भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से चला आ रहा एक स्थायी और महत्वपूर्ण समझौता – सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) – अब अतीत का हिस्सा बन चुका है। भारत द्वारा इस संधि को एकतरफा रूप से समाप्त करना, न केवल दक्षिण एशिया की जल राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ है, बल्कि यह दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में अब तक की सबसे गहरी दरार को भी दर्शाता है। इस कदम के साथ ही भारत ने अटारी-वाघा सीमा को सील कर दिया है, पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीज़ा सेवाएं निलंबित कर दी गई हैं, और सैन्य स्तर पर संवाद बंद करते हुए रक्षा सलाहकारों को भी वापस बुला लिया गया है।
यह निर्णय न केवल दो पड़ोसी देशों के बीच बढ़ते तनाव का परिणाम है, बल्कि यह भारत की विदेश नीति में एक निर्णायक बदलाव और रणनीतिक पुनर्संरचना का स्पष्ट संकेत भी देता है।
सिंधु जल संधि: एक ऐतिहासिक संधि का अंत
पृष्ठभूमि और महत्व
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता में संपन्न हुई थी। इस संधि ने दशकों तक दोनों देशों के बीच जल संबंधी विवादों को सुलझाने में एक मजबूत आधार का कार्य किया। संधि के अनुसार, भारत को तीन पूर्वी नदियाँ – रावी, ब्यास, और सतलुज – और पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियाँ – सिंधु, झेलम और चिनाब – दी गई थीं। इसके अलावा, इस समझौते में जल उपयोग, विवाद निपटान और तकनीकी सहयोग के विस्तृत प्रावधान शामिल थे।
यह संधि इसलिए भी उल्लेखनीय थी क्योंकि इसने भारत-पाकिस्तान के बीच तीन युद्धों और कई राजनीतिक संकटों के बावजूद अपनी स्थिरता बनाए रखी। यह जल कूटनीति का एक वैश्विक प्रतीक मानी जाती रही है।
संधि का समाप्त होना क्यों ऐतिहासिक है?
इस संधि का निरस्तीकरण न केवल एक द्विपक्षीय समझौते का अंत है, बल्कि यह एक ऐसे क्षेत्र में जल सहयोग की संभावनाओं को भी समाप्त करता है जहाँ भू-राजनीतिक तनाव स्थायी रूप से बना रहता है। यह विश्वास निर्माण के एक अहम यंत्र का टूटना है, जो अब तक दोनों देशों को किसी हद तक संवाद और संयम के दायरे में रखने में सफल रहा था।
रणनीतिक और सुरक्षा दृष्टिकोण से भारत का कदम
पृष्ठभूमि में बढ़ती शत्रुता
भारत द्वारा यह कदम एक लंबे समय से चली आ रही तनावपूर्ण परिस्थिति की परिणति है। सीमा पार आतंकवाद, पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित घुसपैठ, और लगातार कूटनीतिक उकसावे – इन सभी ने भारत को एक निर्णायक रुख अपनाने के लिए प्रेरित किया है। भारत अब यह स्पष्ट संदेश दे रहा है कि द्विपक्षीय संबंध आपसी सम्मान, उत्तरदायित्व और पारदर्शिता पर आधारित होंगे।
विदेश नीति में बदलाव
यह कदम भारत की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति की ओर संकेत करता है। बिना सीधे सैन्य संघर्ष के, भारत अब कूटनीतिक, जल और मानव संसाधन संबंधी साधनों का उपयोग करके रणनीतिक दबाव बना रहा है। यह एक प्रकार की ‘नरम शक्ति’ रणनीति (Soft Power Strategy) है, जो किसी भी परंपरागत युद्ध से कम प्रभावशाली नहीं मानी जा सकती।
सीमा बंद और वीज़ा सेवाएं निलंबन | मानवीय और आर्थिक प्रभाव
अटारी-वाघा सीमा का सील होना
अटारी-वाघा सीमा दोनों देशों के बीच न केवल एक औपचारिक संपर्क बिंदु है, बल्कि यह सांस्कृतिक, धार्मिक और पारिवारिक संबंधों का भी केंद्र रही है। इस सीमा को बंद करने का सीधा प्रभाव आम नागरिकों पर पड़ेगा, जो व्यापार, चिकित्सा, तीर्थयात्रा या पारिवारिक कारणों से यात्रा करते हैं।
वीज़ा सेवाओं पर रोक
भारत द्वारा पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीज़ा सेवाओं को निलंबित करना एक सख्त कदम है। इससे नागरिकों के बीच संवाद, छात्रवृत्तियाँ, चिकित्सा पर्यटन और पत्रकारिता जैसे क्षेत्रों पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि भारत अब “People-to-People Diplomacy” को प्राथमिकता नहीं दे रहा है।
सैन्य और रक्षा कूटनीति का अंत
रक्षा सलाहकारों की वापसी
भारत और पाकिस्तान के बीच परंपरागत रूप से रक्षा सलाहकारों के माध्यम से सैन्य संपर्क बनाए जाते रहे हैं, खासकर जब युद्धविराम का उल्लंघन या नियंत्रण रेखा (LoC) पर कोई घटना होती थी। भारत द्वारा पाकिस्तानी रक्षा, नौसेना और वायुसेना सलाहकारों को निष्कासित करना और अपने समकक्षों को वापस बुलाना सैन्य संवाद के पूर्ण अंत का प्रतीक है।
संवादहीनता की कीमत
इससे भविष्य में किसी भी सैन्य टकराव या गलती की संभावना बढ़ सकती है, क्योंकि अब दोनों देशों के बीच तनाव के समय कोई प्रभावी संचार माध्यम नहीं रह जाएगा।
जल प्रबंधन और क्षेत्रीय भू-राजनीति पर प्रभाव
भारत की जल स्वायत्तता
संधि से बाहर निकलने के बाद, भारत को अब पूर्वी नदियों के साथ-साथ पश्चिमी नदियों पर भी अधिक नियंत्रण मिल सकता है। यह जम्मू-कश्मीर और लद्दाख जैसे क्षेत्रों में जल परियोजनाओं, बांध निर्माण और सिंचाई योजनाओं को गति देने में सहायक होगा।
भारत अब इस संधि की शर्तों से बंधा नहीं रहेगा, जिससे वह अपनी जल नीति को अधिक स्वतंत्र रूप से लागू कर सकेगा।
पाकिस्तान की जल असुरक्षा
पाकिस्तान की कृषि व्यवस्था मुख्य रूप से पश्चिमी नदियों पर निर्भर है। सिंधु और उसकी सहायक नदियाँ पंजाब और सिंध प्रांत के लिए जीवनरेखा हैं। संधि के समाप्त होने से पाकिस्तान में जल संकट गहरा सकता है, जिससे खाद्य सुरक्षा, आंतरिक राजनीति और सामाजिक अशांति पर प्रभाव पड़ सकता है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और संभावित प्रभाव
वैश्विक हितधारकों की चिंता
विश्व बैंक, जिसने इस संधि को मध्यस्थता से संपन्न करवाया था, अब एक कठिन स्थिति में है। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र, चीन और अमेरिका जैसे देश भी इस निर्णय पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं, विशेष रूप से इस क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने की दृष्टि से।
दक्षिण एशिया में जल कूटनीति की पुनर्परिभाषा
सिंधु जल संधि एक मॉडल संधि मानी जाती थी। इसके समाप्त होने से दक्षिण एशिया में अन्य बहुपक्षीय जल समझौते भी प्रभावित हो सकते हैं। यह कदम एक नई जल कूटनीति की शुरुआत हो सकता है, जिसमें भारत अपने पड़ोसियों के साथ नई शर्तों पर सहयोग के लिए तैयार हो।
एक युग का अंत या नई शुरुआत?
भारत द्वारा सिंधु जल संधि को समाप्त करना और पाकिस्तान के साथ राजनयिक संबंधों को सीमित करना निस्संदेह एक बड़ा भू-राजनीतिक घटनाक्रम है। यह निर्णय भारत की सुरक्षा चिंताओं, रणनीतिक स्वायत्तता और वैश्विक ताकत बनने की इच्छा से प्रेरित है।
अब यह देखना होगा कि पाकिस्तान इस पर क्या प्रतिक्रिया देता है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय किस हद तक इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करता है। लेकिन यह स्पष्ट है कि भारत अब अपने पड़ोसी से “पुराने ढर्रे” पर रिश्ते नहीं निभाना चाहता।
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इन्हें भी देखें –
- संधि से संधि-विच्छेद तक | भारत-पाक संबंधों में निर्णायक मोड़
- भारत-चीन राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ
- कच्चाथीवु द्वीप | इतिहास, विवाद और वर्तमान स्थिति
- दल-बदल विरोधी कानून | Anti-Defection Law
- ChaSTE | चंद्रा सरफेस थर्मोफिजिकल एक्सपेरिमेंट
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