मलयालम भाषा (Malayalam) भारत की प्राचीन और समृद्ध द्रविड़ भाषाओं में से एक है, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत के केरल राज्य और केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में बोली जाती है। यह भाषा अपनी विशिष्ट लिपि, समृद्ध साहित्यिक परंपरा, और भाषिक विविधता के कारण भारतीय भाषाओं के परिदृश्य में एक विशिष्ट स्थान रखती है।
वर्तमान में दुनिया भर में लगभग 3.8 करोड़ से अधिक लोग मलयालम भाषा का प्रयोग करते हैं। यह न केवल केरल राज्य की आधिकारिक भाषा है, बल्कि भारत के संविधान की 22 अनुसूचित भाषाओं में भी शामिल है। केरल के अतिरिक्त यह लक्षद्वीप, तमिलनाडु, कर्नाटक, माहे, और अण्डमान-निकोबार द्वीपसमूह में भी व्यापक रूप से बोली जाती है।
विदेशों में बसे मलयाली समुदायों — विशेषकर फ़ारस की खाड़ी देशों (UAE, सऊदी अरब, ओमान), संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, और ऑस्ट्रेलिया — में भी मलयालम भाषा का प्रयोग जारी है। इस प्रकार, यह भाषा अपनी क्षेत्रीय सीमाओं से आगे बढ़कर एक वैश्विक भारतीय भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी है।
मलयालम भाषा
लिपि | मलयालम लिपि |
बोली क्षेत्र | केरल, लक्षद्वीप, कर्णाटक, तमिलनाडू, माहे, अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह, फ़ारस की खाड़ी |
वक्ता | 3.8 करोड़ |
भाषा परिवार | द्रविड़ |
आधिकारिक भाषा | केरल |
मलयालम भारत के द्रविड़ भाषा-परिवार की प्रमुख भाषाओं में से एक है। यह मुख्य रूप से केरल राज्य और लक्षद्वीप में बोली जाती है। विश्व भर में इसकी लगभग 3.8 करोड़ वक्ता हैं। मलयालम की अपनी विशेष लिपि है, जिसे मलयालम लिपि कहते हैं, और यह भाषा साहित्यिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है।
मलयालम भाषा का इतिहास प्राचीन तमिल भाषा से जुड़ा हुआ है। यह संभवतः ईसा पूर्व 3100 से 100 तक प्राचीन तमिल का एक स्थानीय रूप थी। समय के साथ मलयालम भाषा में संस्कृत, तमिल और अंग्रेज़ी जैसी भाषाओं का प्रभाव पड़ा।
भाषा का महत्व और भूगोल
- मलयालम भाषा केरल, लक्षद्वीप, कर्नाटक के दक्षिणी भाग और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में बोली जाती है।
- इसके अतिरिक्त, फारस की खाड़ी और अन्य देशों में बसे मलयाली डायस्पोरा समुदाय में भी यह भाषा प्रचलित है।
लिपि और ध्वन्यात्मक विशेषताएँ
मलयालम लिपि एक अबुगिडा लेखन प्रणाली है। इसका अर्थ है कि प्रत्येक अक्षर मूलतः एक व्यंजन को दर्शाता है, जबकि स्वर की उपस्थिति विशेषक चिह्नों के माध्यम से व्यक्त की जाती है।
- कुल अक्षर: 56 (स्वर 15, व्यंजन 42)
- अक्षरों का रूप गोलाकार और प्रवाहयुक्त है, जो प्राचीन ताड़पत्र लेखन परंपरा से विकसित हुआ।
- मलयालम लिपि में संयुक्त व्यंजन और शब्दांश आधारित लेखन प्रणाली भी मौजूद है, जो इसे अत्यंत वैज्ञानिक और व्यावहारिक बनाती है।
सांस्कृतिक और साहित्यिक महत्व
मलयालम भाषा के माध्यम से केरल की सांस्कृतिक और साहित्यिक परंपरा को संजोया गया है। इसके साहित्य में कविता, कथा, नाटक और गद्य सभी शैलियाँ पाई जाती हैं। मलयालम भाषा के माध्यम से लेखकों और कवियों ने धार्मिक, सामाजिक और दार्शनिक विचारों का प्रभावी रूप से प्रचार किया है।
संक्षेप में, मलयालम भाषा न केवल केरल की सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि यह भारत की भाषाई विविधता और साहित्यिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण अंग भी है।
मलयालम शब्द की उत्पत्ति
“मलयालम” शब्द स्वयं अपने अर्थ में इस भाषा के भौगोलिक और सांस्कृतिक स्रोत को इंगित करता है। यह शब्द दो भागों से बना है —
‘मलै’ (मूल शब्द मलय, जिसका अर्थ है पर्वत) और ‘अळम’ (मूल शब्द आलयम्, जिसका अर्थ है स्थान या निवास)।
अर्थात्, “मलयालम” का शाब्दिक अर्थ हुआ — पर्वतों का स्थान या पहाड़ी प्रदेश का निवास।
यह नाम उन लोगों और प्रदेशों से जुड़ा है जो भारत के पश्चिमी घाट (Western Ghats) के निकट रहते थे। अतः इस भाषा का नामकरण सीधे-सीधे उसके भूगोल और निवासियों के पर्यावरण से जुड़ा हुआ है।
इसका सही उच्चारण ‘मलयाळम्’ (Malayāḷam) है। एक रोचक तथ्य यह भी है कि “मलयालम” शब्द स्वयं पालिन्ड्रोम है — अर्थात् इसे बाएँ से दाएँ या दाएँ से बाएँ पढ़ने पर एक जैसा ही दिखता है।
भाषा परिवार और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
मलयालम भाषा का संबंध द्रविड़ भाषा-परिवार से है। यह वही भाषा-परिवार है जिसमें तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और तुलु जैसी दक्षिण भारतीय भाषाएँ शामिल हैं।
हालाँकि, मलयालम और तमिल भाषाओं के संबंध पर लंबे समय से भाषावैज्ञानिकों के बीच मतभेद रहा है। कुछ विद्वानों का मानना है कि मलयालम, तमिल की एक शाखा है, जो समय के साथ स्वतंत्र भाषा के रूप में विकसित हुई, जबकि कुछ का मत है कि यह द्रविड़ परिवार की एक स्वतंत्र भाषा है, जो तमिल की “बहन” कही जा सकती है।
इस विवाद को लेकर भाषाविज्ञानियों ने गहन अनुसंधान किया है। सामान्यतः यह माना जाता है कि लगभग 3100 ई.पू. से 100 ई.पू. तक का कालखंड वह समय था जब मलयालम, प्राचीन तमिल का एक स्थानीय रूप था। इस काल में भाषा के स्वरूप में क्षेत्रीय विशेषताएँ जुड़ने लगीं, और धीरे-धीरे यह तमिल से अलग होती चली गई।
मलयालम भाषा का ऐतिहासिक विकास
1. प्रारंभिक काल (3100 ई.पू. – 100 ई.पू.)
इस काल में मलयालम, प्राचीन तमिल का ही एक रूप मानी जाती थी। उस समय केरल और तमिलनाडु के क्षेत्रों में बोली जाने वाली द्रविड़ उपभाषाएँ एक-दूसरे से अत्यंत मिलती-जुलती थीं। धीरे-धीरे केरल क्षेत्र में कुछ ध्वन्यात्मक और व्याकरणिक भिन्नताएँ विकसित हुईं।
2. संस्कृत प्रभाव का काल (100 ई.पू. – 3री सदी ईस्वी)
ईसा पूर्व पहली सदी से लेकर तीसरी सदी तक संस्कृत भाषा का प्रभाव मलयालम पर गहराई से पड़ा। ब्राह्मणवादी संस्कृति, वैदिक परंपरा, और धार्मिक अनुष्ठानों के प्रसार के कारण संस्कृत के अनेक शब्द, ध्वनियाँ और अभिव्यक्तियाँ मलयालम में सम्मिलित हुईं।
3. मध्यकालीन विकास (3री सदी – 15वीं सदी)
यह काल मलयालम भाषा के परिपक्व होने का दौर माना जाता है। जैन और बौद्ध परंपराओं के संपर्क में आने से भाषा में वैचारिक और दार्शनिक अभिव्यक्तियाँ आईं। इसी काल में प्राचीन मलयालम साहित्य का भी आरंभ हुआ।
इस काल में तमिल से अलग एक विशिष्ट मलयालम पहचान उभरने लगी। लिपि में परिवर्तन हुए, नए शब्द बने, और स्थानीय बोलियों का समन्वय हुआ।
4. औपनिवेशिक और आधुनिक काल (15वीं सदी – 20वीं सदी)
15वीं सदी के बाद से केरल में विदेशी प्रभावों का प्रवेश हुआ — पहले अरब व्यापारियों का, फिर पुर्तगालियों, डच और अंततः अंग्रेजों का।
1795 ईस्वी में अंग्रेजों ने केरल पर अपना पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया। इसके बाद अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली, मुद्रण कला, और प्रशासनिक प्रभाव ने मलयालम भाषा को नई दिशा दी। इस काल में आधुनिक मलयालम व्याकरण, शब्दकोश और साहित्यिक रूप विकसित हुए।
मलयालम भाषा का भौगोलिक प्रसार
मलयालम भाषा का केंद्र केरल है, परंतु इसका विस्तार भारत के अन्य भागों और विदेशों तक फैला है।
भारत में:
- केरल — प्रमुख भाषाई क्षेत्र
- लक्षद्वीप — एकमात्र आधिकारिक भाषा
- तमिलनाडु — कन्याकुमारी एवं आसपास के सीमावर्ती क्षेत्र
- कर्नाटक — दक्षिण कन्नड़ और कोडागु जिले
- माहे (पुदुचेरी) — मलयालमभाषी आबादी
भारत के बाहर:
फारस की खाड़ी देशों — जैसे UAE, सऊदी अरब, ओमान, कतर, कुवैत, बहरीन — में बड़ी संख्या में मलयाली प्रवासी कार्यरत हैं।
इसके अतिरिक्त, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका में भी मलयालमभाषी समुदाय पाए जाते हैं।
इस व्यापक प्रसार ने भाषा को एक वैश्विक पहचान दी है। प्रवासी मलयालियों के कारण मलयालम भाषा न केवल जीवंत बनी रही है बल्कि इसके डिजिटल और ऑनलाइन स्वरूपों का विकास भी तेजी से हुआ है।
मलयालम लिपि : स्वरूप और विकास
मलयालम भाषा को लिखने के लिए प्रयोग की जाने वाली लिपि को मलयालम लिपि (Malayalam Script) कहा जाता है। यह एक अबुगिडा (Abugida) प्रणाली पर आधारित लिपि है, अर्थात् — प्रत्येक मूल अक्षर किसी व्यंजन का प्रतिनिधित्व करता है और स्वर विशेष चिह्नों द्वारा दर्शाए जाते हैं।
लिपि की उत्पत्ति
मलयालम लिपि की जड़ें ब्राह्मी लिपि में हैं। यह ग्रंथ लिपि से विकसित हुई, जो दक्षिण भारत में संस्कृत लेखन के लिए प्रयुक्त होती थी। समय के साथ इसमें स्थानीय परिवर्तनों के कारण एक स्वतंत्र रूप विकसित हुआ, जिसे हम आज “मलयालम लिपि” के नाम से जानते हैं।
मलयालम लिपि की संरचना और वर्णमाला की गणना
मलयालम लिपि एक ध्वन्यात्मक और वैज्ञानिक लेखन प्रणाली है, जिसका उपयोग मलयालम भाषा को लिखने के लिए किया जाता है। यह लिपि बाएँ से दाएँ लिखी जाती है और इसमें संयुक्ताक्षर (Conjunct Consonants) बनाने की एक विशिष्ट प्रणाली मौजूद है।
अक्षरों की संरचना
मलयालम वर्णमाला में कुल लगभग 56 अक्षर पाए जाते हैं, जिनका वितरण इस प्रकार है:
- स्वर (Vowels / അച്ചുകൾ): 15
- व्यंजन (Consonants / ഹല്ലുകൾ): 42
स्वर स्वतंत्र अक्षरों के रूप में या व्यंजन के साथ जुड़े मात्रा चिह्नों के रूप में लिखे जा सकते हैं। व्यंजन अक्षर अपने आप में ध्वनि की मूल इकाई होते हैं और कई व्यंजनों को जोड़कर संयुक्त अक्षर बनाए जाते हैं, जो शब्दों और वाक्यों के लय और प्रवाह को सुनिश्चित करते हैं।
गणना का विवरण
यदि हम स्वर और व्यंजन को सीधे जोड़ें:
15 (स्वर) + 42 (व्यंजन) = 57,
लेकिन अक्सर कुल अक्षर = 56 लिखा जाता है। इसका कारण यह है:
- कुछ स्वर या व्यंजन विशेष अक्षरों के रूप में गणना में शामिल नहीं किए जाते।
- कुछ परंपराओं में एक व्यंजन-स्वर संयोजन को एकल अक्षर माना जाता है।
- पारंपरिक सूची में “ऋ” (ഋ) या उसके आधुनिक रूप (ॠ / ൠ) को कभी-कभी शामिल नहीं किया जाता।
- पुराने ग्रंथों या शैक्षणिक स्रोतों में संयुक्त अक्षरों (Conjuncts) को अलग नहीं गिना जाता।
इसलिए गणितीय रूप से 57 अक्षर सही है, लेकिन पारंपरिक और शैक्षणिक दृष्टिकोण से इसे 56 अक्षरों वाली वर्णमाला माना जाता है।
मलयालम लिपि और उसकी वर्णमाला न केवल भाषा की ध्वन्यात्मक संरचना का आधार हैं, बल्कि यह साहित्यिक और सांस्कृतिक परंपरा को संरक्षित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
इस लिपि के माध्यम से ही मलयालम भाषा के कवि, लेखक और विद्वान अपनी रचनाओं के जरिए ज्ञान और सांस्कृतिक चेतना पीढ़ियों तक पहुँचाते रहे हैं।
लिपि का विकास और मानकीकरण
प्रारंभ में मलयालम लिपि का स्वरूप क्षेत्रानुसार भिन्न था। उत्तरी और दक्षिणी केरल में लेखन शैलियों में अंतर पाया जाता था। 20वीं सदी में जब मुद्रण तकनीक और शिक्षा का प्रसार हुआ, तब लिपि को मानकीकृत किया गया।
आज प्रयुक्त लिपि तकनीकी रूप से आधुनिक है और यूनिकोड (Unicode) में भी पूर्णतः समर्थित है। कंप्यूटर, मोबाइल और इंटरनेट में मलयालम टाइपिंग और प्रकाशन अब सहज रूप से संभव है।
मलयालम लिपि की विशेषताएँ
मलयालम लिपि का रूप अत्यंत गोलाकार और प्रवाहयुक्त है। इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- गोलाकारता और सौम्यता: ताड़पत्रों पर लिखने की परंपरा के कारण अक्षरों में कोणीयता की अपेक्षा वक्रता अधिक है।
- शब्दांश आधारित लिपि: प्रत्येक अक्षर स्वर और व्यंजन के संयोजन से निर्मित होता है।
- ब्राह्मी लिपि से विकास: यह प्राचीन ब्राह्मी लिपि की शाखा है और तमिल ब्राह्मी लिपि से प्रभावित हुई है।
- संयुक्त अक्षर और जटिलता: कई व्यंजन संयोजन अक्षर बनाए जाते हैं, जो शब्दों को लयात्मक और सहज उच्चारण योग्य बनाते हैं।
मलयालम वर्णमाला: स्वर और व्यंजन
मलयालम भाषा की वर्णमाला ध्वन्यात्मक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध और विशिष्ट है। यह भाषा की ध्वनि, शब्द रचना और लिपि शैली का आधार है। मलयालम वर्णमाला में कुल 56 अक्षर शामिल हैं, जिनमें 15 स्वर (Vowels) और 42 व्यंजन (Consonants) सम्मिलित हैं।
1. स्वर (Vowels / അച്ചുൾ) — कुल 15
स्वर भाषा की मूल ध्वनियाँ व्यक्त करते हैं और किसी भी शब्द की मधुरता और स्पष्टता को सुनिश्चित करते हैं। मलयालम में कुल 15 मुख्य स्वर पाये जाते हैं।
- स्वर स्वतंत्र अक्षरों के रूप में लिखे जा सकते हैं।
- स्वर व्यंजन के साथ जुड़े मात्रा चिह्नों (Matra) के रूप में भी प्रयुक्त होते हैं।
- प्रत्येक स्वर की ध्वनि स्पष्ट और स्थायी होती है।
मुख्य स्वर:
क्रम संख्या | स्वर (हिंदी) | स्वर (मलयालम) | उच्चारण संकेत |
---|---|---|---|
1 | अ | അ | a |
2 | आ | ആ | aa / ā |
3 | इ | ഇ | i |
4 | ई | ഈ | ii / ī |
5 | उ | ഉ | u |
6 | ऊ | ഊ | uu / ū |
7 | ऋ | ഋ | r̥ |
8 | ए | എ | e |
9 | ऐ | ഐ | ai |
10 | ओ | ഒ | o |
11 | औ | ഔ | au |
12 | अं | അം | am / anusvāra |
13 | अः | അഃ | ah / visarga |
14 | ऎ | എ | short e |
15 | ऒ | ഒ | short o |
स्वरों का उच्चारण भाषण में स्पष्ट और लयबद्धता प्रदान करता है, जिससे मलयालम शब्द और वाक्य सहजता से प्रवाहमान बनते हैं।
2. व्यंजन (Consonants / ഹല്ലുകൾ) — कुल 42
मलयालम में 42 व्यंजन पाए जाते हैं। व्यंजनों का उच्चारण स्थानिकता (Place of Articulation) और ध्वन्यात्मक गुणों के आधार पर बदलता है।
- व्यंजन स्वतंत्र अक्षरों के रूप में लिखे जाते हैं।
- व्यंजन और स्वर के संयोजन से संयुक्त अक्षर (Ligature) बनते हैं।
- कुछ व्यंजन संस्कृत से लिए गए हैं, जिससे ध्वन्यात्मक विविधता बढ़ती है।
मलयालम में 42 व्यंजन की मुख्य रूप से निम्नलिखित श्रेणियाँ हैं:
- क-वर्ग (Velar): ക (ka), ഖ (kha), ഗ (ga), ഘ (gha), ങ (nga)
- च-वर्ग (Palatal): ച (cha), ഛ (chha), ജ (ja), ഝ (jha), ഞ (nya)
- ट-वर्ग (Retroflex): ട (ṭa), ഠ (ṭha), ഡ (ḍa), ഢ (ḍha), ണ (ṇa)
- त-वर्ग (Dental): ത (ta), ഥ (tha), ദ (da), ധ (dha), ന (na)
- प-वर्ग (Labial): പ (pa), ഫ (pha), ബ (ba), ഭ (bha), മ (ma)
- अर्धस्वर/अन्य: യ (ya), ര (ra), ല (la), വ (va), ശ (sha), ഷ (ṣa), സ (sa), ഹ (ha), ള (ḷa)
मलयालम में “क्ष (kṣ), त्र (tra), ज्ञ (jña), श्र (śra)” जैसे संयुक्त संस्कृत अक्षर कभी-कभी शैक्षणिक या धार्मिक ग्रंथों में प्रयुक्त होते हैं, लेकिन ये मूल मलयालम व्यंजन सूची का हिस्सा नहीं हैं।
संयुक्त अक्षर (Conjuncts):
उदाहरण: “क” (ക) को दोहराने या अन्य व्यंजन से जोड़ने पर यह “क्क” (ക്ക) बन जाता है। इससे ध्वनि दोगुनी या बदलती है।
क्रम संख्या | व्यंजन (हिंदी) | व्यंजन (मलयालम) | उच्चारण संकेत |
---|---|---|---|
1 | क | ക | ka |
2 | ख | ഖ | kha |
3 | ग | ഗ | ga |
4 | घ | ഘ | gha |
5 | ङ | ങ | ṅa |
6 | च | ച | ca |
7 | छ | ഛ | cha |
8 | ज | ജ | ja |
9 | झ | ഝ | jha |
10 | ञ | ഞ | ña |
11 | ट | ട | ṭa |
12 | ठ | ഠ | ṭha |
13 | ड | ഡ | ḍa |
14 | ढ | ഢ | ḍha |
15 | ण | ണ | ṇa |
16 | त | ത | ta |
17 | थ | ഥ | tha |
18 | द | ദ | da |
19 | ध | ധ | dha |
20 | न | ന | na |
21 | प | പ | pa |
22 | फ | ഫ | pha |
23 | ब | ബ | ba |
24 | भ | ഭ | bha |
25 | म | മ | ma |
26 | य | യ | ya |
27 | र | ര | ra |
28 | ल | ല | la |
29 | व | വ | va / wa |
30 | श | ശ | śa |
31 | ष | ഷ | ṣa |
32 | स | സ | sa |
33 | ह | ഹ | ha |
34 | ळ | ള | ḷa |
35 | क्ष | ക്ഷ | kṣa |
36 | त्र | ത്ര | tra |
37 | ज्ञ | ജ്ഞ | jña |
38 | श्र | ശ്ര | śra |
39 | झ़ / झ़ा | ഴ | ḻa |
40 | ॠ | ഋ | r̥̄ |
41 | ॡ | ൡ | l̥̄ |
42 | ङ़ | ങ | ṅa (extended) |
मलयालम वर्णमाला का उपयोग एवं विशेषताएं
मलयालम लिपि मुख्य रूप से केरल और लक्षद्वीप में बोली जाने वाली मलयालम भाषा को लिखने के लिए प्रयुक्त होती है।
- शिक्षा, साहित्य, पत्रकारिता और सरकारी कार्यों में व्यापक रूप से उपयोग होती है।
- यह भाषा की ध्वन्यात्मक संरचना और साहित्यिक परंपरा को संरक्षित रखने में मदद करती है।
- कविता, कथा, नाटक और आधुनिक साहित्य की रचनाएँ इसी लिपि के माध्यम से सजीव हुई हैं।
विशेषताएँ:
- मलयालम वर्णमाला शब्दांश आधारित है, यानी व्यंजन और स्वर मिलकर अक्षर बनाते हैं।
- स्वर व्यंजन के ऊपर, नीचे या बगल में लिखे जाते हैं।
- कई संयुक्त अक्षर (Ligature) बनाए जाते हैं, जैसे:
- ക + ക = ക്ക (kka)
- ത + ത = ത്ത (tta)
- പ + ര = പ്ര (pra)
- लिपि का रूप गोलाकार और प्रवाहयुक्त है, जिससे यह ताड़पत्र पर लिखने के लिए उपयुक्त रही।
मलयालम भाषा में संख्याएँ और गिनती
मलयालम भाषा में संख्याओं का उच्चारण और लेखन हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं से भिन्न होता है। यहाँ 1 से लेकर 1000 तक की कुछ प्रमुख संख्याएँ मलयालम में, उनके हिंदी अर्थ और उच्चारण के साथ प्रस्तुत हैं।
अंक | हिंदी | मलयालम | उच्चारण (Transliteration) |
---|---|---|---|
1 | एक | ഒന്ന് | onnu |
2 | दो | രണ്ട് | randu |
3 | तीन | മൂന്ന് | moonnu |
4 | चार | നാല് | naalu |
5 | पांच | അഞ്ച് | anju |
6 | छह | ആറ് | aaru |
7 | सात | ഏഴ് | ezhu |
8 | आठ | എട്ട് | ettu |
9 | नौ | ഒന്പത് | onpathu |
10 | दस | പത്ത് | patthu |
11 | ग्यारह | പതിനൊന്ന് | pathinonnu |
12 | बारह | പന്ത്രണ്ട് | panthrandu |
13 | तेरह | പതിമൂന്ന് | pathimoonnu |
14 | चौदह | പതിനാല് | pathinaalu |
15 | पंद्रह | പതിനഞ്ചു | pathinanju |
16 | सोलह | പതിനാറ് | pathinaaruh |
17 | सत्रह | പതിനേഴ് | pathinezhu |
18 | अठारह | പതിനെട്ട് | pathinettu |
19 | उन्नीस | പത്തൊന്പത് | patthonpathu |
20 | बीस | ഇരുപത് | irupathu |
21 | इक्कीस | ഇരുപത്തിയൊന്ന് | irupathionnuh |
22 | बाईस | ഇരുപത്തിരണ്ട് | irupathiranduh |
23 | तेईस | ഇരുപത്തി മൂന്ന് | irupathimoonuh |
30 | तीस | മുപ്പത് | muppathuh |
40 | चालीस | നാല്പത് | nalpathuh |
50 | पचास | അമ്പത് | anpathuh |
60 | साठ | അറുപത് | arupathuh |
70 | सत्तर | എഴുപത് | ezhupathuh |
80 | अस्सी | എൺപത് | enpathuh |
90 | नब्बे | തൊണ്ണൂറ് | thonnooru |
100 | सौ | നൂറ് | nooru |
200 | दो सौ | ഇരുന്നൂറ് | Irunnooru |
300 | तीन सौ | മൂന്നൂറ് | Munnooru |
1000 | हजार | ആയിരം | aayiram |
विशेषताएँ:
- मलयालम संख्याएँ उच्चारण और लेखन दोनों में ध्वन्यात्मक रूप से स्पष्ट होती हैं।
- मलयालम में संयुक्त संख्याएँ भी बनाई जा सकती हैं, जैसे “21” = ഇരുപത്തിയൊന്ന് (irupathionnuh)।
- यह प्रणाली शब्दांश आधारित है, जिससे उच्चारण और पढ़ाई दोनों सरल हो जाती हैं।
मलयालम भाषा की शब्द संरचना और व्याकरणिक विशेषताएँ
मलयालम भाषा दक्षिण भारतीय द्रविड़ भाषा परिवार की प्रमुख भाषा है। इसकी लिपि बाएँ से दाएँ लिखी जाने वाली अबुगिडा प्रणाली पर आधारित है। इसका अर्थ है कि प्रत्येक अक्षर एक व्यंजन का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि स्वर की उपस्थिति को विशेष चिह्नों (मात्रा) द्वारा दर्शाया जाता है।
मलयालम भाषा का व्याकरण द्रविड़ भाषाओं की पारंपरिक संरचना का पालन करता है। इसका वाक्य क्रम सामान्यतः कर्त्ता–कर्म–क्रिया (SOV) होता है, जैसा कि तमिल, तेलुगु और कन्नड़ में भी देखने को मिलता है।
- संज्ञा (Noun) के रूप कई विभक्ति प्रत्ययों से बनते हैं।
- क्रिया (Verb) के रूप काल, पुरुष, और वचन के अनुसार परिवर्तित होते हैं।
- विशेषण और सर्वनामों का प्रयोग अत्यंत लचीला है।
मलयालम में संस्कृत से बड़ी संख्या में तत्सम और तद्भव शब्द प्रयुक्त होते हैं। फिर भी इसकी अपनी मूल द्रविड़ शब्दावली अत्यंत प्रबल है, जो भाषा को एक विशिष्ट पहचान देती है।
सरल मलयालम शब्दों के उदाहरण
हिंदी | मलयालम | उच्चारण (Transliteration) |
---|---|---|
नदी | നദി | nadi |
पहाड़ | പർവ്വതം | parvvatham |
खाना | കഴിക്കുക | kazhikkuka |
कपड़ा | തുണി | thuni |
मकान | വീട് | veedu |
रोटी | അപ്പം | appam |
मित्र | സുഹൃത്തേ | suhritthe |
घर | വീട് | veedu |
पंखा | ഫാൻ | fan |
मलयालम में प्रश्नवाचक शब्द
हिंदी | अंग्रेज़ी | मलयालम | उच्चारण |
---|---|---|---|
क्या | What | എന്ത് | enthu |
कब | When | എപ്പോൾ | eppol |
कैसे | How | എങ്ങനെ | engane |
कहाँ | Where | എവിടെ? | evide? |
क्यों | Why | എന്തിന് | enthinu |
कौन | Who | ആര് | aar |
कौन सा | Which | അതിൽ ഏത് | athil eth |
मलयालम में नकारात्मक शब्द और पद
हिंदी | अंग्रेज़ी | मलयालम | उच्चारण |
---|---|---|---|
नहीं / न | No | ഇല്ല | illa |
कभी नहीं | Never | ഒരിക്കലുമില്ല | orikkalum illa |
मैं दुखी नहीं था | I was not sad | ഞാൻ ദുഃഖിച്ചില്ല | njan dukkhichilla |
वह बीमार नहीं है | He is not sick | അവൻ രോഗിയല്ല | avan rogi alla |
वह कंप्यूटर नहीं चला रहा था | He was not operating the computer | അവൻ കമ്പ്യൂട്ടർ പ്രവർത്തിപ്പിച്ചിരുന്നില്ല | avan computer pravarthippichirunnilla |
वे कभी आगरा नहीं जाते हैं | They never go to Agra | അവർ ഒരിക്കലും ആഗ്രയിലേക്ക് പോകാറില്ല | avar orikkalum Agrayilekku pokarilla |
मेरे पास कुछ नहीं है | I have nothing | എനിക്കൊന്നുമില്ല | enikke onnumilla |
रेखा पत्र न लिख सका | Rekha could not write the letter | വര വരയ്ക്കാൻ കഴിഞ്ഞില്ല | vara varakkan kazhiyilla |
कुछ सामान्य वाक्य और उनका मलयालम अनुवाद
नीचे कुछ सामान्य हिंदी वाक्यों को उनके अंग्रेज़ी अनुवाद और मलयालम अनुवाद के साथ प्रस्तुत किया गया है, जिससे पाठक भाषा की व्यवहारिक समझ प्राप्त कर सकें।
हिंदी वाक्य | अंग्रेज़ी अनुवाद | मलयालम अनुवाद |
---|---|---|
कृपया प्रतीक्षा करें, मैं बस आ रहा हूँ। | Please wait, I am just coming. | കാത്തിരിക്കൂ, ഞാൻ വരുന്നതേയുള്ളു. |
क्षमा करें, आप थोड़ा देर कर रहे हैं। | Sorry, you are a bit late. | നിങ്ങൾ അൽപ്പം വൈകിയതിൽ ക്ഷമിക്കണം. |
चलने वाली ट्रेन पर न चढ़ें। | Don’t board a running train. | ഓടുന്ന ട്രെയിനിൽ കയറരുത്. |
जेबकतरों से सावधान। | Beware of pick-pockets. | പോക്കറ്റടിക്കാരെ സൂക്ഷിക്കുക. |
फ़र्श पर ना थूकें। | Do not spit on the floor. | തറയിൽ തുപ്പരുത്. |
आराम से बैठें। | Be seated comfortably. | സുഖമായി ഇരിക്കുക. |
हमें छोटी बातों पर झगड़ा नहीं करना चाहिए। | We should not quarrel over trifling matters. | ചെറിയ കാര്യങ്ങളുടെ പേരിൽ വഴക്കിടാൻ പാടില്ല. |
गरीबों के साथ हमेशा सहानुभूति रखें। | Always sympathize with the poor. | പാവങ്ങളോട് എപ്പോഴും സഹതപിക്കുക. |
मैं भगवान पर भरोसा करता हूँ और सही करता हूँ। | I trust in God and do the right. | ഞാൻ ദൈവത്തിൽ വിശ്വസിക്കുന്നു, ശരി ചെയ്യുന്നു. |
मैं हमेशा हवाई जहाज़ से यात्रा करता हूँ। | I always travel by flight. | ഞാൻ എപ്പോഴും വിമാനത്തിലാണ് യാത്ര ചെയ്യുന്നത്. |
विशेषताएँ:
- मलयालम शब्द संरचना व्यंजन + स्वर संयोजन पर आधारित है।
- प्रश्नवाचक और नकारात्मक शब्दों का उपयोग वाक्य निर्माण और संवाद में स्पष्टता लाता है।
- यह प्रणाली भाषा की ध्वन्यात्मक और व्याकरणिक सटीकता को बनाए रखती है।
मलयालम साहित्य : परंपरा, विकास और प्रमुख प्रवृत्तियाँ
मलयालम साहित्य भारत की द्रविड़ भाषाओं में से एक की समृद्ध और प्राचीन साहित्यिक परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है। लगभग एक हजार वर्ष के इस साहित्यिक विकास को व्यापक रूप से तीन प्रमुख कालों — प्रारंभिक काल, मध्यकाल और आधुनिक काल — में विभाजित किया जा सकता है। इसकी यात्रा धार्मिक कविता से लेकर आधुनिक कथा साहित्य और सामाजिक उपन्यास तक फैली हुई है, जिसने न केवल केरल की सांस्कृतिक चेतना को आकार दिया, बल्कि भारतीय साहित्य को भी समृद्ध किया।
1. प्रारंभिक काल (9वीं–14वीं सदी) : नींव और काव्यपरंपरा
मलयालम साहित्य की उत्पत्ति 9वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास मानी जाती है। इस काल में तमिल और संस्कृत दोनों भाषाओं का गहरा प्रभाव साहित्य पर देखा गया। धार्मिक ग्रंथों, भक्ति कविताओं और लोककथाओं का सृजन हुआ, जिनमें दार्शनिक और नैतिक भावनाओं की गूंज मिलती है।
इस काल की सर्वप्रथम और प्रसिद्ध रचना ‘रामचरितम्’ (Rāmacaritam) मानी जाती है, जिसे Cherusseri Namboothiri द्वारा रचित बताया जाता है। यह 13वीं शताब्दी का एक काव्य-संग्रह है, जिसने मलयालम साहित्य को ठोस आधार प्रदान किया और आगे आने वाले कवियों के लिए साहित्यिक परंपरा की नींव रखी।
2. मध्यकाल (15वीं–18वीं सदी) : भक्ति और नाट्य साहित्य का उत्कर्ष
मध्यकालीन युग में मलयालम साहित्य ने भक्ति और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का स्वर अपनाया। इस काल में चंपू (Champu) और थुलाल (Thullal) जैसी विशिष्ट काव्य-विधाओं का विकास हुआ, जो संस्कृत की विद्वत्ता और स्थानीय लोकभाषा के सुंदर संयोग का उदाहरण हैं।
थुंचथ्थु रामानुजन एझुथचन (Thunchaththu Ramanujan Ezhuthachan) को इसी काल का महानतम साहित्यकार और “आधुनिक मलयालम साहित्य का जनक” माना जाता है। उन्होंने रामायणम् और महाभारतम् जैसे हिंदू महाकाव्यों का पुनर्कथन मलयालम में किया। उनकी रचनाओं ने न केवल भाषा को काव्यात्मक गरिमा दी, बल्कि इसे जनभाषा और भक्ति की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया।
3. आधुनिक काल (19वीं सदी से आगे) : सामाजिक चेतना और साहित्यिक नवजागरण
19वीं सदी में अंग्रेज़ी शासन के प्रभाव, शिक्षा के प्रसार और मुद्रण-प्रौद्योगिकी के विकास ने मलयालम साहित्य को आधुनिक रूप प्रदान किया। इस दौर में कविता, गद्य, निबंध, कथा, और नाटक जैसी विधाओं का अद्भुत विस्तार हुआ।
कुमारन आसन (Kumaran Asan)
कुमारन आसन ने 20वीं सदी के प्रारंभ में मलयालम कविता में नई सामाजिक चेतना का संचार किया। वे एक ओर कवि थे, तो दूसरी ओर सामाजिक सुधार आंदोलन के अग्रदूत। उनकी कविताओं में समानता, मानवता और सामाजिक न्याय की भावना प्रमुख है।
वल्लथोल नारायण मेनन (Vallathol Narayana Menon)
वल्लथोल नारायण मेनन आधुनिक मलयालम कविता के त्रिमूर्ति कवियों में से एक हैं। उन्होंने राष्ट्रीयता, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और केरल की गौरवशाली परंपरा को अपनी कविताओं में अभिव्यक्त किया। वल्लथोल ने “केरल कलामंडलम” की स्थापना कर भारतीय शास्त्रीय नृत्य कथकली को पुनर्जीवित करने में भी योगदान दिया।
जी. शंकर कुरुप (G. Sankara Kurup)
जी. शंकर कुरुप मलयालम के पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता कवि थे। उन्होंने कविता में दार्शनिक गहराई, मानवीय भावनाओं की सूक्ष्मता और आधुनिक दृष्टिकोण को समाहित किया। उनकी रचनाओं ने भाषा को सौंदर्य और बौद्धिकता का अद्वितीय संतुलन प्रदान किया।
एम. टी. वासुदेवन नायर (M. T. Vasudevan Nair)
एम. टी. वासुदेवन नायर मलयालम कथा-साहित्य के सशक्त स्तंभ हैं। वे कथाकार, नाटककार और फिल्म-पटकथा लेखक के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनकी कहानियाँ और उपन्यास केरल के सामाजिक यथार्थ, पारिवारिक संबंधों और मानवीय अंतर्द्वंद्वों को गहराई से चित्रित करते हैं। उन्हें भी ज्ञानपीठ पुरस्कार सहित अनेक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए हैं।
मलयालम साहित्य की प्रमुख रचनाएँ एवं उनके रचनाकार
क्रम संख्या | रचनाकार (Author) | प्रमुख रचनाएँ (Major Works) | साहित्यिक काल / योगदान (Literary Period / Contribution) |
---|---|---|---|
1 | चेःरस्सेरी नम्बूथिरी (Cherusseri Namboothiri) | रामचरितम् (Ramacharitham) | प्रारंभिक काल (13वीं सदी) — मलयालम की प्रथम ज्ञात काव्य कृति, जिसने साहित्यिक परंपरा की नींव रखी। |
2 | थुंचथ्थु रामानुजन एझुथचन (Thunchaththu Ramanujan Ezhuthachan) | आध्यात्म रामायणम्, महाभारतम् (किलिप्पट्टु शैली) | 16वीं सदी — आधुनिक मलयालम साहित्य के जनक; भाषा को काव्यात्मक और धार्मिक रूप में लोकप्रिय बनाया। |
3 | कुंचन नांबियार (Kunchan Nambiar) | थुलाल कविताएँ (Ottan Thullal, Seethankan Thullal) | 18वीं सदी — व्यंग्य, हास्य और सामाजिक आलोचना के लिए प्रसिद्ध; लोकभाषा को साहित्य से जोड़ा। |
4 | कुमारन आसन (Kumaran Asan) | वीना पूवु (Veena Poovu), दुरवस्था (Duravastha), चंडाल भिक्षुकी (Chandalabhikshuki) | 20वीं सदी का आरंभ — सामाजिक सुधार, समानता और मानवता के कवि; नई चेतना के प्रवर्तक। |
5 | वल्लथोल नारायण मेनन (Vallathol Narayana Menon) | मग्दलाना मरियम (Magdalana Mariam), भद्र दीपिका (Bhadra Deepika), साहित्य मंजरी (Sahitya Manjari) | 20वीं सदी — राष्ट्रीय भावना और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के कवि; केरल कलामंडलम के संस्थापक। |
6 | उल्लूर एस. परमेश्वर अय्यर (Ulloor S. Parameswara Iyer) | उमकेरलम (Umakeralam), कर्णभूषणम् (Karnabhooshanam) | 20वीं सदी — आधुनिक मलयालम कविता के त्रिमूर्ति कवियों में से एक; शास्त्रीयता और भक्ति का समन्वय। |
7 | जी. शंकर कुरुप (G. Sankara Kurup) | ओदक्कुजल (Odakkuzhal), पकलिरवु (Pakaliravu), विजयुदे थीरंगलिल (Vizhayude Theerangalil) | आधुनिक काल — पहले ज्ञानपीठ विजेता; दार्शनिक दृष्टि और भावनात्मक गहराई के कवि। |
8 | वैकोम मुहम्मद बशीर (Vaikom Muhammad Basheer) | बालयकालसाखी (Balyakalasakhi), पथुम्मायुदे आड़ू (Pathummayude Aadu), मथिलुकल (Mathilukal) | 20वीं सदी — यथार्थवादी कथा-साहित्य के प्रणेता; मानवीय संवेदनाओं और हास्य के लेखक। |
9 | थकझी शिवशंकर पिल्लै (Thakazhi Sivasankara Pillai) | चेम्मीन (Chemmeen), रंदीडंगाझी (Randidangazhi), थोटियुदे माकन (Thottiyude Makan) | 20वीं सदी — सामाजिक यथार्थ और श्रमिक वर्ग के संघर्षों पर आधारित उपन्यासों के रचनाकार। |
10 | एम. टी. वासुदेवन नायर (M. T. Vasudevan Nair) | नालुक्केट्टु (Naalukettu), कालम (Kaalam), रंदमूझम (Randamoozham) | समकालीन युग — कथाकार, नाटककार, पटकथा लेखक; केरल के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक यथार्थ के चित्रकार। |
11 | ओ. वी. विजयन (O. V. Vijayan) | खासक्किन्ते इतिहासम (Khasakkinte Itihasam), मधुरम गायथि (Madhuram Gayathi) | आधुनिक उत्तर-यथार्थवादी युग — मलयालम उपन्यास को दार्शनिक और प्रयोगधर्मी आयाम प्रदान किया। |
विशेष टिप्पणी:
यह तालिका मलयालम साहित्य की हजार वर्षीय परंपरा को संक्षेप में प्रस्तुत करती है —
जिसमें प्रारंभिक धार्मिक काव्य से लेकर आधुनिक सामाजिक उपन्यास तक की संपूर्ण यात्रा झलकती है।
प्रत्येक रचनाकार ने भाषा, समाज और संस्कृति — तीनों स्तरों पर साहित्य को नई दिशा प्रदान की।
मलयालम साहित्य की विविधता और सांस्कृतिक योगदान
मलयालम साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता इसकी विषयगत विविधता और सामाजिक संवेदनशीलता है।
कविता, कथा, नाटक, निबंध, आलोचना और उपन्यास — हर विधा में मलयालम लेखकों ने धर्म, समाज, राजनीति और संस्कृति जैसे विषयों को गहराई से अभिव्यक्त किया है।
यह साहित्य न केवल भाषाई सौंदर्य और कलात्मकता का प्रतीक है, बल्कि यह केरल के सामाजिक एवं बौद्धिक जीवन का दर्पण भी है।
कुमारन आसन, वल्लथोल और वासुदेवन नायर जैसे रचनाकारों ने मलयालम साहित्य को एक जनोन्मुख, चेतनाशील और मानवीय धारा में रूपांतरित किया।
मलयालम लिपि और साहित्य का पारस्परिक संबंध
मलयालम लिपि का विकास स्वयं साहित्य की प्रगति से गहराई से जुड़ा है।
9वीं शताब्दी से विकसित होती आई यह लिपि समय के साथ परिष्कृत होकर आज एक अत्यंत वैज्ञानिक और पूर्ण लेखन प्रणाली बन चुकी है।
इसी लिपि के माध्यम से संतों, कवियों और दार्शनिकों ने अपनी रचनाओं के द्वारा समाज तक ज्ञान, भक्ति और चेतना का प्रसार किया।
इस प्रकार लिपि और साहित्य — दोनों ने मिलकर मलयालम भाषा को एक जीवंत सांस्कृतिक परंपरा के रूप में प्रतिष्ठित किया है।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि मलयालम साहित्य केवल एक भाषाई धारा नहीं, बल्कि केरल की सांस्कृतिक आत्मा है।
थुंचथ्थु एझुथचन से लेकर एम.टी. वासुदेवन नायर तक, इस परंपरा ने निरंतर नवीनता, गहराई और सामाजिक चेतना को अपनाया है।
मलयालम साहित्य ने न केवल भारतीय साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित की है, बल्कि यह केरल के समाज, संस्कृति और बौद्धिक जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है।
भाषा और लिपि, दोनों मिलकर आज भी उस जीवंत परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, जो अतीत की गहराई और आधुनिकता की चमक — दोनों को समान रूप से समेटे हुए है।
संस्कृत, तमिल और अंग्रेजी का प्रभाव
मलयालम भाषा अपनी खुली संरचना के कारण अन्य भाषाओं से शब्द और रूप ग्रहण करती रही है।
- संस्कृत से धार्मिक, दार्शनिक और विद्या संबंधी शब्द
- तमिल से व्याकरणिक संरचना और मूल ध्वनियाँ
- अंग्रेजी से आधुनिक प्रशासन, विज्ञान और तकनीक के शब्द
इन प्रभावों के बावजूद मलयालम ने अपनी स्वतंत्रता और विशिष्टता को बनाए रखा है।
आधुनिक युग में मलयालम
आज मलयालम न केवल भारत में बल्कि विश्व के कई देशों में बोली और पढ़ी जाती है।
डिजिटल युग में मलयालम लिपि को यूनिकोड और आईटी प्लेटफॉर्मों पर विशेष रूप से विकसित किया गया है। मलयालम समाचार-पत्र, सिनेमा, संगीत और सोशल मीडिया ने भाषा को नए युग में लोकप्रिय बनाया है।
केरल सरकार और विभिन्न संस्थान भाषा संरक्षण, अनुसंधान और शिक्षा के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। मलयालम फिल्मों और साहित्य को राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है, जिससे भाषा की प्रतिष्ठा और बढ़ी है।
निष्कर्ष
मलयालम भाषा भारत की सांस्कृतिक और भाषिक विविधता का एक अमूल्य रत्न है। इसका इतिहास हजारों वर्षों में फैला हुआ है, और इसकी जड़ें द्रविड़ सभ्यता की गहराइयों में समाई हैं।
संस्कृत, तमिल और अंग्रेजी जैसे भाषाई स्रोतों से प्रभावित होकर भी इसने अपनी स्वतंत्र पहचान कायम रखी। इसकी लिपि, साहित्य और ध्वन्यात्मक संरचना इसे अन्य भारतीय भाषाओं से विशिष्ट बनाती है।
आज मलयालम न केवल केरल की आत्मा है, बल्कि विश्वभर में बसे मलयाली समुदायों की संस्कृति, परंपरा और भावना का प्रतीक भी है। यह भाषा आधुनिकता और परंपरा का सुंदर संगम प्रस्तुत करती है — एक जीवंत साक्ष्य इस तथ्य का कि भाषा केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति की आत्मा होती है।
इन्हें भी देखें –
- तेलुगु भाषा : इतिहास, लिपि, वर्णमाला, शब्द, वाक्य, विकास और साहित्यिक परंपरा
- तमिल भाषा : तमिलनाडु की भाषा, उत्पत्ति, विकास, लिपि, वर्णमाला, इतिहास और वैश्विक महत्व
- उर्दू भाषा : इतिहास, लिपि, वर्णमाला, शब्द, वाक्य, विकास और वैश्विक महत्व
- असमिया भाषा : असम की भाषा, इतिहास, विकास, लिपि, वर्णमाला और साहित्यिक परंपरा
- ब्राह्मी लिपि से आधुनिक भारतीय लिपियों तक: उद्भव, विकास, शास्त्रीय प्रमाण, अशोक शिलालेख
- सिंधी भाषा : उद्भव, विकास, लिपि, वर्णमाला, शब्द, वाक्य और भाषिक संरचना
- बंगाली भाषा : बांग्ला भाषा, लिपि, वर्णमाला, साहित्य, इतिहास, विकास और वैश्विक महत्व