रुकुनुद्दीन फिरोजशाह | 1236 ई. | Ruknuddin Firoz Shah

रुकुनुद्दीन फिरोजशाह जिसे रुक्न-उद-दीन फ़िरोज़ एवं रुक्न अल-दीन फ़िरोज़ के रूप में भी जाना जाता है, वह 1236 में दिल्ली सल्तनत का शासक बना। रुकनुद्दीन फिरोज शाह दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठने वाला चौथा सुल्तान था। परन्तु वह कुछ समय के लिए ही (लगभग सात महीने के लिए) सिंहासन पर बैठ पाया। दिल्ली की गद्दी पर बैठने से पूर्व वह दिल्ली सल्तनत के अंतर्गत आने वाले बदायूँ और लाहौर प्रांत का प्रशासक था। फिर उसने अपने पिता इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद सिंहासन संभाला। उसके पिता इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत के गुलाम वंश (मामलुक वंश) के शासक थे, जिन्होंने उत्तरी भारत में दिल्ली सल्तनत को एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में स्थापित किया था।

लेकिन, रुकनुद्दीन फिरोजशाह एक योग्य और विलास प्रिय शासक साबित हुआ। रुकनुद्दीन फिरोज शाह ने अपना समय मौज-मस्ती और भोग विलास में व्यतीत किया। उसने प्रशासन का नियंत्रण अपनी मां शाह तुर्कान को सौंप रखा था। कुप्रशासन के कारण उसके खिलाफ विद्रोह हुआ, और रुकुनुद्दीन फिरोज की मां शाह तुर्कान की हत्या कर दी गयी, तथा रुकुनुद्दीन फिरोज को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। बाद में उसकी भी हत्या कर दी गयी। इसके पश्चात सरदारों और सेना ने उसकी सौतेली बहन रजिया को गद्दी पर बैठाया।

रुकुनुद्दीन फिरोजशाह का संक्षिप्त परिचय

शासनअप्रैल/मई 1236 – 19 नवंबर 1236
शासन अवधिलगभग सात महीने (6 महीने व 28 दिन)
पूर्ववर्तीइल्तुतमिश
उत्तराधिकारीरजिया सुल्ताना
जन्म
मृत्यु19 नवंबर 1236
दफ़नसुल्तान घरी , दिल्ली
राजवंशमामलुक वंश अथवा गुलाम वंश (दिल्ली सल्तनत)
पिताइल्तुतमिश
माँशाह तुर्कान
धर्मइसलाम

रुकुनुद्दीन फिरोज शाह का प्रारंभिक जीवन

रुकुनुद्दीन फिरोजशाह | 1236 ई.

रुकुनुद्दीन फिरोजशाह का जन्म दिल्ली में सुल्तान इल्तुतमिश और उनकी पत्नी ख़ुदावंदा-ए-जहाँ शाह तुर्कान के घर में हुआ था। इल्तुतमिश की पत्नी ख़ुदावंदा-ए-जहाँ शाह तुर्कान मूलतः एक तुर्की दासी थी। शाह तुर्कान अपने पुत्र रुकुनुद्दीन फिरोजशाह को गद्दी पर बैठाना चाहती थी। परन्तु रुकुनुद्दीन फिरोज शाह इसके लिए योग्य नहीं था, यह बात उसके पिता इल्तुतमिश को भली भांति मालूम थी। शाह तुर्कान के जिद करने के कारण इल्तुतमिश ने रुकुनुद्दीन शाह को 1228 में बदायूँ का सूबेदार नियुक्त कर दिया। पुनः शाह तुर्कान ने इल्तुतमिश से 1233 में लाहौर का प्रशासन भी अपने बेटे रुकुनुद्दीन को दिला दिया।

इल्तुतमिश ने अपने सबसे बड़े बेटे नसीरुद्दीन महमूद को अपना उत्तराधिकारी बनाया था, लेकिन उनकी अकस्मात मृत्यु हो गई। 1231 में ग्वालियर अभियान के दौरान, इल्तुतमिश ने अपनी बेटी रजिया को दिल्ली के प्रशासन के प्रभारी के रूप में नियुक्त किया। रजिया ने प्रशासन को अच्छी तरह संभाला। जिससे खुश होकर इल्तुतमिश ने उसे उत्तराधिकारी के रूप में नामित कर दिया।

परन्तु अपनी पत्नी शाह तुर्कान के दबाव और सरदारों के समर्थन के कारण इल्तुतमिश ने रुकनुद्दीन को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने के लिए सहमति दी। हालाँकि अपने अंतिम दिनों में इल्तुतमिश ने रजिया को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। परन्तु, इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद सरदारों और शाह तुर्कान ने मिलकर रुकनुद्दीन फिरोज शाह को अपना उत्तराधिकारी स्वीकार कर लिया, और उसे दिल्ली की गद्दी पर बैठाया गया।

रुकुनुद्दीन फिरोज शाह का शासन

रुकनुद्दीन अपने पिता इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद 1236 में गद्दी पर बैठा। सैफुद्दीन हसन कार्लुघ को लगा कि इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद भारत कमजोर हो चुका है। इसने इस अवसर का लाभ उठा कर भारत पर आक्रमण करने का निर्णय लिया। परन्तु, इल्तुतमिश के एक तुर्क गुलाम अधिकारी सैफुद्दीन ऐबक ने उसे पराजित कर दिया।

रुकनुद्दीन भोग-विलास में लिप्त रहता था। वह अपना समय और राज्य का धन मौज-मस्ती में खर्च किया और प्रशासन का नियंत्रण अपनी मां शाह तुर्कान को सौंप दिया। उसे हाथियों की सवारी करना और महावतों का समर्थन करना पसंद था। रुकुनुद्दीन फिरोज शाह ने बाजारों में सोने के सिक्के बिखेरने का आनंद लिया और संगीतकारों, जोकरों और किन्नरों को प्रोत्साहित किया।

इस प्रकार से रुक्नुद्दीन फिरोजशाह एक अयोग्य व विलास-प्रिय शासक सिद्ध हुआ। उसे ‘विलास-प्रेमी’ जीव कहा गया। शासन कार्यों में उसकी रुचि नहीं होने के कारण शासन का कार्य भार उसकी अपनी मां शाह तुर्कान ने ले रखा था। शासन के प्रति गैर जिम्मेदाराना रवैया और उनके अत्याचारों ने चारों और विद्रोह व अशान्ति की स्थिति उत्पन्न कर दी यहाँ तक की रुक्नुद्दीन फिरोजशाह और उसकी माँ शाह तुर्कान ने रज़िया की हत्या करने का भी षड्यन्त्र रचा। उनके अत्याचारों से त्रस्त होकर हाँसी, बदायूँ व लाहौर के प्रान्ताध्यक्षों ने रुकुनुद्दीन की सत्ता मानने से इन्कार कर दिया।

रुकुनुद्दीन फिरोज शाह के खिलाफ विद्रोह

रुकुनुद्दीन फिरोज शाह का शासन के प्रति गैर जिम्मेदाराना रवैया और उसके माँ शाह तुर्कान के अत्याचारों ने चारों ओर अशान्ति की स्थिति उत्पन्न कर दी। लोगों का शासन के प्रति आक्रोश बढ़ने लगा जिसके कारण विद्रोह की स्थिति उत्पन्न हो गयी। विद्रोह के लिए कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं –

  • शाह तुर्कान ने प्रशासन की बागडोर अपने हाथ में आने के बाद इल्तुतमिश के हरम में महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया। उसने हरम की बहुत से महिलाओं की बेरहमी से हत्या भी करा दिया कर दिया।
  • शाह तुर्कान और उनके पुत्र रुकनुद्दीन फिरोज शाह ने इल्तुतमिश के युवा और लोकप्रिय बेटे कुतुबुद्दीन को अंधा करने और मारने का आदेश दिया, जिससे कई विद्रोह हुए।
  • रुक्नुद्दीन फिरोजशाह और उसकी माँ शाह तुर्कान ने रज़िया की हत्या करने का भी षड्यन्त्र रच डाला था, परन्तु वह सफल नहीं हो पाया।
  • अवध क्षेत्र में, इल्तुतमिश के पुत्र मलिक गियासुद्दीन मुहम्मद शाह ने रुकनुद्दीन के खिलाफ विद्रोह कर दिया और लखनौती का खजाना लूट लिया, जिसे दिल्ली स्थानांतरित किया जा रहा था। इसके अलावा उसने कई शहरों को भी लूटा।
  • बदायूँ का इक्ता धारक मलिक इज्जुद्दीन मुहम्मद सलारी ने भी विद्रोह कर दिया।
  • तीन अन्य इक्ता-धारक मलिक इज़ुद्दीन कबीर खान अयाज़ (मुल्तान), मलिक सैफुद्दीन कूची (हांसी), मलिक अलाउद्दीन जानी (लाहौर) ने सामूहिक रूप से रुकनुद्दीन के खिलाफ विद्रोह किया।
  • रुकनुद्दीन के पिता इल्तुतमिश के अधिकारी दो प्रमुख श्रेणियों के थे – एक तुर्क मूल के दास और दूसरे ताज़िक मूल के गैर-दास। ताजिक अधिकारियों में प्रधान मंत्री जुनैदी भी थे। इन दोनों श्रेणियों के अधिकारियों में आपस में बनती नहीं थी और एक दूसरे के खिलाफ मौके के तलाश में रहते थे। विद्रोह का फायदा उठाते हुए तुर्क अधिकारीयों ने मंसूरपुर – तराईन क्षेत्र में कई ताजिक अधिकारियों की हत्या की योजना बनाई और कई महत्वपूर्ण ताजिक अधिकारीयों को मौत के घाट उतार दिया, जिससे विद्रोह और बढ़ गया।
  • रुक्नुद्दीन ने विद्रोहियों के खिलाफ सेना भेजी, लेकिन उनके वज़ीर निज़ामुल मुल्क जुनैदी सेना छोड़ कर कोइल (आधुनिक अलीगढ़) भाग गए और सलारी के साथ मिल गए। जुनैदी और सलारी की सेनाएँ बाद में कूची और जानी की सेना में शामिल हो गईं।
  • रुकुनुद्दीन फिरोज शाह की सौतेली बहन रजिया ने एक सामूहिक प्रार्थना में शाह तुर्कान के खिलाफ आम जनता को उकसाया। इसके बाद भीड़ की एक टुकड़ी ने शाही महल पर हमला कर दिया और शाह तुर्कान को हिरासत में ले लिया।

रुकुनुद्दीन फिरोज शाह का अंत और उसके शासन की अंतिम घटनाएँ

रुकनुद्दीन फिरोज शाह ने विद्रोहियों से लड़ने के लिए एक बड़ी सेना के साथ दिल्ली से कुहराम की ओर प्रस्थान किया। इस मौके का फायदा उठाते हुए दिल्ली में, उनकी सौतेली बहन रजिया ने जिसको उनकी मां शाह तुर्कान ने फांसी देने की योजना बनाई थी, एक सामूहिक प्रार्थना में शाह तुर्कान के खिलाफ आम जनता को उकसाया। जिसके फलस्वरूप भीड़ उग्र हो गयी। इसके बाद भीड़ की एक टुकड़ी ने शाही महल पर हमला कर दिया।

रुकुनुद्दीन फिरोज शाह की माँ शाह तुर्कान को कैद कर लिया गया तथा उसकी हत्या कर दी गयी। कई सरदारों और सेना ने रजिया के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा की और उसे सिंहासन पर बिठाया। यह सब सुनकर जब रुकनुद्दीन जब वापस दिल्ली आ रहा था तब रजिया ने उसे गिरफ्तार करने के लिए एक सेना भेजी। सेना ने रुकुनुद्दीन फिरोज शाह को कैद कर लिया और 19 नवंबर 1236 को उसे भी मौत के घाट उतर दिया गया। इस प्रकार रुकुनुद्दीन फिरोज शाह का शासन लगभग सात महीने (6 महीने और 28 दिन) तक रहा, जिसके बाद रुकुनुद्दीन फिरोज शाह की मृत्यु (हत्या) हो गयी।


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