सर्वोच्च न्यायालय | भाग – 5 | भारतीय न्याय व्यवस्था की मुख्य धारा

भारतीय संविधान के भाग V और अध्याय 6 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई है, जो संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 के तहत अपने संगठन, स्वतंत्रता, अधिकार क्षेत्र, शक्तियों और प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है। सर्वोच्च न्यायालय भारत की सबसे उच्च न्यायिक संस्था है और इसे संविधान द्वारा विशेष अधिकार प्रदान किए गए हैं, जैसे अनुच्छेद 124(4) के तहत न्यायाधीशों को कार्यकाल से पूर्व हटाने का प्रावधान, अनुच्छेद 127 और 126 के तहत तदर्थ और कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति, और अनुच्छेद 131 के तहत राज्यों के बीच विवादों का निर्णय।

यह न्यायालय अनुच्छेद 132 और 133 के तहत अपील का अधिकार और अनुच्छेद 137 के तहत न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति भी रखता है। वर्तमान में, डॉ. न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यरत हैं। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पूरे भारत में मान्य होते हैं, और हाल ही में इसके न्यायाधीशों की संख्या 31 से बढ़ाकर 34 कर दी गई है।

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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारत में न्यायिक प्रणाली की स्थापना की शुरुआत 1773 में ऐग्यूलेटिंग एक्ट द्वारा कोलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना से हुई। यह एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसने भारतीय न्याय व्यवस्था की नींव रखी। इसके बाद, 1935 के भारत शासन अधिनियम ने संघीय न्यायालय की व्यवस्था को स्थापित किया, जो एक महत्वपूर्ण विकास था। यह व्यवस्था भारतीय संविधान के निर्माण की दिशा में एक प्रमुख कदम था।

संविधान के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय

भारतीय संविधान की धारा 124 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई। इस धारा ने सर्वोच्च न्यायालय को एक स्वतंत्र और प्रभावशाली संस्था के रूप में मान्यता दी, जो देश की सबसे उच्च न्यायिक संस्था है।

अनुच्छेद 124: सर्वोच्च न्यायालय का गठन

अनुच्छेद 124 ने सर्वोच्च न्यायालय के गठन की प्रक्रिया को स्पष्ट किया। इस अनुच्छेद के तहत सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति और उनके अधिकारों की व्यवस्था की गई।

अनुच्छेद 124(4): न्यायाधीशों की कार्यकाल से पूर्व हटाने का प्रावधान

अनुच्छेद 124(4) न्यायाधीशों को कार्यकाल से पूर्व हटाने के प्रावधान को स्पष्ट करता है। इसे महावियोग (Impeachment) की प्रक्रिया के तहत लागू किया जाता है। न्यायाधीशों को सिद्घकदाचार और अक्षमता के कारण कार्यकाल से पूर्व हटाया जा सकता है। यह प्रक्रिया न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।

अनुच्छेद 126: कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति

अनुच्छेद 126 कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की प्रक्रिया को निर्दिष्ट करता है। जब मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं हो पाती या वह अनुपस्थित होते हैं, तो कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश को नियुक्त किया जाता है, जो सर्वोच्च न्यायालय के कार्यों को संचालित करता है।

अनुच्छेद 127: तदर्थ न्यायाधीश की नियुक्ति

अनुच्छेद 127 के तहत, तदर्थ न्यायाधीश की नियुक्ति की व्यवस्था की गई है। यह प्रावधान विशेष परिस्थितियों में न्यायाधीशों की कमी को पूरा करने के लिए है, जब कोई नियमित न्यायाधीश अनुपलब्ध होता है या किसी कारणवश असमर्थ होता है।

अनुच्छेद 130: मुख्यालय

अनुच्छेद 130 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। यह स्थान न्यायपालिका के महत्वपूर्ण कार्यों और निर्णयों का केंद्र है।

कार्य एवं शक्तियां

सर्वोच्च न्यायालय की कई महत्वपूर्ण शक्तियाँ और कार्य हैं जो भारतीय न्याय व्यवस्था को समन्वित और नियंत्रित करते हैं:

अनुच्छेद 129: अवमानना का दण्ड देने की शक्ति

अनुच्छेद 129 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय को अभिलेख और रिकॉर्ड के प्रबंधन के साथ-साथ अवमानना के मामलों में दण्ड देने की शक्ति प्राप्त है। यह शक्ति न्यायालय की गरिमा और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

अनुच्छेद 131: प्रारंभिक क्षेत्राधिकरण

अनुच्छेद 131 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय को एक या एक से अधिक राज्यों या एक राज्य और अन्य राज्यों के बीच किसी भी विवाद पर फैसला करने की शक्ति प्राप्त है। इसके साथ ही, भारत सरकार के साथ भी विवादों के समाधान का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय के पास है।

अनुच्छेद 132: अपीलय क्षेत्राधिकार

अनुच्छेद 132 सर्वोच्च न्यायालय को अपीलय क्षेत्राधिकार प्रदान करता है। इसका तात्पर्य है कि सर्वोच्च न्यायालय को संविधान के किसी भी उल्लंघन के मामलों में अपील सुनने का अधिकार है।

अनुच्छेद 133: दीवानी मामलों में अपील का अधिकार

अनुच्छेद 133 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय को दीवानी मामलों में अपील सुनने का अधिकार प्राप्त है। इसमें नागरिक मामलों के फैसलों के खिलाफ अपील की जा सकती है।

अनुच्छेद 134: फौजदारी मामलों में अपील का अधिकार

अनुच्छेद 134 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय को फौजदारी मामलों में अपील सुनने का अधिकार प्राप्त है। यह प्रावधान न्यायपालिका को फौजदारी मामलों में अंतिम और सर्वोच्च अपील के रूप में काम करने की अनुमति देता है।

अनुच्छेद 135: सैन्य मामलों में अपील का अधिकार

अनुच्छेद 135 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय को सैन्य मामलों में अपील सुनने का अधिकार प्राप्त है। यह प्रावधान सैन्य न्याय प्रणाली के अंतर्गत मामलों की सुनवाई और समाधान के लिए है।

अनुच्छेद 136: विशेष अपील का अधिकार

अनुच्छेद 136 सर्वोच्च न्यायालय को विशेष अपील सुनने का अधिकार प्रदान करता है। यह विशेष परिस्थितियों में लागू होता है जब किसी भी अन्य न्यायालय द्वारा दिए गए फैसलों की समीक्षा की आवश्यकता होती है।

अनुच्छेद 137: न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति

अनुच्छेद 137 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति प्राप्त है। इसका तात्पर्य है कि सर्वोच्च न्यायालय किसी भी उच्च न्यायालय या अन्य न्यायालय के निर्णयों की पुनरावलोकन कर सकता है और आवश्यकतानुसार उन्हें बदल सकता है।

अनुच्छेद 141: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की मान्यता

अनुच्छेद 141 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के सभी निर्णय सम्पूर्ण भारत में मान्य होंगे। इसका तात्पर्य है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले देश के हर हिस्से में लागू होते हैं और उन्हें मान्यता प्राप्त है।

अनुच्छेद 143: राष्ट्रपति का परामर्श

अनुच्छेद 143 राष्ट्रपति को सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श लेने का अधिकार प्रदान करता है। राष्ट्रपति महत्वपूर्ण संवैधानिक मामलों में सर्वोच्च न्यायालय से सलाह ले सकते हैं, जो उनकी निर्णय प्रक्रिया में सहायक होती है।

प्रमुख न्यायाधीश और वर्तमान स्थिति

पहले मुख्य न्यायाधीश हीरा लाल जे कानिया थे। सर्वोच्च न्यायालय के कार्यकाल के दौरान, वी. वी. चंद चूड़ ने सबसे लंबे समय तक कार्यकाल पूरा किया, जो 7 वर्ष था। पहली महिला न्यायाधीश फातिमा बीबी थीं, जिन्होंने न्यायपालिका में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

वर्तमान में, डॉ. न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यरत हैं और उनका कार्यकाल 10 नवंबर 2024 तक जारी रहेगा।

वेतन और भत्ते

अनुच्छेद 125 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन और भत्ते भारत की संचित नीति पर आधारित होते हैं। यह प्रावधान न्यायधीशों के वेतन और भत्तों की पारदर्शिता और मानक को सुनिश्चित करता है।

हाल ही में, संसद ने सर्वोच्च न्यायालय में प्रधान न्यायाधीश सहित न्यायाधीशों की संख्या 31 से बढ़ाकर 34 कर दी है। यह बढ़ोतरी न्यायपालिका की कार्यक्षमता और बोझ को कम करने के उद्देश्य से की गई है।

भारतीय सर्वोच्च न्यायालय से सम्बंधित प्रमुख तथ्य

नीचे दिए गए तालिका में “भारतीय सर्वोच्च न्यायालय” – भारतीय न्याय व्यवस्था के प्रमुख तथ्यों को दिया गया है –

शीर्षकविवरण
ऐतिहासिक पृष्ठभूमिभारत में न्यायिक प्रणाली की शुरुआत 1773 में ऐग्यूलेटिंग एक्ट द्वारा कोलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना से हुई। 1935 के भारत शासन अधिनियम ने संघीय न्यायालय की व्यवस्था को स्थापित किया, जो भारतीय संविधान के निर्माण की दिशा में एक प्रमुख कदम था।
संविधान के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालयसंविधान की धारा 124 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई, जिससे यह देश की सबसे उच्च न्यायिक संस्था बनी।
अनुच्छेद 124: सर्वोच्च न्यायालय का गठनअनुच्छेद 124 ने सर्वोच्च न्यायालय के गठन की प्रक्रिया को स्पष्ट किया, जिसमें न्यायाधीशों की नियुक्ति और उनके अधिकारों की व्यवस्था की गई।
अनुच्छेद 124(4): न्यायाधीशों की कार्यकाल से पूर्व हटाने का प्रावधानअनुच्छेद 124(4) के तहत, न्यायाधीशों को कार्यकाल से पूर्व हटाने के प्रावधान को महावियोग (Impeachment) के माध्यम से लागू किया जाता है, जिसमें सिद्घकदाचार और अक्षमता के कारण न्यायाधीशों को हटाया जा सकता है।
अनुच्छेद 126: कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्तिअनुच्छेद 126 कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की प्रक्रिया को निर्दिष्ट करता है, जब मुख्य न्यायाधीश अनुपस्थित या नियुक्त नहीं होते।
अनुच्छेद 127: तदर्थ न्यायाधीश की नियुक्तिअनुच्छेद 127 के तहत तदर्थ न्यायाधीश की नियुक्ति की व्यवस्था की गई है, जब कोई नियमित न्यायाधीश अनुपलब्ध होता है या असमर्थ होता है।
अनुच्छेद 130: मुख्यालयअनुच्छेद 130 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
कार्य एवं शक्तियां
अनुच्छेद 129: अवमानना का दण्ड देने की शक्तिअनुच्छेद 129 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय को अभिलेख और रिकॉर्ड के प्रबंधन के साथ-साथ अवमानना के मामलों में दण्ड देने की शक्ति प्राप्त है।
अनुच्छेद 131: प्रारंभिक क्षेत्राधिकरणअनुच्छेद 131 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय को राज्यों के बीच किसी भी विवाद पर फैसला करने की शक्ति प्राप्त है, और भारत सरकार के साथ भी विवादों के समाधान का अधिकार है।
अनुच्छेद 132: अपीलय क्षेत्राधिकारअनुच्छेद 132 सर्वोच्च न्यायालय को अपीलय क्षेत्राधिकार प्रदान करता है, जिसमें संविधान के उल्लंघन के मामलों में अपील की जा सकती है।
अनुच्छेद 133: दीवानी मामलों में अपील का अधिकारअनुच्छेद 133 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय को दीवानी मामलों में अपील सुनने का अधिकार प्राप्त है, जिसमें नागरिक मामलों के फैसलों के खिलाफ अपील की जा सकती है।
अनुच्छेद 134: फौजदारी मामलों में अपील का अधिकारअनुच्छेद 134 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय को फौजदारी मामलों में अपील सुनने का अधिकार प्राप्त है, जो न्यायपालिका को फौजदारी मामलों में अंतिम और सर्वोच्च अपील के रूप में काम करने की अनुमति देता है।
अनुच्छेद 135: सैन्य मामलों में अपील का अधिकारअनुच्छेद 135 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय को सैन्य मामलों में अपील सुनने का अधिकार प्राप्त है।
अनुच्छेद 136: विशेष अपील का अधिकारअनुच्छेद 136 सर्वोच्च न्यायालय को विशेष अपील सुनने का अधिकार प्रदान करता है, विशेष परिस्थितियों में जब किसी अन्य न्यायालय द्वारा दिए गए फैसलों की समीक्षा की आवश्यकता होती है।
अनुच्छेद 137: न्यायिक पुनरावलोकन की शक्तिअनुच्छेद 137 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति प्राप्त है, जिसमें उच्च न्यायालय या अन्य न्यायालयों के निर्णयों की पुनरावलोकन की जा सकती है।
अनुच्छेद 141: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की मान्यताअनुच्छेद 141 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के सभी निर्णय सम्पूर्ण भारत में मान्य होंगे।
अनुच्छेद 143: राष्ट्रपति का परामर्शअनुच्छेद 143 राष्ट्रपति को सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श लेने का अधिकार प्रदान करता है, जो महत्वपूर्ण संवैधानिक मामलों में राष्ट्रपति के निर्णय को प्रभावित करता है।
प्रमुख न्यायाधीश और वर्तमान स्थितिपहले मुख्य न्यायाधीश हीरा लाल जे कानिया थे। सर्वोच्च न्यायालय के कार्यकाल के दौरान, वी. वी. चंद चूड़ ने सबसे लंबे समय तक कार्यकाल पूरा किया, जो 7 वर्ष था। पहली महिला न्यायाधीश फातिमा बीबी थीं। वर्तमान में, डॉ. न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यरत हैं।
वेतन और भत्तेअनुच्छेद 125 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन और भत्ते भारत की संचित नीति पर आधारित होते हैं।
ताजे तथ्यहाल ही में, संसद ने सर्वोच्च न्यायालय में प्रधान न्यायाधीश सहित न्यायाधीशों की संख्या 31 से बढ़ाकर 34 कर दी है।

इस प्रकार, सर्वोच्च न्यायालय भारतीय न्याय व्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग है, जो देश की न्यायिक स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करता है। इसके पास कई शक्तियाँ और अधिकार हैं, जो इसे भारत की न्याय प्रणाली का केंद्र बनाते हैं।

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