अज़रबैजान और आर्मेनिया के बीच ऐतिहासिक शांति समझौता: दशकों पुराने नागोर्नो-काराबाख संघर्ष का अंत

काकेशस क्षेत्र में शांति की बहुप्रतीक्षित किरण आखिरकार दिखाई दी है। अज़रबैजान और आर्मेनिया, जो दशकों से नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को लेकर खूनी संघर्ष में उलझे हुए थे, ने व्हाइट हाउस में एक ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने “काफी समय से प्रतीक्षित” और “ऐतिहासिक” बताया। यह न केवल दोनों देशों के बीच युद्ध को समाप्त करने का वादा करता है, बल्कि व्यापार, यात्रा और कूटनीतिक संबंधों के एक नए युग का भी द्वार खोलता है।

संघर्ष का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

अज़रबैजान–आर्मेनिया विवाद की जड़ें 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में पाई जाती हैं। सोवियत संघ के विघटन के दौरान नागोर्नो-काराबाख—a अज़रबैजान के भीतर स्थित जातीय रूप से आर्मेनियाई बहुल क्षेत्र—को लेकर तनाव तेजी से बढ़ा।

  • प्रथम नागोर्नो-काराबाख युद्ध (1988–1994): यह संघर्ष हजारों मौतों और लाखों लोगों के विस्थापन का कारण बना।
  • 1994 युद्धविराम: रूस की मध्यस्थता में एक युद्धविराम हुआ, लेकिन यह केवल औपचारिक था—सीमा पर झड़पें और गोलाबारी जारी रहीं।
  • 2020 का दूसरा युद्ध: आधुनिक हथियारों और ड्रोन तकनीक के इस्तेमाल ने युद्ध की प्रकृति बदल दी। अज़रबैजान ने कई क्षेत्रों पर नियंत्रण वापस पा लिया।
  • 2020 के बाद तनाव: बीच-बीच में कई घातक झड़पें हुईं, जिनमें दर्जनों सैनिक और नागरिक मारे गए।

नख़चिवान कॉरिडोर का विवाद

हालिया वार्ताओं में सबसे बड़ी अड़चन नख़चिवान कॉरिडोर रहा है।

  • भौगोलिक महत्व: यह मार्ग अज़रबैजान की मुख्यभूमि को उसके दक्षिण-पश्चिम स्थित स्वायत्त नख़चिवान एन्क्लेव से जोड़ेगा, जो आर्मेनियाई क्षेत्र द्वारा अलग-थलग है।
  • अज़रबैजान की मांग: परिवहन संपर्क को खोलना, ताकि सीधी आवाजाही और व्यापार संभव हो।
  • आर्मेनिया की आपत्ति: इस कॉरिडोर पर नियंत्रण बनाए रखना, ताकि अपनी सुरक्षा और संप्रभुता पर खतरा न आए।
  • पिछली वार्ताएँ: अलीयेव ने एक समय इस कॉरिडोर को बलपूर्वक कब्ज़े में लेने की धमकी दी थी।

व्हाइट हाउस शिखर सम्मेलन

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मेज़बानी में, वाशिंगटन डी.सी. के व्हाइट हाउस में अज़रबैजानी राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव और आर्मेनियाई प्रधानमंत्री निकोल पशिनियन ने एक साथ बैठकर दशकों पुराने विवाद को समाप्त करने के लिए हस्ताक्षर किए।

  • माहौल: कड़े सुरक्षा इंतज़ाम और कूटनीतिक औपचारिकताओं के बीच यह आयोजन हुआ।
  • हस्ताक्षर के बाद: दोनों नेताओं ने हाथ मिलाकर एकजुटता का संदेश दिया।
  • ट्रम्प का बयान: “यह शांति समझौता केवल युद्ध का अंत नहीं है, बल्कि समृद्धि, सहयोग और मित्रता की शुरुआत है।”

समझौते की प्रमुख शर्तें

व्हाइट हाउस के अनुसार इस ऐतिहासिक समझौते में निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं:

  1. स्थायी युद्धविराम: सभी प्रकार की लड़ाई और सैन्य कार्रवाइयों का स्थायी अंत।
  2. परिवहन मार्गों का पुनः उद्घाटन: प्रमुख सड़क और रेल मार्ग फिर से खोले जाएंगे, जिसमें नख़चिवान कॉरिडोर भी शामिल है।
  3. व्यापार और यात्रा की स्वतंत्रता: दोनों देशों के नागरिक बिना वीज़ा प्रतिबंध के यात्रा कर सकेंगे और व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा।
  4. कूटनीतिक संबंधों की बहाली: दोनों देशों के दूतावास फिर से खुलेंगे और राजनयिक वार्ताएँ नियमित होंगी।
  5. अमेरिकी सहयोग: कॉरिडोर के निर्माण में अमेरिकी तकनीकी और वित्तीय सहायता। इस परियोजना को आधिकारिक रूप से “ट्रम्प रूट फॉर इंटरनेशनल पीस एंड प्रॉस्पेरिटी” नाम दिया गया है।
  6. संयुक्त निगरानी तंत्र: कॉरिडोर और सीमा सुरक्षा की निगरानी दोनों देशों के साथ-साथ अमेरिकी प्रतिनिधियों द्वारा की जाएगी।

अमेरिकी कूटनीति का उदय

यह समझौता अमेरिकी कूटनीति के लिए एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है।

  • रूस की पारंपरिक भूमिका: एक सदी से भी अधिक समय से रूस इस संघर्ष में मुख्य मध्यस्थ रहा है।
  • नए समीकरण: अज़रबैजान और आर्मेनिया दोनों ने इस बार रूसी प्रस्तावों को ठुकरा कर अमेरिकी-नेतृत्व वाले समाधान को चुना।
  • भू-राजनीतिक असर: इससे काकेशस क्षेत्र में वॉशिंगटन का प्रभाव बढ़ा है, जबकि मास्को की पकड़ कमजोर पड़ी है।

रूस की स्थिति

पिछले समझौतों में मास्को ने केंद्रीय भूमिका निभाई थी। लेकिन इस बार:

  • रूस की उपेक्षा: इस प्रक्रिया में रूस को औपचारिक रूप से आमंत्रित नहीं किया गया।
  • पुतिन की प्रतिक्रिया: आधिकारिक बयान में केवल “स्थिति पर नजर रखने” की बात कही गई।
  • संभावित तनाव: यह घटना अमेरिका और रूस के बीच पहले से मौजूद भू-राजनीतिक तनाव को और बढ़ा सकती है।

क्षेत्रीय स्थिरता पर संभावित प्रभाव

इस समझौते से न केवल अज़रबैजान और आर्मेनिया के बीच, बल्कि पूरे काकेशस क्षेत्र में स्थिरता आने की संभावना है।

  • आर्थिक लाभ: व्यापार मार्गों के खुलने से दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा मिलेगा।
  • सुरक्षा में सुधार: सीमावर्ती इलाकों में सैन्य उपस्थिति घटेगी और नागरिक जीवन सामान्य होगा।
  • निवेश के अवसर: अमेरिकी और यूरोपीय निवेशक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में रुचि ले सकते हैं।

चुनौतियाँ और शंकाएँ

हालाँकि यह समझौता ऐतिहासिक है, लेकिन इसकी सफलता कई कारकों पर निर्भर करेगी:

  • विश्वास की कमी: दशकों की दुश्मनी को खत्म करने में समय लगेगा।
  • स्थानीय विरोध: दोनों देशों में राष्ट्रवादी गुट इस समझौते का विरोध कर सकते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय राजनीति: रूस या अन्य शक्तियों की प्रतिक्रिया से स्थिति प्रभावित हो सकती है।

भविष्य की राह

  • निगरानी और क्रियान्वयन: संयुक्त निगरानी तंत्र की सफलता ही इस समझौते की असली कसौटी होगी।
  • लोग-से-लोग संपर्क: नागरिकों के बीच संपर्क और सांस्कृतिक आदान-प्रदान से विश्वास बहाल हो सकता है।
  • क्षेत्रीय सहयोग: तुर्की, ईरान और जॉर्जिया जैसे पड़ोसी देशों के साथ भी बेहतर संबंध स्थापित करने का अवसर मिलेगा।

निष्कर्ष

व्हाइट हाउस में हस्ताक्षरित अज़रबैजान–आर्मेनिया शांति समझौता केवल दो देशों के बीच संघर्ष का अंत नहीं है, बल्कि यह काकेशस क्षेत्र में एक नए भू-राजनीतिक संतुलन की शुरुआत है। यह समझौता दर्शाता है कि अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति, यदि सही ढंग से संचालित हो, तो दशकों पुराने विवादों का भी समाधान संभव है।
हालाँकि चुनौतियाँ मौजूद हैं, लेकिन यदि दोनों देश और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अपने वादों पर कायम रहते हैं, तो आने वाले वर्षों में यह क्षेत्र युद्ध की बजाय शांति और विकास का पर्याय बन सकता है।


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