भाषा एवं उसके विभिन्न रूप

भाषा एक माध्यम है जिससे लोग एक दूसरे से बातचीत करते हैं और अपने विचारों, भावनाओं और ज्ञान को व्यक्त करते हैं। भाषा एक संवैधानिक ढंग से नियंत्रित तरीके से संरचित होती है जो शब्दों, वाक्यों और भाषा नियमों के माध्यम से आपस में संवाद करने के लिए उपयोग किया जाता है।

भाषा की परिभाषा

भाषा वह हैं जिसे बोला जाता हैं। भाषा शब्द संस्कृत के ‘भाष्’ शब्द से बना हैं जिसका अर्थ होता हैं – बोलना या कहना।

भाषा हमारे मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह हैं जिनके द्वारा हम अपने मन की बात किसी दूसरे व्यक्ति से बता सकते हैं।

जैसे :- बोली, जबान, वाणी विशेष।

भाषा को प्राचीन काल से विभिन्न लेखकों द्वारा परिभाषित करने की कोशिश की जाती रही हैं। भाषा की कुछ मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं।

  1. प्लेटो के अनुसार, विचार और भाषा में थोड़ा ही अंतर हैं। विचार आत्मा की मूक या अध्वन्यात्मक बातचीत हैं और वही शब्द जब ध्वन्यात्मक होकर होठों पर प्रकट होती हैं तो उसे भाषा की संज्ञा देते हैं।
  2. स्वीट के अनुसार, ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारों को प्रकट करना ही भाषा हैं।
  3. वेन्द्रीय के अनुसार, भाषा एक तरह का चिह्न है। चिह्न से आशय उन प्रतीकों से है जिनके द्वारा मानव अपना विचार दूसरों के समक्ष प्रकट करता है। ये प्रतीक कई प्रकार के होते हैं जैसे नेत्रग्राह्य, श्रोत्र ग्राह्य और स्पर्श ग्राह्य। वस्तुतः भाषा की दृष्टि से श्रोत्रग्राह्य प्रतीक ही सर्वश्रेष्ठ हैं।
  4. ब्लाक तथा ट्रेगर के अनुसार, भाषा यादृच्छिक भाष् प्रतिकों का तन्त्र है जिसके द्वारा एक सामाजिक समूह सहयोग करता हैं।
  5. स्त्रुत्वा के अनुसार, भाषा यादृच्छिक भाष् प्रतीकों का तन्त्र है जिसके द्वारा एक सामाजिक समूह के सदस्य सहयोग एवं समृपर्क करते हैं।
  6. इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के अनुसार, भाषा को यादृच्छिक भाष् प्रतिकों का तन्त्र है जिसके द्वारा मानव प्राणि एक सामाजिक समूह के सदस्य और सांस्कृतिक साझीदार के रूप में एक सामाजिक समूह के सदस्य संपर्क एवं सम्प्रेषण करते हैं।
  7. ए. एच. गार्डिबर के अनुसार, विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जिन व्यक्त एवं स्पष्ट भ्वनि-संकेतों का व्यवहार किया जाता है, उनके समूह को भाषा कहते हैं।

भाषा के तीन भेद होते है

भाषा एवं उसके विभिन्न रूप
  • मौखिक भाषा
  • लिखित भाषा
  • सांकेतिक भाषा

मौखिक भाषा

भाषा का वह रूप जिसमें व्यक्ति अपने विचारो को बोलकर प्रकट करता है और दूसरा व्यक्ति सुनकर उसे समझता है। मौखिक भाषा कहलाती है। इसमें वक्ता बोलकर अपनी बात कहता है व श्रोता सुनकर उसकी बात समझता है। जैसे-वार्तालाप, टेलीफोन पर बातचीत, भाषण व रेडिओ सुनना आदि 

उदाहरण- आज राम के विद्यालय में वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन हुआ था। जिसमे वक्ताओं ने बोलकर तथा श्रोताओं ने सुनकर आनंद उठाया।

लिखित भाषा

लिखित भाषा

भाषा के जिस माध्यम से हम अपने विचारो को लिख कर प्रकट करते हैं तथा दूसरे इन्हें पढकर समझते हैं, उसे लिखित भाषा कहते हैं। लिखित भाषा समझने के लिए पढ़ा-लिखा होना आवश्यक है। इस भाषा का प्रयोग सदैव पत्र लिखने तथा पढाई-लिखाई में काम आता है। जैसे- सीता पत्र लिख रही है। मोहन अपना गृह कार्य कर रहा है।

उदाहरण- कल सोहन के विद्यालय में पत्र लेखन का अभ्यास कराया गया। सभी छात्रों ने इसका जमकर अभ्यास किया।

जब हम व्हाट्सएप, फेसबुक, इन्स्टाग्राम आदि जैसे सोशल मीडिया का उपयोग करके चैट करते हैं अथवा अपने विचारों को पोस्ट करते हैं, तो वहां भी हम लिखित भाषा का प्रयोग करते हैं।

सांकेतिक भाषा

भाषा के जिस माध्यम से हम अपने विचारो को इशारो (संकेतो) में दुसरे वक्ता को समझा सकते हैं। उसे सांकेतिक भाषा कहा जाता है। इस भाषा का प्रयोग वे लोग करते है जो बोल या सुन नहीं सकते। ट्रैफिक नियमों का पालन करना भी सांकेतिक भाषा का रूप है। सांकेतिक भाषा सर्वग्राह्य भाषा नहीं है इसलिए व्याकरण में इसका अध्ययन नहीं किया जाता।

उदाहरण- आज राम के विद्यालय में वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन हुआ था। जिसमे वक्ताओं ने संकेत देकर आनंद उठाया।

इसके अलावा एक भाषा और होती है जिसको वास्तव में भाषा न कहकर लिपि कहना उचित होगा। यह लिपि नेत्रहीन व्यक्तियों के लिए बनाइ गई है । इसको ब्रेल लिपि कहते है।

नेत्रहीन भाषा (ब्रेल लिपि)

भाषा एवं उसके विभिन्न रूप

नेत्रहीन भाषा उन भाषाओं को कहते हैं, जिन्हें नेत्रहीन लोग पढ़ और लिख सकते हैं। इस प्रणाली को हम ब्रेल कहते हैं। ब्रेल कोई भाषा नहीं, बल्कि एक लेखन प्रणाली है। दृष्टिहीन लोग बिना सहायता के ब्रेल लिपि में लिखी हर चीज़ को पढ़ और समझ सकते हैं। ब्रेल में लिखी गई सभी जानकारी और किताबें बाएं से दाएं बिंदुओं को छूकर पढ़ी जा सकती हैं। एक समय था जब हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि ऐसी कोई व्यवस्था बनेगी जिससे नेत्रहीन लोग भी बिना सहायता के पढ़ सकेंगे और सच तो यह है कि ब्रेल प्रणाली लागू होने के बाद भी सौ वर्षों तक इसे स्वीकार नहीं किया गया। लेकिन जब से इस प्रणाली को अपनाया गया, हम इसके आविष्कारक लुई ब्रेल के सम्मान में हर साल 4 जनवरी को उनके जन्मदिन पर विश्व ब्रेल दिवस मनाते हैं।

यह एक तरह की लिपि है, जिसको विश्व भर में नेत्रहीनों को पढ़ने और लिखने में छूकर व्यवहार में लाया जाता है। इस पद्धति का आविष्कार 1821 में एक नेत्रहीन फ्रांसीसी लेखक लुई ब्रेल ने किया था। यह अलग-अलग अक्षरों, संख्याओं और विराम चिन्हों को दर्शाते हैं।

नेत्रहीन भाषा (Braille script) एक संवैधानिक एवं अंतर्राष्ट्रीय मानक है, जो दृष्टिहीन व्यक्तियों के लिए उनकी भाषा के लेखन एवं पठन को संभव बनाता है। इस भाषा को ब्रेल लिपि के नाम से भी जाना जाता है। यह लिपि 6 बिन्दुओं जिसमे तीन ऊंचाई और दो चौड़ाई के छोटे बिंदुओं की एक विशेष व्यवस्था होती है जो एक खरोंचे में होती हैं। इन उभरे हुए छह बिंदुओं का तीन पंक्तियों में एक कोड बनाया जाता है। व्यक्ति बाएं से दाईं तरफ डॉट्स को छूते हुए ब्रेल लिपि में लिखी हुई किसी भी जानकारी को पढ़ सकता है। बिंदुओं की एक विशेष व्यवस्था होती है जो एक खरोंचे में होती हैं। इन खरोंचों को टक्कर देकर अक्षर बनाए जाते हैं। इस तरीके से, नेत्रहीन व्यक्ति अक्षरों को चुहों की मदद से एक संख्या के रूप में लेख सकते हैं।

ब्रेल लिपि का उपयोग दुनिया भर में लोगों द्वारा किया जाता है, खासकर नेत्रहीन व्यक्तियों के लिए। यह लिपि विभिन्न भाषाओं के लिए उपलब्ध है और नेत्रहीन लोगों को शिक्षा, काम, और सामाजिक जीवन में सक्षम बना।  ये तकनीक अब कंप्यूटर में भी प्रयोग की जा रही है जिससे की नेत्रहीन व्यक्ति अब तकनीकी रूप से भी काम कर पाए।

भाषा के अंग

भाषा एक संरचित सिस्टम होती है जिसमें बोली जाने वाली ध्वनियों, शब्दों, वाक्यों, वर्तनी, व्याकरण, शैली, शब्दकोश, सामान्य उच्चारण, लेखन के नियम, इत्यादि अंग शामिल होते हैं। ये भाषा के मूल अंग होते हैं और भाषा के समझने और सीखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। निम्नलिखित हैं भाषा के मुख्य अंग:

  1. ध्वनि विज्ञान: ध्वनि विज्ञान शब्दों के उच्चारण का अध्ययन होता है। इसमें ध्वनि उत्पादन, ध्वनि प्रसारण और शब्दों के उच्चारण का विश्लेषण शामिल होता है।
  2. व्याकरण: व्याकरण भाषा के नियमों का अध्ययन होता है। यह भाषा के ग्रामर और वाक्य रचना को समझने में मदद करता है।
  3. शब्दावली: शब्दावली भाषा के शब्दों का अध्ययन होता है। इसमें शब्दों का अर्थ,

भाषा की प्रक्रिया

भाषा की प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण होते हैं:

  1. संवाद का आरंभ: भाषा की प्रक्रिया का पहला चरण संवाद का आरंभ होता है। इसमें दो व्यक्तियों के बीच वाणी या लिखित संवाद शुरू होता है।
  2. समझौता: दो व्यक्तियों के बीच समझौता होता है जिसमें उन्हें स्पष्टता से बताया जाता है कि वे क्या कहना चाहते हैं या क्या समझना चाहते हैं।
  3. विचारों का विस्तार: समझौते के बाद, व्यक्तियों का विचारों का विस्तार होता है। इसमें वे अपने विचारों की पूरी जानकारी देते हैं।
  4. विचारों की विस्तृत व्याख्या: विचारों के बाद, विस्तृत व्याख्या होती है जिसमें व्यक्तियों को अपने विचारों को समझाने के लिए और स्पष्टीकरण के लिए उन्हें विस्तृत ब्याख्या दी जाती है।
  5. संबोधन: संबोधन भाषा की प्रक्रिया का अंतिम चरण होता है। इसमें व्यक्तियों का संवाद समाप्त होता है या तो वे एक निर्णय लेते हैं या फिर आगे की चरणों के लिए आगे बढते

बोली, भाषा, विभाषा और राजभाषा

बोली, भाषा, विभाषा और राजभाषा का अन्तर बता पाना कठिन हैं। क्योंकि इसमें प्रमुख अन्तर व्यवहार-क्षेत्र के विस्तार पर निर्भर हैं। हमारे समाज एक ही भाषा के कई रूप दिखाई देते हैं। मुख्य रूप से भाषा के इन रूपों को हम इस प्रकार समझते हैं।

(1). बोली

  • बोली भाषा की छोटी इकाई हैं।
  • इसका सम्बन्ध ग्राम या मण्डल अर्थात सीमित क्षेत्र से होता हैं।
  • बोली मुख्य रूप से बोलचाल की भाषा हैं।
  • इसका रूप कुछ-कुछ दूरी पर बदलता जाता हैं।
  • बोली में लिपिबद्ध न होने के कारण इसमें साहित्यिक रचनाओं का अभाव रहता हैं।
  • व्याकरणिक दृष्टि से भी इसमें विसंगतियाँ पायी जाती हैं।
  • इसमें प्रधानता व्यक्तिगत बोलचाल के माध्यम की रहती है और देशज शब्दों तथा घरेलू शब्दावली का बाहुल्य होता हैं।

(2). भाषा

  • भाषा, या परिनिष्ठित भाषा अथवा आदर्श भाषा, विभाषा की विकसित स्थिति हैं।
  • भाषा को राष्ट्र-भाषा या टकसाली-भाषा भी कहा जाता हैं।

(3). विभाषा

  • विभाषा का क्षेत्र बोली की अपेक्षा विस्तृत होता हैं।
  • विभाषा एक प्रान्त या उपप्रान्त में प्रचलित होती हैं।
  • विभाषा में साहित्यिक रचनाएँ मिल सकती हैं।
  • एक विभाषा में स्थानीय भेदों के आधार पर कई बोलियाँ प्रचलित रहती हैं।

(4). राजभाषा

विभिन्न विभाषाओं में से कोई एक विभाषा अपने गुण-गौरव, साहित्यिक अभिवृद्धि, जन-सामान्य में अधिक प्रचलन आदि के आधार पर राजकार्य के लिए चुन ली जाती है और उसे राजभाषा के रूप में या राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया जाता हैं।

भाषा के प्रकार

  • हमारे जीवन के विभिन्न व्यवहारों के अनुरूप भाषा प्रयोजनों की तलाश हमारे जीवन की अनिवार्यता हैं।
  • भाषा का कारण यह हैं कि भाषाओं को सम्प्रेषण प्रकार के कई स्तरों पर रखा गया और कई सन्दर्भों में पूरी तरह प्रयुक्ति सापेक्ष होता गया। प्रयुक्ति और प्रयोजन से रहित भाषा अब भाषा ही नहीं रह गई हैं।
  • भाषा की पहचान यह नहीं हैं की उसमें केवल कविताओं और कहानियों का जिक्र कैसे हुआ हैं बल्कि भाषा की व्यापकतर सम्प्रेषणीयता का एक अनिवार्य प्रतिफल यह भी है कि उसमें सामाजिक सन्दर्भों और नये प्रयोजनों को साकार करने की कितनी सम्भावना हैं।
  • दुनिया भर की भाषाओं में यह प्रयोजनीयता धीरे-धीरे विकसित हुई हैं और रोजी-रोटी का माध्यम बनने की विशिष्टताओं के साथ भाषा का नया आयाम हमारे सामने आया हैं।

जैसे :- बोलचाल की भाषा, मानक भाषा, सम्पर्क भाषा, राजभाषा, राष्ट्रभाषा, वर्गाभाषा, तकनीकी भाषा, साहित्यिक भाषा, आदि।

1. बोलचाल की भाषा

  • बोलचाल की भाषा को समझने के लिए सबसे पहले ‘बोली’ को समझना जरूरी हैं। बोली उन सभी लोगों की बोलचाल की भाषा का वह मिश्रित रूप है जिनकी भाषा में पारस्परिक भेद को अनुभव नहीं किया जाता हैं।
  • विश्व में जब किसी जन-समूह का महत्त्व किसी भी कारण से बढ़ जाता है तो उसकी बोलचाल की बोली ‘भाषा’ में बदल जाती हैं। अर्थात ‘भाषा’ की अपेक्षा ‘बोली’ का क्षेत्र उसके बोलने वालों की संख्या और उसका महत्त्व कम होता हैं।
  • एक भाषा की बहुत सी बोलियाँ होती हैं क्योंकि भाषा का क्षेत्र विस्तृत होता हैं। जब कई व्यक्ति-बोलियों में पारस्परिक सम्पर्क होता है, तब बोलचाल की भाषा का प्रसार होता हैं।
  • आपस में मिलती-जुलती बोली या उपभाषाओं में हुए आपसी व्यवहार से बोलचाल की भाषा को विस्तार मिलता हैं। इसे ही ‘सामान्य भाषा’ के नाम से भी जाना जाता हैं।

2. मानक भाषा

  • भाषा के स्थिर तथा सुनिश्चित रूप को मानक भाषा कहते हैं।
  • भाषाविज्ञान कोश के अनुसार “किसी भाषा की उस विभाषा को परिनिष्ठित भाषा कहते हैं जो अन्य विभाषाओं पर अपनी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक श्रेष्ठता स्थापित कर लेती है तथा उन विभाषाओं को बोलने वाले भी उसे सर्वाधिक उपयुक्त समझने लगते हैं।”
  • मानक भाषा शिक्षित वर्ग की शिक्षा, पत्राचार एवं व्यवहार की भाषा होती है। इसके व्याकरण तथा उच्चारण की प्रक्रिया लगभग निश्चित होती हैं।
  • मानक भाषा को टकसाली भाषा भी कहते हैं। इसी भाषा में पाठ्य-पुस्तकों का प्रकाशन होता हैं। हिन्दी, अंग्रेजी, फ्रेंच, संस्कृत तथा ग्रीक इत्यादि मानक भाषाएँ हैं।
  • किसी भाषा के मानक रूप का अर्थ है, उस भाषा का वह रूप जो उच्चारण, रूप-रचना, वाक्य-रचना, शब्द और शब्द-रचना, अर्थ, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, प्रयोग तथा लेखन आदि की दृष्टि से उस भाषा के सभी नहीं तो अधिकांश सुशिक्षित लोगों द्वारा शुद्ध माना जाता हैं।
  • मानकता भाषा अनेकता में एकता की खोज हैं। अर्थात यदि किसी लेखन या भाषिक इकाई में विकल्प न हो तब तो वही मानक होगा। किन्तु यदि विकल्प हो तो अपवादों की बात छोड़ दें तो कोई एक मानक होता हैं।
  • जिसका प्रयोग उस भाषा के अधिकांश शिष्ट लोग करते हैं। किसी भाषा का मानक रूप ही प्रतिष्ठित माना जाता है। उस भाषा के लगभग समूचे क्षेत्र में मानक भाषा का प्रयोग होता हैं।
  • ‘मानक भाषा’ एक प्रकार से सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक होती है। उसका सम्बन्ध भाषा की संरचना से न होकर सामाजिक स्वीकृति से होता हैं।
  • मानक भाषा को इस रूप में भी समझा जा सकता है कि समाज में एक वर्ग मानक होता है जो अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण होता है तथा समाज में उसी का बोलना-लिखना, उसी का खाना-पीना, उसी के रीति-रिवाज़ अनुकरणीय माने जाते हैं। मानक भाषा मूलत: उसी वर्ग की भाषा होती हैं।
  • अंग्रेजी में मानक भाषा को Standard Language (स्टैंडर्ड लैंग्वेज) कहा जाता हैं।

3. सम्पर्क भाषा

  • अनेक भाषाओं के अस्तित्व के बावजूद जिस विशिष्ट भाषा के माध्यम से व्यक्ति-व्यक्ति, राज्य-राज्य तथा देश-विदेश के बीच सम्पर्क स्थापित किया जाता है उसे सम्पर्क भाषा कहाँ जाता हैं।
  • एक ही भाषा परिपूरक भाषा और सम्पर्क भाषा दोनों हो सकती है। आज भारत में सम्पर्क भाषा के तौर पर हिन्दी प्रतिष्ठित होती जा रही हैं जबकि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी संपर्क भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो गई हैं।
  • सम्पर्क भाषा के रूप में जब भी किसी भाषा को देश की राष्ट्रभाषा अथवा राजभाषा के पद पर आसीन किया जाता है तब उस भाषा से कुछ अपेक्षाएँ भी रखी जाती हैं।
  • जब कोई भाषा ‘सम्पर्क भाषा’ के रूप में उभरती है तब राष्ट्रीयता या राष्ट्रता से प्रेरित होकर वह प्रभुतासम्पन्न भाषा बन जाती है। यह तो आवश्यक नहीं कि मातृभाषा के रूप में इसके बोलने वालों की संख्या अधिक हो पर द्वितीय भाषा के रूप में इसके बोलने वाले बहुसंख्यक होते हैं।

4. राजभाषा

  • जिस भाषा में सरकार के कार्यों का निष्पादन होता है उसे राजभाषा कहते हैं।
  • कुछ लोग राष्ट्रभाषा और राजभाषा में अन्तर नहीं करते और दोनों को समानार्थी मानते हैं। लेकिन दोनों के अर्थ भिन्न-भिन्न हैं। राष्ट्रभाषा सारे राष्ट्र के लोगों की सम्पर्क भाषा होती है जबकि राजभाषा केवल सरकार के कामकाज की भाषा है।
  • भारत के संविधान के अनुसार हिन्दी संघ सरकार की राजभाषा है। राज्य सरकार की अपनी-अपनी राज्य भाषाएँ हैं।
  • राजभाषा जनता और सरकार के बीच एक सेतु का कार्य करती है। किसी भी स्वतन्त्र राष्ट्र की उसकी अपनी स्थानीय राजभाषा उसके लिए राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान का प्रतीक होती है।
  • विश्व के अधिकांश राष्ट्रों की अपनी स्थानीय भाषाएँ राजभाषा हैं। आज हिन्दी हमारी राजभाषा है।
  • अंग्रेजी में राजभाषा को Official Language (ऑफिसियल लैंग्वेज) कहा जाता हैं।
  • हिंदी भारत की राजभाषा है न कि राष्ट्रभाषा, क्योंकि भारत के संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया है।

5. राष्ट्रभाषा

  • देश के विभिन्न भाषा-भाषियों में पारस्परिक विचार-विनिमय की भाषा को राष्ट्रभाषा कहते हैं।
  • राष्ट्रभाषा को देश के अधिकतर नागरिक समझते हैं पढ़ते हैं या बोलते हैं।
  • किसी भी देश की राष्ट्रभाषा उस देश के नागरिकों के लिए गौरव, एकता, अखण्डता और अस्मिता का प्रतीक होती है।
  • महात्मा गांधी जी ने राष्ट्रभाषा को राष्ट्र की आत्मा की संज्ञा दी है।
  • एक भाषा कई देशों की राष्ट्रभाषा भी हो सकती है। जैसे- अंग्रेजी आज अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा कनाडा इत्यादि कई देशों की राष्ट्रभाषा है।
  • संविधान में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा तो नहीं दिया गया है लेकिन इसकी व्यापकता को देखते हुए इसे राष्ट्रभाषा कह सकते हैं। दूसरे शब्दों में राजभाषा के रूप में हिन्दी, अंग्रेजी की तरह न केवल प्रशासनिक प्रयोजनों की भाषा है, बल्कि उसकी भूमिका राष्ट्रभाषा के रूप में भी है। वह हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक अस्मिता की भाषा है।
  • महात्मा गांधी जी के अनुसार किसी देश की राष्ट्रभाषा वही हो सकती है जो सरकारी कर्मचारियों के लिए सहज और सुगम हो। जिसको बोलने वाले बहुसंख्यक हों और जो पूरे देश के लिए सहज रूप में उपलब्ध हो। उनके अनुसार भारत जैसे बहुभाषी देश में हिन्दी ही राष्ट्रभाषा के निर्धारित अभिलक्षणों से युक्त है।

उपर्युक्त सभी भाषाएँ एक-दूसरे की पूरक हैं। इसलिए यह प्रश्न निरर्थक है कि राजभाषा, राष्ट्रभाषा, सम्पर्क भाषा आदि में से कौन सर्वाधिक महत्त्व का है, आवश्यकता है हिन्दी को अधिक व्यवहार में लाने की। अंग्रेजी में राष्ट्रभाषा को National Language (नेशनल लैंग्वेज) कहा जाता हैं।

दुनिया में बोली जाने वाली भाषा (सूची)

भाषाभाषा बोलने वालों की संख्या
अंग्रेजी1.452 अरब
मंदारिन चाइनिस1.118 अरब
हिन्दी60.22 करोड़
स्पेनिश54.83 करोड़
फ्रेंच27.41 करोड़
अरबी27.40 करोड़
बंगाली27.27 करोड़
रूसी25.82 करोड़
पुर्तगाली25.77 करोड़
उर्दू23.13 करोड़

दुनिया में  बोली जाने वाली भाषा (संक्षिप्त विवरण)

  1. अंग्रेजी (English)– अंग्रेजी अधिकांश देशों द्वारा बोली जाती है। इंग्लिस इंडो -यूरोपीय परिवार से सम्बंधित भाषा है। अंग्रेजी भाषा को 1.452 अरब लोगों द्वारा बोलै जाता है। इंग्लिस भाषा का जन्म इंग्लैंड में हुआ है और यह भाषा संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, आयरलैंड, न्यूजीलैंड, यूनाइटेड किंगडम, प्रशांत महासागर के कई दीपों की प्रमुख भाषा मानी जाती है। इंग्लिश या अंग्रेजी भारत की राजभाषा भी है।
  2. मंदारिन चाइनिस (Mandarin Chinese)– इस भाषा को उत्तरी ,दक्षिणी -पश्चिमी चीन में अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है। यह चीन देश की राजकीय भाषा होने के साथ साथ चीन ,ताइवान ,सिंगापुर की आधिकारिक भाषा भी है। चीन की मंदारिन भाषा को लगभग 1.128 अरब लोगों द्वारा बोला जाता है।
  3. स्पेनिश (Spanish) – यह भाषा स्पेन की ऑफिसियल लैंग्वेज है। स्पेनिश भाषा को चिली ,पनामा ,पेरू ,मैक्सिको ,कोस्टा रीका ,क्यूबा आदि में भी बोलै जाता है। इस भाषा को 65.83 करोड़ लोगों द्वारा बोला जाता है।
  4. हिन्दी (Hindi) -यह भाषा 61.22 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारत में अधिक संख्या में हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है इसके अलावा भारत के पडोसी देशों जैसे -पाकिस्तान ,नेपाल ,बांग्लादेश ,मारीशस ,संयुक्त अरब अमीरात आदि हैं जहाँ हिंदी भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या अधिक है।
  5. फ्रेंच (French) – इस भाषा को 27.41 करोड़ लोगों द्वारा बोला जाता है। फ्रैंच लैंग्वेज को फ्रांसीसी भाषा भी कहा जाता है। यह भाषा फ्रांस की आधिकारिक भाषा है।
  6. अरबी (Arabic)– यह भाषा इब्रानी भाषा से सम्बंधित है। अरबी भाषा को इस्लामिक देशों में अधिक संख्या में प्रयोग में लाया जाता है। सीरिया ,सऊदी अरब ,ईराक सूडान आदि में इस भाषा का प्रयोग किया जाता है। अरबी भाषा को 27.40 करोड़ लोगों द्वारा बोला जाता है।
  7. बंगाली (Bengali) – बंगाली भाषा को लगभग 27.27 करोड़ लोगों द्वारा बोलै जाता है।
  8. रूसी (Russian) – रुसी भाषा रूस की आधिकारिक भाषा है इसके अतिरिक्त यह किर्गिस्तान ,बेलारूस और कजाकिस्तान की भी ऑफिसियल लैंग्वेज है। इस भाषा को दुनिया के 25.82 करोड़ लोगों द्वारा बोला जाता है।
  9. पुर्तगाली (Portuguese) – यह यूरोपीय भाषा है जो पुर्तगाल में मुख्य रूप से प्रयोग में लायी जाती है। विश्व में कुल 25.77 करोड़ लोगों द्वारा पुर्तगाली भाषा का प्रयोग किया जाता है।
  10. उर्दू (Urdu) -उर्दू हिन्द आर्य भाषा है जिसे भारत सहित कई देशों में बोला जाता है। उर्दू भाषा को दुनिया में लगभग 23.13 करोड़ लोगों द्वारा प्रयोग में लाया जाता है।

भारत में बोली जाने वाली भाषाएँ

  • भारतीय संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाओं की संख्या 22 हैं।
    • (1) असमिया, ( 2 ) बंगाली (3) गुजराती, (4) हिंदी, (5) कन्नड, (6) कश्मीरी, (7) कोंकणी, (8) मलयालम, ( 9 ) मणिपुरी, (10) मराठी, (11) नेपाली, ( 12 ) उड़िया, ( 13 ) पंजाबी, ( 14 ) संस्कृत, ( 15 ) सिंधी, ( 16 ) तमिल, ( 17 ) तेलुगू (18) उर्दू (19) बोडो, (20) सांथाली, (21) मैथली, (22) डोंगरी।
  • 1950 में भारतीय संविधान की स्थापना के समय में, मान्यता प्राप्त भाषाओं की संख्या 14 थी। बाद में आठ भाषाएँ और जोड़ी गयी, जिनसे इनकी संख्या 22 हो गयी।
    • आठवीं अनुसूची में तदोपरान्त जोड़ी गई भाषाएँ → सिन्धी, कोंकणी, नेपाली, मणिपुरी, मैथिली, डोगरी, बोडो और सन्थाली।
  • 2011 की रिपोर्ट के अनुसार, पहचान योग्य मातृभाषाओं की संख्या 234 हैं।
  • शास्त्रीय भाषा का दर्जा पाने वाली पहली भाषा तमिल हैं।
  • शास्त्रीय भाषा का दर्जा पाने वाली अन्य भाषाएँ → संस्कृत, कन्नड़, मलयालम, तेलुगू और उड़िया।
  • नागालैंड राज्य का राज्यभाषा नागामिज और अंग्रेजी है। भारत में नागालैंड ऐसा राज्य है, जहाँ अंग्रेजी भी राज्यभाषा हैं।
  • जम्मू और कश्मीर की राजभाषा उर्दू है।
  • गोवा की राजभाषा कोंकणी हैं।
  • भारत के संविधान द्वारा निर्धारित सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय की राजभाषा अंग्रेजी हैं।
  • अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह के प्रमुख भाषाएँ हिन्दी, निकोबारी, बंगाली, तमिल, मलयालम और तेलुगू है।
  • लक्षद्वीप की प्रमुख भाषाएँ मलयालम और माही (या महल) है। लक्षद्वीप के अधिकांश द्वीपवासी मलयालम बोलते हैं। मलयालम लक्ष्यद्वीप की अधिकारिक भाषा है। हालाँकि, माही (या महल), जो पुरानी सिंहली के समान है, जो मिनिकॉय पर बोली जाती है। कुछ लोग हिंदी भी बोलते हैं।
  • पुडुचेरी (पांडिचेरी) में बोली जाने वाली विदेशी भाषा फ्रेंच है।
  • ‘पूर्व की इतालवी’ कही जाने वाली भारतीय भाषा तेलुगु है। 
  • भारत का एकमात्र राज्य उत्तराखंड है, जहाँ संस्कृत राजभाषा मे रूप में मान्य हैं।
  • अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह के प्रमुख भाषाएँ → हिन्दी, निकोबारी, बंगाली, तमिल, मलयालम और तेलुगू।
  • अंग्रेजी मान्यता प्राप्त भाषाओं की सूची में नहीं हैं।
भारत के राज्यबोली जाने वाली भाषाएँ
मध्य प्रदेशहिन्दी, मराठी, उर्दू
जम्मू एवं कश्मीरकश्मीरी, डोगरी, हिन्दी
हिमाचल प्रदेशहिन्दी, पंजाबी, नेपाली
हरियाणाहिन्दी, पंजाबी, उर्दू
पंजाबपंजाबी, हिन्दी
उत्तराखण्डहिन्दी, उर्दू, पंजाबी, नेपाली
दिल्लीहिन्दी, पंजाबी, उर्दू, बंगाली
उत्तर प्रदेशहिन्दी, उर्दू
राजस्थानहिन्दी, पंजाबी, उर्दू
पश्चिम बंगालबंगाली, हिन्दी, संताली, उर्दू, नेपाली
छत्तीसगढ़छत्तीसगढ़ी, हिन्दी
बिहारहिन्दी, मैथिली, उर्दू
झारखण्डहिन्दी, संताली, बंगाली, उर्दू
सिक्किमनेपाली, हिन्दी, बंगाली
अरुणाचल प्रदेशबंगाली, नेपाली, हिन्दी, असमिया
नागालैण्डबंगाली, हिन्दी, नेपाली
मिजोरमबंगाली, हिन्दी, नेपाली
असमअसमिया, बंगाली, हिन्दी, बोडो, नेपाली
त्रिपुराबंगाली, हिन्दी
मेघालयबंगाली, हिन्दी, नेपाली
मणिपुरमणिपुरी, नेपाली, हिन्दी, बंगाली
ओडिशाओड़िया, हिन्दी, तेलुगु, संताली
महाराष्ट्रमराठी, हिन्दी, उर्दू, गुजराती
गुजरातगुजराती, हिन्दी, सिन्धी, मराठी, उर्दू
कर्नाटककन्नड़, उर्दू, तेलुगू, मराठी, तमिल
दमन एवं दीवगुजराती, हिन्दी, मराठी
दादरा और नगर हवेलीगुजराती, हिन्दी, कोंकणी, मराठी
गोवाकोंकणी, मराठी, हिन्दी, कन्नड़
आन्ध्र प्रदेशतेलुगु, उर्दू, हिन्दी, तमिल
केरलमलयालम
लक्षद्वीपमलयालम
तमिलनाडुतमिल, तेलुगू, कन्नड़, उर्दू‌
पुडुचेरीतमिल, तेलुगू, कन्नड़, उर्दू
अण्डमान और निकोबार द्वीप समूहबंगाली, हिन्दी, तमिल, तेलुगू, मलयालम

हिंदी भाषा के विकास का इतिहास

आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाने वाले महान साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने हिंदी भाषा के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया है इनका अपनी भाषा हिंदी से बहुत लगाव था। इनका हिंदी से यह लगाव इनकी निम्न दो पंक्तियों से समझा जा सकता है :-

“निज भाषा उन्नति रहे, सब उन्नति के मूल।                                      
 बिनु निज भाषा ज्ञान के, रहत मूढ़-के-मूढ़।।

इस दोहे से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि आधुनिक हिंदी के जनक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को अपनी भाषा हिंदी से कितना लगाव था। यदि हम हिंदी भाषा के विकास की बात करें तो यह कहना गलत नहीं होगा कि पिछले सौ सालों में हिंदी का बहुत विकास हुआ है और दिन-प्रतिदिन इसमें और तेजी आ रही है। हिंदी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है।

संस्कृत भारत की सबसे प्राचीन भाषा है, जिसे आर्य भाषा या देवभाषा भी कहा जाता है। हिंदी इसी आर्य भाषा संस्कृत की उत्तराधिकारिणी मानी जाती है, साथ ही ऐसा भी कहा जाता है कि हिंदी का जन्म संस्कृत की ही कोख से हुआ है।

भाषा एवं उसके विभिन्न रूप

भारत में संस्कृत 1500 ई. पू, से 1000 ई. पूर्व तक रही, ये भाषा दो भागों में विभाजित हुई- वैदिक और लौकिक। मूल रूप से वेदों की रचना जिस भाषा में हुई उसे वैदिक संस्कृत कहा जाता है, जिसमें वेद और उपनिषद का जिक्र आता है, जबकि लौकिक संस्कृत में दर्शन ग्रंथों का जिक्र आता है। इस भाषा में रामायण, महाभारत, नाटक, व्याकरण आदि ग्रंथ लिखे गए हैं। संस्कृत के बाद जो भाषा आती है वह है पालि। पालि भाषा 500 ई. पू. से पहली शताब्दी तक रही और इस भाषा में बाैद्ध ग्रंथों की रचना हुई।

बौद्ध ग्रन्थों में बोलचाल की भाषा का शिष्ट और मानक रूप प्राप्त होता है। पालि के बाद प्राकृत भाषा का उद्भव हुआ। यह पहली ईस्वी से लेकर 500 ई. तक रही। इस भाषा में जैन साहित्य काफी मात्रा में लिखे गए थे। पहली ई. तक आते-आते यह बोलचाल की भाषा और परिवर्तित हुई तथा इसको प्राकृत की संज्ञा दी गई। उस दौर में जो बोलचाल की आम भाषा थी वह सहज ही बोली व समझी जाती थी, वह प्राकृत भाषा कहलाई।

दरअसल, उस समय इस भाषा में क्षेत्रीय बोलियों की संख्या बहुत सारी थी, जिनमें शौरसेनी, पैशाची, ब्राचड़, मराठी, मागधी और अर्धमागधी आदि प्रमुख हैं। प्राकृत भाषा के अंतिम चरण से अपभ्रंश का विकास हुआ ऐसा माना जाता है। यह भाषा 500 ई. से 1000 ई. तक रही। अपभ्रंश के ही जो सरल और देशी भाषा शब्द थे उसे अवहट्ट कहा गया और इसी अवहट्ट से ही हिंदी का उद्भव हुआ।

हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है। देवनागरी भाषा का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ ब्राह्मी लिपि के बाद गुप्त लिपि, उसके पश्चात नागरी लिपि और फिर देवनागरी लिपि। देवनागरी भाषा के विकास का क्रम निम्न है:-

ब्राह्मी लिपि → गुप्त लिपि → नागरी लिपि → देवनागरी लिपि

इसी प्रकार हिंदी भाषा के विकाश का क्रम इस प्रकार है-

संस्कृत → पली → प्राकृत → अपभ्रंश → अवहट → हिंदी

ऐसा कहा जाता है कि हिंदी का जो विकास हुआ है वह अपभ्रंश से हुआ है और इस भाषा से कई आधुनिक भारतीय भाषाओं और उपभाषाओं का जन्म हुआ है, जिसमें शौरसेनी (पश्चिमी हिन्दी, राजस्थानी और गुजराती), पैशाची (लंहदा, पंजाबी), ब्राचड़  (सिन्धी), खस (पहाड़ी), महाराष्ट्री (मराठी), मागधी (बिहारी, बांग्ला, उड़िया और असमिया), और अर्ध मागधी (पूर्वी हिन्दी) शामिल है।

नोट के तौर पर यह भी कहा जाता है हिंदी के कई अधिकांश विद्वान हिंदी का विकास अपभ्रंश से ही मानते हैं। वहीं कई विद्वानों का मानना है कि हिंदी का उद्भव अवहट्ट से हुआ।

अवहट्ट नाम का जिक्र मैथिल महान कवि कोकिल विद्यापति की ‘कीर्तिलता’ में आता है। पूरे देश के भक्त कवियों ने अपनी वाणी को जन-जन तक पहुंचाने के लिए हिंदी का सहारा लिया। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में हिंदी और हिंदी पत्रकारिता की बहुत अहम भूमिका रही। महात्मा गांधी सहित अनेक राष्ट्रीय नेता हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने लगे थे। भारत के स्वतन्त्र होने के बाद 14 सितंबर 1949 को हिन्दी को भारत की राजभाषा घोषित कर दिया गया। यह तो था हिंदी के विकास का सफरनामा।

हिंदी भाषा के विकास में यदि और जानने की कोशिश करेंगे तो हिंदी भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। सन् 2001 की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय हिंदी का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टिकोण से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आंकड़े मिलते थे, उनमें हिंदी को तीसरा स्थान दिया जाता था।

हिंदी विश्व की लगभग 3,000 भाषाओं में से एक है। इतना ही नहीं  हिंदी आज दुनिया की सबसे बड़ी आबादी द्वारा बोली और समझे जानी वाली भाषा है। भाषाई सर्वेक्षणों के आधार पर दुनिया की आबादी का 18 प्रतिशत इसे समझता है, जबकि अन्य भाषा की बात करें तो चीनी भाषा मैंडरीन समझने वालों की संख्या 15.27 और वहीं अंग्रेजी समझने वालों की संख्या 13.85 प्रतिशत कही गई है।

हिंदी को हम भाषा की जननी, साहित्य की गरिमा, जन-जन की भाषा और राष्ट्रभाषा भी कहते हैं। ऐसे में यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि  हिंदी भविष्य की भाषा है। हां, एक बात जरूर है कि हम इस भाषा का प्रयोग वास्तविक जीवन में जरूर करते है लेकिन यह रोजगार और महत्वाकांक्षी की भाषा बनने में थोड़ी कारगर नहीं बन पाई।

इससे यह जाहिर नहीं होता कि हिंदी का विकास नहीं हुआ। उपरोक्त में कई ऐसे तथ्य हैं, जो पूर्ण रूप से साबित करते हैं कि हिन्दी का विकास कितनी तेजी से हुआ है। हमारे देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अपना बधाई संदेश हिंदी में प्रसारित करते हैं क्योंकि हिंदी भाषा अपनत्व का बोध कराती है।

भविष्य में हिंदी का वर्चस्व कम से कम दक्षिण एशिया के क्षेत्रों में तो अवश्य ही रहेगा और इसका कारण है बहुत बड़े वर्ग का हिंदी भाषा जानना। हिंदी भाषा की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विश्व की शीर्षतम सॉफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने अपने उत्पादों को हिंदी में बनाना भी शुरू किया है।

एक कंपनी जो सारे विश्व में अंग्रेजी भाषा में अपने उत्पाद बेचती है, पर भारत में वह अपने सॉफ्टवेयर हिंदी में ला रही है। इतना ही नहीं, जितनी भी मोबाइल कंपनियां हैं सभी ने सारे हैंडसेट्स में भारतीय भाषाओं को भी शामिल करना शुरू कर दिया है। यह इस बात का इशारा है कि भारतीय जनमानस में हिंदी भाषा का कितना वर्चस्व है। यहां तक की सारे डिजिटल माध्यमों में हिंदी की पहुंच बढ़ी है। चाहे वह बैंक एटीएम हो या कोई सरकारी या गैरसरकारी फर्म हो, सारे माध्यमों में हिंदी का विकास तेजी से हो रहा है।

अपने शैशव काल से लेकर आज तक इंटरनेट ने जो सीढ़ियां चढ़ीं हैं वो अपने आप में प्रतिमान है, लेकिन जितनी प्रसिद्धि हिंदी भाषा की वेबसाइटों को मिलती है, उतनी शायद किसी और को नहीं मिलती। इसके साथ ही यदि भारत में हिन्दी और अंग्रेजी समाचार चैनल की बात किया जाय तो हमें बखूबी पता चल जाएगा कि किस भाषा के चैनल की डिमांड और टीआरपी अधिक है।

आज के परिपेक्ष्य में हिंदी भी इंटरनेट की एक अहम लोकप्रिय भाषा बनकर उभरी है हालाँकि हिंदी भाषा की जितनी मांग है, इंटरनेट पर उतनी उपलब्धता नहीं है। लेकिन जिस रफ्तार से भारत में इंटरनेट का विकास हुआ है, उसी तरह से हिंदी भी इंटरनेट पे छाई रही है। समाचारपत्र से लेकर हिंदी ब्लॉग तक हर जगह हिंदी अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है। इसका श्री गूगल को भी जाता है, जिसने हिंदी में भी सर्च करने का ऑप्शन उपलब्ध कराया।

इतना ही नहीं विकिपीडिया ने भी हिंदी की महत्ता को समझते हुए कई सारी सामग्री का सॉफ्टवेयर अनुवाद हिंदी में प्रदान करना शुरू कर दिया, जिससे हिंदी भाषी को किसी भी विषय की जानकरी सुलभ हुई। और अब वह दिन भी आ गया है, जब इंटरनेट पर सारी सामग्री हिंदी में भी मिलने लगी है।


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