सिन्धु नदी तन्त्र | सिन्धु और सहायक नदियाँ | Indus River System

सिन्धु नदी, जिसे भारतीय उपमहाद्वीप की जीवनरेखा भी कहा जाता है, एशिया की सबसे लंबी नदियों में से एक है। यह नदी अपने विशाल जलग्रहण क्षेत्र और प्रमुख सहायक नदियों के साथ पाकिस्तान, भारत (जम्मू और कश्मीर) और चीन (पश्चिमी तिब्बत) के विभिन्न हिस्सों से होकर बहती है।

सिंधु नदी, एशिया की सबसे प्रमुख और ऐतिहासिक नदियों में से एक है, जो न केवल अपने जल संसाधन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके किनारे पनपी सिंधु घाटी सभ्यता भी विश्व की सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण सभ्यताओं में से एक रही है। सिंधु नदी की समृद्ध विरासत, इसके पारिस्थितिकी तंत्र और ऐतिहासिक महत्त्व के कारण इसे पाकिस्तान की राष्ट्रीय नदी भी माना जाता है।

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सिन्धु नदी का उद्गम स्थल और मार्ग

सिंधु नदी का उद्गम स्थल तिब्बत के मानसरोवर झील के निकट स्थित ‘सिन-का-बाब’ नामक जलधारा को माना जाता है। सिन्धु नदी की यह जल धारा बोखार-चू ग्लेशियर से लिकलती है यहाँ से निकलकर यह नदी तिब्बत के पठार से गुजरती है और जम्मू और कश्मीर की सीमाओं को पार करते हुए दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती है। इसके बाद, यह पाकिस्तान के रेगिस्तानी और सिंचित क्षेत्रों से होकर गुजरती है और कराची के दक्षिण में अरब सागर में गिर जाती है।

सिन्धु नदी की कुल लंबाई लगभग 3610 किलोमीटर है, जिसमें इसका अधिकांश भाग पाकिस्तान में प्रवाहित होता है। बल्तिस्तान क्षेत्र में, सिंधु नदी जास्कार पर्वत श्रृंखला को पार करते हुए एक 10,000 फुट गहरे महाखड्ड में बहती है, जो संसार के सबसे बड़े खड्डों में से एक है। नदी के इस हिस्से के आसपास की भौगोलिक संरचना अत्यंत अद्वितीय और चुनौतीपूर्ण है, और इसके चारों ओर की पहाड़ियाँ और घाटियाँ अत्यधिक आकर्षक हैं।

सिन्धु नदी लेह, स्कार्दु, दासु, बेशम, थाकोट, डेरा इश्माइल खान, सुक्कूर, हैदराबाद शहरों से होकर प्रवाहित होती है ।

सिन्धु नदी का भारत में प्रवेश

सिंधु नदी चीन के तिब्बत में मानसरोवर झील के पास से अपनी यात्रा शुरू करती है। तिब्बत के लोग इस नदी को सिंघी खंबन या शेर के मुंह के नाम से पहचानते हैं। तिब्बत से पश्चिम की ओर बहते हुए यह नदी लद्दाख से होते हुए भारत में प्रवेश करती है।

सिंधु नदी की प्रमुख सहायक नदियाँ और उपनदियाँ

सिंधु नदी की प्रमुख सहायक नदियाँ और उपनदियाँ

सिंधु नदी का उद्गम तिब्बत के कैलाश पर्वत के पास मानसरोवर झील से होता है। हिमालय की पहाड़ियों से बहने के दौरान यह कई महत्वपूर्ण सहायक नदियों और उपनदियों को प्राप्त करती है। सिंधु नदी की पाँच प्रमुख उपनदियाँ हैं – वितस्ता (झेलम), चन्द्रभागा (चिनाब), ईरावती (रावी), विपासा (व्यास) और शतद्रु (सतलुज)। इनमें से शतद्रु (सतलुज) सबसे बड़ी उपनदी है। झेलम नदी के किनारे जम्मू और कश्मीर की राजधानी श्रीनगर स्थित है, जो इसकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाती है।

सिंधु की सहायक नदियों में ब्यास नदी, चिनाब नदी, गार नदी, गिलगित नदी, गोमल नदी, हुनजा नदी, झेलम नदी, काबुल नदी, कुनार नदी, कुर्रम नदी, पानजनाद नदी, रावी नदी, श्योक नदी, सून नदी, सुरू नदी, सतलुज नदी, स्वात नदी, ज़ांस्कर नदी, झॉब नदी, टोची नदी, गोमल नदी और संगर नदी आदि शामिल हैं।

काबुल नदी अटक के पास सिंधु से मिलती है, जहाँ नदी मैदानों में प्रवेश करती है। मार्च में हिमालय के हिम के पिघलने के कारण इस नदी में अचानक भयंकर बाढ़ आ जाती है, जबकि मानसून के दौरान जल स्तर उच्च रहता है। सिंधु के जल का व्यापक रूप से सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है, विशेषकर सतलुज और सिंधु के संगम के पास।

सिंधु नदी की सहायक नदियाँ इसे विभिन्न दिशाओं से जल प्रदान करती हैं, जो इस विशाल नदी के प्रवाह और पारिस्थितिकी को प्रभावित करती हैं। नीचे सिंधु नदी की दायीं और बायीं ओर से मिलने वाली मुख्य सहायक नदियों का विवरण दिया गया है –

  • सिन्धु नदी के दायीं ओर से मिलने वाली सहायक नदियाँ – श्योक नदी, काबुल नदी, कुर्रम नदी, गोमल नदी, हुनजा नदी, गिलगित नदी, स्वात नदी, कुनार नदी, झोब नदी।
  • सिन्धु नदी के बायीं ओर से मिलने वाली सहायक नदियाँ – सतलज, व्यास, रावी, चिनाब एवं झेलम नदियों की संयुक्त धारा (मिठानकोट के पास) तथा जास्कर नदी, स्यांग नदी, शिगार नदी, गिलगिट नदी, सुरु नदी, सुन नदी, पानजनाद नदी।

सिंधु नदी के दायीं ओर से मिलने वाली सहायक नदियाँ (दक्षिणी सहायक नदियाँ)

  1. श्योक नदी: श्योक नदी का उद्गम काराकोरम पर्वतमाला के ग्लेशियरों से होता है। यह सिंधु नदी की सबसे महत्वपूर्ण उत्तरी सहायक नदियों में से एक है, जो हिमालय की पहाड़ियों से निकलकर सिंधु नदी में मिलती है।
  2. काबुल नदी: यह नदी अफगानिस्तान के काबुल शहर से निकलकर पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र से होकर बहती है और अटक के पास की पहाड़ियों से निकलकर सिंधु नदी में मिलती है। काबुल नदी सिंधु की प्रमुख दायीं सहायक नदी है। यह एक महत्वपूर्ण जलमार्ग है जो मध्य एशिया को भारतीय उपमहाद्वीप से जोड़ता है।
  3. कुर्रम नदी: यह नदी पाकिस्तान के कुर्रम जिले से होकर बहती है और काबुल नदी से जुड़ने के बाद सिंधु में मिलती है। इसकी घाटियाँ क्षेत्र की पारिस्थितिकी और कृषि के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  4. गोमल नदी: यह नदी पाकिस्तान के पश्चिमी क्षेत्र से निकलकर दक्षिण की ओर बहती है और सिंधु नदी में मिल जाती है। गोमल नदी सिंधु की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी है, जो जल संसाधन और सिंचाई में योगदान देती है।
  5. हुंजा नदी: हुंजा नदी काराकोरम पर्वतमाला से निकलती है और सिंधु नदी की एक महत्वपूर्ण उत्तरी सहायक नदी है। यह नदी अपने आकर्षक घाटियों और ग्लेशियरों के लिए जानी जाती है।
  6. गिलगित नदी: यह नदी गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में बहती हुई सिंधु नदी में मिलती है। यह अपने सुंदर घाटियों और पहाड़ी इलाकों के लिए प्रसिद्ध है और सिंधु नदी को महत्त्वपूर्ण जल संसाधन प्रदान करती है।
  7. स्वात नदी: यह नदी स्वात घाटी से निकलकर पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में बहती है और काबुल नदी से मिलकर अंततः सिंधु नदी में प्रवाहित होती है।
  8. कुनार नदी: यह नदी अफगानिस्तान और पाकिस्तान के सीमा क्षेत्र से बहती है और काबुल नदी के साथ मिलकर सिंधु नदी का हिस्सा बनती है।
  9. झोब नदी: यह नदी पाकिस्तान के बलूचिस्तान क्षेत्र में बहती है और सिंधु नदी की दायीं ओर से इसमें आकर मिलती है।

सिंधु नदी के बायीं ओर से मिलने वाली सहायक नदियाँ (उत्तरी सहायक नदियाँ)

  1. सतलुज (शतद्रु) नदी: सतलुज नदी का उद्गम तिब्बत से होता है और यह हिमाचल प्रदेश, पंजाब और पाकिस्तान से बहकर सिंधु नदी में मिलती है। सतलुज सिंधु की सबसे बड़ी सहायक नदी है।
  2. व्यास (विपासा) नदी: व्यास नदी हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे से निकलकर पंजाब के मैदानों से गुजरती है और सतलुज से मिलती है। यह सिंधु की महत्त्वपूर्ण बायीं सहायक नदी है।
  3. रावी (ईरावती) नदी: रावी नदी हिमाचल प्रदेश से निकलकर पंजाब के मैदानों से होती हुई पाकिस्तान में सिंधु से मिलती है। यह ऐतिहासिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  4. चिनाब (चन्द्रभागा) नदी: चिनाब नदी जम्मू-कश्मीर से निकलती है और पंजाब के क्षेत्र से गुजरते हुए सिंधु नदी में मिलती है। यह क्षेत्र की मुख्य सिंचाई और कृषि के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
  5. झेलम (वितस्ता) नदी: झेलम नदी का उद्गम कश्मीर के अनंतनाग क्षेत्र से होता है और यह पंजाब होते हुए चिनाब से मिलती है। श्रीनगर इसी नदी के किनारे स्थित है।
  6. जास्कर नदी: जास्कर नदी हिमालय से निकलकर सिंधु नदी को जल प्रदान करती है। यह नदी ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों से बहती है और क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है।
  7. स्यांग नदी: यह नदी भी हिमालय के ऊँचे क्षेत्रों से निकलती है और सिंधु की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी है।
  8. शिगार नदी: शिगार नदी काराकोरम के ग्लेशियरों से निकलती है और गिलगित नदी से मिलती है। यह सिंधु नदी के लिए उत्तरी जलस्रोतों में से एक है।
  9. गिलगित नदी: सिंधु नदी में बायीं ओर से मिलने वाली गिलगित नदी अपने अनोखे पर्वतीय घाटियों के लिए जानी जाती है।
  10. सुरु नदी: यह नदी भी हिमालय के ऊँचे इलाकों से निकलती है और सिंधु नदी की सहायक नदी के रूप में अपना योगदान देती है।
  11. सुन नदी: सुन नदी का प्रवाह पर्वतीय क्षेत्रों से होता हुआ सिंधु नदी में मिल जाता है।
  12. पानजनाद नदी: पानजनाद नदी पंजाब के मैदानों में बहने वाली सतलुज, व्यास, रावी, चिनाब और झेलम की संयुक्त धारा के रूप में सिंधु नदी में आकर मिलती है।

सिंधु नदी की ये सभी सहायक नदियाँ इसके विशाल जलसंभार को बनाए रखने और क्षेत्र की पारिस्थितिकी, कृषि और मानव सभ्यता के लिए अमूल्य संसाधन प्रदान करने में अहम भूमिका निभाती हैं।

सिंधु नदी की सहायक नदियों का तालिका रूप में विवरण

क्रमांकसहायक नदी का नामउद्गम स्थल/प्रवाह दिशाकिस ओर मिलती है
1श्योक नदीकाराकोरम पर्वतमाला के ग्लेशियरदायीं ओर
2काबुल नदीअफगानिस्तान, काबुल शहरदायीं ओर
3कुर्रम नदीपाकिस्तान के कुर्रम जिलेदायीं ओर
4गोमल नदीपश्चिमी पाकिस्तानदायीं ओर
5हुंजा नदीकाराकोरम पर्वतमालादायीं ओर
6गिलगित नदीगिलगित-बाल्टिस्तानदायीं ओर
7स्वात नदीस्वात घाटी, पाकिस्तानदायीं ओर
8कुनार नदीअफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमादायीं ओर
9झोब नदीबलूचिस्तान, पाकिस्तानदायीं ओर
10सतलुज (शतद्रु) नदीतिब्बत, मानसरोवरबायीं ओर
11व्यास (विपासा) नदीहिमाचल प्रदेश, रोहतांग दर्राबायीं ओर
12रावी (ईरावती) नदीहिमाचल प्रदेशबायीं ओर
13चिनाब (चन्द्रभागा) नदीजम्मू-कश्मीरबायीं ओर
14झेलम (वितस्ता) नदीकश्मीर, अनंतनागबायीं ओर
15जास्कर नदीहिमालय पर्वतमालाबायीं ओर
16स्यांग नदीहिमालयबायीं ओर
17शिगार नदीकाराकोरम पर्वतमालाबायीं ओर
18गिलगित नदीगिलगित-बाल्टिस्तानबायीं ओर
19सुरु नदीहिमालयबायीं ओर
20सुन नदीपर्वतीय क्षेत्रबायीं ओर
21पानजनाद नदीपंजाब की संयुक्त नदियाँबायीं ओर

पंजाब की पांच नदियाँ (पंचनद) और सिंधु नदी का संगम

सिंधु नदी दक्षिण की ओर बहते हुए पाकिस्तान के मिठानकोट नमक स्थान के पास ‘पंजनद’ में मिल जाती है। पंजनद दरअसल, पंजाब की पांच प्रमुख नदियों का संगम स्थल है, जिनमें सतलुज, ब्यास, रावी, चेनाब और झेलम शामिल हैं। पंजनद से होकर बहती हुई सिंधु नदी आगे अरब सागर की ओर बढ़ती है और अंत में कराची के पूर्व में अरब सागर में मिल जाती है।

सिंधु नदी का आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व

सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियाँ न केवल सिंचित क्षेत्रों के लिए बल्कि इस क्षेत्र की संस्कृतियों और सभ्यताओं के विकास के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। यह नदी हजारों सालों से कृषि, व्यापार और आवागमन के लिए एक प्रमुख स्रोत रही है। आज भी, सिंधु नदी जल संसाधनों के प्रबंधन, जल विद्युत उत्पादन, और मछली पालन जैसी गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण है।

सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियाँ भारतीय उपमहाद्वीप के जल विज्ञान, पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। हिमालय की पहाड़ियों से निकलने वाली ये नदियाँ सिंधु को एक सशक्त और जीवनदायिनी नदी बनाती हैं, जो लाखों लोगों के जीवन का आधार है।

सिंचाई और जल संसाधन

सिंधु नदी पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र के लिए एक प्रमुख जलस्रोत है। इसके जल का उपयोग बड़े पैमाने पर सिंचाई के लिए किया जाता है, जो देश की कृषि उत्पादकता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। १९३२ में सक्खर के पास सिंधु नदी पर लॉयड बाँध का निर्माण किया गया, जिसके माध्यम से लगभग ५० लाख एकड़ भूमि की सिंचाई की जाती है। इस बाँध ने पाकिस्तान के सिंचित क्षेत्रों को पानी की सुनिश्चित आपूर्ति करके गेहूं, कपास और अन्य अनाजों की खेती को प्रोत्साहित किया है। सिंधु नदी का डेल्टा क्षेत्र, जो हैदराबाद (सिंध) के पास ३०० वर्ग मील में फैला हुआ है, कृषि के लिए अत्यधिक उपजाऊ है।

नदी के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व

सिंधु नदी का उल्लेख ऋग्वेद में बार-बार मिलता है, जहाँ इसे एक पवित्र नदी के रूप में वर्णित किया गया है। ऋग्वेद में ‘सिंधु’ शब्द का उल्लेख 176 बार मिलता है, और बहुवचन में यह 94 बार प्रयोग किया गया है। इस महान ग्रंथ में सिंधु को ‘नदी’ के रूप में सामान्य रूप से और विशिष्ट रूप से भी दर्शाया गया है। ऋग्वेद के भजनों में सिंधु के महत्त्व को दर्शाते हुए इसे एक प्रमुख नदी के रूप में वर्णित किया गया है।

सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization)

सिंधु नदी की सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर सिंधु घाटी सभ्यता है, जो विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है। यह सभ्यता लगभग 3300 से 1700 ईसा पूर्व के बीच फली-फूली और मुख्यतः सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे स्थित थी। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल, धोलावीरा, और राखीगढ़ी जैसे प्रमुख शहर इस सभ्यता के उन्नत नगर नियोजन, वास्तुकला और जल निकासी प्रणालियों के प्रमाण हैं।

इस सभ्यता के प्रमुख स्थल आज के पाकिस्तान, भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों और पूर्वोत्तर अफगानिस्तान में स्थित हैं। प्रमुख बस्तियाँ हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के साथ-साथ लोथल और धोलावीरा जैसे नगर थे, जो अपने समय के उन्नत वास्तुकला और शहर नियोजन के लिए प्रसिद्ध हैं। सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार ईरान सीमा से लेकर आधुनिक गुजरात, भारत के कच्छ तक फैला हुआ था। इस सभ्यता के 1052 से अधिक स्थलों की खोज की गई है, जिनमें से केवल 90-96 की पूरी तरह से खोजबीन की गई है।

नदी के पारिस्थितिकी तंत्र और चुनौतियाँ

सिंधु नदी का पारिस्थितिकी तंत्र अत्यंत विविधतापूर्ण है, जिसमें अनेक प्रकार के वन्यजीव, जलीय जीव और वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। नदी के जल का उपयोग न केवल सिंचाई के लिए, बल्कि मछली पालन और घरेलू उपयोग के लिए भी किया जाता है। इसके अलावा, नदी के किनारे पाई जाने वाली दलदली भूमि जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण स्थल है।

हालांकि, सिंधु नदी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जलवायु परिवर्तन, पानी का अत्यधिक दोहन, प्रदूषण और बाँध निर्माण जैसी गतिविधियों ने नदी के प्राकृतिक प्रवाह और पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित किया है। जल संसाधनों के असंतुलित उपयोग और पर्यावरणीय क्षति के कारण सिंधु नदी के लिए कई संरक्षण उपायों की आवश्यकता है।

सिंधु नदी का आधुनिक उपयोग और महत्व

आज के समय में, सिंधु नदी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह नदी न केवल कृषि और सिंचाई के लिए जल प्रदान करती है, बल्कि ऊर्जा उत्पादन के लिए भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। सिंधु के जल का उपयोग कई जलविद्युत परियोजनाओं में किया जाता है, जो पाकिस्तान की बिजली की मांग को पूरा करने में सहायता करती हैं।

सिंधु नदी पर बने बाँध और बैराजों का उपयोग न केवल जल संरक्षण और सिंचाई के लिए किया जाता है, बल्कि ये बाढ़ नियंत्रण और पीने के पानी की आपूर्ति में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सिंधु जल संधि के तहत, भारत और पाकिस्तान ने जल संसाधनों के न्यायसंगत वितरण के लिए आपसी समझौते किए हैं, जो दोनों देशों के लिए लाभप्रद हैं।

सिंधु नदी, अपने विशाल और समृद्ध इतिहास, सांस्कृतिक महत्त्व और पारिस्थितिकी तंत्र के कारण एक अद्वितीय स्थान रखती है। यह नदी न केवल एशिया की सबसे लंबी नदियों में से एक है, बल्कि यह क्षेत्र की सभ्यता, कृषि और जल संसाधनों के लिए जीवनरेखा भी है। सिंधु नदी के संरक्षण और इसके जल संसाधनों के उचित प्रबंधन से न केवल पाकिस्तान, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया को लाभ मिल सकता है।

सिंधु नदी की महत्ता इस बात में निहित है कि यह न केवल प्राकृतिक जल का स्रोत है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक धरोहर भी है, जिसने सभ्यता के प्रारंभिक चरणों में मानव समाज के विकास में अहम भूमिका निभाई। यह नदी आज भी उन पुरानी यादों और ऐतिहासिक घटनाओं को जीवित रखे हुए है, जो हमारे अतीत का हिस्सा रही हैं।


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