लोदी वंश |1451-1526 ई.

लोदी वंश की स्थापना दिल्ली की गद्दी पर अधिकार करने वाले बहलोल लोदी ने 1451 ई. में की थी। यह वंश 1526 ई. तक सत्ता में रहा और सफलतापूर्वक शासन करता रहा। बहलोल लोदी सरहिन्द का इक्तादार था और जिसने शीघ्र ही सारे पंजाब पर अपना अधिकार जमा लिया था। बहलोल लोदी की फ़ौज ने कुछ ही समय में समस्त दिल्ली पर भी अपना अधिकार कर लिया और वहाँ के सैयद वंश का अंत कर दिया।

लोदी वंश का इतिहास

तैमूर के आक्रमण के पश्चात् दिल्ली में सैयद वंश के रूप में एक नया राजवंश उभरा। कई अफ़ग़ान सरदारों ने पंजाब में अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली थी। इन सरदारों में सबसे महत्त्वपूर्ण ‘बहलोल लोदी’ था, जो सरहिन्द का इक्तादार था। बहलोल लोदी ने खोखरों की बढ़ती शक्ति को रोका। खोखर एक युद्ध प्रिय जाति थी और सिंध की पहाड़ियों में रहती थी। अपनी नीतियों और अपने साहस के बल पर बहलोल ने शीघ्र ही सारे पंजाब पर अधिकार जमा लिया।

मालवा के सम्भावित आक्रमण को रोकने के लिए उसे दिल्ली आमंत्रित किया गया और वह बाद में भी दिल्ली में ही रुका रहा। जल्दी ही उसकी फौंजों ने दिल्ली पर भी अधिकार कर लिया। जब दिल्ली का सुल्तान 1451 में एक प्रवासी के रूप में मर गया, तो बहलोल औपचारिक रूप से दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इस प्रकार सैयद वंश का अंत हुआ।

पंदहवीं शताब्दी के मध्य से ही गंगा घाटी के उत्तरी भागों और पंजाब पर लोदियों का अधिकार था। दिल्ली के शासक पहले तुर्क थे, लेकिन लोदी शासक अफ़ग़ान थे। यद्यपि दिल्ली सल्तनत की फ़ौज में अनेक अफ़ग़ान थे, लेकिन अफ़ग़ानी सरदारों को कभी भी महत्त्वपूर्ण पद नहीं दिया गया था। यही कारण था कि बख़्तियार ख़िलजी को अपने भाग्य का निर्माण बिहार और बंगाल में करना पड़ा था। उत्तरी भारत में अफ़ग़ानों के बढ़ते महत्व का अंदाजा मालवा में अफ़ग़ान शासन के उदय से लग रहा था। दक्षिण में भी बहमनी सल्तनत में उनके पास महत्त्वपूर्ण पद थे।

लोदी वंश के शासक

लोदी वंश में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण शासक हुए-

  • बहलोल लोदी (1451-1489 ई.)
  • सिकन्दर शाह लोदी (1489-1517 ई.)
  • इब्राहीम लोदी (1517-1526 ई.)

बहलोल लोदी (1451-1489 ई.)

बहलोल लोदी (ईस्वी 1451-1489) भारत के (पंजाब) में सरहिंद के गवर्नर मलिक सुल्तान शाह लोदी के भतीजे और दामाद थे, और सैय्यद वंश के शासक मुहम्मद शाह के शासनकाल के दौरान वह गवर्नर के रूप में कार्य करता था। मुहम्मद शाह ने उन्हें तारुन-बिन-सुल्तान के पद तक पहुँचाया। अपने मजबूत व्यक्तित्व के साथ, उन्होंने अफगान और तुर्की प्रमुखों के एक ढीले और कमजोर संघ को एकजुट रखा।

लोदी वंश

उन्होंने प्रांतों के भ्रष्ट प्रमुखों को दण्डित किया और सरकार में नई जान फूंक दी। बहलोल खान लोदी 19 अप्रैल, 1451 को दिल्ली के अंतिम सैय्यद शासक अलाउद्दीन आलम शाह के स्वेच्छा से उसके पक्ष में गद्दी त्यागने के बाद दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर आसीन हुआ।

जौनपुर की विजय उसके शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी। बहलोल ने अपना अधिकांश समय शर्की वंश के खिलाफ लड़ने में बिताया, जिस पर उसने अंततः अधिकार कर लिया। 1486 में, उन्होंने अपने सबसे बड़े जीवित पुत्र बरबक को जौनपुर के सिंहासन पर बैठाया।

सिकन्दर शाह लोदी (1489-1517 ई.)

सिकंदर लोदी जिनका जन्म नाम निजाम खान हैं। सिकंदर लोदी यह नाम उनके पिता के लिए उन्हें दिया था। 12 जुलाई 1489 को बहलुल लोदी की मृत्यु के बाद लोदी वंश का अगला शासक बना और वह इस वंश का सबसे सफल शासक कहलाया।

सिकंदर लोदी लोदी वंश का एक योग्य शासक सिद्ध हुआ। वह अपनी प्रजा के लिये दयालु था। सिकंदर लोदी हमेशा कहता था की, “यदि मै अपने एक गुलाम को पालकी में बैठा दू तो मेरे आदेश पर मेरे सभी सरदार उसे अपने कंधो पर उठाकर ले जायेंगे।” सिकंदर लोदी प्रथम सुल्तान था जिसने आगरा को अपनी राजधानी बनाया।

लोदी वंश |1451-1526 ई.

इब्राहीम लोदी (1517-1526 ई.)

लोदी वंश |1451-1526 ई.

इब्राहिम लोदी सिकंदर के सबसे छोटे बेटा था जो 1517 में सिकंदर की मृत्यु के बाद लोदी वंश का शासक बना और दिल्ली के आखिरी लोदी सुल्तान थे। उनके पास एक उत्कृष्ट योद्धा के गुण होते थे, लेकिन वह अपने फैसलों और कार्यों में द्रोह और असभ्य था।

उसने भारत पर 1517-1526 तक राज्य किया और फिर मुगलो द्वारा पराजित हुये, जिन्होंने एक नया वंश स्थापित किया, जिसे हम मुग़ल साम्राज्य कहते हैं जिस वंश ने भारत पर तीन शताब्दियों तक राज्य किया।

लोदी वंश का प्रशासन

  • सुल्तान सिकंदर लोदी को एक सुदृढ़ प्रशासनिक तंत्र स्थापित करने का भी श्रेय दिया जाता है।
  • उन्होंने मुक्ता और वालिस (राज्यपालों) के खातों की जांच के लिए ऑडिटिंग की स्थापना की। जौनपुर के गवर्नर मुबारक खान लोदी (तुजी खल) 1506 में अपने खातों की जांच करने वाले पहले अमीर थे।
  • उन्हें गबन का दोषी ठहराया गया था और अंत में निकाल दिया गया था। दिल्ली में प्रभारी गैर-अफगान अधिकारी ख्वाजा असगर को भी इसी तरह भ्रष्टाचार के आरोप में कैद किया गया था।
  • साम्राज्य की स्थिति के बारे में खुद को जागरूक रखने के लिए, सुल्तान ने खुफिया तंत्र को पुनर्गठित किया।
  • नतीजतन, सुल्तान को परेशान करने के डर से अमीर आपस में राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करने से डरते थे।
  • आम जनता की भलाई के लिए, सुल्तान ने गरीबों और विकलांगों के लाभ के लिए राजधानी और प्रांतों दोनों में खैरात विभाग की स्थापना की। इन धर्मार्थ संगठनों ने योग्य लोगों को वित्तीय सहायता प्रदान की।
  • विद्वानों और कवियों को संरक्षण दिया गया, और शैक्षणिक संस्थानों को पूरे साम्राज्य में वित्तीय सहायता प्राप्त हुई। उन्होंने सरकारी कार्यालयों में फारसी के अलावा किसी अन्य भाषा के प्रयोग को प्रतिबंधित किया।
  • इसने कई हिंदुओं को फ़ारसी सीखने के लिए प्रेरित किया, और वे थोड़े समय में भाषा में पारंगत हो गए।
  • नतीजतन, उन्होंने राजस्व प्रशासन का प्रबंधन और पर्यवेक्षण करना शुरू कर दिया।
  • जब बाबर भारत आया, तो वह यह देखकर चकित रह गया कि राजस्व विभाग में पूरी तरह से हिंदुओं का स्टाफ था।
  • सुल्तान सिकंदर लोदी की सभी के लिए निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करने में गहरी दिलचस्पी थी। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप पूरे साम्राज्य में शांति और समृद्धि आई।
  • सिकंदर लोधी ऐतिहासिक रूप से एक सच्चे कट्टर सुन्नी शासक के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने मथुरा और नागा बंदरगाह में भारतीय मंदिरों को नष्ट कर दिया।
  • उसने इस्लाम की श्रेष्ठता का प्रदर्शन करने के लिए हिंदुओं पर जजिया कर लगाया।
  • उन्होंने 32 अंकों की गज-ए-सिकंदरी की शुरुआत की, जिसने किसानों को उनके कृषि वाले खेतों को मापने में सहायता की।
  • 1504 में उन्होंने आगरा शहर की स्थापना की और शानदार मकबरों और इमारतों का निर्माण किया।
  • उन्होंने आयात और निर्यात को सुविधाजनक बनाने और अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • किसानों को अनाज कर से छूट दी जाती थी।
  • शिक्षा को बढ़ावा देने वाला सिकंदर एक कट्टर सुन्नी शासक था जिसमें धार्मिक सहिष्णुता का अभाव था।

लोदी राजवंश का धर्म और वास्तुकला

  • लोधी सुल्तानों ने, अपने पूर्ववर्तियों की तरह, मुस्लिम दुनिया पर एक संयुक्त खिलाफत के अधिकार को पहचानते हुए, अब्बासिद खलीफाओं के प्रतिनिधि के रूप में खुद को दर्शाया।
  • उन्होंने मुस्लिम उलेमा, सूफी शेखों, मुहम्मद के दावा किए गए वंशजों और उनके कुरैश जनजाति के सदस्यों को नकद धन और राजस्व-मुक्त भूमि (पूरे गांवों सहित) दी।
  • लोदी के मुस्लिम विषयों को धार्मिक योग्यता के लिए जकात कर का भुगतान करना पड़ता था, जबकि गैर-मुसलमानों को राज्य की सुरक्षा प्राप्त करने के लिए जजिया कर का भुगतान करना पड़ता था।
  • सल्तनत के कुछ हिस्सों में हिंदुओं को अतिरिक्त तीर्थयात्रा कर का भुगतान करना पड़ता था। बहरहाल, सल्तनत के राजस्व प्रशासन में कई हिंदू अधिकारियों ने काम किया।
  • सिकंदर लोदी, जिनकी मां हिंदू थीं, ने एक राजनीतिक चाल के रूप में अपनी इस्लामी साख को प्रदर्शित करने के लिए सख्त सुन्नी रूढ़िवाद का इस्तेमाल किया।
  • उन्होंने हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया और, उलेमा के दबाव में, एक ब्राह्मण को फांसी की अनुमति दी, जिसने हिंदू धर्म को इस्लाम के समान ही सत्य घोषित कर दिया।
  • उन्होंने महिलाओं को मुस्लिम संतों की मजारों (मकबरे) में जाने से भी रोक दिया और प्रसिद्ध मुस्लिम शहीद सालार मसूद के भाले के वार्षिक जुलूस पर भी रोक लगा दी।
  • उन्होंने मुस्लिम आबादी वाले कई शहरों में शरिया अदालतें भी स्थापित कीं, जिससे काजियों को मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों विषयों पर इस्लामी कानून लागू करने की अनुमति मिली।
  • माना जाता है कि दिल्ली के लोधी गार्डन में बड़ा गुंबद दिल्ली में किसी भी इमारत का सबसे पुराना पूर्ण गुंबद है, जिसे 1490 ईस्वी में बनाया गया था, सबसे अधिक संभावना सिकंदर लोधी द्वारा की गई थी।
  • शीश गुंबद, लोधी राजवंश का मकबरा है जिसे 1489 और 1517 ईस्वी के बीच बनाया गया था।
  • सिकंदर लोदी ने 1516 में राजों की बावड़ी का निर्माण करवाया था।

लोदी वंश का पतन

इब्राहीम लोदी 1526 ई. में पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर के हाथों मारा गया और उसी के साथ ही लोदी वंश भी समाप्त हो गया।

जब तक इब्राहिम सिंहासन पर बैठा, तब तक लोदी राजवंश का राजनीतिक ढांचा परित्यक्त व्यापार मार्गों और घटते खजाने के कारण चरमरा गया था। दक्कन एक तटीय व्यापार मार्ग था, लेकिन पंद्रहवीं शताब्दी के अंत तक, आपूर्ति लाइनें विफल हो गई थीं।इस विशिष्ट व्यापार मार्ग की गिरावट और अंततः विफलता ने तट से आंतरिक आपूर्ति को काट दिया, जहां लोदी साम्राज्य रहता था।

व्यापार मार्ग की सड़कों पर युद्ध छिड़ने पर लोदी राजवंश अपनी रक्षा करने में असमर्थ था; नतीजतन, उन्होंने उन व्यापार मार्गों का उपयोग नहीं किया, और उनके व्यापार और खजाने में गिरावट आई, जिससे वे आंतरिक राजनीतिक समस्याओं के प्रति संवेदनशील हो गए। इब्राहिम के अपमान का बदला लेने के लिए, लाहौर के गवर्नर दौलत खान लोदी ने अनुरोध किया कि काबुल के शासक बाबर ने उसके राज्य पर आक्रमण किया। इस प्रकार इब्राहिम लोदी बाबर के साथ युद्ध में मारा गया। लोदी वंश का अंत इब्राहिम लोदी की मृत्यु के साथ हुआ।

पानीपत की लड़ाई

इब्राहीम लोदी के शासन में लोदी सम्राज्य अस्थिरता एवं अराजकता के दौर से गुजर रहा था और आपसी मतभेदों एवं निजी स्वार्थों के चलते दिल्ली की सत्ता निरन्तर प्रभावहीन होती चली जा रही थी। इन विपरीत परिस्थितियों इब्राहीम लोदी के कई सरदार और उसके कुछ अपने सम्बधि उसके बर्ताव की वजह से उससे नाराज थे, उसी समय इब्राहीम के असंतुष्ट सरदारों में पंजाब का शासक ‘दौलत ख़ाँ लोदी’ एवं इब्राहीम लोदी के चाचा ‘आलम ख़ाँ’ ने काबुल के तैमूर वंशी शासक बाबर को भारत पर आक्रमण के लिए निमंत्रण दिया।

बाबर ने यह निमंत्रण स्वीकार कर लिया और वह भारत आया। जनवरी, 1526 में अपनी सेना सहित दिल्ली पर धावा बोलने के लिए उसने अपने कदम आगे बढ़ा दिया दिए। इसकी खबर जब इब्राहीम लोदी को मिली तो उसने बाबर को रोकने के लिए कई कोशिश किया लेकिन सभी बिफल रहा। युद्ध को जीतने के उद्देश्य से बाबर पूरी योजना के साथ आगे बढते रहा और इधर से इब्राहीम लोदी भी सेना लेकर निकल पड़ा, दोनों सेना पानीपत के मैदान में 21 अप्रैल, 1526 के दिन आमने-सामने आयी।

बाबर ने तुलगमा युद्ध पद्धति उजबेकों से ग्रहण की थी। पानीपत के युद्ध में ही बाबर ने अपने दो प्रसिद्ध निशानेबाज़ ‘उस्ताद अली’ एवं ‘मुस्तफ़ा’ की सेवाएँ ली। इस युद्ध में पहली बार बारूद, आग्नेयास्त्रों और मैदानी तोपखाने को उपयोग किया गया। साथ ही इस युद्ध में बाबर ने पहली बार प्रसिद्ध ‘तुलगमा युद्ध नीति’ का प्रयोग किया था और इसी युद्ध में बाबर ने तोपों को सजाने में ‘उस्मानी विधि’ (रूमी विधि) का प्रयोग किया था।

बाबर के सूझबूझ, कुशल नेतृत्व और आग्नेयास्त्रों की ताकत आदि के सामने इब्राहिम लोदी बेहद कमजोर थे। इब्राहिम लोदी की सेना के पास प्रमुख हथियार तलवार, भाला, लाठी, कुल्हाड़ी व धनुष-बाण आदि थे। हालांकि उनके पास विस्फोटक हथियार भी थे, लेकिन, तोपों के सामने उनका कोई मुकाबला ही नहीं था।

इसके साथ ही गंभीर स्थिति यह थी कि सुल्तान की सेना में एकजुटता का अभाव और इब्राहिम लोदी की अदूरदर्शिता का अवगुण आड़े आ रहा था। इस भीषण युद्ध में सुल्तान इब्राहिम लोदी व उसकी सेना मृत्यु को प्राप्त हुई और बाबर के हिस्से में ऐतिहासिक जीत दर्ज हुई। और लोदी वंश के स्थान पर मुगल वंश की स्थापना हुई।

इब्राहिम की मृत्यु के बाद, बाबर ने इब्राहीम के क्षेत्र में खुद को सम्राट का नाम दिया। इब्राहिम लोदी की मृत्यु के बाद लोदी राजवंश का अंत हो गया। लोदी वंश के पश्चात भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई जिसकी स्थापना बाबर ने किया। मुग़ल साम्राज्य ने लगभग 500 साल तक भारत पर राज किया।


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