मुद्रा एवं आर्थिक प्रगति | Money and Economic Progress

“मुद्रा एवं आर्थिक प्रगति” विषय पर यह लेख एक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है जिसमें मुद्रा की परिभाषा, उसके विभिन्न कार्य, और उसके माध्यम से राष्ट्र की आर्थिक प्रगति को स्पष्ट किया गया है। लेख यह बताता है कि किस प्रकार मुद्रा केवल एक विनिमय का माध्यम नहीं है, बल्कि आर्थिक संरचना की रीढ़ है। इसमें यह भी विवेचना की गई है कि उत्पादन, पूंजी निर्माण, औद्योगीकरण, नवाचार, उद्यमिता, बचत और निवेश जैसे महत्त्वपूर्ण आर्थिक पहलुओं में मुद्रा की भूमिका कितनी केंद्रीय होती है।

लेख यह भी रेखांकित करता है कि सुदृढ़ मुद्रा प्रणाली कैसे मूल्य स्थिरता को बनाए रखते हुए योजनाबद्ध विकास को प्रोत्साहित करती है। इसके साथ ही, मुद्रा की अस्थिरता जैसे मुद्रास्फीति, अवमूल्यन तथा विदेशी विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव के प्रभाव का भी विश्लेषण किया गया है। आधुनिक डिजिटल मुद्रा, क्रिप्टोकरेंसी और भारत में उभरती UPI प्रणाली जैसी नवीन तकनीकों को भी इसमें शामिल किया गया है। यह लेख छात्रों, शोधार्थियों, UPSC परीक्षार्थियों और अर्थशास्त्र में रुचि रखने वालों के लिए अत्यंत उपयोगी है, जो मुद्रा और आर्थिक विकास के गहरे सम्बन्ध को समझना चाहते हैं।

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मुद्रा एवं आर्थिक प्रगति

मुद्रा किसी भी राष्ट्र की आर्थिक संरचना का एक मूलभूत स्तंभ है। यह न केवल विनिमय का एक माध्यम है, बल्कि समग्र आर्थिक जीवन की दिशा और दशा को भी प्रभावित करती है। जिस प्रकार थर्मामीटर शरीर के तापमान को और बैरोमीटर मौसम की स्थिति को दर्शाता है, ठीक उसी तरह मुद्रा एक राष्ट्र की आर्थिक प्रगति का दर्पण होती है। एक देश की आर्थिक विकास यात्रा को समझने के लिए उसकी मुद्रा व्यवस्था का विश्लेषण अत्यंत आवश्यक है। मुद्रा का स्वरूप, उसकी स्थिरता और उसके विनिमय तंत्र का ढांचा उस देश की आर्थिक स्थिति का सूचक है।

मुद्रा की परिभाषा और कार्य

मुद्रा को सामान्यतः विनिमय के एक स्वीकृत माध्यम के रूप में जाना जाता है। यह किसी भी वस्तु या सेवा के मूल्य को व्यक्त करने का साधन है। मुद्रा के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:

  1. मूल्य मापन की इकाई – किसी भी वस्तु अथवा सेवा का मूल्य मुद्रा के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।
  2. विनिमय का माध्यम – मुद्रा का सबसे प्रमुख कार्य है वस्तुओं एवं सेवाओं के आदान-प्रदान में सहायक होना।
  3. भविष्य की भुगतान इकाई – मुद्रा के रूप में ऋण लिया और चुकाया जा सकता है।
  4. संचय का साधन – मुद्रा को संचय करके भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है।
  5. धन का हस्तांतरण माध्यम – मुद्रा के द्वारा संपत्ति का हस्तांतरण सरल हो जाता है।

इन सभी कार्यों के माध्यम से मुद्रा न केवल अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाती है, बल्कि उसका मार्गदर्शन भी करती है।

आर्थिक प्रगति और मुद्रा का पारस्परिक सम्बन्ध

आर्थिक प्रगति और मुद्रा प्रणाली एक-दूसरे के पूरक होते हैं। आर्थिक गतिविधियाँ जिस रूप में विकसित होती हैं, मुद्रा प्रणाली भी उसी के अनुरूप परिवर्तित होती है। जब कोई देश आर्थिक रूप से विकास करता है तो उसकी उत्पादन, व्यापार, निवेश और उपभोग की प्रवृत्तियों में विस्तार होता है। इस विस्तार को सुव्यवस्थित करने हेतु एक संगठित एवं सशक्त मुद्रा प्रणाली की आवश्यकता होती है। अतः आर्थिक प्रगति के प्रत्येक चरण में मुद्रा एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

मुद्रा न केवल आर्थिक विकास का परिणाम होती है, बल्कि वह उसका कारण भी बनती है। एक देश की विनिमय प्रणाली, मौद्रिक नीतियाँ और मुद्रा के विनियमन की प्रक्रिया उसके विकास स्तर का निर्धारण करती हैं। यही कारण है कि सुदृढ़ मुद्रा प्रणाली वाले देश प्रायः आर्थिक रूप से सशक्त होते हैं।

मुद्रा की भूमिका | उत्पादन, पूंजी निर्माण और औद्योगीकरण

आर्थिक प्रगति की दिशा में पहला कदम होता है – उत्पादन में वृद्धि। उत्पादन तभी संभव होता है जब संसाधनों का उचित उपयोग हो, श्रम और पूंजी का समुचित संयोजन हो तथा वितरण प्रणाली कारगर हो। इन सभी कार्यों के लिए मुद्रा का होना अनिवार्य है।

1. उद्योगों का विकास

मुद्रा के बिना बड़े पैमाने पर उत्पादन और उद्योगों की स्थापना असंभव होती है। आधुनिक युग में पूंजीगत उपकरणों की खरीद, मशीनरी का अधिग्रहण, कच्चे माल की उपलब्धता और श्रमिकों को वेतन देने के लिए नकद धन की आवश्यकता होती है। मुद्रा की उपस्थिति ने ही छोटे-छोटे उत्पादन केंद्रों को विशाल उद्योगों में बदलने में सहायता की है।

2. बचत और पूंजी निर्माण

मुद्रा के माध्यम से लोग अपनी आय का कुछ हिस्सा बचत के रूप में अलग रख सकते हैं। ये बचतें ही आगे चलकर निवेश का आधार बनती हैं। जब लोग अपने संचित धन को बैंकों, बीमा कंपनियों अथवा अन्य वित्तीय संस्थानों में जमा करते हैं, तब वह पूंजी निर्माण में रूपांतरित होती है। यही पूंजी उद्योगों, कृषि और सेवा क्षेत्र में निवेश के लिए उपयोग में लाई जाती है।

3. नवाचार और उद्यमिता

नवाचार (Innovation) तथा उद्यमिता (Entrepreneurship) के विकास में मुद्रा की उपलब्धता एक निर्णायक कारक है। कोई भी नवाचार तभी संभव है जब उसके लिए आर्थिक संसाधन उपलब्ध हों। मुद्रा इन संसाधनों की पूर्ति में सहायक बनती है।

मौद्रिक स्थिरता | आर्थिक प्रगति की शर्त

यद्यपि मुद्रा आर्थिक विकास की एक अनिवार्य शर्त है, परन्तु यह तभी लाभकारी हो सकती है जब इसकी मूल्य स्थिरता बनी रहे। यदि मुद्रा का मूल्य अस्थिर हो – अर्थात महँगाई दर अत्यधिक हो या मुद्रा का अवमूल्यन हो रहा हो – तो यह संपूर्ण आर्थिक ढांचे को हिला सकती है।

1. मुद्रास्फीति और अवमूल्यन

यदि मुद्रा की आपूर्ति आवश्यकता से अधिक हो जाए तो मुद्रास्फीति उत्पन्न होती है। इससे उपभोक्ता वस्तुएँ महँगी हो जाती हैं और आम जनता की क्रय शक्ति घट जाती है। इसके अतिरिक्त, यदि किसी देश की मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा की तुलना में गिरता है, तो उसका आयात महँगा हो जाता है, जिससे व्यापार घाटा बढ़ सकता है।

2. मूल्य स्थिरता का महत्त्व

एक स्थिर मुद्रा प्रणाली से निवेशकों का विश्वास बढ़ता है, योजनाओं की दीर्घकालिकता सुनिश्चित होती है और व्यापारिक गतिविधियाँ सुदृढ़ होती हैं। अतः मुद्रा के मूल्य में स्थिरता बनाए रखना किसी भी सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी होती है।

मुद्रा और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

आर्थिक प्रगति का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू है – अंतर्राष्ट्रीय व्यापार। मुद्रा का इसमें भी गहरा प्रभाव पड़ता है।

1. मुद्रा का अंतरराष्ट्रीय मांग और निर्यात

सुदृढ़ अर्थव्यवस्था वाले देशों की मुद्रा की माँग अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अधिक होती है। उदाहरणस्वरूप, अमेरिकी डॉलर, यूरो या स्विस फ्रैंक जैसी मुद्राएँ विश्वसनीय मानी जाती हैं क्योंकि उनके पीछे मजबूत अर्थव्यवस्थाएँ हैं। जब किसी देश की मुद्रा की माँग बढ़ती है, तो उस देश के निर्यातकों को लाभ मिलता है क्योंकि विदेशी विनिमय दरें अनुकूल होती हैं।

2. भुगतान संतुलन और विनिमय दरें

मुद्रा की स्थिति से एक देश का भुगतान संतुलन प्रभावित होता है। यदि निर्यात अधिक हो और मुद्रा की माँग विदेशी बाजारों में बनी रहे, तो भुगतान संतुलन अनुकूल रहता है। इसके विपरीत, कमजोर मुद्रा से आयात महँगा होता है और विदेशी ऋण का बोझ बढ़ जाता है।

मुद्रा और योजनाबद्ध विकास

किसी भी राष्ट्र की आर्थिक प्रगति योजनाबद्ध तरीके से तभी संभव होती है जब वहाँ मौद्रिक संसाधनों का समुचित प्रबंध हो। भारत जैसे देश में पाँच वर्षीय योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों का बड़ा भाग मुद्रा और क्रेडिट तंत्र से प्राप्त किया जाता है।

1. योजना निर्माण में मुद्रा की भूमिका

विकास योजनाओं के तहत सड़कें, बाँध, विद्यालय, अस्पताल, उद्योग आदि स्थापित किए जाते हैं जिनमें भारी पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है। यह पूंजी पूंजी बाजार, सरकारी बॉन्ड, बैंकों और वित्तीय संस्थानों से जुटाई जाती है, जिनका संचालन मुद्रा प्रणाली के अंतर्गत ही होता है।

2. सरकारी निवेश और मुद्रास्फीति का संतुलन

सरकारी निवेश के दौरान यदि मुद्रा का अत्यधिक सृजन कर दिया जाए, तो यह मुद्रास्फीति को जन्म दे सकता है। अतः सरकार को मौद्रिक नीति और वित्तीय नीति के बीच संतुलन बनाकर चलना होता है, ताकि आर्थिक प्रगति के साथ-साथ मूल्य स्थिरता भी बनी रहे।

डिजिटल मुद्रा और आधुनिक विकास

वर्तमान समय में डिजिटल अर्थव्यवस्था का युग है। डिजिटल भुगतान प्रणाली, क्रिप्टोकरेंसी, सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) जैसी नई अवधारणाएँ मुद्रा की भूमिका को एक नई दिशा दे रही हैं।

1. डिजिटल भुगतान की प्रभावशीलता

UPI, डिजिटल वॉलेट्स, मोबाइल बैंकिंग आदि ने मुद्रा के प्रयोग को सहज, सुरक्षित और पारदर्शी बना दिया है। इससे लेन-देन की गति बढ़ी है और नकदी आधारित अर्थव्यवस्था से डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण हो रहा है।

2. क्रिप्टोकरेंसी और चुनौतियाँ

क्रिप्टोकरेंसी ने पारंपरिक मुद्रा के समक्ष नई चुनौती प्रस्तुत की है। यद्यपि यह मुद्रा की परिभाषा में नहीं आती, परंतु इसका प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर दिख रहा है। सरकारों के लिए इसे विनियमित करना एक बड़ी चुनौती है।

अतः यह स्पष्ट है कि मुद्रा केवल एक विनिमय का साधन न होकर एक राष्ट्र की आर्थिक शक्ति, प्रगति, स्थिरता और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का परिचायक है। आर्थिक प्रगति और मुद्रा का सम्बन्ध घनिष्ठ, जटिल और परस्पर निर्भरता वाला है। एक मजबूत, स्थिर और सुगठित मुद्रा प्रणाली के बिना सतत और समावेशी आर्थिक विकास की कल्पना नहीं की जा सकती।

इसलिए आवश्यक है कि हर राष्ट्र अपनी मुद्रा प्रणाली को मजबूत बनाए, मौद्रिक नीतियों को समुचित रूप से क्रियान्वित करे और वैश्विक परिवर्तनों के अनुरूप अपनी मौद्रिक व्यवस्थाओं को अद्यतन करता रहे। केवल तभी मुद्रा, आर्थिक विकास की सच्ची सहायक सिद्ध हो सकती है।

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