भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य) और अनुच्छेद 152 से 237 के अंतर्गत राज्य विधान मण्डल का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह राज्य की विधायिका, न्यायपालिका, और कार्यपालिका की संरचना और कार्यप्रणाली को संहिताबद्ध करता है। राज्य विधानमण्डल में दो प्रमुख सदन होते हैं: विधान सभा और विधान परिषद। विधान सभा प्रथम और निम्न सदन है, जबकि विधान परिषद एक ऐच्छिक स्थायी सदन है। विधान सभा का कार्यकाल 5 वर्ष होता है और इसमें सदस्य संख्या 60 से 500 तक हो सकती है। वहीं, विधान परिषद की सदस्य संख्या विधानसभा के एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती और न्यूनतम संख्या 40 होती है।
राज्यपाल द्वारा साहित्य, कला, विज्ञान, सहकारी आंदोलन, और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों को विधान परिषद में नामित किया जाता है। विधान सभा और विधान परिषद की कार्यप्रणाली, संरचना और कार्यकाल का विवरण संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लिखित है, जो भारतीय संघीय व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह अनुच्छेद राज्य विधानमण्डल की व्यापक जानकारी प्रदान करता है, जो राज्य की प्रशासनिक और विधायी प्रक्रियाओं को सुचारू रूप से संचालित करने में सहायक है।
राज्य विधान मण्डल | विधान सभा और विधान परिषद
भारतीय संविधान में राज्य विधानमण्डल का विवरण भाग VI (राज्य) और अनुच्छेद 152 से 237 के अंतर्गत दिया गया है। राज्य की विधायिका, न्यायपालिका, और कार्यपालिका के विभिन्न प्रावधान इन अनुच्छेदों में समाहित हैं। राज्य विधानमण्डल को विधान सभा और विधान परिषद के रूप में विभाजित किया गया है। इन दोनों सदनों के बारे में विस्तार से आगे दिया गया है –
विधान सभा
- अनुच्छेद 170 के अंतर्गत विधान सभा का प्रावधान है।
- यह प्रथम और निम्न सदन है।
- सदस्य संख्या:
- अधिकतम: 500
- न्यूनतम: 60 से कम नहीं
- अधिकतम: 403 (उत्तर प्रदेश)
- न्यूनतम: पांडिचेरी – 30, सिक्किम – 32, राजस्थान – 200, उत्तर प्रदेश – 403
- कार्यकाल: 5 वर्ष
- गणपूर्ति (कोरम): विधानसभा कार्यवाही चलाने के लिए आवश्यक सदस्यों का 1/10 भाग।
- पदाधिकारी: अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
- अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बहुमत के आधार पर चुने जाते हैं।
- नवनिर्वाचित विधानसभा की पहली बैठक की अध्यक्षता अस्थाई स्पीकर द्वारा की जाती है, जिसे राज्यपाल नियुक्त करता है।
विधान परिषद
- अनुच्छेद 171 के अंतर्गत विधान परिषद का प्रावधान है।
- यह ऐच्छिक स्थायी सदन है।
- सदस्य संख्या:
- अधिकतम: उस राज्य की विधानसभा के एक तिहाई सदस्य
- न्यूनतम: 40 से कम नहीं
- अधिकतम: उत्तर प्रदेश में 100 सदस्य (वर्तमान में)
- न्यूनतम: जम्मू-कश्मीर में 36 (अपवाद)
- कार्यकाल: स्थायी सदन होने के कारण अनिश्चित (सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है, और प्रत्येक 2 वर्ष में 1/3 सदस्य अपने कार्यकाल को पूरा करते हैं)।
- गणपूर्ति (कोरम): सदन का 1/10 हिस्सा या न्यूनतम 10 सदस्य।
- पदाधिकारी: सभापति और उपसभापति
- सभापति और उपसभापति सदन के सदस्य होते हैं।
- साधारण विधेयक को 4 माह तक रोक सकते हैं।
राज्य विधानमण्डल की संरचना
राज्य का विधान मण्डल राज्यपाल और एक या दो सदनों से मिलकर बनता है। जहां इसके दो सदन हैं, वहां पहला सदन विधान सभा और दूसरा सदन विधान परिषद है। वर्तमान में बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, और जम्मू-कश्मीर में द्विसदनात्मक विधान मण्डल है। विधान परिषद की रचना और उत्सादन राज्य की विधानसभा द्वारा पारित संकल्प के आधार पर संसद द्वारा अधिनियमित किया जाता है।
विधान परिषद की सदस्य संख्या विधानसभा की सदस्य संख्या के एक-तिहाई से अधिक नहीं हो सकती और न्यूनतम संख्या 40 होनी चाहिए। राज्यपाल द्वारा साहित्य, कला, विज्ञान, सहकारी आंदोलन, और सामाजिक सेवा के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों को विधान परिषद में नामित किया जाता है। यह सदस्य कुल संख्या का 1/6 होते हैं। विधान परिषद के 1/3 सदस्य प्रत्येक दो वर्ष पश्चात् अवकाश ग्रहण कर लेते हैं और उनके स्थान पर नए सदस्यों का चुनाव होता है।
विधान सभा का कार्यकाल और संरचना
विधान सभा, जिसे राज्य की निचली सदन भी कहा जाता है, राज्य विधानमंडल का प्रमुख घटक है। यह राज्य की जन प्रतिनिधि सभा होती है, जो प्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से चुनी जाती है। विधान सभा की कुल सदस्य संख्या अधिकतम 500 और न्यूनतम 60 हो सकती है। राज्यपाल एंग्लो-इंडियन समुदाय से एक सदस्य को विधान सभा में नामित कर सकता है। विधान सभा का कार्यकाल 5 वर्ष है, लेकिन राज्यपाल इसे 5 वर्ष से पूर्व भी भंग कर सकता है। आपात की उद्घोषणा के दौरान संसद विधि द्वारा इस अवधि को एक वर्ष तक बढ़ा सकती है और उद्घोषणा की समाप्ति के बाद अधिकतम 6 माह तक बढ़ा सकती है।
विधान सभा के अपने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष होते हैं। विधान परिषद के अपने सभापति और उपसभापति होते हैं। विधान मण्डल के किसी सदस्य की योग्यता और अयोग्यता संबंधी विवाद का अंतिम निर्णय राज्यपाल चुनाव आयोग के परामर्श से करता है। इसके संरचना और कार्यकाल निम्नलिखित बिंदुओं में विस्तार से वर्णित हैं –
विधान सभा की संरचना
- सदस्यों की संख्या:
- अधिकतम संख्या: विधान सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 500 हो सकती है।
- न्यूनतम संख्या: विधान सभा के सदस्यों की न्यूनतम संख्या 60 होती है। हालांकि, कुछ छोटे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यह संख्या इससे कम हो सकती है।
- उदाहरण: पुदुचेरी (30 सदस्य), सिक्किम (32 सदस्य), राजस्थान (200 सदस्य), उत्तर प्रदेश (403 सदस्य)।
- चयन प्रक्रिया:
- विधान सभा के सदस्य प्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से चुने जाते हैं।
- प्रत्येक सदस्य एक निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है और जनता के वोटों से चुना जाता है।
- पदाधिकारी:
- अध्यक्ष और उपाध्यक्ष: विधान सभा के सदस्य अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं। नवनिर्वाचित विधानसभा की पहली बैठक की अध्यक्षता अस्थाई अध्यक्ष (प्रोटेम स्पीकर) द्वारा की जाती है, जिसे राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है।
- निर्णायक मत: अध्यक्ष के पास निर्णायक मत का अधिकार होता है, जिसे वह सदन में मत विभाजन की स्थिति में प्रयोग कर सकता है।
विधान सभा का कार्यकाल
- कार्यकाल:
- विधान सभा का सामान्य कार्यकाल 5 वर्ष होता है। हालांकि, यह कार्यकाल आपातकाल की स्थिति में संसद द्वारा एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, लेकिन यह बढ़ाव आपातकाल समाप्त होने के 6 महीने बाद तक ही वैध होता है।
- विधान सभा का कार्यकाल समाप्त होने से पहले भी राज्यपाल द्वारा विधानसभा को भंग किया जा सकता है।
- सदस्यों की योग्यता:
- विधान सभा के सदस्य की न्यूनतम आयु 25 वर्ष होनी चाहिए।
- सदस्य को भारतीय नागरिक होना चाहिए और वह मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए।
विधान सभा की विशेषताएँ और शक्तियाँ
- विधायी शक्तियाँ:
- विधान सभा राज्य की विधायिका का प्रमुख अंग है और इसे राज्य के विषयों पर विधि निर्माण का अधिकार होता है।
- सभी विधेयक पहले विधान सभा में प्रस्तुत होते हैं और यहां से पारित होने के बाद विधान परिषद् (यदि है) या सीधे राज्यपाल को भेजे जाते हैं।
- वित्तीय शक्तियाँ:
- वित्तीय विधेयक केवल विधान सभा में ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं। विधान परिषद् के पास वित्तीय विधेयकों को संशोधित करने का अधिकार नहीं होता।
- विधान सभा राज्य के बजट को पारित करती है और राज्य की वित्तीय स्थिति पर नियंत्रण रखती है।
- प्रशासनिक शक्तियाँ:
- विधान सभा राज्य सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की समीक्षा करती है।
- मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होते हैं और उन्हें विधान सभा का विश्वास प्राप्त होना अनिवार्य है।
- धन विधेयक:
- धन विधेयक केवल विधान सभा में प्रस्तुत किए जा सकते हैं। विधान परिषद् इसे केवल 14 दिनों तक ही रोक सकती है।
विधान सभा में विशेष प्रावधान
- गणपूर्ति:
- विधान सभा की कार्यवाही चलाने के लिए आवश्यक सदस्यों की न्यूनतम संख्या सदन का 1/10 भाग होती है।
- विधान सभा की समिति:
- विधान सभा विभिन्न समितियों के माध्यम से विधायी और प्रशासनिक कार्यों की निगरानी करती है।
- इनमें प्रमुख समितियां होती हैं: लोक लेखा समिति, प्राक्कलन समिति, आश्वासन समिति आदि।
विधान सभा और उनमे सदस्यों की संख्या
भारत के सभी राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों दिल्ली और पुडुचेरी में विधानसभाएँ हैं। बाकी 5 केंद्र शासित प्रदेश (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, तथा लद्दाख) सीधे भारत की संघ सरकार द्वारा शासित होते हैं और उनमें कोई विधायी निकाय नहीं है। इन विधानसभाओं के नाम और उनमें सदस्यों की संख्या निम्नलिखित तालिका में दी गई है –
राज्य / केंद्र शासित प्रदेश | विधान सभा के सदस्यों की संख्या |
---|---|
आंध्र प्रदेश | 175 |
अरुणाचल प्रदेश | 60 |
असम | 126 |
बिहार | 243 |
छत्तीसगढ़ | 90 |
गोवा | 40 |
गुजरात | 182 |
हरियाणा | 90 |
हिमाचल प्रदेश | 68 |
झारखंड | 81 |
कर्नाटक | 224 |
केरल | 140 |
मध्य प्रदेश | 230 |
महाराष्ट्र | 288 |
मणिपुर | 60 |
मेघालय | 60 |
मिजोरम | 40 |
नागालैंड | 60 |
ओडिशा | 147 |
पंजाब | 117 |
राजस्थान | 200 |
सिक्किम | 32 |
तमिलनाडु | 234 |
तेलंगाना | 119 |
त्रिपुरा | 60 |
उत्तर प्रदेश | 403 |
उत्तराखंड | 70 |
पश्चिम बंगाल | 294 |
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह | 0 (विधानसभा नहीं है) |
चंडीगढ़ | 0 (विधानसभा नहीं है) |
दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव | 0 (विधानसभा नहीं है) |
दिल्ली | 70 |
जम्मू और कश्मीर | 90 (विधानसभा अभी पुनर्गठित नहीं हुई) |
लद्दाख | 0 (विधानसभा नहीं है) |
लक्षद्वीप | 0 (विधानसभा नहीं है) |
पुदुचेरी | 33 |
टिप्पणी: जम्मू और कश्मीर की विधानसभा को पुनर्गठन के बाद से फिर से सक्रिय नहीं किया गया है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, तथा लद्दाख में विधानसभाएँ नहीं हैं।
विधान परिषद् का कार्यकाल और संरचना
विधान परिषद्, जिसे राज्य का ऊपरी सदन भी कहा जाता है, एक स्थायी सदन है जिसका विघटन नहीं होता। इसके सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है, और प्रत्येक 2 वर्ष में एक तिहाई सदस्य अपना कार्यकाल पूरा कर अवकाश ग्रहण करते हैं। विधान परिषद् के सदस्यों की संख्या विधानसभा के सदस्यों की संख्या के एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती और न्यूनतम 40 होनी चाहिए। विधान परिषद् के सदस्यों का चयन अप्रत्यक्ष निर्वाचन और मनोनयन के माध्यम से होता है।
इनमें 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाते हैं, जबकि शेष 5/6 सदस्य निर्वाचक मंडलों द्वारा चुने जाते हैं। निर्वाचित सदस्यों में 1/3 सदस्य स्थानीय निकायों से, 1/3 सदस्य विधान सभा से, 1/12 सदस्य स्नातकों से, और 1/12 सदस्य शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों से चुने जाते हैं। विधान परिषद् राज्य के विधायी प्रक्रियाओं की समीक्षा करने और संशोधन प्रस्तावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसकी संरचना और कार्यकाल निम्नलिखित बिंदुओं में विस्तृत रूप से वर्णित है –
विधान परिषद् की संरचना
- सदस्यों की संख्या:
- विधान परिषद् के सदस्यों की संख्या संबंधित राज्य की विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या के एक-तिहाई से अधिक नहीं हो सकती।
- न्यूनतम संख्या 40 होती है।
- कुछ राज्यों में अपवादस्वरूप संख्या भिन्न हो सकती है, जैसे जम्मू-कश्मीर में 36 सदस्य।
- चयन प्रक्रिया:
- 1/3 सदस्य: स्थानीय निकायों (नगरपालिका, जिला परिषद आदि) द्वारा निर्वाचित।
- 1/3 सदस्य: राज्य की विधान सभा द्वारा निर्वाचित।
- 1/12 सदस्य: स्नातकों के निर्वाचक मण्डल द्वारा निर्वाचित।
- 1/12 सदस्य: शिक्षकों के निर्वाचक मण्डल द्वारा निर्वाचित (माध्यमिक विद्यालय से निचले स्तर के शिक्षक नहीं हो सकते)।
- 1/6 सदस्य: राज्यपाल द्वारा मनोनीत, जो साहित्य, कला, विज्ञान, सहकारी आंदोलन, और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखते हैं।
विधान परिषद् का कार्यकाल
- स्थायी सदन:
- विधान परिषद् एक स्थायी सदन है, जिसे भंग नहीं किया जा सकता।
- सदस्यों का कार्यकाल:
- प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष होता है।
- हर दो वर्ष में परिषद के एक तिहाई सदस्य अवकाश ग्रहण करते हैं, और उनके स्थान पर नए सदस्यों का चुनाव होता है।
विधान परिषद् के पदाधिकारी
- सभापति और उपसभापति:
- विधान परिषद् के सदस्यों में से एक सभापति और एक उपसभापति का चुनाव किया जाता है।
- सभापति और उपसभापति सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
विधान परिषद् के विशेषाधिकार और शक्तियाँ
- विधायी शक्तियाँ:
- विधान परिषद् साधारण विधेयकों को अधिकतम 3 माह तक रोक सकती है।
- धन विधेयकों को अधिकतम 14 दिन तक रोक सकती है।
- संविधान में संशोधन:
- विधान परिषद् राज्य विधानमंडल की संवैधानिक प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा है और संविधान संशोधन विधेयकों पर अपनी सिफारिशें दे सकती है।
विधान परिषद् राज्य की विधायिका का एक महत्वपूर्ण अंग है जो स्थायी सदन के रूप में कार्य करता है। इसकी संरचना, कार्यकाल और विशेषाधिकार इसे राज्य प्रशासनिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाते हैं। विधान परिषद् का मुख्य उद्देश्य राज्य की विधायिका को स्थायित्व और निरंतरता प्रदान करना है, जिससे विधायी कार्यों का सुचारू और संतुलित संचालन सुनिश्चित हो सके।
भारत के विधान परिषद् वाले राज्य और उनमे सदस्यों की संख्या
भारत में वर्तमान में छह राज्यों में विधान परिषदें हैं। इन विधान परिषदों के नाम और उनमें सदस्यों की संख्या निम्नलिखित तालिका में दी गई है –
राज्य | विधान परिषद के सदस्यों की संख्या |
---|---|
उत्तर प्रदेश | 100 |
बिहार | 75 |
महाराष्ट्र | 78 |
कर्नाटक | 75 |
आंध्र प्रदेश | 58 |
तेलंगाना | 40 |
टिप्पणी: विधान परिषदों की सदस्यों की संख्या समय-समय पर बदल सकती है और राज्य की विधानसभाओं द्वारा प्रस्ताव पारित कर नई विधान परिषदों की स्थापना की जा सकती है। वर्तमान में छह राज्यों में ही विधान परिषदें हैं, और यह संख्या राज्यों की आवश्यकता और विधायी निर्णयों पर निर्भर करती है।
विधान परिषद की कार्यप्रणाली
विधान परिषद धन विधेयकों को 14 दिन तक रोक सकती है और साधारण विधेयकों को केवल तीन मास तक रोक सकती है। किसी विधेयक पर विधान सभा और विधान परिषद में गतिरोध उत्पन्न होने पर दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन का प्रावधान नहीं है। ऐसी स्थिति में विधान सभा की इच्छा मान्य होती है। यदि परिषद में कोई विधेयक प्रस्तुत किया जाता है और पारित कर विधान सभा को प्रेषित किया जाता है, और विधान सभा उसे पारित नहीं करती है, तो वह वही समाप्त हो जाता है।
विधान सभा और विधान परिषद् का तुलनात्मक विश्लेषण
विशेषताएँ | विधान सभा | विधान परिषद् |
---|---|---|
संरचना | प्रत्यक्ष निर्वाचन से चुने गए सदस्य | अप्रत्यक्ष निर्वाचन और मनोनयन से चुने गए सदस्य। |
सदस्य संख्या | अधिकतम 500, न्यूनतम 60 | विधानसभा के एक तिहाई से अधिक नहीं, न्यूनतम 40 सदस्य। |
कार्यकाल | 5 वर्ष | स्थायी सदन, सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष, प्रत्येक 2 वर्ष में 1/3 सदस्य अवकाश ग्रहण करते हैं। |
अध्यक्ष | अध्यक्ष और उपाध्यक्ष द्वारा संचालित | सभापति और उपसभापति द्वारा संचालित। |
वित्तीय विधेयक | वित्तीय विधेयक केवल विधान सभा में प्रस्तुत किया जा सकता है। | वित्तीय विधेयक को केवल 14 दिनों तक रोक सकती है। |
प्रमुख राज्य | सभी राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में | बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना में विधान परिषद् मौजूद है। |
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