पिछले एक दशक में भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट—जिसमें केरल, कर्नाटक और गोवा शामिल हैं—पर समुद्री जीवों के तट पर फँसने की घटनाओं में उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज की गई है। विशेषकर व्हेल (Whale) जैसी विशाल समुद्री स्तनधारियों का बार-बार तट पर आ जाना न केवल वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों को चिंतित कर रहा है, बल्कि समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी खतरे की घंटी है। आँकड़े बताते हैं कि पिछले दस वर्षों में इन घटनाओं में लगभग दस गुना इज़ाफा हुआ है। केवल 2023 में ही नौ घटनाएँ दर्ज की गईं, जो सामान्य से कहीं अधिक है।
यह प्रश्न केवल किसी समुद्री प्रजाति के जीवन-मरण का नहीं है, बल्कि महासागर के संपूर्ण स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन से जुड़े वैश्विक संकट से गहराई से संबंधित है।
व्हेल का परिचय
व्हेल समुद्री स्तनधारी (Marine Mammals) हैं, जिनका संबंध सेटेशिया (Cetacea) वर्ग से है। यह वर्ग दो प्रमुख समूहों में विभाजित है:
- बेलीन व्हेल (Mysticeti):
- इन व्हेल में दाँत नहीं होते, बल्कि इनके पास छन्नी जैसी संरचना (Baleen Plates) होती है, जिनकी मदद से ये समुद्र के पानी से प्लवक (Plankton) और छोटी मछलियों को छानकर खाती हैं।
- ब्लू व्हेल, हंपबैक व्हेल, फिन व्हेल इस समूह में आती हैं।
- दाँत वाली व्हेल (Odontoceti):
- इनमें वास्तविक दाँत होते हैं और ये शिकार के लिए ध्वनि (Echolocation) का उपयोग करती हैं।
- स्पर्म व्हेल, किलर व्हेल (Orca), डॉल्फिन और बेलूगा व्हेल इसी समूह का हिस्सा हैं।
व्हेल की सबसे उल्लेखनीय विशेषता यह है कि ये मछलियों की तरह गलफड़ों से नहीं, बल्कि फेफड़ों से सांस लेती हैं, इसलिए इन्हें समय-समय पर सतह पर आकर हवा लेनी पड़ती है। ये गर्म रक्त वाली होती हैं और अपने बच्चों को दूध पिलाती हैं।
ब्लू व्हेल अब तक ज्ञात पृथ्वी पर सबसे बड़ा जीव है, जिसकी लंबाई 30 मीटर तक और वज़न 180 टन तक हो सकता है।
व्हेल का पारिस्थितिक महत्व
व्हेल केवल महासागर की शोभा नहीं हैं, बल्कि समुद्री पारिस्थितिकी में इनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- कार्बन संग्रहण (Whale Carbon Sink):
- एक बड़ी व्हेल अपने शरीर में कई टन कार्बन डाइऑक्साइड संग्रहित कर सकती है।
- व्हेल की मृत्यु के बाद जब उसका विशाल शरीर समुद्र की गहराई में चला जाता है, तब यह कार्बन हजारों वर्षों तक समुद्री तल में सुरक्षित रहता है।
- वैज्ञानिकों के अनुसार, केवल एक व्हेल अपने जीवनकाल में उतना CO₂ अवशोषित कर सकती है जितना हज़ारों पेड़ करते हैं।
- प्लवक (Plankton) की वृद्धि:
- व्हेल का मल पोषक तत्वों से भरपूर होता है, जिसमें नाइट्रोजन और आयरन प्रचुर मात्रा में होते हैं।
- यह मल समुद्र में प्लवक की वृद्धि को बढ़ावा देता है।
- प्लवक ही वातावरण से CO₂ अवशोषित कर ऑक्सीजन छोड़ते हैं। माना जाता है कि पृथ्वी पर हर दूसरा सांस प्लवक के कारण ही संभव है।
- समुद्री खाद्य श्रृंखला का संरक्षण:
- व्हेल खाद्य जाल (Food Web) में संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं।
- इनकी उपस्थिति छोटे समुद्री जीवों से लेकर बड़ी मछलियों तक सब पर अप्रत्यक्ष प्रभाव डालती है।
इस प्रकार, व्हेल का अस्तित्व केवल एक प्रजाति का संरक्षण नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण महासागरीय स्वास्थ्य और मानव जीवन की स्थिरता से जुड़ा हुआ है।
व्हेल की प्रजातियाँ और संरक्षण स्थिति
विश्व में लगभग 13 प्रमुख व्हेल प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से 6 प्रजातियाँ अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की रेड लिस्ट में लुप्तप्राय (Endangered) या असुरक्षित (Vulnerable) श्रेणी में दर्ज हैं।
- ब्लू व्हेल: लुप्तप्राय
- फिन व्हेल: लुप्तप्राय
- स्पर्म व्हेल: असुरक्षित
- हंपबैक व्हेल: संकटग्रस्त से उबर रही है
- ब्राइड्स व्हेल (Bryde’s whale): भारत के तट पर सबसे अधिक पाई जाने वाली और सबसे अधिक फँसने वाली प्रजाति
भारत के समुद्री जल में ब्राइड्स व्हेल के दो आनुवंशिक रूप (Genetically Distinct Forms) पाए जाते हैं, जो इसे संरक्षण दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण बनाते हैं।
व्हेल फँसने की समस्या (Whale Stranding)
आँकड़े और प्रवृत्ति
- 2003–2013 के बीच भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट पर प्रति वर्ष औसतन 3 घटनाएँ दर्ज होती थीं।
- लेकिन 2014–2023 के बीच यह संख्या तीन गुना बढ़कर लगभग 9 घटनाएँ प्रतिवर्ष हो गई।
- केवल 2023 में ही 9 घटनाएँ दर्ज की गईं, जिनमें से अधिकतर अगस्त से नवंबर के बीच हुईं।
प्रमुख कारण
- जलवायु परिवर्तन:
- समुद्र का तापमान बढ़ने से व्हेल की भोजन श्रृंखला और प्रवासी मार्ग (Migration Routes) प्रभावित हो रहे हैं।
- समुद्र में ऑक्सीजन की कमी (Ocean Deoxygenation) इन्हें उथले तटों की ओर धकेल रही है।
- मत्स्य शिकार और जाल:
- बड़े मछली पकड़ने वाले जालों में फँसकर व्हेल घायल या मृत हो जाती हैं।
- कई बार ये जाल उन्हें सतह तक पहुँचने से रोक देते हैं।
- ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution):
- जहाजों और पनडुब्बियों से उत्पन्न शोर व्हेल की Echolocation प्रणाली को बाधित करता है।
- दिशा भ्रम (Disorientation) के कारण वे तट पर आ जाती हैं।
- जहाजों से टक्कर:
- बड़े जहाजों की गति और आकार के कारण व्हेल प्रायः उनकी चपेट में आ जाती हैं।
- आवास का क्षरण:
- समुद्री तटों का अतिक्रमण, बंदरगाह निर्माण, औद्योगिक अपशिष्ट और तेल रिसाव से इनके आवास को गंभीर नुकसान हो रहा है।
- समुद्री धाराओं की तीव्रता:
- भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट पर मानसून के बाद समुद्र में तेज तटीय धाराएँ बनती हैं, जो व्हेल को तट की ओर खींच लाती हैं।
दक्षिण-पश्चिमी भारत का परिप्रेक्ष्य
केरल, कर्नाटक और गोवा का तट हिंद महासागर क्षेत्र का एक समृद्ध समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र है। यहाँ पाई जाने वाली व्हेलों में ब्राइड्स व्हेल सबसे प्रमुख है।
- केरल: सबसे अधिक घटनाएँ यहीं दर्ज हुई हैं।
- कर्नाटक: कारवार और मंगळुरु तट पर व्हेल के शव पाए गए हैं।
- गोवा: समुद्री पर्यटन क्षेत्र होने के कारण यहाँ की घटनाएँ अधिक ध्यान आकर्षित करती हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि अरब सागर में बढ़ते तापमान और समुद्री धाराओं में बदलाव ने इस क्षेत्र को व्हेल फँसने का हॉटस्पॉट बना दिया है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
- व्हेल फँसने के पीछे कभी-कभी समूह व्यवहार (Mass Stranding) भी कारण होता है।
- अगर एक व्हेल दिशा भ्रमित होकर तट पर आ जाती है तो पूरा समूह उसका पीछा करता है।
- ध्वनि प्रदूषण और चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन भी इनके नेविगेशन तंत्र को प्रभावित कर सकता है।
भारतीय वैज्ञानिक इस समस्या को समझने के लिए डीएनए विश्लेषण, उपग्रह ट्रैकिंग और ध्वनि निगरानी (Acoustic Monitoring) जैसे आधुनिक तरीकों का प्रयोग कर रहे हैं।
संरक्षण उपाय
- वैज्ञानिक निगरानी तंत्र:
- समुद्री स्तनधारियों की निगरानी के लिए उपग्रह आधारित प्रणाली विकसित करनी होगी।
- व्हेल की प्रवासी राहों को चिन्हित करना आवश्यक है।
- मछली पकड़ने की नीति में सुधार:
- बड़े जालों पर नियंत्रण लगाया जाए।
- “व्हेल-सेफ फिशिंग नेट” को बढ़ावा दिया जाए।
- शोर प्रदूषण पर नियंत्रण:
- जहाजों की गति सीमा निर्धारित की जाए।
- नौसैनिक अभ्यास और औद्योगिक गतिविधियों से उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करना होगा।
- जन-जागरूकता अभियान:
- स्थानीय मछुआरों और तटीय समुदायों को प्रशिक्षण दिया जाए कि यदि व्हेल तट पर आ जाए तो क्या कदम उठाए जाएँ।
- “बीच रेस्क्यू टीमें” बनाई जाएँ।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग:
- चूँकि व्हेल प्रवासी जीव हैं, इनके संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और समझौते आवश्यक हैं।
निष्कर्ष
भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट पर बढ़ती व्हेल फँसने की घटनाएँ केवल एक क्षेत्रीय पर्यावरणीय समस्या नहीं हैं, बल्कि यह वैश्विक जलवायु संकट और समुद्री पारिस्थितिकी के असंतुलन की गवाही देती हैं। व्हेल महासागर के “इंजीनियर” और “कार्बन सिंक” हैं। यदि इनका संरक्षण नहीं किया गया तो महासागर का स्वास्थ्य बिगड़ेगा, जो अंततः मानव सभ्यता के लिए भी संकट बन जाएगा।
समय की मांग है कि भारत न केवल अपने तटवर्ती क्षेत्रों में सख्त निगरानी और संरक्षण योजनाएँ लागू करे, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी समुद्री जैव विविधता संरक्षण में नेतृत्वकारी भूमिका निभाए।
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