माउंट फूजी (Mount Fuji): जापान का पवित्र ज्वालामुखी और आधुनिक आपदा तैयारी

जापान अपनी प्राकृतिक सुंदरता, तकनीकी प्रगति और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। इस देश की पहचान को और अधिक विशेष बनाता है — माउंट फूजी (Mount Fuji)। यह पर्वत न केवल जापान का सबसे ऊँचा शिखर है, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। माउंट फूजी एक सक्रिय स्ट्रैटोवोल्केनो (Stratovolcano) है, जो अपने पूर्ण शंकुाकार आकार के कारण विश्वभर में प्रशंसा का पात्र है।
हाल ही में जापान सरकार ने “वॉल्केनिक डिज़ास्टर प्रिपेयर्डनेस डे” (Volcanic Disaster Preparedness Day) के अवसर पर एआई आधारित सिमुलेशन प्रस्तुत किया, जिसमें माउंट फूजी के संभावित विस्फोट और उससे टोक्यो पर पड़ने वाले प्रभावों को दर्शाया गया। यह पहल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि फूजी 1707 के बाद से अब तक शांत है, परंतु भूवैज्ञानिक दृष्टि से यह अभी भी सक्रिय ज्वालामुखी है।

माउंट फूजी का भौगोलिक और प्राकृतिक स्वरूप

माउंट फूजी समुद्र तल से 3,776 मीटर (12,389 फीट) ऊँचा है, जो जापान का सबसे ऊँचा पर्वत है। यह होंशू द्वीप पर स्थित है और यामानाशी तथा शिज़ुओका प्रान्त की सीमाओं में आता है। पर्वत का स्थान प्रशांत महासागर के तट के पास है, और यह टोक्यो से लगभग 100 किलोमीटर (60 मील) की दूरी पर स्थित है।
इसके विशिष्ट शंकुाकार आकार के कारण इसे विश्व के सबसे सुंदर ज्वालामुखीय पर्वतों में गिना जाता है। माउंट फूजी फूजी वॉल्केनिक ज़ोन का हिस्सा है और भूगर्भीय दृष्टि से इसका निर्माण लगभग 6 मिलियन वर्ष पूर्व हुआ माना जाता है। इसकी आधारशिला 65 मिलियन वर्ष तक पुरानी बताई जाती है।

भूगर्भीय इतिहास और आयु

फूजी का वर्तमान स्वरूप अनेक चरणों में बने पुराने ज्वालामुखीय पर्वतों का परिणाम है। इसके प्राचीन पूर्वज पर्वतों में कोमिताके (उत्तर ढलान पर) और अशिताका-यामा (दक्षिण-पूर्व में) प्रमुख हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि माउंट फूजी का विकास क्रमशः विभिन्न ज्वालामुखीय गतिविधियों के चलते हुआ और आज का यह भव्य स्वरूप मिला।
यह पर्वत एक सक्रिय ज्वालामुखी है, हालांकि इसका अंतिम विस्फोट 1707–1708 में हुआ था, जिसे “होएई विस्फोट” (Hoei Eruption) कहा जाता है। इस विस्फोट में भारी मात्रा में राख और ज्वालामुखीय सामग्री निकली, जिसने आसपास के क्षेत्रों को गहराई से प्रभावित किया।

अंतिम विस्फोट (1707–1708)

1707 का विस्फोट जापान के इतिहास में महत्वपूर्ण घटना थी। इसे “होएई विस्फोट” के नाम से जाना जाता है। इस दौरान माउंट फूजी से निकली राख ने टोक्यो सहित बड़े भूभाग को ढक लिया था।

  • विस्फोट लगभग दो सप्ताह तक चला।
  • इसमें लावा तो नहीं निकला, लेकिन ज्वालामुखीय राख और प्यूमिस की विशाल मात्रा फैली।
  • कृषि भूमि बर्बाद हो गई और कई क्षेत्रों में अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई।
  • इसके बाद से माउंट फूजी अब तक शांत है, किंतु वैज्ञानिकों का मानना है कि यह भविष्य में फिर सक्रिय हो सकता है।

आधुनिक समय में संभावित आपदा की तैयारी

हाल ही में जापान सरकार ने एआई (Artificial Intelligence) तकनीक का उपयोग करते हुए माउंट फूजी के संभावित विस्फोट का सिमुलेशन प्रस्तुत किया। इस प्रस्तुति का उद्देश्य था – नागरिकों को जागरूक करना और आपदा प्रबंधन की दिशा में प्रभावी रणनीति बनाना।
सिमुलेशन में दिखाया गया कि यदि आज माउंट फूजी विस्फोट करता है, तो टोक्यो और आसपास के इलाकों पर घनी ज्वालामुखीय राख छा सकती है। परिवहन प्रणाली (जैसे रेल और हवाई यातायात) ठप हो सकती है, बिजली और पानी की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है और करोड़ों लोगों का जीवन खतरे में पड़ सकता है।
जापान में इस कारण से हर वर्ष “वॉल्केनिक डिज़ास्टर प्रिपेयर्डनेस डे” मनाया जाता है, ताकि नागरिकों को प्रशिक्षित किया जा सके और संभावित प्राकृतिक आपदा का सामना करने के लिए तैयार किया जा सके।

माउंट फूजी का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

माउंट फूजी जापान के “तीन पवित्र पर्वतों” (Three Holy Mountains) में से एक है। अन्य दो पवित्र पर्वत हैं – माउंट टेटे (Mount Tate) और माउंट हाकु (Mount Haku)।

  • जापानी संस्कृति में इसे आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
  • शिंतो धर्म और बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे पवित्र मानते हैं।
  • सदियों से साधक और संत इसकी चढ़ाई करके आध्यात्मिक साधना करते रहे हैं।
  • इसे कला और साहित्य में भी विशेष स्थान प्राप्त है। जापानी पेंटिंग और काव्य में फूजी का बार-बार उल्लेख मिलता है।

माउंट फूजी: साहित्य और कला में प्रेरणा

माउंट फूजी केवल एक प्राकृतिक संरचना नहीं, बल्कि कला और संस्कृति की प्रेरणा का स्रोत भी है। जापानी कलाकार होकुसाई (Hokusai) की प्रसिद्ध चित्रमाला “थर्टी सिक्स व्यूज़ ऑफ माउंट फूजी” (Thirty-Six Views of Mount Fuji) विश्वभर में प्रसिद्ध है।
कवियों ने इसे “अनंत सुंदरता का प्रतीक” बताया है, जबकि पर्यटक और यात्रियों ने इसे जीवन में एक बार अवश्य देखने योग्य पर्वत माना है।

पर्यटन और आर्थिक महत्व

आज माउंट फूजी जापान का प्रमुख पर्यटन स्थल है। हर वर्ष लाखों पर्यटक यहाँ आते हैं और गर्मियों के मौसम में हजारों लोग इसकी चढ़ाई (Mount Fuji Climbing) का अनुभव करते हैं।

  • जुलाई से सितंबर के बीच पर्वतारोहण के लिए मौसम अनुकूल रहता है।
  • टूरिस्ट यहां से सूर्योदय (जापानी में इसे “गोक्को” कहा जाता है) देखने को सबसे विशेष अनुभव मानते हैं।
  • माउंट फूजी क्षेत्र में हॉट स्प्रिंग्स, झीलें और प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
    पर्यटन जापान की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान करता है और फूजी इसके केंद्र में है।

संरक्षण और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता

माउंट फूजी को संरक्षण और वैश्विक पहचान दिलाने के लिए जापान ने विशेष प्रयास किए हैं।

  • 1936 में इसे फ़ूजी-हाकोने-इज़ु नेशनल पार्क का हिस्सा बनाया गया।
  • 2013 में UNESCO ने इसे World Heritage Site के रूप में मान्यता दी।
  • विश्व स्तर पर इसे सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर दोनों के रूप में सराहा गया है।

भूगर्भीय महत्व और वैज्ञानिक अनुसंधान

वैज्ञानिक दृष्टि से माउंट फूजी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

  • यह एशिया का द्वीप पर स्थित दूसरा सबसे ऊँचा ज्वालामुखी है।
  • विश्व में यह द्वीप पर स्थित सातवाँ सबसे ऊँचा पर्वत है।
  • शोधकर्ताओं का मानना है कि इसकी संरचना पृथ्वी के आंतरिक भूगर्भीय परिवर्तनों को समझने में मदद करती है।
  • यहां लगातार निगरानी रखी जाती है ताकि संभावित ज्वालामुखीय गतिविधि का पूर्वानुमान लगाया जा सके।

माउंट फूजी और जापानी पहचान

माउंट फूजी जापान की राष्ट्रीय पहचान का अभिन्न हिस्सा है। यह न केवल जापानी मुद्रा और डाक टिकटों पर अंकित है, बल्कि जापान के प्रतीकों (Symbols of Japan) में भी शामिल है।
जापानी लोग इसे मातृभूमि की आत्मा मानते हैं। टोक्यो से साफ मौसम में जब फूजी का दृश्य दिखाई देता है, तो यह नागरिकों के लिए गर्व और आध्यात्मिक शांति का स्रोत होता है।

भविष्य की चुनौतियाँ

हालांकि माउंट फूजी आज एक शांत और आकर्षक पर्यटन स्थल है, लेकिन इसका सक्रिय ज्वालामुखी स्वरूप जापान के लिए भविष्य की बड़ी चुनौती भी है।

  • टोक्यो और आस-पास की जनसंख्या बहुत घनी है।
  • यदि विस्फोट होता है, तो परिवहन, बिजली, पानी और स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर संकट आ सकता है।
  • जापान सरकार और वैज्ञानिक संस्थान लगातार शोध और तैयारी में जुटे हैं।

1707 का “होएई विस्फोट” : कालानुक्रमिक घटनाक्रम

माउंट फूजी का अंतिम दर्ज किया गया बड़ा विस्फोट सन् 1707–1708 के बीच हुआ था, जिसे होएई विस्फोट (Hoei Eruption) कहा जाता है। यह घटना जापान के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि इसके प्रभाव टोक्यो (तब के ईदो) तक गहराई से महसूस किए गए। नीचे इसका चरणबद्ध विवरण दिया गया है:

1. पृष्ठभूमि

  • 28 अक्तूबर 1707 को जापान में होएई भूकंप (Magnitude 8.6) आया।
  • यह भूकंप जापान के इतिहास के सबसे शक्तिशाली भूकंपों में से एक था।
  • वैज्ञानिकों का मानना है कि इस भूकंप ने माउंट फूजी के मैग्मा चैंबर पर दबाव डाला और विस्फोट की परिस्थितियाँ पैदा कीं।

2. विस्फोट का आरंभ (16 दिसंबर 1707)

  • दोपहर लगभग 10:00 बजे, माउंट फूजी के दक्षिण-पूर्वी हिस्से पर अचानक विस्फोट हुआ।
  • इस विस्फोट ने नई ज्वालामुखीय दरारें खोलीं, जिन्हें आज “होएई क्रेटर” कहा जाता है।
  • शुरुआत में तीव्र विस्फोटक गतिविधि हुई और राख व गैस वातावरण में ऊपर उठने लगी।

3. लगातार राख उत्सर्जन (17–31 दिसंबर 1707)

  • विस्फोट कई हफ्तों तक चलता रहा।
  • 17 से 20 दिसंबर के बीच राख के स्तंभ ने 15–20 किलोमीटर ऊँचाई तक पहुँचकर सूर्य को ढक दिया।
  • इस दौरान ईदो (आधुनिक टोक्यो) सहित दूर-दराज़ के इलाकों तक राख फैल गई।
  • फसलों पर मोटी राख की परत जम गई, जिससे कृषि पूरी तरह नष्ट हो गई।

4. तीव्रतम चरण (जनवरी 1708)

  • जनवरी के पहले सप्ताह में विस्फोट अपने चरम पर पहुँचा।
  • राख, प्यूमिस और वॉल्केनिक स्कोरिया (ज्वालामुखीय टुकड़े) बड़ी मात्रा में निकले।
  • अनुमान है कि इस दौरान लगभग 800 मिलियन घन मीटर ज्वालामुखीय सामग्री बाहर निकली।
  • आसपास के गाँवों में घर और खेत दब गए।
  • कई नदियाँ अवरुद्ध हो गईं, जिससे बाद में बाढ़ और भूस्खलन की स्थिति उत्पन्न हुई।

5. विस्फोट का अंत (1–15 फरवरी 1708)

  • फरवरी के मध्य तक ज्वालामुखीय गतिविधि धीरे-धीरे कम हो गई।
  • हालाँकि, राख का जमाव महीनों तक साफ नहीं हो पाया और कृषि पर इसका असर कई वर्षों तक रहा।
  • इस घटना के कारण अकाल फैला और बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए।

6. प्रभाव

  • आर्थिक प्रभाव: खेत बर्बाद, अनाज उत्पादन घटा और भूखमरी फैली।
  • सामाजिक प्रभाव: ग्रामीण इलाकों से बड़े पैमाने पर पलायन हुआ।
  • राजनीतिक प्रभाव: टोकुगावा शोगुन प्रशासन पर राहत और पुनर्वास का दबाव बढ़ा।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: नई ज्वालामुखीय संरचनाएँ बनीं और फूजी का स्वरूप बदल गया।

निष्कर्ष

माउंट फूजी जापान की प्रकृति, संस्कृति, आस्था और पहचान का अद्वितीय प्रतीक है। इसकी भव्यता और सुंदरता पर्यटकों, कलाकारों और श्रद्धालुओं सभी को आकर्षित करती है। परंतु इसके सक्रिय ज्वालामुखी होने के कारण यह एक संभावित खतरे का स्रोत भी है।
जापान द्वारा एआई आधारित सिमुलेशन और आपदा तैयारी का प्रयास इस बात का उदाहरण है कि परंपरा और आधुनिकता को मिलाकर कैसे किसी राष्ट्र की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
माउंट फूजी जापान के अतीत, वर्तमान और भविष्य का जीवंत प्रतीक है – एक ओर यह पवित्र और सांस्कृतिक धरोहर है, तो दूसरी ओर यह प्रकृति की शक्ति और अनिश्चितता का स्मरण कराता है।


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