भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 | एक शक्तिशाली विजय और एकता की कहानी

भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 भारत और पाकिस्तान के बीच एक सैन्य संघर्ष था, जो हथियारबंद लड़ाई के दो मोर्चों पर 14 दिनों के युद्ध के बाद, पाकिस्तान सेना और पूर्वी पाकिस्तान के अलग होने की पूर्वी कमान के समर्पण के साथ खत्म हुआ। 

भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 एक महत्वपूर्ण और संघर्षपूर्ण युद्ध था जो भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ। यह युद्ध पूर्वी पाकिस्तान (जो अब बांगलादेश है) में आराम और स्वतंत्रता की मांग करने वाले बांगलादेश स्वतंत्रता संग्राम सेना (Mukti Bahini) के समर्थन में भारतीय सेना की सहायता के परिणामस्वरूप हुआ। इस युद्ध के परिणामस्वरूप बांगलादेश की मुक्ति हुई और नये राष्ट्र बांगलादेश की स्थापना हुई।

युद्ध की शुरुआत 3 दिसंबर 1971 को हुई जब पाकिस्तानी वायुसेना ने भारतीय वायुसेना के आक्रमण के बहाने भारत पर हमला किया। इसके बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ युद्ध की घोषणा की और भारतीय सेना ने भारत-पाकिस्तान सीमा पर हमले किए। भारतीय सेना ने एक शक्तिशाली आक्रमण के जरिये बांगलादेश में पाकिस्तानी सेना के आधिकारिक और अवैध ठिकानों को ध्वस्त किया और बांगलादेश के स्वतंत्रता संग्राम सेना (मुक्ति वाहिनी) के साथ मिलकर पाकिस्तानी सेना को हराया।

युद्ध के दौरान, भारतीय सेना ने भूमिगत संघर्ष, वायुयुद्ध और नौसेना के आक्रमण का उपयोग किया। इसके बाद, दिसंबर 1971 तक, पाकिस्तानी सेना की संख्या और सामरिक ताकत में अधिकारियों की कमी के कारण, भारतीय सेना ने दबाव बढ़ाया और अंततः पाकिस्तान को हराया।

युद्ध के परिणामस्वरूप, पाकिस्तानी सेना को मानसिक, भौतिक और अर्थव्यवस्था की बड़ी हानि हुई और दिसंबर 1971 में पाकिस्तानी सेना ने अंततः हाथियारों को सौंप दिया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप, बांगलादेश की स्वतंत्रता की पुष्टि हुई और बांगलादेश को आधिकारिक रूप से 16 दिसंबर 1971 को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। यह युद्ध भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था और इसने भारत-पाकिस्तान संबंधों पर गहरा प्रभाव डाला।

बांग्लादेश के स्वतंत्र राज्य पहचानने, 97,368 पश्चिम पाकिस्तानियों जो अपनी स्वतंत्रता के समय पूर्वी पाकिस्तान में थे, कुछ 79,700 पाकिस्तान सेना के सैनिकों और अर्द्धसैनिक बलों के कर्मियों सहित और लगभग 12,500 नागरिकों को भारत द्वारा युद्ध के कैदियों के रूप में ले जाया गया।

राजनीतिक हलचल

लड़ाई शुरू होने से दो महीने पहले अक्तूबर 1971 में नौसेना अध्यक्ष एडमिरल एसएम नंदा भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से मिलने गए। नौसेना की तैयारियों के बारे में बताने के बाद उन्होंने श्रीमती गांधी से पूछा अगर नौसेना कराची पर हमला करें, तो क्या इससे सरकार को राजनीतिक रूप से कोई आपत्ति हो सकती है।

इंदिरा गांधी ने हाँ या न कहने के बजाए सवाल पूछा कि आप ऐसा पूछ क्यों रहे हैं। नंदा ने जवाब दिया कि 1965 में नौसेना से ख़ास तौर से कहा गया था कि वह भारतीय समुद्री सीमा से बाहर कोई कार्यवाही न करें, जिससे उसके सामने कई परेशानियाँ उठ खड़ी हुई थीं। इंदिरा गांधी ने कुछ देर सोचा और कहा, ‘वेल एडमिरल, इफ़ देयर इज़ अ वार, देअर इज़ अ वार.’ यानी अगर लड़ाई है तो लड़ाई है। एडमिरल नंदा ने उन्हें धन्यवाद दिया और कहा, ‘मैडम मुझे मेरा जवाब मिल गया।’

भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 में हमले की योजना

सील्ड लिफ़ाफ़े में हमले के आदेश कराची पर हमले की योजना बनाई गई और 1 दिसंबर 1971 को सभी पोतों को कराची पर हमला करने के सील्ड लिफ़ाफे में आदेश दे दिए गए। पूरा वेस्टर्न फ़्लीट 2 दिसंबर को मुंबई से कूच कर गया। उनसे कहा गया कि युद्ध शुरू होने के बाद ही वह उस सील्ड लिफ़ाफ़े को खोलें। योजना थी कि नौसैनिक बेड़ा दिन के दौरान कराची से 250 किलोमीटर के वृत्त पर रहेगा और शाम होते-होते उसके 150 किलोमीटर की दूरी पर पहुँच जाएगा।

भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 | एक शक्तिशाली विजय और एकता की कहानी

अंधेरे में हमला करने के बाद पौ फटने से पहले वह अपनी तीव्रतम रफ़्तार से चलते हुए कराची से 150 किमी दूर आ जाएगा, ताकि वह पाकिस्तानी बम वर्षकों की पहुँच से बाहर आ जाए और हमला भी रूस की ओसा क्लास मिसाइल बोट से किया जाएगा। वह वहाँ खुद से चल कर नहीं जाएंगी, बल्कि उन्हें नाइलोन की रस्सियों से खींच कर ले जाया जाएगा। ऑपरेशन ट्राइडेंट के तहत पहला हमला निपट, निर्घट और वीर मिसाइल बोट्स ने किया।

प्रत्येक मिसाइल बोट चार-चार मिसाइलों से लैस थीं। स्क्वार्डन कमांडर बबरू यादव निपट पर मौजूद थे। बाण की शक्ल बनाते हुए निपट सबसे आगे था उसके पीछे बाईं तरफ़ निर्घट था और दाहिना छोर वीर ने संभाला हुआ था। उसके ठीक पीछे आईएनएस किल्टन चल रहा था।

भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 की पृष्ठभूमि

1947 में भारत और पाकिस्तान के बीच पार्टीशन के बाद, दोनों देशों के बीच कई विवाद उठने लगे। पाकिस्तान में इस्लामी आधार पर स्थापित होने के कारण हिन्दू-मुस्लिम विवाद तेज हो गए। इसके अलावा पाकिस्तान की पश्चिमी छोर पर स्थित ईस्ट पाकिस्तान (अब बांगलादेश) को सुन्नी मुस्लिम बहुलता वाले बंगाली जनसंख्या के बीच शीघ्र ही राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक असामंजस का आदान-प्रादान होने लगा।

भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 के कारण

1970 में हुए पाकिस्तानी चुनावों में पूर्व पूर्वबंगाल (बांगलादेश) में बसे जनसत्ताओं द्वारा अलावा इस्लामाबाद में नेशनल एवरेज पार्टी (NAP) के समर्थन से बनी जनता की सभीजनमों संघ (Awami League) की जीत हुई। परंतु इसे पाकिस्तान की मध्यस्थता के बिना लागू नहीं किया गया। पाकिस्तान के मामले में बंगाली लोगों का आत्म-गोपनीयता, संघटना, और राजनीतिक नामों को वापस लाने के विरोध में जनसत्ताओं का विरोध हुआ। इसके चलते बंगाली लोगों में अलगाववादी भावनाएं फैलने लगीं। इसी बीच पाकिस्तान सरकार ने बांगलादेश के भागीदारों पर उत्पीड़न का अपराध लगाकर उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश की।

भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 के क्रम

दिसंबर 1970 में हुए चुनावों के नतीजे के बाद, अलावा पाकिस्तान सरकार ने बंगाली लोगों के खिलाफ नीतियों को लागू किया। यह भारतीय सरकार के ध्यान में आया और वह इसके खिलाफ कदम उठाने का निर्णय लिया।

3 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ आक्रमण की शुरुआत की। इसके बाद से युद्ध दोनों देशों के बीच हुआ। भारतीय सेना की शक्ति, युद्ध कला, और तटीय नौसेना द्वारा भारत ने उच्च शुरुआती लाभ प्राप्त किया। विशेष रूप से मुख्यमंत्री इंदिरा गांधी ने वायुसेना को पूर्ण स्वतंत्रता और समर्पण के साथ युद्ध के प्रत्येक क्षेत्र में सक्रिय बनाया।

दिसंबर 1971 के बाद तेजी से आगे बढ़ते हुए भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कई खेत्रों में अवरोध और नष्ट कार्रवाई की। यहां तक कि 16 दिसंबर 1971 को धाका, बांगलादेश की राजधानी, भारतीय सेना की गद्दारी में आ गई और पाकिस्तानी सेना ने सरेंडर कर दी।

भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 में ख़ैबर डूबा

विजय जेरथ के नेतृत्व में कराची पर हमला हुआ था। कराची से 40 किलोमीटर दूर यादव ने अपने रडार पर हरकत महसूस की। उन्हें एक पाकिस्तानी युद्ध पोत अपनी तरफ़ आता दिखाई दिया। उस समय रात के 10 बज कर 40 मिनट हुए थे। यादव ने निर्घट को आदेश दिया कि वह अपना रास्ता बदले और पाकिस्तानी जहाज़ पर हमला करे। निर्घट ने 20 किलोमीटर की दूरी से पाकिस्तानी विध्वंसक पीएनएस ख़ैबर पर मिसाइल चलाई।

ख़ैबर के नाविकों ने समझा कि उनकी तरफ़ आती हुई मिसाइल एक युद्धक विमान है। उन्होंने अपनी विमान भेदी तोपों से मिसाइल को निशाना बनाने की कोशिश की लेकिन वह अपने को मिसाइल का निशाना बनने से न रोक सके। तभी कमांडर यादव ने 17 किलोमीटर की दूरी से ख़ैबर पर एक और मिसाइल चलाने का आदेश दिया और किल्टन से भी कहा कि वह निर्घट के बग़ल में जाए। दूसरी मिसाइल लगते ही ख़ैबर की गति शून्य हो गई।

पोत में आग लग गई और उससे गहरा धुँआ निकलने लगा. थोड़ी देर में ख़ैबर पानी में डूब गया. उस समय वह कराची से 35 नॉटिकल मील दूर था और समय था 11 बजकर 20 मिनट। उधर निपट ने पहले वीनस चैलेंजर पर एक मिसाइल दागी और फिर शाहजहाँ पर दूसरी मिसाइल चलाई।

वीनस चैलेंजर तुरंत डूब गया जबकि शाहजहाँ को नुक़सान पहुँचा। तीसरी मिसाइल ने कीमारी के तेल टैंकर्स को निशाना बनाया जिससे दो टैंकरों में आग लग गई। इस बीच वीर ने पाकिस्तानी माइन स्वीपर पीएन एस मुहाफ़िज़ पर एक मिसाइल चलाई जिससे उसमें आग लग गई और वह बहुत तेज़ी से डूब गया। इस हमले के बाद से पाकिस्तानी नौसेना सतर्क हो गई और उसने दिन रात कराची के चारों तरफ़ छोटे विमानों से निगरानी रखनी शुरू कर दी।

6 दिसंबर को नौसेना मुख्यालय ने पाकिस्तानी नौसेना का एक संदेश पकड़ा जिससे पता चला कि पाकिस्तानी वायुसेना ने एक अपने ही पोत पीएनएस ज़ुल्फ़िकार को भारतीय युद्धपोत समझते हुए उस पर ही बमबारी कर दी। पश्चिमी बेड़े के फ़्लैग ऑफ़िसर कमांडिंग एडमिरल कुरुविला ने कराची पर दूसरा मिसाइल बोट हमला करने की योजना बनाई और उसे ऑपरेशन पाइथन का नाम दिया गया।

भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 में ‘विनाश’ का हमला

इस बार अकेली मिसाइल बोट विनाश, दो फ़्रिगेट्स त्रिशूल और तलवार के साथ गई। 8 दिसंबर 1971 की रात 8 बजकर 45 मिनट का समय था। आईएनएस विनाश पर कमांडिंग ऑफ़िसर विजय जेरथ के नेतृत्व में 30 नौसैनिक कराची पर दूसरा हमला करने की तैयारी कर रहे थे। तभी बोट की बिजली फ़ेल हो गई और कंट्रोल ऑटोपाइलट पर चला गया।

वह अभी भी बैटरी से मिसाइल चला सकते थे लेकिन वह अपने लक्ष्य को रडार से देख नहीं सकते थे। वह अपने आप को इस संभावना के लिए तैयार कर ही रहे थे कि क़रीब 11 बजे बोट की बिजली वापस आ गई। जेरथ ने रडार की तरफ़ देखा। एक पोत धीरे धीरे कराची बंदरगाह से निकल रहा था। जब वह पोत की पोज़ीशन देख ही रहे थे कि उनकी नज़र कीमारी तेल डिपो की तरफ़ गई। मिसाइल को जाँचने-परखने के बाद उन्होंने रेंज को मैनुअल और मैक्सिमम पर सेट किया और मिसाइल फ़ायर कर दी।

जैसे ही मिसाइल ने तेल टैंकरों को हिट किया वहाँ जैसे प्रलय ही आ गई। जेरथ ने दूसरी मिसाइल से पोतों के एक समूह को निशाना बनाया। वहाँ खड़े एक ब्रिटिश जहाज़ हरमटौन में आग लग गई और पनामा का पोत गल्फ़ स्टार बरबाद होकर डूब गया। चौथी मिसाइल पीएनएस ढाका पर दागी गई लेकिन उसके कमांडर ने कौशल और बुद्धि का परिचय देते हुए अपने पोत को बचा लिया। लेकिन कीमारी तेल डिपो में लगी आग की लपटों को 60 किलोमीटर की दूरी से भी देखा जा सकता था।

ऑपरेशन ख़त्म होते ही जेरथ ने संदेश भेजा, ‘फ़ोर पिजंस हैपी इन द नेस्ट. रिज्वाइनिंग.’ उनको जवाब मिला, ’एफ़ 15 से विनाश के लिए: इससे अच्छी दिवाली हमने आज तक नहीं देखी.’ कराची के तेल डिपो में लगी आग को सात दिनों और सात रातों तक नहीं बुझाया जा सका। अगले दिन जब भारतीय वायु सेना के विमान चालक कराची पर बमबारी करने गए तो उन्होंने रिपोर्ट दी, ‘यह एशिया का सबसे बड़ा बोनफ़ायर था।’ कराची के ऊपर इतना धुआं था कि तीन दिनों तक वहाँ सूरज की रोशनी नहीं पहुँच सकी।

भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 के परिणाम

3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की ओर से भारतीय ठिकानों पर हमले के बाद भारतीय सैनिकों ने पूर्वी पाकिस्तान को मुक्त कराने का अभियान शुरू किया। भारतीय सेना के सामने ढाका को मुक्त कराने का लक्ष्य रखा ही नहीं गया। इसको लेकर भारतीय जनरलों में काफ़ी मतभेद भी थे पीछे जाती हुई पाकिस्तानी सेना ने पुलों के तोड़ कर भारतीय सेना की अभियान रोकने की कोशिश की लेकिन 13 दिसंबर आते-आते भारतीय सैनिकों को ढाका की इमारतें नज़र आने लगी थीं।

भारत पाकिस्तान युद्ध (1971) के परिणाम

भारत पाकिस्तान युद्ध (1971)
भारत पाकिस्तान युद्ध

पाकिस्तान के पास ढाका की रक्षा के लिए अब भी 26400 सैनिक थे जबकि भारत के सिर्फ़ 3000 सैनिक ढाका की सीमा के बाहर थे, लेकिन पाकिस्तानियों का मनोबल गिरता चला जा रहा था। भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 में सीमा सुरक्षा बल और मुक्ति बाहिनी ने पाकिस्तानी सैनिकों के आत्मसमर्पण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

फिर भी यह एक तरफ़ा लडा़ई नहीं थी। हिली और जमालपुर सेक्टर में भारतीय सैनिकों को पाकिस्तान के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पडा। लड़ाई से पहले भारत के लिए पलायन करते पूर्वी पाकिस्तानी शरणार्थी, एक समय भारत में बांग्लादेश के क़रीब डेढ़ करोड़ शरणार्थी पहुँच गए थे।

लाखों बंगालियों ने अपने घरों को छोड़ कर शरणार्थी के रूप में पड़ोसी भारत में शरण लेने का फ़ैसला किया। मुक्ति बाहिनी ने पाकिस्तानी सैनिकों पर कई जगह घात लगा कर हमला किया और पकड़ में आने पर उन्हें भारतीय सैनिकों के हवाले कर दिया। रज़ाकारों और पाकिस्तान समर्थित तत्वों को स्थानीय लोगों और मुक्ति बाहिनी का कोप भाजन बनना पड़ा।

संक्षेप में कहें तो, 1971 में हुए भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 ने इतिहास में अपनी अद्वितीय महत्ता प्राप्त की। यह युद्ध बांगलादेश के मुक्ति के लिए लड़ा गया और पाकिस्तान से भारत की विजय हुई। यह युद्ध दोनों देशों के संबंधों में महत्वपूर्ण बदलाव लाया और उन्हें एक-दूसरे के प्रति अधिक सतर्क बनाया। इसका प्रभाव आज भी महसूस किया जा सकता है और यह एक महत्वपूर्ण अध्याय है भारतीय और पाकिस्तानी इतिहास में।

बांग्लादेश का जन्म

बांग्लादेश का जन्म 1971 में हुआ। बांगलादेश, जिसे पहले पूर्व पूर्वबंगाल के नाम से जाना जाता था, पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा था। यह देश अपनी आधिकारिक भाषा और संघीय तंत्र के लिए समर्पित था।

1970 में हुए पाकिस्तानी चुनावों में बंगलादेश के भागीदारों द्वारा प्रतिष्ठित अवामी लीग पार्टी की जीत हुई। परंतु पाकिस्तान सरकार ने इस जीत को स्वीकार नहीं किया और अपनी सत्ता की रक्षा के लिए कठोर कार्रवाई की। इसके परिणामस्वरूप बांगलादेश के अलगाववादी नेताओं और लोगों के खिलाफ उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ गईं।

1971 के दिसंबर महीने में यह बिना किसी युद्ध की घोषणा किए गए और आक्रमण किए गए भारतीय सेना के सहायता से एक स्वतंत्र देश बन गया। इसके दौरान पाकिस्तान की सेना को महासागरीय राष्ट्रीय पथ (सीएनएन) पर जबरन विरामित कर दिया गया। अंततः, 16 दिसंबर 1971 को बांगलादेश की राष्ट्रीय रक्षा सेना ने धाका में पाकिस्तानी सेना को सरेंडर कर दिया।

इसके बाद, 16 दिसंबर को बांगलादेश ने अपनी स्वतंत्रता का दिन मनाना शुरू किया। प्रथम मंत्री शेख मुजीबुर रहमान ने देश के प्रथम राष्ट्रपति बनाए जाने के बाद उन्होंने देश का नाम बांगलादेश रखा और उसकी अधिकारिक भाषा बंगला को घोषित किया। यह बांगलादेश का आधिकारिक जन्म था।

बांगलादेश का जन्म एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है जिसने दक्षिण एशिया में नया राष्ट्र स्थापित किया और बांगलादेशी लोगों को स्वतंत्रता और आजादी प्राप्त कराई। इससे पहले, बांगलादेश पाकिस्तान का हिस्सा था, लेकिन यह घटना उन्हें अपने देश की आजादी और अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने का अवसर दिया।


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