भारत में वनस्पति तेल आयात रुझान 2024–25: सोयाबीन तेल का रिकॉर्ड उछाल, पाम ऑयल में गिरावट

भारत, जो दुनिया का सबसे बड़ा वनस्पति तेल आयातक है, 2024–25 विपणन वर्ष में आयात के पैटर्न में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखने जा रहा है। जहां एक ओर सोयाबीन तेल (Soybean Oil) के आयात में रिकॉर्ड बढ़ोतरी की संभावना है, वहीं पाम ऑयल (Palm Oil) का आयात पांच वर्षों के निचले स्तर तक गिर सकता है। यह परिवर्तन न केवल भारत के घरेलू तेल बाजार को प्रभावित करेगा बल्कि वैश्विक वनस्पति तेल उद्योग पर भी गहरा असर डाल सकता है।

भारत का वनस्पति तेल आयात पर निर्भरता

भारत में खाद्य तेल की मांग घरेलू उत्पादन से कहीं अधिक है। देश में तिलहन उत्पादन मौसम, खेती योग्य भूमि, और किसानों की फसल प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है। इस वजह से कुल उपभोग का 55–60% हिस्सा आयात के जरिए पूरा करना पड़ता है।
वनस्पति तेलों में प्रमुख आयातित किस्में हैं:

  • पाम ऑयल – इंडोनेशिया और मलेशिया से
  • सोयाबीन तेल – अर्जेंटीना, ब्राज़ील, अमेरिका से
  • सूरजमुखी तेल – रूस और यूक्रेन से

2024–25 में सोयाबीन तेल का रिकॉर्ड आयात

नवीनतम व्यापार अनुमानों के अनुसार, भारत 2024–25 में 55 लाख मीट्रिक टन सोयाबीन तेल का आयात करेगा।

  • 2023–24 का वास्तविक आंकड़ा: 34.4 लाख टन
  • वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि: लगभग +60%
    यह ऐतिहासिक स्तर का उछाल है और भारत के वनस्पति तेल आयात इतिहास में सोयाबीन तेल के लिए एक नया रिकॉर्ड स्थापित करेगा।

इस उछाल के प्रमुख कारण

  1. पाम ऑयल की तुलना में प्रतिस्पर्धी कीमतें
    अंतरराष्ट्रीय बाजार में पाम ऑयल की कीमतें अपेक्षाकृत अधिक हैं, जबकि सोयाबीन तेल सस्ता उपलब्ध है। रिफाइनरों के लिए यह आर्थिक रूप से अधिक लाभकारी विकल्प बन गया है।
  2. नेपाल से आयात और कर लाभ
    नेपाल से आयात पर विशेष कर लाभ (Tax Benefits) मिल रहे हैं, जिससे सोयाबीन तेल की लागत और कम हो रही है।
  3. गुणवत्ता और उपभोक्ता प्राथमिकताएं
    शहरी उपभोक्ताओं में सोयाबीन तेल के स्वास्थ्य लाभों के प्रति जागरूकता बढ़ रही है।
  4. वैश्विक आपूर्ति में स्थिरता
    अर्जेंटीना और ब्राज़ील से निर्यात में स्थिरता और उत्पादन में सुधार ने आपूर्ति को मजबूत किया है।

पाम ऑयल – पांच वर्षों का निचला स्तर

इसके विपरीत, पाम ऑयल का आयात 2024–25 में 78 लाख टन रहने का अनुमान है।

  • 2023–24 से गिरावट: –13.5%
  • न्यूनतम स्तर: 2019–20 के बाद से सबसे कम

गिरावट के कारण

  1. कीमत में बढ़त
    पाम ऑयल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें सोयाबीन तेल के मुकाबले अधिक हैं।
  2. घरेलू रिफाइनिंग में लागत दबाव
    रिफाइनरों को पाम ऑयल से बने उत्पादों की प्रतिस्पर्धा में कठिनाई हो रही है।
  3. आपूर्ति श्रृंखला के अवरोध
    मलेशिया और इंडोनेशिया से निर्यात में मौसमी और श्रम-संबंधी बाधाएं।
  4. मांग में बदलाव
    उपभोक्ताओं की ओर से हल्के और कम संतृप्त वसा वाले तेलों की मांग बढ़ना।

वैश्विक असर

पाम ऑयल आयात में यह गिरावट मलेशियाई पाम ऑयल वायदा (Futures) पर दबाव डाल सकती है। मलेशिया और इंडोनेशिया, जो वैश्विक पाम ऑयल निर्यात के बड़े खिलाड़ी हैं, उन्हें नए बाजार तलाशने पड़ सकते हैं।

सूरजमुखी तेल – तीन वर्षों का न्यूनतम आयात

सूरजमुखी तेल के आयात में भी गिरावट दर्ज की जाएगी।

  • 2024–25 अनुमान: 28 लाख टन
  • 2023–24 से गिरावट: –20%
  • न्यूनतम स्तर: पिछले तीन वर्षों का सबसे कम
    मुख्य कारण यूक्रेन और रूस से आपूर्ति में अस्थिरता तथा उच्च कीमतें हैं।

कुल वनस्पति तेल आयात – मामूली वृद्धि

हालांकि सोयाबीन तेल में भारी उछाल और पाम ऑयल में गिरावट एक-दूसरे को संतुलित कर रहे हैं, फिर भी कुल वनस्पति तेल आयात में 1% की मामूली वृद्धि होगी।

  • 2024–25 कुल अनुमान: 1.61 करोड़ टन
  • 2023–24 कुल: लगभग 1.59 करोड़ टन

भारत के लिए आर्थिक और नीति संबंधी निहितार्थ

  1. विदेशी मुद्रा पर दबाव
    रिकॉर्ड सोयाबीन तेल आयात से आयात बिल बढ़ेगा, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ सकता है।
  2. घरेलू तिलहन नीति पर सवाल
    लगातार बढ़ते आयात से यह स्पष्ट है कि तिलहन उत्पादन बढ़ाने के प्रयास पर्याप्त नहीं हैं।
  3. कर नीति की समीक्षा
    नेपाल से आयात पर कर लाभ लंबे समय तक जारी रहेंगे या नहीं, यह नीति निर्माताओं पर निर्भर करेगा।

वैश्विक बाजार पर प्रभाव

  • सोयाबीन तेल कीमतें
    2025 में पहले ही 31% बढ़ चुकी हैं, और भारत की बढ़ती मांग इन्हें और ऊपर ले जा सकती है।
  • पाम ऑयल कीमतें
    मांग में कमी से वैश्विक पाम ऑयल बेंचमार्क पर दबाव पड़ेगा, खासकर मलेशियाई वायदा बाजार में।
  • तेल उत्पादक देशों की रणनीति
    निर्यातक देश भारत जैसे बड़े खरीदार की प्राथमिकताओं में बदलाव के आधार पर अपनी उत्पादन और विपणन नीति को समायोजित करेंगे।

भविष्य की संभावनाएं और चुनौतियां

  1. घरेलू उत्पादन को बढ़ावा
    यदि भारत तिलहन फसलों का उत्पादन बढ़ाता है, तो आयात पर निर्भरता घट सकती है।
  2. कीमतों की अस्थिरता
    वैश्विक मौसम, व्यापार नीतियों और भूराजनीतिक घटनाओं से कीमतों में उतार-चढ़ाव रहेगा।
  3. उपभोक्ता स्वास्थ्य प्रवृत्तियां
    कम संतृप्त वसा और स्वास्थ्य लाभ वाले तेलों की मांग बढ़ती रहेगी, जिससे पाम ऑयल की हिस्सेदारी घट सकती है।

निष्कर्ष

2024–25 भारत के वनस्पति तेल आयात के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगा।

  • सोयाबीन तेल का रिकॉर्ड आयात भारत के रिफाइनिंग और उपभोक्ता बाजार की नई दिशा को दर्शाता है।
  • पाम ऑयल के घटते आयात से न केवल घरेलू बल्कि वैश्विक बाजार में भी मूल्य संतुलन बदल सकता है।
  • कुल मिलाकर, भारत की आयात प्राथमिकताओं में यह बदलाव आने वाले वर्षों में वनस्पति तेल उद्योग की रणनीतियों को पुनर्परिभाषित कर सकता है।

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