मोरंड-गंजाल सिंचाई परियोजना | लाभ एवं पर्यावरणीय प्रभाव

मध्य प्रदेश में कृषि उत्पादकता को बढ़ाने और जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन के उद्देश्य से कई सिंचाई परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण पहल है मोरंड-गंजाल सिंचाई परियोजना। इस परियोजना का उद्देश्य राज्य में सिंचाई सुविधा को मजबूत करना और किसानों को जल आपूर्ति सुनिश्चित करना है। हालांकि, इस परियोजना को लेकर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने गंभीर चिंताएँ व्यक्त की हैं क्योंकि इससे सतपुड़ा और मेलघाट टाइगर रिजर्व के महत्वपूर्ण बाघ आवास प्रभावित हो सकते हैं।

यह परियोजना वन्यजीवों, पर्यावरण और स्थानीय समुदायों के लिए दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकती है। इस लेख में हम इस परियोजना की पृष्ठभूमि, उद्देश्य, लाभ, चुनौतियाँ और पर्यावरणीय प्रभावों का विस्तार से विश्लेषण करेंगे।

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परियोजना की पृष्ठभूमि | प्रस्तावना और स्वीकृति

मोरंड-गंजाल सिंचाई परियोजना की प्रारंभिक रूपरेखा 1972 में तैयार की गई थी, लेकिन इसे आधिकारिक मंजूरी 2017 में मिली। परियोजना को कार्यान्वित करने की योजना मध्य प्रदेश जल संसाधन विभाग द्वारा बनाई गई है। इस परियोजना का मूल आधार एक बांध-आधारित सिंचाई प्रणाली है, जिसके माध्यम से राज्य के विभिन्न जिलों में जल आपूर्ति सुनिश्चित की जाएगी।

परियोजना का उद्देश्य

मोरंड-गंजाल सिंचाई परियोजना परियोजना का मुख्य उद्देश्य मध्य प्रदेश में कृषि क्षेत्र को सशक्त बनाना और किसानों के लिए वर्षभर जल आपूर्ति सुनिश्चित करना है। इस परियोजना के प्रमुख लक्ष्यों में शामिल हैं –

  • सिंचाई सुविधाओं का विस्तार – जिससे राज्य की कृषि उत्पादकता में वृद्धि होगी।
  • कृषि पर निर्भर अर्थव्यवस्था को मजबूती – जिससे राज्य की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी।
  • कृषि क्षेत्र में सतत विकास को बढ़ावा – जिससे सूखा प्रभावित क्षेत्रों को राहत मिलेगी।
  • स्थानीय किसानों की आय में वृद्धि – जिससे ग्रामीण विकास को गति मिलेगी।

परियोजना का भौगोलिक विस्तार

यह परियोजना मध्य प्रदेश के कई जिलों को प्रभावित करेगी, जिनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं –

  • होशंगाबाद
  • बैतूल
  • हरदा
  • खंडवा

इन जिलों में सिंचाई सुविधाएँ बेहतर होने से कृषि उत्पादन में वृद्धि होगी, जिससे किसानों को लाभ होगा। लेकिन साथ ही, यह परियोजना पर्यावरण और वन्यजीवों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।

मोरंड-गंजाल सिंचाई परियोजना से संबंधित नदियाँ

मोरंड-गंजाल सिंचाई परियोजना मोरंड और गंजाल नदी के जल प्रवाह को नियंत्रित करके संचालित की जाएगी। इन नदियों की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार है –

गंजाल नदी

  • यह नर्मदा नदी की बाएँ किनारे (Left Bank) की सहायक नदी है।
  • इसका जल प्रवाह मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के हरदा और बैतूल जिलों से होकर गुजरता है।
  • इस नदी का जल सिंचाई और जल आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण है।

मोरंड नदी

  • यह गंजाल नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है।
  • इसका जल मुख्य रूप से स्थानीय जलाशयों और सिंचाई परियोजनाओं के लिए उपयोग किया जाता है।
  • इस नदी पर जल नियंत्रण करके सिंचाई क्षेत्र का विस्तार किया जाएगा।

परियोजना के संभावित लाभ

मोरंड-गंजाल सिंचाई परियोजना से कृषि और जल आपूर्ति में कई सकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं –

  1. सिंचित भूमि का विस्तार – यह परियोजना मध्य प्रदेश के कई जिलों में सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराएगी, जिससे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में खेती करना संभव होगा।
  2. कृषि उत्पादन में वृद्धि – जल आपूर्ति बढ़ने से किसानों को अधिक पैदावार मिलेगी, जिससे खाद्यान्न उत्पादन बढ़ेगा।
  3. स्थानीय रोजगार सृजन – निर्माण कार्यों और इसके रखरखाव के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे।
  4. ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती – परियोजना के माध्यम से किसानों की आय में वृद्धि होगी, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा।
  5. जल संरक्षण और आपूर्ति प्रबंधन – यह परियोजना जल संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगी।

परियोजना का आदिवासी समुदायों पर प्रभाव

इस परियोजना का सबसे बड़ा सामाजिक प्रभाव स्थानीय आदिवासी समुदायों, विशेष रूप से कोरकू जनजाति पर पड़ेगा।

विस्थापन

लगभग 600 से अधिक कोरकू जनजाति के लोग सीधे विस्थापित होंगे। यह विस्थापन उनके जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित करेगा।

आजिविका पर प्रभाव

आदिवासी समुदाय जंगलों पर अपनी आजीविका, भोजन, औषधीय पौधों और सांस्कृतिक परंपराओं के लिए निर्भर करते हैं। जंगलों के डूबने से उनकी रोज़मर्रा की जरूरतें प्रभावित होंगी।

सांस्कृतिक क्षरण

जब इन समुदायों को अजनबी क्षेत्रों में बसाया जाएगा, तो उनकी पारंपरिक जीवनशैली और संस्कृति विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाएगा।

सामाजिक अशांति

विस्थापन से विरोध प्रदर्शन और सामाजिक अस्थिरता की संभावना बढ़ सकती है।

पर्यावरणीय और वन्यजीव संबंधी चिंताएँ

हालांकि, इस परियोजना से कई लाभ हो सकते हैं, लेकिन इसके पर्यावरणीय प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने इस परियोजना को लेकर कुछ गंभीर चिंताएँ व्यक्त की हैं।

1. टाइगर रिजर्व | बाघ आवास पर प्रभाव

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने इस परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों का अध्ययन करते हुए पाया कि यह बाघों के लिए एक महत्वपूर्ण आवास क्षेत्र है। प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हो सकते हैं –

जलमग्न वन क्षेत्र

इस परियोजना से बड़े पैमाने पर वन भूमि जलमग्न हो जाएगी, जिससे सतपुड़ा और मेलघाट टाइगर रिजर्व के बीच बाघों की आवाजाही बाधित होगी।

आनुवंशिक आदान-प्रदान में बाधा

बाघों के विभिन्न समूहों के बीच आनुवंशिक विविधता बनाए रखने के लिए उनकी स्वतंत्र आवाजाही आवश्यक होती है। यदि गलियारे अवरुद्ध हो जाते हैं, तो यह बाघों की जनसंख्या स्थिरता के लिए खतरा बन सकता है।

पारिस्थितिकीय व्यवधान

वन्यजीवों के आवास नष्ट होने से जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जिससे वन पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो सकता है।

2. वन्यजीवों का विस्थापन

  • जलाशय बनने से जंगलों का एक बड़ा हिस्सा जलमग्न होगा, जिससे वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास नष्ट हो सकता है।
  • इससे मानव-पशु संघर्ष की घटनाएँ बढ़ सकती हैं।

3. स्थानीय समुदायों पर प्रभाव

  • परियोजना के कारण कई गाँव विस्थापित हो सकते हैं।
  • ग्रामीणों की आजीविका प्रभावित हो सकती है, क्योंकि वे जंगलों और नदियों पर निर्भर होते हैं।

4. पारिस्थितिक असंतुलन

  • जलाशय बनने से स्थानीय पारिस्थितिकी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  • नदियों के प्रवाह में बदलाव से मछलियों और अन्य जलीय जीवों पर असर पड़ेगा।

मोरंड-गंजाल सिंचाई परियोजना | सामाजिक-आर्थिक चिंताएँ

NTCA ने इस परियोजना से उत्पन्न होने वाली सामाजिक-आर्थिक समस्याओं पर भी ध्यान केंद्रित किया है। प्रभावित क्षेत्र न केवल बाघों के लिए, बल्कि अन्य वन्यजीवों और जैव विविधता के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। इस परियोजना से स्थानीय अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा हो सकता है।

मोरंड-गंजाल सिंचाई परियोजना | संभावित समाधान और वैकल्पिक उपाय

पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं –

  1. पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) – परियोजना से पहले एक विस्तृत पर्यावरणीय प्रभाव आकलन किया जाना चाहिए।
  2. संरक्षण उपायों को लागू करना – वन्यजीवों के लिए वैकल्पिक आवास और जैव विविधता संरक्षण के उपाय किए जाएँ।
  3. स्थानीय समुदायों के पुनर्वास की योजना – प्रभावित गाँवों के पुनर्वास और आजीविका पुनर्स्थापन के लिए विशेष योजनाएँ बनाई जाएँ।
  4. संभावित जल संरक्षण तकनीकों का उपयोग – जलाशयों और सिंचाई प्रणालियों के डिजाइन को ऐसा बनाया जाए कि पर्यावरणीय नुकसान कम से कम हो।
  5. स्थायी जल प्रबंधन नीति – जल प्रबंधन के लिए दीर्घकालिक नीतियाँ बनाई जाएँ ताकि प्राकृतिक जल स्रोतों को संरक्षित रखा जा सके।

परियोजना के लिए सिफारिशें

NTCA ने मध्य प्रदेश सरकार को इस परियोजना के लिए कुछ महत्वपूर्ण सिफारिशें दी हैं –

1. विकल्पों की खोज

सरकार को अन्य वैकल्पिक स्थलों की तलाश करनी चाहिए, जहाँ वन्यजीवों पर न्यूनतम प्रभाव पड़े।

2. बाघ गलियारों का निर्माण

बाघों की आवाजाही बनाए रखने के लिए वैकल्पिक गलियारे विकसित किए जाएं।

3. परियोजना का पुनः डिज़ाइन

जलाशय का आकार कम करने या सुरंग-आधारित सिंचाई प्रणाली अपनाने पर विचार किया जाए।

4. वन भूमि हस्तांतरण

2025 में वन सलाहकार समिति (FAC) ने 2,250 हेक्टेयर वन भूमि को परियोजना के लिए डायवर्ट करने का प्रस्ताव दिया है। इस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।

5. आदिवासियों का पुनर्वास

  • उचित मुआवजा
  • वैकल्पिक आवास
  • आजीविका प्रशिक्षण

6. दीर्घकालिक समाधान

पर्यावरण-अनुकूल उपायों को अपनाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए, जैसे कि:

  • माइक्रो इरिगेशन
  • शुष्क कृषि (Dry Land Agriculture)
  • कृषि वानिकी (Agroforestry)

मोरंड-गंजाल सिंचाई परियोजना एक महत्वपूर्ण विकास परियोजना है, जो मध्य प्रदेश की कृषि और जल आपूर्ति में सुधार ला सकती है। हालांकि, इस परियोजना के प्रभाव को संतुलित करने के लिए सतर्क योजना और उपयुक्त पर्यावरणीय उपायों की आवश्यकता है। यदि सही दिशा में कदम उठाए जाएँ, तो यह परियोजना कृषि विकास और पर्यावरणीय संतुलन दोनों को सुनिश्चित कर सकती है।

मोरंड-गंजाल सिंचाई परियोजना से कृषि क्षेत्र को निश्चित रूप से लाभ मिलेगा, लेकिन इसके साथ ही वन्यजीवों, पारिस्थितिकी तंत्र और स्थानीय समुदायों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। NTCA की चेतावनी को ध्यान में रखते हुए सरकार को इस परियोजना का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए और ऐसे समाधान तलाशने चाहिए, जो सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण दोनों को संतुलित कर सकें।

आदिवासी समुदायों के पुनर्वास और वन्यजीवों के संरक्षण को प्राथमिकता देकर एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है, जिससे सभी हितधारकों के हितों की रक्षा हो सके। परियोजना को लागू करने से पहले सभी संभावित प्रभावों का मूल्यांकन कर उपयुक्त रणनीतियाँ अपनाई जानी चाहिए ताकि यह सतत विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान दे सके।

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