भारतीय संविधान में राष्ट्रपति का प्रावधान और उसके कर्त्तव्य

इस आर्टिकल में भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों के अंतर्गत राष्ट्रपति का पद, उनकी शक्तियों और अधिकारों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसमें अनुच्छेद 52 से लेकर 360 तक की जानकारी दी गई है, जिसमें राष्ट्रपति की कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्यायिक और आपातकालीन शक्तियों का उल्लेख है। राष्ट्रपति के निर्वाचन की प्रक्रिया, योग्यता, कार्यकाल, पुनर्निर्वाचन की योग्यता और शपथ ग्रहण की विधि का विस्तार से वर्णन किया गया है। राष्ट्रपति के विभिन्न प्रकार की वीटो शक्तियों और अध्यादेश जारी करने के अधिकार की भी चर्चा की गई है।

इसके अलावा, आपातकालीन स्थितियों में राष्ट्रपति की भूमिका और अधिकार, जैसे राष्ट्रीय आपातकाल, राज्य आपातकाल और वित्तीय आपातकाल की प्रक्रियाएँ और उनके प्रभाव का विश्लेषण किया गया है। यह आर्टिकल संविधान के तहत राष्ट्रपति की भूमिका को समझने के लिए एक संपूर्ण गाइड है, जो भारतीय लोकतंत्र की संरचना और संवैधानिक संतुलन को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करता है।

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राष्ट्रपति का पद और उसकी शक्तियाँ

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 52 के तहत राष्ट्रपति के पद का प्रावधान किया गया है। अनुच्छेद 53 के अनुसार, संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी, जिसका प्रयोग वह प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार करेगा।

अनुच्छेद 52 – राष्ट्रपति पद का प्रावधान

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 52 में राष्ट्रपति पद की स्थापना की गई है, जो संघ की कार्यपालिका शक्ति का प्रमुख केंद्र है। राष्ट्रपति का पद भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद के रूप में परिभाषित किया गया है।

अनुच्छेद 53 – कार्यपालिका शक्ति

अनुच्छेद 53 के अनुसार, संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है, जिसका प्रयोग वह प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह पर करता है। राष्ट्रपति भारतीय राज्य का सांकेतिक प्रमुख होता है, लेकिन वास्तविक शक्तियाँ प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के पास होती हैं।

राष्ट्रपति का निर्वाचन

अनुच्छेद 54 – राष्ट्रपति का निर्वाचक मण्डल

अनुच्छेद 54 में राष्ट्रपति का निर्वाचक मंडल शामिल होता है, जिसमें संसद और विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं। अर्थात राष्ट्रपति का निर्वाचन संसद और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है। 70वें संविधान संशोधन 1992 द्वारा दिल्ली और पांडिचेरी को भी इसके अंतर्गत शामिल किया गया है। राष्ट्रपति के निर्वाचन में मनोनीत तथा विधान परिषदों के सदस्य भाग नहीं लेते हैं।

अनुच्छेद 55 – राष्ट्रपति निर्वाचन की विधि

राष्ट्रपति का निर्वाचन एकल-संक्रमणीय अनुपातिक मत पद्धति से होता है, जिसे थाॅमस हेयर ने प्रस्तुत किया था, इसलिए इसे हेयर पद्धति भी कहा जाता है। इस पद्धति में मतदाताओं की प्राथमिकताओं के आधार पर उम्मीदवारों को चुना जाता है। प्रत्येक विधायक का मत मूल्य उसके राज्य की जनसंख्या के अनुपात में निर्धारित होता है।

राष्ट्रपति के निर्वाचन में एक विधायक का मत मूल्य उस राज्य की कुल जनसंख्या (जनगणना 1971) अनुपात उस राज्य की विधानसभा के कुल निर्वाचित सदस्यों की संख्या भाग 1000 होती है। निर्वाचन की विधि के तहत भारत में अनुपातिक समानता को रखा गया है। 84वें संविधान संशोधन 2001 के तहत जनसंख्या को अनुपात 2026 तक अपरिवर्तित रहेगा।

राष्ट्रपति का कार्यकाल और योग्यता

अनुच्छेद 56 – राष्ट्रपति का कार्यकाल

अनुच्छेद 56 के अनुसार, राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष होता है। राष्ट्रपति को अनुच्छेद 61 के तहत महाभियोग के माध्यम से कार्यकाल से पूर्व हटाया जा सकता है या वह अपना त्याग पत्र उपराष्ट्रपति को दे सकता है। उपराष्ट्रपति इसकी सूचना लोकसभा अध्यक्ष को देता है।

अनुच्छेद 57 – पुनर्निर्वाचन की योग्यता

अनुच्छेद 57 के तहत, राष्ट्रपति पुनर्निर्वाचित होने की योग्यता रखते है और वे जितनी बार चाहें, चुनाव में भाग ले सकते हैं।

अनुच्छेद 58 – राष्ट्रपति बनने की योग्यता

अनुच्छेद 58 के अनुसार, राष्ट्रपति बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिए:

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. उसकी आयु 35 वर्ष हो।
  3. वह किसी लाभ के पद पर कार्यरत न हो। उपराष्ट्रपति, राज्यपाल, मंत्री लाभ के पद नहीं हैं।
  4. उसमें लोकसभा सदस्य बनने की योग्यता हो।

राष्ट्रपति पद के लिए शर्तें

अनुच्छेद 59 – राष्ट्रपति पद की शर्तें

अनुच्छेद 59 के अनुसार, राष्ट्रपति पद के लिए निम्नलिखित शर्तें होती हैं:

  1. वह शासकीय आवास का प्रयोग करेगा।
  2. पद अवधि के दौरान उसके वेतन भत्तों में कटौती संभव नहीं है।
  3. उसे वेतन भारत की संचित निधि से दिया जाता है।

राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए 50 प्रस्तावक व 50 अनुमोदक आवश्यक हैं। जमानत राशि 15,000 रुपये है। निर्वाचन की अवधि दो सप्ताह या पंद्रह दिन होती है।

राष्ट्रपति की शपथ और महाभियोग

अनुच्छेद 60 के तहत राष्ट्रपति की शपथ सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या अनुपस्थिति में वरिष्ठतम न्यायाधीश द्वारा दिलाई जाती है। अनुच्छेद 61 के अनुसार, 1/4 सदस्यों के प्रस्ताव पर 14 दिन की पूर्व सूचना राष्ट्रपति को देनी होती है। ऐसा प्रस्ताव संसद के 2/3 बहुमत से प्रस्तावित है। अभी तक किसी राष्ट्रपति पर महाभियोग प्रस्ताव नहीं लाया गया है।

अनुच्छेद 60 – राष्ट्रपति की शपथ

राष्ट्रपति की शपथ सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा दिलाई जाती है, और उनकी अनुपस्थिति में वरिष्ठतम न्यायाधीश द्वारा।

अनुच्छेद 61 – महाभियोग प्रक्रिया

महाभियोग एक न्यायिक प्रक्रिया है जो राष्ट्रपति पर संविधान के उल्लंघन का आरोप लगने पर चलाई जाती है। 1/4 सदस्यों के प्रस्ताव पर 14 दिन की पूर्व सूचना राष्ट्रपति को देनी होती है, और संसद के 2/3 बहुमत से इसे पारित किया जाता है। अब तक किसी राष्ट्रपति पर महाभियोग प्रस्ताव नहीं लाया गया है।

महाभियोग की प्रक्रिया

महाभियोग एक न्यायिक प्रक्रिया है जो संसद में कुछ विशेष पदों पर आसीन व्यक्तियों के खिलाफ संविधान के उल्लंघन का आरोप लगने पर चलाई जाती है। इन पदों में राष्ट्रपति, सुप्रीमकोर्ट व हाईकोर्ट के न्यायाधीश, भारत के निर्वाचन आयुक्त आदि शामिल हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 56 के अनुसार, महाभियोग की प्रक्रिया राष्ट्रपति को हटाने के लिए प्रयुक्त की जा सकती है। न्यायाधीशों पर महाभियोग का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में मिलता है। इसके तहत सुप्रीमकोर्ट या हाईकोर्ट के किसी न्यायाधीश पर कदाचार या अक्षमता के लिए महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा सकता है।

राष्ट्रपति पद की आकस्मिक रिक्तता

अनुच्छेद 62

अनुच्छेद 62 के अनुसार, राष्ट्रपति पद की आकस्मिक रिक्तता की स्थिति में उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के कार्य को संभालते हैं।

राष्ट्रपति की व्यवस्थापिका शक्तियाँ

राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग होते हैं और अनुच्छेद 79 के अनुसार संसद के तीन हिस्सों (राष्ट्रपति, लोकसभा, और राज्यसभा) में से एक होते हैं। वे राज्यसभा में 12 सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं (अनुच्छेद 80(2)) और लोकसभा में दो एंग्लो-इंडियन सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं (अनुच्छेद 331)।

राष्ट्रपति संसद का सत्र आहुत, सत्रावसान और भंग करने का अधिकार रखते हैं (अनुच्छेद 85) और संसद के प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र को अभिभाषित करते हैं (अनुच्छेद 87)। राष्ट्रपति प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति भी करते हैं (अनुच्छेद 99) और धनविधेयक उनके पूर्व अनुमति से लोकसभा में रखा जाता है (अनुच्छेद 110)।

  1. अनुच्छेद 79 के अंतर्गत राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है।
  2. अनुच्छेद 80(2) के तहत राष्ट्रपति राज्य सभा में 12 सदस्यों को मनोनीत करता है।
  3. अनुच्छेद 331 के तहत दो सदस्यों को (एंग्लो इंडियन) लोक सभा में मनोनीत करता है।
  4. अनुच्छेद 85 के तहत राष्ट्रपति संसद का सत्र आहूत, सत्रावसान और भंग करने का अधिकार रखता है।
  5. अनुच्छेद 86 के तहत राष्ट्रपति प्रत्येक सत्र के प्रारम्भ में और नवगठित लोकसभा के पहले सत्र में अभिभाषण करता है।
  6. अनुच्छेद 87 के तहत राष्ट्रपति प्रत्येक वर्ष का प्रथम सत्र अभिभाषित करता है। इसका भाषण मंत्रिमंडल द्वारा तैयार किया जाता है।
  7. अनुच्छेद 99 के तहत राष्ट्रपति प्रोटेम स्पीकर (अस्थायी अध्यक्ष) की नियुक्ति करता है।
  8. अनुच्छेद 110 के तहत धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से लोकसभा में रखा जाता है।
  9. अनुच्छेद 108 के तहत संसद के संयुक्त अधिवेशन को बुलाने का अधिकार राष्ट्रपति को होता है।

कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियाँ

अनुच्छेद 53 के तहत संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है। अनुच्छेद 74 के तहत मंत्रीपरिषद का वर्णन दिया गया है। राष्ट्रपति प्रधानमंत्री, महान्यायवादी, नियंत्रक व महालेखा परीक्षक, राज्यपाल और राष्ट्रीय वित्त आयोग के सदस्यों की नियुक्ति करता है। अनुच्छेद 338 और 340 के तहत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी आयोग की नियुक्ति करने का अधिकार भी राष्ट्रपति के पास होता है।

सैन्य शक्तियाँ

राष्ट्रपति सेना का सर्वोच्च कमाण्डर होता है और सैन्य शक्तियों का प्रयोग करता है।

न्यायिक शक्तियाँ

अनुच्छेद 124 के तहत, राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। अनुच्छेद 216 के तहत उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को माफी प्रदान करने का अधिकार है, जिसमें वह मृत्युदण्ड को पूर्णतः माफ कर सकता है, सजा की अवधि बदल सकता है तथा प्रकृति को परिवर्तित कर सकता है।

अध्यादेश जारी करने की शक्ति

अनुच्छेद 123 के तहत राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति होती है। जब संसद सत्र नहीं चल रहा हो और ऐसे कानून बनाने की आवश्यकता पड़े जो अत्यंत आवश्यक हो, तो राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है। इसमें संसद के कानून के बराबर शक्ति होती है।

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ

भाग 18 के तहत, अनुच्छेद 352 में राष्ट्र आपातकाल का प्रावधान है। इसे युद्ध, युद्ध जैसे वातावरण या आन्तरिक अशान्ति के कारण लागू किया जा सकता है। 44वें संविधान संशोधन 1978 के तहत ‘आन्तरिक अशान्ति’ को हटा कर ‘सशस्त्र विद्रोह’ रखा गया है। आपातकाल की सिफारिश मंत्रिपरिषद की लिखित होती है और एक माह में संसद के दो तिहाई बहुमत से पारित होना आवश्यक है। इसे एक बार में 6 माह के लिए लगाया जा सकता है।

अब तक तीन बार राष्ट्र आपातकाल लगाया गया है:

  1. अक्टूबर 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय (पं. जवाहरलाल नेहरू)
  2. दिसंबर 1971 में भारत-पाकिस्तान दूसरा युद्ध (वी. वी. गिरी)
  3. 3 जुलाई 1972 को आन्तरिक आपातकाल (इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया, जो मार्च 1977 तक चला)

राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352)

राष्ट्रीय आपातकाल युद्ध, बाहरी आक्रमण, या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में लगाया जा सकता है। यह आपातकाल अधिकतम 6 माह के लिए होता है, लेकिन संसद के 2/3 बहुमत से इसे बढ़ाया जा सकता है। भारत में अब तक तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल लगाया गया है: अक्टूबर 1962 में चीन के साथ युद्ध के समय, दिसंबर 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय, और जून 1975 में आंतरिक अशांति के समय।

राज्य आपातकाल (अनुच्छेद 356)

राज्य आपातकाल किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल होने की स्थिति में लगाया जा सकता है। इसे अधिकतम 6 माह के लिए लागू किया जा सकता है, और लगातार तीन वर्षों तक बढ़ाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश और केरल जैसे राज्यों में इसे कई बार लागू किया गया है।

वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)

वित्तीय आपातकाल की स्थिति में राष्ट्रपति संघ और राज्यों के वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने के लिए कदम उठा सकते हैं। भारत में अभी तक इसे कभी लागू नहीं किया गया है।

राज्यों में राष्ट्रपति शासन

अनुच्छेद 356 के तहत, राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। इसकी सिफारिश मंत्रीपरिषद की लिखित होती है। राज्यों में शासन संविधानिक प्रक्रिया से नहीं चलने की स्थिति में राज्यपाल की सिफारिश या राष्ट्रपति स्वयं घोषणा कर सकता है। इसे दो माह में संसद के 2/3 बहुमत से पारित होना आवश्यक है और एक बार में 6 माह के लिए तथा लगातार तीन वर्ष तक लगाया जा सकता है।

राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ

राष्ट्रपति को संसद द्वारा पारित किसी भी विधेयक को कानून में बदलने का अधिकार है (अनुच्छेद 111)। इसमें तीन प्रकार की वीटो शक्तियाँ होती हैं: पूर्ण वीटो, सस्पेंसिव वीटो, और पॉकेट वीटो। राष्ट्रपति को धन विधेयक पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य होता है, लेकिन अन्य विधेयकों पर वे अपनी सहमति देने से इनकार कर सकते हैं या पुनर्विचार के लिए संसद को लौटा सकते हैं।

वीटो शक्ति

अनुच्छेद 111 के तहत राष्ट्रपति को किसी विधेयक के हस्ताक्षर के बाद कानून बनाने का अधिकार है। इसमें तीन प्रकार की वीटो शक्ति होती है:

  1. पूर्ण वीटो
  2. अत्यान्तिक वीटो
  3. पॉकेट वीटो

भारत के राष्ट्रपति (1950-Present)

राष्ट्रपति का प्रावधान और उसके कर्त्तव्य का संक्षिप्त विवरण

अनुच्छेदविवरण
52राष्ट्रपति पद का प्रावधान।
53संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी जिसका प्रयोग वह प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार करेगा।
54राष्ट्रपति का निर्वाचक मंडल: संसद और विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं। दिल्ली और पांडिचेरी को शामिल किया गया (70 वां संविधान संशोधन 1992)।
55निर्वाचन की विधि: एकल संक्रमणीय अनुपातिक मत पद्धति (हेयर पद्धति)।
56राष्ट्रपति का कार्यकाल: 5 वर्ष या महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है।
57राष्ट्रपति पुनर्निर्वाचित होने की योग्यता।
58राष्ट्रपति बनने की योग्यता: भारतीय नागरिक, आयु 35 वर्ष, लाभ के पद पर नहीं।
59राष्ट्रपति पद के लिए शर्तें: शासकीय आवास, वेतन भत्तों में कटौती नहीं।
60राष्ट्रपति की शपथ: सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा।
61महावियोग: 1/4 सदस्यों के प्रस्ताव पर, संसद के 2/3 बहुमत से।
62राष्ट्रपति पद की आकस्मिक रिक्तता।
79राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है।
80(2)राष्ट्रपति राज्य सभा में 12 सदस्यों को मनोनीत करता है।
85संसद का सत्र आहुत, सत्रावसान और भंग करने का अधिकार।
86प्रत्येक सत्र के प्रारंभ में संसद को अभिभाषित करता है।
87संसद का प्रत्येक वर्ष का प्रथम सत्र राष्ट्रपति अभिभाषित करता है।
99प्रोटेम स्पीकर (अस्थायी अध्यक्ष) की नियुक्ति।
110धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से लोकसभा में रखा जाता है।
108संसद के संयुक्त अधिवेशन को बुलाने का अधिकार।
74मंत्रीपरिषद का वर्णन।
75प्रधानमंत्री की नियुक्ति।
76महान्यायवादी की नियुक्ति।
148नियंत्रक व महालेखा की नियुक्ति।
155राज्यपाल की नियुक्ति।
280राष्ट्रीय वित्त आयोग की नियुक्ति।
338अनुसुचित जाति, अनुसुचित जनजाति आयोग की नियुक्ति।
340ओ. बी. सी. आयोग की नियुक्ति।
124सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति।
216उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति।
72माफी प्रदान करने का अधिकार।
123अध्यादेश जारी करने की शक्ति।
356राज्यों में राष्ट्रपति शासन: सिफारिश मंत्रिपरिषद की लिखित, संसद के 2/3 बहुमत से पारित।
360वित्तीय आपातकाल।
111राष्ट्रपति की वीटो शक्तियाँ: पूर्ण वीटो, अत्यातिक वीटो, पाॅकिट वीटो।
भाग 18राष्ट्र आपातकाल: कारण – युद्ध, आंतरिक अशांति (सशस्त्र विद्रोह), सिफारिश मंत्रिपरिषद की लिखित, संसद के 2/3 बहुमत से पारित।

भारतीय संविधान में राष्ट्रपति का पद अत्यंत महत्वपूर्ण है। राष्ट्रपति को विभिन्न प्रकार की शक्तियाँ और कर्तव्य दिए गए हैं, जिनका उद्देश्य देश की संवैधानिक व्यवस्था को बनाए रखना है। राष्ट्रपति का निर्वाचन, कार्यकाल, और उसकी शक्तियाँ संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में विस्तृत रूप से वर्णित हैं। हालांकि वे अधिकांश समय प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करते हैं। राष्ट्रपति का पद भारतीय लोकतंत्र की संरचना का एक अनिवार्य और अभिन्न हिस्सा है, जो संवैधानिक संतुलन और शासन की स्थिरता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

Polity – KnowledgeSthali


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