कफाला सिस्टम का अंत: सऊदी अरब में श्रम स्वतंत्रता की ऐतिहासिक यात्रा

सऊदी अरब ने जून 2025 में एक ऐसा निर्णय लिया जिसने न केवल उसकी श्रम व्यवस्था के इतिहास को बदल दिया, बल्कि करोड़ों विदेशी मजदूरों के जीवन में नई रोशनी भर दी — यह था कफाला सिस्टम (Kafala System) का अंत।
करीब सत्तर वर्षों तक लागू रही यह प्रणाली विदेशी श्रमिकों के जीवन पर इस कदर हावी रही कि इसे अक्सर “आधुनिक दासता” कहा जाने लगा। कफाला सिस्टम के तहत किसी भी विदेशी को सऊदी अरब में काम करने के लिए एक स्थानीय “कफील” या स्पॉन्सर की आवश्यकता होती थी, जो उसकी नौकरी, वीज़ा, निवास और देश से बाहर जाने तक पर नियंत्रण रखता था।

इस व्यवस्था के कारण लाखों मजदूर वर्षों तक अपने ही परिश्रम के प्रतिफल से वंचित रहे। किसी के पास पासपोर्ट तक नहीं था, कोई देश नहीं छोड़ सकता था, और कोई अनुचित व्यवहार के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा सकता था।
लेकिन 2025 में जब सऊदी सरकार ने इस पुराने ढांचे को तोड़कर विदेशी मजदूरों को स्वतंत्रता, समानता और कानूनी सुरक्षा प्रदान करने वाले नए नियम लागू किए, तो यह केवल एक प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि मानव गरिमा की पुनर्स्थापना का प्रतीक बन गया।

भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, फिलीपींस और नेपाल जैसे देशों के लगभग तीन करोड़ प्रवासी मजदूरों के लिए यह निर्णय नई उम्मीद लेकर आया है। विशेष रूप से भारत के करीब 25 लाख श्रमिकों के लिए यह बदलाव उस बंधन से मुक्ति का अवसर है, जो दशकों से उनकी आर्थिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अंकुश लगाए हुए था।

यह निर्णय केवल एक देश की नीति में बदलाव नहीं है, बल्कि यह इस विचार का प्रमाण है कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति तब तक अधूरी है जब तक उसके श्रमिक सम्मान और स्वायत्तता के साथ जीवन नहीं जीते।
कफाला सिस्टम का अंत इस बात का संकेत है कि सऊदी अरब अब एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ रहा है जहाँ मानवाधिकार, श्रम सम्मान और आर्थिक प्रगति एक साथ चल सकते हैं।

यह कदम इतिहास में उस अध्याय के रूप में दर्ज होगा, जहाँ दासता की जंजीरें टूटीं और श्रमिक वर्ग को अपनी पहचान, अपनी आवाज़ और अपनी गरिमा वापस मिली।

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एक युग का अंत, स्वतंत्रता की नई सुबह

सऊदी अरब ने जून 2025 में अपने इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण श्रम सुधारों में से एक को आधिकारिक रूप से लागू किया — कफाला सिस्टम (Kafala System) का अंत। लगभग 70 वर्षों तक लागू यह प्रणाली विदेशी मजदूरों के जीवन पर गहरा प्रभाव डालती रही। इस व्यवस्था के तहत विदेशी श्रमिकों का जीवन उनके “कफील” यानी स्पॉन्सर के अधीन बंधक जैसा था।
अब जब यह प्रणाली औपचारिक रूप से समाप्त हो गई है, तो यह न केवल सऊदी अरब के श्रम कानूनों में ऐतिहासिक बदलाव है, बल्कि यह पूरी दुनिया के प्रवासी श्रमिक समुदाय के लिए भी उम्मीद की किरण है।

इस सुधार से भारत के लगभग 25 लाख मजदूरों सहित करीब 3 करोड़ (13 मिलियन) विदेशी श्रमिकों को नई स्वतंत्रता मिली है। यह न केवल कानूनी परिवर्तन है बल्कि मानव गरिमा की पुनर्स्थापना का एक प्रतीकात्मक क्षण भी है।

कफाला सिस्टम क्या था? एक ऐतिहासिक दृष्टि

“कफाला” शब्द अरबी भाषा के “कफ़ील” (كفيل) से बना है, जिसका अर्थ होता है — संरक्षक, स्पॉन्सर या गारंटर
सऊदी अरब और खाड़ी देशों में यह प्रणाली 1950 के दशक में प्रारंभ हुई थी, जब तेल उद्योग के विस्तार के कारण बड़ी संख्या में विदेशी श्रमिकों की आवश्यकता पड़ी।

इन देशों की सरकारों ने स्थानीय रोजगार संतुलन और सुरक्षा के उद्देश्य से यह व्यवस्था बनाई कि प्रत्येक विदेशी श्रमिक किसी स्थानीय व्यक्ति या कंपनी से संबद्ध रहे। यह स्पॉन्सर ही उसकी नौकरी, वीज़ा, निवास और यात्रा की सभी प्रक्रियाओं का प्रभारी होता था।

परंतु धीरे-धीरे यह व्यवस्था नियंत्रण के उपकरण में बदल गई।
स्पॉन्सर को श्रमिक की हर गतिविधि पर नियंत्रण मिल गया —
वह तय करता कि श्रमिक कहाँ रहेगा, कब काम करेगा, और यहां तक कि कब अपने देश लौट सकेगा।
कई बार स्पॉन्सर मजदूरों के पासपोर्ट जब्त कर लेते थे, जिससे वे देश नहीं छोड़ पाते थे।

इस तरह कफाला सिस्टम धीरे-धीरे एक प्रशासनिक व्यवस्था से मानवाधिकार के संकट में बदल गया।

कफाला सिस्टम की मूल संरचना

कफाला सिस्टम के अंतर्गत एक विदेशी मजदूर को सऊदी अरब या अन्य खाड़ी देशों में काम करने के लिए एक स्थानीय “कफील” की आवश्यकता होती थी।
यह कफील ही उस मजदूर का कानूनी अभिभावक होता था। उसके बिना मजदूर का न तो रोजगार संभव था और न ही निवास।

मुख्य विशेषताएँ:

  1. कफील का नियंत्रण:
    कफील को मजदूर के वीज़ा, पासपोर्ट और रोजगार अनुबंध पर पूर्ण अधिकार होता था।
  2. गतिशीलता पर रोक:
    मजदूर अपने नियोक्ता की अनुमति के बिना नौकरी नहीं बदल सकता था।
  3. देश छोड़ने की पाबंदी:
    देश छोड़ने के लिए Exit Visa या कफील की लिखित सहमति आवश्यक थी।
  4. कानूनी निर्भरता:
    मजदूरों को न्यायालय या श्रम विभाग में शिकायत करने के लिए भी कफील की जानकारी देनी पड़ती थी।

इन सबके चलते यह प्रणाली “Modern-Day Slavery” (आधुनिक दासता) का रूप ले चुकी थी।

कफाला प्रणाली की आलोचनाएं और मानवाधिकार संकट

कफाला सिस्टम की आलोचना दशकों से होती आ रही थी। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद, एमनेस्टी इंटरनेशनल, और ह्यूमन राइट्स वॉच जैसी संस्थाओं ने इसे “प्रवासी श्रमिकों की स्वतंत्रता का हनन” बताया।

1. शोषण और असमानता:

कफील अक्सर श्रमिकों से 12–14 घंटे तक काम करवाते थे, जबकि वेतन समय पर नहीं दिया जाता था। कई बार मजदूरों को महीनों तक वेतन नहीं मिलता था और वे विरोध भी नहीं कर पाते थे।

2. पासपोर्ट जब्त करना:

अनेक मामलों में स्पॉन्सर मजदूरों के पासपोर्ट अपने पास रख लेते थे, जिससे उनकी गतिशीलता समाप्त हो जाती थी।

3. दुर्व्यवहार और हिंसा:

मानवाधिकार रिपोर्टों के अनुसार, घरेलू महिला कामगारों को शारीरिक हिंसा, यौन उत्पीड़न और मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता था।

4. कानूनी असहायता:

कफाला सिस्टम के अंतर्गत मजदूरों के पास शिकायत या न्याय पाने के लिए कोई प्रभावी माध्यम नहीं था। कई बार श्रम न्यायालयों में जाने से पहले भी उन्हें कफील की अनुमति चाहिए होती थी।

इस प्रकार यह व्यवस्था एक ऐसी जाल जैसी थी जिसमें मजदूर फँस जाते थे —
“काम करो, चुप रहो, और बंधन स्वीकारो” — यही इस प्रणाली की अनकही परंपरा बन गई थी।

परिवर्तन की दिशा: सऊदी अरब की सुधार यात्रा

सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व में “Vision 2030” नामक योजना शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य देश की अर्थव्यवस्था को तेल पर निर्भरता से मुक्त कर विविधतापूर्ण और मानव-केंद्रित बनाना था।

इस योजना के तहत सऊदी सरकार ने श्रम सुधार को अपनी प्रमुख प्राथमिकताओं में रखा।
वर्ष 2021 में कफाला प्रणाली में आंशिक सुधारों की घोषणा की गई थी, लेकिन जून 2025 में सरकार ने इसे पूरी तरह समाप्त करने का निर्णय लिया।

कफाला सिस्टम समाप्ति के बाद हुए प्रमुख सुधार

1. नौकरी बदलने की स्वतंत्रता

अब विदेशी मजदूर अपने प्रारंभिक अनुबंध की समाप्ति के बाद किसी अन्य कंपनी या नियोक्ता के पास बिना पूर्व अनुमति के जा सकते हैं।
यह सुधार श्रमिकों की व्यावसायिक स्वतंत्रता का प्रतीक है।

2. यात्रा और निकासी की स्वतंत्रता

अब किसी विदेशी मजदूर को देश छोड़ने के लिए Exit Visa या स्पॉन्सर की सहमति की आवश्यकता नहीं होगी।
वे अपनी मर्जी से अपने देश लौट सकते हैं या अवकाश ले सकते हैं।

3. कानूनी सुरक्षा में वृद्धि

सरकार ने मजदूरों के लिए श्रम न्यायालयों और शिकायत प्रणालियों की पहुंच आसान की है।
किसी भी प्रकार के शोषण या दुरुपयोग की स्थिति में वे सीधे शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

4. कॉन्ट्रैक्ट की पारदर्शिता

सभी रोजगार अनुबंध अब डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स जैसे Qiwa और Absher पर मॉनिटर किए जाएंगे।
इससे नियोक्ताओं द्वारा अनुबंध के उल्लंघन या दुरुपयोग की संभावना कम होगी।

5. घरेलू कर्मचारियों का समावेश

पहले यह सुधार केवल औद्योगिक या वाणिज्यिक क्षेत्रों पर लागू थे, पर अब यह घरेलू श्रमिकों (जैसे नौकरानी, ड्राइवर, नर्स आदि) पर भी लागू होंगे।
इनके कॉन्ट्रैक्ट ट्रांसफर की निगरानी Musaned e-service प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से होगी।

सुधारों के लाभ

1. लगभग 3 करोड़ विदेशी मजदूर लाभान्वित

इस निर्णय से सऊदी अरब में कार्यरत लगभग 13 मिलियन विदेशी श्रमिकों को सीधा लाभ मिलेगा।

2. भारतीय मजदूरों के लिए राहत

सऊदी अरब में लगभग 25 लाख भारतीय मजदूर कार्यरत हैं।
उनमें से कई निर्माण, घरेलू सेवा, स्वास्थ्य, और औद्योगिक क्षेत्रों में काम करते हैं।
अब वे शोषण से मुक्त होकर स्वतंत्र रूप से रोजगार और जीवन के निर्णय ले सकेंगे।

3. क्षेत्रीय प्रभाव

सऊदी अरब का यह कदम खाड़ी क्षेत्र के अन्य देशों — जैसे कतर, कुवैत, बहरीन, ओमान और यूएई — को भी अपने श्रम कानूनों में सुधार करने के लिए प्रेरित करेगा।

4. अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप कदम

यह परिवर्तन अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार मानकों के अनुरूप है।
इससे सऊदी अरब की अंतरराष्ट्रीय छवि में सुधार होगा और विदेशी निवेशकों का भरोसा भी बढ़ेगा।

आर्थिक दृष्टिकोण से महत्व

कफाला प्रणाली के अंत के पीछे केवल मानवीय नहीं, बल्कि आर्थिक कारण भी हैं।
सऊदी अरब अब ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है।
इसलिए उसे ऐसे श्रम वातावरण की आवश्यकता है जहाँ प्रतिभाशाली विदेशी खुलकर काम कर सकें और नवाचार को बढ़ावा दे सकें।

विदेशी श्रमिकों के प्रति समान व्यवहार और स्वतंत्रता से देश की उत्पादकता, प्रतिस्पर्धात्मकता और वैश्विक आकर्षण बढ़ेगा।

सामाजिक और भावनात्मक प्रभाव

यह सुधार केवल कानून का संशोधन नहीं, बल्कि मानव गरिमा की पुनर्स्थापना है।
उन श्रमिकों के लिए जो दशकों से अपने ही श्रम के फल से वंचित रहे, यह स्वतंत्रता का नया सवेरा है।

कई भारतीय, फिलिपीनी, बांग्लादेशी और पाकिस्तानी मजदूर वर्षों से कहते आए थे —

“हम सऊदी में काम करते हैं, पर जीते नहीं हैं।”

आज उनके लिए यह कथन बदल सकता है —

“अब हम काम भी करते हैं और गरिमा के साथ जीते भी हैं।”

कफाला सिस्टम के अंत का वैश्विक संदर्भ

विश्व भर में खाड़ी देशों के करीब 2.5 करोड़ मजदूर इसी तरह की व्यवस्थाओं के अधीन रहे हैं।
कतर ने FIFA World Cup 2022 से पहले ही कफाला प्रणाली में सुधार किया था।
अब सऊदी अरब के इस कदम से यह उम्मीद जगी है कि पूरे अरब क्षेत्र में श्रम सुधार की लहर चलेगी।

संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि —

“यह मानवाधिकारों के इतिहास में एक मील का पत्थर है।”

चुनौतियाँ और आगे की राह

हालांकि सुधार लागू कर दिए गए हैं, लेकिन उनका प्रभावी क्रियान्वयन सबसे बड़ी चुनौती है।
कई बार ऐसे सुधार केवल कानून की किताबों तक सीमित रह जाते हैं।

संभावित चुनौतियाँ:

  1. नियोक्ताओं की मानसिकता में परिवर्तन लाना
  2. प्रशासनिक ढांचे में पारदर्शिता सुनिश्चित करना
  3. डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की पहुँच ग्रामीण मजदूरों तक बढ़ाना
  4. घरेलू कामगारों की वास्तविक सुरक्षा की गारंटी देना

यदि सऊदी सरकार इन बिंदुओं पर दृढ़ता से अमल करती है, तो यह सुधार दुनिया के लिए श्रम-सम्मान मॉडल बन सकता है।

भारत-सऊदी संबंधों पर प्रभाव

भारत और सऊदी अरब के बीच श्रम और ऊर्जा संबंध दशकों पुराने हैं।
भारतीय प्रवासी न केवल सऊदी अर्थव्यवस्था में योगदान देते हैं, बल्कि वे भारत को अरबों डॉलर की विदेशी मुद्रा भेजते हैं।

कफाला सिस्टम के अंत से भारतीय दूतावासों को भी राहत मिलेगी, क्योंकि अब मजदूरों की शिकायतें कम होंगी और द्विपक्षीय श्रम समझौते अधिक संतुलित होंगे।

दासता से स्वतंत्रता तक

कफाला सिस्टम का अंत केवल सऊदी अरब का निर्णय नहीं है; यह पूरी मानवता के लिए एक संदेश है कि समाज तब तक आधुनिक नहीं बन सकता जब तक उसके श्रमिक स्वतंत्र नहीं हैं।

यह सुधार उस संघर्ष की जीत है जो लाखों मजदूरों ने दशकों से सहा — बिना आवाज़, बिना समर्थन, लेकिन उम्मीद के साथ।
आज वे उम्मीद हकीकत में बदल चुकी है।

सऊदी अरब का यह कदम आने वाले समय में मानवाधिकार, श्रम नीति और वैश्विक न्याय व्यवस्था के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।

सुधार की मुख्य विशेषताएँ

सुधार का क्षेत्रपहले की स्थितिअब की स्थिति
नौकरी बदलनाकफील की अनुमति आवश्यकस्वतंत्र रूप से संभव
देश छोड़नाExit Visa आवश्यकस्वतःस्फूर्त यात्रा की अनुमति
कानूनी शिकायतेंसीमित पहुँचऑनलाइन और न्यायालय तक सीधी पहुँच
पासपोर्ट नियंत्रणस्पॉन्सर के पासअब नियोक्ता जब्त नहीं कर सकेगा
घरेलू कर्मचारीबाहर रखे गएअब समान अधिकार प्राप्त

कफाला प्रणाली के अंत ने यह साबित किया है कि मानवाधिकारों का सम्मान और आर्थिक प्रगति एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि सहयोगी तत्व हैं।
सऊदी अरब ने जिस साहस और संवेदनशीलता के साथ इस कदम को उठाया, वह आने वाले समय में वैश्विक श्रम नीति का उदाहरण बनेगा।

यह केवल कानून में बदलाव नहीं, बल्कि मनुष्यता की जीत है —
एक ऐसे युग की शुरुआत, जहाँ “कामगार” अब केवल “श्रम का स्रोत” नहीं, बल्कि सम्मानित नागरिक के रूप में देखा जाएगा।


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