वाच्य किसे कहते है?

वाच्य क्रिया के उस परिवर्तन को कहते हैं, जिसके द्वारा इस बात का पता चलता है कि वाक्य के अन्तर्गत कर्ता, कर्म या भाव में से किसकी प्रधानता (पहचान) है। इससे यह स्पष्ट होता है कि वाक्य में इस्तेमाल क्रिया के लिंग, वचन तथा पुरुष कर्ता, कर्म या भाव में से किसके अनुसार है।

वाच्य की परिभाषा

  • क्रिया के जिस रूप से यह पता चले कि किसी वाक्य में कर्ता, कर्म या फिर भाव में किसी एक की प्रधानता है, उसे वाच्य कहते है। दुसरे रूप मे यह कह सकते हैं कि, क्रिया के जिस रुपान्तर से यह ज्ञात हो कि वाक्य में प्रयुक्त क्रिया का प्रधान विषय कर्ता या कर्म या फिर भाव है, तो उसे वाच्य कहते है।
  • वाच्य क्रिया के उस रूपान्तर को कहते हैं, जिससे कर्ता, कर्म और भाव के अनुसार क्रिया के परिवर्तन ज्ञात होते हैं। क्रिया के जिस रूप से यह जाना जाए कि वाक्य में क्रिया का मुख्य सम्बन्ध कर्ता, कर्म या भाव से है, वह वाच्य कहलाता है।

वाच्य का अर्थ

वाच्य का अर्थ है — वाणी या कथन। यहॉं वाणी का अर्थ — वक्ता की वाणी या वक्ता का कथन है। वस्तुत: वाच्य किसी एक बात को थोड़े से अर्थ के अंतर के साथ कहने का तरीका है। इस तरह कहे गए वाक्यों कथनों की सरंचना अलग हो जाती है। जैसे-

  • मॉं ने खाना बनाया।
  • मॉं के द्वारा खाना बनाया गया।

यद्यपि दोनो वाक्यों का अर्थ समान्य तो लग ही रहा है किंतु दोनों के अर्थ में सूक्ष्म अंतर है। दोनों की सरंचना भी अलग है। कर्ता द्वारा मॉं के कार्य खाना बनाना को प्रधानता दी गई है।
पहले वाक्य में कर्ता क्रिया को करने में सक्रिय रूप से भाग लेता है। वहीं वाक्य 2 में उसकी भूमिका निष्क्रिय हो जाती ​है।

दुसरे वाक्य में कर्ता के कार्य को नकारने या निरस्त करने का कार्य किया गया है, कार्य को निरस्त करने का अर्थ है।

वाच्य किसे कहते है?

कर्ता, कर्म या भाव (क्रिया) के अनुसार किया के रूप परिवर्तन को वाच्य कहते हैं, दूसरे शब्दों में, वाक्य में किसकी प्रधानता है, अर्थात् क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्ता के अनुसार होंगे या कर्म के अनुसार अथवा स्वयं भाव के अनुसार, इसका बोध वाच्य’ है। जैसे-

राम रोटी खाता है। (कर्ता के अनुसार क्रिया) कर्ता की प्रधानता।

यहाँ कर्ता के अनुसार क्रिया का अर्थ है—

राम (कर्ता) = खाता है (क्रिया) ।

राम — पुलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष

खाता है —  पुलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष    ।

राम द्वारा रोटी खाई गई। (कर्म के अनुसार क्रिया) — कर्म की प्रधानता ।

यहाँ कर्म के अनुसार क्रिया का अर्थ है —

रोटी (कर्म) = खाई गई (क्रिया)। 

रोटी — स्त्रीलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष।

खाई गई — स्त्रीलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष  ।

सीता से चला नहीं जाता। (भाव के अनुसार क्रिया) — भाव की प्रधानता । 

यहाँ भाव (क्रिया) के अनुसार क्रिया का अर्थ है —

चला (भाव या क्रिया) = जाता (क्रिया)।

चला — पुंलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष ।

जाता —पुंलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष ।

वाच्य के भेद

क्रिया के जिस रुप से यह पता चले कि वाक्य में कर्ता, कर्म या भाव में से किस की प्रधानता है, उसे वाच्य कहते हैं। अर्थात क्रिया के आधार पर वाक्य के भेदों को वाच्य नाम दिया गया है। इस प्रकार से क्रिया के आधार पर, वाच्य के तीन भेद होते हैं: –

  1. कर्तृवाच्य (Active Voice) अथवा कार्यवाचक वाक्य (कर्तव्य क्रिया)
  2. कर्मवाच्य (Passive Voice) अथवा भाववाचक वाक्य (स्थिति क्रिया)
  3. भाववाच्य (Impersonal Voice) अथवा ज्ञानवाचक वाक्य (ज्ञान क्रिया)

कर्तृवाच्य (Active Voice)

क्रिया के जिस रूप में कर्ता की प्रधानता होती है और क्रिया का सीधा तथा प्रधान सम्बन्ध कर्ता से होता है, उसे कर्तृवाच्य कहते है। इस वाच्य में क्रिया के लिंग और वचन कर्ता के अनुसार होते है। अथवा जिस वाक्य में कर्ता मुख्य हो और क्रिया कर्ता के लिंग, वचन एवं पुरूष के अनुसार हो, उसे कर्तृवाच्य कहते है। जैसे –

  • लड़किया बाजार जा रही है।
  • मां रामायण पढ़ रही है।
  • कुमकुम खाना खाकर सो गई।

इन वाक्यों में जा रही है, पढ़ रहा हूँ, सो गई ये सभी क्रियाएं कर्ता के अनुसार आई है।

2.कर्मवाच्य (Passive Voice)

क्रिया के जिस रूप में कर्म की प्रधानता पाई जाती है तथा क्रिया का सीधा सम्बन्ध कर्म से ही होता है, तो उसे कर्मवाच्य कहते है। यहां ध्यान रहे की लिंग और वचन कर्म के अनुसार ही कार्य करते है। अथवा जिस वाक्य में कर्म मुख्य हो तथा इसकी सकर्मक क्रिया के लिंग, वचन व पुरूष कर्म के अनुसार हो, उसे कर्मवाच्य कहते हैं। जैसे –

  • लड़कियों द्वारा बाज़ार जाया जा रहा है।
  • मेरे द्वारा रामायण पढ़ी जा रही है।
  • वर्षा से पुस्तक पढ़ी गई।

इन वाक्यों में पढ़ी जा रहीं है, पढ़ी गई क्रियाएं कर्म के लिंग, वचन, पुरूष के अनुसार आई है।

3.भाववाच्य (Impersonal Voice)

क्रिया के जिस रूप में भाव की प्रधानता होती है और क्रिया का सीधा सम्बन्ध भाव से ही होता है, उस वाक्य को भाववाच्य कहते है। यहाँ यह ध्यान रहे की यह केवल अकर्मक क्रिया के साथ ही प्रयोग किये जाते है। अथवा

जिस वाक्य में अकर्मक क्रिया का भाव मुख्य हो, उसे भाववाच्य कहते हैं। जैसे –

  • हमसे वहाँ नहीं ठहरा जाता।
  • उससे आगे क्यों नहीं पढ़ा जाता।
  • मुझसे शोर में नहीं सोया जाता।

इन वाक्यों में ठहरा जाता, पढ़ा जाता और सोया जाता क्रियाएं भाववाच्य की है।

कर्म वाच्य और भाव वाच्य में अंतर

कर्मवाच्यभाववाच्य
कर्मवाच्य में कर्म की प्रधानता होती है।भाववाच्य मे भाव की प्रधानता होती है, कर्म की नहीं।
इसमे नहीं शब्द का प्रयोग नहीं होता है।इनमे अधिकतर नहीं शब्द का प्रयोग होता है।
इस वाच्य मे हमेशा सकर्मक क्रिया के ही वाक्य होते है।इस वाच्य मे केवल अकर्मक क्रिया के ही वाच्यों का प्रयोग किया जाता है।

वाच्य रूपांतर (परिवर्तन)

एक वाध्य से दूसरे वाच्य में परिवर्तन वाच्य परिवर्तन या रूपांतर कहलाता है। परन्तु ऐसे परिवर्तन से वाक्य के अर्थ या क्रिया के काल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। जैसे—

कर्तृवाच्यकर्मवाच्य
मै रोटी खाता हूँ।मेरे द्वारा रोटी खाई जाती है।
मैं रोटियाँ खाता हूँ ।मेरे द्वारा रोटियाँ खाई जाती हैं।
गीता भात खाती है।गीता द्वारा भात खाया जाता है।
तुम अंडे खाते हो।तुम्हारे द्वारा अंडे खाए जाते हैं।
आप अंडे खा रहे थे।आपके द्वारा अंडे खाए जा रहे थे।
वह अंडा खाएगा।उसके द्वारा अंडा खाए जाते है।
माँ बच्चो को खिला रही है।मां द्वारा बच्चे खिलाए जा रहे है।
आप मेरी सहायता करते है।आपके द्वारा मेरी सहायता की जाती है।
राजू कुत्ते को भरा रहा है।राजू द्वारा कुत्ते को भगाया जा रहा है।
बच्चे बिल्लियों को सूला रहे है।बच्चों द्वारा बिल्ल्लियाँ सुलाई जा रही है।
वे मुझे अंग्रेजी पढ़ते थे।उनके द्वारा मुझे अंग्रेजी पढाई जाती थी।
राम आम खा चूका है।राम द्वारा आम खाया जा चूका है।

कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य मे परिवर्तन

कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य मे परिवर्तन करने के लिए किसी वाक्य को निम्न परिवर्तनों को करना पड़ता है-

  • कर्तृवाच्य के मुख्य कर्ता के साथ से, द्वारा विभक्ति आदि को जोड़कर उसे करण कारक बना दिया जाता है।
  • इसमे क्रिया को साधारण से संयुक्त मे बदला जाता है।
  • वाक्य मे क्रिया का प्रयोग कर्म के लिंग और वचन के आधार पर किया जाता है।
  • कर्तृवाच्य की मुक्य क्रिया को ही सामान्य भूतकाल में परिवर्तन कर दिया जाता है।
  • कर्म के साथ कोई-भी परसर्ग होता है तो उसे वहाँ से हटा दिया जाता है।
कर्तृवाच्यकर्मवाच्य
फैक्टरी बंद कर दी।फैक्टरी बंद करा दी गई।
राकेश पुस्तक पढ़ रहा हैराकेश के द्वारा पुस्तक पढ़ी जा रही है।
महेश पत्र लिखता है।महेश के द्वारा पत्र लिखा जाता है।
चलो, खाना खाते हैं।चलो खाना खाया जाए।
माला ने खाना खाया।माला के द्वारा खाना खाया गया।
आप गाना गाइए।आपके द्वारा गाना गया जाय।
दादाजी अखबार पढ़ते है।दादाजी द्वारा अखबार पढ़ा गया।
बच्चे शोर मचाएँगे।बच्चों के द्वारा शोर मचाया जाएगा।
सचिन मैच खेलने चेन्नई जाएँगे।सचिन के द्वारा मैच खेलने चेन्नई जाया जाएगा।
कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य

कर्तृवाच्य से भाववाच्य मे परिवर्तन

कर्तृवाच्य को भाववाच्य मे बदलने के लिए निम्न परिवर्तन करने होते है-

  • कर्तृवाच्य के मुख्य कर्ता के साथ द्वारा, से विभक्तियों को जोड़कर उसे करण कारण बना दिया जाता है।
  • कर्तृवाच्य की मुख्य क्रिया को भाववाच्य से सामान्य भूतकाल में बदलकर जाना क्रिया का रूप काल के अनुरूप प्रयोग करते हैं।
  • मुख्य क्रिया को सामान्य क्रिया में एवं अन्य पुरुष पुल्लिंग एकवचन में स्वतन्त्र रूप मे ही रखा जाता है।
कर्तृवाच्यभाववाच्य
चलो, अब सोते हैं।हमसे हँसा नहीं जाता।
बच्चे शान्त नहीं रह सकते।बच्चों से शान्त नहीं रहा जाता।
अब चलते हैं।अब चला जाय।
मैं यह दृश्य नहीं देख सका।मुझसे यह दृश्य नहीं देखा गया।
मजदूर पत्थर नहीं तोड़ रहे।मजदूरों से पत्थर नहीं तोड़े जा रहे।
मैं अख़बार नहीं पढ़ सकता।मुझसे अख़बार पढ़ा नहीं जाता।
कर्तृवाच्य से भाववाच्य

कर्मवाच्य से कर्तृवाच्य मे परिवर्तन

कर्मवाच्य से कर्तृवाच्य में रूपानतर्ण करने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखा जाता है-

  • भूतकाल की सकर्मक क्रिया रहने पर कर्म के लिंग, वचन के अनुसार ही क्रिया को रखा जाता है।
  • कर्ता के अपने चिन्ह आवश्यकतानुसार लगाने चाहिए।
  • यदि वाक्य की क्रिया वर्तमान एवं भविष्यत् की है तो कर्तानुसार हि क्रिया के रूप रचना रखनी चाहिए।
कर्मवाच्यकर्तृवाच्य
उस बेचारी से रोया भी नहीं जाता।वह बेचारी रो भी नहीं सकती।
पक्षियों से रात में सोया जाता है।पक्षी रात में सोते हैं।
मुझसे अखबार पढ़ा नहीं जाता।मैं अखबार नहीं पढ़ सकता।
चलो, अब सोया जाय।चलो, अब सोते हैं।
मजदूरों से पत्थर नहीं तोड़े जा रहे।मजदूर पत्थर नहीं तोड़ रहे।
उनसे गाया नहीं जाता।वे गा नहीं सकते।

क्रिया के प्रयोग

क्रिया के पुरुष, लिंग और वचन कहीं-कहीं कर्त्ता के अनुसार होते हैं, कहीं कर्म के अनुसार और कहीं इन दोनों में से किसी के अनुसार भी नहीं होते। क्रिया का प्रयोग तीन तरह से होता है –

  • कर्तृ प्रयोग – श्याम किताब पढ़ेगा।
  • कर्मणि प्रयोग – श्याम को किताब पढ़नी पड़ेगी (होगी)।
  • भावे प्रयोग – श्याम से अब पढ़ा नहीं जाएगा।

कर्तृ प्रयोग

जिसमें क्रिया के पुरुष, लिंग और वचन कर्त्ता के अनुसार होते हैं, क्रिया के उस प्रयोग को ‘कर्तृ प्रयोग’ कहते हैं। इसमें वर्तमान काल और भविष्यत काल में कर्त्ता विभक्ति-चिन्ह रहित होता है। जैसे –

  • चतुर्वेदी खत लिखता है।
  • सुशीला फूल तोड़ेगी।
  • रागिनी गीत गा रही है।

कर्मिणी प्रयोग

इसमें क्रिया के पुरुष और वचन कर्म के अनुसार होते हैं। कर्मिणी प्रयोग में कर्तृवाच्य में भूतकाल में कर्त्ता के साथ (ने) और कर्मवाच्य में सभी कालों में (से, के द्वारा) लगते हैं। इसमें कर्म के साथ ‘को’ विभक्ति-चिन्ह नहीं लगता। जैसे –

  • सुरेश ने पुस्तक पढ़ी।
  • सुशीला ने फूल तोड़ा।
  • सौम्या फोटोग्राफी करती है।

भावे प्रयोग

इसमें क्रिया के पुरुष, लिंग और वचन कर्त्ता या कर्म के आश्रित नहीं होते, अपितु क्रिया सदा अन्य पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन में होती है। भाववाच्य की सभी क्रियाएँ भावे प्रयोग में आती हैं। जैसे –

  • मयंक खुद को बहुत स्मार्ट समझ रहा था।
  • मुकुल ने गाड़ी का बीमा नहीं करवाया।
  • प्रशांत स्पीकर पर गाने सुनता है।

इन्हें भी देखें-

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