मुद्रा भ्रम (Money Illusion) | एक मनोवैज्ञानिक स्थिति का आर्थिक परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण

आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह केवल वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान का माध्यम ही नहीं है, बल्कि यह सामाजिक प्रतिष्ठा, सुरक्षा और समृद्धि का प्रतीक भी बन चुका है। परंतु जब लोग स्वयं मुद्रा को ही ‘धन’ समझने लगते हैं और उसकी क्रय-शक्ति को नजरअंदाज कर देते हैं, तब एक विशेष प्रकार की मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति जन्म लेती है, जिसे ‘मुद्रा भ्रम’ (Money Illusion) कहा जाता है।

मुद्रा भ्रम वह स्थिति है जब व्यक्ति वास्तविक मूल्य (Real Value) की बजाय नाममात्र मूल्य (Nominal Value) पर अधिक ध्यान देता है। यह भ्रम लोगों को आर्थिक यथार्थ से दूर ले जाकर उन्हें ऐसे निर्णय लेने के लिए प्रेरित करता है जो दीर्घकाल में उनके हित में नहीं होते। इस लेख में हम मुद्रा भ्रम (Money Illusion) की अवधारणा, इसके कारण, प्रभाव, उदाहरण, और इससे बचाव के उपायों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

मुद्रा भ्रम की परिभाषा और मूल अवधारणा

मुद्रा भ्रम एक मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति है जिसमें व्यक्ति वास्तविक क्रय-शक्ति के बजाय केवल मौद्रिक मात्रा को ही धन मान लेता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति की आय ₹10,000 से बढ़कर ₹20,000 हो जाए, परंतु उसी अनुपात में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें भी दोगुनी हो जाएं, तो उसकी वास्तविक क्रय-शक्ति में कोई वृद्धि नहीं होती। परंतु ऐसा व्यक्ति यह सोच सकता है कि वह अब अधिक धनी है क्योंकि उसकी आय बढ़ गई है। यही भ्रम मुद्रा भ्रम कहलाता है।

यह भ्रम आमतौर पर तब उत्पन्न होता है जब व्यक्ति अर्थव्यवस्था में हो रही महंगाई, मुद्रा अवमूल्यन या मूल्य परिवर्तनों को समझने में असमर्थ रहता है। मुद्रा भ्रम मुख्यतः निम्नलिखित तथ्यों पर आधारित होता है:

  • नाममात्र आय (Nominal Income) में वृद्धि को ही वास्तविक आय (Real Income) मान लेना।
  • मूल्य स्तर में वृद्धि (Inflation) को नजरअंदाज करना।
  • मुद्रा को साधन के बजाय उद्देश्य मान लेना।

मुद्रा भ्रम के कारण

मुद्रा भ्रम कई मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारणों से उत्पन्न होता है। कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

(क) अधूरी आर्थिक समझ

अधिकांश लोगों को मुद्रा की क्रय-शक्ति, महंगाई, वास्तविक मजदूरी आदि की सैद्धांतिक जानकारी नहीं होती। वे केवल अपनी जेब में आई राशि को ही धन मान लेते हैं।

(ख) मनोवैज्ञानिक संतोष

मनुष्य की प्रवृत्ति होती है कि वह बाहरी परिवर्तन (जैसे वेतन में वृद्धि) को सहजता से स्वीकार कर लेता है, जबकि सूक्ष्म परिवर्तनों (जैसे मुद्रा की घटती क्रय-शक्ति) को नजरअंदाज करता है।

(ग) सामाजिक तुलना

यदि किसी व्यक्ति की आय बढ़े और वह अपने मित्रों या पड़ोसियों से अधिक खर्च कर सके, तो उसे लगता है कि उसकी स्थिति बेहतर हो रही है, भले ही वास्तविकता इसके विपरीत हो।

(घ) मितिभ्रम (Cognitive Bias)

मुद्रा भ्रम, मितिभ्रम का ही एक उदाहरण है, जहां व्यक्ति अपनी समझ के अनुसार सीमित जानकारी के आधार पर निष्कर्ष निकाल लेता है।

मुद्रा भ्रम के प्रभाव

(क) श्रमिकों पर प्रभाव

मजदूर अक्सर अपनी मौद्रिक मजदूरी (Nominal Wage) को ही असली मानते हैं। यदि उन्हें ₹500 के बजाय ₹1000 प्रतिदिन वेतन मिलने लगे, तो वे प्रसन्न हो जाते हैं, भले ही जीवनयापन की लागत दोगुनी हो गई हो। इस भ्रम के कारण वे वास्तविक मजदूरी (Real Wage) को नजरअंदाज कर देते हैं।

(ख) उपभोग पर प्रभाव

मुद्रा भ्रम से ग्रस्त व्यक्ति को जैसे ही उसकी आय बढ़ती हुई प्रतीत होती है, वह तुरंत अपना उपभोग स्तर बढ़ा देता है – जैसे महंगे कपड़े, बड़ी गाड़ी, या फिजूलखर्ची वाली जीवनशैली अपनाना – बिना यह समझे कि उसकी क्रय-शक्ति वास्तव में कितनी बढ़ी है।

(ग) बचत और निवेश पर प्रभाव

लोग अधिक आय देखकर अधिक व्यय करने लगते हैं और बचत की प्रवृत्ति घट जाती है। इससे उनकी दीर्घकालिक वित्तीय सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

(घ) सरकार की नीतियों पर प्रभाव

सरकारें भी कभी-कभी मुद्रा भ्रम का लाभ उठाकर आर्थिक आंकड़ों को बेहतर दिखा सकती हैं, जैसे कि ‘वेतन वृद्धि’ या ‘न्यूनतम मजदूरी में वृद्धि’ की घोषणा कर देना, भले ही मूल्य स्तर के अनुपात में वास्तविक क्रय-शक्ति न बढ़े।

ऐतिहासिक और समसामयिक उदाहरण

(क) जर्मनी में महाविनिमय काल (Hyperinflation) – 1923

प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी में मुद्रा की अत्यधिक छपाई के कारण कीमतें हजारों गुना बढ़ गईं। लोग भ्रम में थे कि अधिक पैसे से वे अधिक वस्तुएँ खरीद सकेंगे, परंतु वस्तुओं की उपलब्धता नहीं थी। इस स्थिति में मुद्रा का मूल्य इतना गिर गया कि एक रोटी खरीदने के लिए बोरियों में पैसे ले जाने पड़ते थे।

(ख) भारत में वेतन आयोग की सिफारिशें

भारत में वेतन आयोग द्वारा सरकारी कर्मचारियों के वेतन में समय-समय पर वृद्धि की जाती है। कई बार ऐसी वेतन वृद्धियाँ केवल मौद्रिक रूप से होती हैं, जबकि मुद्रास्फीति के कारण उनकी वास्तविक आय में कोई ठोस बढ़ोत्तरी नहीं होती।

(ग) COVID-19 महामारी के बाद

2020 के बाद बहुत से देशों में सरकारों ने राहत पैकेज के अंतर्गत जनता को नकद सहायता दी। लोग यह मान बैठे कि उनकी क्रय-शक्ति बढ़ गई है, परंतु कुछ ही महीनों में महंगाई ने उस अतिरिक्त मुद्रा के लाभ को खत्म कर दिया।

मुद्रा भ्रम से बचाव के उपाय

(क) आर्थिक साक्षरता का प्रचार

मुद्रा भ्रम से बचने का पहला कदम है – आर्थिक शिक्षा। यदि आम नागरिक को मुद्रास्फीति, क्रय-शक्ति, वास्तविक मजदूरी, मूल्य सूचकांक जैसी अवधारणाओं की सही जानकारी हो, तो वे मुद्रा भ्रम से बच सकते हैं।

(ख) मीडिया की भूमिका

मीडिया और संचार माध्यमों को चाहिए कि वे महंगाई और कीमतों में बदलाव की वास्तविक स्थिति को सरल भाषा में प्रस्तुत करें ताकि आम नागरिक समझ सके कि उसकी वास्तविक आय में कोई परिवर्तन हुआ है या नहीं।

(ग) मूल्य सूचकांक का उपयोग

उपभोक्ताओं को अपने खर्च और आय की तुलना किसी विश्वसनीय मूल्य सूचकांक (जैसे CPI – Consumer Price Index) से करनी चाहिए ताकि उन्हें यह समझ में आए कि उनकी क्रय-शक्ति में कितना परिवर्तन हुआ है।

(घ) तर्कपूर्ण व्यय और बचत की योजना

लोगों को चाहिए कि वे अपने मौद्रिक आय की तुलना वस्तुओं और सेवाओं की वास्तविक कीमतों से करें और उसके अनुसार अपने खर्च तथा बचत की योजना बनाएं।

मुद्रा भ्रम (Money Illusion) एक अदृश्य परंतु अत्यंत प्रभावी मानसिक प्रवृत्ति है जो व्यक्ति की आर्थिक समझ, उपभोग शैली, बचत आदतों, और सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करती है। यह भ्रम व्यक्ति को वास्तविकता से दूर करके उसे केवल आंकड़ों और सतही तथ्यों के आधार पर निर्णय लेने के लिए प्रेरित करता है।

समाज के हर वर्ग – चाहे वह मजदूर हो, मध्यमवर्गीय उपभोक्ता हो, नीति निर्माता हो या व्यापारी – को मुद्रा के वास्तविक मूल्य को समझने की आवश्यकता है। केवल मौद्रिक वृद्धि को धन मान लेना आर्थिक दृष्टि से एक गंभीर भूल है। जब तक हम स्वयं को इस भ्रम से बाहर नहीं निकालते, तब तक न तो आर्थिक निर्णय प्रभावी होंगे और न ही आर्थिक समृद्धि स्थायी होगी।

अतः आवश्यकता है आर्थिक यथार्थ के साथ व्यवहार करने की – और याद रखने की कि धन केवल मुद्रा नहीं है, बल्कि मुद्रा की क्रय-शक्ति है

Economics – KnowledgeSthali


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