शिक्षा समाज के विकास का आधार है और जब यह अवसर समान रूप से उपलब्ध नहीं होता, तब असमानता की खाई गहरी होती जाती है। भारत में अब भी कई गाँवों और पिछड़े इलाकों में लड़कियाँ स्कूल से वंचित रह जाती हैं। लेकिन इसी कठिनाई को चुनौती देते हुए सफीना हुसैन द्वारा स्थापित एनजीओ ‘एजुकेट गर्ल्स’ ने पिछले डेढ़ दशक में लाखों बेटियों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़कर न सिर्फ़ उनके जीवन में बदलाव लाया है, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा प्रस्तुत की है। यही कारण है कि वर्ष 2025 का प्रतिष्ठित रेमन मैग्सेसे पुरस्कार ‘एजुकेट गर्ल्स’ को प्रदान किए जाने की घोषणा की गई है।
यह उपलब्धि ऐतिहासिक है क्योंकि ‘एजुकेट गर्ल्स ग्लोबली’ यह सम्मान पाने वाला पहला भारतीय गैर-सरकारी संगठन बना है।
एजुकेट गर्ल्स: एक अभियान की शुरुआत
‘एजुकेट गर्ल्स’ की स्थापना वर्ष 2007 में सफीना हुसैन ने की थी। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ाई करने और सैन फ्रांसिस्को में सामाजिक क्षेत्र में काम करने के बाद वे भारत लौटीं। उनका मानना था कि शिक्षा विशेषकर बेटियों की शिक्षा, गरीबी और पिछड़ेपन के चक्र को तोड़ने का सबसे प्रभावी माध्यम है।
भारत में उन्होंने पाया कि कई ग्रामीण इलाकों में बेटियाँ स्कूल तक पहुँच ही नहीं पातीं। कहीं सामाजिक कारण, कहीं आर्थिक दबाव और कहीं सुविधाओं की कमी आड़े आती थी। इसी समस्या को दूर करने के लिए उन्होंने राजस्थान से अभियान शुरू किया और गाँव-गाँव जाकर बच्चियों का स्कूल में दाखिला सुनिश्चित किया। धीरे-धीरे यह पहल भारत के सबसे पिछड़े और कठिन इलाकों तक फैल गई।
नवाचार और उपलब्धियां
‘एजुकेट गर्ल्स’ ने पारंपरिक ढर्रे से हटकर कई नवाचार किए।
- डेवलपमेंट इम्पैक्ट बॉन्ड (DIB):
- वर्ष 2015 में ‘एजुकेट गर्ल्स’ ने शिक्षा क्षेत्र का दुनिया का पहला डेवलपमेंट इम्पैक्ट बॉन्ड लॉन्च किया। इसमें निवेशक शिक्षा परियोजनाओं को फंड करते हैं और तय परिणाम आने पर उन्हें रिटर्न मिलता है।
- यह प्रयोग शिक्षा क्षेत्र में वित्तीय स्थिरता और परिणाम-आधारित दृष्टिकोण का प्रतीक बना।
- प्रगति ओपन-स्कूलिंग कार्यक्रम:
- संगठन ने ‘प्रगति’ कार्यक्रम शुरू किया, जो 15–29 वर्ष की लड़कियों और महिलाओं को पढ़ाई पूरी करने का अवसर देता है।
- पहले बैच में जहाँ 300 छात्राएँ थीं, वहीं आज यह संख्या बढ़कर 31,500 से अधिक हो चुकी है।
- विस्तार और असर:
- 50 गाँवों से शुरू हुआ यह पायलट प्रोजेक्ट अब 30,000 से अधिक गाँवों तक पहुँच चुका है।
- संगठन ने सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए टीम बालिका नाम से 55,000 से अधिक स्वयंसेवकों का नेटवर्क तैयार किया।
अब तक का असर
‘एजुकेट गर्ल्स’ ने अपने प्रयासों से समाज में गहरा परिवर्तन लाने का काम किया है। इसके कुछ ठोस परिणाम इस प्रकार हैं:
- 30,000+ गाँवों में सक्रिय उपस्थिति
- 55,000+ सामुदायिक स्वयंसेवक (टीम बालिका)
- 20 लाख से अधिक लड़कियाँ स्कूल वापस लाई गईं
- 24 लाख से ज्यादा बच्चों की शिक्षा गुणवत्ता में सुधार हुआ
ये आँकड़े बताते हैं कि संगठन का कार्य सिर्फ़ संख्या तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक सामाजिक आंदोलन बन चुका है।
भविष्य का लक्ष्य
‘एजुकेट गर्ल्स’ का विज़न है कि आने वाले वर्षों में यह पहल 1 करोड़ से अधिक बच्चों तक पहुँचे। संगठन का मानना है कि शिक्षा की ताकत से गरीबी और अशिक्षा के चक्र को तोड़ा जा सकता है। इसका उद्देश्य केवल बेटियों को पढ़ाना ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को प्रगति की दिशा में अग्रसर करना है।
67वीं रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड सेरेमनी
रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड फाउंडेशन द्वारा वर्ष 2025 के विजेताओं को औपचारिक रूप से 7 नवंबर 2025 को सम्मानित किया जाएगा। यह समारोह फिलीपींस की राजधानी मनीला के मेट्रोपॉलिटन थिएटर में आयोजित होगा। इस अवसर पर विजेताओं को पदक और प्रमाणपत्र प्रदान किया जाएगा।
रेमन मैग्सेसे पुरस्कार: परिचय
रेमन मैग्सेसे पुरस्कार की स्थापना वर्ष 1957 में फिलीपींस सरकार और अमेरिका के रॉकफेलर ब्रदर्स फंड द्वारा की गई थी। इसे औपचारिक रूप से 1958 से प्रदान किया जाने लगा।
इसे अक्सर “एशिया का नोबेल पुरस्कार” कहा जाता है, क्योंकि यह महाद्वीप में उत्कृष्ट नेतृत्व, ईमानदारी और समाजसेवा को मान्यता देता है।
पिछले छह दशकों में अब तक 300 से अधिक व्यक्तियों और संगठनों को यह सम्मान मिल चुका है।
पुरस्कार की खास बातें
- विजेताओं की घोषणा हर वर्ष 31 अगस्त को फिलीपींस के पूर्व राष्ट्रपति रेमन मैग्सेसे की जयंती पर होती है।
- चयन प्रक्रिया पूरी तरह गोपनीय और गहन जांच पर आधारित होती है।
- विजेताओं को पदक और प्रमाणपत्र दिया जाता है।
- पदक पर रेमन मैग्सेसे की उभरी हुई छवि अंकित होती है।
- औपचारिक समारोह नवंबर माह में मनीला में आयोजित किया जाता है।
कौन थे रेमन मैग्सेसे?
रेमन मैग्सेसे फिलीपींस के ऐसे राष्ट्रपति थे जिनकी पहचान ईमानदारी, सादगी और निस्वार्थ सेवा के लिए की जाती है।
- जन्म: 31 अगस्त 1907, फिलीपींस।
- सैन्य करियर: द्वितीय विश्व युद्ध में गुरिल्ला नेता के रूप में सक्रिय; बाद में ज़म्बालेस प्रांत के सैन्य गवर्नर।
- राजनीतिक करियर: दो बार कांग्रेस सदस्य, फिर राष्ट्रीय रक्षा सचिव।
- राष्ट्रपति: 1953 में नैशनलिस्ट पार्टी से चुने गए।
- वे 20वीं सदी में जन्मे पहले और स्पेनिश शासन के बाद जन्म लेने वाले पहले राष्ट्रपति थे।
- मृत्यु: 17 मार्च 1957, एक हवाई दुर्घटना में।
उनकी स्मृति में 1957 में यह पुरस्कार स्थापित किया गया, जो एशिया में निस्वार्थ सेवा और असाधारण नेतृत्व को सम्मानित करता है।
निष्कर्ष
‘एजुकेट गर्ल्स’ का रेमन मैग्सेसे पुरस्कार पाना केवल एक संगठन की उपलब्धि नहीं, बल्कि भारत की बेटियों की जीत है। यह संदेश देता है कि यदि समाज संगठित होकर शिक्षा जैसे बुनियादी अधिकार को प्राथमिकता दे, तो बदलाव संभव है।
सफीना हुसैन और उनकी टीम ने यह साबित कर दिया है कि “शिक्षा ही असली सशक्तिकरण है।” आज ‘एजुकेट गर्ल्स’ लाखों परिवारों के सपनों को पंख दे रहा है और आने वाले समय में यह पहल और भी व्यापक स्तर पर समाज को नई दिशा प्रदान करेगी।
रेमन मैग्सेसे पुरस्कार की यह उपलब्धि भारत के लिए गर्व का विषय है और यह न केवल वर्तमान पीढ़ी बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगी।
इन्हें भी देखें –
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- प्रतुश मिशन: क्रेडिट कार्ड आकार के कंप्यूटर से ब्रह्मांड के शुरुआती रहस्यों की खोज
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