भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय व्यापारिक संबंधों ने पिछले एक दशक में अभूतपूर्व प्रगति की है। दोनों देशों ने व्यापार, सुरक्षा, ऊर्जा, संपर्क और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में सहयोग को लगातार गहराया है। इस दिशा में एक ऐतिहासिक पहल वर्ष 2020 में देखी गई, जब भारत ने बांग्लादेश को अपनी सीमाओं, बंदरगाहों और हवाई अड्डों के माध्यम से ट्रांज़शिपमेंट सुविधा देने की अनुमति दी। इसका उद्देश्य क्षेत्रीय व्यापार को आसान बनाना, लागत कम करना और ‘Neighbourhood First’ नीति को मजबूती देना था।
हालांकि, अप्रैल 2025 में भारत ने इस ट्रांज़शिपमेंट सुविधा को समाप्त करने का निर्णय लिया, जो न केवल दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों को प्रभावित कर सकता है, बल्कि इससे क्षेत्रीय रणनीतिक संतुलन और भू-राजनीतिक परिदृश्य पर भी असर पड़ सकता है।
ट्रांज़शिपमेंट सुविधा: क्या थी यह व्यवस्था?
भारत द्वारा शुरू की गई यह सुविधा बांग्लादेश को यह अवसर देती थी कि वह अपने निर्यात को भारतीय बंदरगाहों और हवाई अड्डों के माध्यम से तीसरे देशों तक पहुंचा सके। इसका विशेष उपयोग रेडीमेड गारमेंट्स (RMG), फार्मास्युटिकल्स और अन्य लघु उद्योगों द्वारा किया जा रहा था।
इस व्यवस्था के अंतर्गत, बांग्लादेशी सामान पहले भारत के बंदरगाहों (जैसे कोलकाता, मुंबई) और हवाई अड्डों (विशेषकर दिल्ली और चेन्नई) पर पहुंचता, और वहां से उसे अमेरिका, यूरोप, मध्य एशिया और अन्य बाजारों में भेजा जाता था।
मुख्य उद्देश्य और लाभ
- लॉजिस्टिक्स में सहूलियत:
भारत के विशाल परिवहन नेटवर्क और वैश्विक संपर्क केंद्रों के ज़रिए बांग्लादेश को विश्व बाजार तक तेज़ और सस्ता पहुँच मिला। - व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा में सुधार:
रेडीमेड गारमेंट सेक्टर (RMG) – जो बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है – को इस सुविधा से वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिली। - क्षेत्रीय सहयोग का संकेत:
भारत की ‘Neighbourhood First’ नीति के तहत यह एक सद्भावनापूर्ण कदम था, जिससे दोनों देशों के बीच सहयोग और विश्वास बढ़ा। - तीसरे देशों के लिए मार्ग:
नेपाल, भूटान और म्यांमार जैसे देशों को भी परोक्ष रूप से इस सुविधा से लाभ मिला, क्योंकि वे बांग्लादेश के ज़रिए व्यापार को आसान बना सके।
ट्रांज़शिपमेंट सुविधा समाप्त करने के कारण
भारत-बांग्लादेश ट्रांज़शिपमेंट सुविधा समाप्त करने के निम्न कारण है –
1. रणनीतिक चिंता – चीन की बढ़ती मौजूदगी
बांग्लादेश ने हाल ही में चीन के साथ कई रणनीतिक साझेदारियों की घोषणा की है, जिनमें कुछ गतिविधियाँ भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के निकट स्थित हैं। विशेष रूप से:
- लालमोनिरहाट में एक संभावित एयरबेस पर चीन को शामिल करने की चर्चा।
- चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजनाओं में बांग्लादेश की भागीदारी।
- पूर्वोत्तर भारत तक चीनी वस्तुओं और निवेश की पहुँच बढ़ाने की कोशिश।
इन घटनाओं ने भारत की सुरक्षा एजेंसियों को चिंतित किया। ट्रांज़शिपमेंट सुविधा को चीन-बांग्लादेश साझेदारी के लिए एक ‘बैकडोर’ के रूप में देखा जाने लगा।
2. घरेलू वस्त्र उद्योग पर असर
भारत के वस्त्र निर्यातकों, खासकर Apparel Export Promotion Council (AEPC), ने यह तर्क दिया कि सस्ते बांग्लादेशी गारमेंट्स भारत के ज़रिए तेज़ी से वैश्विक बाजारों में पहुँचकर भारतीय उत्पादों को प्रतिस्पर्धा में पीछे छोड़ रहे हैं। इसने भारत के वस्त्र उद्योग पर दबाव बढ़ा दिया।
3. लॉजिस्टिक्स पर बोझ
भारतीय बंदरगाहों और हवाई अड्डों पर अत्यधिक ट्रैफिक के कारण:
- भारतीय निर्यात में देरी होने लगी।
- भाड़ा दरें (freight rates) बढ़ने लगीं।
- दिल्ली, मुंबई जैसे प्रमुख हवाई अड्डों पर संसाधनों की कमी और लोडिंग-अनलोडिंग में विलंब हुआ।
4. सुरक्षा और भू-राजनीतिक संदेश
भारत द्वारा इस निर्णय को एक कूटनीतिक संकेत के रूप में भी देखा जा रहा है – एक स्पष्ट संदेश कि अगर कोई पड़ोसी देश भारत की सुरक्षा और रणनीतिक संतुलन को चुनौती देगा, तो व्यापारिक सहूलियतें सीमित की जा सकती हैं।
बांग्लादेश पर संभावित प्रभाव
1. निर्यात पर प्रभाव
2024 में बांग्लादेश के रेडीमेड गारमेंट्स निर्यात ने 50 अरब डॉलर का आंकड़ा छुआ था। अब:
- उत्पादन लागत बढ़ेगी।
- तीसरे देशों तक पहुँचने में समय बढ़ेगा।
- प्रतिस्पर्धा में कमी आ सकती है।
2. लॉजिस्टिक नेटवर्क पर दबाव
बांग्लादेश में वर्तमान में उतना विकसित पोर्ट और ट्रांज़शिपमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है, जो भारतीय सुविधा की भरपाई कर सके। इससे:
- कॉस्टल और एअर कार्गो ऑपरेशन बाधित होंगे।
- माल ढुलाई का समय बढ़ेगा।
3. रणनीतिक स्थिति पर असर
बांग्लादेश ने हाल के वर्षों में खुद को एक उभरते हुए ‘ट्रांज़िट हब’ के रूप में प्रस्तुत किया था। भारत की इस सुविधा के हटने से:
- वैश्विक निवेशकों का भरोसा कम हो सकता है।
- लॉजिस्टिक और ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस स्कोर प्रभावित हो सकता है।
भारत पर प्रभाव
1. बंदरगाहों पर भीड़ में कमी
अब भारतीय हवाई अड्डों और बंदरगाहों पर विदेशी माल का लोड घटेगा, जिससे:
- घरेलू व्यापार सुगम होगा।
- समय और संसाधनों की बचत होगी।
2. घरेलू उद्योग को बल
बांग्लादेश की सस्ती वस्त्र उत्पादों की प्रतिस्पर्धा से राहत मिलने से:
- भारत के टेक्सटाइल सेक्टर को नए अवसर मिलेंगे।
- निर्यातकों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में जगह बनाने में सहूलियत होगी।
3. रणनीतिक पकड़ मजबूत
यह निर्णय भारत की रणनीतिक सोच को दर्शाता है, जिसमें वह क्षेत्रीय लॉजिस्टिक्स और भू-राजनीतिक नियंत्रण को प्राथमिकता दे रहा है।
4. सॉफ्ट पावर को आंशिक झटका
हालांकि यह निर्णय सुरक्षा और रणनीति के लिहाज़ से जरूरी था, लेकिन इससे भारत की उदार और सहयोगी छवि पर आंशिक असर पड़ सकता है, खासकर दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के नज़रिए से।
आगे की राह
1. उच्च स्तरीय संवाद की आवश्यकता
भारत और बांग्लादेश दोनों को यह समझना होगा कि क्षेत्रीय स्थिरता और व्यापार विकास, पारस्परिक विश्वास पर आधारित है। इसके लिए:
- द्विपक्षीय वार्ताओं को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए।
- सुरक्षा चिंताओं और आर्थिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन साधा जाना चाहिए।
2. नीतिगत संतुलन
भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह:
- घरेलू उद्योग को समर्थन दे।
- साथ ही पड़ोसी देशों के साथ सहयोग की भावना को बनाए रखे।
3. साझा अवसंरचना परियोजनाएं
- भारत और बांग्लादेश मिलकर नए ड्राई पोर्ट्स, रेलवे कॉरिडोर और एयर कार्गो टर्मिनल्स में निवेश कर सकते हैं।
- इससे क्षेत्रीय लॉजिस्टिक्स का साझा ढांचा विकसित हो सकेगा, जिससे दोनों देशों को लाभ होगा।
भारत-बांग्लादेश ट्रांज़शिपमेंट सुविधा का अंत एक रणनीतिक निर्णय है, जिसमें आर्थिक, सुरक्षा, और कूटनीतिक सभी पहलू शामिल हैं। यह कदम इस बात का संकेत है कि व्यापारिक रिश्ते सिर्फ लाभ और लागत पर आधारित नहीं होते, बल्कि इन पर भू-राजनीतिक और रणनीतिक हित भी गहराई से प्रभाव डालते हैं।
बांग्लादेश को अपनी लॉजिस्टिक क्षमता में सुधार लाने की आवश्यकता है, जबकि भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसका ‘Neighbourhood First’ विज़न व्यवहारिक रूप से कायम रहे।
यदि दोनों देश खुला संवाद और साझा निवेश के माध्यम से इस परिस्थिति को एक अवसर में बदल सकें, तो यह घटना क्षेत्रीय सहयोग और स्थिरता की एक नई शुरुआत भी साबित हो सकती है।
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