भारत और जापान के बीच संबंध ऐतिहासिक रूप से गहरे रहे हैं। बौद्ध धर्म, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और एशियाई सभ्यता की साझा विरासत ने इन दोनों देशों को प्राचीन काल से जोड़ रखा है। लेकिन आधुनिक काल में इन संबंधों ने विशेषकर आर्थिक, सामरिक और तकनीकी क्षेत्रों में नई ऊँचाइयाँ हासिल की हैं। 2000 से भारत और जापान वार्षिक शिखर सम्मेलनों के माध्यम से अपनी साझेदारी को निरंतर आगे बढ़ा रहे हैं। इसी कड़ी में 15वां भारत–जापान शिखर सम्मेलन टोक्यो में आयोजित हुआ, जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री फुमियो इशिबा ने भाग लिया।
इस शिखर सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच ‘विशेष रणनीतिक वैश्विक साझेदारी’ को और मज़बूत करना तथा Indo-Pacific क्षेत्र में शांति, स्थिरता और विकास के लिए संयुक्त रूपरेखा तैयार करना था। आइए, विस्तार से समझें इस बैठक के प्रमुख परिणाम, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और भारत–जापान संबंधों के महत्व को।
भारत–जापान शिखर सम्मेलन के प्रमुख परिणाम
1. दीर्घकालिक दृष्टि और रोडमैप
भारत और जापान ने 10 वर्ष का एक साझा रोडमैप प्रस्तुत किया, जो 8 प्रमुख स्तंभों पर आधारित है – अर्थव्यवस्था, सुरक्षा, गतिशीलता, प्रौद्योगिकी, रक्षा, पर्यावरण, बहुपक्षीय सहयोग और संस्कृति। यह रोडमैप दोनों देशों की साझेदारी को अगले दशक में नई दिशा देगा।
2. सुरक्षा और रक्षा संबंध
- दोनों देशों ने सुरक्षा सहयोग पर एक संयुक्त घोषणा (Joint Declaration) को अपनाया।
- रक्षा अभ्यासों की आवृत्ति और दायरा बढ़ाने पर सहमति बनी। इसमें धर्म गार्जियन (थल सेना), शिन्यू मैत्री (वायु सेना) और जिमेक्स (नौसेना) शामिल हैं।
- अधिग्रहण और क्रॉस-सर्विसिंग समझौता (ACSA) के तहत लॉजिस्टिक सहयोग को मज़बूती मिली।
- सप्लाई चेन सुरक्षा, तकनीक और खनिज संसाधनों में नए उपक्रम शुरू करने पर बल दिया गया।
3. गतिशीलता और मानव संसाधन सहयोग
- अगले पाँच वर्षों में 5 लाख लोगों के दो-तरफा आवागमन को सुनिश्चित करने की योजना बनाई गई।
- “नेक्स्ट-जेन मोबिलिटी पार्टनरशिप” के तहत 50,000 भारतीय श्रमिक जापान में कार्य करेंगे।
4. तकनीक और डिजिटल सहयोग
- इंडिया–जापान डिजिटल पार्टनरशिप 2.0 की शुरुआत हुई, जिसमें AI, सेमीकंडक्टर्स, क्वांटम टेक्नोलॉजी और साइबर सुरक्षा शामिल हैं।
- इंडिया–जापान AI इनिशिएटिव से संयुक्त शोध और नवाचार को प्रोत्साहन मिलेगा।
5. सतत विकास और हरित प्रगति
- Joint Crediting Mechanism (JCM) के तहत लो-कार्बन टेक्नोलॉजी को बढ़ावा।
- स्वच्छ हाइड्रोजन और अमोनिया ईंधन पर सहयोग।
- अपशिष्ट जल प्रबंधन और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में भागीदारी।
6. अंतरिक्ष और महत्वपूर्ण खनिज
- इसरो और JAXA ने लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन मिशन पर सहयोग को आगे बढ़ाया।
- महत्वपूर्ण खनिज संसाधनों पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
7. संस्कृति और जन–से–जन संबंध
- शिक्षा, पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के नए कार्यक्रम।
- शहर–प्रान्त स्तर पर साझेदारी से उप-राष्ट्रीय संबंधों को प्रोत्साहन।
भारत–जापान संबंधों का महत्व
1. रणनीतिक साझेदारी
दोनों देश Indo-Pacific क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए एक-दूसरे के प्राकृतिक साझेदार हैं। चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत और जापान का सहयोग इस क्षेत्र में संतुलन बनाए रखने में अहम है।
2. आर्थिक सहयोग
जापान भारत का एक बड़ा निवेशक है, खासकर इंफ्रास्ट्रक्चर, रेलवे, हाई-स्पीड रेल परियोजना (बुलेट ट्रेन), स्मार्ट सिटी और टेक्नोलॉजी में। दोनों देशों का व्यापार और निवेश संबंध भारतीय अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने में योगदान देता है।
3. रक्षा सहयोग
समुद्री सुरक्षा, नौसैनिक अभ्यास और आपसी रक्षा सहयोग भारत–जापान संबंधों का एक मजबूत स्तंभ है। हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा दोनों के साझा हितों में शामिल है।
4. सांस्कृतिक संबंध
बौद्ध धर्म ने छठी शताब्दी से ही दोनों देशों को जोड़ रखा है। जापानी कला, साहित्य और संस्कृति में भारतीय दर्शन की झलक मिलती है।
5. क्वाड (QUAD) में भूमिका
भारत और जापान अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर क्वाड समूह का हिस्सा हैं, जिसका उद्देश्य Indo-Pacific क्षेत्र को मुक्त, खुला और सुरक्षित बनाए रखना है।
6. वैश्विक मंच पर सहयोग
जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रबंधन, आतंकवाद निरोध, और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार जैसे मुद्दों पर भारत और जापान एक-दूसरे के साथ खड़े रहते हैं।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
- सांस्कृतिक संबंध: छठी शताब्दी से बौद्ध धर्म ने भारत और जापान के बीच सांस्कृतिक व आध्यात्मिक सेतु का निर्माण किया।
- युद्ध के बाद संबंध: 1952 की शांति संधि के बाद द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात दोनों देशों के राजनयिक संबंध पुनः स्थापित हुए।
- वार्षिक शिखर सम्मेलन: 2000 से भारत और जापान ने वार्षिक शिखर बैठकें शुरू कीं, जो भारत की सबसे पुरानी समिट व्यवस्थाओं में से एक है।
संबंधों का विकास:
- 2000 – ग्लोबल पार्टनरशिप: साझा हितों को मान्यता देते हुए संबंधों को वैश्विक साझेदारी का रूप दिया गया।
- 2006 – स्ट्रैटेजिक एंड ग्लोबल पार्टनरशिप: सुरक्षा और आर्थिक सहयोग को गहराई देने के लिए संबंध और मज़बूत किए गए।
- 2014 – स्पेशल स्ट्रैटेजिक एंड ग्लोबल पार्टनरशिप: संबंधों को असाधारण विश्वास और साझा इंडो-पैसिफिक दृष्टिकोण के आधार पर नई ऊँचाई प्रदान की गई।
निष्कर्ष
15वां भारत–जापान शिखर सम्मेलन केवल एक कूटनीतिक बैठक नहीं, बल्कि यह दोनों देशों की गहरी होती साझेदारी का प्रतीक है। इस सम्मेलन में तैयार किए गए 10 साल के रोडमैप से यह स्पष्ट है कि भारत और जापान आने वाले दशक में Indo-Pacific की शांति, स्थिरता और विकास में निर्णायक भूमिका निभाएंगे।
सामरिक सहयोग, आर्थिक निवेश, तकनीकी नवाचार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान मिलकर इस संबंध को और व्यापक बनाते हैं। यह साझेदारी न केवल भारत और जापान, बल्कि पूरे एशिया–प्रशांत क्षेत्र के लिए स्थिरता और प्रगति का आधार बन सकती है।
भारत–जापान संबंध इस तथ्य का उदाहरण हैं कि जब दो देश साझा मूल्यों और दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ते हैं, तो वे वैश्विक व्यवस्था को सकारात्मक दिशा दे सकते हैं।
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