सिकन्दर महान | Alexander the Great | 356-323 ई.पू.

सिकन्दर महान (Alexander the Great) मेसेडोनिया का ग्रीक शासक था। सिकंदर युद्ध में जिससे प्रभावित हुआ वह थे भारत के राजा पोरस। सिकन्दर का जन्म 20 जुलाई 356 ईसा पूर्व पेलमेसडॉन यूनान मे हुआ था। वह एलेक्ज़ेंडर तृतीय तथा एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन नाम से भी जाना जाता है। इतिहास में वह सबसे कुशल और यशस्वी सेनापति माना गया है। अपनी मृत्यु तक वह उस तमाम भूमि को जीत चुका था जिसकी जानकारी प्राचीन ग्रीक लोगों को थी। इसीलिए उसे विश्वविजेता भी कहा जाता है, और उसके नाम के साथ महान या दी ग्रेट भी लगाया जाता हैं।

सिकन्दर महान
नामअलेक्सेंडर तृतीय, सिकन्दर
पिताफिलिप द्वितीय
माताओलिम्पिया
सौतेली माताक्लेओपटेरा
पत्नीरोक्जाना
नानानिओप्टोलेमस
जन्म दिन20 जुलाई 356 ईसा पूर्व
जन्म स्थानपेला में
शौकगणित, विज्ञान और दर्शन शास्त्र में रूचि थी।
घोड़े का नामबुसेफेल्स
मृत्यु13 जून 323 ईसा पूर्व
मृत्यु का कारणमलेरिया और मियादी बुखार (Typhoid) (इतिहासकारों के मुताबिक)
मृत्यु का स्थानबेबीलोन

सिकन्दर का जीवन परिचय

सिकन्दर (Alexander the Great) का जन्म 20 जुलाई 356 ईसा पूर्व में “पेला” में हुआ था, जो की प्राचीन नेपोलियन की राजधानी थी। अलेक्जेंडर फिलिप द्वितीय का पुत्र था, जो मेक्डोनिया और ओलम्पिया के राजा थे। इसके पडोसी राज्य एपिरुस की राजकुमारी ओलिम्पिया (ओलंपियाज्ता) उनकी माँ थी। एलेक्जेंडर की एक बहन भी थी।

सिकंदर और उसकी बहन दोनों की परवरिश पेला के शाही दरबार में हुईं थी। 12 वर्ष की उम्र में सिकन्दर ने घुड़सवारी बहुत अच्छे से सीख ली थी। अलेक्जेंडर ने अपने पिता द्वारा मेक्डोनिया को एक सामान्य राज्य से महान सैन्य शक्ति में बदलते देखा था। अपने पिता की बालकन्स पर जीत दर्ज करते हुए देखकर सिकन्दर बड़ा हुआ था।

329 ई. पू. में अपनी पिता की मृत्यु के उपरान्त वह सम्राट बना। उस समय उसकी आयु बीस वर्ष थी। अपने पिता की एशिया माईनर को जितने की इच्छा पूर्ण करने के लिए विशाल सेना और सर्वोत्कृष्ट सैन्य- उपकरण लेकर निकल पड़ा। उसने बचपन से ही ‘विश्वविजयी’ का स्वप्न देखा था। उस समय के महान विचारक अरस्तु ने सिकन्दर को जीवन के पहलुओ की शिक्षा प्रदान की थी और उसे मानसिक रूप से मजबूत बनाया था।

सिकंदर की शिक्षा

सिकन्दर ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने रिश्तेदार दी स्टर्न लियोनीडास ऑफ़ एपिरुस से ली थी, जिसे फिलिप ने अलेक्जेंडर को गणित, घुड़सवारी और धनुर्विध्या सिखाने के लिए नियुक्त किया था। सिकन्दर के नए शिक्षक लाईसिमेक्स थे, जिन्होंने उसे युद्ध की शिक्षा दीक्षा दी। जब वह 13 वर्ष का हुआ, तब फिलीप ने सिकंदर के लिए एक निजी शिक्षक एरिसटोटल की नियुक्ति की।

एरिस्टोटल को भारत में अरस्तु कहा जाता हैं। अगले 3 वर्षों तक अरस्तु ने सिकंदर को साहित्य की शिक्षा दी और वाक्पटुता भी सिखाई। सिकंदर कम उम्र से ही बहुत धुरंधर था।

सिकन्दर ने 12 वर्ष की उम्र में सिकंदर ने घुड़सवारी बहुत अच्छे से सीख ली थी और ये उन्होंने अपने पिता को तब दिखाई, जब सिकन्दर ने एक प्रशिक्षित घोड़े ब्युसेफेलास को काबू में किया, जिस पर और कोई नियंत्रण नहीं कर पा रहा था। पहले तो वह घोड़ा सिकन्दर के काबू से बाहर रहा लेकिन अंत में सिकंदर ने उसपर काबू पा लिया।

सिकंदर के पिता को उसपे गर्व हुआ था। उसके बाद सिकन्दर ने अपने जीवन के कई युद्धों में बुसेफेल्स की सवारी की,और अंत तक वो घोड़ा उनके साथ ही रहा। 340 ईसा पूर्व में जब सिकन्दर जब 16 वर्ष का था तो उसके पिता ने सिकन्दर के कौशल को देख कर मेक्डोनिया राज्य का शासन सिकन्दर को दे दिया था।

सिकन्दर के युद्ध की शुरुआत

सिकन्दर ने जैसे ही सत्ता संभाली, तुरंत उसने अपने राज्य का विस्तार करने की सोची और इसी क्रम में उसने अपने आस पास के योद्धाओं को अपने साथ मिला लिया। परन्तु जैसे-जैसे मेक्डोनियन आर्मी ने थ्रेस में आगे बढ़ना शुरू किया, मेडी की थ्रेशियन जनजाति ने मेक्डोनिया के उत्तर-पूर्व सीमा पर विद्रोह कर दिया, जिससे देश के लिए खतरा बढ़ गया।

सिकंदर ने सेना इकट्ठी की और इसका इस्तेमाल विद्रोहियों के सामने शुरू किया। वह तेज़ी से कारवाही करते हुए मेडी जनजाति को हरा दिया, और इनके किले पर कब्ज़ा करके उस किले का नाम उसने खुद के नाम पर एलेक्जेंड्रोपोलिस रखा। 2 वर्ष बाद 338 ईसा पूर्व में फिलिप ने मेकडोनीयन आर्मी के ग्रीस में घुसपैठ करने पर अपने बेटे को आर्मी में सीनियर जनरल की पोस्ट दे दी। इस युद्ध में ग्रीक की करारी हार हुई और इससे सिकंदर का नाम पूरे विश्व में होने लगा।

अनेक शानदार युद्ध अभियानों के बीच उसमे एशिया माइनर को जीतकर सीरिया को पराजित किया और फिर इरान, मिस्र, मसोपोटेमिया, फिनीशिया, जुदेआ, गाझा, और बॅक्ट्रिया प्रदेश पर विजय हासिल की थी। मिस्र मे 327 ई.पू. में उसने अलेक्जांड्रिया नाम का एक नया नगर बसाया, वहां उसने एक विश्वविद्यालय की भी स्थापना की थी।

336 ईसा पूर्व में सिकंदर की बहन ने मोलोस्सियन के राजा से शादी की, इसी दौरान एक महोत्सव में पौसानियास ने राजा फिलिप द्वितीय की हत्या कर दी। अपने पिता की मृत्यु के समय सिकंदर 19 वर्ष का था और उसमें सत्ता हासिल करने का जोश और जूनून चरम पर था। उसने मेकडोनियन आर्मी के शस्त्रागार के साथ फ़ौज को इकट्ठा किया, जिनमें वो सेना भी शामिल थी जो केरोनिया से लड़ी थी। सेना ने सिकंदर को सामन्ती राजा घोषित किया और उसकी राजवंश के अन्य वारिसों की हत्या करने में मदद की।

ओलिम्पिया ने भी अपने पुत्र की इसमें मदद की,उसने फिलिप और क्लेओपटेरा की पुत्री को मार दिया और क्लेओपटेरा को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर दिया। सिकंदर के मेक्डोनिया के सामन्ती राजा होने के कारण उसे कोरिंथियन लीग पर नियंत्रण ही नहीं मिला बल्कि ग्रीस के दक्षिणी राज्यों ने फिलिप द्वितीय की मृत्यु का जश्न मनाना भी शुरू कर दिया और उन्होंने विभाजित और स्वतंत्र अभिव्यक्ति शुरू की। सिकंदर ने सत्ता में आते ही पूरी दुनिया में अपना दबदबा कायम कर लिया था।

सिकन्दर का विजय अभियान

उस समय फ़ारसी साम्राज्य के अंग थे और फ़ारसी साम्राज्य सिकन्दर के अपने साम्राज्य से कोई 40 गुना बड़ा था। वहां के राजा डेरियस तृतीय को अरबेला के युद्ध में हरा कर वह स्वयं वहां का राजा बन गया। फारसी में उसे एस्कंदर-ए-मक्दुनी (मॅसेडोनिया का अलेक्ज़ेंडर) औऱ हिंदी में सिकंदर महान कहा जाता है। जनता का ह्रदय जीतने के लिए उसने फारसी राजकुमारी रुखसाना से विवाह भी कर लिया।

सिकन्दर जब अपने उतरी अभियान को खत्म करने के करीब था,तब उसे यह खबर मिली की ग्रीक राज्य के शहर थेबेस ने मेक़डोनियन फ़ौज को अपने किले से भगा दिया हैं, अन्य शहरों के विद्रोह के डर से सिकंदर ने अपनी सेना के साथ दक्षिण का रुख किया। इन सब घटनाक्रमों के दौरान ही सिकंदर के जनरल परनियन ने एशिया की तरफ अपना मार्ग बना लिया है। अलेक्जेंडर और उसकी सेना थेबेस में इस तरह से पहुंची कि वहां की सेना को आत्म-रक्षा तक का मौका नहीं मिला।

सिकन्दर महान | Alexander the Great | 356-323 ई.पू.

वही सिकन्दर से एथेंस के साथ ग्रीक के अन्य शहर भी उसके साथ संधि करने को तैयार हो गए। 334 ईसा पूर्व में सिकंदर ने एशियाई अभियान के लिए नौकायन शुरू किया और उस वर्ष की वसंत में ट्रॉय में पंहुचा। सिकंदर ने ग्रेंसियस नदी के पास पर्शियन राजा डारियस तृतीय की सेना का सामना किया, उन्हें बुरी तरह से पराजित किया।

333 ईसा पूर्व की गर्मियों में सिकंदर की सेना और डारियस की सेना के मध्य एक बार फिर से युद्ध हुआ। हालांकि सिकंदर की सेना में ज्यादा सैनिक होने के कारण उसकी फिर से एक तरफा जीत हुई, और सिकंदर ने खुद को पर्शिया का राजा घोषित कर दिया।

सिकंदर का अगला लक्ष्य इजिप्ट को जीतना था, गाज़ा की घेराबंदी करके सिकंदर ने आसानी से इजिप्ट पर कब्ज़ा कर लिया। 331 ईसा पूर्व में उसने अलेक्जांद्रिया शहर का निर्माण किया और ग्रीक संस्कृति और व्यापार के लिए उस शहर को केंद्र बनाया। उसके बाद सिकंदर ने गौग्मेला के युद्ध में पर्शिया को हरा दिया।

पर्शियन आर्मी की हार के साथ ही सिकंदर बेबीलोन का राजा, एशिया का राजा और दुनिया के चारो कोनो का राजा बना गया। सिकंदर का अगला लक्ष्य पूर्वी ईरान था, जहाँ उसने मेक्डोनियन कालोनी बनाई और अरिमाज़ेस में 327 किलों पर अपना कब्ज़ा जमाया। प्रिंस ओक्जियार्टेस को पकड़ने के बाद उसने प्रिंस की बेटी रोक्जाना से विवाह कर लिया. सिकन्दर का विजय अभियान कई वर्षों तक नहीं टूट पाया था।

सिकन्दर ने अपने कार्यकाल में ईरान, सीरिया, मिस्र, मेसोपोटामिया, फिनीशिया, जुदेआ, गाझा, बैक्ट्रिया और भारत में पंजाब तक के प्रदेश पर विजय हासिल की थी। सिकन्दर ने सबसे पहले ग्रीक राज्यों को जीता और फिर वह एशिया माइनर (आधुनिक तुर्की) की तरफ बढ़ा। उस क्षेत्र पर उस समय फ़ारस का शासन था।

फ़ारसी साम्राज्य मिस्र से लेकर पश्चिमोत्तर भारत तक फैला था। फ़ारस के शाह दारा तृतीय को उसने तीन अलग-अलग युद्धों में पराजित किया, हालाँकि उसकी तथाकथित ‘विश्व-विजय’ फ़ारस विजय से अधिक नहीं थी पर उसे शाह दारा के अलावा अन्य स्थानीय प्रांतपालों से भी युद्ध करना पड़ा था।

सिकन्दर का भारत पर आक्रमण

सिकन्दर महान | Alexander the Great | 356-323 ई.पू.

यूनानी शासक सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण (326 ई.पू.) में किया और पंजाब में सिन्धु नदी के तट तक जा पहुंचा। भारत मे आक्रमण के समय चाणक्य तक्षशिला मे अध्यापक थे। तक्षशिला के राजा आम्भी ने सिकंदर की अधीनता स्वीकार कर ली। चाणक्य ने भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए सभी राजाओ से आग्रह किया किंतु सिकंदर से लड़ने कोई नही आया। और पश्चिमोत्तर प्रदेश के अनेक राजाओं ने तक्षशिला की देखा देखी सिकंदर के सामने आत्म समर्पण कर दिया। वहाँ से सिकंदर पुरू के राज्य की तरफ बढ़ा जो झेलम और चेनाब नदी के बीच बसा हुआ था।

युद्ध में पुरू (पोरुस) पराजित हुआ परन्तु उसकी वीरता से प्रभावित होकर सिकन्दर ने उसे अपना मित्र बनाकर उसे उसका राज्य तथा कुछ नए इलाके दिए। सिकंदर की टक्कर के राजा सिर्फ पोरस ही थे, जिन्होंने सिकंदर को अपनी हार सामने याद दिला थी। यहाँ से वह व्यास नदी तक पहुँचा, परन्तु वहाँ से उसे वापस लौटना पड़ा। उसके सैनिक मगध के नन्द शासक की विशाल सेना का सामना करने और व्यास नदी को पार करने से इनकार कर दिया। तभी सिकन्दर को फ़ारस के विद्रोह का समाचार मिला और वह उसे दबाने के लिए वापस चल दिया।

सिकन्दर 323 ई.पू. में बेबीलोन पहुंचा और वहां पर उसे भीषण बुखार (Typhoid) ने जकड़ लिया। अत: 33 वर्ष की आयु में 10 जून को बेबीलोन में सिकन्दर की मृत्यु हो गई। केवल 10 वर्ष की अवधि में इस अपूर्व योद्धा ने अपने छोटे से राज्य का विस्तार कर एक विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया था। हालाँकि उसकी मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य बिखर गया, और इसमें शामिल देश आपस में शक्ति के लिए लड़ने लगे। ग्रीक और पूर्व के मध्य हुए सांस्कृतिक समन्वय का एलेक्जेंडर के साम्राज्य पर विपरीत प्रभाव पड़ा।

सिकंदर ने जब 10 हजार की संख्या पर्शियन सैनिक अपनी सेना में नियुक्त कर लिए, तो उसने बहुत से मेक्डोनियन सैनिको को निकाल दिया। इस कारण सेना का बहुत बड़ा हिस्सा उससे खफा हो गया और उनहोंने पर्शियन संस्कृति को अपनाने से भी मना कर दिया। सिकंदर ने तब 13 पर्शियन सेना नायकों को मरवाकर मेक्डोनीयन सैनिकों का क्रोध शांत किया। इस तरह सुसा में पर्शिया और मेक्डोनिया के मध्य सम्बन्धों को मधुर बनाने के लिए किया जाने वाला आयोजन सफल नहीं हो सका।

सिकन्दर की मृत्यु

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि सिकंदर की मृत्यु 13 जून 323 ई. पू. में मलेरिया और मियादी बुखार (Typhoid) रोग के कारण बेबीलोन में हुई थी, उस समय सिकंदर की उम्र मात्र 32 वर्ष थी।

ऐसा माना जाता है कि जब सिकन्दर का जन्म हुआ था उस समय इफेसेस के डायाना के मन्दिर में आग लग गयी थी जो उस समय विश्व के सात अजूबो में से एक माना जाता था। सिकन्दर के जन्म को अपशकुन मानते हुए ज्योतिषियों में भविष्यवाणी करते हुए कहा कि एशिया को खत्म करने वाली ताकत का जन्म हो गया है। इस तरह बचपन में ही उसके महान शासक होने के भविष्यवाणी हो गयी थी।

सिकंदर के मृत्यु के बाद जब उसकी अरथी ले जाया जा रहा था, तब अरथी के बाहर सिकंदर के दोनों हाथ बाहर लटके हुए थे। ऐसा कहा जाता है कि सिकन्दर ने मृत्यु से पहले कहा था की जब मेरी मृत्यु हो जाए तो मेरे हाथ अरथी के भीतर मत करना, सिकंदर चाहता था उसके हाथ अरथी के बाहर रहें। ताकि सारा दुनिया यह देख सके कि दुनिया जितने वाले को भी खाली हाथ ही वापस जाना पड़ता है। जैसे इंसान खाली हाथ दुनिया मे आता हैं वैसे ही खाली हाथ उसे जाना भी पड़ता है, चाहे वो कितना भी महान क्यों न बन जाए।


इन्हें भी देखें –

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