भारत की जलवायु में क्षेत्रीय विविधता का होना इसकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है। यहाँ पर्वतीय क्षेत्रों से लेकर समुद्री क्षेत्रों तक कई तरह की जलवायु पाई जाती है, जिसमें हर क्षेत्र का स्वभाव अलग होता है। भारत की पूर्वी और उत्तरी सीमाओं पर स्थित हिमालय पर्वत एक महत्वपूर्ण भूभाग है जो इस क्षेत्र को ठंडा और सुहावना बनाए रखता है। यहाँ पर बर्फबारी, धुप, और ताजगी से भरपूर मौसम पाया जाता है, जो आसपास के क्षेत्रों को प्रभावित करता है।
भारत के उत्तर में स्थित तिब्बत के पठार ने भी इस क्षेत्र को शानदार सुहावना बनाए रखा है। पश्चिमी भारत में स्थित थार मरुस्थल एक अलग ही रूप में अपनी पहचान बनाए रखता है। यहाँ पर गरमी में बेहद उच्च तापमान रहता है और इस क्षेत्र को अपनी रेगिस्तानी जलवायु के लिए जाना जाता है।
भारत के दक्षिण में स्थित हिंद महासागर के उत्तरी शीर्ष पर स्थिति भी इस क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है। यहाँ पर समुद्री हवाएं बहुत अधिक मानसूनी होती हैं, जिससे यहाँ पर वर्षा होती है और कृषि के लिए एक उत्तम मौसम पैदा होता है।
कोपेन के वर्गीकरण के अनुसार, भारत में छह मुख्य जलवायु प्रदेशों को शामिल किया जा सकता है। इन प्रदेशों का विवरण करने पर हम देखते हैं कि हर एक का अपना मौसमिक और जलवायु अनुभव है, जो भिन्न स्थानीय जलवायु की रचना में योगदान करता है।
भारत की जलवायु की विशेषता
एशिया महाद्वीप और हिंद महासागर में अपनी विशिष्ट स्थिति के कारण भारत में उष्णकटिबंधीय मानसून की जलवायु पायी जाती है। भारत में कुछ जगहों पर आर्द्र तो कुछ जगहों पर शुष्क मौसम पाए जाते हैं, जो भारतीय जलवायु की विशेषता है। परन्तु, भारत के कुछ स्थानों पर जैसे लद्दाख और थार रेगिस्तान में नम मौसम नहीं होता है। भारत के अलग अलग क्षेत्र में औसत वर्षा अलग-अलग होती है।
भारत के मेघालय राज्य में सबसे अधिक वर्षा दर्ज की जाती है, जबकि जैसलमेर में सबसे कम वर्षा दर्ज की जाती है। गंगा के मैदानी इलाकों और तटीय क्षेत्रों में जुलाई और अगस्त के दौरान वर्षा होती है। इन महीनों के दौरान कोरोमंडल क्षेत्र शुष्क रहता है। जून और जुलाई के महीनों के दौरान गोवा, पटना और हैदराबाद जैसे स्थानों के साथ-साथ उत्तर पश्चिम के क्षेत्रों में भी वर्षा होती है।
भारत में, दैनिक और वार्षिक तापमान में पर्याप्त भिन्नताएँ देखने को मिलती हैं। थार में उच्चतम दैनिक तापमान का अनुभव होता है जबकि हिमालय में उच्चतम वार्षिक तापमान का अनुभव होता है। तटीय क्षेत्रों में वार्षिक और दैनिक तापमान कम होता है। भारतीय उपमहाद्वीप में गर्मियाँ गर्म और सर्दियाँ मध्यम ठंडी होती हैं। हिमालय में सर्दियाँ अत्यधिक ठंडी होती हैं जबकि गर्मियाँ मध्यम गर्म होती हैं।
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
भारत की जलवायु को निम्नलिखित करक प्रभावित करते हैं –
स्थिति एवं अक्षांशीय विस्तार
भारत उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है एवं कर्क रेखा भारत के लगभग मध्य से होकर गुजरती है अतः यहां का तापमान उच्च रहता है, ये भारत को उष्णकटिबंधीय जलवायु वाला क्षेत्र बनाती है।
समुद्र से दूरी
भारत तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ है भारत के पश्चिमी तट, पूर्वी तट एवं दक्षिण भारतीय क्षेत्र पर समुद्रीय जलवायु का प्रभाव पड़ता है किन्तु उत्तरी भारत, उत्तर पश्चिमी भारत एवं उत्तरी-पूर्वी भारत पर समुद्रीय जलवायु का प्रभाव नगण्य है।
उत्तरी पर्वतीय श्रेणियां
हिमालयी क्षेत्र भारत की जलवायु को प्रभावित करता है यह मानसून की अवधि में भारतीय क्षेत्र में वर्षा का कारण भी बनता है तथा शीत ऋतु में तिब्बतीय क्षेत्र से आने वाली अत्यंत शीत लहरों में रूकावट पैदा कर भारत को शीत लहर के प्रभावों से बचाने के लिए एक आवरण या दीवार की भूमिका निभाता है।
भू-आकृति
भारत की भू-आकृतिक संरचना पहाड़, पठार, मैदान एवं रेगिस्तान भी भारत की जलवायु को प्रभावित करते हैं। अरावली पर्वतमाला का पश्चिमी भाग एवं पश्चिमी घाट का पूर्वी भाग आदि वर्षा की कम मात्रा प्राप्त करने वाले क्षेत्र हैं।
तापमान
किसी भी जगह का तापमान उस जगह पर स्थित वायु में निहित ऊष्मा की मात्रा पर निर्भर करता है और इसी के कारण मौसम ठंडा या गर्म महसूस होता है। वायुमंडल के तापमान का सीधा संबंध पृथ्वी को सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊष्मा से है। वायुमंडल का तापमान न सिर्फ दिन और रात में बदलता है बल्कि एक मौसम से दूसरे मौसम में भी बदल जाता है। सूर्य से किरणों के रूप में पृथ्वी पर आने वाली सौर ऊर्जा पृथ्वी के तापमान के वितरण को प्रभावित करता है।
इसी प्रकार वायु में निहित वजन से पृथ्वी की सतह पर पड़ने वाले दबाव को वायुदाब कहते हैं। समुद्र स्तर पर वायुदाब सबसे अधिक होता है और उंचाई के साथ इसमें कमी आती जाती है। क्षैतिज स्तर पर वायुदाब का वितरण उस स्थान पर पायी जाने वाली वायु के तापमान द्वारा प्रभावित होता है क्योंकि वायुदाब और तापमान में विपरीत संबंध पाया जाता है।
निम्न वायुदाब वाले क्षेत्र वे हैं जहां तापमान अधिक होता है और हवा गर्म होकर उपर की ओर उठने लगती है। निम्नदाब वाले क्षेत्रों में बादलों का निर्माण होता है और वर्षा आदि होती है। उच्च वायुदाब वाले क्षेत्र वे हैं जहां तापमान कम होता है और हवा ठंडी होकर नीचे की ओर बैठने लगती है। निम्नदाब वाले क्षेत्रों में साफ मौसम पाया जाता है और वर्षा नहीं होती है। वायु हमेशा उच्च दबाव वाले क्षेत्र से कम दबाव वाले क्षेत्र की ओर बहती है।
पवन
उच्च दबाव वाले क्षेत्र से निम्न दबाव वाले क्षेत्रों की ओर बहने वाली गतिशील हवा को पवन कहते है। अर्थात गतिशील वायु को पवन (wind) कहते हैं। यह गति पृथ्वी की सतह के लगभग समानांतर रहती है। पृथ्वी से कुछ मीटर ऊपर तक के पवन को सतही पवन और 200 मीटर या अधिक ऊँचाई के पवन को उपरितन पवन कहते हैं।
मौसमी पवन
इन हवाओं (मौसमी पवन) की दिशाएं अलग– अलग मौसमों में अलग– अलग होती हैं। जैसे– मानसूनी पवनें / मानसूनी हवाएं। मानसूनी हवाओं में आर्द्रता की मात्रा, हवाओं की दिशा एवं गति आदि भारतीय जलवायु को प्रभावित करती हैं।
स्थानीय पवन
स्थानीय पवनें छोटे क्षेत्र में सिर्फ दिन के कुछ समय या वर्ष की खास अवधि के दौरान ही चलती हैं। जैसे- लू आदि।
व्यापारिक पवन
व्यापारिक पवनें 5 डिग्री से 30 डिग्री उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के बीच चलने वाली पवनें हैं जो 35 डिग्री उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांश (उच्च दाब) से 0 डिग्री अक्षांश (निम्न दाब) के बीच चलती है।
शीत ऋतु में सूर्य की किरणें मकर रेखा पर सीधी पड़ती है। इससे भारत के उत्तर पश्चिमी भाग में, अरब सागर व बंगाल की खाड़ी की तुलना में अधिक ठण्ड होने के कारण उच्च दाब का निर्माण होता है। तथा अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी में ठण्ड कम होने के कारण निम्न दाब का निर्माण होता है। इस कारण मानसूनी पवनें विपरित दिशा (उच्च दाब से निम्न दाब) में बहने लगती हैं। जाड़े की ऋतु में उत्तर पूर्वी व्यापारिक पवनें पुनः चलने लगती हैं। यह उत्तर पूर्वी मानसून लेकर आता है। तथा बंगाल की खाड़ी से जलवाष्प ग्रहण कर तमिलनाडु के तट पर वर्षा करती है।
ऊध्र्व वायु संरचरण (जेट स्ट्रीम)
जेट स्ट्रीम ऊपरी क्षोभमण्डल में आम तौर पर मध्य अक्षांश में भूमि से 12 किमी. ऊपर पश्चिम से पूर्व तीव्र गति से चलने वाली एक धारा का नाम है। इसकी गति सामान्यतः 150-300 किमी. की होती है।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात और पश्चिमी विक्षोभ
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात का निर्माण बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में होता है। और यह प्रायद्वीपीय भारत के एक बड़े भू-भाग को प्रभावित करता है।
दक्षिणी दोलन (Southern Oscillation)
जब कभी भी हिन्द महासागर के ऊपरी सतह का दबाब अधिक हो जाता है, तब प्रशांत महासागर के ऊपर निम्न दबाब बनता है। और जब प्रशांत महासागर के ऊपर उच्च दबाब की सृष्टि होती है तब हिन्द महासागर के ऊपर निम्न दबाब बनता है। दोनों महासागरों के इस उच्च एवं निम्न वायु दाबी अन्तः सम्बन्ध को ही दक्षिणी दोलन कहते हैं।
एल-नीनो
अल-नीनो / एल-नीनो एक मौसम की स्थिति है जिसका भारत के मानसून पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह समुद्र में होने वाली उथलपुथल है और इससे समुद्र के सतही जल का ताप सामान्य से अधिक हो जाता है। प्रायः इसकी शुरूआत दिसंबर में क्रिसमस के आस पास होती है। ये ईसा मसीह के जन्म का समय है। ऐसा कहा जाता है इसी कारण से इस घटना का नाम एल-नीनो पड़ा जो शिशु ईसा का प्रतीक है। अल-नीनो के प्रभाव के कारण भारत में कम वर्षा होती है।
ला-नीनो
ला-नीना / ला-नीनो भी मानसून का रुख तय करने वाली सामुद्रिक घटना है। एल-नीनो में समुद्री सतह गर्म होती है वहीं ला-नीनो में समुद्री सतह का तापमान बहुत कम हो जाता है। यूं तो सामान्य प्रक्रिया के तहत पेरु तट का समुद्री सतह ठंडी होती है लेकिन यही घटना जब काफी देर तक रहती है तो तापमान में असामान्य रूप से गिरावट आ जाती है। इस घटना को ला-नीनो कहा जाता है। ला-नीनो के प्रभाव में भारत में वर्षा की मात्रा अच्छी रहती है।
कुछ प्रमुख आंधियों के नाम
कुछ प्रमुख आंधियों के नाम निम्नलिखित हैं –
- उत्तर की ओर से आने वाली आंधी / हवा – उत्तरा, उत्तराद, धरोड, धराऊ
- दक्षिण की ओर से आने वाली आंधी / हवा – लकाऊ
- पूर्व की ओर से आने वाली आंधी / हवा – पूरवईयां, पूरवाई, पूरवा, आगुणी
- पश्चिम की ओर से आने वाली आंधी / हवा – पिछवाई, पच्छऊ, पिछवा, आथूणी।
- उत्तर-पूर्व के मध्य से आने वाली आंधी / हवा – संजेरी
- पूर्व-दक्षिण के मध्य से आने वाली आंधी / हवा – चीर/चील
- दक्षिण-पश्चिम के मध्य से आने वाली आंधी / हवा – समंदरी/समुन्द्री
- उत्तर-पश्चिम के मध्य से आने वाली आंधी / हवा – सूर्या
आर्द्रता
वायु में पायी जाने वाली जल या नमी की मात्रा को आर्द्रता कहते हैं। यह आर्द्रता स्थल या विभिन्न जल निकायों से होने वाले वाष्पीकरण या वाष्पोत्सर्जन द्वारा वाष्प के रूप में वायुमंडल में शामिल होती है। जब आर्द्रतायुक्त वायु ऊपर उठती है तो संघनित होकर जल की बूंदों का निर्माण करती है। बादल इन्ही जल बूंदों के समूह होते हैं। जब पानी की ये बूंदें हवा में तैरने के लिहाज से बहुत भारी हो जाती हैं तो बहुत तेजी से जमीन पर आती हैं।
आर्द्रता के तरल रूप में पृथ्वी के धरातल पर वापस आने की क्रिया वर्षा कहलाती है। पौधौं और पशुओं के अस्तित्व के लिए वर्षा बहुत महत्वपूर्ण है। यह पृथ्वी की सतह पर ताजे पानी की आपूर्ति का मुख्य स्रोत है। वर्षा तीन प्रकार की होती है-
- संवहनीय वर्षा
- पर्वतीय वर्षा
- चक्रवातीय वर्षा।
मौसम और जलवायु
- मौसम किसी भी समय किसी क्षेत्र में वायुमंडल की स्थिति को संदर्भित करता है जबकि जलवायु एक लंबी अवधि (30 वर्ष से अधिक) के लिए एक बड़े क्षेत्र में मौसम की स्थिति और बदलावों के कुल योग को संदर्भित करता है।
- मौसम वायुमंडल की एक क्षणिक स्थिति है और यह तेजी से (एक दिन या सप्ताह के भीतर) बदलता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन अदृश्य रूप से होता है और 50 साल या उससे भी अधिक समय के बाद देखा जा सकता है।
- मौसम और जलवायु के तत्व एक ही हैं यानी वायुमंडलीय दबाव, तापमान, आर्द्रता, हवा और वर्षा।
- सामान्यीकृत मासिक वायुमंडलीय स्थितियों के आधार पर, वर्ष को सर्दी, गर्मी या बरसात जैसे मौसमों में विभाजित किया जाता है।
भारत में ऋतुएँ (Seasons in India)
भारत के विभिन्न भागों में तापमान के वितरण मे भी पर्याप्त विविधता देखने को मिलती है। समुद्र तटीय भागों में तापमान में वर्ष भर समानता रहती है लेकिन उत्तरी मैदानों और थार के मरुस्थल में तापमान बहुत अधिक होता है। पश्चिमी घाट के पश्चिमी तट पर और पूर्वोत्तर की पहाड़ियां सबसे अधिक वर्षा वाला क्षेत्र है।
पूर्वोत्तर में ही मौसिनराम विश्व का सर्वाधिक वार्षिक वर्षा वाला स्थान है। पूरब से पश्चिम की ओर बढ़ने पर क्रमशः वर्षा की मात्रा घटती जाती है और थार के मरुस्थलीय भाग में काफ़ी कम वर्षा होती है। भारतीय पर्यावरण और यहाँ की मृदा, वनस्पति तथा मानवीय जीवन पर जलवायु का स्पष्ट प्रभाव है। इस प्रकार से भारतीय जलवायु में वर्ष में चार ऋतुएँ होती हैं-
- जाड़ा / शीत ऋतु (Winter Season) [ Mid-November to March ]
- गर्मी / ग्रीष्म ऋतु ( Summer Season) [ March to June ]
- बरसात / वर्षा ऋतु (Rainy Season) [ June to September ]
- शरदकाल / शरद ऋतु (Spring Season) [ October to mid-December]
जाड़ा / शीत ऋतु (Winter Season)
शीत ऋतु (Winters) का समय नवंबर से मार्च तक का होता है। शीत ऋतु में दिसंबर और जनवरी महीनों में सबसे अधिक ठंड पड़ती हैं। इस समय उत्तरी भारत में औसत तापमान 10 से 15 डिग्री सेल्सियस होता है।
- इस समय उत्तर भारत में उच्च वायुदाब रहता है। और दक्षिण भारत में निम्न वायुदाब रहता है।
- इस समय हवाएं उत्तर भारत से दक्षिण भारत की ओर (उच्च वायु दाब से निम्न वायु दाब की ओर) चलने लगती हैं।
- इन पवनों को शीत कालीन मानसून या लौटता हुआ मानसून अथवा उत्तर पूर्वी मानसून भी कहते हैं।
- इसी मानसून के कारण तमिलनाडु एवं दक्षिणी भारत के तटीय क्षेत्रों में वर्षा होती है।
गर्मी / ग्रीष्म ऋतु (Summer Season)
ग्रीष्म ऋतु को प्री मानसून भी कहते हैं। इसका समय मार्च से जून तक होता है, जिसमें मई सबसे गर्म महीना होता है, औसत तापमान 32 से 40 डिग्री सेल्सियस होता है। इस ऋतु को ‘युनाला’ भी कहते हैं।
मार्च में जब सूर्य उत्तरायण होता है, अर्थात कर्क रेखा से मकर रेखा में चला जाता है तो उत्तर भारत में तापमान बढ़ जाता है। इस समय पूरे उत्तर भारत में तेज गर्म हवाएं चलती हैं। इन हवाओं को लू कहा जाता है। इस समय जो वर्षा होती है उसे मानसूनी वर्षा कहते हैं। इस वर्षा को अलग अलग जगहों पर अलग अलग नामों से जानते हैं। इसे पूर्वी भारत के बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, ओडिशा आदि राज्यों में नार्वेस्टर, कर्नाटक में चेरी व्लासम, दक्षिण भारत में अम्रवृष्टि, आसाम में वोडो चिल्ला नाम से जाना जाता है।
उत्तर-पश्चिमी भारत में गर्मी अप्रैल से शुरू होती है और जुलाई में समाप्त होती है, और देश के बाकी हिस्सों में मार्च से मई तक लेकिन कभी-कभी जून के मध्य तक रहती है। जैसे ही सूर्य की ऊर्ध्वाधर किरणें कर्क रेखा पर पहुँचती हैं, उत्तर में तापमान बढ़ जाता है। देश के पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों के लिए सबसे गर्म महीना अप्रैल है। परन्तु अधिकांश उत्तर भारत के लिए सबसे अधिक गर्म महीना मई है।
इस मौसम के दौरान भारत के कुछ हिस्सों में 50 डिग्री सेल्सियस (122 डिग्री फ़ारेनहाइट) और इससे अधिक तापमान दर्ज (रिकॉर्ड) किया गया है। ग्रीष्म ऋतु की एक और उल्लेखनीय विशेषता लू (गर्म हवा) है। ये भारत में दिन के समय चलने वाली तेज़, तेज़, गर्म, शुष्क हवाएँ हैं। इन हवाओं के साथ आने वाली गर्मी का सीधा संपर्क घातक हो सकता है।
उत्तर भारत के ठंडे क्षेत्रों में, भारी प्री-मानसून तूफ़ान जिनको स्थानीय रूप से “नॉर्वेस्टर्स” कहा जाता है, आमतौर पर बड़े ओले गिराते हैं। हिमाचल प्रदेश में, गर्मी अप्रैल के मध्य से जून के अंत तक रहती है और अधिकांश हिस्से बहुत गर्म हो जाते हैं। इस समय यहाँ पर औसत तापमान 28 डिग्री सेल्सियस (82 डिग्री फारेनहाइट) से 32 डिग्री सेल्सियस (90 फारेनहाइट) के बीच रहता है। अल्पाइन क्षेत्रों में हल्की गर्मी होती है। तट के पास, तापमान 36 डिग्री सेल्सियस (97 डिग्री फ़ारेनहाइट) के आसपास रहता है, और समुद्र की निकटता से आर्द्रता का स्तर बढ़ जाता है। दक्षिणी भारत में, पश्चिमी तट की तुलना में पूर्वी तट पर तापमान कुछ डिग्री अधिक होता है।
नार्वेस्टर किसे कहते हैं?
नार्वेस्टर या चक्रवाती तूफान जिनका उद्भव बंगाल की खाड़ी में होता है। मई-जून महीनों में इसका प्रभाव दिखाई देता है। इसका सबसे ज्यादा असर बिहार के पूर्वी भागों में पड़ता है। और इन्हीं चक्रवातों के कारण वर्षा भी खूब होती है। इससे जान-माल के नुकसान होने का डर बना रहता है। नार्वेस्टर हवा के कारण अत्यधिक वर्षा होती है जो चाय, जुट, चावल की खेती के लिए उपयोगी है।
चेरी ब्लासम किसे कहते हैं?
कर्नाटक में नार्वेस्टर को चेरी व्लासम के नाम से जानते हैं। यह काफी कस फूलों को खिलने में सहायक होती है। इसीलिए कर्नाटक में इसको चेरी व्लासम कहते हैं।
काल वैसाखी किसे कहते हैं?
नार्वेस्टर को पश्चिम बंगाल में काल वैसाखी कहा जाता है।
आम्र वृष्टि किसे कहते हैं?
दक्षिण भारत में इस मानसून ( नार्वेस्टर ) को आम्रवृष्टि नाम से पुकारा जाता है क्योकि यह आमों को पकाने का कार्य करती है।
वोडो चिल्ला किसे कहते हैं?
आसाम में नार्वेस्टर को वोडो चिल्ला के नाम से जानते हैं।
बरसात / वर्षा ऋतु (Rainy Season)
वर्षा ऋतु को मानसून भी कहते हैं। इसका समय मध्य जून से सितम्बर तक होता है, जिसमें सार्वाधिक वर्षा अगस्त महीने में होती है। वस्तुतः मानसून का आगमन और प्रत्यावर्तन (लौटना) दोनों क्रमिक रूप से होते हैं और अलग अलग स्थानों पर इनका समय अलग अलग होता है। सामान्यतः 1 जून को केरल तट पर मानसून के आगमन की तारीख होती है। इसके ठीक बाद यह पूर्वोत्तर भारत में पहुँचता है और क्रमशः पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर गतिशील होता है इलाहाबाद में मानसून के पहुँचने की तिथि 18 जून मानी जाती है तथा दिल्ली में 29 जून।
- इस समय अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में उठने वाले मानसूनों के द्वारा वर्षा होती है।
- मेघालय राज्य का मानसीं राम विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान है।
- भारत में जम्मू कश्मीर के लेह और राजस्थान राज्य के जैसलमेर में सबसे कम वर्षा होती है।
- राजस्थान के थार (जैसलमेर) में 10 cm से भी कम वर्षा होती है परन्तु सबसे कम वर्षा लेह में होती है।
- उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा वर्षा गोरखपुर में होती है।
- उत्तर प्रदेश में सबसे कम वर्षा मथुरा में होती है।
शरदकाल / शरद ऋतु (Spring Season)
शरद ऋतु वह ऋतु है जो ग्रीष्म ऋतु के बाद और शीत ऋतु से पहले आती है। इसको स्प्रिंग सीजन भी कहते हैं। यह गर्मी से सर्दी की ओर संक्रमण का प्रतीक है। इसे हम पतझड़ भी कहते हैं. जैसे-जैसे शरद ऋतु बढ़ती है, दिन छोटे हो जाते हैं और रातें लंबी हो जाती हैं। तापमान भी काफी ठंडा हो जाता है। शरद ऋतु में बरसात के दिन, हवाएँ, भूरे और भारी बादल आम हैं।
उत्तरी भारत में अक्टूबर और नवंबर माह में मौसम साफ़ और शांत रहता है और अक्टूबर में मानसून पीछे हटना (retreat) शुरू हो जाता है जिससे तमिलनाडु के तट पर लौटते मानसून से वर्षा होती है।
- इसे लौटते हुए मानसून का मौसम भी कहा जाता है।
- लौटता हुआ मानसून को निवर्तन मानसून भी कहते हैं।
- दक्षिण भारत में इस समय वर्षा नहीं होती है, लेकिन बंगाल की कड़ी में कई तूफानी चक्रवात बनते हैं।
भारत में जलवायु प्रदेश
वस्तुतः भारत के विस्तार और भू-आकृतिक विविधता का भारत की जलवायु पर इतना प्रभाव है कि भारत की जलवायु को सामान्यीकृत नहीं किया जा सकता। कोपेन के वर्गीकरण में भारत में छह प्रकार की जलवायु का निरूपण है किन्तु यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि भू-आकृति के प्रभाव में छोटे और स्थानीय स्तर पर भी जलवायु में बहुत विविधता और विशिष्टता मिलती है। भारत की जलवायु दक्षिण में उष्णकटिबंधीय है और हिमालयी क्षेत्रों में अधिक ऊँचाई के कारण अल्पाइन (ध्रुवीय जैसी)। एक ओर यह पुर्वोत्तर भारत में उष्ण कटिबंधीय नम प्रकार की है तो पश्चिमी भागों में शुष्क प्रकार की।
कोपेन के वर्गीकरण के अनुसार भारत में निम्नलिखित छह प्रकार के जलवायु प्रदेश पाए जाते हैं:
- अल्पाइन – (ETh)
- आर्द्र उपोष्ण – (Cwa)
- उष्ण कटिबंधीय नम और शुष्क – (Aw)
- उष्ण कटिबंधीय नम – (Am)
- अर्धशुष्क – (BSh)
- शुष्क मरुस्थलीय – (BWh)
अल्पाइन जलवायु
अल्पाइन जलवायु उस ऊँचाई की जलवायु को कहते हैं जो वृक्ष रेखा के ऊपर हो। किसी जगह की जलवायु अल्पाइन है तभी कहा जा सकता है जब वहाँ किसी भी महीने का औसत तापमान 10° सेल्सियस से ऊपर नहीं होता है।
जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे तापमान में गिरावट आती है। इसकी वजह है हवा की गिरावट दर। प्रति किलोमीटर ऊँचाई में तापमान 10° सेल्सियस गिरता है। इसकी वजह यह है कि ऊँचाई में हवा ठंडी होती जाती है क्योंकि दबाव कम होने के कारण वह फैलती है।
अतः पहाड़ों में 100 मीटर ऊँचा जाना तकरीबन अक्षांश में 80 किलोमीटर ध्रुव की ओर जाने के बराबर होता है, हालांकि यह ताल्लुक महज़ अन्दाज़ा है क्योंकि स्थानीय कारण भी, जैसे समुद्र से स्थान की दूरी इत्यादि, जलवायु को बड़े पैमाने में प्रभावित करते हैं। मुख्य रूप से इन इलाकों में हिमपात ही होता है जो अक्सर तेज़ गति की हवाओं के साथ होता है।
अल्पाइन जलवायु वाले पहाड़ी क्षेत्रों में, प्रमुख बायोम अल्पाइन टुण्ड्रा होता है।
आर्द्र उपोष्ण जलवायु
इसे चीन तुल्य जलवायु भी कहते है, क्योंकि इसका सर्वाधिक विस्तार चीन में मिलता है। मुख्य रूप 30 डिग्री सेल्सियस से 45 डिग्री सेल्सियस अक्षांशों के बीच पूर्व समुद्रतटीय क्षेत्रों में मिलती है।
- औसत वार्षिक तापमान:- 20 डिग्री सेल्सियस
- क्षेत्र: कोरिया, द० जापान, उरुग्वे , अमेरिका और द०पू० ऑस्ट्रेलिया।
उष्ण कटिबंधीय नम और शुष्क
उष्ण कटिबंधीय आर्द्र और शुष्क जलवायु मुख्यतः है कटिबंधों में पाया जाता है। उष्ण कटिबंध भूमध्य रेखा से लगभग 23.5 डिग्री उत्तर और 23.5 डिग्री दक्षिण में अक्षांश की दो रेखाएँ हैं। इस क्षेत्र में भूमि वर्ष के अधिकांश समय में सीधी धूप प्राप्त करता है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्र अपने दो मौसमों के लिए जाना जाता है। गीला मौसम और शुष्क मौसम।
ऊष्ण कटिबंध (Tropics) यह विषुवत रेखा से 23 1/2%° उत्तर और 23 1/2%° दक्षिण के बीच का वह भाग हैं । जो उत्तर में कर्क रेखा और दक्षिण में मकर रेखा के बीच भूमध्य रेखा के आसपास स्थित है। यह अक्षांश पृथ्वी के अक्षीय झुकाव से संबन्धित है। कर्क और मकर रेखाओं में एक सौर्य वर्ष में एक बार और इनके बीच के पूरे क्षेत्र में एक सौर्य वर्ष में दो बार सूरज ठीक सिर के ऊपर होता है।
विश्व की जनसंख्या का एक बड़ा भाग (लगभग 40%) इस क्षेत्र में रहता है और ऐसा अनुमान है कि बढ़ती जनसंख्या के कारण यह जनसंख्या और बढ़ेगी। यह पृथ्वी का सबसे गर्म क्षेत्र है क्योंकि पृथ्वी के अक्षीय झुकाव के कारण सूर्य की अधिकतम ऊष्मा भूमध्य रेखा और उसके आस-पास के इलाके पर केन्द्रित होती है। यहाँ औसत तापमान 18°c रहता है।
हालांकि आम जनमत यह है कि ऊष्णकटिबंध एक गर्म इलाका जहाँ हमेशा वर्षा होती रहती है और हरियाली रहती है परन्तु वास्तविकता ऐसी नहीं है। यहाँ ऐसे कई क्षेत्र हैं जहाँ पर ख़ुश्क और नम मौसम पाए जाते हैं। नम मौसम तब होता है जब उस इलाके में वर्ष के औसत की अधिकतम वर्षा होती है। इसको पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए हरित् ऋतु का नाम भी दिया जाता है।
नम इलाके पूरे ऊष्ण और उप-ऊष्ण कटिबंध में फैले हुए हैं।जिस महीने में 60 मि.मी. या उससे अधिक वर्षा होती है उसे नम महीना कहते हैं। ऊष्णकटिबंधीय वनों में ख़ुश्क और नम मौसम नहीं पाया जाता है। यहाँ पूरे साल भर समान रूप से वर्षा होती है। आमतौर पर वर्षा ऋतु ख़ुश्क गर्म मौसम के अन्त में शुरू होती है। कुछ इलाकों में तो इतनी बारिश हो जाती है कि बाढ़ आ जाती है जिससे मिट्टी का कटाव होता है और मिट्टी की उर्वरता भी घटती है। इस क्षेत्र के अधिकांश जानवरों के लिए यह बहुतायत का मौसम होता है और उनका प्रजनन काल इसी से सम्बद्ध रहता है।
विश्व की सबसे घातक बीमारियाँ भी इस क्षेत्र में भरपूर होती हैं। क्योंकि यहाँ का वातावरण मच्छरों के पनपने के लिए भी अनुकूल होता है इसलिए यहाँ मच्छर-सम्बन्धी बीमारियाँ भी बहुत अधिक होती हैं। कई बीमारियाँ तो और क्षेत्रों में पाई ही नहीं जाती हैं।
अर्धशुष्क
आद्र शुष्क जलवायु, जलवायु का एक उपप्रकार है ,जो उन क्षेत्रो में स्थित है ,जहां संभावित वाष्पीकरण-उत्सर्जन से कम वर्षा होती है, लेकिन रेगिस्तानी जलवायु जितनी कम भी नहीं होती है। यह जलवायु बायोम की उत्पत्ति में सहायक होती है। इस जलवायु में छोटी ,कांटेदार /झाड़ीदार वनस्पतियों का विकास होता है।
शुष्क मरुस्थलीय – (BWh)
मरुस्थल एक अनुर्वर क्षेत्र का भूदृश्य है जहाँ कम वर्षण होती है और इसके परिणाम स्वरूप, रहने की स्थिति पौधे और पशु जीवन के लिए प्रतिकूल होती है। वनस्पति की कमी के कारण भूमि की असुरक्षित सतह अनाच्छादन की स्थिति में आ जाती है। पृथ्वी की सतह का लगभग एक तिहाई भाग शुष्क या अर्ध-शुष्क है। इसमें अधिकांश पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्र शामिल हैं, जहां कम वर्षा होती है, और जिन्हें कभी-कभी ध्रुवीय मरुस्थल या “शीतल मरुस्थल” कहा जाता है। मरुस्थलों को गिरने वाली वर्षा की मात्रा, प्रचलित तापमान, मरुस्थलीकरण के कारणों या उनकी भौगोलिक स्थिति के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है।
भारत की जलवायु से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य
भारत की जलवायु से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं –
दैनिक गति/घुर्णन गति
पृथ्वी अपने अक्ष पर 23 1/2 डिग्री झुकी हुई है। यह अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व 1610 किमी./घण्टा की चाल से 23 घण्टे 56 मिनट और 4 सेकण्ड में एक चक्र पुरा करती है। इस गति को घुर्णन गति या दैनिक गति कहते हैं इसी के कारण दिन रात होते हैं।
वार्षिक गति/परिक्रमण गति
पृथ्वी को सूर्य कि परिक्रमा करने में 365 दिन 5 घण्टे 48 मिनट 46 सैकण्ड लगते हैं इसे पृथ्वी की वार्षिक गति या परिक्रमण गति कहते हैं। इसमें लगने वाले समय को सौर वर्ष कहा जाता है। पृथ्वी पर ऋतु परिर्वतन, इसकी अक्ष पर झुके होने के कारण तथा सूर्य के सापेक्ष इसकी स्थिति में परिवर्तन यानि वार्षिक गति के कारण होती है। वार्षिक गति के कारण पृथ्वी पर दिन रात छोटे बड़े होते हैं।
पृथ्वी के परिक्रमण काल में 21 मार्च एवम् 23 सितम्बर को सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर सीधी पड़ती हैं फलस्वरूप सम्पूर्ण पृथ्वी पर रात-दिन की अवधि बराबर होती है।
विषुव
जब सुर्य की किरणें भुमध्य रेखा पर सीधी पड़ती है तो इस स्थिति को विषुव कहा जाता है। वर्ष में दो विषुव होते हैं।
- 21 मार्च को बसन्त विषुव
- 23 सितम्बर को शरद विषुव
आयन
23 1/20 उत्तरी अक्षांश से 23 1/20 दक्षिणी अक्षांश के मध्य का भू-भाग जहां वर्ष में कभी न कभी सुर्य की किरणें सीधी चमकती है आयन कहलाता है यह दो होते हैं।
- उत्तरी आयन (उत्तरायण) – 0 अक्षांश से 23 1/20 उत्तरी अक्षांश के मध्य।
- दक्षीण आयन (दक्षिणायन) – 0 अक्षांश से 23 1/20 दक्षिणी अक्षांश के मध्य।
आयनान्त
जहां आयन का अन्त होता है। उसे आयनान्त कहते हैं। यह दो होते हैं –
- उत्तरी आयन का अन्त (उत्तरायनान्त) – 23 1/20 उत्तरी अक्षांश/कर्क रेखा पर 21 जुन को उत्तरी आयन का अन्त (उत्तरायनान्त) होता है।
- दक्षिणी आयन का अन्त (दक्षिणायनान्त) – 23 1/20 दक्षिणी अक्षांश/मकर रेखा पर 22 दिसम्बर को दक्षिणी आयन का अन्त (दक्षिणायनान्त) होता है।
दिन और रात
पृथ्वी के परिक्रमण काल में 21 जून को कर्क रेखा पर सूर्य की किरणें लम्बवत् रहती है फलस्वरूप उत्तरी गोलार्द्ध में दिन बड़े व रातें छोटी एवम् ग्रीष्म ऋतु होती है जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में सुर्य की किरणें तीरछी पड़ने के कारण दिन छोटे रातें बड़ी व शरद ऋतु होती है।
- उत्तरी गोलार्द्ध का सबसे बड़ा दिन – 21 जुन
- दक्षिणी गोलार्द्ध की सबसे बड़ी रात – 21 जुन
- उत्तरी गोलार्द्ध की सबसे छोटी रात – 21 जुन
- दक्षिणी गोलार्द्ध का सबसे छोटा दिन – 21 जुन
इसी प्रकार पृथ्वी के परिक्रमण काल में 22 दिसम्बर को मकर रेखा पर सुर्य की किरणें लम्बवत् रहती है फलस्वरूप दक्षिण गोलार्द्ध में दिन बड़े, रातें छोटी एवम् ग्रीष्म ऋतु होती है जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में सुर्य कि किरणें तीरछी पड़ने के कारण दिन छोटे, रातें बड़ी व शरद ऋतु होती है।
- दक्षिणी गोलार्द्ध का सबसे बड़ा दिन – 22 दिसम्बर
- उत्तरी गोलार्द्ध की सबसे बड़ी रात – 22 दिसम्बर
- दक्षिणी गोलार्द्ध की सबसे छोटी रात – 22 दिसम्बर
- उत्तरी गोलार्द्ध का सबसे छोटा दिन – 22 दिसम्बर
उपसौर और अपसौर
- उपसौर – सूर्य और पृथ्वी की बीच न्यूनतम दूरी (1470 लाख किमी.) की घटना को उपसौर कहते हैं। यह घटना 3 जनवरी को होती है।
- अपसौर – सूर्य और पृथ्वी के बीच की अधिकतम दूरी (1510 लाख किमी.) की घटना को अपसौर कहते हैं। यह घटना 4 जुलाई को होती है।
गोर
कोई भी दो देशान्तर के मध्य का भू-भाग गोर कहलाता है।
कटिबन्ध
कोई भी दो अक्षांश के मध्य का भू-भाग कटिबंध कहलाता है। भारत दो कटिबन्धों में स्थित है।
- उष्ण कटिबंध
- शीतोष्ण कटिबंध
उष्ण कटिबंध (Tropics)
ऊष्ण कटिबंध विषुवत रेखा से 23 1/2%° उत्तर और 23 1/2%° दक्षिण के बीच भाग हैं, जो उत्तर में कर्क रेखा और दक्षिण में मकर रेखा के बीच भूमध्य रेखा के आसपास स्थित है। यह अक्षांश पृथ्वी के अक्षीय झुकाव से संबन्धित है। कर्क और मकर रेखाओं में एक सौर्य वर्ष में एक बार और इनके बीच के पूरे क्षेत्र में एक सौर्य वर्ष में दो बार सूरज ठीक सिर के ऊपर होता है। विश्व की जनसंख्या का एक बड़ा भाग (लगभग 40%) इस क्षेत्र में रहता है।
शीतोष्ण कटिबंध (Temperate Zone)
शीतोष्ण कटिबन्ध अथवा समशीतोष्ण कटिबन्ध ऊष्णकटिबन्ध और शीत कटिबन्ध के मध्य का क्षेत्र कहलाता है। इस क्षेत्र की विशेषता यह है कि यहाँ गर्मी और सर्दी के मौसम के तापमान में अधिक अन्तर नहीं होता है। परन्तु यहाँ के कुछ क्षेत्रों में, जो समुद्र से काफी दूर हैं जैसे मध्य एशिया और मध्य उत्तरी अमेरिका में तापमान में काफ़ी परिवर्तन होता है। इन इलाकों में महाद्वीपीय जलवायु पाया जाता है।
समशीतोष्ण कटिबन्धीय मौसम ऊष्णकटिबन्ध के कुछ इलाकों में भी पाया जा सकता है, खासतौर पर ऊष्णकटिबन्ध के पहाड़ी इलाकों में, जैसे एन्डीज़ पर्वत शृंखला।
उत्तरी समशीतोष्ण कटिबन्ध उत्तरी गोलार्द्ध में कर्क रेखा (लगभग 23.5o N) से आर्कटिक रेखा (लगभग 66.5o N) तक तथा दक्षिणी समशीतोष्ण कटिबन्ध दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा (लगभग 23.5o S) से अंटार्कटिक रेखा (लगभग 66.5o S) तक का क्षेत्र होता है। विश्व की बहुत बड़ी जनसंख्या समशीतोष्ण कटिबन्ध में रहती है क्योंकि इस इलाके में भूमि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
इन्हें भी देखें –
- भारतीय मानसून और उसकी विविधता
- भारत की मिट्टी | मृदा | वर्गीकरण और विशेषताएं
- कोपेन के अनुसार भारत के जलवायु प्रदेश | Climate regions of India according to Koppen
- अक्षांश और देशांतर रेखाएं | Latitude and Longitude
- भारत के प्रमुख बाँध | Dam in India
- भारत की नदी घाटी परियोजना | Nadi Ghati Pariyojana in India
- भारत में समय क्षेत्र | भारतीय मानक समय
- भारत के प्रमुख जल प्रपात | Waterfalls of India