सप्तवर्षीय युद्ध (1756 – 1763 ई.) को अंग्रेजी में “Seven Years’ War” और फ्रेंच में “Guerre de Sept Ans” कहा जाता है। यह एक महत्वपूर्ण अखंड युद्ध था जिसमें विश्व भर के कई देशों ने भाग लिया। इस युद्ध का मुख्य कारण तत्वों में भूमि की आकलन और इम्पीरियल अधिकार के लिए स्पेन, फ्रांस, आयरलैंड, ऑस्ट्रिया, रूस, और स्वेडन के बीच तनातनी थी।
इस युद्ध के प्रमुख क्षेत्रों में उच्चों का एक सामरिक मामला था, जहां इंग्लैंड और प्रशासनिक निर्धारित क्षेत्र था। भारतीय महाद्वीप पर, इसे “बंगाल की लड़ाई” भी कहा जाता है जहां ब्रिटिश और फ्रांसीसी कंपनियों के बीच भूमि के नियंत्रण के लिए संघर्ष हुआ। यह लड़ाई मुख्य रूप से बंगाल, बिहार और ओडिशा क्षेत्र में हुई।
सप्तवर्षीय युद्ध के दौरान ब्रिटेन ने अपने आक्रमक स्थान को मजबूत किया और उसकी साम्राज्यवादी व्यापारिक नेटवर्क को विस्तारित किया। फ्रांस ने अपने विभाजन और उत्पादन क्षेत्रों का नुकसान किया और अपनी बाहरी सत्ता को कमजोर किया। यह युद्ध विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण रूप से माना जाता है और इसके परिणामस्वरूप भौगोलिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक परिवर्तन हुए।
सप्तवर्षीय युद्ध का संक्षिप्त विवरण
युद्ध का नाम | सप्तवर्षीय युद्ध |
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कारण | तटबंधी और आधिकारिक वाद |
संघर्ष क्षेत्र | यूरोप, उत्तरी अमेरिका, भारतीय सबके |
युद्ध की अवधि | 17 मई 1756 – 15 फ़रवरी 1763 ई. |
मुख्य युद्धवीर | ब्रिटेन, फ्रांस |
शक्ति/क्षमता | ब्रिटेन का पक्ष – 3,00,000+ फ्रांस का पक्ष – 10,00,000+ |
मृत्यु एवं हानि | ब्रिटेन का पक्ष – 3,95,000+ फ्रांस का पक्ष – 6,33,588+ |
विजयी | ब्रिटेन |
पराजित | फ्रांस |
सप्तवर्षीय युद्ध में कौन पराजित हुआ था?
सप्तवर्षीय युद्ध के परिणामस्वरूप फ्रांस और उसके संघीय ब्रिटिश आलियों की संघर्ष ने अंग्रेजी साम्राज्य को विजयी बनाया। युद्ध के दौरान अंग्रेज़ी सेना और उनके सामरिक अभियांत्रिकों ने फ्रांसीसी सेना को कई महत्वपूर्ण जीत हासिल की। उन्होंने फ्रांसीसी क्षेत्रों को आक्रमण किया और उनके सभी मुख्य सम्राटीय निर्णयों पर विजय प्राप्त की। सप्तवर्षीय युद्ध के अंत में, 1763 ई. में संतिष्टि के रूप में सैंट गर्मेन संधि स्थापित की गई, जिसके अनुसार फ्रांस ने बहुत से क्षेत्रों को अंग्रेज़ों को सौंपने को मजबूर किया।
सप्तवर्षीय युद्ध के कारण
सप्तवर्षीय युद्ध (1756 – 1763 ई.) के कई कारण थे जो इसकी उत्पत्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं। यहां कुछ मुख्य कारण दिए गए हैं:
- सामरिक और इंग्लिश उत्पादों का व्यापारिक महत्व: ब्रिटेन और फ्रांस द्वारा उत्पादित सामरिक वस्त्र, उपकरण और माल के व्यापार में तनाव बढ़ गया था। दोनों देशों की उद्योग और व्यापार शक्ति में स्पर्धा थी और इसलिए वे एक दूसरे के व्यापारिक मार्गों को नष्ट करने की कोशिश कर रहे थे।
- उपनगरीय संघर्ष: ब्रिटेन और फ्रांस के क्षेत्रों में उपनगरीय संघर्ष के कारण भी युद्ध शुरू हुआ। यह क्षेत्रों के आधिकारिक मामलों, वस्त्रागारी व्यापार और उपनगरीय मसलों पर विवादों का कारण बन गया।
- तटीय क्षेत्रों की आपसी विरोधाभास: ब्रिटेन और फ्रांस के तटीय क्षेत्रों में आपसी राजनीतिक और संगठनिक विरोधाभास थे। दोनों देशों के बीच कोलोनीयल स्वाधीनता, जमीन और सामरिक महत्व के मुद्दों पर विवाद थे।
- भारतीय उपमहाद्वीप के उत्पादों का महत्व: ब्रिटेन और फ्रांस के बीच भारतीय उपमहाद्वीप पर महत्वपूर्ण व्यापारिक संबंध थे। दोनों देशों के बीच भारतीय उत्पादों के व्यापार में तनाव था और वे आपस में भारतीय उपमहाद्वीप के उत्पादों को नियंत्रित करने के लिए लड़ रहे थे।
- ग्लोबल महासंघर्ष: सप्तवर्षीय युद्ध वैश्विक महासंघर्ष का हिस्सा था जिसमें विभिन्न देशों और उपनगरीय संघों के बीच राजनीतिक और सामरिक तनाव थे। यह युद्ध एक विश्व स्तरीय संघर्ष के रूप में उभरा था जिसमें विभिन्न देशों के बीच ताकत की संघर्ष थी।
ब्रिटेन ने सप्तवर्षीय युद्ध क्यों जीता?
ब्रिटेन ने सप्तवर्षीय युद्ध का विजय प्राप्त किया क्योंकि उसकी सेना और राजनीतिक रणनीति ने उसे अपने पक्ष का बड़ा फायदा पहुंचाया। यहां कुछ मुख्य कारण हैं:
- अंग्रेज़ी सेना की ताकत: ब्रिटेन ने उस समय विश्व में एक मजबूत और व्यापक साम्राज्य बना रखा था। उसकी सेना तकनीकी रूप से उन्नत थी और विश्वासपात्र योद्धाओं से भरी थी।
- आर्थिक संशोधन: सप्तवर्षीय युद्ध के समय, ब्रिटेन की आर्थिक ताकत फ्रांस की तुलना में काफी अधिक थी। वित्तीय संसाधनों की प्राधिकरण से, ब्रिटेन अपनी सेनाओं को संचालित करने में सक्षम थी और उन्हें आवश्यक संसाधन प्रदान कर सकती थी।
- संघर्ष क्षेत्रों की भूमिका: सप्तवर्षीय युद्ध विशेष रूप से उत्तरी अमेरिका और भारतीय सबकों पर हुआ। ब्रिटेन की समर्थन प्राप्त करने के लिए उत्तरी अमेरिकी और भारतीय स्वतंत्रता संग्रामियों ने ब्रिटेन के साथ सहयोग किया, जिससे उनकी संघर्ष को ब्रिटेन ने अपने फायदे में बदल दिया।
- रणनीति और द्वंद्व: ब्रिटेन ने सप्तवर्षीय युद्ध में रणनीतिक दक्षता दिखाई और संघर्ष क्षेत्रों पर उच्च राजनीतिक और सामरिक दबदबा बनाया। वे अपने संघर्ष क्षेत्रों पर ठोस नियंत्रण स्थापित करने में सफल रहे और फ्रांस को परास्त करने में सक्षम रहे।
इन सभी कारणों के कारण, ब्रिटेन ने सप्तवर्षीय युद्ध में विजय प्राप्त की और फ्रांस को परास्त किया।
सप्तवर्षीय युद्ध का महत्व एवं परिणाम
सप्तवर्षीय युद्ध का महत्व और परिणाम निम्नलिखित हैं:
महत्व
- ब्रिटेन के व्यापारिक और सामरिक महत्व का विस्तार: युद्ध के दौरान, ब्रिटेन ने फ्रांस को हराकर अपने व्यापारिक और सामरिक महत्व का क्षेत्र विस्तार किया। इससे उनका व्यापार और नौसेना शक्ति विकसित हुई और वे विश्व की सबसे महत्त्वपूर्ण सामरिक और आर्थिक शक्तियों में से एक बन गए।
- ब्रिटिश और फ्रांसीसी स्थापनाओं के प्रभाव की विस्तार: युद्ध ने ब्रिटेन और फ्रांस की स्थापनाओं के प्रभाव को बढ़ाया। यह उनकी कोलोनियों, संस्थानों और उपनगरीय क्षेत्रों पर उनका नियंत्रण मजबूत किया और उनकी गहरी राजनीतिक और सामरिक प्रभुता को स्थायी बना दिया।
- नई यूरोपीय सामरिक व्यवस्था की स्थापना: सप्तवर्षीय युद्ध ने यूरोप में नई सामरिक व्यवस्था की स्थापना की। यह उन नियमों, संगठनों और सन्धियों का आधार बनाया जिनसे वे आपस में संघर्ष कर सकते थे और उनके बीच ताकत के संघर्ष को संभव रहा।
सप्तवर्षीय युद्ध के परिणाम
- फ्रांस की नयी विदेशी योजना की पराजय: सप्तवर्षीय युद्ध में फ्रांस की नयी विदेशी योजना की पराजय हुई। यह उन्हें उत्तर अमेरिका में अपने ताकत को नष्ट करने का अनुभव कराया और उनकी कोलोनियां और व्यापारिक प्रभुता पर प्रतिबंध लगा दिया।
- ब्रिटेन की सामरिक और आर्थिक प्रभुता: सप्तवर्षीय युद्ध के परिणामस्वरूप, ब्रिटेन की सामरिक और आर्थिक प्रभुता मजबूत हुई। उन्होंने फ्रांस को हराकर अपने क्षेत्र में सत्ता स्थापित की और विश्व भर में अपने व्यापारिक और सामरिक प्रभुत्व को बढ़ाया।
- नयी जगहों के खोज और संपदा का खंडन: सप्तवर्षीय युद्ध ने नयी जगहों के खोज और संपदा का खंडन किया। ब्रिटेन और फ्रांस के बीच के संघर्ष में उनके पास भूमि, संसाधन और व्यापारिक अवसरों पर नियंत्रण बना रहा।
- ग्लोबल भूपेषण के प्रभाव: सप्तवर्षीय युद्ध ने ग्लोबल भूपेषण को प्रभावित किया। यह युद्ध विश्व इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जो विश्व राजनीतिक, सामरिक और आर्थिक व्यवस्था पर अविराम प्रभाव डाला।
- इंग्लैंड का विश्व सामरिक महाशक्ति बनना: सप्तवर्षीय युद्ध ने इंग्लैंड को विश्व सामरिक महाशक्ति बनाया। उन्होंने फ्रांस को हराकर अपनी आर्थिक, सामरिक और राजनीतिक प्रभुता को स्थापित किया और वे बाद में विश्व भर में एक महत्वपूर्ण सामरिक और आर्थिक शक्ति बने।
इन्हें भी देखें-
- ब्रिटिश साम्राज्य 16वीं–20वीं सदी- एक समय की महाशक्ति और विचारों का परिवर्तन
- पुनर्जागरण युग-जीवंती की आंधी और नवोदय का संकेत (1300-1600)
- उपनिवेशवाद (Colonialism) (ल.15वीं – 20वीं शताब्दी ई.)
- अमेरिका की खोज (1492 ई.)
- क्रिस्टोफर कोलंबस (Christopher Columbus)(1451-1506)
- समुद्रगुप्त SAMUDRAGUPTA |335-350 ई.
- चन्द्रगुप्त प्रथम: एक प्रशस्त शासक |320-350 ई.
- महान विजेता चन्द्रगुप्त मौर्य का अद्वितीय साम्राज्य | 345-298 ई.पू.
- बहमनी वंश 1347-1538
- परमार वंश (800-1327 ई.)
- महात्मा गांधी ‘बापू’ (1869-1948) ई.
- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन 1857 – 1947
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