भारत पर 25% अमेरिकी टैरिफ और अमेरिका-पाकिस्तान तेल समझौता

2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25% तक टैरिफ लगाते हुए व्यापार असंतुलन और रूस से तेल आयात को कारण बताया है। साथ ही अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ एक ऐतिहासिक तेल समझौता भी किया है, जो क्षेत्रीय संतुलन, ब्रिक्स, और चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना को चुनौती दे सकता है। जानिए इस निर्णय का भारत, पाकिस्तान और वैश्विक कूटनीति पर क्या असर पड़ेगा।

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ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति और वैश्विक व्यापार पर प्रभाव

अमेरिका के पूर्व और वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की “America First” नीति वैश्विक व्यापारिक संबंधों में एक निर्णायक मोड़ रही है। इस नीति का मूल उद्देश्य अमेरिकी कंपनियों और श्रमिकों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना, घरेलू उद्योगों को संरक्षण देना और व्यापार घाटे को कम करना रहा है। इस रणनीति के तहत ट्रंप प्रशासन ने पहले चीन, यूरोपीय संघ, कनाडा और मैक्सिको जैसे देशों पर भारी टैरिफ लगाए थे। अब, 2025 में, भारत को इस नीति की नवीनतम लहर का सामना करना पड़ रहा है।

1 अगस्त 2025 से, ट्रंप प्रशासन ने भारत पर 25% तक के टैरिफ लगाने की घोषणा की है। इस निर्णय का औचित्य व्यापार असंतुलन, रूस से भारत के तेल आयात और ब्रिक्स में भारत की भूमिका बताया गया है। यही नहीं, कुछ ही घंटों बाद ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ एक ऐतिहासिक समझौते की घोषणा की, जिसके तहत अमेरिका पाकिस्तान के तेल भंडारों के विकास में सहयोग करेगा।

भारत पर टैरिफ: कारण और प्रभाव

1. भारत के साथ व्यापार असंतुलन

अमेरिका लंबे समय से यह आरोप लगाता रहा है कि भारत के साथ व्यापार में असंतुलन अमेरिका के नुकसान में है। भारत से अमेरिका का आयात अमेरिका से भारत के निर्यात से कहीं अधिक है। इस अंतर को संतुलित करने के प्रयास में अमेरिका अब टैरिफ का सहारा ले रहा है।

2. रूस से तेल आयात पर आपत्ति

रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पश्चिमी देशों ने रूस पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं। लेकिन भारत, अपने रणनीतिक हितों को देखते हुए, रूस से तेल आयात करता रहा है। ट्रंप ने इस तथ्य को अमेरिका के हितों के विरुद्ध माना और इसे एक प्रमुख कारण के रूप में प्रस्तुत किया।

3. ब्रिक्स में भारत की भूमिका

ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) समूह को ट्रंप ने “संयुक्त राज्य अमेरिका विरोधी गठबंधन” बताया है। चूंकि भारत इस समूह में सक्रिय है और हाल ही में इसकी अध्यक्षता भी कर चुका है, ट्रंप ने इसे अमेरिका के रणनीतिक हितों के खिलाफ देखा है।

भारत पर संभावित टैरिफ का विश्लेषण: किन-किन क्षेत्रों पर होगा प्रभाव

1. वस्त्र और परिधान (Textiles & Garments)

ट्रंप प्रशासन द्वारा 20-25% तक टैरिफ लगाए जाने से भारत के वस्त्र और परिधान उत्पादों की कीमत अमेरिकी बाजार में बढ़ जाएगी। यह भारतीय निर्यातकों के लिए नुकसानदायक होगा, क्योंकि बांग्लादेश, वियतनाम और कंबोडिया जैसे प्रतिस्पर्धी देशों को अमेरिका से लाभ मिल सकता है।

2. आभूषण और हीरे (Jewelry & Diamonds)

26–27% तक टैरिफ लगने से भारत के आभूषण उत्पादों की मांग अमेरिका में घट सकती है। अमेरिका भारत के कटे और पॉलिश किए गए हीरों का सबसे बड़ा बाजार है। इस सेक्टर में मांग घटने का सीधा असर भारत के MSME सेक्टर और लाखों कारीगरों पर पड़ सकता है।

3. ऑटोमोबाइल क्षेत्र

यदि ऑटोमोबाइल उत्पादों पर भी 25–27% अतिरिक्त शुल्क लगाया गया, तो भारत के वाहन और ऑटो-पार्ट्स महंगे हो जाएंगे। पहले से ही स्टील और एल्यूमिनियम पर टैरिफ लगे हुए हैं, जिससे भारत के ऑटो निर्यात पर दोहरा प्रभाव पड़ेगा।

4. मोबाइल, टेलीकॉम और इलेक्ट्रॉनिक्स

भारत के मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद अमेरिका में महंगे हो सकते हैं, जिससे अरबों डॉलर का निर्यात प्रभावित होगा। अमेरिका अन्य वैकल्पिक देशों जैसे ताइवान, मलेशिया या दक्षिण कोरिया से आयात की ओर झुक सकता है।

5. केमिकल्स और रसायन उद्योग

भारत के केमिकल सेक्टर पर भी असर पड़ सकता है, विशेषकर उन उत्पादों पर जिनकी अमेरिका को वैकल्पिक स्रोतों से आपूर्ति संभव है। इससे भारत की रासायनिक निर्यात रणनीति को पुनः परिभाषित करना पड़ सकता है।

किन क्षेत्रों को मिल सकती है राहत?

कुछ क्षेत्रों में अमेरिका ने रणनीतिक कारणों से राहत देने के संकेत दिए हैं:

  • फार्मास्यूटिकल्स: भारत अमेरिका को जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा निर्यातक है। ट्रंप प्रशासन इन उत्पादों को टैरिफ से छूट दे सकता है क्योंकि ये अमेरिकी स्वास्थ्य प्रणाली के लिए जरूरी हैं।
  • सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स चिप्स: सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में अमेरिका और भारत के बीच रणनीतिक सहयोग की संभावना है। अमेरिका भारत को चीन का विकल्प मानता है।
  • ऊर्जा उत्पाद और कॉपर: ये सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं जिनमें अमेरिकी कंपनियां भारतीय बाजार में विस्तार चाहती हैं।

ट्रंप का दोहरा संदेश: ‘मोदी मेरे मित्र हैं’, लेकिन भारत का टैरिफ सबसे ज़्यादा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा के बाद एक नया बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने भारत के साथ व्यापार बातचीत की संभावनाओं को खुला रखा, लेकिन साथ ही भारत की टैरिफ नीतियों और ब्रिक्स में भूमिका पर कड़ा रुख भी दिखाया। व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बातचीत करते हुए ट्रंप ने कहा:

“हम भारत से बातचीत कर रहे हैं। देखते हैं क्या होता है। प्रधानमंत्री मोदी मेरे मित्र हैं, लेकिन व्यापार के लिहाज से वे हमारे साथ बहुत ज्यादा व्यापार नहीं करते क्योंकि टैरिफ बहुत ज़्यादा है।”

उन्होंने दावा किया कि भारत “दुनिया का सबसे ज़्यादा टैरिफ लगाने वाला देश” है और इस असमानता को दूर करने के लिए अमेरिका को कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। ट्रंप ने यह भी कहा कि भारत इसमें काफी कटौती करने को तैयार है, लेकिन यह देखना बाकी है कि वह वास्तव में कितना आगे बढ़ता है।

ट्रंप ने भारत के ब्रिक्स सदस्यता को लेकर भी नाराज़गी जताई। उन्होंने BRICS को “अमेरिका विरोधी देशों का समूह” करार देते हुए कहा:

“वे डॉलर पर हमला कर रहे हैं। हम किसी को भी डॉलर पर हमला नहीं करने देंगे।”

उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यदि ब्रिक्स देश डॉलर की सर्वोच्चता को चुनौती देने की दिशा में आगे बढ़ते हैं, तो 10% अतिरिक्त टैरिफ लगाया जा सकता है।

ट्रंप की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब भारत और अमेरिका के बीच एक व्यापार समझौते को लेकर 25 अगस्त 2025 से वार्ता शुरू होनी थी, और एक अमेरिकी ट्रेड टीम भारत आने वाली थी। लेकिन टैरिफ और जुर्माने की इस आश्चर्यजनक घोषणा ने इन संभावित वार्ताओं पर अनिश्चितता का साया डाल दिया है।

“नेशन फर्स्ट”: ट्रंप के टैरिफ पर भारत का संतुलित लेकिन सख्त जवाब

डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 25% तक के टैरिफ लगाने की घोषणा के तुरंत बाद, भारत सरकार ने संयमित लेकिन स्पष्ट रुख अपनाया। सरकार ने दो टूक शब्दों में कहा कि ‘नेशन फर्स्ट’ भारत की नीति का मूलमंत्र है और देशहित में आवश्यक हर कदम उठाया जाएगा।

सरकार ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि वह इन टैरिफ के संभावित प्रभावों का गंभीरता से अध्ययन कर रही है और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी संभावित विकल्पों पर विचार किया जाएगा। इसके साथ ही भारत ने यह भी दोहराया कि वह ट्रेड डील को लेकर प्रतिबद्ध है और व्यापार वार्ताओं को जारी रखने के लिए तैयार है।

बयान में आगे कहा गया:

“हम किसानों, उद्यमियों और सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (MSME) के कल्याण और संवर्धन को सर्वोच्च महत्व देते हैं। सरकार अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाएगी, जैसा कि ब्रिटेन के साथ हुए हालिया व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौते (CETA) सहित अन्य व्यापार समझौतों के मामले में किया गया है।”

भारत का यह संतुलित लेकिन दृढ़ रुख यह संकेत देता है कि सरकार किसी भी तरह के आर्थिक या कूटनीतिक दबाव में आए बिना अपने दीर्घकालिक हितों को प्राथमिकता देगी। साथ ही, यह संकेत भी दिया गया है कि अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों में पारस्परिक सम्मान और संतुलन की आवश्यकता है।

ट्रंप और पाकिस्तान: तेल समझौते की घोषणा और उसके उद्देश्य

भारत पर टैरिफ की घोषणा के कुछ ही घंटों बाद, ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ एक महत्वपूर्ण समझौते की घोषणा की। इसके अंतर्गत अमेरिका, पाकिस्तान के अप्रयुक्त तेल भंडारों के विकास में निवेश करेगा। यह समझौता पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार और अमेरिकी अधिकारियों के बीच कई दौर की वार्ता के बाद अस्तित्व में आया।

मुख्य उद्देश्य:

  • तेल भंडारों की खोज और दोहन में सहयोग।
  • भविष्य में भारत जैसे बड़े बाजारों को पाकिस्तान से तेल निर्यात की संभावना।
  • अमेरिका की ऊर्जा रणनीति में दक्षिण एशिया को शामिल करना।
  • चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना और BRICS के प्रभाव का मुकाबला करना।

पाकिस्तान के लिए क्या हैं लाभ?

  • ऊर्जा आत्मनिर्भरता: पाकिस्तान की ऊर्जा आयात पर निर्भरता घट सकती है।
  • अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन: तेल क्षेत्र में निवेश से नौकरियां, टैक्स राजस्व और तकनीकी विकास होगा।
  • अमेरिका के साथ संबंधों में सुधार: पारंपरिक सुरक्षा साझेदारी से आगे बढ़ते हुए अब ऊर्जा साझेदारी भी स्थापित हो रही है।

क्षेत्रीय और भू-राजनीतिक प्रभाव

1. भारत-पाकिस्तान संघर्षविराम पर प्रभाव

2025 की शुरुआत में भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम पर सहमति बनी थी। अमेरिकी हस्तक्षेप से इस संघर्षविराम पर दबाव बढ़ सकता है। विशेषकर यदि अमेरिका पाकिस्तान के साथ रक्षा सहयोग भी बढ़ाता है।

2. चीन की प्रतिक्रिया

चीन के लिए यह सौदा खतरे की घंटी हो सकता है। अमेरिका अब दक्षिण एशिया में नई रणनीतिक पकड़ बनाने की दिशा में सक्रिय है, जो चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के लिए चुनौती बन सकता है।

3. ब्रिक्स पर अमेरिकी नजर

ब्रिक्स का विस्तार और भारत की बढ़ती भूमिका ट्रंप को असहज करती है। अमेरिकी नीति अब BRICS देशों को आर्थिक दबाव में डालने की दिशा में भी देखी जा सकती है।

भारत को क्या करना चाहिए?

  1. व्यापार रणनीति में विविधता लाएं: भारत को अमेरिका के विकल्प के रूप में यूरोप, ASEAN और अफ्रीकी देशों के साथ व्यापारिक साझेदारी मजबूत करनी चाहिए।
  2. घरेलू उद्योगों का सशक्तिकरण: भारत को टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिए अपने घरेलू उद्योगों को प्रतिस्पर्धी बनाना होगा।
  3. ऊर्जा साझेदारियों को मजबूत करना: भारत को भी तेल के लिए अमेरिका के बजाय रूस, UAE और ईरान जैसे देशों के साथ रणनीतिक ऊर्जा गठबंधन बनाने चाहिए।
  4. कूटनीतिक सक्रियता: भारत को अमेरिकी कांग्रेस और उद्योग समूहों के साथ लॉबिंग करनी चाहिए ताकि टैरिफ नीति में कुछ नरमी लाई जा सके।

निष्कर्ष

डोनाल्ड ट्रंप की नई टैरिफ नीति और पाकिस्तान के साथ किया गया तेल समझौता वैश्विक व्यापार और दक्षिण एशियाई राजनीति के समीकरणों को बदलने वाला कदम है। भारत के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय है जब उसे न केवल अपने व्यापारिक हितों की रक्षा करनी है बल्कि क्षेत्रीय रणनीतिक संतुलन भी बनाए रखना है। अमेरिका के इस रुख से भारत को सतर्क रहते हुए, अपनी रणनीतिक और कूटनीतिक पहलों को मजबूती प्रदान करनी होगी।

साफ है, 2025 के इस घटनाक्रम ने वैश्विक कूटनीति और व्यापारिक धारणाओं में एक नया अध्याय जोड़ दिया है, जिसमें भारत की भूमिका निर्णायक होगी।


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