21वीं सदी की अर्थव्यवस्था और तकनीकी प्रतिस्पर्धा का मूल आधार अब सेमीकंडक्टर (Semiconductors) बन चुके हैं। मोबाइल फोन, कंप्यूटर, ऑटोमोबाइल, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग, 5G नेटवर्क, अंतरिक्ष अनुसंधान और रक्षा तकनीक तक, हर क्षेत्र में सेमीकंडक्टर की भूमिका अहम है। इसीलिए इन्हें “डिजिटल युग का ईंधन” कहा जा सकता है।
भारत ने इस क्षेत्र में पिछली कुछ दशकों तक आयात पर अत्यधिक निर्भरता दिखाई, लेकिन वैश्विक सप्लाई चेन संकट और नई तकनीकी प्रतिस्पर्धा ने आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम उठाने को मजबूर किया।
इसी पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2 सितम्बर 2025 को नई दिल्ली के यशोभूमि कन्वेंशन सेंटर में “सेमीकॉन इंडिया 2025” का शुभारंभ किया। इसे भारत के तकनीकी भविष्य को पुनर्परिभाषित करने वाला मील का पत्थर माना जा रहा है।
उद्घाटन समारोह और वैश्विक संदेश
इस आयोजन में 40 से अधिक देशों के प्रतिनिधि, प्रमुख उद्योगपति, निवेशक, स्टार्ट-अप्स और हजारों छात्र शामिल हुए। पीएम मोदी ने अपने संबोधन में भारत की तकनीकी क्षमता और वैश्विक साझेदारी के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा –
“दुनिया भारत पर भरोसा करती है, भारत पर विश्वास करती है और भारत के साथ सेमीकंडक्टर भविष्य गढ़ने के लिए तैयार है।”
उन्होंने चिप्स की तुलना 21वीं सदी के “डिजिटल हीरों” से की और यह संदेश दिया कि जैसे पिछली सदी में तेल को “ब्लैक गोल्ड” कहा गया, वैसे ही आने वाले समय में चिप्स आर्थिक और सामरिक शक्ति का निर्धारक तत्व होंगे।
प्रधानमंत्री का संदेश और कार्यक्रम की थीम
उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा –
“भारत अब केवल बैकएंड सेमीकंडक्टर उत्पादन तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि फुल–स्टैक सेमीकंडक्टर राष्ट्र बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। वह दिन दूर नहीं जब दुनिया कहेगी – Designed in India, Made in India, Trusted by World।”
कार्यक्रम की थीम थी: “अगली सेमीकंडक्टर महाशक्ति का निर्माण”।
यह संदेश भारत की तकनीकी महत्वाकांक्षा और वैश्विक सप्लाई चेन में निर्णायक भागीदारी की घोषणा थी।
कार्यक्रम का उद्देश्य
सेमीकॉन इंडिया 2025 का प्रमुख उद्देश्य भारत को सेमीकंडक्टर महाशक्ति बनाने की दिशा में बहुआयामी प्रयासों को एक मंच पर लाना था। इसके तहत:
- भारत के सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम को मजबूत करना।
- नई और उभरती तकनीकों को बढ़ावा देना।
- वैश्विक निवेश और साझेदारी को आकर्षित करना।
- स्टार्टअप्स और MSMEs को अवसर देना।
- मानव संसाधन और शोध संस्थानों को जोड़ना।
कार्यक्रम में प्रमुख गतिविधियाँ और आयोजन
- प्रधानमंत्री ने सीईओ राउंडटेबल में भाग लिया।
- उद्योग जगत के दिग्गजों ने भारत को सेमीकंडक्टर हब बनाने की संभावनाओं पर चर्चा की।
- विशेष आयोजन के तहत छह देशों की गोलमेज चर्चाएँ, देशों के पवेलियन, कार्यबल विकास और स्टार्टअप्स के लिए मंडप आयोजित किए गए।
प्रतिभागिता के आँकड़े
- प्रतिनिधि: 48 देशों से 2,500+ प्रतिनिधि
- वैश्विक हस्तियाँ: 50 से अधिक
- वक्ता: 150+
- प्रदर्शक: 350+
- कुल प्रतिभागी: 20,750+
इन आँकड़ों से स्पष्ट है कि यह केवल राष्ट्रीय स्तर का आयोजन नहीं था, बल्कि भारत के नेतृत्व में एक वैश्विक टेक्नोलॉजी सम्मेलन था।
सेमीकंडक्टर का वैश्विक परिदृश्य
- वर्तमान में वैश्विक सेमीकंडक्टर बाजार लगभग 600 अरब डॉलर का है।
- अनुमान है कि यह बाजार 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर को पार कर जाएगा।
- अमेरिका, ताइवान, दक्षिण कोरिया, जापान और चीन इस क्षेत्र के प्रमुख खिलाड़ी हैं।
- कोविड-19 और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसी घटनाओं ने सप्लाई चेन बाधाओं को उजागर किया, जिससे भारत जैसे देशों को आत्मनिर्भर बनने का अवसर मिला।
भारत का लक्ष्य न केवल घरेलू आवश्यकता को पूरा करना है, बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन में महत्वपूर्ण योगदान देना भी है।
भारत की सेमीकंडक्टर यात्रा: समयरेखा
भारत की यात्रा को समझने के लिए हालिया समयरेखा महत्त्वपूर्ण है:
- 2021: इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) का शुभारंभ।
- 2023: पहला सेमीकंडक्टर फैब स्वीकृत।
- 2024: कई फैब और डिज़ाइन सेंटर को मंजूरी।
- 2025: ₹1.5 लाख करोड़ से अधिक निवेश के साथ 10 बड़े प्रोजेक्ट्स प्रगति पर।
यह समयरेखा बताती है कि सरकार ने “डिज़ाइन से लेकर डिवाइस” तक पूरी वैल्यू चेन पर काम किया है।
सेमीकॉन इंडिया 2025 के प्रमुख स्तंभ
1. फुल-स्टैक सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम
भारत ने केवल फैब्रिकेशन पर नहीं, बल्कि पूरे इकोसिस्टम को विकसित करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं।
- डिज़ाइन: नोएडा और बेंगलुरु में उभरते डिज़ाइन हब अगली पीढ़ी की चिप्स पर काम कर रहे हैं।
- फैब्रिकेशन (Fab): बड़े निवेशकों और विदेशी कंपनियों को आकर्षित किया गया है।
- पैकेजिंग और टेस्टिंग: सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन का एक अहम हिस्सा।
- डिवाइस इंटीग्रेशन: मोबाइल, लैपटॉप, ऑटोमोबाइल और रक्षा उपकरणों में उपयोग।
2. आधार स्तंभ: खनिज और प्रतिभा
सेमीकंडक्टर उद्योग के लिए आवश्यक क्रिटिकल मिनरल्स जैसे लिथियम, गैलियम, टंग्स्टन, सिलिकॉन आदि की उपलब्धता जरूरी है।
- भारत ने राष्ट्रीय क्रिटिकल मिनरल मिशन के तहत घरेलू खनन और प्रोसेसिंग को बढ़ावा दिया है।
- साथ ही, भारत के पास वैश्विक सेमीकंडक्टर डिज़ाइन टैलेंट का लगभग 20% है। यह मानव संसाधन भारत की सबसे बड़ी ताकत है।
3. स्टार्टअप्स और MSMEs को बढ़ावा
- डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) योजना का पुनर्गठन किया गया।
- चिप्स-टू-स्टार्टअप प्रोग्राम लॉन्च किया गया।
- नेशनल रिसर्च फंड की स्थापना की गई, ताकि अनुसंधान एवं नवाचार को प्रोत्साहन मिल सके।
4. भविष्य-तैयार ढाँचा और राज्यों की भूमिका
राज्यों को प्लग-एंड-प्ले सेमीकंडक्टर पार्क विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इनमें बिजली, पानी, भूमि, पोर्ट कनेक्टिविटी और प्रशिक्षित श्रमिकों की सुविधा होगी।
यह मॉडल “क्लस्टर-आधारित विकास” पर आधारित है, जो चीन और ताइवान जैसे देशों में सफल रहा है।
5. नीति और प्रशासनिक सुधार
पीएम मोदी ने इसे “फाइल से फैक्ट्री तक की स्पीड” कहा।
- नेशनल सिंगल विंडो सिस्टम से अनुमति प्रक्रियाएँ आसान हुई हैं।
- PLI (Production Linked Incentive) और DLI (Design Linked Incentive) योजनाओं से निवेश आकर्षित किया गया।
- “Ease of Doing Business” में सुधार के चलते विदेशी और घरेलू निवेशकों का विश्वास बढ़ा है।
भारत की रणनीति: ‘रिफॉर्म – परफॉर्म – ट्रांसफॉर्म’
मोदी ने अपने भाषण में कहा –
“डिज़ाइन तैयार है, मास्क अलाइन है, अब समय है सटीक क्रियान्वयन और बड़े पैमाने पर डिलीवरी का।”
इस कथन का अर्थ है कि भारत ने नीतिगत और संस्थागत तैयारी कर ली है। अब चुनौती इसे “कार्यान्वयन” स्तर पर उतारने की है।
विक्रम 32-बिट प्रोसेसर: भारत की बड़ी उपलब्धि
सेमीकॉन इंडिया 2025 में केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रधानमंत्री को “विक्रम 32-बिट प्रोसेसर” और चार प्रोजेक्ट्स के टेस्ट चिप्स भेंट किए।
- यह भारत में पूरी तरह विकसित पहला 32-बिट माइक्रो प्रोसेसर है।
- इसे ISRO सेमीकंडक्टर लैब ने तैयार किया है।
- यह सफलता भारत के स्वदेशी डिज़ाइन और निर्माण की क्षमता को दर्शाती है।
भारत सेमीकंडक्टर मिशन (ISM): पृष्ठभूमि और महत्व
भारत सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) की शुरुआत 2021 में हुई। यह इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के अंतर्गत डिजिटल इंडिया कॉर्पोरेशन का स्वतंत्र विभाग है।
ISM के उद्देश्य
- भारत में मजबूत सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले इकोसिस्टम तैयार करना।
- वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण और डिज़ाइन का केंद्र बनाना।
- मैन्युफैक्चरिंग, पैकेजिंग और डिज़ाइन तक पूरे इकोसिस्टम को जोड़ना।
- नीति क्रियान्वयन और वैश्विक विशेषज्ञों से परामर्श लेकर तेज़ प्रगति सुनिश्चित करना।
ISM की भूमिका
- नोडल एजेंसी के रूप में सभी योजनाओं का समन्वय।
- स्वीकृत प्रोजेक्ट्स और योजनाओं की देखरेख।
- वैश्विक विशेषज्ञ समिति से दिशा-निर्देशन प्राप्त करना।
सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम के तहत प्रमुख योजनाएँ
- सेमीकंडक्टर फैब स्थापित करने की योजना – देश में उच्चस्तरीय निर्माण क्षमता विकसित करने के लिए।
- डिस्प्ले फैब स्थापित करने की योजना – उन्नत डिस्प्ले पैनल निर्माण हेतु।
- कंपाउंड सेमीकंडक्टर/सिलिकॉन फोटोनिक्स/सेंसर फैब और
ATMP/OSAT सुविधाएँ – असेंबली, टेस्टिंग, मार्किंग और पैकेजिंग के लिए। - डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) योजना – डिज़ाइन स्टार्टअप्स और घरेलू कंपनियों को नवाचार एवं रिसर्च हेतु प्रोत्साहन।
भारत का फुल-स्टैक सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम
प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया कि भारत केवल उत्पादन पर ही नहीं, बल्कि पूरे इकोसिस्टम को विकसित कर रहा है:
- डिज़ाइन: नोएडा और बेंगलुरु में विश्वस्तरीय डिज़ाइन हब।
- फैब्रिकेशन: विदेशी निवेशकों के साथ सहयोग।
- पैकेजिंग और टेस्टिंग: ATMP/OSAT सुविधाओं का विकास।
- डिवाइस इंटीग्रेशन: उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर रक्षा क्षेत्र तक।
आधार स्तंभ: खनिज और प्रतिभा
- क्रिटिकल मिनरल्स: लिथियम, गैलियम, सिलिकॉन आदि के लिए राष्ट्रीय क्रिटिकल मिनरल मिशन।
- मानव संसाधन: भारत के पास वैश्विक सेमीकंडक्टर डिज़ाइन टैलेंट का लगभग 20% है।
राज्यों की भूमिका और भविष्य का ढाँचा
राज्यों को प्रोत्साहित किया गया है कि वे प्लग-एंड-प्ले सेमीकंडक्टर पार्क विकसित करें।
इनमें बिजली, भूमि, जल, पोर्ट कनेक्टिविटी और प्रशिक्षित कार्यबल उपलब्ध होगा।
वैश्विक संदर्भ और भारत की स्थिति
- सेमीकंडक्टर उद्योग वर्तमान में 600 अरब डॉलर का है और जल्द ही 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक होगा।
- अमेरिका, ताइवान, चीन, जापान और कोरिया प्रमुख खिलाड़ी हैं।
- भारत का उद्देश्य वैश्विक सप्लाई चेन का विश्वसनीय भागीदार बनना है।
चुनौतियाँ
हालाँकि सेमीकॉन इंडिया 2025 एक महत्वाकांक्षी पहल है, लेकिन इसके सामने कुछ चुनौतियाँ हैं –
- उच्च पूंजी निवेश – एक सेमीकंडक्टर फैब की लागत 5-10 अरब डॉलर तक होती है।
- तकनीकी जटिलता – नैनोमीटर स्तर की चिप्स बनाने की तकनीक में भारत को अभी अनुभव नहीं है।
- सप्लाई चेन निर्भरता – उपकरण, गैस और रसायनों के लिए अभी भी विदेशों पर निर्भरता बनी हुई है।
- भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा – अमेरिका-चीन तकनीकी युद्ध का असर भारत पर भी पड़ सकता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव – सेमीकंडक्टर फैब को भारी मात्रा में पानी और बिजली की आवश्यकता होती है।
अवसर और संभावनाएँ
इन चुनौतियों के बावजूद भारत के पास अनेक अवसर हैं –
- डिज़ाइन टैलेंट – दुनिया की कई शीर्ष कंपनियों के लिए भारतीय इंजीनियर चिप डिज़ाइन करते हैं।
- बड़ा घरेलू बाजार – स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक व्हीकल, AI और 5G जैसी मांग बढ़ रही है।
- सरकारी समर्थन – PLI, DLI और मिशन मोड की नीतियाँ निवेशकों को सुरक्षा प्रदान करती हैं।
- वैश्विक सहयोग – अमेरिका, जापान, ताइवान और यूरोप भारत के साथ साझेदारी को तैयार हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य (Quick Revision Points)
- लॉन्च: 2 सितम्बर 2025, नई दिल्ली (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी)
- थीम: भारत के सेमीकंडक्टर भविष्य में विश्वास
- बाजार लक्ष्य: वैश्विक $1 ट्रिलियन चिप उद्योग में योगदान
- प्रोजेक्ट्स: 10 प्रमुख फैब व डिज़ाइन प्रोजेक्ट, निवेश ₹1.5 लाख करोड़+
- योजनाएँ: नेशनल सिंगल विंडो सिस्टम, PLI, DLI, स्टार्ट-अप ग्रांट्स
- फोकस सेक्टर: डिज़ाइन, पैकेजिंग, क्रिटिकल मिनरल्स, AI, इमर्सिव टेक्नोलॉजी
निष्कर्ष
“सेमीकॉन इंडिया 2025” भारत की प्रौद्योगिकीय आत्मनिर्भरता और वैश्विक नेतृत्व की दिशा में उठाया गया ऐतिहासिक कदम है। प्रधानमंत्री मोदी का विज़न केवल उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि “डिज़ाइन से लेकर डिवाइस” तक पूरी वैल्यू चेन में भारत को आत्मनिर्भर बनाना है।
विक्रम 32-बिट प्रोसेसर, ISM की संस्थागत क्षमता, वैश्विक साझेदारी और घरेलू प्रतिभा – ये सब मिलकर भारत को वह आधार देते हैं जिससे आने वाले दशक में भारत सेमीकंडक्टर क्षेत्र में वही स्थान पा सकता है, जो उसने सॉफ्टवेयर और IT सेवाओं में पिछले दो दशकों में हासिल किया।
“सेमीकॉन इंडिया 2025” केवल एक औद्योगिक पहल नहीं है, बल्कि यह भारत की प्रौद्योगिकीय आत्मनिर्भरता (Technological Self-Reliance) की दिशा में निर्णायक कदम है। यह कार्यक्रम भारत को न केवल आयातक से निर्यातक देश में बदलने की क्षमता रखता है, बल्कि भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भी भारत को “वैश्विक सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन” का अहम हिस्सा बना सकता है।
भारत के पास प्रतिभा, नीति समर्थन और वैश्विक सहयोग – तीनों आधार हैं। अब आवश्यकता केवल तेज़ और प्रभावी क्रियान्वयन की है। यदि यह सफल होता है तो आने वाले दशक में भारत सेमीकंडक्टर क्षेत्र में वही भूमिका निभा सकता है जो आईटी और सॉफ्टवेयर में उसने पिछले दो दशकों में निभाई है।
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