मध्य कालीन इतिहास MEDIEVAL HISTORY (712 ई -1858 ई)

मध्य कालीन इतिहास का समय 712 ई से 1858 ई तक माना गया हैI इसको मध्यकालीन भारतीय इतिहास के नाम से भी जाना जाता हैI यह भारत के प्राचीन और आधुनिक काल के बीच का समय है। भारत के मध्यकाल में अनेकों ऐतिहासिक घटनाएँ घटीं। इस काल को प्रमुख रूप से दिल्ली सल्तनत एवं मुग़ल काल में विभक्त किया गया हैI

मध्य कालीन इतिहास
Mugal Empire Flag

दिल्ली सल्तनत 1206 ई से 1526 ई तक
मुग़ल काल 1526 ई से 1857 ई तक

712 ई से 1206 ई तक कुछ घटनाये घटी जिनके कारण दिल्ली सल्तनत की शुरुआत हुई जिनका विवरण इस प्रकार है :

  • भारत पर पहला अरब आक्रमण
  • भारत पर पहला तुर्की आक्रमण
  • भारत पर दूसरा तुर्की आक्रमण

भारत पर पहला अरब आक्रमण

  • 712 ई में मु. बिन कासिम के द्वारा सिंध राज्य पर पहला आक्रमण हुआ, (भारत पहले सिंध प्रान्त हुआ करता था ) और सिंध के राजा दाहिर की हत्या कर दी गईI
  • मुहम्मद बिन कासिम ने भारत के सिंध पर पहली बार जजिया कर लगाया।
  • मुहम्मद बिन कासिम सिंध और मुल्तान पर विजय प्राप्त कर लिया था।

हालाँकि इसके बहुत पहले सिकंदर और राजा पोरस के युद्ध के बारे में कई जगह उल्लेख मिलता है। जिसमे सिकंदर और राजा पोरस के बीच भयंकर युद्ध होता है। बाद में दोनों में समझौता हो जाता है, और राजा पोरस सिकंदर का आगे बढ़ने में मदद करने को राजी हो जाते है। परन्तु सिकंदर की सेना व्यास नदी के आगे बढ़ने से मना कर देती है। और सिकंदर व्यास नदी के तट से वापस चला जाता है। और भारत विजय का उसका अभियान अधुरा रह जाता है। परन्तु इस घटना का कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं मिलता है

मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण (711-715 ई.)

कासिम के द्वारा किये गए आक्रमणों में उसकी निम्न विजय उल्लेखनीय हैं-

देवल विजय

एक बड़ी सेना लेकर मुहम्मद बिन कासिम ने 711 ई. में देवल पर आक्रमण कर दिया। दाहिर ने अपनी अदूरदर्शिता का परिचय देते हुए देवल की रक्षा नहीं की और पश्चिमी किनारों को छोड़कर पूर्वी किनारों से बचाव की लड़ाई प्रारम्भ कर दी। दाहिर के भतीजे ने राजपूतों से मिलकर क़िले की रक्षा करने का प्रयास किया, किन्तु असफल रहा।

नेऊन विजय

नेऊन पाकिस्तान में वर्तमान हैदराबाद के दक्षिण में स्थित चराक के समीप था। देवल के बाद मुहम्मद कासिम नेऊन की ओर बढ़ा। दाहिर ने नेऊन की रक्षा का दायित्व एक पुरोहित को सौंप कर अपने बेटे जयसिंह को ब्राह्मणाबाद बुला लिया। नेऊन में बौद्धों की संख्या अधिक थी। उन्होंने मुहम्मद बिन कासिम का स्वागत किया। इस प्रकार बिना युद्ध किए ही मीर क़ासिम का नेऊन दुर्ग पर अधिकार हो गया।

सेहवान विजय

नेऊन के बाद मुहम्मद बिना कासिम सेहवान (सिविस्तान) की ओर बढ़ा। इस समय वहाँ का शासक माझरा था। इसने बिना युद्ध किए ही नगर छोड़ दिया और बिना किसी कठिनाई के सेहवान पर मुहम्मद बिन कासिम का अधिकार हो गया।

सीसम के जाटों पर विजय

सेहवान के बाद मुहम्मद बिन कासिम ने सीसम के जाटों पर अपना अगला आक्रमण किया। बाझरा यहीं पर मार डाला गया। जाटों ने मुहम्मद बिन कासिम की अधीनता स्वीकार कर ली।

राओर विजय

सीसम विजय के बाद कासिम राओर की ओर बढ़ा। दाहिर और मुहम्मद बिन कासिम की सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ। इसी युद्ध में दाहिर मारा गया। दाहिर के बेटे जयसिंह ने राओर दुर्ग की रक्षा का दायित्व अपनी विधवा माँ पर छोड़कर ब्राह्मणावाद चला गया। दुर्ग की रक्षा करने में अपने आप को असफल पाकर दाहिर की विधवा पत्नी ने आत्मदाह कर लिया। इसके बाद कासिम का राओर पर नियंत्रण स्थापित हो गया।

ब्राह्मणावाद पर अधिकार

ब्राह्मणावाद की सुरक्षा का दायित्व दाहिर के पुत्र जयसिंह के ऊपर था। उसने कासिम के आक्रमण का बहादुरी के साथ सामना किया, किन्तु नगर के लोगों के विश्वासघात के कारण वह पराजित हो गया। ब्राह्मणावाद पर कासिम का अधिकार हो गया। कासिम ने यहाँ का कोष तथा दाहिर की दूसरी विधवा रानी लाडी के साथ उसकी दो पुत्रियों सूर्यदेवी तथा परमल देवी को अपनी क़ब्ज़े में कर लिया।

आलोर विजय

ब्राह्मणावाद पर अधिकार के बाद कासिम आलोर पहुँचा। प्रारम्भ में आलोर के निवासियों ने कासिम का सामना किया, किन्तु अन्त में विवश होकर आत्मसमर्पण कर दिया।

मुल्तान विजय

आलोर पर विजय प्राप्त करने के बाद कासिम मुल्तान पहुँचा। यहाँ पर आन्तरिक कलह के कारण विश्वासघातियों ने कासिम की सहायता की। उन्होंने नगर के जलस्रोत की जानकारी अरबों को दे दी, जहाँ से दुर्ग निवासियों को जल की आपूर्ति की जाती थी। इससे दुर्ग के सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया। कासिम का नगर पर अधिकार हो गया। इस नगर से मीर क़ासिम को इतना धन मिला की, उसने इसे ‘स्वर्णनगर’ नाम दिया।

मुहम्मद बिन कासिम की वापसी

714 ई. में हज्जाज की और 715 ई में ख़लीफ़ा की मृत्यु के उपरान्त मुहम्मद बिन कासिम को वापस बुला लिया गया। सम्भवतः सिंध विजय अभियान में मुहम्मद बिन कासिम की वहाँ के बौद्ध भिक्षुओं ने सहायता की थी। अरब की राजनीतिक स्थिति सामान्य न होने के कारण दाहिर ने अपने पुत्र जयसिंह को बहमनाबाद पर पुनः क़ब्ज़ा करने के लिए भेजा, परन्तु सिंध के राज्यपाल जुनैद ने जयसिंह को हरा कर बंदी बना लिया।

ब्राह्मणाबाद के पतन के बाद मुहम्मद बिन कासिम ने दाहिर की दूसरी विधवा रानी लाडी और दाहिर की दो कन्याओं सूर्यदेवी और परमलदेवी को बन्दी बनाया। कालान्तर में कई बार जुनैद ने भारत के आन्तरिक भागों को जीतने हेतु सेनाऐं भेजी, परन्तु नागभट्ट प्रथम, पुलकेशी प्रथम एवं यशोवर्मन (चालुक्य) ने इसे वापस खदेड़ दिया। इस प्रकार अरबियों का शासन भारत में सिंध प्रांत तक सिमट कर रह गया। कालान्तर में उन्हें सिंध का भी त्याग करना पड़ा।

भारत पर अरब आक्रमण का परिणाम

अरब आक्रमण का भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति पर लगभग 1000 ई. तक प्रभाव रहा। प्रारम्भ में अरबियों ने कठोरता से इस्लाम धर्म को थोपने का प्रयास किया, पर तत्कालीन शासकों के विरोध के कारण उन्हें अपनी नीति बदलनी पड़ी। सिंध पर अरबों के शासन से परस्पर दोनों संस्कृतियों के मध्य प्रतिक्रिया हुई।

अरबियों की मुस्लिम संस्कृति पर भारतीय संस्कृति का काफ़ी प्रभाव पड़ा। अरब वासियों ने चिकित्सा, दर्शन, नक्षत्र विज्ञान, गणित (दशमलव प्रणाली) एवं शासन प्रबंध की शिक्षा भारतीयों से ही ग्रहण की। चरक संहिता एवं पंचतंत्र ग्रंथों का अरबी भाषा में अनुवाद किया गया। बग़दाद के ख़लीफ़ाओं ने भारतीय विद्धानों को संरक्षण प्रदान किया।

ख़लीफ़ा मंसूर के समय में अरब विद्धानों ने अपने साथ ब्रह्मगुप्त द्वारा रचित ‘ब्रह्मसिद्धान्त’ एवं ‘खण्डनखाद्य’ को लेकर बग़दाद गये और अल-फ़ाजरी ने भारतीय विद्वानों के सहयोग से इन ग्रंथों का अरबी भाषा में अनुवाद किया। भारतीय सम्पर्क से अरब सबसे अधिक खगोल शास्त्र के क्षेत्र में प्रभावित हुए। भारतीय खगोल शास्त्र के आधार पर अरबों ने इस विषय पर अनेक पुस्तकों की रचना की, जिसमें सबसे प्रमुख अल-फ़ाजरी की किताब-उल-जिज है

अरबों ने भारत में अन्य विजित प्रदेशों की तरह धर्म पर आधारित राज्य स्थापित करने का प्रयास नहीं किया। हिन्दुओं को महत्त्व के पदों पर बैठाया गया। इस्लाम धर्म ने हिन्दू धर्म के प्रति सहिष्णुता का प्रदर्शन किया। अरबों की सिंध विजय का आर्थिक क्षेत्र भी प्रभाव पड़ा। अरब से आने वाले व्यापारियों ने पश्चिम समुद्र एवं दक्षिण पूर्वी एशिया में अपने प्रभाव का विस्तार किया। अतः यह स्वाभाविक था कि, भारतीय व्यापारी उस समय की राजनीतिक शक्तियों पर दबाव डालते कि, वे अरब व्यापारियों के प्रति सहानुभूति पूर्ण रुख़ अपनायें।

भारत पर पहला तुर्की आक्रमण

अफगानिस्तान में गजनी प्रदेश था जिसका शासन सुबुक्तगिन के हाथो में था। परन्तु वहा की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी। जिसके कारण शासन व्यवस्था बहुत ही मुश्किल हालातो से गुजर रही थी। और इन्ही मुश्किल हालातो और कमजोर आर्थिक व्यवस्था में वहा के शासक सुबुक्तगीन की सन 998 ई में मृत्यु हो जाती है। और सन 998 ई में महमूद गजनवी गद्दी पर बैठता है। और शासन व्यवस्था की बागडोर अपने हाथ में ले लेता है। और खुद को वहा का सुल्तान घोषित कर देता है।

महमूद गजनवी

महमूद गजनवी भारत के आर्थिक सम्पदाओं के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था। उस समय भारत एक बहुत ही समृद्ध राष्ट्र हुआ करता था। इसलिए महमूद गजनी ने गद्दी पर बैठने के तुरंत बाद भारत को लूट कर अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने का प्रयास किया। और इस प्रयास में वह काफी हद तक सफल भी रहा। उसे जब-जब जरुरत पड़ती तब-तब वह भारत पर आक्रमण करता था। और यहाँ की संपदाओ को लूट कर अपने प्रदेश गजनी ले जाता था। इस क्रम में वह भारत पर सत्रह बार आक्रमण करता है। जिसमे गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण उसका सबसे प्रसिद्ध आक्रमण थाI महमूद गजनवी ने सोमनाथ पर सन 1025 ई में आक्रमण किया थाI और यहाँ से बहुत भारी मात्र में धन दौलत लूटकर ले गया।

महमूद गजनवी और उससे जुडी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां

  • महमूद गजनवी सन 998 ई में गजनी की गद्दी पर बैठता है।
  • महमूद गजनवी सुल्तान का पद धारण करने वाला पहला व्यक्ति था।
  • महमूद गजनवी ने पहला आक्रमण 1001 ई में पेशावर पर किया और वहा के राजा जयपाल की हत्या कर देता है। एवं पेशावर पर अपना कब्ज़ा कर लेता है।
  • महमूद गजनवी सन 1001 ई. से 1027 ई तक भारत पर 17 बार आक्रमण करता है।
  • महमूद गजनवी का सन 1025 ई में गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर किया गया आक्रमण सबसे प्रसिद्ध आक्रमण था। यहाँ से वह बहुत भारी मात्र में धन दौलत लूटकर ले जाता है।
  • महमूद गजनवी का आखिरी आक्रमण सन 1027 ई में राजस्थान के जाटों पर था। जिसमे जाटों की हार हो जाती है।
  • महमूद गजनवी का राजस्थान के जाटों पर आक्रमण उसका 17वां और आखिरी आक्रमण था।
  • सन 1030 ई में भरता से वापस जाते समय कुछ पहाड़ी खोखाड़ो द्वारा महमूद गजनवी की हत्या कर दी जाती है।
  • इस प्रकार सन 1030 ई में महमूद गजनवी की मृत्यु हो जाती है।
  • महमूद गजनवी के कुछ दरबारी कवि थे जिनमे अलबरूनी व फिरदौसी प्रमुख थे।
  • अलबरूनी की प्रसिद्ध रचना तहकीक ए हिन्द और किताबुल हिन्द थी। जबकि फिरदौसी की प्रसिद्ध रचना शाहनामा थी

भारत पर दूसरा तुर्की आक्रमण

गजनी के बाद वहा पर अब गोर प्रदेश बस चुका था। गोर प्रदेश का शसक था मुहम्मद गोरी। मुहम्मद गोरी भी भारत पर आक्रमण करता हैI मुहम्मद गोरी का भारत पर आक्रमण दूसरा तुर्की आक्रमण थाI परन्तु मुहम्मद गोरी के आक्रमण का उद्देश्य भारत पर शासन करना थाI

मुहम्मद गोरी

सन 1173 ई में मुहम्मद गोरी गोर प्रदेश का शासक बनता है। शासक बनने के बाद मुहम्मद गोरी भी भारत पर महमूद गजनवी की ही भांति आक्रमण करता है। परन्तु मुहम्मद गोरी के आक्रमण का उद्देश सिर्फ भारत को लूटना नहीं था, बल्कि उसका उद्देश भारत पर शासन करना था। इसी उद्देश के तहत वह अपना पहला आक्रमण मुल्तान पर सन 1175 ई में करता है और मुल्तान को जीत जाता है।

मुहम्मद गोरी और उससे जुडी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां

  • 1175 ई में मुहम्मद गोरी मुल्तान पर अपना पहला आक्रमण करता है। और मुल्तान पर विजय प्राप्त करता है।
  • मुहम्मद गोरी के आक्रमण का उद्देश भारत पर शासन करना था।
  • 1178 ई में मुहम्मद गोरी पुनः गुजरात के पाटन पर आक्रमण करता है, और यहाँ के राजा भीमसेन-II से युद्ध करता है। परन्तु इस युद्ध में मुहम्मद गोरी पराजित हो जाता है और वापस चला जाता है।
  • इसके अलावा सन 1191 ई. और 1192 ई में तराइन का युद्ध एवं 1194 ई में चन्दावर का युद्ध मुहम्मद गोरी द्वारा लड़ा जाता है। जिसका विवरण इस प्रकार है :
  • तराइन का पहला युद्ध : 1191 ई में तराइन में मुहम्मद गोरी का युद्ध दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान से होता है। जिसमे मुहम्मद गोरी पराजित होकर वापस चला जाता है।
  • तराइन का दूसरा युद्ध : 1192 ई में कन्नोज के राजा जयचंद के आमंत्रण पर मुहम्मद गोरी पुनः वापस आता है। और तराइन में उसका दूसरा युद्ध पुनः दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान से होता है। जिसमे मुहम्मद गोरी जयचंद की सहायता से सम्राट पृथ्वीराज चौहान को हराने में सफल हो जाता है।
  • चंदावर का युद्ध : 1194 ई में मुहम्मद गोरी का युद्ध कन्नौज के राजा जयचंद से चन्दावर में होता है, जिसमे मुहम्मद गोरी विजई होता है।
  • 1203-1204 ई के बीच मुहम्मद गोरी अपने गुलाम कुतुबुदीन ऐबक को लाहौर का शासन सौप कर वापस जा रहा था, उसी दौरान रास्ते में कुछ अज्ञात लोगों द्वारा मुहम्मद गोरी की हत्या कर दी जाती है।
  • इस प्रकार शासन की बागडोर अब मुहम्मद गोरी के गुलाम कुतुबुदीन ऐबक के हाथो में आ जाती है।
  • यही से दिल्ली सल्तनत की शुरुआत हुई और मुहम्मद गोरी के गुलाम कुतुबुदीन ऐबक ने गुलाम वंश की स्थापना की, जो की दिल्ली सल्तनत का पहला वंश था।

इन्हें भी देखें –

Leave a Comment

Contents
सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.