हाल ही में भारत द्वारा सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को आंशिक रूप से निलंबित करने का निर्णय एक ऐतिहासिक और भू-राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह घोषणा जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के एक दिन बाद की गई, जिसमें 26 निर्दोष पर्यटकों की जान चली गई। यह हमला 2008 के मुंबई हमलों के बाद सबसे भीषण नागरिक हमला कहा जा रहा है। भारत सरकार ने इस हमले की कड़ी प्रतिक्रिया स्वरूप न केवल कूटनीतिक संबंधों में कटौती की, बल्कि सिंधु जल संधि जैसे दीर्घकालिक समझौते पर भी पुनर्विचार किया।
सिंधु जल संधि | एक ऐतिहासिक समझौता
सिंधु जल संधि 19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच कराची में हस्ताक्षरित हुई थी। इस संधि के मध्यस्थ और गारंटर की भूमिका विश्व बैंक ने निभाई थी। यह समझौता सिंधु नदी प्रणाली की छह प्रमुख नदियों — सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज के जल वितरण से संबंधित है।
नदियों का विभाजन
इस संधि के तहत नदियों को पूर्वी और पश्चिमी समूहों में बांटा गया:
- पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास, सतलुज): इन पर भारत को पूर्ण अधिकार प्राप्त है, यानी भारत इन नदियों का जल अपने विवेक से उपयोग कर सकता है।
- पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम, चिनाब): इनका जल पाकिस्तान को आवंटित किया गया है, जबकि भारत को इन नदियों पर सीमित उपयोग जैसे — ‘रन-ऑफ-द-रिवर’ जलविद्युत परियोजनाएँ, सिंचाई और नौवहन की अनुमति है।
संधि की संरचना
यह संधि 12 अनुच्छेदों और 8 परिशिष्टों (A से H) में विभाजित है। इसमें जल उपयोग के नियम, तकनीकी मापदंड, निगरानी प्रक्रिया, और विवाद समाधान की व्यवस्था दी गई है। यह संधि अब तक भारत और पाकिस्तान के बीच जल विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने में सहायक रही है।
भारत द्वारा संधि का निलंबन | पृष्ठभूमि और तात्कालिक कारण
भारत सरकार का निर्णय सीधे तौर पर हालिया आतंकवादी हमले की प्रतिक्रिया है, जो भारत में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की एक और बर्बर घटना मानी जा रही है। इस हमले ने भारत की घरेलू सुरक्षा नीति और विदेश नीति दोनों में कठोरता को जन्म दिया है।
अन्य कूटनीतिक कदम
भारत ने इस निर्णय के साथ-साथ अन्य कई कूटनीतिक और सुरक्षा उपाय अपनाए हैं:
- अटारी-वाघा सीमा अस्थायी रूप से बंद की गई।
- पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीजा सेवाएं निलंबित की गईं।
- भारत में स्थित पाकिस्तानी राजनयिकों और सैन्य अधिकारियों को निष्कासित किया गया।
रणनीतिक दृष्टिकोण से निलंबन का महत्व
भारत के इस निर्णय से उसे सिंधु बेसिन के जल संसाधनों पर अधिक नियंत्रण और रणनीतिक लचीलापन प्राप्त होगा। भले ही भारत ने अभी जल प्रवाह को नहीं रोका है, परंतु पाकिस्तान के निरीक्षण और सूचनाओं तक पहुंच को सीमित कर दिया गया है, विशेषतः निम्नलिखित परियोजनाओं के संदर्भ में:
- किशनगंगा परियोजना (झेलम की सहायक नदी पर)
- रैटल परियोजना (चिनाब नदी पर)
दीर्घकालिक नीति संकेत
हालाँकि भारत के पास अभी ऐसी अधोसंरचना नहीं है जिससे पाकिस्तान को जाने वाले जल प्रवाह को पूरी तरह रोका जा सके, परंतु यह कदम भविष्य में इस दिशा में संभावित बदलाव का संकेत देता है।
कानूनी और कूटनीतिक जटिलताएँ
एकतरफा समाप्ति संभव नहीं
संधि में एकतरफा रूप से बाहर निकलने का कोई प्रावधान नहीं है। इसमें संशोधन केवल दोनों पक्षों की सहमति से ही संभव है। अनुच्छेद XII(3) के तहत नई संधि के माध्यम से संशोधन का मार्ग खुला है।
विवाद समाधान प्रक्रिया
अनुच्छेद IX के तहत तीन-स्तरीय प्रक्रिया का उल्लेख है:
- स्थायी सिंधु आयोग के माध्यम से बातचीत
- न्यूट्रल एक्सपर्ट की नियुक्ति और तकनीकी समाधान
- अंतरराष्ट्रीय पंचाट (Court of Arbitration) का हस्तक्षेप
विवादित परियोजनाएँ और तकनीकी मतभेद
पाकिस्तान ने लंबे समय से किशनगंगा और रैटल परियोजनाओं को लेकर आपत्ति जताई है, यह कहते हुए कि ये परियोजनाएँ संधि का उल्लंघन करती हैं। वहीं भारत का तर्क है कि ये परियोजनाएँ “रन-ऑफ-द-रिवर” श्रेणी में आती हैं और जल प्रवाह को बाधित नहीं करतीं।
भारत ने जनवरी 2023 और सितंबर 2024 में संधि में संशोधन के लिए औपचारिक नोटिस भी दिए थे।
न्यूट्रल एक्सपर्ट की भूमिका
2022 में विश्व बैंक ने मिशेल लीनो को न्यूट्रल एक्सपर्ट नियुक्त किया। तीन चरणों की बातचीत के बाद जनवरी 2025 में लीनो ने स्वयं को निर्णय देने में सक्षम घोषित किया, जो कि विवाद समाधान की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।
निलंबन के संभावित प्रभाव
भारत के लिए रणनीतिक बढ़त
अब भारत को जल परियोजनाओं को लेकर पाकिस्तान को सूचित करने की बाध्यता नहीं रहेगी। इससे भारत को अपने जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने की स्वतंत्रता मिलेगी।
पाकिस्तान के लिए जल संकट
पाकिस्तान की कृषि लगभग 80% सिंधु जल प्रणाली पर निर्भर है। ऐसे में यदि भारत जल को सीमित करता है या रोकता है, तो पाकिस्तान के लिए खाद्य सुरक्षा, पेयजल आपूर्ति और ऊर्जा उत्पादन पर गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है।
क्षेत्रीय अस्थिरता की संभावना
सिंधु जल संधि को अब तक दक्षिण एशिया में स्थायित्व और सहयोग का प्रतीक माना जाता रहा है। इसके निलंबन से भारत-पाक संबंधों में और तनाव उत्पन्न हो सकता है, जो किसी भी प्रतिशोधात्मक कदम या अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता को जन्म दे सकता है।
सिंधु जल संधि का भारत द्वारा निलंबन न केवल एक कूटनीतिक मोर्चे पर बड़ा बदलाव है, बल्कि यह जल-राजनीति के नए युग की शुरुआत का संकेत भी है। यह कदम भारत की बदलती विदेश नीति को दर्शाता है, जो अब पारंपरिक सहिष्णुता की बजाय रणनीतिक दबाव और कड़े निर्णयों की ओर बढ़ रही है।
जहाँ एक ओर भारत के लिए यह एक रणनीतिक बढ़त का अवसर हो सकता है, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान को अब जल संसाधनों की सुरक्षा के लिए वैकल्पिक योजनाओं और संवाद की आवश्यकता होगी। यह विषय आने वाले वर्षों में भारत-पाक रिश्तों के भविष्य को गहराई से प्रभावित कर सकता है।
Polity – KnowledgeSthali
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इन्हें भी देखें –
- संधि से संधि-विच्छेद तक | भारत-पाक संबंधों में निर्णायक मोड़
- भारत-पाकिस्तान संबंधों में ऐतिहासिक बदलाव: सिंधु जल संधि का अंत और राजनयिक टूट
- सिन्धु नदी तन्त्र | सिन्धु और सहायक नदियाँ | Indus River System
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