लौह युग (Iron Age) भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण कालांतर है। यह उन समयों को दर्शाता है जब लौह (आयरन) का उपयोग समाज में प्रमुख हो गया था। लौह युग मानव इतिहास में कांस्य युग के बाद आता है। आमतौर पर इसकी शुरुआत 1200 ईसा पूर्व के आसपास और अंत लगभग 600 ईसा पूर्व माना जाता है। प्रारंभिक लौह युग के दौरान, उपकरण और हथियार बनाने के लिए पसंद की धातु के रूप में लोहे ने कांस्य का स्थान ले लिया। कुछ पुरातत्वविदों का मानना है कि लौह धातु विज्ञान का विकास उप-सहारा अफ्रीका में यूरेशिया और पूर्वोत्तर अफ्रीका के पड़ोसी हिस्सों से स्वतंत्र रूप से 2000 ईसा पूर्व में हुआ था।
लौह युग (Iron Age) का विभाजन
लौह युग चार में विभाजित होता है –
- प्राचीन लौहयुग
- मध्य लौहयुग
- लौहयुग
- नवीन लौहयुग।
प्राचीन लौहयुग (1200 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व तक) – इस युग में लौह के उपयोग की शुरुआत हुई और इससे वाणिज्यिक और सामाजिक प्रगति का आरंभ हुआ। यहां तक कि कुछ ऐसे सशस्त्र भी विकसित हुए जो लौहयुग की पहचान बने।
मध्य लौहयुग (600 ईसा पूर्व से 400 ईसा पूर्व तक) – इस युग में लौह का उपयोग और विस्तार हुआ। यहां तक कि लौह का उपयोग युद्ध और शिल्प क्षेत्र में भी बढ़ गया।
लौहयुग (400 ईसा पूर्व से 200 ईसा पूर्व तक) – इस युग में लौह का उपयोग समाज के विभिन्न क्षेत्रों में आम हो गया। साथ ही, तकनीकी और वाणिज्यिक प्रगति भी हुई। इस कालांतर में विभिन्न शासनादिकों के द्वारा राज्यों की स्थापना हुई।
नवीन लौहयुग (200 ईसा पूर्व से 600 ईसा तक) – इस युग में लौहयुग का अंत हुआ और मध्ययुग का आरंभ हुआ। इस दौरान साम्राज्यों के आदान-प्रदान और बौद्ध धर्म के विकास की घटनाएं देखने को मिलती हैं।
लौहयुग भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण युग है, जिसमें समाज, राजनीति, और प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए थे।
लौह युग का इतिहास
लौह युग, जो भारतीय धर्मशास्त्र में मान्यता प्राप्त कर चुका है, मानव इतिहास के एक प्रमुख युग का नाम है। यह युग प्रत्येक धर्मशास्त्र के अनुसार छठा युग है और इसे सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग के पश्चात्तापारित युग माना जाता है। यह युग महाभारत काल के बाद आता है, जिसमें भगवान कृष्ण जन्म लेते हैं।
लौह युग में धर्म की क्षणिकता बढ़ती है और अधर्म का प्रभाव भी बढ़ता है। इस युग में मनुष्यों की आयु और शक्ति घटने लगती है। अधर्म के प्रभाव से लोग अपने आपको खो देते हैं और अनर्थ को उत्पन्न करते हैं। इस युग में लोगों के बीच युद्ध और असामंजस के कारण आपसी संघर्ष बढ़ता है।
लौह युग के चरित्रित होते समय, महाभारत महाकाव्य का वर्णन होता है। महाभारत में भगवान कृष्ण की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, जो अपने अनमोल उपदेशों के माध्यम से मानवता को धर्म के मार्ग पर लाने का प्रयास करते हैं। महाभारत के युद्ध में अनेक धर्मसंबंधी महत्वपूर्ण उपदेश दिए गए हैं, जिनमें धर्म और अधर्म के संघर्ष, कर्तव्य का महत्व, और ईश्वर के साथ आनंदपूर्वक सम्पर्क करने के उपाय शामिल हैं।
भारत में लोहे का प्रयोग कब शुरू हुआ
भारत में लोहे का प्रयोग प्राचीनकाल से ही हुआ है। यहां पर्याप्त मात्रा में लोहे के खनिज संपर्क में आने के कारण, इसका प्रयोग बुनाई, आधुनिकता, औजारों, और युद्धास्त्रों के निर्माण में किया जाता था। तमिलनाडु में हुए उत्खनन कार्य की कार्बन डेटिंग से इस बात के प्रमाण मिले हैं कि भारत में लोहे का प्रयोग 4,200 साल पहले हुआ था।
लोहे का प्रयोग भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग समयों पर हुआ है। इसकी शुरुआत यजुर्वेद काल (1900,2000 -1500 ईसा पूर्व) के दौरान हुई, जहां लोहे का प्रयोग किसानी औजारों, यांत्रिक उपकरणों, और युद्धास्त्रों में देखा जाता है।
वेदिक साहित्य में भी लोहे का प्रयोग विस्तारपूर्वक उल्लिखित है। उदाहरण के लिए, रिग्वेद में लोहे के उपयोग के बारे में उल्लेख मिलता है, जहां युद्ध के लिए विशेष औजारों की बात की गई है।
इसके अलावा, महाभारत युद्ध काल (ईसा पूर्व 9वीं-8वीं शताब्दी) में भी लोहे का व्यापक प्रयोग हुआ, जैसे युद्धास्त्रों, खड्गों, तलवारों, तोपों, और अन्य युद्धकर उपकरणों के निर्माण में।
इस प्रकार, लोहे का प्रयोग भारतीय सभ्यता और युद्धकर अद्यतन में अपार महत्व रखता है, और इसकी शुरुआत प्राचीनकाल से ही हुई है। तमिलनाडु में लोहे के प्रयोग के नवीनतम साक्ष्य 2172 ईसा पूर्व के हैं।
लौह युग (Iron Age) का अंत
600 ईसा पूर्व का उपयोग पारंपरिक रूप से और अभी भी आमतौर पर अंतिम तिथि के रूप में किया जाता है मध्य और पश्चिमी यूरोप में, पहली शताब्दी ईसा पूर्व की रोमन विजय लौह युग के अंत का प्रतीक है। स्कैंडिनेविया के जर्मनिक द्वारा 800 ईसा पूर्व को वाइकिंग युग की शुरुआत के साथ लौह युग का अंत माना जाता है।
इस प्रकार लौह युग (Iron Age) का अंत अलग-अलग क्षेत्रों और सभ्यताओं के लिए भिन्न-भिन्न समयों पर हुआ है, क्योंकि यह विभिन्न क्षेत्रों में समय के साथ विभाजित होता है। हालांकि, लौह युग का आमतौर पर विमर्श किया जाता है कि यह वेदिक सभ्यता और महाभारत काल के समय लगभग 5000 ईसा पूर्व शुरू होता है और विश्व इतिहास के अन्य हिस्सों में भी इसका समान या समकक्ष समय होता है।
इसके बाद, लौह युग के अंत के बाद विभिन्न सभ्यताओं और क्षेत्रों में विभाजित युगों या कालांतरों का आरम्भ हुआ है। जैसे कि, भारतीय इतिहास में इसके बाद कलियुग का आरम्भ हुआ है, जो अपने अंतिम युग के रूप में मान्यता प्राप्त है। यूरोपीय इतिहास में, लौह युग के बाद क्रिस्टियन मिडिल एज का आरम्भ हुआ, जो मध्यकालीन समय का व्यापक हिस्सा है।
इन्हें भी देखें –
- पाषाण काल STONE AGE | 2,500,000 ई.पू.- 1,000 ईसा पूर्व
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी (1600 – 1858)
- ब्रिटिश राज (1857 – 1947)
- भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस (1885-1947)
- सैयद वंश (1414-1451 ई.)
- टीपू सुल्तान (1750-1799 ई.)
- तुगलक वंश (1320-1413ई.)
- भारतीय परमाणु परीक्षण (1974,1998)
- लोदी वंश (1451-1526 ई.)
- भारत के स्वतंत्रता सेनानी: वीरता और समर्पण
- Revolutionary Database Management System | DBMS
- HTML’s Positive Potential: Empower Your Web Journey|1980 – Present
- A Guide to Database Systems | The World of Data Management
- Kardashev scale