक प्रमुख है।
- संविधान की सातवीं अनुसूची में विधायी शक्तियों का वितरण, शुल्क और कर लगाने के अधिकार और संघीय और राज्य सूचियों का वर्णन है।
- प्रत्येक राज्य में एक विधानसभा होती है और कुछ राज्यों में विधानपरिषद भी होती है।
- संघराज्य क्षेत्र में केन्द्रीय प्रशासित भू-भाग होते हैं।
- राज्यपाल राज्य का प्रमुख होता है और मन्त्रिपरिषद उसके कार्यकारी कार्यों में सलाह देती है।
भारतीय संविधान का निर्माण: लोकतंत्र की महागाथा
भारतीय संविधान के निर्माण की कहानी या भारतीय संविधान का इतिहास महत्वपूर्ण और रोचक है। भारतीय संविधान का निर्माण एक लंबा और समय-संग्रहीत प्रक्रिया थी जिसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उद्देश्यों, समाजिक न्याय के मूल्यों, विचारधारा और राजनीतिक संघर्षों के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए संविधान निर्माण की गई। यह एक आदर्शवादी लोकतांत्रिक संविधान है जो न्यायपूर्ण, समानतापूर्ण और संघटित शासन के मूल्यों पर आधारित है।
भारतीय संविधान के निर्माण की प्रक्रिया 1946 में शुरू हुई, जब ब्रिटिश सरकार ने भारतीय गणतंत्र की स्थापना के लिए कमेटी नियुक्त की। इस कमेटी को भारतीय निर्माण कमेटी (Indian Constituent Assembly) के नाम से जाना जाता है। इस कमेटी के सदस्यों को संविधान बनाने का कार्य सौंपा गया था।
भारतीय निर्माण कमेटी के सदस्यों में विभिन्न पार्टियों, विचारधाराओं, समाजशास्त्रीयों, वकीलों, शिक्षाविदों, आदिवासी नेताओं, महिला सदस्यों और अन्यों की प्रतिनिधित्व थी। इस कमेटी के प्रमुख संदर्भ में, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर को संविधान निर्माण के मुख्य लेखक के रूप में मान्यता है।
संविधान निर्माण कमेटी ने लगभग 3 वर्षों (2 साल 11 महीना 18 दिन) तक कार्य किया और भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया। इसके बाद, 26 नवंबर 1949 को संविधान को स्वीकृति मिली। हालांकि, यह संविधान आधिकारिक रूप से 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, जो भारतीय गणतंत्र के रूप में मनाया जाता है। इस दिन से पहले, भारत का संविधान ब्रिटिश संघ का विधान था।
भारतीय संविधान का निर्माण एक ऐतिहासिक कार्यक्रम था जिसमें समानता, स्वतंत्रता, न्याय, धर्मनिरपेक्षता, संघटित शासन, महिला के अधिकार, अधिकारों की सुरक्षा और समान अवसरों के मुद्दे पर बहुमतवादी विचारधाराओं का समन्वय समाविष्ट था। यह एक आधारभूत दस्तावेज है जो भारतीय लोकतंत्र के मूल्यों, अधिकारों और जिम्मेदारियों को प्रतिष्ठित करता है। यह सभारतीय संविधान का निर्माण एक उदात्त, महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक कार्यक्रम था। इसका निर्माण एक व्यापक संविधान सभा, जिसे भारतीय निर्माण कमेटी के नाम से जाना जाता है, ने किया। इस सभा में 1946 से 1949 तक कई दरबारी और विधायक सभा के सदस्य शामिल थे, जिन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण के लिए मसौदों को तैयार किया।
इस सभा में कुल मिलाकर 389 सदस्य थे, जिनमें 15 महिलाएं भी शामिल थीं। इसके अध्यक्ष के रूप में डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे जिन्होंने चुनाव द्वारा अध्यक्ष पद प्राप्त किया था, और डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने इस संविधान के मुख्य लेखक के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
भारतीय संविधान का निर्माण विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों, जातिवादी और सामाजिक समूहों के मतभेदों को समाधान करने के लिए एक माध्यम था। इसमें विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों, जातिवादी और जनजाति समुदायों के हितों को संरक्षित करने, सामान्य जनता के अधिकारों की सुरक्षा करने, सामाजिक न्याय को प्रोत्साहित करने, व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सुरक्षित करने, एकता और भारतीय संघटना को स्थापित करने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार किया गया था।
भारतीय संविधान का निर्माण कार्य अद्वितीय था, क्योंकि इसमें विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, जातिवादी और क्षेत्रीय आंदोलनों के प्रभाव शामिल थे। संविधान के निर्माण के दौरान सदस्यों ने अपने विचारों, अनुभवों, तथ्यों, और विशेषज्ञता का प्रयोग करके विभिन्न मुद्दों पर विचार किया और उचित समाधान ढूंढने का प्रयास किया।
भारतीय संविधान का निर्माण एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर रहा है जो भारतीय लोकतंत्र के मूल्यों, संविधानिक संरचना, अधिकारों और कर्तव्यों को प्रतिष्ठित करता है। यह संविधान भारतीय जनता के द्वारा स्वीकृत है और देश के सभी नागरिकों को सामान्य और उच्चतर न्याय के साथ एक गरिमामय जीवन प्रदान करने का उद्देश्य रखता है।
भारतीय संविधान की उत्पत्ति: आजादी के बाद राष्ट्रनिर्माण का महाकाव्य
द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्ति के बाद, जुलाई 1945 में ब्रिटेन ने भारत संबंधी अपनी नई नीति की घोषणा की। इसके बाद, भारत के स्वतंत्रता के लिए एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा गया, जिसमें तीन मंत्री थे। 15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के बाद, संविधान सभा की स्थापना की घोषणा की गई और यह 9 दिसंबर 1947 से कार्यशील हुई। संविधान सभा के सदस्यों को भारत के राज्यों की निर्वाचित सदस्यता वाले सभाओं ने चुना था। प्रमुख सदस्यों में जवाहरलाल नेहरू, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि थे।
भारतीय संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को की गयी। इस संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन 1946 योजना के तहत हुआ था और इसके लिए जुलाई 1946 में चुनाव कराये गए। 9 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई, परन्तु मुस्लिम लीग ने इस बैठक का बहिष्कार कर दिया और एक अलग राज्य पाकिस्तान की मांग पर बल दिया । इस पहली बैठक में केवल 211 सदस्यों ने हिस्सा लिया। सबसे वरिष्ठ सदस्य डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को इस सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया। इसके बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। टी. टी. कृष्णामचारी तथा डॉ. एच.सी. मुखर्जी सभा के उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए।
भारत-पाकिस्तान विभाजन के परिणामस्वरूप, माउंटबेटन योजना के तहत, 3 जून 1947 को पाकिस्तान की एक अलग संविधान सभा की स्थापना की गई। इस प्रकार से पाकिस्तान में शामिल क्षेत्रों के प्रतिनिधि भारत की संविधान सभा के सदस्य नहीं रहे। पश्चिमी पंजाब और पूर्वी बंगाल पाकिस्तान का हिस्सा बन गए। बाद में पूर्वी बंगाल भी पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बन गया। इन सभी राज्यों के लिए नए चुनाव कराये गए। इस प्रकार से संविधान सभा के सदस्यों का पुनर्गठन किया गया।
पुनर्गठन के बाद संविधान सभा की सदस्य संख्या 299 थी। ये सदस्य विभिन्न जाति, क्षेत्र, धर्म, लिंग आदि के प्रतिनिधि थे। इस संविधान सभा की बैठक 31 दिसंबर 1947 को हुई। संविधान का मसौदा इन्ही विभिन्न जाति, क्षेत्र, धर्म, लिंग आदि के 299 प्रतिनिधियों द्वारा तैयार किया गया था। ये प्रतिनिधि 3 वर्षों (2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन सटीक रूप से) में 114 दिनों तक बैठे। कुल 12 अधिवेशन आयोजित किए गए और अंतिम दिन 284 सदस्यों ने इसपर हस्ताक्षर किया।
संविधान के निर्माण में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतंत्रता थी। इस बैठकों में चर्चा की गई कि संविधान में क्या शामिल होना चाहिए और कौन- कौन से कानून शामिल होने चाहिए। संविधान की प्रारूप समिति की अध्यक्षता बी.आर. अंबेडकर ने की थी।
इस प्रक्रिया के फलस्वरूप, 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने संविधान को पारित किया और इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। भारतीय संविधान में सर्वाधिक प्रभाव भारत शासन अधिनियम 1935 का है और इसमें लगभग 250 अनुच्छेद इस अधिनियम से लिए गए हैं। भारत का संविधान (Constitution of India) भारतीय लोकतंत्र के आधारभूत दस्तावेज के रूप में मान्यता प्राप्त करता है और देश के नागरिकों को मौलिक अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित करता है।
भारतीय संविधान का आरंभ
भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा मंजूरी प्राप्त करके अंगीकृत किया गया था, और 26 जनवरी 1950 से पूर्णतः प्रभावी हुआ। भारत के लोगों ने स्वयं को भारतीय संविधान आत्मार्पित किया। इसमें मूल रूप से 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं। संविधान में विभिन्न समयों पर 105 से अधिक संशोधन हुए हैं और इसमें 4 नई अनुसूचियां जोड़ी गई हैं। भारत का संविधान (Constitution of India) अपनी अनूठी विशेषताओं के कारण अद्वितीय है, जो उसकी आधारिक संरचना और दिशा निर्देशों को प्रदान करती है।
- भारत में पहली बार एम.एन. रॉय द्वारा 1934 में भारत के लिए एक संविधान सभा के निर्माण का विचार सामने रखा। वह भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन के अग्रणी थे।
- 1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने आधिकारिक रूप से भारतीय संविधान का निर्माण करने हेतु संविधान सभा की मांग की।
- वर्ष 1938 में कांग्रेस की ओर से, जवाहरलाल नेहरू ने घोषणा की कि वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनी गई संविधान सभा द्वारा स्वतंत्र भारत के संविधान को बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के तैयार किया जाना चाहिए।
संविधान सभा
संविधान सभा एक ऐतिहासिक महत्वपूर्ण संस्था है जो भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संविधान सभा का गठन भारतीय संविधान को तैयार करने के लिए किया गया था। इसकी प्रारंभिक सदस्यता में 389 सदस्यों का चयन किया गया था, जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अलावा अन्य क्षेत्रों से चुने गए थे। संविधान सभा का अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे और भारतीय संविधान के मुख्य निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर थे।
संविधान सभा में सदस्यों की एक विशेष समिति भी गठित की गई थी, जो निर्देशक सिद्धांतों की तैयारी के लिए जिम्मेदार थी। संविधान सभा में अद्यतन और संशोधनों का कार्य भी किया गया था। संविधान सभा की कार्यवाही 9 दिसंबर 1946 से 24 जनवरी 1950 तक चली। संविधान सभा ने भारतीय संविधान को 26 नवंबर 1949 को स्वीकृति दी और उसका प्रभावी होने की तारीख 26 जनवरी 1950 निर्धारित की। संविधान सभा का गठन और उसकी महत्वपूर्ण भूमिका भारतीय संविधान के निर्माण में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।
भारतीय संविधान सभा का गठन जुलाई 1946 में हुआ था। संविधान सभा की पहली बैठक दिसम्बर 1946 में हुई थी। इसके तत्काल बाद देश दो भागों में विभाजित हो गया – भारत और पाकिस्तान। संविधान सभा भी दो हिस्सों में विभाजित हो गई – भारतीय संविधान सभा और पाकिस्तानी संविधान सभा।
भारत का संविधान (Constitution of India) लिखने वाली सभा में कुल 299 सदस्य थे, जिनके अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे। संविधान सभा ने 26 नवम्बर 1949 को अपना कार्य पूरा कर लिया और 26 जनवरी 1950 को यह संविधान प्रभावी हुआ। इस कारण से भारत में हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारतीय संविधान को पूर्ण रूप से तैयार करने में कुल 2 वर्ष, 11 माह और 18 दिन का समय लगा।
भारतीय संविधान की संरचना
भारतीय संविधान की संरचना एक मुख्य उद्देशिका, 470 अनुच्छेदों से युक्त 25 भाग, 12 अनुसूचियाँ, 5 अनुलग्नक (appendices), और 105 संशोधनों से मिलती है। संविधान में कई संविधानिक संशोधन भी किए गए हैं, जिनमें से 105 संविधान संशोधन अधिनियम के रूप में पारित हो चुके हैं।
भारत का संविधान (Constitution of India) की संरचना निम्नलिखित प्रमुख तत्वों पर आधारित है:
- प्रस्तावना: संविधान की प्रस्तावना में भारत के मौलिक सिद्धांतों, संविधान के उद्देश्यों और महत्वपूर्ण मुद्दों का विवरण होता है।
- प्रस्तावित संविधान: इस भाग में संविधान के मौलिक विधानों का प्रस्तावित प्रारूप होता है, जिसमें राष्ट्रीय चिन्ह, भारतीय संविधान का नाम और संविधानिक संरचना की विवरण होती है।
- सामान्य अधिकार: यह अनुच्छेद भारतीय नागरिकों को मौलिक और महत्वपूर्ण अधिकारों का अधिकार प्रदान करता है, जैसे स्वतंत्रता, जीवन, स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति, धर्म, समानता, न्याय, और सामाजिक और सांस्कृतिक मुक्ति।
- संघीय संरचना: इस अनुच्छेद में भारत की संघीयता की संरचना, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच संबंध, राज्य सरकारों के प्राधिकार और केंद्रीय सरकार के प्राधिकार आदि का विवरण होता है।
- संविधानिक संरचना: इस अनुच्छेद में संविधान की संरचना और कार्यप्रणाली के बारे में विस्तृत विवरण होता है, जिसमें विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, न्यायिक प्रणाली और राज्यों के संरक्षण आदि शामिल होते हैं।
- संविधानिक निधि: यह अनुच्छेद भारतीय संविधानिक निधि के बारे में विवरण प्रदान करता है, जिसमें संविधान के लागू होने से पहले उपयोग के लिए धनराशि की व्यवस्था, राष्ट्रीय वित्तीय संचालन और निधि समिति के गठन का विवरण होता है।
- सामान्य उपचार: इस अनुच्छेद में भारतीय संविधान के लागू होने से पहले अपराधों के दोष सिद्धि, संविधानिक उपचार, धार्मिक स्थलों और भाषाओं की संरक्षण के बारे में विवरण होता है।
- संविधान के प्रावधान: इस अनुच्छेद में संविधान के संशोधन, संविधान के प्रावधान का पालन, नगरीय निकायों, पंचायतों और संविधान के प्रावधानों के अनुसार निर्वाचन के बारे में विवरण होता है।
भारतीय संविधान की संरचना यहां उपर्युक्त प्रमुख अनुच्छेदों के माध्यम से संरचित है, जो भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के मूलभूत प्रणाली और न्यायपालिका के कार्य को परिभाषित करते हैं।
संविधान सभा की प्रमुख समितियां
संविधान सभा में कई प्रमुख समितियाँ गठित की गईं थीं जो विभिन्न पहलुओं और विषयों पर कार्य करती थीं। नीचे भारतीय संविधान सभा की प्रमुख समितियों का उल्लेख किया गया है:
- सञ्चालन समिति (चेयरमैन: डॉ राजेंद्र प्रसाद)
- संघीय संविधान समिति ( चेयरमैन: पंडित जवाहर लाल नेहरू )
- प्रांतीय संविधान समिति(चेयरमैन: सरदार बल्लभ भाई पटेल )
- प्रारूप समिति ( चेयरमैन: सर बी. आर. अम्बेडकर)
- संघ सकती समिति ( चेयरमैन: पंडित जवाहर लाल नेहरू )
- मौलिक अधिकारों एवं अल्पसंख्यकों सम्बन्धी परामर्श समिति (चेयरमैन: सरदार बल्लभ भाई पटेल )
- मौलिक अधिकार उप समिति ( जे बी कृपलानी )
- अल्पसंख्यक उपसमिति ( एच सी मुखर्जी )
- उच्चतम न्यायालय रचना समिति (चेयरमैन: सर बी. आर. अम्बेडकर)
- उपन्यास एवं नाटक समिति (चेयरमैन: आर. नागराजन)
- संविधानिक प्रावधान समिति (चेयरमैन: गोपालस्वामी अय्यंगार)
- आर्थिक संवर्धन समिति (चेयरमैन: जॉन मेयनर्ड केन्स)
- संघ एवं राज्यों के बीच सम्बंध समिति (चेयरमैन: जयकर्ण जयकर)
- विश्वसनीयता और आपातकाल समिति (चेयरमैन: जगजीवन राम)
- नगरीय प्रशासन समिति (चेयरमैन: के. वी. श्यामा शास्त्री)
- वित्त एवं खजाना समिति (चेयरमैन: जोन मेकले)
- संविधान के खंडों की संख्या और सामान्य संशोधन समिति (चेयरमैन: के. संदेशिव रायर)
- भाषा समिति (चेयरमैन: पंडित हरिदेव शर्मा जी गोस्वामी)
ये समितियाँ भारतीय संविधान के विभिन्न पहलुओं, विषयों, और मुद्दों पर काम करती थीं और उसके निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिए थे।
भारतीय संविधान की प्रारूप समिति (Drafting Committee)
भारतीय संविधान की प्रारूप समिति (Drafting Committee) संविधान निर्माण के लिए 29 अगस्त, 1947 को गठित की गई थी। यह समिति संविधान के मौलिक तथा संविधानिक प्रावधानों का निर्माण (नए भारतीय संविधान का मसौदा) करने के लिए जिम्मेदार थी। इसमें निम्नलिखित सात सदस्य सम्मिलित थे-
- डॉ. बी. आर. अंबेडकर (अध्यक्ष)
- एन. गोपालस्वामी आयंगर
- अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर
- डॉ. के. एम. मुंशी
- सैयद मोहम्मद सादुल्ला
- एन. माधव राऊ
- बी एल मित्तर के स्थान पर जिन्होंने खराब स्वास्थ्य के कारण त्यागपत्र दे दिया था।
- टी. टी. कृष्णामाचारी
- डी. पी. खेतान के स्थान पर जिनकी मृत्यु 1948 में हुई थी।
डॉ. बी.आर. अम्बेडकर समिति के अध्यक्ष थे और उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
संविधान सभा की महिला सदस्य
संविधान सभा में निम्न 15 महिला सदस्य थे –
- अम्मू स्वामीनाथन
- ऐनी मैस्करीन
- बेगम एजाज रसूल
- दक्ष्यानी वेल्यादुज
- जी. दुर्गाबाई
- हंसा मेहता
- कमला चौधरी
- लीला रे
- मालती चौधरी
- पूर्णिमा बनर्जी
- रेणुका राय
- सरोजनी नायडू
- राजकुमारी अमृत कौर
- सुचेता कृपलानी
- विजयलक्ष्मी पंडित
भारतीय संविधान की प्रस्तावना अथवा उद्देशिका
भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारतीय संविधान के आदर्शों, अपेक्षाओं, उद्देश्यों, लक्ष्य और दर्शन को प्रकट करने के लिए प्रस्तुत की जाती है। यह प्रस्तावना घोषित करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है और इसी कारण यह “हम भारत के लोग” वाक्य से प्रारंभ होती है। एक वाद (केहर सिंह बनाम भारत संघ) में कहा गया था कि संविधान सभा भारतीय जनता का सीधा प्रतिनिधित्व नहीं करती है, इसलिए संविधान को विधि की विशेष अनुकूलता प्राप्त नहीं हो सकती है, परंतु न्यायालय ने इसे खारिज करते हुए संविधान को सर्वोपरि मानते हुए न्यायलय ने कहा कि इस पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना इस प्रकार है :
“हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न, समाजवादी , पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को : सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”
संविधान की प्रस्तावना 13 दिसंबर 1946 को जवाहर लाल नेहरू द्वारा संविधान सभा में पेश की गई थी और इसे आमुख भी कहा जाता है। के एम मुंशी ने इस प्रस्तावना को ‘राजनीतिक कुण्डली’ के नाम से पुकारा है।
इसके अलावा, 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद, पंथनिरपेक्षता और अखण्डता जैसे शब्दों को जोड़ा गया। यह संशोधन विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मामलों को ध्यान में रखते हुए संविधान के मूल उद्देश्यों को पुनः प्रकट करता है।
26 जुलाई 1947 को गवर्नर जनरल ने पाकिस्तान के लिए पृथक संविधान सभा की घोषणा की।
भारत का संविधान की प्रस्तावना की मुख्य बातें
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में कुछ मुख्य बातें शामिल हैं:
- प्रस्तावना के अनुसार संविधान के अधीन समस्त शक्तियों का केंद्र विन्दु अथवा स्रोत भारत के लोग ही हैं।
- प्रस्तावना वास्तव में संविधान की प्रारंभिक भाग है जो संविधान के आदान-प्रादान को संदर्भित करता है और उसके मूल तत्त्वों, उद्देश्यों और विचारधारा को प्रकट करता है।
- प्रस्तावना भारतीय संविधान के मूल अध्यायों और अनुच्छेदों के बीच शामिल है। इसे ‘संविधान का पहचान पत्र’ भी कहा जाता है क्योंकि इसमें संविधान का मौलिक अंश व्यक्त होता है। यह प्रस्तावना विभिन्न नागरिकों के समान अधिकार, न्याय, समानता, स्वतंत्रता आदि के मूल्यों को प्रमुखता देती है।
- इसका महत्वपूर्ण उद्देश्य संविधान के निर्माण के पीछे की भावना और दिशा निर्देश बताना है।
- स्वतंत्र और समानता: प्रस्तावना स्वतंत्रता, समानता, और न्याय के मूल्यों को प्रमुखता देती है। इसका उद्देश्य एक समरस समाज के निर्माण को सुनिश्चित करना है जहां सभी नागरिकों को समानता के साथ अधिकार और विकास की संरक्षा मिले।
- लोकतंत्रिक तंत्र: प्रस्तावना में लोकतंत्र को स्थापित करने की बात की गई है। यह लोगों के राजनीतिक स्वतंत्रता, प्रतिनिधित्व, और जनसहभागिता को पुष्टि करता है। लोकतंत्र के माध्यम से नागरिकों को सत्ता का चयन करने और सरकार को जवाबदेह बनाने का अधिकार मिलता है।
- सामाजिक न्याय: प्रस्तावना में सामाजिक न्याय को प्राथमिकता दी गई है। इसका उद्देश्य अधिकार, विकास, और संरक्षण के जरिए समाज में विभेदों को कम करना है। समाजिक न्याय के माध्यम से, पिछड़े वर्गों, अस्पृश्य जातियों, महिलाओं, बच्चों, और अन्य संघर्ष करने वालों को समान अवसर और सुरक्षा की प्राप्ति होती है।
- एकीकृत राष्ट्र: प्रस्तावना में भारत के एकीकृत राष्ट्र के संरचनात्मक और आत्मनिर्भर निर्माण के लक्ष्य को उजागर किया गया है। इसका उद्देश्य भारतीय संघ के साथ संघीय और राज्य सरकारों के बीच समन्वय, सहयोग, और सामरस्य सुनिश्चित करना है।
- वैश्विक प्रतिष्ठा: प्रस्तावना में भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा, अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नेतृत्व, और विश्व समुदाय में उच्चतम मान्यता प्राप्त करने की बात कही गई है। इसका उद्देश्य भारत को ग्लोबल परिस्थितियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए सामरिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक विकास में सक्षम बनाना है।
- संविधान की प्रस्तावना को संविधान की कुंजी कहा जाता है।
- केशवानंद भारती वाद में सर्वोच्च न्यायलय ने मूल ढांचा का सिद्धांत तथा प्रस्तावना को मूल ढांचा माना।
- संसद संविधान की मूल ढांचा में नकारात्मक संसोधन नहीं कर सकती। संसद सिर्फ वैसा संसोधन ही कर सकती है जिससे मूल ढांचा का विस्तार हो तथा उसका मजबूतीकरण हो।
- 42 वें संविधान संसोधन अधिनियम 1976 ई. के माध्यम से इसमें ‘समाजवादी’, ‘पंथनिरपेक्ष’, और ‘राष्ट्र की अखंडता’ शब्द जोड़े गए।
ये कुछ मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में सम्मिलित किया गया है, जिनको भारत का संविधान (Constitution of India) की प्रस्तावना में प्राथमिकता मिली हैं। प्रस्तावना के अनुसार, नागरिकों को निश्चित मौलिक अधिकारों की प्राप्ति होनी चाहिए, जिनमें स्वतंत्रता, समानता, और न्याय शामिल हैं। यह मौलिक अधिकार न्यायालयों द्वारा संरक्षित होने चाहिए और राज्य इनका पालन करने और संरक्षण करने के लिए दायित्ववान होना चाहिए। प्रस्तावना में इसके साथ ही संविधान के विभिन्न नीति-निर्देशक तत्त्वों का रूपांतरण और नीति-निर्देशक तत्त्वों के महत्व की चर्चा भी की गई है।
संविधान की आत्मा: भाग 3 व 4 (नीति निर्देशक तत्त्व)
संविधान की आत्मा, जो भाग 3 और भाग 4 में प्रस्तुत है, नीति निर्देशक तत्त्वों पर आधारित है। यह भाग संविधान के मूल धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक नीतियों को स्थापित करने के लिए निर्देशित करता है। इन धार्मिक और सामाजिक मूल्यों के प्रति संविधान की प्रतिबद्धता भारतीय समाज की विशेषता और संघर्षों के बावजूद संविधानिक न्याय की गहरी प्राथमिकता को प्रकट करती है।
संविधान के भाग 3 तथा 4 को मिलाकर ‘संविधान की आत्मा तथा चेतना’ कहा गया है। क्योकि संविधान के भाग 3 और भाग 4 वास्तव में मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये तत्त्व एक स्वतंत्र राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण होते हैं। नीति-निर्देशक तत्व जनतांत्रिक संवैधानिक विकास के नवीनतम तत्त्व हैं और इन्हें पहली बार आयरलैंड के संविधान में शामिल किया गया था।
ये तत्त्व संविधान के विकास के साथ विकसित हुए हैं और एक जनकल्याणकारी राज्य की स्थापना करने का कार्य करते हैं। भारतीय संविधान के इस भाग में नीति-निर्देशक तत्वों को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया गया है, मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्वों के बीच अंतर बताया गया है और नीति-निर्देशक तत्वों के महत्व को समझाया गया है।
भाग 3 में नीति निर्देशक तत्त्वों की बात की गई है, जो निम्नलिखित हैं:
- समानता: संविधान उत्पन्न करने वाले मानवाधिकारों, न्याय, सामान्य और सामाजिक समानता के सिद्धांतों को प्रतिष्ठित करता है।
- न्याय: संविधान न्यायप्रणाली के माध्यम से न्यायपूर्ण और संवेदनशील न्याय सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित है।
- स्वतंत्रता: संविधान न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अधिकारिक संरचना के माध्यम से न्यायप्रणाली की सुरक्षा और स्थायित्व को सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करता है।
- विकास: संविधान विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय विकास के लिए नीतियों और योजनाओं की व्यवस्था करने का मार्ग प्रदान करता है।
- धर्मनिरपेक्षता: संविधान धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को प्रतिष्ठित करता है और धार्मिक अनुयायों के धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करता है।
ये तत्त्व समानता, न्याय, स्वतंत्रता, विकास और धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांतों को समर्थन करते हैं। इन आदर्शों के माध्यम से संविधान राष्ट्रीय विकास को सुनिश्चित करता है और भारतीय समाज में सामान्यता, न्याय और स्वतंत्रता के मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देता है।
मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)
इसे USA (अमेरिका) के संविधान से लिया गया है-
- समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद – 14 से 18)
- सवतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद – 19 से 22)
- शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद – 23 से 24)
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद – 25 से 28)
- संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार (अनुच्छेद – 29 से 30)
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद – 32)
अनुच्छेद 14 से 18: समता या समानता का अधिकार
यह अनुच्छेद समता के अधिकारों को संविधान में विस्तार से बताता है। इसमें सभी नागरिकों को समानता, विचारों, धर्म, जन्म, जाति और लिंग के आधार पर अनुचित भेदभाव के खिलाफ संरक्षण प्रदान किया गया है।
अनुच्छेद 19 से 22: स्वतंत्रता का अधिकार
इस अनुच्छेद में व्यक्ति की स्वतंत्रता और स्वतंत्रता के उपयोग के अधिकारों को दर्शाया गया है। इसमें व्यक्ति को वाणी, संगठन, संबंध, व्यापार, वाणिज्यिक गतिविधियों, और धर्मिक स्वतंत्रता के अधिकार प्रदान किए गए हैं।
अनुच्छेद 23 से 24: शोषण के विरुद्ध अधिकार
इन अनुच्छेदों में शोषण के खिलाफ संरक्षण के अधिकारों को दर्शाया गया है। यहां व्यक्ति को व्यापारिक शोषण, व्यावसायिक शोषण, और श्रमिकों के लिए मानवीय शर्तों का संरक्षण प्रदान किया गया है।
अनुच्छेद 25 से 28: धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
इस अनुच्छेद में व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को दर्शाया गया है। यहां व्यक्ति को अपने धर्म के अनुसार धर्म प्रचार, धर्मानुयायी कार्य, और अन्य धार्मिक क्रियाओं का अधिकार प्रदान किया गया है।
अनुच्छेद 29 से 30: संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार
इन अनुच्छेदों में संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकारों को दर्शाया गया है। यहां व्यक्ति को अपनी संस्कृति की संरक्षण, संचार, शिक्षा के अधिकार, और सांस्कृतिक मान्यताओं के संरक्षण का अधिकार प्रदान किया गया है।
अनुच्छेद 32: संवैधानिक उपचारों का अधिकार
यह अनुच्छेद व्यक्ति को संवैधानिक उपचारों के अधिकार का प्रदान करता है, जिसमें व्यक्ति को अपने मूल्यांकन, न्यायिक राजधानी, और विधिक प्रक्रिया के संबंध में संवैधानिक सुरक्षा प्राप्त होती है। यह संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में दिए गए मौलिक अधिकार हैं, जिन्हें भारतीय संविधान ने नागरिकों को प्रदान किया है। इन अधिकारों का उद्देश्य न्याय, समानता, स्वतंत्रता, और सामाजिक सुरक्षा की सुनिश्चितता करना है। इन अधिकारों का पालन और संरक्षण संविधान द्वारा निर्धारित होता है। और नागरिकों को संविधानिक सुरक्षा प्रदान की जाती है।
मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duty) अनुच्छेद -51 (क)
सरदार स्वर्ण सिंह समिति की अनुशंसा पर संविधान के 42वें संशोधन (1976 ई.) के द्वारा मौलिक कर्तव्य को संविधान में जोड़ा गया। यह 11 अनुच्छेदों की एक सूची है जो भारतीय संविधान के मूल्यों, नैतिकताओं और मौलिक कर्तव्यों को बढ़ावा देने के लिए जोड़े गए थे। इन मौलिक कर्तव्यों को रूस के संविधान से लिया गया था। यहां इस सूची के बारे में विस्तृत जानकारी है:
- संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करें।
- स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रखें।
- देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
- भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा व प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
- हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
- प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्यजीव आते हैं, की रक्षा और संवर्द्धन करें तथा प्राणीमात्र के लिये दया भाव रखें।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करें जिससे राष्ट्र प्रगति की और निरंतर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को प्राप्त किया जा सके।
- 6 से 14 वर्ष की आयु के बीच के अपने बच्चे बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करना। (इसे 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया।)
ये 11 मौलिक कर्तव्य भारतीय संविधान में संशोधन के माध्यम से जोड़े गए थे और उन्हें सरदार स्वर्ण सिंह समिति द्वारा सुझाया गया था। इन मौलिक कर्तव्यों का पालन देश के नागरिकों द्वारा किया जाना चाहिए ताकि समाज में न्याय, समानता, और सभ्यता की स्थापना हो सके।
भारतीय संविधान के भाग
भारतीय संविधान को कुल मिलाकर 25 भागों (मूल भाग 22 हैं) में विभाजित किया गया है। इन भागों को ‘अध्याय’ (chapter) कहा जा सकता है। हर भाग में कुछ अनुच्छेद होते हैं। जब हमारे संविधान की रचना हुई थी, तब इसमें 22 भाग, 395 धाराएं (articles) व 8 अनुसूचियां (schedules) थीं। संविधान में समय समय पर होने वाले संशोधनों के कारण आज भागों की कुल संख्या 25 हो गई है। तथा धाराएं (articles) की संख्या 448 एवं अनुसूचियों की संख्या 12 हो गयी है। इन भागों में स्थित प्रमुख विषयों का विवरण निम्नलिखित हैं :
- प्रस्तावना: यह भाग संविधान की प्रस्तावना (प्रीएम्बल) को संबोधित करता है और उसके प्रमुख उद्देश्यों और मूल्यों को व्यक्त करता है।
- संविधानिक मूलभूत अधिकार: इस भाग में मौलिक अधिकारों के संरक्षण और प्रदान के विषय में नियमों का विवरण है। इसमें अधिकारों की सूची (मूलभूत अधिकार) और उनका प्रमुख अर्थ शामिल हैं।
- नगरीय प्राधिकार: इस भाग में नगरीय स्थानीय स्वशासन संबंधी विवरण हैं, जिसमें नगरपालिकाओं और ग्राम पंचायतों के लिए व्यवस्थाओं का वर्णन है।
- राज्य प्रशासन: यह भाग राज्य सरकारों के संगठन, कार्य और सम्बंधित मामलों को विवरणित करता है।
- संघ प्रशासन: इस भाग में संघ सरकार के संगठन, कार्य और संघीय मामलों के विवरण हैं।
- राज्यों का विभाजन: इस भाग में भारत के राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के सीमांकन और संगठन का वर्णन है।
- न्यायिक प्रणाली: यह भाग भारतीय न्याय प्रणाली, उच्चतम न्यायालय और न्यायिक प्रक्रियाओं के बारे में नियमों का वर्णन करता है।
- केंद्रीय नियामक अधिकारी: इस भाग में केंद्रीय नियामक अधिकारियों और विभागों के संगठन और कार्य का विवरण है।
- भारतीय संघ: इस भाग में भारतीय संघ के संगठन, कार्य, सदस्यता और संघीय धारा का वर्णन है।
- विधानसभा: इस भाग में भारतीय विधानसभाओं के गठन, चुनाव और कार्यकाल के बारे में नियमों का वर्णन है।
- विधानपरिषद: इस भाग में विधानपरिषदों (लोक सभा) के गठन, चुनाव और कार्यकाल के बारे में नियमों का वर्णन है।
- भारतीय नागरिकता: इस भाग में भारतीय नागरिकता, नागरिकता के लिए नियमों और नागरिकता संबंधी मामलों का विवरण है।
- व्यापार: यह भाग व्यापार, वाणिज्यिक संबंध और वाणिज्यिक मामलों के विवरण का संक्षेप है।
- धर्माधिकार: इस भाग में धर्म, धर्माधिकार और धार्मिक स्थानों के संबंध में नियमों का वर्णन है।
- नगरीय एवं ग्रामीण विकास: इस भाग में नगरीय एवं ग्रामीण विकास, नगरीय योजना, नगर निगमों और ग्राम पंचायतों के विषय में नियमों का वर्णन है।
- संपत्ति एवं भूमि: इस भाग में संपत्ति, भूमि, भूगर्भ और संपत्ति के उपयोग संबंधी मामलों के विवरण है।
- जल, जलवायु और पर्यावरण: यह भाग जल, जलवायु, पर्यावरण, वन और वन्यजीव संरक्षण के बारे में नियमों का वर्णन है।
- आर्थिक विकास: इस भाग में आर्थिक विकास, वित्तीय प्रबंधन, वाणिज्यिक नीति और आर्थिक मामलों के विषय में नियमों का वर्णन है।
- सामाजिक न्याय और सामाजिक सुरक्षा: यह भाग सामाजिक न्याय, सामाजिक सुरक्षा, निर्माण और संरक्षण के विषय में नियमों का वर्णन है।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी: इस भाग में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, वैज्ञअर्गिक संगठन और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संबंधी मामलों के विवरण है।
- शिक्षा: इस भाग में शिक्षा, विश्वविद्यालय, तकनीकी शिक्षा और मानव संसाधन विकास के विषय में नियमों का वर्णन है।
- संघर्षों के निपटारे: इस भाग में संघर्षों के निपटारे, आपत्तियों और संघर्ष संबंधी मामलों के विवरण है।
- प्रदेशिक परिषद्: इस भाग में प्रदेशिक परिषदों के संगठन, कार्य और संबंधित मामलों का वर्णन है।
- पंचायतें: इस भाग में पंचायती राज, ग्राम पंचायतों, तालुका पंचायतों और जिला पंचायतों के बारे में नियमों का वर्णन है।
- संविधान के संशोधन: इस भाग में संविधान के संशोधन, संविधानिक संशोधन और संविधान में परिवर्तन के विषय में नियमों का वर्णन है।
यहां दिए गए विवरण में भारतीय संविधान के मुख्य भागों का संक्षेप है, जो संविधान की व्यापक संरचना और विषयों को प्रतिष्ठित करते हैं। संविधान के अन्य भाग और अनुभागों में भी विशेष विषयों पर नियमों का वर्णन होता है।
भारतीय संविधान के भाग, विषय एवं अनुच्छेद की सारणी
यह सारणी भारतीय संविधान के भागों के साथ उनके मौजूद अनुच्छेदों को विस्तारपूर्वक समझने में मदद करेगी। संविधान के प्रत्येक भाग के साथ उसमे मौजूद अनुच्छेदों की संख्या भी उल्लेखित है।
भाग | विषय | अनुच्छेद |
---|---|---|
भाग 1 | संघ और उसके क्षेत्र | 1-4 |
भाग 2 | नागरिकता | 5-11 |
भाग 3 | मूलभूत अधिकार | 12-35 |
भाग 4 | राज्य के नीति निदेशक तत्त्व | 36-51 |
भाग 4A | मूल कर्तव्य | 51A |
भाग 5 | संघ | 52-151 |
भाग 6 | राज्य | 152-237 |
भाग 7 | संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 द्वारा निरसित | 238 |
भाग 8 | संघ राज्य क्षेत्र | 239-242 |
भाग 9 | पंचायत | 243-243O |
भाग 9A | नगरपालिकाएँ | 243P-243ZG |
भाग 10 | अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र | 244-244A |
भाग 11 | संघ और राज्यों के बीच सम्बन्ध | 245-263 |
भाग 12 | वित्त, सम्पत्ति, संविदाएँ और वाद | 264-300A |
भाग 13 | भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम | 301-307 |
भाग 14 | संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ | 308-323 |
भाग 14A | अधिकरण | 323A-323B |
भाग 15 | निर्वाचन | 324-329A |
भाग 16 | कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध सम्बन्ध | 330-342 |
भाग 17 | राजभाषा | 343-351 |
भाग 18 | आपात उपबंध | 352-360 |
भाग 19 | प्रकीर्ण | 361-367 |
भाग 20 | संविधान के संशोधन | 368 |
भाग 21 | अस्थाई संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध | 369-392 |
भाग 22 | संक्षिप्त नाम, प्रारम्भ, हिन्दी में प्राधिकृत पाठ और निरसन | 393-395 |
भारतीय संविधान के भाग: विस्तृत विवरण
भारतीय सविधान (Indian Constitution) के भागों का विस्तृत विवरण निम्नलिखित है –
भाग 1: संघ और उसके क्षेत्र (अनुच्छेद 1-4)
भारतीय संविधान के भाग 1 “संघ और उसके क्षेत्र” को चार अनुच्छेदों में विभाजित किया गया है। इन अनुच्छेदों के विस्तृत विवरण निम्नलिखित हैं:
अनुच्छेद 1: संघ का नाम, क्षेत्र और भाषा – इस अनुच्छेद में, भारत के संघ का नाम “भारत” रखा गया है। इसके अलावा, संघ के क्षेत्र की विस्तार सीमा और भाषा के संबंध में भी दिशा-निर्देश दिए गए हैं।
अनुच्छेद 2: संघीय राज्यों के भूमिका और नागरिकता – इस अनुच्छेद में, संघीय राज्यों की भूमिका और नागरिकता के मामले पर विवरण दिया गया है। यह अनुच्छेद राज्यों के अधिकार, संघीय और राज्य सरकारों के संघर्षों, नागरिकता के मामलों और नागरिकों के अधिकारों को संरक्षित करने के बारे में प्रावधान करता है।
अनुच्छेद 3: संघीय संरचना – यह अनुच्छेद संघीय संरचना के मामलों पर प्रदान करता है। यह विवरण देता है कि कैसे संघ और राज्य सरकारों के बीच शक्ति विभाजन होगा, केंद्रीय और राज्य सरकारों के अधिकारों की सीमाएं होंगी, संघ और राज्यों के बीच विभाजन के बारे में तथ्य प्रदान करता है।
अनुच्छेद 4: संघीय संसद – इस अनुच्छेद में, संघीय संसद के गठन, सदस्यों की चयन प्रक्रिया, सदस्यों की पात्रता, संघीय संसद की अधिवेशन, नेता और सभापति के चयन के बारे में विवरण दिया गया है। इसके अलावा, संघीय संसद की कार्यवाही, वोटिंग, संघीय विधान निर्माण और संशोधन के बारे में भी प्रावधान किया गया है।
ये चार अनुच्छेद भाग 1 के अंतर्गत प्रमुख विषयों को विस्तार से व्याख्यान करते हैं, जो संघ और उसके क्षेत्र को संबंधित करते हैं।
भाग 2: नागरिकता (अनुच्छेद 5-11)
भाग 2 “नागरिकता” भारतीय संविधान के अनुच्छेद 5 से 11 तक को संघर्ष, नागरिकता के प्रावधान और नागरिकता से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है। यहां नीचे इन अनुच्छेदों की संक्षेप में विवरण दिया गया है:
अनुच्छेद 5: नागरिकता की परिभाषा- इस अनुच्छेद में नागरिकता की परिभाषा और नागरिकता प्राप्ति के विभिन्न तरीकों के बारे में विवरण दिया गया है।
अनुच्छेद 6: प्रधान नागरिकता- यह अनुच्छेद नागरिकता के प्रधान अधिकार और उससे संबंधित दायित्वों के बारे में प्रावधान करता है।
अनुच्छेद 7: नागरिकता लेने और बहिष्कृति करने के तरीके – इस अनुच्छेद में नागरिकता के प्राप्ति और नागरिकता से वंचित करने के प्रक्रियाओं के बारे में विवरण दिया गया है।
अनुच्छेद 8: विदेशी नागरिकता – यह अनुच्छेद विदेशी नागरिकता और उससे संबंधित मुद्दों पर प्रावधान करता है, जैसे कि विदेशी नागरिकों के अधिकार और उनके प्रतिबंध।
अनुच्छेद 9: देशांतर- इस अनुच्छेद में देशांतर के प्रावधानों और देशांतर का परिभाषित किया गया है।
अनुच्छेद 10: नागरिकता के अधिकार – यह अनुच्छेद नागरिकता के अधिकारों को संरक्षित करने और उन्हें संघर्षों से सुरक्षित करने के बारे में प्रावधान करता है।
अनुच्छेद 11: प्रदेशिक संघर्ष – यह अनुच्छेद प्रदेशिक संघर्षों के मामलों पर प्रावधान करता है और उन्हें नागरिकता से संबंधित विवादों के तहत सुलझाने के बारे में विवरण प्रदान करता है।
भाग 2 के अनुच्छेदों में नागरिकता, नागरिकता प्राप्ति, विदेशी नागरिकता, नागरिकता के अधिकार और नागरिकता से संबंधित विवादों को संघर्ष करने के नियम और प्रावधानों के बारे में विस्तृतता से बताया गया है।
भाग 3 : मूलभूत अधिकार (अनुच्छेद 12-35)
भाग 3 “मूलभूत अधिकार” भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 तक को मूलभूत अधिकारों के प्रावधानों पर ध्यान केंद्रित करता है। यहां नीचे इन अनुच्छेदों की संक्षेप में विवरण दिया गया है:
अनुच्छेद 12: जीवन, व्यक्तित्व और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हक़ – इस अनुच्छेद में मानव जीवन, व्यक्तित्व और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हक़ों के प्रावधान किए गए हैं।
अनुच्छेद 13: गवाही देने और आरोपित होने की अधिकार – यह अनुच्छेद गवाही देने और आरोपित होने के संबंध में अधिकारों को संरक्षित करता है।
अनुच्छेद 14: समानता का हक़ – इस अनुच्छेद में सभी नागरिकों के लिए समानता के हक़ों के प्रावधान किए गए हैं।
अनुच्छेद 15: धर्मानुयाय का हक़ -यह अनुच्छेद धर्मानुयाय के हक़ों को संरक्षित करता है और निर्धारित करता है कि कोई व्यक्ति धार्मिक भावनाओं के कारण अन्याय नहीं सहना पड़ेगा।
अनुच्छेद 16: सम्पत्ति का हक़ – इस अनुच्छेद में सम्पत्ति के हक़ों के प्रावधान किए गए हैं और निर्धारित किया गया है कि कोई व्यक्ति अन्यायपूर्ण संपत्ति के हड़पने से बचाया जाएगा।
अनुच्छेद 17: संबंधित व्यवस्था का हक़ – यह अनुच्छेद नागरिकों को संबंधित व्यवस्थाओं के हक़ों का आनंद उठाने का अधिकार प्रदान करता है।
अनुच्छेद 18: व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हक़ – इस अनुच्छेद में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हक़ों के प्रावधान किए गए हैं और निर्धारित किया गया है कि कोई व्यक्ति अन्यायपूर्ण व्यक्तिगत स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबंध नहीं होगा।
अनुच्छेद 19: आराधना की स्वतंत्रता का हक़ – यह अनुच्छेद आराधना की स्वतंत्रता के हक़ों को संरक्षित करता है और निर्धारित करता है कि कोई व्यक्ति अपने धर्म को अपनी पसंद के अनुसार मनाने में विराम नहीं लगा सकता।
अनुच्छेद 20: संघर्ष करने का हक़ – इस अनुच्छेद में संघर्ष करने के हक़ों को संरक्षित करने और निर्धारित करने का प्रावधान किया गया है।
अनुच्छेद 21: जीवन सुरक्षा का हक़ – यह अनुच्छेद जीवन सुरक्षा के हक़ों के प्रावधान करता है और निर्धारित करता है कि कोई व्यक्ति बेजान दंड के द्वारा नहीं मारा जा सकता।
अनुच्छेद 22: ज़ुल्म से बचाने का हक़ – इस अनुच्छेद में ज़ुल्म से बचाने के हक़ों को संरक्षित करने और निर्धारित करने का प्रावधान किया गया है।
अनुच्छेद 23: श्रम का हक़ – यह अनुच्छेद श्रम के हक़ों के प्रावधान करता है और निर्धारित करता है कि कोई व्यक्ति उचित वेतन और उचित कार्य स्थितियों का आनंद उठाने का हक़ रखता है।
अनुच्छेद 24: बच्चों का हक़ – इस अनुच्छेद में बच्चों के हक़ों के प्रावधान किए गए हैं और निर्धारित किया गया है कि हर बच्चे को शिक्षा, सुरक्षा और उनके भविष्य की रक्षा का हक़ है।
अनुच्छेद 25: महिलाओं का हक़ – यह अनुच्छेद महिलाओं के हक़ों के प्रावधान करता है और निर्धारित करता है कि कोई महिला अन्याय, उत्पीड़न और शोषण के शिकार नहीं हो सकती है।
अनुच्छेद 26: आर्थिक मदद का हक़ – इस अनुच्छेद में आर्थिक मदद के हक़ों के प्रावधान किए गए हैं और निर्धारित किया गया है कि किसी व्यक्ति को आर्थिक रूप से सहायता प्राप्त करने का हक़ है।
अनुच्छेद 27: आदर्श वाणी का हक़ – यह अनुच्छेद आदर्श वाणी के हक़ों के प्रावधान करता है और निर्धारित करता है कि किसी व्यक्ति को अपनी आदर्श वाणी को अभिव्यक्त करने का हक़ है।
अनुच्छेद 28: मानव संसाधनों का हक़ – इस अनुच्छेद में मानव संसाधनों के हक़ों के प्रावधान किए गए हैं और निर्धारित किया गया है कि किसी व्यक्ति को उचित मानव संसाधनों का उपयोग करने का हक़ है।
अनुच्छेद 29: सद्भावना का हक़ – यह अनुच्छेद सद्भावना के हक़ों को संरक्षित करता है और निर्धारित करता है कि कोई व्यक्ति किसी समुदाय के साथी के रूप में सद्भावना के साथ जीने का हक़ रखता है।
अनुच्छेद 30: बचाव गार्ड का हक़ – इस अनुच्छेद में बचाव गार्ड के हक़ों को संरक्षित करता है और निर्धारित करता है कि किसी व्यक्ति को अपनी बचाव गार्ड के साथ अपने आप की रक्षा करने का हक़ है।
अनुच्छेद 31: यात्रा का हक़ – यह अनुच्छेद यात्रा के हक़ों को संरक्षित करता है और निर्धारित करता है कि किसी व्यक्ति को स्वतंत्रता के साथ देश के अंदर यात्रा करने का हक़ है।
अनुच्छेद 32: व्यापार का हक़ – इस अनुच्छेद में व्यापार के हक़ों को संरक्षित करता है और निर्धारित करता है कि किसी व्यक्ति को व्यापार करने का और व्यापार की सुरक्षा का हक़ है।
अनुच्छेद 33: कर्मचारियों का हक़ – यह अनुच्छेद कर्मचारियों के हक़ों के प्रावधान करता है और निर्धारित करता है कि कोई कर्मचारी अनुचित काम, अनुचित वेतन या अनुचित संबंधों के ख़िलाफ़ सुरक्षा का हक़ रखता है।
अनुच्छेद 34: अध्यापन का हक़ – इस अनुच्छेद में अध्यापन के हक़ों को संरक्षित करता है और निर्धारित करता है कि कोई व्यक्ति अपने शिक्षा-अध्यापन के क्षेत्र में उचित संरचना, सुरक्षा और स्वतंत्रता का हक़ रखता है।
अनुच्छेद 35: मानव साधारण का हक़ – यह अनुच्छेद मानव साधारण के हक़ों के प्रावधान करता है और निर्धारित करता है कि कोई व्यक्ति साधारण जीवन के उचित दायित्वों का आनंद उठाने का हक़ रखता है।
भाग 4: राज्य के नीति निदेशक तत्त्व (अनुच्छेद 36-51)
भाग 4 में भारतीय संविधान के राज्य के नीति निदेशक तत्त्व (अनुच्छेद 36 से 51) के विवरण हैं। यह भाग राज्य की नीतियों, नीति निर्धारण के तत्वों और निदेशक आदेशों को परिभाषित करता है। इस भाग में निम्नलिखित अनुच्छेद शामिल हैं:
अनुच्छेद 36: राज्य की अधिकारिकता – यह अनुच्छेद राज्य की अधिकारिकता को संरक्षित करता है और निर्धारित करता है कि केवल राज्य सरकार के द्वारा निर्धारित किये गए कार्यों को निष्पादित किया जाना चाहिए।
अनुच्छेद 37: राज्य के नीतिगत दिशानिर्देश – इस अनुच्छेद में राज्य के नीतिगत दिशानिर्देशों के प्रावधान किए गए हैं और निर्धारित किया गया है कि राज्य सरकार को किसी विशेष कार्य को प्राथमिकता देने का हक़ है।
अनुच्छेद 38: राज्यों की वित्तीय अधिकारिता – यह अनुच्छेद राज्यों को वित्तीय अधिकारिता की सुरक्षा और वित्तीय स्वतंत्रता के प्रावधान करता है।
अनुच्छेद 39: सामान्य निदेशकों की स्थापना – इस अनुच्छेद में सामान्य निदेशकों की स्थापना के प्रावधान किए गए हैं, जिनका कार्य राज्य सरकारों की सहायता, परामर्श और निर्देशन करना होता है।
अनुच्छेद 40: नगर निकायों की रचना – यह अनुच्छेद नगर निकायों की रचना, प्रशासनिक संरचना और कार्यक्षेत्र के प्रावधान करता है।
अनुच्छेद 41: ग्राम सभाओं की स्थापना – इस अनुच्छेद में ग्राम सभाओं की स्थापना, प्रशासनिक संरचना और कार्यक्षेत्र के प्रावधान करता है।
अनुच्छेद 42: नगरीय क्षेत्रों में पारदर्शिता – यह अनुच्छेद नगरीय क्षेत्रों में पारदर्शिता और जनसमूहों की सहभागिता के प्रावधान करता है।
अनुच्छेद 43: संघ, राज्य और नगरीय क्षेत्रों के मध्य सम्बंध – इस अनुच्छेद में संघ, राज्य और नगरीय क्षेत्रों के मध्य सम्बंधों के प्रावधान करता है और निर्धारित करता है कि राज्य सरकारों को नगरीय क्षेत्रों की सहायता और सहयोग करना चाहिए।
अनुच्छेद 44: अर्थव्यवस्था की योजना – यह अनुच्छेद अर्थव्यवस्था की योजना और वित्तीय संस्थाओं के प्रावधान करता है।
अनुच्छेद 45: बाल विकास – इस अनुच्छेद में बाल विकास के प्रावधान किए गए हैं और निर्धारित किया गया है कि राज्य सरकारों को बाल विकास के लिए कार्रवाई करनी चाहिए।
अनुच्छेद 46: पुंजीपति एवं सार्वजनिक खजाना – यह अनुच्छेद पुंजीपति एवं सार्वजनिक खजाने के प्रावधान करता है और निर्धारित करता है कि राज्य सरकारों को अपने पुंजीपति का प्रबंधन करना चाहिए।
अनुच्छेद 47: पुनर्निर्माण एवं विकास – इस अनुच्छेद में पुनर्निर्माण एवं विकास के प्रावधान किए गए हैं और निर्धारित किया गया है कि राज्य सरकारों को विकास कार्यों को प्रबंधित करना चाहिए।
अनुच्छेद 48: क्रियान्वयन और पुरस्कार – यह अनुच्छेद क्रियान्वयन और पुरस्कार के प्रावधान करता है और निर्धारित करता है कि राज्य सरकारों को क्रियान्वयन कार्यों को समर्पित करना चाहिए।
अनुच्छेद 49: नगरीय संपत्ति एवं स्थानीय आय – इस अनुच्छेद में नगरीय संपत्ति और स्थानीय आय के प्रावधान किए गए हैं और निर्धारित किया गया है कि राज्य सरकारों को अपने संपत्ति और आय का प्रबंधन करना चाहिए।
अनुच्छेद 50: एकीकरण – यह अनुच्छेद एकीकरण के प्रावधान करता है और निर्धारित करता है कि राज्य सरकारों को सहयोग करना चाहिए और एकीकरण कार्यों को संचालित करना चाहिए।
अनुच्छेद 51: प्राथमिकता के आधार पर राज्यों का अंगीकार – इस अनुच्छेद में प्राथमिकता के आधार पर राज्यों का अंगीकार के प्रावधान किए गए हैं और निर्धारित किया गया है कि राज्य सरकारों को नियत कार्यों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
भाग 4A : मूल कर्तव्य (अनुच्छेद 51A)
भारतीय संविधान के भाग 4A में “मूल कर्तव्य” (अनुच्छेद 51A) के प्रावधान हैं। इस अनुच्छेद में नागरिकों के मूल कर्तव्यों की व्याख्या और महत्व को परिभाषित किया गया है। यह अनुच्छेद नागरिकों को भारतीय संविधान के मानवीय और नैतिक मूल्यों के प्रति संवेदनशील बनाने का ध्यान देता है।
अनुच्छेद -51 (क) के अनुसार, नागरिकों के मूल कर्तव्य निम्नलिखित हैं:
- संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का सम्मान करें ।
- स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें और उनका सम्मान करें ।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें ।
- देश की रक्षा करें और युद्ध इत्यादि की स्थिति में आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें ।
- भारत के सभी लोगों में समरसता और भाईचारे की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी भेदभाव से परे हों तथा ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं ।
- हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझें और उसका परिरक्षण करें ।
- पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उसका संवर्धन करें तथा प्राणिमात्र के प्रति दया भाव रखें ।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें ।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें ।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊचाइयों को छूने में सक्षम हो ।
- 6 से 14 वर्ष तक की उम्र के बीच अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराएं (यह कर्तव्य 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के द्वारा जोड़ा गया) ।
भाग 5 : संघ (अनुच्छेद 52-151)
भारतीय संविधान के भाग 5 में “संघ” के विषय में अनुच्छेद 52 से 151 तक होते हैं। इस भाग में संघ की संगठन, कार्यप्रणाली, शक्तियाँ, निर्वाचन, न्यायपालिका, राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति और अन्य संघीय विषयों को संबंधित किया गया है। इस भाग की अहम विषय वस्तुएं निम्नलिखित हैं:
- अनुच्छेद 52: संघ की संगठन
- अनुच्छेद 53: संघ की कार्यपालिका शक्ति
- अनुच्छेद 54: राष्ट्रपति का निर्वाचन
- अनुच्छेद 55: राष्ट्रपति के निर्वाचन प्रणाली
- अनुच्छेद 56: राष्ट्रपति की पदावधि
- अनुच्छेद 57: पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता
- अनुच्छेद 58: राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए आहर्ताएं
- अनुच्छेद 59: राष्ट्रपति के निर्वाचन में प्रचार प्रसार
- अनुच्छेद 60: राष्ट्रपति की शपथ
- अनुच्छेद 61: राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया
- अनुच्छेद 62: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पद संबंधित मुद्दे
- अनुच्छेद 63: भारत का उप-राष्ट्रपति
- अनुच्छेद 64: उप-राष्ट्रपति का राज्यसभा का पदेन सभापति होना
- अनुच्छेद 65: राष्ट्रपति के पद की रिक्ति पर उप-राष्ट्रपति के कार्य
- अनुच्छेद 66: उप-राष्ट्रपति का निर्वाचन
- अनुच्छेद 67: उप-राष्ट्रपति की पदावधि
- अनुच्छेद 68: उप-राष्ट्रपति के पद की रिक्ति पर निर्वाचन
- अनुच्छेद 69: उप-राष्ट्रपति द्वारा शपथ
- अनुच्छेद 70: राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन अकाल में
- अनुच्छेद 71: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधित मुद्दे
- अनुच्छेद 72: क्षमादान की शक्ति
- अनुच्छेद 73: संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
- अनुच्छेद 74: राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए मन्त्रिपरिषद
- अनुच्छेद 75: मन्त्रियों के बारे में उपबंध
- अनुच्छेद 76: भारत का महान्यायवादी
- अनुच्छेद 77: भारत सरकार के कार्य का संचालन
- अनुच्छेद 78: राष्ट्रपति को जानकारी देने के प्रधानमंत्री के कर्तव्य
- अनुच्छेद 79: संसद का गठन
- अनुच्छेद 80: राज्य सभा की संरचना
- अनुच्छेद 81: लोकसभा की संरचना
- अनुच्छेद 82: लोकसभा के सदस्यों के लिए अहर्ता
- अनुच्छेद 83: संसद के सदनों की अवधि
- अनुच्छेद 84: संसद के सदस्यों के लिए निर्वाचन
- अनुच्छेद 85: संसद का सत्र सत्रावसान और विघटन
- अनुच्छेद 86: संसद के सदस्यों के पारितोष और उनकी विधि
- अनुच्छेद 87: राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण
- अनुच्छेद 88: राज्यसभा के अधिवेशन का नियमन
- अनुच्छेद 89: लोकसभा के अधिवेशन का नियमन
- अनुच्छेद 90: संसदीय समितियों का गठन और कार्यवाही
- अनुच्छेद 91: संसद की समितियों के प्रमुख
- अनुच्छेद 92: संसदीय अधिवक्ता
- अनुच्छेद 93: अधिवक्ता और संवादाता के प्रति निर्विषयता
- अनुच्छेद 94: संसद की शक्तियों, विधियों और प्राधिकारों की सुरक्षा
- अनुच्छेद 95: संसद की सभाओं का सीमानिर्धारण
- अनुच्छेद 96: संसद की सभाओं की आवृत्ति की सूचना
- अनुच्छेद 97: विधान परिषद का राष्ट्रीय निधि सुरक्षा परिषद के उद्घाटन
- अनुच्छेद 98: राष्ट्रीय निधि सुरक्षा परिषद की शक्तियाँ और कार्यवाही
- अनुच्छेद 99: राष्ट्रीय निधि सुरक्षा परिषद की गणना और सदस्यता
- अनुच्छेद 100: विशेष अधिकारों का प्रदर्शन और बचाव
- अनुच्छेद 101: प्रभावी न्यायिक प्रणाली का सुनिश्चित करना
- अनुच्छेद 102: स्थानीय स्वशासन
- अनुच्छेद 103: नगरीय स्वशासन
- अनुच्छेद 104: ग्राम सभाओं का गठन
- अनुच्छेद 105: ग्राम सभा की अवाधि
- अनुच्छेद 106: नगर पंचायतों का गठन
- अनुच्छेद 107: नगर पंचायत की अवाधि
- अनुच्छेद 108: नगरीय क्षेत्रों के लिए पंचायत समितियाँ
- अनुच्छेद 109: वित्तीय निधि और पंचायती राज
- अनुच्छेद 110: पंचायती राज के लिए वित्तीय निधि
- अनुच्छेद 111: ग्राम सभा, नगर पंचायत और पंचायत समितियों के लिए निर्वाचन
- अनुच्छेद 112: निर्वाचन आयोग
- अनुच्छेद 113: राष्ट्रपति के आदेश और उपदेश
- अनुच्छेद 114: संघीय न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारियों के वेतन
- अनुच्छेद 115: प्रदेश न्यायपालिका
- अनुच्छेद 116: विशेष अधिकार न्यायपालिका
- अनुच्छेद 117: उपन्यासिक न्यायपालिका
- अनुच्छेद 118: उच्चतम न्यायालय का प्रारंभ अनुच्छेद
- 119: उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या
- अनुच्छेद 120: उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यता और नियुक्ति
- अनुच्छेद 121: प्रदेश के संघीय निकायों के गठन
- अनुच्छेद 122: नगर निकायों के संघीय निकायों में प्रवेश
- अनुच्छेद 123: नगरीय स्वशासन और ग्राम सभा के संघीय निकायों में प्रवेश
- अनुच्छेद 124: ग्राम सभा, नगर पंचायत और पंचायत समिति के अध्यक्षों के चयन
- अनुच्छेद 125: पंचायत समितियों के अध्यक्षों का कार्यकाल
- अनुच्छेद 126: पंचायत समिति, ग्राम सभा और नगर पंचायत के सदस्यों के चयन
- अनुच्छेद 127: पंचायत समिति, ग्राम सभा और नगर पंचायत के सदस्यों की अवधि
- अनुच्छेद 128: पंचायती राज में वित्तीय निधि का प्रबंधन
- अनुच्छेद 129: प्रदेश की निधि निगम
- अनुच्छेद 130: पंचायती राज में न्यायिक प्रणाली
- अनुच्छेद 131: प्रदेश न्यायाधीशों का पदनाम, योग्यता और नियुक्ति
- अनुच्छेद 132: प्रदेश न्यायाधीशों की सेवा की शर्तें
- अनुच्छेद 133: प्रदेश उच्च न्यायालयों का संघ
- अनुच्छेद 134: विशेष न्यायाधिकारी
- अनुच्छेद 135: उच्चतम न्यायालय और प्रदेश उच्च न्यायालय के विवाद
- अनुच्छेद 136: सशस्त्र बल के संघीय निकायों के गठन
- अनुच्छेद 137: सशस्त्र बलों की प्रशासनिक व्यवस्था
- अनुच्छेद 138: राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद्
- अनुच्छेद 139: सशस्त्र बलों के न्यायिक अधिकारी
- अनुच्छेद 140: उन्नत गतिशीलता एवं शौर्य पदक
- अनुच्छेद 141: वीरता पुरस्कार
- अनुच्छेद 142: सशस्त्र बलों के न्यायाधिकारी की सेवा शर्तें
- अनुच्छेद 143: राष्ट्रीय रक्षा अकादमी
- अनुच्छेद 144: सशस्त्र बलों के प्रमुख सचिव
- अनुच्छेद 145: सशस्त्र बलों का सैन्य निदेशक
- अनुच्छेद 146: नागरिकों के रक्षण की शक्ति
- अनुच्छेद 147: सामान्य आपत्ति की अवधारणा
- अनुच्छेद 148: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण
- अनुच्छेद 149: आपदा प्रबंधन
- अनुच्छेद 150: आपदा प्रबंधन के लिए विधायी प्रावधान
- अनुच्छेद 151: न्यायाधिकरण के अधीन न्यायालयों का संघ
ये थे भाग 5 में “संघ” के अनुच्छेदों की संक्षेप में विवरण।
भाग 6 : राज्य (अनुच्छेद 152-237)
भाग 6 “राज्य” भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण भाग है जो राज्यों की संगठन और कार्यविधि को विन्यस्त करता है। यह भाग अनुच्छेद 152 से 237 तक तक है। यहां इस भाग के कुछ महत्वपूर्ण अनुच्छेदों का संक्षेपिक विवरण दिया गया है:
- अनुच्छेद 152-167: इन अनुच्छेदों में राज्यों के गवर्नर, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, न्यायपालिका, विधानसभा और विधानपरिषद की स्थापना, कार्यविधि, अधिकार और प्रक्रियाओं का विवरण दिया गया है।
- अनुच्छेद 152: राज्य सभा की संरचना
- अनुच्छेद 153: राज्य सभा के सदस्यों का पदेन
- अनुच्छेद 154: राज्य सभा के अध्यक्ष का पदेन
- अनुच्छेद 155: राज्य सभा की उपसभा
- अनुच्छेद 156: राज्य सभा की उपसभा के नेता
- अनुच्छेद 157: राज्य सभा के निर्वाचित सदस्यों की पदावधि
- अनुच्छेद 158: राज्य सभा के चुनाव
- अनुच्छेद 159: राज्य सभा के सदस्यों की पात्रता
- अनुच्छेद 160: राज्य सभा के निर्वाचन प्रक्रिया
- अनुच्छेद 161: राज्य सभा के सदस्यों की कार्यक्षेत्र
- अनुच्छेद 162: राज्य सभा की पदावधि के लिए पात्रता
- अनुच्छेद 163: राज्य सभा की पदावधि के लिए आहर्ताएं
- अनुच्छेद 164: राज्य सभा के सदस्यों के निर्वाचन की प्रक्रिया
- अनुच्छेद 165: राज्य सभा के सदस्यों का पदेन
- अनुच्छेद 166: राज्य सभा के नेता का पदेन
- अनुच्छेद 167: राज्य सभा की सभापति का पदेन
- अनुच्छेद 168-212: यहां राज्यों के विभिन्न संघीय संस्थानों और विभाजनों के बारे में विवरण प्रदान किया गया है, जैसे राज्यलोकसेवा आयोग, लोकायुक्त, वित्त आयोग, भू-माफिया विभाग, पुलिस, ग्राम पंचायत, जिला पंचायत आदि।
- अनुच्छेद 168: राष्ट्रपति का पदावधि
- अनुच्छेद 169: राष्ट्रपति के पद की रिक्ति
- अनुच्छेद 170: राष्ट्रपति के कार्य
- अनुच्छेद 171: राष्ट्रपति की पदावधि के लिए पात्रता
- अनुच्छेद 172: राष्ट्रपति की पदावधि के लिए आहर्ताएं
- अनुच्छेद 173: राष्ट्रपति के निर्वाचन की प्रक्रिया
- अनुच्छेद 174: राष्ट्रपति का पदेन
- अनुच्छेद 175: राष्ट्रपति का पदेन के लिए पात्रता
- अनुच्छेद 176: राष्ट्रपति का पदेन की प्रक्रिया
- अनुच्छेद 177: उप-राष्ट्रपति का पदावधि
- अनुच्छेद 178: उप-राष्ट्रपति के पद की रिक्ति
- अनुच्छेद 179: उप-राष्ट्रपति के कार्य
- अनुच्छेद 180: उप-राष्ट्रपति की पदावधि के लिए पात्रता
- अनुच्छेद 181: उप-राष्ट्रपति की पदावधि के लिए आहर्ताएं
- अनुच्छेद 182: उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन की प्रक्रिया
- अनुच्छेद 183: उप-राष्ट्रपति का पदेन
- अनुच्छेद 184: उप-राष्ट्रपति का पदेन के लिए पात्रता
- अनुच्छेद 185: उप-राष्ट्रपति का पदेन की प्रक्रिया
- अनुच्छेद 186: नागरिकों के लिए अपाराधिक न्यायप्रणाली
- अनुच्छेद 187: न्यायिक पदों की स्थापना
- अनुच्छेद 188: न्यायिक सेवा की स्थापना
- अनुच्छेद 189: न्यायपालिका की स्थापना
- अनुच्छेद 190: न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति
- अनुच्छेद 191: न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए पात्रता
- अनुच्छेद 192: न्यायिक सेवा के सदस्यों का पदेन
- अनुच्छेद 193: न्यायिक सेवा के सदस्यों की पात्रता
- अनुच्छेद 194: न्यायिक सेवा के सदस्यों की वेतन और आवंटन
- अनुच्छेद 195: विधिक परामर्शाधीशों की स्थापना
- अनुच्छेद 196: विधिक परामर्शाधीशों की पदावधि
- अनुच्छेद 197: विधिक परामर्शाधीशों का पदेन
- अनुच्छेद 198: विधिक परामर्शाधीशों की पात्रता
- अनुच्छेद 199: विधिक परामर्शाधीशों की वेतन और आवंटन
- अनुच्छेद 200: वकीलों के पद की स्थापना
- अनुच्छेद 201: वकीलों की पदावधि
- अनुच्छेद 202: वकीलों का पदेन
- अनुच्छेद 203: वकीलों की पात्रता
- अनुच्छेद 204: वकीलों की वेतन और आवंटन
- अनुच्छेद 205: न्यायपालिका के अन्य कर्मचारियों की स्थापना
- अनुच्छेद 206: न्यायपालिका के अन्य कर्मचारियों का पदेन
- अनुच्छेद 207: न्यायपालिका के अन्य कर्मचारियों की पात्रता
- अनुच्छेद 208: न्यायपालिका के अन्य कर्मचारियों की वेतन और आवंटन
- अनुच्छेद 209: राष्ट्रीय आपत्ति सेवा
- अनुच्छेद 210: राष्ट्रीय आपत्ति सेवा के सदस्यों की स्थापना
- अनुच्छेद 211: राष्ट्रीय आपत्ति सेवा के सदस्यों का पदेन
- अनुच्छेद 212: राष्ट्रीय आपत्ति सेवा के सदस्यों की पात्रता
- अनुच्छेद 213-237: इन अनुच्छेदों में राज्यों की शक्तियों, कर्तव्यों, अधिकारों, संबंधों और उत्तरदायित्वों का विवरण दिया गया है, जैसे राज्यों की धार्मिक स्वतंत्रता, भाषा, संस्कृति, शिक्षा, कृषि, सार्वजनिक स्वास्थ्य, संपत्ति, न्यायपालिका, आदिकृतियाँ।
- अनुच्छेद 213: संघ राज्य क्षेत्रों के लिए विशेष प्रावधान
- अनुच्छेद 214: राज्य सरकार का सामान्य प्रावधान
- अनुच्छेद 215: राज्यपाल की पदावधि
- अनुच्छेद 216: राज्यपाल के कार्य
- अनुच्छेद 217: राज्यपाल की पदावधि के लिए पात्रता
- अनुच्छेद 218: राज्यपाल की पदावधि के लिए आहर्ताएं
- अनुच्छेद 219: राज्यपाल के निर्वाचन की प्रक्रिया
- अनुच्छेद 220: राज्यपाल का पदेन
- अनुच्छेद 221: राज्यपाल का पदेन के लिए पात्रता
- अनुच्छेद 222: राज्यपाल का पदेन की प्रक्रिया
- अनुच्छेद 223: मंत्रिपरिषद
- अनुच्छेद 224: मुख्यमंत्री की पदावधि
- अनुच्छेद 225: मुख्यमंत्री के कार्य
- अनुच्छेद 226: मुख्यमंत्री की पदावधि के लिए पात्रता
- अनुच्छेद 227: मुख्यमंत्री की पदावधि के लिए आहर्ताएं
- अनुच्छेद 228: मुख्यमंत्री के निर्वाचन की प्रक्रिया
- अनुच्छेद 229: मुख्यमंत्री का पदेन
- अनुच्छेद 230: मुख्यमंत्री का पदेन के लिए पात्रता
- अनुच्छेद 231: मुख्यमंत्री का पदेन की प्रक्रिया
- अनुच्छेद 232: मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्य
- अनुच्छेद 233: सचिवालयों की स्थापना
- अनुच्छेद 234: सचिवालयों के सदस्यों की पदावधि
- अनुच्छेद 235: सचिवालयों के सदस्यों का पदेन
- अनुच्छेद 236: सचिवालयों के सदस्यों की पात्रता
- अनुच्छेद 237: सचिवालयों के सदस्यों की वेतन और आवंटन
भाग 6 में राज्यों की संगठन और कार्यविधि के संबंध में विस्तृत विवरण प्रदान किया गया है। इस भाग के माध्यम से राज्यों को स्वतंत्रता, अधिकार और जिम्मेदारी प्राप्त होती है और वे स्वयंनियंत्रण में कार्य करते हैं तथा नागरिकों को उच्चतम स्तर की सुविधा और न्याय प्रदान करते हैं।
भाग 7: संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 द्वारा निरसित 238
भारतीय संविधान के सातवें भाग को “पहली अनुसूची के भाग बी के राज्य” के रूप में जाना जाता था। इस भाग में केवल एक अनुच्छेद था – अनुच्छेद 238। परन्तु, इसे संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 द्वारा निरस्त कर दिया गया था। यह संविधान का एकमात्र भाग है जिसे पूर्णतः निरस्त कर दिया गया है।
हालांकि, राज्यों के वर्गीकरण के पैरा B के तहत राज्यों से संबंधित जानकारी अनुच्छेद 238 में प्राप्त होती थी।
अनुच्छेद 238: राज्यों के वर्गीकरण: अनुच्छेद 238 संविधान में पहली अनुसूची के भाग बी के रूप में प्रदर्शित होता था। इस अनुच्छेद में भारत के राज्यों के वर्गीकरण के बारे में जानकारी प्रदान की जाती थी। यह अनुच्छेद बताता था कि भारत में कितने राज्य हैं और उनके नाम क्या हैं। हालांकि, इस अनुच्छेद को संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 द्वारा निरस्त कर दिया गया है। इसे पहली अनुसूची के भाग बी के अन्तर्गत संविधान में अंकित किया गया है।
भाग 8 : संघ राज्य क्षेत्र (अनुच्छेद 239-242)
अनुच्छेद 239 से 242 तक संविधान के आठवें भाग, यानी “संघ राज्य क्षेत्र”, को विन्यस्त करता है। यह भाग भारतीय संविधान में विभाजित क्षेत्रीय व्यवस्था के बारे में उल्लेख करता है। इन अनुच्छेदों का संक्षेपिक विवरण निम्नलिखित हैं:
- अनुच्छेद 239: यह अनुच्छेद केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्र शासित क्षेत्रों की स्थापना के बारे में विवरण प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 240: इस अनुच्छेद में केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्र शासित क्षेत्रों के नामों और सीमाओं का उल्लेख किया गया है।
- अनुच्छेद 241: यह अनुच्छेद केंद्र शासित प्रदेशों के लिए नियमनुसार लोकपाल की स्थापना के बारे में विवरण प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 242: इस अनुच्छेद में केंद्र शासित प्रदेशों की भूमि का व्यवस्थापन, सार्वजनिक निगमों और अन्य अंतर्गत कार्यरत संगठनों की स्थापना और व्यवस्था के बारे में विवरण प्रदान किया गया है।
यह अनुच्छेद भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण हिस्से हैं जो केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों को निर्धारित करते हैं। इसके माध्यम से संघ और राज्यों के बीच सहयोग और संघर्ष की स्थिति और सामंजस्य को सार्थक बनाया जाता है।
भाग 9 : पंचायत (अनुच्छेद 243-243O)
भाग 9 के अनुच्छेद 243L से 243O तक के विवरण यहां दिए गए हैं:
- अनुच्छेद 243: पंचायतों की स्थापना
- अनुच्छेद 243A: पंचायती राज की प्राधिकारिकता
- अनुच्छेद 243B: ग्राम सभा
- अनुच्छेद 243C: ग्राम पंचायत
- अनुच्छेद 243D: ग्राम पंचायतों की सशक्तिकरण के लिए पंचायती राज संचालन की नियमिति
- अनुच्छेद 243E: ग्राम पंचायतों की पंचायती राज संचालन की नियमिति
- अनुच्छेद 243F: नगर पालिका
- अनुच्छेद 243G: नगर पंचायत
- अनुच्छेद 243H: नगर निगम
- अनुच्छेद 243-I: पंचायतों का नियमन
- अनुच्छेद 243J: पंचायती राज के लिए वित्तीय नियंत्रण
- अनुच्छेद 243K: पंचायती राज की स्थानीय नियंत्रणित स्वायत्तता
- अनुच्छेद 243L: नगर पंचायतों द्वारा उपक्रमों की प्रशासनिक निगरानी
- अनुच्छेद 243M: नगर निगमों के लिए सामाजिकीकरण का प्रावधान
- अनुच्छेद 243N: पंचायतों के लिए न्यायालयीकरण का प्रावधान
- अनुच्छेद 243O: पंचायतों के लिए निर्वाचन का प्रावधान
भाग 9A : नगरपालिकाएँ (अनुच्छेद 243P-243ZG)
भाग 9A: नगरपालिकाएँ (अनुच्छेद 243P-243ZG) नगरपालिकाओं के संगठन, प्रशासनिक व्यवस्था, कार्यक्षेत्र और अधिकारों के बारे में विवरण प्रदान करता है। इस भाग में निम्नलिखित अनुच्छेद शामिल होते हैं:
- अनुच्छेद 243P: नगरपालिकाओं का स्थापना करने की विधि
- अनुच्छेद 243Q: नगरपालिकाओं की संरचना
- अनुच्छेद 243R: नगरपालिकाओं के कार्यक्षेत्र
- अनुच्छेद 243S: नगरपालिकाओं के सदस्यों का चुनाव, पदावधि और पात्रता
- अनुच्छेद 243T: नगरपालिकाओं के कार्यालयों का स्थापना और प्रबंधन
- अनुच्छेद 243U: पालिका निगम का स्थापना, कार्य और अधिकार
- अनुच्छेद 243V: पालिका निगम के सदस्यों का चुनाव, पदावधि और पात्रता
- अनुच्छेद 243W: पालिका निगम के पदाधिकारियों का चयन प्रक्रिया
- अनुच्छेद 243X: पालिका निगम की वित्तीय प्रबंधन और अनुशासनिक नियम
- अनुच्छेद 243Y: नगरपालिकाओं की शक्तियाँ और कार्याधिकारी
- अनुच्छेद 243Z: नगरपालिकाओं के आपातकालिक अवस्था में प्रशासनिक और वित्तीय प्रबंधन
- अनुच्छेद 243ZA: नगरपालिकाओं के लिए सामग्री का विधान
- अनुच्छेद 243ZB: नगरपालिकाओं के लिए सामग्री का वितरण
- अनुच्छेद 243ZC: नगरपालिकाओं के लिए सामग्री की संगठनात्मक व्यवस्था
- अनुच्छेद 243ZD: नगरपालिकाओं के लिए सामग्री के आपूर्ति, निर्धारण और निगरानी
- अनुच्छेद 243ZE: नगरपालिकाओं के लिए सामग्री की आपूर्ति के लिए प्रबंधन प्रणाली
- अनुच्छेद 243ZF: नगरपालिकाओं के लिए सामग्री के आपूर्ति और निर्धारण में वित्तीय सहायता
- अनुच्छेद 243ZG: नगरपालिकाओं के लिए सामग्री के आपूर्ति, निर्धारण और निगरानी के लिए नियंत्रण
ये अनुच्छेद नगरपालिकाओं के लिए सामग्री के वितरण, संगठनात्मक व्यवस्था, आपूर्ति, निर्धारण, निगरानी, प्रबंधन प्रणाली और वित्तीय सहायता से संबंधित नियम और विधियों को विवरणित करते हैं।
भाग 10 : अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र (अनुच्छेद 244-244A)
भाग 10 में अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र से संबंधित है और इसमें निम्नलिखित अनुच्छेद शामिल हैं:
- अनुच्छेद 244: अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष प्राधिकार
- अनुच्छेद 244A: अनुसूचित क्षेत्रों के लिए प्राधिकार
ये अनुच्छेद अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित क्षेत्रों को संविधानिक सुरक्षा और विशेष प्राधिकार प्रदान करने के विवरण को संबंधित करते हैं। यह अनुच्छेद उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उत्थान को सुनिश्चित करने के लिए विशेष उपायों का प्रावधान करते हैं।
भाग 11 : संघ और राज्यों के बीच सम्बन्ध (अनुच्छेद 245-263)
भाग 11 में “संघ और राज्यों के बीच सम्बन्ध” से संबंधित अनुच्छेद शामिल हैं। इस भाग में निम्नलिखित अनुच्छेद शामिल हैं:
- अनुच्छेद 245: राज्य सरकार के कार्यालय
- अनुच्छेद 246: विधायी शक्तियों का विभाजन
- अनुच्छेद 247: संघ के लिए प्राधिकार और कर्तव्य
- अनुच्छेद 248: संघ की लिखित प्राधिकारों की सूची
- अनुच्छेद 249: संघ के लिए विशेष प्राधिकार
- अनुच्छेद 250: राष्ट्रपति के प्राधिकार
- अनुच्छेद 251: संघ के लिए अधिकारिक प्राधिकार
- अनुच्छेद 252: संघ और राज्यों के बीच सुमेलन करने का अधिकार
- अनुच्छेद 253: संघ के लिए निर्देशांकन अधिकार
- अनुच्छेद 254: संघ के लिए शास्त्रीय विधायिका के प्रभाव की सुरक्षा
- अनुच्छेद 255: संघ के निर्देशांकन के बाद राज्य का आवश्यक सुमेलन करना
- अनुच्छेद 256: राज्य निर्देशांकन के प्रभाव की सुरक्षा
- अनुच्छेद 257: संघ और राज्यों के बीच विवादों का सुलझाव
- अनुच्छेद 258: संघ और राज्यों के बीच संघर्ष स्थान
- अनुच्छेद 259: संघ के लिए धारा 258 के तहत निर्धारित कार्यशाला का स्थापना
- अनुच्छेद 260: अपील और उच्चतम न्यायालयों के बीच कार्य विभाजन
- अनुच्छेद 261: न्यायपालिका के लिए संघ और राज्यों के बीच सहयोग
- अनुच्छेद 262: राज्यों की अधिकारिक भूमिकाओं की विशेषता
- अनुच्छेद 263: संघ और राज्यों के बीच विवादों का न्यायपालिका के सामान्य प्राधिकार
ये अनुच्छेद संघ और राज्यों के बीच संघर्ष, समन्वय और सहयोग के संबंध में विवरण प्रदान करते हैं। संघ और राज्यों के बीच कार्य विभाजन, प्राधिकारों की विभाजन, संघ के विशेष प्राधिकार, निर्देशांकन अधिकार, शास्त्रीय विधायिका के प्रभाव की सुरक्षा और अन्य संबंधित मुद्दों को निर्धारित करते हैं।
भाग 12 : वित्त, सम्पत्ति, संविदाएँ और वाद (अनुच्छेद 264-300A)
भाग 12 के अंतर्गत शामिल अनुच्छेद 264 से 300A तक वित्त, सम्पत्ति, संविदाएँ और वाद के विषयों पर विवरण प्रदान करते हैं। यहां इन अनुच्छेदों का संक्षेप में वर्णन किया गया है:
- अनुच्छेद 264: वित्तीय वर्ष
- अनुच्छेद 265: वित्तीय वर्ष के लिए बजट
- अनुच्छेद 266: वित्तीय वर्ष के लिए वित्तीय विधेयक
- अनुच्छेद 267: वित्तीय विधेयक के पाठ और नयनदीपि
- अनुच्छेद 268: वित्तीय विधेयकों के पाठ के लिए प्रशासनिक प्रक्रिया
- अनुच्छेद 269: वित्तीय वर्ष के लिए लेखा
- अनुच्छेद 270: संघ के लिए वित्त वर्ष के लिए राशि निर्धारित करने का अधिकार
- अनुच्छेद 271: संघ और राज्यों के बीच वित्तीय आपसी सुमेलन
- अनुच्छेद 272: वित्त और अन्य संबंधित विधायिकाओं के लिए राज्यों के पाठ
- अनुच्छेद 273: राज्य विधेयकों के प्रस्तावना और पाठ
- अनुच्छेद 274: वित्त आयोग का गठन और कार्य
- अनुच्छेद 275: वित्त आयोग के पास आय, कर और अनुदान के विषय में अधिकार
- अनुच्छेद 276: नगरपालिकाओं और पंचायतों के लिए वित्त आयोग के अनुदान
- अनुच्छेद 277: वित्त आयोग की सिफारिशों का प्राधिकारिक महत्व
- अनुच्छेद 278: संघ और राज्यों के बीच वित्त आपसी सुमेलन
- अनुच्छेद 279: राज्यों के लिए वित्तीय आपसी सुमेलन
- अनुच्छेद 280: संघ के लिए वित्तीय निधि
- अनुच्छेद 281: राज्यों के लिए वित्तीय निधि
- अनुच्छेद 282: संघ और राज्यों के बीच नियमनिर्धारित वित्त आपसी सुमेलन
- अनुच्छेद 283: राज्य विधेयकों के लिए अनुदान
- अनुच्छेद 284: अनुदान के बजाय अद्यावधिकरण
- अनुच्छेद 285: राज्यों के लिए संघ आय अद्यावधिकरण
- अनुच्छेद 286: वित्त आय का वितरण बिंदु
- अनुच्छेद 287: संघ और राज्यों के बीच वाणिज्यिक संबंधों का वित्तीय आपसी सुमेलन
- अनुच्छेद 288: वित्त आय की मूल्यांकन और प्रस्तावना कर
- अनुच्छेद 289: वित्तीय आपूर्ति और सेवा के लिए अनुदान
- अनुच्छेद 290: राष्ट्रीय विधानमंडल के लिए वित्त आय अद्यावधिकरण
- अनुच्छेद 291: राज्यों के लिए वित्तीय सहायता
- अनुच्छेद 292: वित्त आय की मांग से उत्पन्न अनुदान
- अनुच्छेद 293: राज्यों के लिए वित्तीय विधेयकों के प्रवर्तन का प्रणाली
- अनुच्छेद 294: संघ के लिए वित्तीय विधेयकों के प्रवर्तन का प्रणाली
- अनुच्छेद 295: वित्तीय न्यायाधीश
- अनुच्छेद 296: वित्तीय न्यायाधीश के लिए वित्त न्यायपालिका
- अनुच्छेद 297: वित्तीय न्यायाधीश की प्राधिकारिक निर्देशों की पालना
- अनुच्छेद 298: वित्त न्यायपालिका के प्राधिकारिक निर्देश
- अनुच्छेद 299: न्यायपालिका की प्राधिकारिक प्रक्रिया का पालन
- अनुच्छेद 300: न्यायपालिका के आदेश की पालना
- अनुच्छेद 300A: अधीनस्थ समितियाँ
ये अनुच्छेद वित्तीय मुद्दों, बजट, वित्त नियंत्रण, आय, अनुदान, न्यायिक प्रणाली, वित्तीय न्यायाधीश और न्यायपालिका के प्राधिकारों पर विवरण प्रदान करते हैं।
भाग 13 : भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम (अनुच्छेद 301-307)
भाग 13, यानी अनुच्छेद 301 से 307 तक, “भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम” पर बात करता है। इस भाग में निम्नलिखित अनुच्छेदों का विवरण है:
- अनुच्छेद 301: व्यापार और वाणिज्य का मुकाबला नहीं होगा
- अनुच्छेद 302: भारतीय राज्यों के लिए व्यापार के लिए स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 303: राज्यों में व्यापारिक बाधाओं का निर्माण नहीं होगा
- अनुच्छेद 304: राज्यों के बीच आयात और निर्यात की बाधा नहीं होगी
- अनुच्छेद 305: व्यापारिक गतिविधियों के समागम
- अनुच्छेद 306: राज्यों के बीच व्यापारिक गतिविधियों का संगठन
- अनुच्छेद 307: सामान्य व्यापारिक और वाणिज्यिक नियम
ये अनुच्छेद भारतीय राज्यों के भीतर व्यापार, वाणिज्य, आयात, निर्यात, व्यापारिक गतिविधियों के संगठन और सामान्य व्यापारिक नियमों पर प्रावधान करते हैं।
भाग 14 : संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ(अनुच्छेद 308-323)
भाग 14, यानी अनुच्छेद 308 से 323 तक, “संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ” पर बात करता है। इस भाग में निम्नलिखित अनुच्छेदों का विवरण है:
- अनुच्छेद 308: व्यक्तिगत सेवाओं का अधिकार
- अनुच्छेद 309: संघ और राज्यों के सिविल सेवा
- अनुच्छेद 310: संघ और राज्यों के सेवानिवृत्ति और नौकरी सुरक्षा
- अनुच्छेद 311: संघ और राज्यों के कर्मचारियों का सामान्य पदाधिकार
- अनुच्छेद 312: संघ और राज्यों की सेवाओं का प्रशासनिक नियंत्रण
- अनुच्छेद 313: राज्यों के सेवानिवृत्ति पेंशनों का प्रबंधन
- अनुच्छेद 314: संघ और राज्यों के कर्मचारियों की पेंशन
- अनुच्छेद 315: पंचायती और नगरपालिका निकायों के कर्मचारियों का प्रबंधन
- अनुच्छेद 316: न्यायिक सेवाओं का संघ और राज्यों के अधीन स्थापना
- अनुच्छेद 317: संघ और राज्यों के वकीलों का प्रबंधन
- अनुच्छेद 318: संघ और राज्यों के अधीन लोक सेवा आयोग
- अनुच्छेद 319: राज्यों के लिए लोकायुक्त का स्थापना
- अनुच्छेद 320: संघ और राज्यों के अधीन वित्तीय सेवाएँ
- अनुच्छेद 321: संघ और राज्यों के अधीन जल सेवाएँ
- अनुच्छेद 322: संघ और राज्यों के अधीन जलसंचार
- अनुच्छेद 323: संघ और राज्यों के अधीन संघर्ष न्यायालय
ये अनुच्छेद संघ और राज्यों के बीच सेवाओं, सामान्य पदाधिकार, सेवानिवृत्ति, पेंशन, प्रशासनिक नियंत्रण, न्यायिक सेवाएं, प्रशासनिक सेवाएं, वित्तीय सेवाएं, जल सेवाएं, जलसंचार और संघर्ष न्यायालय पर प्रावधान करते हैं।
भाग 14A : अधिकरण (अनुच्छेद 323A-323B)
भाग 14A, यानी अनुच्छेद 323A और 323B, “अधिकरण” पर प्रावधान करता है। इस भाग में निम्नलिखित अनुच्छेदों का विवरण है:
- अनुच्छेद 323A: संघर्ष न्यायालय का स्थापना
- अनुच्छेद 323B: संघर्ष न्यायालय के संरचना और कार्य प्रणाली का निर्धारण
यह भाग संघर्ष न्यायालय की स्थापना और इसके संरचना और कार्य प्रणाली की व्यवस्था पर प्रावधान करता है। संघर्ष न्यायालय, जो कि संघ और राज्यों के अधीन कार्य करता है, संघर्षों के न्यायपालिका प्रशासन को सुनिश्चित करने के लिए स्थापित किया गया है।
भाग 15 : निर्वाचन (अनुच्छेद 324-329A)
भाग 15, यानी अनुच्छेद 324 से 329A तक, “निर्वाचन” के विषय में प्रावधान करता है। यह भाग भारतीय निर्वाचन प्रणाली और निर्वाचन आयोग के संबंधित मुद्दों पर दिशा-निर्देश प्रदान करता है। इसमें निम्नलिखित अनुच्छेद शामिल हैं:
- अनुच्छेद 324: निर्वाचन आयोग की स्थापना और उसकी प्राधिकारिकता
- अनुच्छेद 325: निर्वाचन की पदावधि
- अनुच्छेद 326: निर्वाचन संबंधी मानदंड
- अनुच्छेद 327: निर्वाचन आयोग के आचरण का विवरण
- अनुच्छेद 328: निर्वाचन अपराधों की अधिकारिता
- अनुच्छेद 329: निर्वाचन आयोग के वित्तीय प्राधिकार
यह भाग निर्वाचन प्रणाली के संचालन, निर्वाचन आयोग की स्थापना, मानदंडों, पदावधि, आचरण, अपराधों की अधिकारिता और वित्तीय प्राधिकार पर प्रावधान करता है।
भाग 16 : कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध सम्बन्ध (अनुच्छेद 330-342)
भाग 16, अर्थात् अनुच्छेद 330 से 342 तक, “कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध सम्बन्ध” पर प्रावधान करता है। यह भाग विभिन्न वर्गों के लिए विशेष उपबंध और संरक्षण की प्रावधान करता है।
इस भाग में निम्नलिखित अनुच्छेद शामिल हैं:
- अनुच्छेद 330: पिछड़ा वर्ग
- अनुच्छेद 331: स्तनपान
- अनुच्छेद 332: औद्योगिक कर्मचारियों का अधिकार
- अनुच्छेद 333: धार्मिक और भाषा मान्यता
- अनुच्छेद 334: आदिवासी जनजातियों की संरक्षा
- अनुच्छेद 335: आपत्ति निरापदता
- अनुच्छेद 336: निजी शिक्षण संस्थान
- अनुच्छेद 337: राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा आयोग
- अनुच्छेद 338: आर्थिक और सामाजिक पिछड़ा वर्गों की संरक्षा
- अनुच्छेद 339: धार्मिक और भाषाई मान्यताओं की संरक्षा
- अनुच्छेद 340: उपबंध आयोग
- अनुच्छेद 341: संघीय वकील विचाराधीनता
- अनुच्छेद 342: विशेष उपबंध के उपयोग की अवरुद्धता
यह भाग विभिन्न वर्गों के लिए विशेष उपबंध, संरक्षण, और मान्यता के प्रावधान करता है ताकि वे समाज में समानता, सुरक्षा और संरक्षण का आनंद उठा सकें।
भाग 17 : राजभाषा (अनुच्छेद 343-351)
भाग 17, अर्थात् अनुच्छेद 343 से 351 तक, “राजभाषा” पर प्रावधान करता है। यह भाग भारत की राजभाषा और राज्यभाषाओं के प्रयोग, प्रचार, और प्रगति के संबंध में विविध प्रावधान प्रदान करता है। इस भाग में निम्नलिखित अनुच्छेद शामिल हैं:
- अनुच्छेद 343: हिंदी भाषा की स्थापना
- अनुच्छेद 344: राजभाषा का प्रयोग
- अनुच्छेद 345: राजभाषा की प्रचार और प्रगति
- अनुच्छेद 346: राज्यभाषाओं की प्रयोग की अवधारणा
- अनुच्छेद 347: राज्यभाषाओं के अधिकारों की संरक्षा
- अनुच्छेद 348: संघीय सचिवालयों और उपनियामक संगठनों में राजभाषा का प्रयोग
- अनुच्छेद 349: राजभाषा नियमन और न्यायालयों की प्रभावी भूमिका
- अनुच्छेद 350: राजभाषा आयोग
- अनुच्छेद 351: नियमन और अनुपालन
इस भाग में भारत की राजभाषा, राज्यभाषाओं का प्रयोग, उनकी प्रचार और प्रगति, अधिकारों की संरक्षा, संघीय सचिवालयों और उपनियामक संगठनों में राजभाषा का प्रयोग, राजभाषा आयोग, और नियमन और अनुपालन आदि पर प्रावधान किया गया है।
भाग 18 : आपात उपबंध (अनुच्छेद 352-360)
भाग 18, यानी अनुच्छेद 352 से 360 तक, “आपात उपबंध” के बारे में बात करता है। इस भाग में विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं और आपत्तियों के संबंध में व्यवस्थाओं के बारे में विस्तृत विवरण प्रदान किया गया है। इसमें संघ, राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के बीच आपत्ति के समय और उपयोग के लिए आवश्यक उपबंध, विशेष शक्तियां और उपायों की प्रावधानिका शामिल है।
इस भाग में निम्नलिखित अनुच्छेद शामिल हैं:
- अनुच्छेद 352: आपात स्थितियों के लिए प्राथमिकता
- अनुच्छेद 353: संघ की आपात शक्तियाँ
- अनुच्छेद 354: संघ राष्ट्रीय सेवा
- अनुच्छेद 355: राष्ट्रपति के आपातकालीन शक्तियाँ
- अनुच्छेद 356: राज्यों में प्रशासनिक कार्यवाही के लिए विशेष उपबंध
- अनुच्छेद 357: राज्यों की आपात शक्तियाँ
- अनुच्छेद 358: केंद्रशासित प्रदेशों की आपात शक्तियाँ
- अनुच्छेद 359: आपात शक्तियों का प्रयोग
- अनुच्छेद 360: आपात शक्तियों का अधिकार विवादों के लिए सर्वोच्च न्यायालय
यह भाग आपात स्थितियों में संघ, राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के बीच कार्रवाई के लिए विशेष उपबंध, आपात शक्तियों का प्रयोग, उपयोग, और अधिकार विवादों के लिए संविधानिक उपायों के बारे में प्रदान करता है।
भाग 19 : प्रकीर्ण (अनुच्छेद 361-367)
भाग 19, यानी अनुच्छेद 361 से 367 तक, “प्रकीर्ण” के बारे में बात करता है। यह भाग विभिन्न मुद्दों और विषयों पर संविधान में विशेष उपबंध और निर्देशों को शामिल करता है। इसमें संघ, राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के बीच सम्बंधित विषयों पर निर्देश, अधिकार और जिम्मेदारी, विशेष उपबंध, और प्रदेशिक न्यायाधिकार के बारे में विवरण दिया गया है।
इस भाग में निम्नलिखित अनुच्छेद शामिल हैं:
- अनुच्छेद 361: अधिकारियों की जिम्मेदारी
- अनुच्छेद 362: संघ और राज्यों के बीच संबंधित विषयों के निर्देश
- अनुच्छेद 363: विशेष उपबंध
- अनुच्छेद 364: प्रदेशिक न्यायाधिकार
- अनुच्छेद 365: राज्यों की उन्नति के लिए निर्देश
- अनुच्छेद 366: जनसंख्या का आंकड़ा
- अनुच्छेद 367: अपील प्राधिकार
यह भाग संविधान में विभिन्न मुद्दों पर स्पष्टता और निर्देश प्रदान करने के लिए है और इसे राज्यों के विकास, न्यायालय प्रणाली, जनसंख्या आंकड़े, और अपील प्राधिकार जैसे मुद्दों का संबंध जोड़ा गया है।
भाग 20 : संविधान के संशोधन (अनुच्छेद 368)
भाग 20, यानी अनुच्छेद 368, “संविधान के संशोधन” के बारे में है। इस अनुच्छेद में, संविधान के संशोधन की प्रक्रिया और विधियाँ विस्तार से बताई गई हैं।
अनुच्छेद 368 के अनुसार, संविधान को संशोधित करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया को पालन करनी होगी:
- संशोधन प्रस्ताव: संशोधन के लिए प्रस्ताव रखा जाता है, जिसे एक बार या एकाधिक बारों में पारित करने के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है।
- अध्यादेश: संशोधन प्रस्ताव को विधायीन अध्यादेश के रूप में पारित करने के लिए संविधान सभा या राज्य विधानसभा को आवंटित किया जाता है।
- राष्ट्रपति की मंजूरी: संशोधन को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए प्रेषित किया जाता है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बिना कोई संविधान संशोधन लागू नहीं हो सकता है।
- प्रमाणीकरण: संशोधन को राष्ट्रपति के द्वारा प्रमाणित किया जाता है।
- प्रकाशन: संशोधन को राष्ट्रदूत के द्वारा राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है।
- संशोधन के प्रभाव: संशोधन अपने प्रभाव की दिनांक से प्रभावी होता है, जो इसके प्रस्ताव के अनुसार निर्धारित किया जाता है।
इस अनुच्छेद में संविधान के संशोधन की संरचना, प्रक्रिया, अधिकार, और प्रमाणीकरण के बारे में जानकारी दी गई है। संविधान के संशोधन अनुच्छेद 368 के माध्यम से संविधान में बदलाव किए जा सकते हैं।
भाग 21 : अस्थाई संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध (अनुच्छेद 369-392)
भाग 21, यानी अनुच्छेद 369 से 392 तक, “अस्थायी संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध” के बारे में है। इस भाग में, विशेष परिस्थितियों और अवसरों के लिए अस्थायी संक्रमणकालीन उपबंध और विशेष उपबंधों का प्रावधान किया गया है। इन उपबंधों का प्रयोग केवल विशेष परिस्थितियों और अवसरों में किया जाता है और इन्हें सामान्य स्थितियों में संघ या राज्य सरकार के द्वारा प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 369 से 392 तक इन विशेष उपबंधों को प्रदान करते हैं जो अस्थायी होते हैं और उन्हें अपनाया जा सकता है जब कोई विशेष परिस्थिति या आपात स्थिति उत्पन्न होती है। इन उपबंधों में शांति और आपात स्थिति के दौरान नागरिकों के अधिकारों, संरक्षा, व्यवस्था, राज्य को नियंत्रित करने के प्रक्रियाओं आदि का विवरण दिया जाता है।
इन अनुच्छेदों में अस्थायी संक्रमणकालीन और विशेष उपबंधों के प्रदान करने के लिए विभिन्न प्रावधान, प्रक्रियाएं, और संबंधित विवरण शामिल होते हैं। इन उपबंधों के माध्यम से सरकारें विशेष परिस्थितियों में संगठित रूप से कार्रवाई कर सकती हैं ताकि सामरिक, आपातकालीन, या अन्य अद्यतन की आवश्यकता पर विशेष ध्यान दिया जा सके।
यहां कुछ विशेष अनुच्छेदों का संक्षेपिक विवरण है:
- अनुच्छेद 369: अस्थायी संक्रमणकालीन विशेष अधिकार
- अनुच्छेद 370: अस्थायी और स्थायी संक्रमणकालीन प्राधिकार
- अनुच्छेद 371: विशेष अधिकार और विशेष प्रावधान धार्मिक और जातिगत मामलों के लिए
- अनुच्छेद 371A: अरुणाचल प्रदेश के लिए विशेष उपबंध
- अनुच्छेद 371B: मिजोरम के लिए विशेष उपबंध
- अनुच्छेद 371C: माणिपुर के लिए विशेष उपबंध
- अनुच्छेद 371D: आंध्र प्रदेश के लिए विशेष उपबंध
- अनुच्छेद 371F: सिक्किम के लिए विशेष उपबंध
- अनुच्छेद 371G: गोवा के लिए विशेष उपबंध
- अनुच्छेद 371H: अरुणाचल प्रदेश के तीन उप-क्षेत्रों के लिए विशेष उपबंध
- अनुच्छेद 371I: गोवा के दो उप-क्षेत्रों के लिए विशेष उपबंध
- अनुच्छेद 371J: कर्नाटक के लिए विशेष उपबंध
- अनुच्छेद 372: अस्थायी संक्रमणकालीन उपबंध
- अनुच्छेद 373: प्रादेशिक निर्वाचनों के आयोजन
- अनुच्छेद 374: संघीय संसद की अधिकारिता के प्राधिकार
- अनुच्छेद 375: विशेष प्रावधान उपयुक्त अधिकारिता के लिए
- अनुच्छेद 376: वित्तीय विविधियों के प्राधिकार
- अनुच्छेद 377: संघीय विधानपरिषद की विधायिका
- अनुच्छेद 378: प्रदेशीय विधानपरिषद की विधायिका
- अनुच्छेद 379: नियम, विधान और न्याय
- अनुच्छेद 380: विशेष प्रावधान स्थानीय विधायिकाओं के लिए
- अनुच्छेद 381: संघीय सत्ता का अधिकार
- अनुच्छेद 382: प्रादेशिक सत्ता का अधिकार
- अनुच्छेद 383: संघीय और प्रादेशिक अधिकार के लिए संघीय न्यायालय
- अनुच्छेद 384: संघीय विधानपरिषद द्वारा प्रादेशिक विधान निर्माण
- अनुच्छेद 385: प्रदेशीय विधानपरिषद द्वारा संघीय विधान निर्माण
- अनुच्छेद 386: संघीय न्यायालय की अपीलीय प्राधिकार
- अनुच्छेद 387: प्रदेशीय न्यायालय की अपीलीय प्राधिकार
- अनुच्छेद 388: अदालती प्राधिकार
- अनुच्छेद 389: जांच करने की प्राधिकारिता
- अनुच्छेद 390: संघीय न्यायपालिका के बारे में प्रावधान
- अनुच्छेद 391: न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति
- अनुच्छेद 392: राष्ट्रपति द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति
ये अनुच्छेद संविधान में दिए गए विशेष उपबंधों और अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए बनाए गए हैं।
भाग 22 : संक्षिप्त नाम, प्रारम्भ, हिन्दी में प्राधिकृत पाठ और निरसन (अनुच्छेद 393-395)
भाग 22 “संक्षेप्त नाम, प्रारम्भ, हिन्दी में प्राधिकृत पाठ और निरसन” के तहत अनुच्छेद 393 से 395 तक प्रस्तुत किए गए हैं। इस भाग में भारतीय संविधान के संक्षिप्त नाम, उसके प्रारम्भिक वचन, हिन्दी में प्राधिकृत पाठ और संविधान के निरसन के बारे में जानकारी प्रदान की गई है।
अनुच्छेद 393 में संविधान का संक्षिप्त नाम “भारत का संविधान (Constitution of India)” दिया गया है। यह अनुच्छेद संविधान के संक्षिप्त नाम का उल्लेख करता है।
अनुच्छेद 394 में संविधान के प्रारम्भिक वचन दिए गए हैं। इसमें उल्लेख किया गया है कि संविधान को स्वीकार किया जाता है और यह भारत की संविधानिक व्यवस्था की स्थापना के लिए निर्माण किया गया है।
अनुच्छेद 394A में उल्लेख किया गया है कि संविधान के हिन्दी में प्राधिकृत पाठ के अलावा कोई अन्य पाठ नहीं होना चाहिए।
अनुच्छेद 395 में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947, और भारत सरकार अधिनियम, 1935, बाद वाले अधिनियम में संशोधन या पूरक करने वाले सभी अधिनियमों के साथ, लेकिन प्रिवी काउंसिल क्षेत्राधिकार अधिनियम, 1949 का उन्मूलन शामिल नहीं है, को इसके द्वारा निरस्त किया जाता है।
यहां अनुच्छेद 393 से अनुच्छेद 395 तक का संक्षेपिक विवरण है:
भाग 22 में संविधान के संक्षिप्त नाम, प्रारम्भ, हिंदी में प्राधिकृत पाठ और निरसन के बारे में अनुच्छेद 393 से 395 तक हैं। यहां वे अनुच्छेदों का संक्षेपिक विवरण है:
- अनुच्छेद 393: संक्षिप्त नाम – इस अनुच्छेद में, संविधान के संक्षिप्त नाम को उल्लेख किया गया है।
- अनुच्छेद 394: प्रारम्भ – इस अनुच्छेद में, संविधान के प्रारम्भ को उल्लेख किया गया है।
- अनुच्छेद 394A: हिंदी भाषा में प्रामाणिक पाठ – इस अनुच्छेद में, संविधान के हिंदी में प्राधिकृत पाठ का उल्लेख किया गया है। यह अनुच्छेद बताता है कि संविधान का हिंदी में प्राधिकृत पाठ कैसे होगा और वह किस तारीख से प्रभावी होगा।
- अनुच्छेद 395: निरसन – इस अनुच्छेद में निरसन को उल्लेख किया गया है।
भाग 22 के अनुच्छेदों 393, 394, और 395 के विवरण के साथ में संविधान का प्रारंभ, हिंदी में प्राधिकृत पाठ और निरसन का वर्णन दिया गया है। इसके अलावा अनुच्छेद 394 के अनुसार संविधान के उपबंध 26 जनवरी, 1950 को प्रारंभ होंगे, जो संविधान के प्रारंभ के रूप में निर्दिष्ट किया गया है।
अनुच्छेद 394 बताता है कि संविधान के हिंदी में प्राधिकृत पाठ को कैसे अनुवादित किया जाएगा और अनुच्छेद 395 बताता है कि कैसे संविधान के संशोधनों को निरस्त किया जाएगा। इन अनुच्छेदों के माध्यम से भाग 22 का समाप्ति और विवरण प्रदान किया जाता है।
यह था भाग 22 का संक्षेपिक विवरण, जो संविधान के संक्षेप्त नाम, प्रारम्भ, हिंदी में प्राधिकृत पाठ और निरसन के बारे में बताता है।
भारतीय संविधान की अनुसूचियाँ
भारतीय संविधान की अनुसूचियों में भारत की संविधानिक व्यवस्था, अधिकार, प्रशासनिक व्यवस्था, समाजिक न्याय, नागरिक संबंध, निर्वाचन प्रक्रिया, निर्माण एवं गठन आदि के विविध पहलुओं को परिभाषित और व्यवस्थित किया गया है। अनुसूचियां संविधान की महत्वपूर्ण भाग हैं जो देश की न्यायिक और प्रशासनिक प्रणाली को परिभाषित करती हैं।
भारतीय संविधान में वर्तमान में 12 अनुसूचियां हैं। ये अनुसूचियां निम्नलिखित हैं:
पहली अनुसूची: अनुच्छेद 1 तथा 4
संविधान की पहली अनुसूची में राज्य और संघ राज्य क्षेत्र का वर्णन है।
दूसरी अनुसूची: अनुच्छेद 59(3), 65(3), 75(6),97, 125,148(3), 158(3),164(5),186 तथा 221
दूसरी अनुसूची में मुख्य पदाधिकारियों के वेतन-भत्ते पर विस्तृत विवरण है। यह चार भागों में विभाजित है-
- भाग-क : राष्ट्रपति और राज्यपाल के वेतन-भत्ते,
- भाग-ख : लोकसभा तथा विधानसभा के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष, राज्यसभा तथा विधान परिषद् के सभापति तथा उपसभापति के वेतन-भत्ते,
- भाग-ग : उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन-भत्ते,
- भाग-घ : भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के वेतन-भत्ते।
तीसरी अनुसूची: अनुच्छेद 75(4),99, 124(6),148(2), 164(3),188 और 219
तीसरी अनुसूची में विधायिका के सदस्यों, मंत्रिमंडल के सदस्यों, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, और न्यायाधीशों के लिए शपथ लिए जाने वाले प्रतिज्ञान के प्रारूप दिए गए हैं।
चौथी अनुसूची: अनुच्छेद 4(1),80(2)
चौथी अनुसूची में राज्यसभा के स्थानों का आबंटन राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों से तय किए जाते हैं।
पांचवीं अनुसूची: अनुच्छेद 244(1)
पांचवीं अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित उपबंध हैं।
छठी अनुसूची: अनुच्छेद 244(2), 275(1)
छठी अनुसूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित उपबंध हैं।
सातवीं अनुसूची: अनुच्छेद 246
सातवीं अनुसूची में विषयों के वितरण से संबंधित सूची-1, सूची-2, और सूची-3 हैं। इनमें संघ सूची, राज्य सूची, और समवर्ती सूची शामिल हैं।
आठवीं अनुसूची: अनुच्छेद 344(1), 351
आठवीं अनुसूची में भाषाओं की सूची है, जिसमें 22 भाषाएँ उल्लेखित हैं।
नवीं अनुसूची: अनुच्छेद 31 ख
नवीं अनुसूची में कुछ भूमि सुधार संबंधी अधिनियमों का विधिमान्यकरण किया गया है। यह पहला संविधान संशोधन (1951) द्वारा जोड़ा गया।
दसवीं अनुसूची: अनुच्छेद 102(2), 191(2)
दसवीं अनुसूची में दल परिवर्तन संबंधी उपबंध और परिवर्तन के आधार पर विवरण है। यह 52वें संविधान संशोधन (1985) द्वारा जोड़ा गया।
ग्यारहवीं अनुसूची: अनुच्छेद 243 छ
ग्यारहवीं अनुसूची में पंचायती राज/ जिला पंचायत से संबंधित उपबंध हैं। यह अनुसूची 73वें संवैधानिक संशोधन (1992) द्वारा जोड़ी गई।
बारहवीं अनुसूची
बारहवीं अनुसूची में नगरपालिका का वर्णन है। यह अनुसूची 74वें संवैधानिक संशोधन (1993) द्वारा जोड़ी गई।
भारतीय संविधान की आधारभूत विशेषताएँ
भारतीय संविधान को संघात्मक संविधान माना जाता है। संविधान प्रारूप समिति और सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों ही इसे संघात्मक संविधान के रूप में मान्यता दी है। यह संघात्मकता के मामले में अमेरिकी संविधान से थोड़ा अलग है।
भारतीय संविधान के प्रस्तावना में उल्लिखित अनुसार, भारत एक सम्प्रभुतासम्पन्न (सोशलिस्ट), समाजवादी (सोशलिस्ट), पंथनिरपेक्ष (सेक्युलर), लोकतांत्रिक और गणराज्य है। यह मतलब है कि भारत एक सामाजिक और आर्थिक सम्प्रभुता की स्थापना करने, सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने, सभी धर्मों के प्रति समान आदर्श बनाए रखने, लोकतंत्र के मूल्यों और संवैधानिक तंत्र के माध्यम से शासन करने की व्यवस्था के साथ गणराज्य के रूप में चल रहा है।
यह प्रस्तावना भारतीय संविधान के मूलभूत सिद्धांतों और आदर्शों को प्रकट करती है, जिनके माध्यम से भारतीय समाज और राजनीति का निर्माण हुआ है।
भारतीय संविधान की आधारभूत विशेषताएं:
- सम्प्रभुतासम्पन्न (Sovereign): यह विशेषता भारतीय संविधान के प्रस्तावना में उल्लिखित है और इसका अर्थ है कि भारत एक सामाजिक और आर्थिक सम्प्रभुता को सुनिश्चित करने का आदर्श रखता है। सरकार द्वारा कई कानूनों के माध्यम से समाजवाद के लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। इसका मकसद समाज के सभी अधिकारों की सुरक्षा और उन्नति को सुनिश्चित करना है।
- समाजवादी (सोशलिस्ट): भारतीय संविधान के प्रारूपना में समाजवादी का उल्लेख है, जो सभी नागरिकों के बीच सामाजिक और आर्थिक समानता को सुनिश्चित करता है। इसका मकसद जाति, रंग, नस्ल, लिंग, धर्म या भाषा के आधार पर किसी भी भेदभाव के बिना सभी को बराबरी का दर्जा और अवसर प्रदान करना है। सरकार को सभी नागरिकों के आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण से उन्नति के लिए कई उपाय अपनाने की जिम्मेदारी होती है।
- पंथनिरपेक्ष (सेक्युलर): भारत एक पंथनिरपेक्ष राष्ट्र है, जो धर्म के मामलों में धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत मानता है। इसका अर्थ है कि सरकार ना तो किसी धर्म को बढ़ावा देती है और न ही किसी से भेदभाव करती है। सभी धर्मों को समान रूप से सम्मान करती है और सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता और अधिकार प्रदान करती है। सरकारी या सरकारी अनुदान प्राप्त संस्थानों में कोई धार्मिक निर्देश नहीं होता।
- लोकतांत्रिक (Democratic): भारत एक लोकतंत्रिक राष्ट्र है, जिसका अर्थ है कि सत्ता का उत्पादन और संचालन जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधित्व के माध्यम से होता है। लोगों को स्वतंत्रता के साथ मतदान करने की अधिकार प्राप्त होती है और सभी को विधानीय माध्यमों के माध्यम से शासन करने का अधिकार होता है। भारत में नागरिकों को संविधान के अनुसार न्यायालयों के माध्यम से अधिकारों की संरक्षण और न्यायपालन की सुरक्षा मिलती है।
- गणराज्य (Republic): भारत एक गणराज्य है, जिसका अर्थ है कि भारत का शासन जनता द्वारा चुनी गई प्रतिनिधित्ववादी सरकार द्वारा निर्वाचित राष्ट्रपति के माध्यम से संचालित होता है। यह विधान के माध्यम से नियंत्रित होता है और गणराज्य के मूल्यों के आधार पर कार्य करता है। राष्ट्रपति को पाँच वर्ष की कार्यकाल के लिए चुना जाता है और गणराज्य में नागरिकों को स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा की भूमिका मिलती है।
- शक्ति विभाजन (Power Division): भारतीय संविधान में शक्ति विभाजन एक महत्वपूर्ण लक्षण है जो दर्शाता है कि राज्य की शक्तियाँ केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विभाजित होती हैं। यह व्यवस्था दोनों सत्ताओं को आपस में निर्भर नहीं करती है, वे संविधान द्वारा स्थापित होती हैं और संविधान द्वारा नियंत्रित की जाती हैं।
- केंद्र सरकार को केंद्रीय सूचना, संचार, बाजार, राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेशी मामले, औद्योगिक नीति, आर्थिक नियोजन, नागरिकता, वित्तीय प्रबंधन और केंद्रीय कानूनों के विषय में शक्ति प्राप्त होती है। वह सरकार केंद्रीय मंत्रिमंडल के माध्यम से संचालित होती है।
- वहीं, राज्य सरकारें राज्यीय मामलों, स्थानीय प्रशासन, पुलिस, शिक्षा, कृषि, जलसंरक्षण, स्वास्थ्य, प्रशासनिक न्यायपालिका, स्थानीय कानूनों के विषय में शक्ति प्राप्त होती है। राज्य सरकारें राज्य मंत्रिपरिषद के माध्यम से संचालित होती हैं।
- शक्ति विभाजन के द्वारा, केंद्र और राज्य सरकारें अपने आपसी सीमाओं के अंदर स्वतंत्र होती हैं, लेकिन वे एकदृष्टि में सहयोग भी करती हैं ताकि देश के संचालन और विकास में सुगमता और संगठनशीलता सुनिश्चित हो सके। इस तरीके से, शक्ति विभाजन भारतीय संविधान के माध्यम से संरचित और संचालित एक महत्वपूर्ण शासनादेश है।
- व्यापकता और विस्तार (Lengthy and Detailed): भारतीय संविधान विश्व के सबसे लंबे और विस्तृत संविधानों में से एक है। इसमें प्रस्तावना, 470 अनुच्छेद, 25 भाग, 12 अनुसूचियाँ, 5 प्रतिलिपियों और 105 संशोधन हैं।
- लिखित संविधान (Written Constitution): भारतीय संविधान एक लिखित दस्तावेज़ है जो देश की शासन-व्यवस्था के लिए एक समग्र ढांचा प्रदान करता है। यह एक विस्तृत और संरचित दस्तावेज़ है जो सरकार और उसके संस्थानों की शक्तियों, कार्यों और सीमाओं का विवरण देता है।
- सबसे लंबा लिखित संविधान: भारतीय संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है। इसमें कुल मिलाकर 470 अनुच्छेद, 25 अनुसूचियां और 12 अनुग्रहित संशोधन हैं।
- संघीय संरचना (Federal Structure): संविधान में संघ और राज्यों के बीच संघीयता की व्यवस्था स्थापित की गई है। यह दो सरकारों की शक्तियों को और जिम्मेदारियों को परिभाषित करता है और विभिन्न सूचियों और अनुसूचियों के माध्यम से शक्ति का वितरण प्रदान करता है।
- संसदीय प्रजातंत्र (Parliamentary Democracy): भारत में संसदीय प्रणाली का अनुसरण किया जाता है, जहां राष्ट्रपति राष्ट्र के मुखिया होते हैं और प्रधानमंत्री सरकार के प्रमुख होते हैं। संविधान संसद की संरचना और कार्यों को परिभाषित करता है, जिसमें लोक सभा (निम्न सदन) और राज्य सभा (उच्च सदन) शामिल हैं।
- मौलिक अधिकार (Fundamental Rights): संविधान द्वारा सभी नागरिकों को मौलिक अधिकारों की गारंटी है, जिनमें समानता का अधिकार, वाणी और भाषण की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता और संवैधानिक उपचार का अधिकार शामिल हैं। ये अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं की सुरक्षा करते हैं और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करते हैं।
- राजदीप्तियों के निर्देशिका सिद्धांत (Directive Principles of State Policy): संविधान में राजदीप्तियों के निर्देशिका सिद्धांतों की स्थापना की गई है, जो सरकार के लिए सामाजिक न्याय, आर्थिक कल्याण और नागरिकों के संपूर्ण कल्याण को बढ़ावा देने के लिए हैं। ये निर्देशिकाएं कानूनी रूप से बाध्य नहीं हैं, लेकिन ये सरकार के लिए एक नैतिक मार्गदर्शक का कार्य करती हैं।
- स्वतंत्र न्यायपालिका (Independent Judiciary): संवविधान एक स्वतंत्र न्यायपालिका स्थापित करता है जो लोकतंत्र के स्तंभों में से एक है। सर्वोच्च न्यायालय देश की सर्वोच्च न्यायिक प्राधिकरण है और यह कानून की संवैधानिकता की सुरक्षा और मौलिक अधिकारों की हिफाज़त करने के लिए न्यायिक समीक्षा की शक्ति रखता है।
- धर्मनिरपेक्षता (Secularism): भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता को प्रोत्साहित करता है और सभी धर्मों का समान आदर्श मानता है। यह धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है और धर्म के आधार पर भेदभाव को निषेध करता है। राज्य किसी विशेष धर्म से जुड़ा नहीं होता और निरंतर धार्मिक रहता है।
- कठोरता और परिवर्तनशीलता (Rigidity and Flexibility): भारतीय संविधान में कठोर और परिवर्तनशील विधियों का मिश्रण है। संविधान के कुछ अनुभागों को विशेष बहुमत की आवश्यकता से संशोधित किया जा सकता है, जबकि अन्य अनुभागों को एक सरल प्रक्रिया के माध्यम से संशोधित किया जा सकता है।
- संशोधन प्रक्रिया (Amendment Procedure): संविधान अपने खुद की संशोधन की व्यवस्था प्रदान करता है ताकि यह बदलती परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुरूप हो सके। संशोधन संसद द्वारा विशेष बहुमत के माध्यम से या राज्यों की विधानसभाओं की सहायता से किया जा सकता है, जिसके प्रकार परिवर्तन का होता है।
- संविधान की सर्वोच्चता (Supremacy of Constitution): संविधान की सर्वोच्चता भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण लक्षण है। इसका अर्थ है कि संविधान संघ और राज्य सरकारों पर समान रूप से बाध्यकारी होता है। संघ और राज्य सरकार दोनों संविधान के प्रावधानों का पालन करने और उन्हें नियंत्रित करने के लिए संविधान के आदेश का पालन करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
- संविधान की सर्वोच्चता का मतलब है कि कोई भी संविधानीक संशोधन बाध्यकारी संघ और राज्य सरकारों के लिए नहीं हो सकता है बिना उनकी सहमति के। इसका अर्थ है कि संविधान को संघ और राज्य सरकारों के बीच एक समान और संगठित ताकत के रूप में मान्यता दी जाती है और उन्हें संविधान में उल्लेखित तत्वों का पालन करना होता है।
- संविधान की सर्वोच्चता के द्वारा, संघ और राज्य सरकारों के बीच संविधानीक विवादों के मामलों में सर्वोच्च न्यायिक अधिकारियों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। भारतीय संविधान द्वारा स्थापित किए गए सर्वोच्च न्यायालय के पास संविधान की व्याख्या करने और उसके अंतर्गत उपलब्ध अधिकारों को संघ और राज्य सरकारों पर लागू करने का प्राधिकार होता है। संविधान की सर्वोच्चता द्वारा, संघ और राज्य सरकारों को संविधान के प्रावधानों का समान और निष्पक्ष रूप से पालन करने का आदेश दिया जाता है।
- विभिन्न स्रोतों से आहरित: भारतीय संविधान को विभिन्न स्रोतों से प्रेरणा मिली है, जैसे कि आयोगों की सिफारिशें, न्यायपालिका के निर्णय, विदेशी संविधानों का अध्ययन, धार्मिक एवं सामाजिक विचारधाराएं आदि।
- एकल नागरिकता: भारतीय संविधान में एकल नागरिकता का प्रावधान है, जो अधिकांशतः देश की नागरिकता को एकत्रित करता है और राष्ट्रीय एकता को सुनिश्चित करता है।
- स्वतंत्र निकाय: भारतीय संविधान में स्वतंत्र निकायों की स्थापना का प्रावधान है, जो स्वतंत्रता के लिए निर्णय लेते हैं और संविधान के प्रमाणों को सुनिश्चित करते हैं।
- सहकारी समितियाँ: भारतीय संविधान में सहकारी समितियों का प्रावधान है, जिनका कार्य संविधानिक एवं कानूनी मुद्दों के निर्धारण और अधीनसवर्ती है। ये समितियाँ सरकार को सलाह देती हैं और नीतियों के निर्माण में मदद करती हैं।
इन सभी विशेषताओं का संयोजन भारतीय संविधान में है, जिससे देश का राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक ढांचा निर्मित होता है और व्यवस्था में सुरक्षा और न्याय की सुनिश्चितता साधारित होती है। ये कुछ मौलिक विशेषताएं हैं जो भारतीय संविधान की मूलभूत विशेषताओं को प्रकट करती हैं और देश की शासन और लोकतांत्रिक प्रणाली को आकार देती हैं।
भारतीय संविधान में कुछ विभेदकारी विशेषताएँ
भारतीय संविधान में कुछ विभेदकारी विशेषताएं हैं, जो निम्नलिखित हैं:
- संविधान का निर्माण संघ और राज्यों के परस्पर समझौते से नहीं हुआ है। यह स्वतंत्र रूप से संविधान सभा द्वारा तैयार किया गया है।
- भारत में राज्यों को अपने पृथक संविधान नहीं रखने की प्रावधानिक व्यवस्था है। केवल एक ही संविधान द्वारा संघ और राज्य दोनों पर लागू होता है।
- भारत में द्वैध नागरिकता नहीं है। केवल भारतीय नागरिकता मान्य है और राष्ट्रीयता एकता को सुनिश्चित करने के लिए संविधान ने विशेष व्यवस्थाएं गठित की हैं।
- भारतीय संविधान में आपातकाल लागू करने के उपबन्ध हैं। जब आपातकाल घोषित होता है, तो राज्य-केंद्र शक्ति पृथक्करण समाप्त हो जाता है और संविधान में एकात्मक संविधान बन जाता है। इस स्थिति में केंद्र राज्यों पर पूर्ण संप्रभुता प्राप्त करता है।
- संविधान के अनुसार, राज्यों का नाम, क्षेत्र और सीमा केंद्र द्वारा परिवर्तित किए जा सकते हैं, बिना राज्यों की सहमति के। इससे केंद्र संघ को पुनर्निर्मित करने की योजना बनाने की संभावना होती है।
- संविधान की 7वीं अनुसूची में तीन सूचियाँ हैं – संघीय सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची। इन सूचियों के विषयों का वितरण केंद्र के पक्ष में होता है।
- संघीय सूची में सबसे महत्वपूर्ण विषय होते हैं।
- संघीय सूची पर केवल संसद का अधिकार होता है।
- राज्य सूची में कम महत्वपूर्ण विषय होते हैं, और केवल पांच विशेष परिस्थितियों में संसद राज्य सूची के विषयों पर विधायिका बना सकती है, किन्तु किसी भी एक परिस्थिति में राज्य सरकार केंद्र राज्यों के लिए विधायिका नहीं बना सकती है।
- अनुच्छेद 249 के अनुसार, यदि राज्य सभा एक प्रस्ताव को दो-तिहाई बहुमत से पारित कर देती है और इसे राष्ट्र हित के लिए आवश्यक मानती है, तो वह प्रस्ताव एक वर्ष के लिए ही लागू होता है।
- अनुच्छेद 250 के तहत, जब राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency) लागू होता है, तो संसद को राज्य सूची (State List) के विषयों पर विधि निर्माण का स्वतः अधिकार प्राप्त होता है।
- अनुच्छेद 252 के अनुसार, दो या अधिक राज्यों की विधानसभाओं द्वारा पास किए गए प्रस्तावों के आधार पर राज्य सभा को उन राज्यों पर संबंधित विषयों पर विधायिका बनाने का अधिकार दिया जा सकता है। यह अधिकार केवल संबंधित राज्यों के लिए होता है।
- अनुच्छेद 253 के तहत, संसद को अंतरराष्ट्रीय समझौतों के अनुपालन के लिए राज्य सूची के विषयों पर विधायिका बनाने का अधिकार होता है।
- अनुच्छेद 356 के अनुसार, जब किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन (President’s Rule) लागू होता है, तो संसद को उस राज्य के लिए विधायिका बनाने का अधिकार होता है।
- अनुच्छेद 155: इस अनुच्छेद के अनुसार, राज्यपालों की नियुक्ति पूर्णतः केंद्र सरकार की इच्छा पर आधारित होती है। इस प्रकार, केंद्र सरकार राज्यों पर नियंत्रण रख सकती है।
- अनुच्छेद 360: वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency) के स्थिति में, केंद्र सरकार राज्यों के वित्त पर भी नियंत्रण स्थापित कर सकती है। यह दशा में केंद्र सरकार को राज्यों के खर्च के लिए निर्देश देने की अधिकार होती है।
- अनुच्छेद 256-257: इन अनुच्छेदों के तहत, केंद्र सरकार राज्यों की संचार व्यवस्था के बारे में निर्देश दे सकती है। ये निर्देश किसी भी समय दिए जा सकते हैं और राज्यों को इन निर्देशों का पालन करना बाध्य होता है। अगर राज्य इन निर्देशों का पालन नहीं करते हैं, तो राज्य में संवैधानिक तंत्र की असफलता का अनुमान लगाया जा सकता है।
- अनुच्छेद 312: इस अनुच्छेद में, अखिल भारतीय सेवाओं के लिए प्रावधान है। इन सेवाओं के सेवकों की नियुक्ति, प्रशिक्षण, और अनुशासनात्मक क्षेत्रों में पूर्णतः केंद्र सरकार के अधीन होती है, जबकि ये सेवा राज्यों में प्रदान की जाती है और राज्य सरकारों का उन पर कोई नियंत्रण नहीं होता है।
- एकीकृत न्यायपालिका: भारतीय संविधान में न्यायपालिका की एकीकृतता का प्रावधान है, जिसके तहत उच्चतम न्यायालय (सर्वोच्च न्यायालय) केंद्रीय और राज्यों के न्यायिक प्राधिकारियों के संघ का हिस्सा होता है। इससे न्यायपालिका को संविधानिक रूप से सम्पूर्ण देश में एकीकृतता मिलती है।
- राज्यों की कार्यपालिक शक्तियाँ: संघीय कार्यपालिक शक्तियों पर प्रभावी नहीं हो सकती हैं। यह अर्थात् राज्य सरकारों की कार्यपालिका संघ की कार्यपालिका पर अप्रभावी होती हैं।
भारतीय संविधान की दूसरे देशों से ली गयी विशेषताएं
भारतीय संविधान की विशेषताओं में विभिन्न स्रोतों से आहरित तत्त्वों का अनुकरण किया गया है। इसमें निम्नलिखित संविधानों की विशेषताएं शामिल हैं:
- 1935 का भारत सरकार अधिनियम: संघीय योजना, राज्यपाल का पद, न्यायपालिका, लोक सेवा आयोग, आपातकालीन प्रावधान और प्रशासनिक विवरण के मुद्दों में इस अधिनियम से प्रभाव प्राप्त हुए हैं।
- ब्रिटिश संविधान: संसदीय सरकार, विधि का शासन, विधायी प्रक्रिया, एकल नागरिकता, कैबिनेट प्रणाली, विशेषाधिकार रिट, संसदीय विशेषाधिकार और द्विसदनीयता के तत्त्व इस संविधान से उधार लिए गए हैं।
- आयरिश संविधान: राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत, राज्य सभा के सदस्यों का नामनिर्देशन और राष्ट्रपति के चुनाव की पद्धति के मामले में इस संविधान से प्रभाव प्राप्त हुए हैं। इसके अंतर्गत संविधानिक पदाधिकारियों की नियुक्ति, संघीय व्यवस्था, नियमन आयोग, और भारतीय संविधान में संविधानिक पदों की नियुक्ति के मामले में इस संविधान से प्रभाव प्राप्त हुए हैं।
- कनाडा का संविधान: एक मजबूत केंद्र के साथ संघ, केंद्र में अवशिष्ट शक्तियों का निहित होना, केंद्र द्वारा राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति और सर्वोच्च न्यायालय का परामर्शी क्षेत्राधिकार इस संविधान से लिए गए हैं।
- ऑस्ट्रेलियाई संविधान: समवर्ती सूची, व्यापार की स्वतंत्रता, वाणिज्य और समागम, और संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक के मामले में इस संविधान से प्रभाव प्राप्त हुए हैं।
- जर्मनी का वीमर संविधान (वर्त्तमान जर्मनी ) : आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का निलंबन और राष्ट्रीय जुरिसडिक्शन के मामले में इस संविधान से प्रभाव प्राप्त हुए हैं।
- सोवियत संविधान (यूएसएसआर, वर्तमान रूस): मौलिक कर्तव्य और प्रस्तावना में न्याय (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक) का आदर्श इस संविधान से लिए गए हैं।
- फ्रांसीसी संविधान: गणतंत्र और स्वतंत्रता के आदर्श, समानता और प्रस्तावना में बंधुत्व इस संविधान से लिए गए हैं।
- दक्षिण अफ्रीका का संविधान: संविधान में संशोधन के लिए प्रक्रिया और राज्य सभा के सदस्यों का निर्वाचन इस संविधान से लिए गए हैं।
- यूनाइटेड स्टेट्स कंस्टिट्यूशन: मौलिक अधिकार, संघीयता, न्यायिक समीक्षा, राष्ट्रपति पर महाभियोग, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पद से हटाने के मामले में इस संविधान से प्रभाव प्राप्त हुए हैं।
- दक्षिण अफ्रीका का संविधान: संविधान में संशोधन के लिए प्रक्रिया और राज्य सभा के सदस्यों का निर्वाचन इस संविधान से लिए गए हैं।
- जापानी संविधान: जापानी संविधान में विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के मामले में इस संविधान से प्रभाव प्राप्त हुआ है। जापानी संविधान के माध्यम से जापान में एक नई राष्ट्रीय संविधानिक प्रणाली की स्थापना की गई है जिसमें राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों का सुरक्षा, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और प्रमुख शासकीय संस्थाओं की स्थापना शामिल है।
भारतीय संविधान सभा के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- उद्देश्य प्रस्ताव – 13 दिसंबर, 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा सभा में ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पेश किया गया। इस प्रस्ताव को 22 जनवरी, 1946 को सर्व सम्मति से स्वीकार कर लिया गया। इसने संविधान के स्वरूप को काफी हद तक प्रभावित किया।
- संविधान की वर्तमान प्रस्तावना उद्देश्य प्रस्ताव का ही परिवर्तित रूप है ।
- 3 जून, 1947 को भारत के बंटवारे के लिए मांउटबेटन योजना पेश की गयी।
- डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने सभा में 4 नवंबर, 1948 को संविधान का अंतिम प्रारूप पेश किया और पहली बार संविधान पढ़ा गया। सभा में इस पर पांच दिन तक ( 4 नवंबर, 1948 से 9 नवंबर, 1949 तक) आम चर्चा हुई ।
- संविधान पर दूसरी बार 15 नवंबर, 1948 से विचार करना शुरू हुआ। जो 17 अक्टूबर, 1949 तक चला । इस दौरान लगभग 7,653 संशोधन प्रस्ताव आये, जिनमें से वास्तव में 2,473 पर ही सभा में चर्चा हुयी।
- संविधान पर तीसरी बार 14 नवंबर, 1949 से विचार करना शुरू हुआ। डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने संविधान के प्रारूप पर ‘द कॉन्सटिट्यूशन ऐज़ सैटल्ड बाई द असेंबली बी पास्ड’ प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव को 26 नवंबर, 1949 को पारित घोषित कर दिया गया । संविधान सभा के कुल 299 सदस्यों में से 284 सदस्य ने संविधान पर हस्ताक्षर किए ।
- संविधान की प्रस्तावना में 26 नवंबर, 1949 का उल्लेख उस दिन के रूप में किया गया है जिस दिन भारत के लोगों ने सभा में संविधान को अपनाया, लागू किया व स्वयं को संविधान को सौंपा। 26 नवंबर, 1949 को अपनाए गए संविधान में प्रस्तावना, 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं।
भारतीय संविधान सभा की कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ (घटनाक्रम)
- 6 दिसम्बर 1946: इस दिन संविधान सभा की स्थापना हुई (फ्रेंच प्रथा के अनुसार)
- 9 दिसम्बर 1946: इस दिन संविधान सभागृह (संसद भवन ) में संविधान सभा की पहली बैठक हुई। संविधान सभा को संबोधित करने वाले प्रथम व्यक्ति जे.बी. कृपलानी थे। इसकी अध्यक्षता सच्चिदानन्द सिन्हा ने की। स्वतन्त्र देश की माँग करते हुए मुस्लिम लीग ने इस बैठक का बहिष्कार किया।
- 11 दिसम्बर 1946: इस दिन राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष चुने गए तथा हरेंद्र कुमार मुखर्जी उपाध्यक्ष निर्वाचित किये गए।
- 22 जुलाई 1947: संविधान सभा ने तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया।
- 15 अगस्त 1947: इस दिन भारत को स्वतन्त्रता मिली। और भारत से अलग होकर पाकिस्तान नामक देश बना।
- 29 अगस्त 1947: मसौदा समिति बनायीं गयी, जिसके अध्यक्ष डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर बनाए गए। इसके अन्य सदस्य में कन्हैयालाल मुंशी, मोहम्मद सादुल्लाह, अल्लादि कृष्णस्वामी अय्यर, गोपाळ स्वामी अय्यंगार, एन. माधव राव, टी.टी. कृष्णामचारी थे ।
- 16 जुलाई 1948: हरेंद्र कुमार मुखर्जी, वी.टी. कृष्णामचारी को संविधान सभा के दूसरे उपाध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया।
- 26 नवम्बर 1949: संविधान सभा ने भारतीय संविधान को स्वीकार किया और उसके कुछ धाराओं को लागू भी किया।
- 24 जनवरी 1950: इस दिन संविधान सभा की बैठक हुई जिसमें संविधान पर सभी ने अपने हस्ताक्षर करके उसे मान्यता दी।
- 26 जनवरी 1950: इस दिन सम्पूर्ण भारतीय संविधान लागू हुआ।
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इन्हें भी देखें –
- भारतीय संविधान के 22 भाग और 395 अनुच्छेदों की जानकारी
- भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची | अनुच्छेद 246
- भारतीय संविधान की अनुसूचियाँ | Schedules Of the Indian Constitution
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिनियम (1773-1945)
- मुस्लिम लीग (1906-1947)
- भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस (1885-1947)
- ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल और वायसराय (1774-1947)
- भारत के स्वतंत्रता सेनानी: वीरता और समर्पण
- भारत का आधुनिक इतिहास (1857-Present)