महात्मा गांधी ‘बापू’ | 1869-1948 ई.

महात्मा गांधी को मोहनदास करमचन्द गांधी के नाम से भी जाना जाता है, महात्मा गाँधी भारत एवं भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के एक अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव पूरी तरह से अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी, जिसने भारत को भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम दिलाकर पूरे विश्व में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। इनको साधारण जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है। 

महात्मा गांधी

संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है। गांधी जी को महात्मा के नाम से सबसे पहले सन 1915 ई. में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था। परन्तु एक अन्य मत के अनुसार स्वामी श्रद्धानन्द ने सन 1915 ई. मे महात्मा की उपाधि दी थी, तीसरा मत ये है कि गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने महात्मा की उपाधि प्रदान की थी। 12 अप्रैल 1919 को अपने एक लेख मे उन्हें बापू  के नाम से भी याद किया जाता है।

एक मत के अनुसार गांधीजी को बापू सम्बोधित करने वाले प्रथम व्यक्ति उनके साबरमती आश्रम के शिष्य थे। सुभाष चन्द्र बोस ने 6 जुलाई सन 1944 ई. को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं। प्रति वर्ष 2 अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयन्ती के रूप में माने जाता है। और पूरे विश्व में इनका जन्म दिन अन्तरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

गाँधी जी ने सबसे पहले प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु सत्याग्रह करना आरम्भ किया। सन 1915 ई. में उनकी भारत वापसी हुई। उसके बाद उन्होंने यहाँ के श्रमिकों, किसानों और नगरीय श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया। सन 1921 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, दरिद्रता से मुक्ति दिलाने, आत्मनिर्भरता, व धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण के लिये अस्पृश्‍यता के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये।

इन कार्यक्रमों में विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला स्वराज की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये लवण कर के विरोध में सन 1930 ई. में ‘नमक सत्याग्रह’ आन्दोलन  और इसके बाद सन 1942 ई. में ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आन्दोलन से विशेष विख्याति प्राप्त की।गाँधी जी को दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक कारागृह में भी रहना पड़ा।

गांधी जी ने प्रत्येक परिस्थितियों में सत्य और अहिंसा का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिये प्रेरित भी किया।इसी कारण से इनको अहिंसा का पुजारी भी कहा जाता था। इन्होने साबरमती आश्रम में अपना जीवन बिताया और परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनी जिसे वे स्वयं चरखे पर सूत कातकर हाथ से बनाते थे। उन्होंने शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि के लिये लम्बे-लम्बे उपवास भी रखे। 12 फरवरी वर्ष 1948 ई. में महात्मा गांधी के अस्थि कलश जिन 12 तटों पर विसर्जित किए गए थे, उनमे से एक त्रिमोहिनी संगम भी है।

गाँधी जी का जीवन परिचय

नाममोहनदास करमचंद गांधी
पिता का नामकरमचंद गांधी
माता का नामपुतलीबाई
जन्म दिनांक2 अक्टूबर, सन 1869 ई.
जन्म स्थानगुजरात के पोरबंदर क्षेत्र में
राष्ट्रीयताभारतीय
धर्महिन्दू
जातिगुजराती
शिक्षाबैरिस्टर
पत्नि का नामकस्तूरबाई माखंजी कपाड़िया [कस्तूरबा गांधी]
संतान बेटा बेटी का नाम4 पुत्र -: हरिलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास
मृत्यु30 जनवरी 1948
हत्यारे का नामनाथूराम गोडसे

महात्मा गांधी जी का पारिवारिक जीवन

महात्मा गांधी जी का जन्म भारत के गुजरात राज्य के पोरबंदर क्षेत्र में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री करमचंद गांधी था, जो कि पोरबंदर के ‘दीवान’ थे। इनकी माता पुतलीबाई थी जो एक धार्मिक महिला थी। गांधी जी एक गुजराती परिवार से संबंध रखते थे। इनकी पत्नी का नाम कस्तूरबा गांधी था। महात्मा गांधी जी के 4 बेटे थे, जिनका नाम हरिलाल, मणिलाल, रामदास, और देवदास था।

महात्मा गांधी जी का प्रारंभिक जीवन

गांधीजी के जीवन में उनकी माता पुतलीबाई का बहुत अधिक प्रभाव रहा। उनका विवाह 13 वर्ष की उम्र में ही हो गया था। इनकी पत्नी का नाम कस्तूरबा था। विवाह के समय कस्तूरबा 14 वर्ष की थी। नवंबर, सन 1887 ई. में उन्होंने अपनी मेट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी और जनवरी, सन 1888 ई. में उन्होंने भावनगर के सामलदास कॉलेज में अपना दाखिला लिया था और यहाँ से डिग्री प्राप्त की। इसके बाद वे लंदन चले गये जहाँ से वह बैरिस्टर बनकर लौटे।

महात्मा गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा

सन 1894 ई. में किसी क़ानूनी विवाद के संबंध में गांधीजी दक्षिण अफ्रीका गये थे और वहाँ होने वाले अन्याय के खिलाफ ‘अवज्ञा आंदोलन ’ चलाया और इसके पूर्ण होने के बाद वे पुनः भारत लौटे।

महात्मा गांधी का भारत आगमन और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना

सन 1916 ई. में गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौटे और फिर भारत की आज़ादी के लिए अपने कदम उठाना शुरू किया। सन 1920 ई. में कांग्रेस लीडर बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु के बाद गांधीजी ही कांग्रेस के मार्गदर्शक थे।  

महात्मा गांधी

सन 1914 – 1919 ई. के बीच जो प्रथम विश्व युध्द [1st World War] हुआ था, उसमें गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार को इस शर्त पर पूर्ण सहयोग दिया, कि इस युद्ध की समाप्ति के बाद अंग्रेज भारत को आज़ाद कर देंगे। परन्तु जब अंग्रेजों ने ऐसा नहीं किया, तो गांधीजी ने देश को आज़ादी दिलाने के लिए बहुत से आंदोलन चलाये। इनमें से कुछ आंदोलन इस प्रकार हैं -:

  • सन 1920 ई. में असहयोग आंदोलन [Non Co-operation Movement],
  • सन 1930 ई. में अवज्ञा आंदोलन [Civil Disobedience Movement],
  • सन 1942 ई. में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन [Quit India Movement].

महात्मा गांधीजी द्वारा चलाये गए आंदोलनो का वर्णन

महात्मा गाँधी जी द्वारा देश को आजाद करने के लिए अनेकों आन्दोलनों का सहारा लिया गया। गाँधी जी ने कभी भी हिंसा का सहारा नहीं लिया। वह हिंसा के सर्वथा खिलाफ रहते थे। अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए ही गाँधी जी ने देश को आजाद कराया जो उनकी दृढ इच्छा शक्ति और दूरदर्शिता का परिचायक है। गांधीजी को अहिंसा का पुजारी कहा जाता था।

गांधी जी के जन्म के 150 साल पूरे होने के बाद भी उनके द्वारा किए गए आंदोलनों को आज भी याद किया जाता है। सत्य और अहिंसा के प्रति उनके अनूठे प्रयोग ही आज उन्हें पूरी दुनिया का सबसे अनूठा व्यक्ति साबित करते हैं।

सन 1857 ई. की महान क्रांति पर काबू पा लेने वाली ब्रिटिश सरकार गांधीजी के अहिंसक आंदोलन के सामने पस्त नजर आने लगी। इसका कारण था कि कांग्रेस जो पहले सिर्फ एलीट क्लास का संगठन थी, उससे आम भारतीय नागरिक बड़े पैमाने पर जुड़ने लगे थे।

दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
आँधी में भी जलती रही गाँधी तेरी मशाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी …

धरती पे लड़ी तूने अजब ढंग की लड़ाई
दागी न कहीं तोप न बंदूक चलाई
दुश्मन के किले पर भी न की तूने चढ़ाई
वाह रे फ़कीर खूब करामात दिखाई
चुटकी में दुश्मनों को दिया देश से निकाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी …
रघुपति राघव राजा राम

शतरंज बिछा कर यहाँ बैठा था ज़माना
लगता था मुश्किल है फ़िरंगी को हराना
टक्कर थी बड़े ज़ोर की दुश्मन भी था ताना
पर तू भी था बापू बड़ा उस्ताद पुराना
मारा वो कस के दांव के उलटी सभी की चाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी …

जब जब तेरा बिगुल बजा जवान चल पड़े
मज़दूर चल पड़े थे और किसान चल पड़े
हिंदू और मुसलमान, सिख पठान चल पड़े
कदमों में तेरी कोटि कोटि प्राण चल पड़े
फूलों की सेज छोड़ के दौड़े जवाहरलाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी …

मन में थी अहिंसा की लगन तन पे लंगोटी
लाखों में घूमता था लिये सत्य की सोंटी
वैसे तो देखने में थी हस्ती तेरी छोटी
लेकिन तुझे झुकती थी हिमालय की भी चोटी
दुनिया में भी बापू तू था इन्सान बेमिसाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी …

जग में जिया है कोई तो बापू तू ही जिया
तूने वतन की राह में सब कुछ लुटा दिया
माँगा न कोई तख्त न कोई ताज भी लिया
अमृत दिया तो ठीक मगर खुद ज़हर पिया
जिस दिन तेरी चिता जली, रोया था महाकाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी …

सन 1918 ई. (चंपारन और खेड़ा सत्याग्रह)

गांधीजी द्वारा सन 1918 ई. में चलाया गया ‘चंपारन और खेड़ा सत्याग्रह’ भारत में उनके आंदोलनों की शुरुआत थी और इसमें वे सफल रहे। ये सत्याग्रह आन्दोलन ब्रिटिश लैंडलॉर्ड के खिलाफ चलाया गया था। इन ब्रिटिश लैंडलॉर्ड द्वारा भारतीय किसानों को जबरजश्ती नील [indigo] की पैदावार करने के लिए कहा जा रहा था।

और इसी के साथ हद तो तब हो जा रही थी कि उन्हें यह नील एक निश्चित कीमत पर ही बेचने के लिए भी विवश किया जा रहा था। जबकि भारतीय किसान ऐसा नहीं चाहते थे। तब ये किसान महात्मा गाँधी जी से मिले और उनसे मदद करने के लिए कहा। इस पर गांधीजी ने एक अहिंसात्मक आंदोलन चलाया और इसमें वे सफल रहे और अंग्रेजों को उनकी बात मानना पड़ी।

इसी वर्ष खेड़ा नामक एक गाँव, जो गुजरात प्रान्त में स्थित हैं, वहाँ बाढ़ [flood] आ जाने से वहां की फसल बर्बाद हो गयी जिस कारण से वहाँ के किसान ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाये जाने वाले टैक्स भरने में असक्षम हो गये। तब उन्होंने इसके लिए गांधीजी से मदद ली और तब गांधीजी ने ‘असहयोग [Non-cooperation]’ नामक हथियार का प्रयोग किया और किसानों को टैक्स में छूट दिलाने के लिए आंदोलन किया। इस आंदोलन में गांधीजी को जनता से बहुत समर्थन मिला और आखिरकार मई, 1918 ई. में ब्रिटिश सरकार को अपने टैक्स संबंधी नियमों में किसानों को राहत देने की घोषणा करनी पड़ी।

सन 1919 ई. खिलाफत आंदोलन

सन 1919 ई. में गांधीजी को इस बात का एहसास होने लगा था कि कांग्रेस कहीं न कहीं कमज़ोर पड़ रही हैं तो उन्होंने कांग्रेस की डूबती नैया को बचाने के लिए और साथ ही साथ हिन्दू – मुस्लिम एकता के द्वारा ब्रिटिश सरकार को बाहर निकालने के लिए अपने प्रयास शुरू कर दिए।अपने इन्ही उद्देश्यों की पूर्ति के लिए वे मुस्लिम समाज के पास गये। खिलाफत आंदोलन वैश्विक स्तर पर चलाया गया आंदोलन था, जो मुस्लिमों के कालिफ [Caliph] के खिलाफ चलाया गया था।

महात्मा गांधी 'बापू' | 1869-1948 ई.

महात्मा गांधी जी ने संपूर्ण राष्ट्र के मुस्लिमों की कांफ्रेंस बुलाई और वे स्वयं इस कांफ्रेंस के प्रमुख व्यक्ति भी थे। इस आंदोलन ने मुस्लिमों को बहुत सपोर्ट किया और गांधीजी के इस प्रयास ने उन्हें राष्ट्रीय नेता [नेशनल लीडर] बना दिया और कांग्रेस में उनकी खास जगह भी बन गयी। परन्तु सन 1922 ई. में खिलाफत आंदोलन हिन्दू मुस्लिम में फूट पड़ने के कारण बुरी तरह से बंद हो गया। जिसके कारण गाँधी जी को बहुत दुःख हुआ और इसके बाद गांधीजी अपने संपूर्ण जीवन हिन्दू मुस्लिम एकता’ के लिए लड़ते रहे। परन्तु हिन्दू और मुस्लिमों के बीच दूरियां कभी कम नहीं हुई और बढती ही चली गई।

सन 1920 ई. असहयोग आंदोलन

महात्मा गांधी 'बापू' | 1869-1948 ई.

विभिन्न आंदोलनों से निपटने के लिए अंग्रेजी सरकार ने सन 1919 ई. में रोलेट एक्ट [Rowlett Act] पारित किया। इसी दौरान गांधीजी द्वारा कुछ सभाएं भी आयोजित की गयी और उन्हीं सभाओं की तरह ही अन्य स्थानों पर भी सभाओं का आयोजन किया गया। इसी प्रकार की एक सभा पंजाब के अमृतसर क्षेत्र में जलियांवाला बाग में बुलाई गयी थी। और वहाँ इस शांति सभा को अंगेजों ने बहुत ही बेरहमी के साथ रौंदा था। अंग्रेजों ने बाग को चारी तरफ से घेर कर उस सभा में गोलियां चलवा दिया जिससे सभा के सभी लोग मारे गए।

उसके विरोध में गांधीजी ने सन 1920 ई. में असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया। इस असहयोग आंदोलन का अर्थ ये था कि भारतीयों द्वारा अंग्रेजी सरकार की किसी भी प्रकार से सहायता ना की जाये। परन्तु इसमें किसी भी तरह की हिंसा नहीं हो।

विस्तृत वर्णन

यह आंदोलन सितम्बर, 1920 ई. से शुरू हुआ और Feb, 1922 ई. तक चला था। गांधीजी द्वारा चलाये गये 3 प्रमुख आंदोलनों में से यह पहला आंदोलन था। इस आंदोलन को शुरू करने के पीछे महात्मा गांधी की ये सोच थी कि भारत में ब्रिटिश सरकार केवल इसीलिए राज कर पा रही है, क्योंकि उन्हें भारतीय लोगों द्वारा ही सपोर्ट किया जा रहा हैं, तो अगर उन्हें ये सपोर्ट मिलना ही बंद हो जाये, तो ब्रिटिश सरकार के लिए भारतीयों पर राज कर पाना मुश्किल होगा। इसलिए गांधीजी ने लोगों से अपील की कि वे ब्रिटिश सरकार के किसी भी काम में सहयोग न करें, उन्होंने यह भी कहा कि इसमें किसी भी प्रकार की हिंसात्मक गतिविधि शामिल न हो।

लोगों को गांधीजी की बात समझ में आयी और सही भी लगी। लोग बहुत बड़ी मात्रा में, बल्कि राष्ट्रव्यापी स्तर पर आंदोलन से जुड़ें और ब्रिटिश सरकार को सहयोग करना बंद कर दिया। इसके लिए लोगों ने अपनी सरकारी नौकरियां, फेक्ट्री, कार्यालय, आदि छोड़ दिए। यहाँ तक कि लोगों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों और कॉलेजों से निकाल लिया।

अर्थात् लोगों ने हर वो प्रयास किया, जिससे अंग्रेजों को किसी भी प्रकार की सहायता ना मिले। परन्तु इस कारण बहुत से लोग गरीबी और अनपढ़ होने जैसी स्थिति में पहुँच गये थे, परन्तु फिर भी लोग ये सब अपने देश की आज़ादी के लिए सहते रहे। उस समय कुछ ऐसा माहौल हो गया था कि शायद हमें उसी समय आज़ादी मिल गयी होती। परन्तु आंदोलन की चरम स्थिति पर गांधीजी ने ‘चौरा – चौरी’ नामक स्थान पर हुई एक घटना से दुखी हो कर के इस आंदोलन को समाप्त करने का निर्णय ले लिया।

चौरा – चौरी कांड

चूँकि ये असहयोग आंदोलन संपूर्ण देश में अहिंसात्मक तरीके से चलाया जा रहा था, तो इस दौरान उत्तर प्रदेश राज्य के चौरा चौरी नामक स्थान पर जब कुछ लोग शांतिपूर्ण तरीके से रैली निकाल रहे थे, तब अंग्रेजी सैनिकों ने उन पर गोलियां चला दी जिससे कुछ लोगों की इसमें मौत भी हो गयी।

तब इस गुस्से से भरी भीड़ ने पुलिस पर पथराव करना शुरू कर दिया, पुलिस स्टेशन में आग लगा दी और वहाँ उपस्थित 22 सैनिकों की भी हत्या कर दी। तब गांधीजी का कहना था कि, “हमें संपूर्ण आंदोलन के दौरान किसी भी हिंसात्मक गतिविधि को नहीं करना था, शायद हम अभी आज़ादी पाने के लायक नहीं हुए हैं” और इस हिंसात्मक गतिविधि के कारण उन्होंने आंदोलन वापस ले लिया।

सन 1930 ई. सविनय अवज्ञा आंदोलन / नमक सत्याग्रह आंदोलन / दांडी यात्रा

सन 1930 ई. में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ़ एक ओर आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन का नाम था – सविनय अवज्ञा आंदोलन [Civil Disobedience Movement]। इस आंदोलन का उद्देश्य यह था कि ब्रिटिश सरकार द्वारा जो भी नियम कानून बनाये जाये, उन्हें नहीं मानना और उनकी अवहेलना करना था।

उदहारण के रूप में जैसे ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाया था कि कोई भी नमक नहीं बनाएगा, तो 12 मार्च, सन 1930 ई. को उन्होंने इस कानून को तोड़ने के लिए अपनी ‘दांडी यात्रा’ शुरू की। वे दांडी नामक स्थान पर पहुंचे और वहाँ जाकर नमक बनाया था और इस प्रकार यह आंदोलन भी शांतिपूर्ण ढंग से ही चलाया गया। इस दौरान कई लीडर और नेता ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिए गये।

विस्तृत वर्णन

गांधीजी द्वारा नमक सत्याग्रह की शुरुआत 12 मार्च, सन 1930 ई. को गुजरात के अहमदाबाद शहर के पास स्थित साबरमती आश्रम से की गयी और यह यात्रा 5 अप्रैल, सन 1930 ई. तक गुजरात में ही स्थित दांडी नामक स्थान तक चली। दांडी पहुंचकर गांधीजी ने नमक बनाया और यह कानून तोडा। और इस प्रकार राष्ट्रव्यापी अवज्ञा आंदोलन [Civil Disobedience Movement] की शुरुआत हुई। यह घटना भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण चरण साबित हुआ।

महात्मा गांधी 'बापू' | 1869-1948 ई.

यह घटना ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक बनाये जाने के एकाधिकार [Monopoly] पर एक सीधा प्रहार था और इसी घटना के बाद यह आंदोलन संपूर्ण देश में फ़ैल गया था। इसी समय अर्थात् 26 जनवरी, सन 1930 ई.  को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा  ‘पूर्ण स्वराज’ की भी घोषणा कर दिया गया।

महात्मा गांधी जी ने दांडी यात्रा 24 दिनों में पूरी की और इस दौरान उन्होंने साबरमती से दांडी तक लगभग 240 मील [390 कि. मी.] की दूरी तय की थी। यहाँ उन्होंने बिना किसी टैक्स (कर) का भुगतान किये नमक बनाया। उन्होंने कहा की यह नमक हमारे ही देश का है इसलिए इस नमक पर गम कर नहीं देंगे और खुद से नमक बनायेंगे।

इस यात्रा की शुरुआत में जहाँ उनके साथ 78 स्वयंसेवक [Volunteers] थे तो वही यात्रा के अंत तक यह संख्या हजारों तक पहुच गयी थी। यहाँ वे 5 अप्रैल, सन 1930 ई. को पहुंचे और यहाँ पहुंचकर उन्होंने इसी दिन सुबह 6.30 बजे नमक बनाकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अहिंसात्मक सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की। जिसको हजारों भारतीयों ने मिलकर सफल बनाया।

यहाँ नमक बनाकर महात्मा गांधी ने अपनी यात्रा जारी रखी और यहाँ से वे दक्षिण की ओर के समुद्र तटों की ओर आगे बढ़े। इसके पीछे उनका मकसद इन समुद्री तटों पर नमक बनाना तो था ही, इसके साथ ही साथ वे कई सभाओं को संबोधित करने का भी कार्य कर रहे थे। यहाँ पहुचकर उन्होंने धरसाना [Dharasana] नामक स्थान पर भी ये कानून तोड़ा था।

4 – 5 मई, सन 1930 ई. मध्यरात्रि [midnight] को गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ्तारी और इस सत्याग्रह ने पूरे विश्व का ध्यान भारत के स्वतंत्रता संग्राम की ओर खींचा। ये सत्याग्रह पूरे वर्ष चला और गांधीजी की जेल से रिहाई के साथ ही समाप्त हुआ और वो भी इसीलिए क्योंकि द्वितीय गोल मेज सम्मेलन [Second Round Table Conference] के समय वायसराय लार्ड इर्विन नेगोसिएशन के लिए राजी हो गये थे। इस नमक सत्याग्रह के कारण लगभग 80,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

गांधीजी द्वारा चलाया गया यह नमक सत्याग्रह उनके अहिंसात्मक विरोध  के सिद्धांत पर आधारित था। सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ हैं – सत्य का आग्रह : सत्याग्रह। कांग्रेस ने भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए सत्याग्रह को अपना हथियार बनाया और इसके लिए गांधीजी को इसका प्रमुख नियुक्त किया।

इसी के तहत धरसाना में जो सत्याग्रह हुआ था, उसमें अंग्रेजी सैनिकों ने हजारों लोगों को मार दिया था, परन्तु अंततः इसमें गांधीजी की सत्याग्रह नीति कारगर साबित हुई और अंग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा। इस सत्याग्रह का अमेरिकन एक्टिविस्ट जेम्स बेवल, मार्टिन लूथर आदि पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा, जो सन 1960 ई. के समय में रंग – भेद नीति (काले और गोरे लोगों में भेदभाव) और अल्पसंख्यकों (माइनॉरिटी) के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे। जिस तरह ये सत्याग्रह और अवज्ञा आंदोलन फ़ैल रहा था, तो इसे सही मार्गदर्शन के लिए मद्रास में राजगोपालाचारी और उत्तर भारत में खान अब्दुल गफ्फार खान को इसकी बागडोर सौपी गयी।

सन 1942 ई. भारत छोड़ो आंदोलन

1940 का दशक [Decade] तक आते – आते भारत की आज़ादी के लिए देश के बच्चे, बूढ़े और जवान सभी में जोश और गुस्सा भर चुका था। तब गांधीजी ने इसका सही दिशा में उपयोग किया और बहुत ही बड़े पैमाने पर सन 1942 ई. में भारत छोड़ो आंदोलन  [Quit India Movement] की शुरुआत की। यह आंदोलन अब तक के सभी आंदोलनों में सबसे अधिक प्रभावी रहा। जो अंग्रेजी सरकार के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती थी।

विस्तृत वर्णन

सन 1942 ई. में महात्मा गांधी द्वारा चलाया गया तीसरा बड़ा आंदोलन था – भारत छोड़ो आंदोलन। इसकी शुरुआत महात्मा गांधी द्वारा August, सन 1942 ई. में की गयी थी। परन्तु इसके संचालन में हुई कुछ गलतियों के कारण यह आंदोलन जल्दी ही धराशायी [collapsed] हो गया अर्थात यह आंदोलन सफल नहीं हो पाया।

इसके असफल होने के पीछे अनेकों कारण थे, उदहारण के लिए जैसे – इस आंदोलन में विद्यार्थी, किसान, आदि सभी के द्वारा भाग लिया जा रहा था और उनमें इस आंदोलन को लेकर बड़ी लहर थी, परन्तु आंदोलन संपूर्ण देश में एक साथ शुरू नहीं हुआ अर्थात् आंदोलन की शुरुआत अलग – अलग तिथियों पर होने से इसका प्रभाव कम हो गया।

इसके अलावा बहुत से भारतीयों को ऐसा भी लग रहा था कि यह स्वतंत्रता संग्राम का चरम हैं, और अब हमें आज़ादी मिल ही जाएगी और उनकी इस सोच ने आंदोलन को कमजोर कर दिया। परन्तु इस आंदोलन से एक अच्छी बात यह निकलकर आई कि इससे ब्रिटिश शासकों को यह एहसास हो गया था, कि अब भारत में उनका शासन नहीं चल सकता, उन्हें आज नहीं तो कल भारत छोड़ कर जाना होगा।

आंदोलनों की विशेषता

महात्मा गांधी ने जितने भी आंदोलन किये, उन सभी में कुछ बातें एक समान थी, जिनका विवरण निम्नानुसार हैं -:

  • ये आंदोलन हमेशा बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से चलाये जाते थे।
  • आंदोलन के दौरान किसी भी प्रकार की हिंसात्मक गतिविधि होने पर गांधीजी द्वारा वह आंदोलन रद्द कर दिया जाता था। यह भी एक कारण था कि हमें आज़ादी कुछ देर से मिली, नहीं तो शायद हम और पहले आज़ाद हो गए होते।
  • आंदोलन हमेशा सत्य और अहिंसा की नींव पर ही किये जाते थे।

महात्मा गांधी का सामाजिक जीवन

गांधीजी एक महान लीडर तो थे ही, साथ ही साथ वे अपने सामाजिक जीवन में भी ‘सादा जीवन उच्च विचार ’ को मानने वाले व्यक्तियों में से एक थे। उनके इसी स्वभाव के कारण उन्हें लोग ‘महात्मा’ कहकर संबोधित करने लगे थे। गांधीजी प्रजातंत्र के बड़े भारी समर्थक थे। उनके दो हथियार थे, एक था ‘सत्य’ और दूसरा था ‘अहिंसा’। इन्हीं हथियारों के बल पर उन्होंने भारत को अंग्रेजों से आजाद कराया। गांधीजी का व्यक्तित्व कुछ ऐसा था कि उनसे मिलने पर हर कोई उनसे प्रभावित [इन्फ्लुएंस] हो ही जाता था।

महात्मा गांधी 'बापू' | 1869-1948 ई.

गांधीजी चरखा से सूत कातते थे और खुद के बनाये हुए सूत से ही कपडे पहनते थे। गांधीजी के नाम पर ही खादी ग्रामोद्योग की शुरुआत हुई गांधीजी हमेशा गुनगुनाते रहते थे:-

“रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीता राम;
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम , सबको सन्मति दे भगवान”

महात्मा गांधी की मृत्यु

30 जनवरी सन 1948 ई. को नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर महात्मा गांधी की हत्या कर दी गयी थी। उन्हें 3 गोलियां मारी गयी थी और उनके मुँह से निकले आखिरी शब्द थे -: ‘हे राम’. उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली में राज घाट पर उनका समाधी स्थल बनाया गया हैं।


इन्हें भी देखे :

2 thoughts on “महात्मा गांधी ‘बापू’ | 1869-1948 ई.”

Leave a Comment

Contents
सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.