मुद्रा (Money) किसी भी आधुनिक अर्थव्यवस्था का मूल स्तंभ है। यह न केवल विनिमय का माध्यम है, बल्कि मूल्य माप, भविष्य के भुगतान की इकाई, तथा मूल्य के संचय का कार्य भी करती है। परंतु आर्थिक विकास की प्रक्रिया में केवल वही तत्व महत्वपूर्ण नहीं होते जो स्पष्ट रूप से मुद्रा के रूप में कार्य करते हैं, बल्कि वे वित्तीय परिसम्पत्तियाँ भी अत्यंत प्रभावशाली होती हैं जो मुद्रा के निकट विकल्प (close substitutes) के रूप में कार्य करती हैं। इन्हीं को हम सन्निकट मुद्रा या अर्द्ध मुद्रा (Near Money or Quasi Money) कहते हैं।
मुद्रा की अवधारणा | संकल्पना
मुद्रा की पारंपरिक परिभाषा में सामान्यतः दो प्रमुख तत्व शामिल माने जाते हैं – नकद मुद्रा (currency) और माँग जमाराशियाँ (demand deposits)। इन दोनों में 100% तरलता होती है और ये प्रत्यक्ष रूप से भुगतान के माध्यम के रूप में कार्य करती हैं। इनका उपयोग तत्काल लेन-देन में किया जा सकता है। मुद्रा का यह स्वरूप संकुचित परिभाषा के अंतर्गत आता है, जिसे आमतौर पर ‘M1’ कहा जाता है।
मुद्रा को हम निम्नलिखित चार मुख्य कार्यों के आधार पर समझ सकते हैं:
- विनिमय का माध्यम
- मूल्य की माप
- मूल्य का संचय
- भविष्य के भुगतान की इकाई
संकुचित मुद्रा (Narrow Money – M1) में सम्मिलित होते हैं:
- नकद (Currency – सिक्के व नोट)
- माँग जमाएँ (Demand Deposits)
- अन्य चालू खाता निधियाँ
सन्निकट मुद्रा की अवधारणा | संकल्पना
सन्निकट मुद्रा वे वित्तीय परिसम्पत्तियाँ हैं जो पूर्णतः मुद्रा तो नहीं होतीं, परंतु जिनमें इतनी तरलता होती है कि उन्हें आवश्यकता पड़ने पर सरलता से मुद्रा में परिवर्तित किया जा सकता है। ये परिसम्पत्तियाँ सामान्यतः ब्याज अर्जित करती हैं और मूल्य के संचय का कार्य करती हैं, उदाहरणस्वरूप:
सन्निकट मुद्रा के उदाहरण
- बचत खाते की जमाएँ (Savings deposits)
- बैंकों की काल जमाराशियाँ (Time deposits)
- सरकारी प्रतिभूतियाँ (Government securities)
- वाणिज्यिक पत्र (commercial papers)
- बांड (Bonds)
- डाकघर जमा योजनाएँ
- कम्पनियों के शेयर (Shares)
हालांकि इनसे प्रत्यक्ष भुगतान नहीं किया जा सकता, परंतु इनका प्रयोग लोग अपने भविष्य के खर्चों या निवेश के लिए करते हैं। इन परिसम्पत्तियों में निहित तरलता इन्हें मुद्रा के निकट बनाती है।
सन्निकट मुद्रा का महत्व
यद्यपि सन्निकट मुद्रा प्रत्यक्ष रूप से मुद्रा नहीं है, परंतु यह आर्थिक व्यवहारों को गहराई से प्रभावित करती है। यह लोगों की व्यय करने की इच्छा और क्षमता दोनों को प्रभावित करती है। विशेषतः विकसित अर्थव्यवस्थाओं में जहाँ वित्तीय साधनों की विविधता अधिक होती है, सन्निकट मुद्रा की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
मुद्रा एवं सन्निकट मुद्रा के बीच भेद
1. स्वरूप का भेद
- मुद्रा: इसमें सिक्के, नोट, तथा माँग जमाराशियाँ शामिल होती हैं।
- सन्निकट मुद्रा: इसमें विभिन्न प्रकार की वित्तीय परिसम्पत्तियाँ शामिल होती हैं जो मुद्रा के विकल्प के रूप में कार्य करती हैं।
2. तरलता का स्तर
- मुद्रा: इसमें 100% तरलता होती है, अर्थात इसे तुरंत उपयोग किया जा सकता है।
- सन्निकट मुद्रा: इसमें अपूर्ण तरलता होती है; पहले इसे मुद्रा में परिवर्तित करना पड़ता है।
3. ब्याज अर्जन
- मुद्रा: यह ब्याज नहीं कमाती है।
- सन्निकट मुद्रा: इसमें निवेश करने पर ब्याज या लाभांश की प्राप्ति संभव है।
4. लेखांकन में भूमिका
- मुद्रा: यह लेखे की इकाई होती है और कीमतें इसी में व्यक्त की जाती हैं।
- सन्निकट मुद्रा: इसका मूल्य मुद्रा में व्यक्त किया जाता है, परंतु यह लेखे की इकाई नहीं होती।
5. मूल्य का संचय
- मुद्रा: मूल्य का संचय कर सकती है, परंतु ब्याज न मिलने के कारण यह लाभदायक नहीं होती।
- सन्निकट मुद्रा: संचय के साथ-साथ ब्याज अर्जन की भी सुविधा देती है।
6. विनिमय की भूमिका
- मुद्रा: सीधे विनिमय का माध्यम होती है।
- सन्निकट मुद्रा: इसे पहले मुद्रा में परिवर्तित करना पड़ता है, फिर इसका उपयोग विनिमय में किया जा सकता है।
मुद्रा एवं सन्निकट मुद्रा | एक तुलनात्मक विश्लेषण
क्र.सं. | आधार | मुद्रा | सन्निकट मुद्रा |
---|---|---|---|
1. | स्वरूप | सिक्के, नोट, माँग जमा | बांड, प्रतिभूतियाँ, शेयर, काल जमा |
2. | तरलता | 100% तरल | आंशिक तरल |
3. | ब्याज अर्जन | नहीं होता | होता है |
4. | विनिमय का माध्यम | प्रत्यक्ष | अप्रत्यक्ष |
5. | लेखे की इकाई | हाँ | नहीं |
6. | मूल्य का संचय | सीमित | अधिक प्रभावी |
7. | उपयोग | तत्काल भुगतान | निवेश व भविष्य की योज |
विस्तारित मुद्रा आपूर्ति की श्रेणियाँ (Money Supply Measures)
माप (Measure) | परिभाषा | शामिल तत्व |
---|---|---|
M1 | संकुचित मुद्रा | नकद + माँग जमा |
M2 | M1 + बचत डिपॉजिट | M1 + पोस्ट ऑफिस सेविंग अकाउंट |
M3 | व्यापक मुद्रा | M1 + काल जमा |
M4 | अत्यधिक व्यापक | M3 + सभी डाकघर जमा |
सन्निकट मुद्रा मुख्यतः M2, M3, और M4 में समाहित होती है।
मुद्रा की व्यापक परिभाषा में सन्निकट मुद्रा का समावेश
आधुनिक मौद्रिक चिन्तन में मुद्रा को केवल नकद और माँग जमाराशियों तक सीमित नहीं रखा गया है। M1, M2, M3, M4 जैसे वर्गीकरणों में क्रमशः सन्निकट मुद्रा के विभिन्न स्वरूपों को सम्मिलित किया गया है। जैसे:
- M1 = नकद + माँग जमा
- M2 = M1 + बचत खाते की जमाराशियाँ (पोस्ट ऑफिस इत्यादि)
- M3 = M1 + काल जमा
- M4 = M3 + संपूर्ण डाकघर जमाएँ
यह वर्गीकरण इस बात का संकेत करता है कि व्यापक दृष्टिकोण अपनाने पर सन्निकट मुद्रा को मौद्रिक आपूर्ति के हिस्से के रूप में मान्यता दी जाती है।
सन्निकट मुद्रा को मुद्रा से पृथक रखने के तर्क
कुछ अर्थशास्त्री, विशेषकर प्रो. चैण्डलर (Lester V. Chandler), सन्निकट मुद्रा को मुद्रा से पृथक रखने की वकालत करते हैं। उनके अनुसार:
- तरलता का अंशमात्र होना: चूंकि हर परिसम्पत्ति में तरलता की कुछ मात्रा होती है, तो क्या हम सभी को मुद्रा की परिभाषा में सम्मिलित करें?
- व्यय पर प्रभाव का भिन्न स्तर: नकद मुद्रा की तुलना में सन्निकट मुद्रा की एक इकाई व्यय की इच्छा को उतना प्रभावित नहीं करती।
- मौद्रिक नीति पर प्रभाव: कभी-कभी मौद्रिक नीति के माध्यम से इन परिसम्पत्तियों को मुद्रा में बदलने की लागत को बढ़ाया या घटाया जाता है, जो नीति-निर्धारण को जटिल बना सकता है।
- अन्य निर्धारक तत्वों की उपेक्षा: यदि हम तरल आदेयों को मुद्रा मान लें, तो अन्य कारकों जैसे साख की उपलब्धता, भविष्य की अपेक्षाएँ, सम्पत्ति का मूल्य इत्यादि को क्यों न शामिल किया जाए?
मौद्रिक प्रबन्धन में सन्निकट मुद्रा की भूमिका
आधुनिक अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नियंत्रण केवल नकद मुद्रा या माँग जमाओं को ध्यान में रखकर प्रभावी नहीं बनाया जा सकता। सन्निकट मुद्रा की उपेक्षा करने पर मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता घट सकती है। यदि तरल आदेयों की मात्रा अनियंत्रित रहती है तो:
- वाणिज्यिक बैंक बढ़ती हुई जमाओं के आधार पर साख निर्माण कर सकते हैं।
- मौद्रिक पूर्ति (money supply) अनियंत्रित रूप से बढ़ सकती है।
- मुद्रास्फीति (inflation) का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
- मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता घट सकती है।
विकसित देशों की तुलना में अर्द्ध-विकसित देशों में यह समस्या कम दिखाई देती है, परंतु जैसे-जैसे आय बढ़ती है और बैंकिंग प्रणाली का विस्तार होता है, वैसे-वैसे सन्निकट मुद्रा का महत्व भी बढ़ता है।
अतः व्यापक मौद्रिक प्रबंधन में सन्निकट मुद्रा को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
मुद्रा और सन्निकट मुद्रा दोनों ही आधुनिक वित्तीय तंत्र के आवश्यक तत्व हैं। यद्यपि इन दोनों में कुछ मूलभूत अंतर हैं, फिर भी व्यवहार में दोनों परस्पर पूरक की भूमिका निभाते हैं। सन्निकट मुद्रा को यदि मुद्रा से पृथक भी माना जाए, तो भी इसके महत्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
एक सशक्त मौद्रिक नीति के लिए आवश्यक है कि सन्निकट मुद्रा की प्रकृति, आकार और प्रभाव को समग्र रूप से समझा जाए और उसका उचित उपयोग किया जाए।
आर्थिक स्थिरता और नीति-निर्धारण में भूमिका
सन्निकट मुद्रा की मात्रा और प्रवाह को समझना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि:
- यह वित्तीय बाजार की स्थिरता को प्रभावित करती है।
- यह निवेशकों और उपभोक्ताओं की मनोवृत्ति को बदल सकती है।
- यह मुद्रा बाजार और पूँजी बाजार के बीच संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है।
इसलिए, यदि नीति-निर्धारकों को अर्थव्यवस्था को नियंत्रित रूप से विकसित करना है तो उन्हें सन्निकट मुद्रा की प्रकृति, मात्रा तथा उपयोग को ध्यान में रखना आवश्यक है।
सन्निकट मुद्रा के महत्व को लेकर दो मत
विस्तारित दृष्टिकोण (Inclusive View)
इस दृष्टिकोण के अनुसार, सन्निकट मुद्रा को भी मुद्रा का हिस्सा मानना चाहिए क्योंकि:
- यह व्यय की क्षमता को प्रभावित करती है।
- इसे आसानी से मुद्रा में बदला जा सकता है।
- आर्थिक विश्लेषण के लिए अधिक यथार्थपरक है।
संकीर्ण दृष्टिकोण (Exclusive View)
प्रो. चैण्डलर जैसे अर्थशास्त्रियों का मत:
- सभी परिसम्पत्तियाँ कुछ हद तक तरल होती हैं; सभी को मुद्रा नहीं कहा जा सकता।
- नकद और सन्निकट मुद्रा की एक इकाई से उत्पन्न व्यय की प्रवृत्ति अलग होती है।
- मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता के लिए दोनों को अलग रखना चाहिए।
मुद्रा और सन्निकट मुद्रा दोनों आर्थिक ढाँचे के अभिन्न अंग हैं। यद्यपि दोनों में कार्यात्मक अंतर हैं, परंतु व्यवहारिक दृष्टिकोण से दोनों का एक-दूसरे से गहरा सम्बन्ध है। जहाँ मुद्रा त्वरित विनिमय का माध्यम है, वहीं सन्निकट मुद्रा मूल्य के संचय, निवेश और भविष्य की सुरक्षा का प्रतीक बन चुकी है। इस प्रकार किसी भी परिपक्व मौद्रिक नीति के लिए इन दोनों के मध्य संतुलन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।
मुद्रा की परिभाषा को समय और परिस्थितियों के अनुसार विस्तृत किया जाना चाहिए ताकि आर्थिक यथार्थ को अधिक समीप से समझा जा सके। विशेषतः वर्तमान वित्तीय प्रणाली की जटिलता और वित्तीय नवाचारों को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि सन्निकट मुद्रा को मौद्रिक साधनों के व्यापक स्वरूप में सम्मिलित कर उसकी भूमिका को सही परिप्रेक्ष्य में समझा जाए।
Economics – KnowledgeSthali
इन्हें भी देखें –
- मुद्रा के प्रकार | Kinds of Money
- मुद्रा एवं मुद्रा मूल्य | Money and Value of Money
- मुद्रा: प्रकृति, परिभाषाएँ, कार्य, और विकास | Money: Nature, Definitions, Functions, and Evolution
- क्लोनिंग, जीन एडिटिंग और विलुप्ति-उन्मूलन
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