भारत सरकार ने 2025-26 के केंद्रीय बजट में महिलाओं और बालिकाओं के समावेशी विकास को प्राथमिकता देते हुए कई नई योजनाओं की घोषणा की है। केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने इस बजट की प्रमुख विशेषताओं को साझा करते हुए बच्चों और माताओं के पोषण को बेहतर बनाने और महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाने की प्रतिबद्धता जताई। यह बजट ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक सिद्ध होगा, जिसमें महिलाओं की आर्थिक भागीदारी बढ़ाने और सामाजिक सुरक्षा को मजबूत करने पर विशेष जोर दिया गया है।
भारत सरकार ने ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को साकार करने के लिए समावेशी विकास को प्राथमिकता दी है। इस दृष्टि से, गरीबों, युवाओं, किसानों और महिलाओं के उत्थान के लिए अनेक योजनाएँ बनाई गई हैं।
समावेशी विकास के लक्ष्य
भारत सरकार का समावेशी विकास का विजन निम्नलिखित महत्वपूर्ण लक्ष्यों पर केंद्रित है –
1. शून्य गरीबी
गरीबी उन्मूलन के लिए अनेक व्यापक योजनाएँ संचालित की जा रही हैं। इनमें प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण, रोजगार योजनाएँ, और सामाजिक सुरक्षा के उपाय शामिल हैं। सरकार की रणनीति यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी नागरिक बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित न रहे।
2. 100% कौशलयुक्त श्रमशक्ति
हर नागरिक को सक्षम और रोजगार योग्य बनाने के लिए शिक्षा और कौशल विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया गया है। विशेष रूप से, ‘स्किल इंडिया प्रोग्राम’ जैसी योजनाएँ युवाओं को तकनीकी दक्षता प्रदान करने में सहायक सिद्ध हो रही हैं।
3. 70% महिलाओं की आर्थिक भागीदारी
सरकार महिला श्रमशक्ति की भागीदारी बढ़ाकर आर्थिक विकास को समावेशी बनाने का प्रयास कर रही है। विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं को अवसर देकर, सरकार आर्थिक समानता की दिशा में अग्रसर हो रही है।
4. भारत को वैश्विक खाद्य आपूर्ति केंद्र बनाना
कृषि और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देकर भारत को वैश्विक खाद्य आपूर्ति केंद्र बनाने की योजना है। इससे किसानों की आय में वृद्धि होगी और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
जेंडर बजट में ऐतिहासिक वृद्धि
महिलाओं और बालिकाओं के कल्याण के लिए इस वर्ष सरकार ने बजट में ऐतिहासिक वृद्धि की है –
- कुल बजट का 8.8% महिलाओं और बालिकाओं के लिए आवंटित किया गया है, जो पिछले वर्ष के 6.8% से अधिक है।
- ₹4.49 लाख करोड़ का आवंटन 49 मंत्रालयों और विभागों में किया गया है।
- रेलवे, पोत परिवहन, भूमि संसाधन, औषधि और खाद्य प्रसंस्करण जैसे गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में भी जेंडर बजट को अपनाया गया है।
महिला श्रम शक्ति भागीदारी में सुधार
भारत में महिला श्रम शक्ति भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई महत्वपूर्ण नीतियाँ अपनाई हैं –
- 2021-22 में महिला श्रम शक्ति भागीदारी 33% थी, जो 2023-24 में बढ़कर 42% हो गई है।
- पुरुषों (79%) के मुकाबले अभी भी 37% का अंतर बना हुआ है।
- 2047 तक 70% महिला भागीदारी का लक्ष्य पाने के लिए सरकार कौशल विकास, उद्यमिता और सामाजिक सुरक्षा पर निवेश कर रही है।
महत्वपूर्ण योजनाएँ और उनका आवंटन
महिलाओं और बालिकाओं के कल्याण के लिए बजट में निम्नलिखित योजनाओं को प्रमुखता दी गई है –
- स्किल इंडिया प्रोग्राम
- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM)
- प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)
- प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना
- ‘मेक इन इंडिया’ के लिए उत्कृष्टता केंद्र
इन योजनाओं के लिए कुल ₹1.24 लाख करोड़ का आवंटन किया गया है, जिसमें से 52% महिलाओं के लिए निर्धारित किया गया है।
गिग इकोनॉमी और अनौपचारिक क्षेत्र में सुधार
भारत में लगभग 90% महिलाएँ अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं। इनके सशक्तिकरण के लिए सरकार ने निम्नलिखित पहल की हैं:
- ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण और पहचान पत्र जारी करने की योजना।
- श्रम संहिताओं के प्रभावी क्रियान्वयन से मातृत्व लाभ, न्यूनतम वेतन और रोजगार सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और डिजिटल शिक्षा
बदलते समय के साथ महिलाओं को डिजिटल और तकनीकी रूप से सशक्त बनाना आवश्यक है। इस दिशा में:
- शिक्षा क्षेत्र में AI सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना की जाएगी।
- इंडिया AI मिशन के तहत ₹600 करोड़ का जेंडर बजट आवंटित किया गया है।
- महिलाओं के लिए डिजिटल स्किल्स और एंटरप्राइज ट्रेनिंग को बढ़ावा दिया जाएगा।
महिलाओं के लिए वित्तीय समावेशन और कृषि क्षेत्र में सुधार
- किसान क्रेडिट कार्ड को भूमि स्वामित्व से अलग करने का सुझाव दिया गया है, जिससे महिला किसानों को लोन और वित्तीय सहायता प्राप्त हो सके।
- लघु, मध्यम और सूक्ष्म उद्यम (MSME) क्षेत्र में 5% महिला उद्यमिता को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे 2.7 करोड़ लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है।
- 30 मिलियन अतिरिक्त महिला उद्यमियों के बढ़ने से 150-170 मिलियन नई नौकरियाँ बन सकती हैं।
भारत सरकार का समावेशी विकास मॉडल गरीबों, युवाओं, किसानों और महिलाओं के उत्थान की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठा रहा है। बजट में महिलाओं और बालिकाओं के लिए ऐतिहासिक वृद्धि, गिग इकोनॉमी और अनौपचारिक क्षेत्र में सुधार, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल शिक्षा पर जोर, और महिलाओं की वित्तीय भागीदारी बढ़ाने की योजनाएँ एक मजबूत, समृद्ध और समावेशी भारत के निर्माण में सहायक साबित होंगी।
भारत में लैंगिक असमानता और जेंडर बजटिंग
भारत में लैंगिक असमानता एक गहरी सामाजिक समस्या है, जो परंपरागत सोच और पितृसत्तात्मक व्यवस्था के कारण सदियों से बनी हुई है। बेटा पैदा होने पर समाज में उत्सव का माहौल देखने को मिलता है, लेकिन बेटी के जन्म पर अपेक्षाकृत कम उत्साह देखा जाता है। यह प्रवृत्ति लैंगिक असमानता की जड़ों को दर्शाती है। लड़कों को अधिक महत्व देने के कारण कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह, शिक्षा में भेदभाव, कार्यस्थलों पर असमान वेतन जैसी समस्याएँ व्यापक रूप से देखी जाती हैं।
लैंगिक असमानता के कारण और प्रभाव
- सामाजिक और सांस्कृतिक पूर्वाग्रह – भारतीय समाज में पितृसत्तात्मक सोच गहरी जड़ें जमा चुकी है, जिससे महिलाओं के प्रति भेदभाव जारी रहता है।
- शिक्षा में असमानता – ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में शिक्षा के स्तर में बड़ा अंतर है, विशेष रूप से लड़कियों के लिए।
- आर्थिक असमानता – महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम वेतन मिलता है और उनके लिए रोजगार के अवसर भी सीमित हैं।
- राजनीतिक भागीदारी की कमी – महिला प्रतिनिधित्व संसद और विधानसभाओं में अपेक्षाकृत कम है।
- स्वास्थ्य और पोषण – महिलाओं को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएँ और पोषण नहीं मिल पाता, जिससे मातृ मृत्यु दर अधिक बनी रहती है।
लैंगिक असमानता से निपटने के प्रयास
लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए सरकार ने कई योजनाएँ शुरू की हैं, जिनमें बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, सुकन्या समृद्धि योजना, उज्ज्वला योजना और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना शामिल हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य महिलाओं को सशक्त बनाना और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाना है।
भारत में जेंडर बजटिंग | एक समावेशी आर्थिक नीति की दिशा में महत्वपूर्ण पहल
जेंडर बजटिंग एक रणनीतिक उपकरण है, जिसके माध्यम से सरकार विभिन्न लिंगों की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार संसाधनों का आवंटन करती है। इसका उद्देश्य नीतियों और बजट आवंटन को लैंगिक–संवेदनशील बनाना और महिलाओं के लिए समावेशी विकास सुनिश्चित करना है। भारत में जेंडर बजटिंग न केवल महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने का माध्यम है, बल्कि यह देश के समग्र विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
जेंडर बजटिंग की पृष्ठभूमि
भारत ने 1993 में संयुक्त राष्ट्र के CEDAW (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women) को अनुमोदित किया, जो महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संधि है।
भारत में जेंडर बजटिंग की औपचारिक शुरुआत 2005-06 में हुई, जब पहली बार जेंडर बजट स्टेटमेंट (Gender Budget Statement – GBS) जारी किया गया। वर्तमान में, जेंडर बजटिंग मिशन शक्ति के तहत “समर्थ्य” उप-योजना के अंतर्गत आती है, जो महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में एक ठोस प्रयास है।
जेंडर बजटिंग क्या है?
लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए बजट आवंटन की एक प्रक्रिया को जेंडर बजटिंग कहा जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि महिलाओं और बालिकाओं के कल्याण के लिए धनराशि पर्याप्त रूप से वितरित की जाए।
भारत में जेंडर बजटिंग के प्रयास
भारत सरकार ने 2005 में औपचारिक रूप से जेंडर बजटिंग को अपनाया। यह दो भागों में विभाजित है –
- भाग A – वे योजनाएँ, जिनमें 100% धनराशि महिलाओं और बालिकाओं के लिए आवंटित होती है।
- भाग B – वे योजनाएँ, जिनमें कम से कम 30% धनराशि महिलाओं के कल्याण के लिए आवंटित होती है।
2025-26 के बजट में जेंडर बजटिंग
- बजट आवंटन में वृद्धि – 2025-26 के बजट में महिलाओं और बालिकाओं के लिए ₹4.49 लाख करोड़ का आवंटन किया गया, जो कुल बजट का 8.8% है।
- नए कार्यक्रम और योजनाएँ – स्किल इंडिया, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना जैसी योजनाओं का विस्तार किया गया है।
- महिला श्रम शक्ति भागीदारी – 2023-24 में यह दर 42% तक पहुँच गई है, लेकिन अभी भी पुरुषों (79%) से पीछे है।
- गिग इकोनॉमी और अनौपचारिक क्षेत्र – ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण और श्रम संहिताओं का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा रहा है।
- महिला उद्यमिता और वित्तीय समावेशन – बिना गारंटी के लोन, महिला स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन और डिजिटल कौशल विकास पर विशेष ध्यान दिया गया है।
भारत में जेंडर बजटिंग के प्रमुख लक्ष्य
- लैंगिक असमानता को कम करना: जेंडर बजटिंग का उद्देश्य पुरुषों और महिलाओं के बीच आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक अवसरों में असमानता को कम करना है।
- महिलाओं की आर्थिक भागीदारी बढ़ाना: रोजगार और उद्यमिता को बढ़ावा देकर महिला श्रमशक्ति भागीदारी को सुधारना।
- सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता: शिक्षा, स्वास्थ्य और वित्तीय समावेशन को प्राथमिकता देकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना।
- नीति निर्माण में लैंगिक परिप्रेक्ष्य: सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों में महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं को सम्मिलित करना।
भारत में जेंडर बजटिंग से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ
लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए जेंडर बजटिंग एक महत्वपूर्ण कदम है। हालाँकि, इसे प्रभावी बनाने के लिए धनराशि का सही आवंटन, योजनाओं का कुशल क्रियान्वयन और महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना आवश्यक है। इसके अलावा, शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक अवसरों में समानता प्रदान करने से 2047 तक ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।
- अनुदान आवंटन में अस्पष्टता – कई योजनाओं में धन आवंटन की प्रक्रिया स्पष्ट नहीं होती।
- बजट का संकेंद्रण – अधिकांश बजट कुछ मंत्रालयों तक ही सीमित रहता है।
- दीर्घकालिक योजनाओं की प्राथमिकता – आवास और स्वास्थ्य योजनाओं में अधिक धन आवंटित होने के कारण महिला शिक्षा और कौशल विकास प्रभावित होते हैं।
- निगरानी और मूल्यांकन की कमी – प्रभावी निगरानी तंत्र के अभाव में योजनाओं का वास्तविक प्रभाव ज्ञात करना कठिन हो जाता है।
1. अनुदान आवंटन में अस्पष्टता
हालांकि सरकार जेंडर बजटिंग को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ चला रही है, लेकिन जेंडर-संवेदनशील योजनाओं के लिए धन आवंटन की स्पष्टता अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। उदाहरण के लिए:
- प्रधानमंत्री आवास योजना – ग्रामीण (PMAY-G) के तहत महिलाओं को केवल 23% आवंटन प्राप्त हुआ, जबकि इसे 100% महिला-केंद्रित योजना के रूप में सूचीबद्ध किया गया था।
- कई योजनाओं में महिलाओं के लिए आवंटित धन को स्पष्ट रूप से चिन्हित नहीं किया जाता, जिससे प्रभावी निगरानी कठिन हो जाती है।
2. कोष का संकेंद्रण
भारत में जेंडर बजटिंग का 90% हिस्सा कुछ ही मंत्रालयों तक सीमित है। इसका परिणाम यह होता है कि –
- अधिकतर बजट केवल PMGKAY (प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना), MGNREGS (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना), और PMAY-G जैसी योजनाओं में जाता है।
- अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे विज्ञान, तकनीक, डिजिटल सशक्तिकरण, परिवहन आदि में जेंडर बजटिंग का प्रभाव सीमित रह जाता है।
3. दीर्घकालिक योजनाओं की प्राथमिकता
- आयुष्मान भारत और आवास योजना जैसी दीर्घकालिक योजनाओं को जेंडर बजटिंग में शामिल किया जाता है, जिससे तत्काल प्रभाव डालने वाली योजनाओं के लिए धन सीमित हो जाता है।
- इसके कारण लघु एवं मध्यम उद्योगों (MSME) में महिला उद्यमिता को पर्याप्त समर्थन नहीं मिल पाता।
4. निगरानी और मूल्यांकन की कमी
- लैंगिक प्रभाव मूल्यांकन की गुणवत्ता खराब होने से सही डेटा उपलब्ध नहीं हो पाता।
- संयुक्त राष्ट्र (UN) ने MWCD (महिला एवं बाल विकास मंत्रालय) और वित्त मंत्रालय के बीच समन्वय को मजबूत करने की सिफारिश की है ताकि निगरानी प्रणाली को प्रभावी बनाया जा सके।
5. राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी
- जेंडर बजटिंग हमेशा राजनीतिक प्राथमिकताओं के अनुरूप नहीं होती, जिससे इसे पर्याप्त समर्थन नहीं मिल पाता।
- कई राज्यों में राज्य स्तरीय जेंडर बजटिंग योजनाएँ अभी तक प्रभावी रूप से लागू नहीं की गई हैं।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम
- जेंडर बजट स्टेटमेंट को अनिवार्य बनाना, जिससे हर मंत्रालय को अपने बजट का एक हिस्सा महिला-केंद्रित कार्यक्रमों के लिए आवंटित करना अनिवार्य हो।
- डिजिटल और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना ताकि महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता बढ़े।
- महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित करना जिससे ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में महिलाएँ आत्मनिर्भर बन सकें।
- श्रम संहिताओं में सुधार जिससे महिलाओं को कार्यस्थल पर अधिक सुरक्षा और समान अवसर मिलें।
भारत में जेंडर बजटिंग एक महत्वपूर्ण नीतिगत प्रयास है, जो महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण में सहायक है। हालाँकि, इसमें अभी भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिन्हें दूर करने के लिए ठोस नीति सुधारों और प्रभावी निगरानी की आवश्यकता है।
2047 तक ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जेंडर-संवेदनशील बजट, सामाजिक सुरक्षा और महिला-पुरुष समावेशी श्रम बाजार की आवश्यकता होगी। सरकार की नवीन योजनाएँ, डिजिटल सशक्तिकरण और उद्यमिता को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ महिलाओं के आर्थिक विकास को मजबूती देंगी और भारत को एक समावेशी और समृद्ध राष्ट्र बनाने में सहायक सिद्ध होंगी।
2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए ये योजनाएँ मील का पत्थर साबित हो सकती हैं। सरकार की प्रतिबद्धता और सक्रिय भागीदारी से, आने वाले वर्षों में महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार देखने को मिलेगा।
Economics – KnowledgeSthali
इन्हें भी देखें –
- भारत का केंद्रीय बजट | एक व्यापक विश्लेषण
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- दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 | ऐतिहासिक जीत और प्रशासनिक संरचना
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