भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार व्यक्ति के सर्वांगीण विकास और उनकी स्वतंत्रता, समानता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं। यह अधिकार राज्य या समाज द्वारा प्रदान किए जाते हैं और उनके संरक्षण की व्यवस्था की जाती है। मौलिक अधिकारों में समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18), स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22), शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24), धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28), शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार (अनुच्छेद 29-30), और संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32) शामिल हैं।
संपत्ति के मौलिक अधिकार को 44वें संविधान संशोधन 1978 द्वारा सामान्य विधिक अधिकार में बदल दिया गया है। भारतीय संविधान में वर्णित ये अधिकार नागरिकों को समान, स्वतंत्र और न्यायपूर्ण समाज प्रदान करते हैं, जिसमें वे सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें और अपनी क्षमता का पूर्ण विकास कर सकें।
मौलिक अधिकार: अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 (अमेरिका से लिया गया)
संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12-35 तक) में मौलिक अधिकारों का विवरण है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया था। संविधान के भाग III को ‘भारत का मैग्नाकार्टा’ की संज्ञा दी गई है। ‘मैग्नाकार्टा’ अधिकारों का वह प्रपत्र है, जिसे इंग्लैंड के किंग जॉन द्वारा 1215 में सामंतों के दबाव में जारी किया गया था। भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताओं में से एक विशेषता मौलिक अधिकार है।
मौलिक अधिकार वे अधिकार हैं जो व्यक्तियों के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक होते हैं। इन्हें राज्य या समाज द्वारा प्रदान किया जाता है तथा इनके संरक्षण की व्यवस्था की जाती है। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों का विशद वर्णन किया गया है, जो व्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता और न्याय सुनिश्चित करते हैं। 10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वैश्विक मानवाधिकारों की घोषणा की गई थी, जिसके कारण हर वर्ष 10 दिसम्बर को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।
भारतीय संविधान में आरंभ में 7 मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया था:
- समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18 तक)
- स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22 तक)
- शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 व 24)
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28 तक)
- शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार (अनुच्छेद 29 और 30)
- संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 31)
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18 तक)
अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समानता का अधिकार ब्रिटेन से और विधि का समान संरक्षण का अधिकार अमेरिका से लिया गया है।
अनुच्छेद 15: राज्य जाति, धर्म, लिंग, वर्ण, आयु और निवास स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। राज्य सार्वजनिक स्थलों पर प्रवेश से प्रतिबंध नहीं लगाएगा। अनुच्छेद 15(3) के अंतर्गत राज्य महिलाओं और बच्चों को विशेष सुविधा प्रदान कर सकता है।
अनुच्छेद 16: लोक नियोजन में अवसर की समानता का प्रावधान है। अनुच्छेद 16(1) के अनुसार, राज्य जाति, धर्म, लिंग, वर्ण, आयु और निवास स्थान के आधार पर नौकरी प्रदान करने में भेदभाव नहीं करेगा। अनुच्छेद 16(4) के तहत राज्य पिछड़े वर्ग के नागरिकों को विशेष संरक्षण प्रदान कर सकता है।
अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का अंत। भारतीय संसद ने अस्पृश्यता निषेध अधिनियम 1955 बनाकर इसे दंडनीय अपराध घोषित किया है।
अनुच्छेद 18: उपाधियों का अंत। राज्य सैन्य और शैक्षिक क्षेत्र के अलावा उपाधि प्रदान नहीं करेगा। उपाधि ग्रहण करने से पहले देश के नागरिक तथा विदेशी व्यक्तियों को राष्ट्रपति की अनुमति लेना आवश्यक है।
स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22 तक)
अनुच्छेद 19: स्वतंत्रता के सात प्रकार दिए गए थे, जिनमें से संपत्ति अर्जित करने की स्वतंत्रता 44वें संविधान संशोधन 1978 द्वारा हटा दी गई। इनमें शामिल हैं:
- भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- शांतिपूर्वक बिना अस्त्र-शस्त्र के सम्मेलन करने की स्वतंत्रता
- संघ या संगम बनाने की स्वतंत्रता
- बिना बाधा के घूमने-फिरने की स्वतंत्रता
- व्यापार या आजीविका कमाने की स्वतंत्रता
- स्थायी रूप से निवास करने की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 20: अपराधों के दोषसिद्ध के संबंध में संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार। इसमें तीन प्रावधान शामिल हैं:
- किसी व्यक्ति को तब तक अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाता जब तक लागू कानून का उल्लंघन न किया हो।
- किसी व्यक्ति को एक अपराध के लिए दो बार दंडित नहीं किया जा सकता।
- किसी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध गवाही देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 21: प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार। 86वें संविधान संशोधन 2002 द्वारा 6-14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009, 1 अप्रैल 2010 से सम्पूर्ण भारत में लागू किया गया।
अनुच्छेद 22: कुछ दशाओं में गिरफ्तारी से संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार। इसमें निवारक निरोध विधि भी शामिल है।
शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24 तक)
अनुच्छेद 23: इसमें मानव का अवैध व्यापार, दास प्रथा और बेगार प्रथा को पूर्णतः प्रतिबंधित किया गया है। राज्य किसी सार्वजनिक प्रयोजन के लिए अनिवार्य श्रम लागू कर सकता है।
अनुच्छेद 24: 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को उद्योग धंधों में काम पर नहीं लगाया जा सकता है। बाल श्रम प्रतिबंधित किया गया है।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28 तक)
अनुच्छेद 25: अंतकरण के आधार पर धर्म को मानने की स्वतंत्रता।
अनुच्छेद 26: माने गए धर्म के प्रबंधन करने की स्वतंत्रता।
अनुच्छेद 27: राज्य किसी धर्म की अभिवृद्धि पर धार्मिक आधार पर कोई कर नहीं लगाएगा।
अनुच्छेद 28: सरकारी वित्त पोषित विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती है। लेकिन किसी विन्यास (ट्रस्ट) द्वारा स्थापित विद्यालय में धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है।
शिक्षा और संस्कृति का अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30 तक)
अनुच्छेद 29: राज्य के अंतर्गत रहने वाले प्रत्येक नागरिक को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को सुरक्षित और संरक्षित करने का अधिकार है।
अनुच्छेद 30: भाषा, लिपि और संस्कृति की सुरक्षा हेतु अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी पसंद की शिक्षण संस्थान की स्थापना करने का अधिकार है। ऐसी संस्थाओं में प्रवेश से वंचित नहीं किया जाएगा।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
डाॅ. भीमराव आंबेडकर ने इसे संविधान की आत्मा कहा है। मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु 5 प्रकार की रिट जारी की जाती हैं ताकि मौलिक अधिकारों को उचित संरक्षण प्रदान किया जा सके:
- बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस काॅरपस): यह नागरिक अधिकारों की सर्वोत्तम रिट है। बंदी बनाए गए व्यक्ति को 24 घंटों में न्यायालय में प्रस्तुत करना होता है।
- परमादेश (मैण्डमस): किसी सार्वजनिक पदाधिकारी द्वारा गलत आदेश दिए जाने पर इसके कारणों की समीक्षा न्यायालय करता है।
- प्रतिषेध (प्रोहिविशन): सर्वोच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालय को सीमा से बाहर जाकर कार्य करने को मना करता है।
- उत्प्रेषण (सर्टियोरारी): सर्वोच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालय से और अधिक सूचना मांगता है।
- अधिकार पृच्छा (क्यू वारंटो): किसी सार्वजनिक पदाधिकारी द्वारा वैध या अवैध तरीके से प्राप्त किए गए पद के कारणों की समीक्षा करता है।
संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 31)
44वें संविधान संशोधन 1978 द्वारा संपत्ति के मौलिक अधिकार को इस श्रेणी से हटाकर ‘सामान्य विधिक अधिकार’ बना दिया गया है और इसे अनुच्छेद 300(क) में जोड़ा गया है।
मौलिक अधिकारों की वर्तमान संख्या
44वें संविधान संशोधन के बाद, वर्तमान में मौलिक अधिकारों की संख्या 6 है। इनमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, शिक्षा और संस्कृति का अधिकार, और संवैधानिक उपचारों का अधिकार शामिल हैं।
भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार न केवल व्यक्तियों के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक हैं, बल्कि यह उन्हें राज्य और समाज के संभावित उत्पीड़न से भी बचाते हैं। इन अधिकारों का उद्देश्य नागरिकों को एक समान, स्वतंत्र और न्यायपूर्ण समाज प्रदान करना है, जिसमें वे अपनी क्षमता का पूर्ण रूप से विकास कर सकें और सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें।
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इन्हें भी देखें –
- प्रमुख संविधान संशोधन | भारतीय संविधान के विकास में मील के पत्थर
- संघ और उसके क्षेत्र एवं नागरिकता | अनुच्छेद 1 से 11
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना | स्त्रोत, विकास और महत्व
- भारतीय संविधान में शपथ ग्रहण और त्यागपत्र की प्रक्रियाएं
- भारत का संवैधानिक इतिहास | ब्रिटिश अधिनियमों और सुधारों का योगदान
- प्राकृतिक संख्या
- Programming Language
- भारत में स्थानीय नगरीय प्रशासन | संरचना, विकास और विशेषताएं
- भारत में पंचायती राज व्यवस्था प्रणाली | संरचना एवं विशेषताएं
- भारतीय संविधान के भाग और अनुच्छेद | Parts and Articles
- भारत का संविधान: स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों का संरक्षण
- भारतीय संविधान की अनुसूचियाँ | Schedules Of the Indian Constitution
- भारतीय संसद | लोक सभा और राज्य सभा | राज्यों में सीटें
- भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची | अनुच्छेद 246