वारसॉ संधि | 1955-1991 | सोवियत संघ का एक महत्वपूर्ण पहल और ग्लोबल समर्थन

वारसॉ संधि संगठन (जिसे वारसा संधि के रूप में भी जाना जाता है) 14 मई, 1955 को सोवियत संघ और कई पूर्वी यूरोपीय देशों के बीच स्थापित एक राजनीतिक और सैन्य गठबंधन था। सोवियत संघ ने उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के प्रति संतुलन के रूप में इस गठबंधन का निर्माण किया। नाटो 1949 में संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और पश्चिमी यूरोपीय देशों के बीच संपन्न एक सामूहिक सुरक्षा गठबंधन था।

वारसॉ संधि का इतिहास

वारसॉ संधि के निर्माण से पहले, चेकोस्लोवाक नेतृत्व, एक सशस्त्र जर्मनी से भयभीत होकर, पूर्वी जर्मनी और पोलैंड के साथ एक सुरक्षा समझौता बनाने की मांग कर रहा था। इन राज्यों ने पश्चिमी जर्मनी के पुनः सैन्यीकरण का कड़ा विरोध किया।

वारसॉ संधि नाटो के अंदर पश्चिम जर्मनी के पुन:सशक्त होने के परिणामस्वरूप लागू की गई थी। आयरन कर्टेन के दोनों ओर के कई यूरोपीय नेताओं की तरह, सोवियत नेताओं को डर था कि जर्मनी एक बार फिर एक सैन्य शक्ति और प्रत्यक्ष खतरा बन जाएगा। जर्मन सैन्यवाद का परिणाम सोवियत और पूर्वी यूरोपीय लोगों के बीच एक ताज़ा स्मृति के रूप में था।

चूंकि 1955 तक सोवियत संघ के पास पहले से ही अपने पूर्वी उपग्रह राज्यों पर एक सशस्त्र उपस्थिति और राजनीतिक प्रभुत्व था, इस समझौते को लंबे समय से “अतिश्योक्तिपूर्ण” माना जाता रहा है, और जिस जल्दबाजी में इसकी कल्पना की गई थी, उसके कारण नाटो अधिकारियों ने इसे लेबल कर दिया।

पश्चिमी जर्मनी में जर्मन सैन्यवाद की बहाली के डर से यूएसएसआर ने 1954 में सुझाव दिया था कि वह नाटो में शामिल हो जाए, लेकिन अमेरिका ने इसे अस्वीकार कर दिया।

वारसा संधि का संक्षिप्त विवरण

स्थापना14 May 1955
विघटन1 July 1991
प्रकारMilitary alliance
मुख्यालयमॉस्को, सोवियत संघ
सदस्य देशअल्बानिया , चेकोस्लोवाकिया, सोवियत संघ, रोमानिया, हंगरी, बुल्गारिया, पोलैंड, पूर्वी जर्मनी
संयुक्त स्टाफ के प्रमुखVladimir Lobov (अंतिम)
सुप्रीम कमांडरPetr Lushev (अंतिम)
वारसा संधि (Warsaw Pact) Logo
वारसॉ संधि (Warsaw Pact) Logo

वारसॉ संधि (Warsaw Pact) का उद्देश्य

वारसॉ संधि (Warsaw Pact) का मुख्य उद्देश्य था सोवियत संघ के नेतृत्व में ईस्टर्न ब्लॉक (Eastern Bloc) के देशों के बीच सुरक्षा और सैन्य सहायता का सान्दर्भिक संगठन बनाना। इस संधि की स्थापना 1955 में हुई थी और यह ईस्टर्न ब्लॉक के देशों के बीच सोवियत संघ के साथ एकजुट होने और समझौता करने का परिणाम था।

वारसॉ संधि के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे:

  1. सुरक्षा: इसका मुख्य उद्देश्य था ईस्टर्न ब्लॉक के देशों को सोवियत संघ के नेतृत्व में सुरक्षा प्रदान करना। इससे यह संघ नैटो (NATO) जैसे पश्चिमी संघर्षों के खिलाफ सजग रहता और उनकी रक्षा करने की क्षमता बढ़ती थी।
  2. आपसी सहायता: वारसॉ संधि के अंतर्गत, सदस्य देश एक दूसरे के साथ सैन्य सहायता कर सकते थे। यह समझौता उन्हें सामरिक और सामरिक आपूर्ति की आवश्यकताओं का समर्थन करने में मदद करता था।
  3. संयुक्त अभ्यास: सदस्य देशों के बीच संयुक्त अभ्यास (joint exercises) का आयोजन किया जाता था, जिससे वे सैन्य सामरिकता में सुधार कर सकते थे।
  4. पॉलिटिकल सपोर्ट: वारसॉ संधि के माध्यम से, सदस्य देश सोवियत संघ के राजनीतिक समर्थन का आदान-प्रदान करते थे।
  5. ईस्टर्न ब्लॉक के आदर्शों का समर्थन: संधि के सदस्य देशों का अधिकार था कि वे सोवियत संघ के विचारों और आदर्शों का पालन करें और वारसॉ संधि के सदस्य बनने से उन्हें सोवियत संघ के साथ बढ़ती सामरिक और सियासी समर्थन मिलता था।

वारसॉ संधि का उद्देश्य यदि संक्षेप में कहें, ईस्टर्न ब्लॉक के देशों को सोवियत संघ के साथ सजग रहने और सैन्य सुरक्षा में मदद करने का संगठन था। यह संधि ठीक तरीके से सोवियत संघ के साथ गठबंधन और सैन्य सामरिकता को प्रमोट करने का उद्देश्य रखती थी।

वारसॉ संधि के सदस्य

संधि के संस्थापक हस्ताक्षरकर्ताओं में निम्नलिखित साम्यवादी सरकारें शामिल थीं:

  • सोवियत संघ (Soviet Union) : संघ का प्रमुख सदस्य और संधि की स्थापक देश था।
  • अल्बानिया (Albania) : पीपुल्स सोशलिस्ट रिपब्लिक ऑफ अल्बानिया (सोवियत-अल्बानियाई विभाजन के कारण 1961 में समर्थन रोक दिया गया, लेकिन 13 सितंबर 1968 को औपचारिक रूप से वापस ले लिया गया)
  • बुल्गारिया जनवादी गणराज्य (Bulgaria)
  • चेकोस्लोवाकिया चेकोस्लोवाक समाजवादी गणराज्य (Czechoslovakia): आजकल की चेक गणराज्य (Czech Republic) और स्लोवाकिया (Slovakia) के रूप में दो अलग-अलग देश हैं।
  • पूर्वी जर्मनी (East Germany) : पूर्वी जर्मनी, जिसे जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (German Democratic Republic, GDR) अथवा जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य भी कहा जाता था। 24 सितंबर 1990 को जर्मन पुनर्मिलन (German Reunification) की तैयारी के लिए सोवियत सहमति का आधिकारिक घोषणा जर्मनी में महत्वपूर्ण घटना थी। यह घटना पश्चिमी और पूर्वी जर्मनी के विलय का मार्ग प्रशस्त कर रही थी और दुनिया के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पल की शुरुआत थी। इसके पीछे कुछ मुख्य कारण थे:
    • बर्त्सेलोना प्रोसेस: सोवियत संघ और पश्चिमी दुनिया के बीच संदेशों के माध्यम से बातचीत चल रही थी, और इसे बर्त्सेलोना प्रोसेस (Barcelona Process) कहा जाता था। इसमें जर्मनी के विलय के संदर्भ में चर्चा भी थी।
    • सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था की स्थिति: सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था में संकट था, और यह सोवियत संघ को जर्मन विलय की पूरी तरह से रोकने का विचार कर रहा था।
    • जर्मन लोगों की मांग: पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के लोगों की दरों और आकांक्षाओं का संघ के नेतृत्व में मिलाना चाहिए, और उनका विलय होना चाहिए, इसकी मांग बढ़ गई थी।
    • पश्चिमी दुनिया की दबाव: पश्चिमी दुनिया, खासकर अमेरिका, ने सोवियत संघ को जर्मन विलय को समर्थन देने के लिए दबाव डाला।
    • 3 अक्टूबर को जर्मन पुनर्मिलन पूरी तरह से हो गया, जिसके परिणामस्वरूप जर्मन रिपब्लिक (ईस्ट जर्मनी) और जर्मन संघ का एकीकरण हुआ। इससे नए, एकीकृत जर्मनी का जन्म हुआ और यह एक महत्वपूर्ण घटना थी जो दुनिया के इतिहास में हुई।
  • हंगेरियन पीपुल्स रिपब्लिक (Hungary): (हंगेरियन क्रांति के दौरान 1-4 नवंबर 1956 को अस्थायी रूप से वापस ले लिया गया)
  • पोलिश पीपुल्स रिपब्लिक (Poland)
  • रोमानिया (Romania) का समाजवादी गणराज्य: रोमानिया का समाजवादी गणराज्य वारसॉ संधि का एकमात्र स्वतंत्र स्थायी गैर-सोवियत सदस्य, जिसने 1960 के दशक की शुरुआत में खुद को सोवियत उपग्रह स्थिति से मुक्त कर लिया था।

इन देशों ने वारसॉ संधि के तहत एक साथ आने का समझौता किया था, जिसका मुख्य उद्देश्य सोवियत संघ के नेतृत्व में विदेशी सैन्य के आक्रमण से अपनी सुरक्षा को बढ़ावा देना था। यह संधि 20वीं सदी के बीच दुनिया के दो मुख्य ब्लॉक – पश्चिमी दुनिया के नैटो (NATO) और ईस्टर्न ब्लॉक के वारसॉ संधि के बीच द्विपक्षीय संघर्ष के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुआ था।

मंगोलिया और सोवियत संघ के बीच वारसॉ संधि में सुधार(1963)

1963 में, मंगोलिया ने मंगोलियाई पीपुल्स रिपब्लिक के रूप में अपना स्वराज्य प्रकट किया और सोवियत संघ के साथ संबंध स्थिर किए। इस दौरान, मंगोलिया ने सोवियत संघ के साथ वारसॉ संधि में शामिल होने का दावा किया, जैसा कि संधि के अनुच्छेद 9 के तहत था।

हालांकि, चीन और सोवियत संघ के बीच बढ़ते विभाजन के कारण, मंगोलिया पर्यवेक्षक की स्थिति में थी। मंगोलिया के वारसा संधि में शामिल होने का प्रयास, उभरते चीन-सोवियत विभाजन के समय अवरुद्ध हो गया। इसका अर्थ था कि मंगोलिया अब वारसा संधि में शामिल नहीं हो सकता था, और यह रोमानिया द्वारा वारसा संधि में मंगोलिया के प्रवेश को अवरुद्ध करने का पहला उदाहरण था।

1966 में, सोवियत सरकार ने मंगोलिया में सेना तैनात करने पर सहमत हो गई, और सोवियत संघ के पर्यवेक्षक के रूप में मंगोलिया को मान्यता दी। प्रारंभ में, चीन, उत्तर कोरिया, और उत्तरी वियतनाम को पर्यवेक्षक के दर्जे में शामिल किया गया था, लेकिन 1961 में चीन ने अल्बानियाई-सोवियत विभाजन के परिणामस्वरूप अपनी समर्थन भूमिका से हट गई, जिसके बाद चीन ने बड़े चीन-सोवियत विभाजन के हिस्से के रूप में यूएसएसआर के खिलाफ अल्बानिया का समर्थन किया।

यह घटनाक्रम चीन और सोवियत संघ के बीच बढ़ते तनाव का प्रमुख उदाहरण था, जिसमें वारसा संधि के माध्यम से एक गैर-सोवियत सदस्य द्वारा सोवियत प्रस्ताव को अवरुद्ध करने का प्रथम प्रयास किया गया था।

वारसॉ संधि के अवलोकक अथवा पर्यवेक्षक (Warsaw Pact’s Observers)

वारसॉ संधि (Warsaw Pact) के अवलोकक थे (Observers) वो देश थे जो संधि के सदस्य नहीं थे, लेकिन वे संधि के कार्यक्रमों और सदस्यों के बीच नजर रखते थे। वे अक्सर संधि के सदस्यों के साथ सामरिक अभ्यास और संगठन कार्यक्रमों में भाग लेते थे और उनका उद्देश्य सोवियत संघ के साथ दोस्ताना संबंध बनाने और उनके राजनीतिक और सैन्य गतिविधियों का नजरअंदाज करना था।

कुछ देश वारसॉ संधि के अवलोकक बनने के बावजूद उसके पूर्व या पर्यावेक्षक के साथ संबंध बनाने का फैसला करते थे, और कुछ ने अपने स्वायत्त नीति और रक्षा के प्रसार के लिए इसका उपयोग किया।

यह कुछ वारसॉ संधि के पर्यवेक्षक(अवलोकक) के उदाहरण हैं:

  1. मोंगोलिया (Mongolia): मोंगोलिया वारसॉ संधि के अवलोकक था और यह संधि के कार्यक्रमों में भाग लेता था, लेकिन यह संधि के सदस्य नहीं था।
  2. ईजरायल (Israel): ईजरायल ने वारसॉ संधि के अवलोकक के तौर पर कुछ समय तक भाग लिया, लेकिन बाद में यह भागीदारी समाप्त कर दी गई।
  3. फिनलैंड (Finland): फिनलैंड ने भी वारसॉ संधि के अवलोकक के रूप में कुछ समय के लिए भाग लिया, लेकिन यह भी बाद में संधि से अलग हो गया।

ये अवलोकक देश (Observers) संधि के सदस्य नहीं थे, लेकिन उनका संधि के सदस्यों के साथ सामरिक और राजनीतिक संबंध था, और वे संधि के गतिविधियों पर नजर रखते थे।

वारसा संधि का अंत

वारसॉ संधि एक संधि थी जिसने एक पारस्परिक-रक्षा संगठन की स्थापना की। यह मूल रूप से सोवियत संघ और अल्बानिया, बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, पूर्वी जर्मनी, हंगरी, पोलैंड और रोमानिया से बना था। बाद में अल्बानिया 1968 में समझौते से हट गया और पूर्वी जर्मनी 1990 में पीछे हट गया।

पूर्वी यूरोप में 1989 की लोकतांत्रिक क्रांतियों के बाद, वारसॉ संधि मरणासन्न हो गई और 1 जुलाई, 1991 को प्राग, चेकोस्लोवाकिया में वारसॉ संधि के नेताओं की अंतिम शिखर बैठक में औपचारिक रूप से “अस्तित्वहीन” घोषित कर दिया गया।


इन्हें भी देखें –

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