सम्राट अशोक (ईसा पूर्व 304 से ईसा पूर्व 232) विश्वप्रसिद्ध एवं शक्तिशाली भारतीय मौर्य राजवंश के महान सम्राट थे। अशोक बौद्ध धर्म के सबसे प्रतापी राजा थे। सम्राट अशोक का पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक (राजा प्रियदर्शी देवताओं का प्रिय) था।
प्राचीन समय के सबसे प्राचीन साम्राज्य मौर्य साम्राज्य के तीसरे शासक सम्राट अशोक मौर्य विश्व प्रसिद और सबसे शक्तिशाली राजाओं में से एक थे। सम्राट अशोक मौर्य ने 269 से 232 ई.पू तक शासन किया था। मौर्य वंश के यह एक ऐसे राजा थे, जिन्होंने अखंड भारत पर अपना शासन किया था।
भारत में मौर्य साम्राज्य का प्रसार करने वाले इस राजा ने भारत के उत्तर में हिन्दुकुश से लेकर गोदावरी नदी तक राज्य का विस्तार किया था। इसके साथ ही उनके राज्य का विस्तार बांग्लादेश से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान और ईरान तक था। सम्राट अशोक एक महान राजा होने के साथ धार्मिक सहिष्णु भी थे। वे बौद्ध धर्म के अनुयायी थे।
सम्राट अशोक अपने पिता के शासनकाल में प्रांतीय उपरत्या (प्रशासक) थे । इससे उनको शासन करने का अनुभव मिला। मौर्य सम्राज्य के इतिहास के संबंध में सर्वाधिक अभिलेखीय प्रमाण सम्राट अशोक के ही काल में प्राप्त होते है। सम्राट अशोक के अभिलेखों में उसका नाम देवानां प्रियदर्शी राजा एवं अशोक लिखा हुआ है।
सम्राट अशोक का संक्षिप्त परिचय
नाम | सम्राट अशोक |
प्रसिद्दि | महान राजा के रूप में |
उपनाम | चंदशोक ,सम्राट अशोक ,अशोक दी ग्रेट |
उपाधि | चक्रवर्ती सम्राट |
जन्मदिन | 304 ई. पू |
जन्म स्थान | पाटलिपुत्र |
मृत्यु की तारीख | 232 ई. पू |
मृत्यु की जगह | तक्षशिला |
शासनकाल | 269 ई.पू से 232 ई.पू |
रचनाएँ | राष्ट्रीय प्रतीक’ और ‘अशोक चक्र’ |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
पत्नी का नाम | पत्नी -4 ,देवी, कारुवाकी, पद्मावती, तिष्यरक्षिता |
बच्चो का नाम | पुत्र – 3 बेटे, महेंद्र , तिवला और कुणाल पुत्री – 2 बेटी ,चारुमथी और संघमित्रा |
पिता का नाम | राजा बिन्दुसार |
माता का नाम | रानी शुभाद्रंगी |
सम्राट अशोक का जीवन परिचय
सम्राट अशोक भारत के मौर्य साम्राज्य के सबसे प्रमुख राजा थे । अपने शासनकाल के दौरान वह बौद्ध धर्म के समर्थक थे, जिसने भारत में बौद्ध धर्म को प्रसार करने में मदद की। चक्रवर्ती सम्राट अशोक का जन्म 304 ई.पू. वर्तमान बिहार के पाटलिपुत्र में हुआ था। सम्राट बिन्दुसार के पुत्र और मौर्य वंश के तीसरे राजा के रूप में जाने गये थे। चन्द्रगुप्त मौर्य की तरह ही उनका पोता भी काफी शक्तिशाली था। पाटलिपुत्र नामक स्थान पर जन्म लेने के बाद उन्होंने अपने राज्य को पुरे अखंड भारतवर्ष में फैलाया, और पुरे भारत पर एकछत्र राज किया।
सम्राट अशोक चन्द्रगुप्त मौर्य के वंशज थे। चन्द्रगुप्त मौर्य का एक पुत्र था बिन्दुसार और सम्राट अशोक उसी बिन्दुसार का बेटा था, जो की मौर्य वंश का तीसरा राजा और एक महान शासक था। सम्राट अशोक की माता का नाम शुभाद्रंगी था। सम्राट अशोक को बचपन से ही शिकार करने का शौक था और खेलते-खेलते उसमें निपुण हो गए थे।
जब वे बड़े हुए तो उन्होंने साम्राज्य के मामलों में अपने पिता की मदद करना शुरू कर दिया और जब भी वे कोई काम करते थे, तो वे अपनी प्रजा का पूरा ध्यान रखते थे इसलिए उनकी प्रजा उन्हें पसंद करने लगी थी।
सम्राट अशोक की 4 पत्नियां थी जिनके नाम देवी, कारुवाकी, पद्मावती, तिष्यरक्षिता थे। सम्राट अशोक के तीन पुत्र थे उनके नाम महेंद्र, तीवल, कनाल, और दो पुत्री संघमित्रा, चारुमती थी।
सम्राट अशोक जन्म से ही एक महान शासक थे, उसके साथ ही वे ज्ञानी और महान शक्तिशाली शासक भी थे। महान सम्राट अशोक अर्थशास्त्र और गणित के महान ज्ञाता थे। सम्राट अशोक ने शिक्षा के प्रचार के लिए कई स्कूल और कॉलेज की स्थापना भी की थी।सम्राट अशोक ने 284 ई.पू बिहार में एक उज्जैन अध्ययन केंद्र की स्थापना की थी। इतना ही नहीं इन सबके अलावा भी उन्होंने कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना की थी। सम्राट स्वयं शिक्षा के क्षेत्र में भी कई महान कार्य किये थे जिनकी वजह से उन्हें एक महान शासक के नाम से जाना जाता है।
सम्राट अशोक का धार्मिक परिचय
सम्राट अशोक स्वयं एक महान धार्मिक सहिष्णु शासक तथा बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। यह पशु हत्या के बिलकुल खिलाफ थे। साथ ही इन्होने जनता को हमेशा जियो और जीने दो का ज्ञान दिया करते थे। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने दूत यानी प्रचारकों को श्रीलंका, नेपाल, सीरिया, अफगानिस्तान इत्यादि जगहों पर भी भेजा था।
इन्होने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को भी इन देशों की यात्रा पर भेजा था, ताकि वे इन देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार कर सके और लोगों को धार्मिक बना सके। बौद्ध धर्म का प्रचार करने में सबसे ज्यादा सफलता उनके सबसे बड़े पुत्र महेंद्र को मिली थी। उसने श्रीलंका राज्य के राजा तिस्स को बौद्ध धर्म अपनाने के लिए विवश कर दिया था। बौद्ध धर्म अपनाने के बाद राजा तिस्स ने बौद्ध धर्म को राजधर्म में परिवर्तित कर लिया। अशोक से प्रेरित हो कर तिस्स ने स्वयं को ‘देवनामप्रिय’ की उपाधि दी।
सम्राट अशोक के साम्राज्य का इतिहास
सम्राट अशोक के साम्राज्य के विस्तार की बात करें तो सम्राट अशोक का साम्राज्य अखंड भारत में फैला हुआ था। केवल सम्राट अशोक ने उत्तर से दक्षिण तक शासन किया। अशोक का राज्य उत्तर से दक्षिण तक हिंदुकुश की पर्वतमाला से और पूर्व में बांग्लादेश से लेकर पश्चिम में इराक और अफगानिस्तान तक फैला हुआ था।
वर्तमान समय के अनुसार सम्राट अशोक का राज्य वर्तमान भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार और इराक तक में फैला हुआ था। आज का पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार, नेपाल और भूटान उस समय भारत का हिस्सा थे। और यह सब मिलकर अखण्ड भारत के नाम से जाना जाता था।
उनका बड़ा भाई सुसीमा अशोक की तरह बुद्धिमान और बहादुर नहीं था , लेकिन वह अगला राजा बनना चाहता था इसलिए उसने अशोक के खिलाफ अपने पिता बिंदुसार को उकसाना शुरू कर दिया, जिसे बाद में बिंदुसार ने देश से निकाल दिया।
अशोक कलिंग गया, जहाँ उसकी मुलाकात कौरवकी नाम की लड़की से हुई जो एक मछुवारी थी। अशोक को उस लड़की से प्रेम हो गया और बाद में उसने कौरवकी को अपनी पत्नी बना लिया।
जल्द ही, उज्जैन प्रांत में हिंसक विद्रोह शुरू हो गया। सम्राट बिन्दुसार ने अशोक को वनवास से वापस बुलाकर उज्जैन भेज दिया। राजकुमार अशोक आगामी युद्ध में घायल हो गए थे। और बौद्ध भिक्षुओं और ननों द्वारा उसका इलाज किया गया था। इसी समय उसे बौद्ध विधि-विधानों तथा शिक्षाओं का पता चला था। यहाँ पर एक सुन्दरी, जिसका नाम देवी था, उससे अशोक को प्रेम हो गया। स्वस्थ होने के बाद अशोक ने उससे विवाह कर लिया।
उज्जैन अशोक को पहली बार बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं के बारे में पता चला। कई अवधारणाएं हैं कि बौद्धिक भिक्षुओं ने अपने फायदे के लिए अपनी चोटों का इस्तेमाल किया (जैसे आधुनिक ईसाई मिशनरी अपने गैर-ईसाई रोगियों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए अस्पतालों का उपयोग करते हैं) और बौद्ध चिकित्सिका देवी को ईसाई धर्म के तरीकों का उपयोग करके बौद्ध धर्म पर अशोक को प्रभावित करने के लिए आश्वस्त किया।
बौद्ध भिक्षुओं ने अशोक को बौद्ध धर्म अपनाने और पूरे भारत में बौद्ध धर्म के प्रसार की जिम्मेदारी लेने के लिए कहा, जिसको अशोक ने मना कर दिया। बाद में उज्जैन में इलाज के दौरान अशोक ने उस बौद्ध चिकित्सिका देवी से शादी कर ली। अगले वर्ष, बिंदुसार गंभीर रूप से बीमार हो गया और सचमुच अपनी मृत्युशैया पर था। राधागुप्त के नेतृत्व में मंत्रियों के एक समूह ने अशोक को ताज ग्रहण करने का आग्रह किया। अपने राज्यारोहण के बाद की लड़ाई में, अशोक ने पाटलिपुत्र, अब पटना पर हमला किया और सुसीमा सहित अपने सभी भाइयों को मार डाला।
राजा बनने के बाद, अशोक ने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए क्रूर हमले किए, जो लगभग आठ वर्षों तक चला। विस्तार के बाद, उन्होंने अपने विशाल क्षेत्र का सुचारू रूप से प्रशासन करके खुद को साबित किया, एक सक्षम और साहसी राजा के रूप में अपने सभी कर्तव्यों का पालन किया। इस समय के आसपास, उनकी बौद्ध रानी देवी ने प्रिंस महिंद्रा और राजकुमारी संघमित्रा को जन्म दिया।
कलिंगा की लड़ाई
सम्राट अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 7 वे वर्ष ही कलिंग पर आक्रमण किया था, जिसमें बहुत खून खराबा हुआ। सम्राट अशोक के तेरहवें शिलालेख के अनुसार यह बताया गया हैं की इस युद्ध में दोनों तरफ से करीब 1 लाख लोगो की मौत हुई थी और कई लोग इसमें घायल भी हुए थे। सम्राट अशोक ने इस नरसंहार को अपनी आंखों से देख काफी दुखी हुए।
इस युद्ध से दुखी होकर सम्राट अशोक ने अपने राज्य में सामाजिक और धार्मिक प्रचार करना आरम्भ किया। इस घटना के बाद सम्राट अशोक का मन मानव और जीव के प्रति दया के भाव से भर गया। इस घटना के बाद सम्राट अशोक ने युद्ध न करने का प्रण लिया और लोगो के बीच शांति का प्रचार किया।
कलिंग पर विजय प्राप्त कर अशोक अपने साम्राज्य मे विस्तार करना चाहता था। सामरिक दृष्टि से देखा जाए तो भी कलिंग बहुत महत्वपूर्ण था। स्थल और समुद्र दोनो मार्गो से दक्षिण भारत को जाने वाले मार्गो पर कलिंग का नियन्त्रण था। यहाँ से दक्षिण-पूर्वी देशो से आसानी से सम्बन्ध बनाए जा सकते थे।
सम्राट अशोक ने कलिंग के खिलाफ युद्ध करने से पहले कलिंग को अपने साम्राज्य में मिलने के लिए कहा। परन्तु कलिंग एक स्वाभिमानी राज्य था उसने अपनी अधीनता अशोक के सामने स्वीकार नहीं की। जिसके कारण अशोक ने कलिंग के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दिया।
कलिंग को वर्तमान में ओडिशा कहा जाता है । अशोक ने कलिंग के युद्द में जीत हासिल की। लेकिन यह युद्द अब तक का सबसे भयंकर और विनाशकारी युद्ध साबित हुआ। जिसमें 100,000 – 150,000 लोग मारे गए थे। उनमें से 10,000 अशोक के आदमी थे। युद्ध के प्रकोप और नतीजे ने लोगों के जीवन को खतरे में डाल दिया।
अशोक कभी भी इस स्तर के विनाश की कल्पना तक नहीं किया था। और यही कारण था कि अपनी जीत के बाद भी इस स्तर के विनाश को वह भुला नहीं सका। वह इस सबका एक व्यक्तिगत गवाह था। और जैसे-जैसे दिन बीतते गए उसकी पछतावे की भावना बढ़ती गई। इस अथाह काल के दौरान अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया। जिससे उनके शासनकाल के साथ-साथ उनके जीवन में कई महत्वपूर्ण मोड़ आया।
कलिंगा की लड़ाई के कारण
- कलिंग पर विजय प्राप्त कर अशोक अपने साम्राज्य मे विस्तार करना चाहता था।
- सामरिक दृष्टि से देखा जाए तो भी कलिंग बहुत महत्वपूर्ण था। स्थल और समुद्र दोनो मार्गो से दक्षिण भारत को जाने वाले मार्गो पर कलिंग का नियन्त्रण था।
- यहाँ से दक्षिण-पूर्वी देशो से आसानी से सम्बन्ध बनाए जा सकते थे।
- व्यापार के लिए महत्वपूर्ण बंदरगाहों और एक मजबूत नौसेना के साथ कलिंग की कोस्टलाइन को नियंत्रित किया जाये तो व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निबाह सकती थी।
कलिंगा की लड़ाई का परिणाम
कलिंग और अशोक के बीच हुए युद्ध का जो परिणाम आया वह एक बहुत बड़े बदलाव की तरफ ले गया। इस युद्ध ने सम्राट अशोक के जीवन को पूरी तरह से बदल कर रख दिया। इस युद्ध में हुए रक्त-पात को देख कर सम्राट अशोक का मन अत्यंत दुखी हो गया इस युद्ध ने सम्राट अशोक को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया। इस युद्ध के पश्चात् सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। और सदा के लिए हिंसा का त्याग कर दिया।
एक इतने बड़े और बलशाली सम्राट का इस प्रकार ह्रदय परिवर्तन हो जायेगा यह कभी भी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। परन्तु यह निश्चित रूप से सम्राट अशोक को सम्राट के साथ साथ महान भी बना दिया और तभी से सम्राट अशोक को अशोक महान भी कहा जाने लगा गया।
- मौर्य साम्राज्य का विस्तार हुआ। इसकी राजधानी तोशाली बनाई गई।
- इसने अशोक की साम्राज्य विस्तार की नीति का अन्त कर दिया।
- इसने अशोक के जीवन पर बहुत प्रभाव डाला। उसने अहिंसा, सत्य, प्रेम, दान, परोपकार का रास्ता अपना लिया।
- अशोक बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया। उसने बौद्ध धर्म का प्रचार भी किया।
- उसने अपने संसाधन प्रजा की भलाई मे लगा दिए।
- उसने ‘धम्म’ की स्थापना की।
- उसने दूसरे देशो से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए।
- कलिंग युद्ध मौर्य साम्राज्य के पतन का कारण बना। अहिंसा की नीति के कारण उसके सैनिक युद्ध कला मे पिछड़ने लगे। परिणामस्वरूप धीरे-धीरे उसका पतन आरम्भ हो गया तथा अशोक की मृत्यु के 47 वर्ष के भीतर ही मौर्य वंश का पतन हो गया। इस इस युद्ध में लगभग 100000 लोग मारे गए और लोगों को बंदी बनाकर मगध लाया गया और संपूर्ण कलिंग क्षेत्र में आग लगा दी गई।
- इस युद्ध के बाद अशोक का हृदय परिवर्तन हुआ और उसने हिंसा त्याग दी इस युद्ध का वर्णन अशोक के 13 शिलालेख से मिलता है।
सम्राट अशोक और बौद्ध धर्म
कलिंग के युद्ध की घटना के बाद सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया और इस धर्म के अनुयायी बन गये, अपने राज्य में इस धर्म का प्रचार किया और लोगों को जीव और मानव के प्रति दया भाव रखने का संदेश दिया।
अशोक एक महान धार्मिक सहिष्णु शासक था और वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। वह पूरी तरह से पशु हत्या के खिलाफ थे और उन्होंने हमेशा लोगों को जीवन का ज्ञान दिया और उन्हें जीने दिया।
सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए श्रीलंका, नेपाल, सीरिया, अफगानिस्तान आदि में अपने दूत यानि प्रचारक भी भेजे थे। उन्होंने अपने बेटे और बेटी को भी इन देशों की यात्रा पर भेजा, ताकि वे बौद्ध धर्म का प्रचार कर सकें और इन देशों में लोगों को धार्मिक बना सकें।
उनके सबसे बड़े पुत्र महेंद्र को बौद्ध धर्म के प्रचार में सबसे अधिक सफलता मिली। उन्होंने श्रीलंका राज्य के राजा तिस्सा को बौद्ध धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया। उसके बाद राजा तिस्सा ने बौद्ध धर्म को राजधर्म में परिवर्तित कर दिया। अशोक से प्रेरित होकर तीस ने स्वयं को दी ‘देवनामप्रिया’ की उपाधि दी।
अशोक महान की मृत्यु
ऐसा माना जाता है की सम्राट अशोक के जीवन का अंतिम समय पाटलिपुत्र, पटना में ही बीता था। 40 वर्षो के शासन के बाद उनकी मृत्यु हो गई। सम्राट अशोक ने अपने जीवन काल में कई महान कार्य किये और उन्ही महान कार्यो के लिए उन्हें जाना जाता हैं। अशोक अपने अंतिम शासनकाल के वर्षों में बीमार थे और पाटलिपुत्र, अब पटना में 72 वर्ष की आयु में एक सम्राट की तरह उनकी मृत्यु हो गई। जिसने बौद्ध धर्म के माध्यम से दान और कई परोपकारी कार्यों से लोगों के जीवन में बदलाव किया।
वह चाहते थे कि उनका बेटा महेंद्र उनका उत्तराधिकारी बने, लेकिन उन्होंने बौद्ध धर्म के मार्ग पर चलने और एक भिक्षु के रूप में जीवन जीने के लिए इसे अस्वीकार कर दिया। और उनकी पत्नी कमला का पुत्र संप्रति, ताज के लिए बहुत छोटा था। इस प्रकार अशोक के पोते दशरथ मौर्य थे जो उनके उत्तराधिकारी बने।
सम्राट अशोक के अभिलेख
सम्राट अशोक के इतिहास की जानकारी उनके अभिलेखों से मिलती है। अशोक पहले भारतीय शासक थे जो अभिलेखों के द्वारा प्रजा को सीधे ही संबोधित करते थे ।
सम्राट अशोक के अभिलेखों के प्रकार:-
- दीर्घ अभिलेख
- लघु शिलालेख
- पृथक शिलालेख
- दीर्घ स्तम्भ लेख
- लघु स्तम्भलेख
सम्राट अशोक के सर्वाधिक अभिलेख प्राकृत भाषा में है। अशोक के अभिलेख ब्राह्मी, खरोष्ठी, अरमाइक एवं ग्रीक लिपियों में मिलते है। अशोक के शिलालेखों में शाहबाजगढ़ी एवं मानसेहरा (पाकिस्तान) के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में है।
सम्राट अशोक मौर्य के निर्माण एवं शिलालेख
सम्राट अशोक ने अपने जीवनकाल में कई इमारतों, स्तूपों, मठों और स्तंभों का निर्माण किया। सम्राट अशोक द्वारा निर्मित मठ और स्तूप राजस्थान के बैराठ में पाए जाते हैं, साथ ही सांची स्तूप भी बहुत प्रसिद्ध है और सम्राट अशोक द्वारा भी बनवाया गया था।
सम्राट अशोक ने अपने जीवन में कई शिलालेख भी खुदवाए, जिन्हें इतिहास में सम्राट अशोक के शिलालेख के रूप में जाना जाता है। मौर्य वंश के बारे में पूरी जानकारी उनके द्वारा स्थापित इन मौर्य राजवंशों के अभिलेखों में मिलती है।
सम्राट अशोक ने इन शिलालेखों को ईरानी शासक की प्रेरणा से उकेरा था। सम्राट अशोक ने अपने जीवनकाल में लगभग 40 शिलालेख पाए हैं, जिनमें से कुछ शिलालेख भारत के बाहर पाए गए हैं जैसे अफगानिस्तान, नेपाल, वर्तमान बांग्लादेश और पाकिस्तान आदि।
सम्राट अशोक मौर्य के शिलालेख
शिलालेख | स्थान |
रूपनाथ | जबलपुर ज़िला, मध्य प्रदेश |
बैराट | राजस्थान के जयपुर ज़िले में, यह शिला फलक कलकत्ता संग्रहालय में भी है। |
मस्की | रायचूर ज़िला, कर्नाटक |
येर्रागुडी | कर्नूल ज़िला, आंध्र प्रदेश |
जौगढ़ | गंजाम जिला, उड़ीसा |
धौली | पुरी जिला, उड़ीसा |
गुजर्रा | दतिया ज़िला, मध्य प्रदेश |
राजुलमंडगिरि | बल्लारी ज़िला, कर्नाटक |
गाधीमठ | रायचूर ज़िला, कर्नाटक |
ब्रह्मगिरि | चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक |
पल्किगुंडु | गवीमट के पास, रायचूर, कर्नाटक |
सहसराम | शाहाबाद ज़िला, बिहार |
सिद्धपुर | चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक |
जटिंगा रामेश्वर | चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक |
येर्रागुडी | कर्नूल ज़िला, आंध्र प्रदेश |
अहरौरा | मिर्ज़ापुर ज़िला, उत्तर प्रदेश |
दिल्ली | अमर कॉलोनी, दिल्ली |
अशोक के स्तम्भ लेख
अशोक के स्तम्भ लेख छः स्थानों से प्राप्त हुए है-
- दिल्ली-टोपरा; यह मूलतः टोपरा (अम्बाला, हरियाणा) में स्थित था और इसे फिरोजशाह तुगलक द्वारा टोपरा से अपनी नवीन राजधानी फिरोजशाह दिल्ली में स्थापित किया गया।
- दिल्ली-मेरठ: फिरोजशाह तुगलक द्वारा उस अभिकेख को मेरठ से लाकर अपनी नवीन राजधानी में स्थापित किया गया।
- प्रयाग– वर्तमान में यह इलाहबाद के किले में है, पर माना जाता है कि यह मूलतः कौशाम्बी में था इसे रानी अभिलेख कहा जाता था। इसी अभिलेख पर समुद्रगुप्त की प्रसिद्ध प्रयाग प्रशस्ति है। और इसी स्तम्भ पर जहांगीर द्वारा उत्कीर्ण अभिलेख भी है।
- रामपुरवा– बिहार के चम्पारन जिले में।
- लौरिया अरराज- यह उत्तरी बिहार के चम्पारन जिले में है।
इन्हें भी देखें –
- भारत का विभाजन (1947)
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी (1600 – 1858)
- ब्रिटिश राज (1857 – 1947)
- भारत चीन युद्ध (1962)
- भारत पाकिस्तान युद्ध 1971: एक शक्तिशाली विजय और एकता की कहानी
- भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल | विश्व विरासत सूची
- सौर मंडल | Solar System
- भारत में महारत्न कंपनियों की सूची | 2024
- भारत में रामसर स्थल | Ramsar Sites in India | 2024
- अंतर्राष्ट्रीय कप व ट्रॉफियां और उनसे सम्बंधित प्रमुख खेल
- विश्व के देश, उनके राष्ट्रीय खेल तथा खिलाड़ियों की संख्या
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