स्कन्दगुप्त प्राचीन भारत में शासन करने वाले गुप्त राजवंश के सातवें राजा थे। अपने पूर्वजों की भांति इन्होने भी अपनी राजधानी पाटलिपुत्र को ही बना रखी थी। पाटलिपुत्र आज के समय के बिहार की राजधानी पटना का ही पुराना नाम है। इनके समय में गुप्त साम्राज्य पर हूणों का आक्रमण हुआ था, जिसको स्कन्दगुप्त ने अपने शौर्य और पराक्रम के बल पर खदेड़ दिया। हूणों के अलावा उन्होंने पुष्यमित्रों को भी अनेकों बार पराजित किया। सकंदगुप्त गुप्त वंश के अंतिम प्रतापी सम्राट थे। इनका शासन काल 455 ईस्वी से 467 ईस्वी तक रहा।
अपने पिता कुमारगुप्त के शासन काल में ही ‘पुष्यमित्रों’ को परास्त करके स्कन्दगुप्त ने अपनी अपूर्व प्रतिभा और वीरता का परिचय दिया था। पुष्यमित्रों का विद्रोह इतना भयंकर रूप ले चुका चुका था, कि गुप्तकाल की लक्ष्मी विचलित हो गई थी और उसे पुनः स्थापित करने के लिए स्कन्दगुप्त ने अपने बाहुबल और पराक्रम से शत्रुओं का नाश करते हुए कई रातें ज़मीन पर सोकर बिताईं।
सम्राट स्कन्दगुप्त का संक्षिप्त परिचय
नाम | स्कन्दगुप्त |
पिता | कुमारगुप्त प्रथम |
माता | महादेवी अनन्तदेवी (सौतेली माँ), रानी देवकी (अपनी माँ) |
भाई | पुरुगुप्त |
दादा | चंद्रगुप्त द्वितीय |
दादी | ध्रुवा देवी |
पूर्ववर्ती राजा | कुमारगुप्त प्रथम |
उत्तराधिकारी | पुरुगुप्त |
धर्म | हिन्दू |
साम्राज्य | गुप्त साम्राज्य |
शासन काल | 455 ईस्वी – 467 ईस्वी |
मृत्यु | 467 ई. के बाद के किन्ही वर्षों में |
स्कंदगुप्त का जीवन परिचय
स्कन्दगुप्त के पिता कुमारगुप्त प्रथम थे, जो कि गुप्त साम्राज्य के एक सम्राट थे। और उनकी माता राज्य की एक छोटी रानी थी। स्कंदगुप्त का एक सौतेला भाई था, जिसका नाम पुरुगुप्त था। पुरुगुप्त की माता का नाम महादेवी अनंता देवी था। जो की उस समय गुप्त साम्राज्य की पटरानी थी।
स्कंदगुप्त की माता के बारे में कई अवधारणाएं हैं। स्कंदगुप्त के भिटारी के शिलालेख में उसकी माता का नाम नहीं बताया गया है जबकि उसकी दादी व परदादी के नाम बताए गए हैं। कुमारगुप्त की पटरानी महादेवी अनन्तदेवी के बारे में कहा जाता है कि संभवतः वह स्कन्दगुप्त की अपनी माता नहीं थी बल्कि सौतेली माता थी। महारानी अनन्तदेवी के लड़के का नाम पुरुगुप्त था, जो उम्र में स्कंदगुप्त से बड़ा था। स्कंदगुप्त की माता के बारे में कुछ लोग मानते हैं कि उनकी माता कुमारगुप्त की दूसरी पत्नी रानी देवकी थी।
इतिहासकारों का मानना है, कि कुमारगुप्त प्रथम की मृत्यु के बाद राजगद्दी के सम्बन्ध में दोनों भाइयों में कुछ विवाद हुआ। परन्तु अपनी वीरता तथा अन्य गुणों के कारण स्कन्दगुप्त गुप्त साम्राज्य का अगला उत्तराधिकारी बना।
परन्तु कुछ इतिहासकारों ने इस तथ्य को ठुकराया है। वे समझते हैं कि स्कंदगुप्त की विजय होने के बाद वह सबसे पहले अपनी मां से मिलने गया था और खुशी के कारण उनकी आंखें आंसुओं से भर आई थी। यह घटना स्कन्दगुप्त की माता के विशेष प्रभाव व पद का व्याख्यान करती है। इस घटना की तुलना भगवान कृष्ण और देवकी से की गयी है। क्योंकि कृष्ण विजय पाने के बाद अपनी माता देवकी से मिलने गए थे।
जिस प्रकार शत्रुओं को परास्त कर कृष्ण अपनी माता देवकी के पास गए थे, वैसे ही स्कन्दगुप्त भी शत्रुओं को नष्ट कर अपनी माता के पास गए। शत्रुओं का विनाश करके स्कन्दगुप्त जब अपनी माता के पास पहुचे तो उनकी माता की आँखों में आँसू छलक आए थे। बड़ा लड़का होने के कारण राजगद्दी पर अधिकार तो पुरुगुप्त का था, पर शक्ति और वीरता के कारण स्कंदगुप्त को ही उतराधिकारी के रूप में सिंहासन पर बैठाया गया।
स्कन्दगुप्त का शासन
भिटारी अभिलेख के मुताबिक स्कंदगुप्त अपने पिता के देहांत हो जाने के बाद सन 455 ई. (136 वां गुप्त वर्ष) को गुप्त वंश की राजगद्दी पर बैठे।
राजा बनने के शुरुआती समय में ही उन्हें हूण जातियों के आक्रमण का सामना करना पड़ा। हूण उस समय बहुत शक्तिशाली और धनवान हो चुके थे। और समुद्रगुप्त के लिए बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न कर रहे थे।
उन्होंने उसके पिता कुमारगुप्त प्रथम के शासन के समय से ही राज्य की कुछ भागों पर अधिकार कर लिया था। और स्कंदगुप्त राज्य के उन भागों को वापस पाना चाहते थे।
स्कंदगुप्त ने एक रात नग्न धरती पर बिताई और अगले दिन भयंकर युद्ध करके उन्होंने हूणों को हरा दिया। इस विजय के बाद वह अपनी विधवा मां से मिलने गये।
![सम्राट स्कन्दगुप्त | 455 ईस्वी – 467 ईस्वी सम्राट स्कन्दगुप्त | 455 ईस्वी – 467 ईस्वी](https://knowledgesthali.com/wp-content/uploads/2023/01/skandgupta-map.jpg)
हूणों को पुष्यमित्र या म्लेच्छ भी कहा गया है। पुराणों के अनुसार हूणों के बारे में कहा गया है कि, हूण नर्मदा नदी के किनारों के क्षेत्र में रहते थे। कुछ मतों के अनुसार, स्कंदगुप्त ने अपने पिता की मृत्यु के बाद सैन्य बल से राज सिंहासन पर अधिकार कर लिया। और उसने खुद को गुप्त साम्राज्य का सम्राट घोषित कर लिया।
स्कन्दगुप्त व हूणों के बीच युद्ध
![सम्राट स्कन्दगुप्त | 455 ईस्वी – 467 ईस्वी स्कंदगुप्त और हूणों का युद्ध](https://knowledgesthali.com/wp-content/uploads/2023/01/Skandgupt-1-1024x576.jpg)
कुमारगुप्त प्रथम के शासन के अंतिम वर्षों में हूणों ने अपना विद्रोह तेज कर दिया था। हूणों का अतंक उस समय इस कदर था कि वे जिस रास्ते से जाते थे उस रास्ते पर कत्ले आम मचा देते थे। जिस शहर में घुस जाते उस शहर को बड़ी ही बेरहमी से लुटते थे, बच्चों को मार डालते थे ताकि अगली पीढ़ी न आ सके, महिलाओं के साथ अत्याचार करते थे, पुरुषों का सर कट डालते थे। और अंत में उस शहर को रख का ढेर बना देते थे।
चीन ने इनसे बचने के लिए एक अत्यंत लम्बी दीवार का निर्माण करना शुरू कर दिया, जो आज चीन की दीवार कहलाती है। इस दीवार के कारण हूणों ने भारत की तरफ अपना रुख कर लिया और भारत पर बार बार आक्रमण करके यहाँ पर तबाही मचाना शुरू कर दिया।
हूणों ने गुप्त साम्राज्य की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया। सम्राट कुमारगुप्त उस समय वृद्ध हो चुके थे। उस समय स्कंदगुप्त राजकुमार थे। राजकुमार स्कंदगुप्त ने हूणों के आक्रमण से चिंतित अपने पिता को देखा तो हूणों को खदेड़ने के लिए उन पर आक्रमण की योजना बना ली थी। हूणों ने स्कंदगुप्त से निपटने के लिए बड़ी चालाकी से पुष्यमित्र के राजा को अपने साथ मिला लिया। युद्ध में हूणों ने स्वयं आगे न आकर पुष्यमित्र की विशाल सेना को आगे कर दिया। परन्तु स्कंदगुप्त की वीरता और उसकी सेना के पराक्रम के सामने पुष्यमित्र की सेना टिक नहीं पाई। स्कंदगुप्त की सेना ने पुष्यमित्र की सेना को तहस नहस कर दिया।
इस भयंकर युद्ध में पुष्यमित्र की सेना को बुरी तरह से हराने के बाद स्कंदगुप्त की सेना थक चुकी थी। इसी अवसर की तलाश में पहले से तैयार हुण राजा ने अपने तीन लाख से भी अधिक सेना के साथ स्कंदगुप्त की सेना पर हमला बोल दिया। पहले से थकी हुई स्कंदगुप्त की सेना अचानक हुए हूणों के आक्रमण से विचलित हो गयी। स्कंदगुप्त की सेना की विचलित होने की खबर जब सम्राट कुमारगुप्त ने सुनी तो उनको गहरा अघात लगा और उनको दिल का दौरा पड़ गया जिससे उनकी मृत्यु हो गयी।
![सम्राट स्कन्दगुप्त | 455 ईस्वी – 467 ईस्वी स्कन्दगुप्त](https://knowledgesthali.com/wp-content/uploads/2023/01/skandgupt.jpg)
इधर अपने पिता की मृत्यु की खबर से अनजान राजकुमार स्कंदगुप्त ने अपनी विचलित सेना का हौसला बढाया और उन्हें भरोसा दिलाया कि उनमे हूणों का सर्वनाश करने की ताकत है। वे हूणों को जड़ से उखाड़ फेकेंगे। राजकुमार स्कंदगुप्त अपने सैनिकों के बीच में ही रहकर उनका मनोबल बढ़ाते रहते थे, उनके साथ जमीन पर सोते थे। युद्ध में राजकुमार स्कंदगुप्त के धनुष से निकले हुए तीरों ने हूणों को छलनी करना शुरू कर दिया। राजकुमार स्कंदगुप्त अपने दोनों हाथों में तलवार लेकर हूणों पर मौत बनकर टूट पड़े। वे युद्ध भूमि में जिधर से गुजरते उधर हूणों की लाशें बिछ जाती थी।
राजकुमार स्कंदगुप्त का साहस, उनकी वीरता और पराक्रम देखकर उनकी सेना दुगुने उत्साह के साथ हूणों पर टूट पड़ी। अंततः राजकुमार स्कंदगुप्त और उनकी सेना ने अपने पराक्रम से हूणों को सर्वनाश करते हुए उन्हें भारत की धरती से उखाड़ फेंका। इस विजय के बाद राजकुमार स्कंदगुप्त सीधा अपनी माता से मिलने गये। हूणों का आक्रमण लगभग 455-456 ई. को हुआ था।
जब विजयी होकर राजकुमार वापस राजधानी आये तो अपने पिता की मृत्यु से उन्हें बड़ा दुःख हुआ। अपने पिता की मृत्यु के बाद सर्वसम्मति से उन्होंने राज सिंहासन ग्रहण किया।
स्कन्द गुप्त ने राजा बनने से पहले ही जब वह युवराज थे, हूणों को अपने प्रताप, पराक्रम और वीरता से कुचल दिया। स्कंदगुप्त ने शौर्य व ताकत से हूणों को हराकर अपने शासन को ही नहीं बल्कि राज्य की प्रजा को भी भयंकर अन्याय व अशांति से बचा लिया। जूनागढ़ अभिलेखों से भी हूणों के इस आक्रमण का पता चलता है।
हूणों की पराजय
स्कन्दगुप्त के शासन काल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना हूणों की पराजय थी। हूण बहुत ही भयंकर योद्धा थे। उन्हीं के आक्रमणों के कारण ‘युइशि’ लोग अपने प्राचीन निवास स्थान को छोड़कर शकस्थान की ओर बढ़ने को बाध्य हुए थे। शकस्थान पर जाकर युइशियों ने शकों को खदेड़ दिया। युइशियों से खदेड़े जाने के कारण शक लोग ईरान और भारत की तरफ़ आ गए। हूणों के हमलों का ही परिणाम था, कि शक और युइशि लोगों का भारत में प्रवेश हुआ था।
उधर सुदूर पश्चिम में इन्हीं हूणों के आक्रमण के कारण विशाल रोमन साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो चुका था। हूण राजा ‘एट्टिला’ के अत्याचारों और बर्बरता के कारण पाश्चात्य संसार में हर तरफ त्राहि-त्राहि मच गई थी। अब इन हूणों की एक शाखा ने गुप्त साम्राज्य पर हमला किया, और कम्बोज जनपद को जीतकर गान्धार में प्रवेश करना प्रारम्भ किया। हूणों का मुक़ाबला कर गुप्त साम्राज्य की रक्षा करना स्कन्दगुप्त के शासनकाल की सबसे बड़ी घटना थी।
एक स्तम्भालेख के अनुसार स्कन्दगुप्त की हूणों से इतनी जबरजस्त मुठभेड़ हुई कि सारी पृथ्वी काँप उठी। और आखिर में विजय स्कंदगुप्त की हुई, और उसी के कारण उसकी अमल शुभ कीर्ति कुमारी अन्तरीप तक सारे भारत में गायी जाने लगी। इसीलिए वह सम्पूर्ण गुप्त वंश में ‘एकवीर’ माने जाने लगे। बौद्ध ग्रंथ ‘चंद्रगर्भपरिपृच्छा’ के अनुसार हूणों के साथ हुए इस युद्ध में गुप्त सेना की संख्या दो लाख थी जबकि हूणों की सेना तीन लाख थी। तब भी विकट और बर्बर हूण योद्धाओं के मुक़ाबले में गुप्त सेना की विजय हुई।
स्कन्दगुप्त के समय में हूण लोग गान्धार से आगे नहीं बढ़ सके। गुप्त साम्राज्य का वैभव उनके शासन काल में प्रायः अक्षुण्ण रहा।
स्कन्दगुप्त के समय के सोने के सिक्के अपेक्षाकृत कम पाए गए हैं। उनके समय की जो सुवर्ण मुद्राएँ मिली हैं, उनमें भी सोने की मात्रा पहले गुप्तकालीन सिक्कों के मुक़ाबले में कम है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है, कि हूणों के साथ युद्धों के कारण गुप्त साम्राज्य का राज्य कोष क्षीण हो गया था, और इसी कारण से सिक्कों में सोने की मात्रा कम कर दी गई थी।
हूणों से युद्ध के बाद स्कन्दगुप्त
स्कन्दगुप्त ने विजय प्राप्त करने के बाद सभी राज्यों पर गवर्नर बैठाये। सौराष्ट्र (वर्तमान गुजरात) से हूणों के विद्रोह का उद्भव हुआ था। तो वहाँ पर उसने अपने विशिष्ट गवर्नर प्रणदत्ता को भेजा।
जूनागढ़ स्तंभ के अभिलेख में लिखा गया है कि सौराष्ट्र का गवर्नर बनने के लिए कुछ असामान्य योग्यताएं चाहिए थी। और वह योग्यताएं सिर्फ प्रणदत्ता में थी। इसी कारण से उसे सौराष्ट्र का गवर्नर बनाया गया।
प्रणदाता के गवर्नर बनने के बाद उसने अपने पुत्र चक्रपालित को गिरीनगर शहर (वर्तमान जूनागढ़-गिरनार क्षेत्र) का मजिस्ट्रेट बनाया। यह क्षेत्र सौराष्ट्र की राजधानी मानी जाती है। पर्णदत्त और उसके पुत्र चक्रपालित ने सुदर्शन झील का पुनर्निर्माण करवाया जो कि सर्वप्रथम मौर्य साम्राज्य के चन्द्रगुप्त मौर्य के द्वारा बनवाई गई थी।
बाद में चन्द्रगुप्त मौर्य के पोते सम्राट अशोक ने इस झील का पुनरुद्धार किया। लगभग 150 ई में रुद्रामन ने भी इस झील को पुनर्निर्माण करवाया। परंतु 456-457 ई. में यह झील नष्ट हो गई थी जिसे चक्रपालित ने पुनः पुनर्निमाण करवाया।
अभिलेखों में बताया गया है कि चक्रपालित ने इस झील को बनाने में बहुत सारा धन लगा दिया था और उसने वहीं भगवान विष्णु के मंदिर का भी निर्माण करवाया था।
स्कन्दगुप्त के सिक्के
स्कन्दगुप्त ने अपने पिता कुमारगुप्त प्रथम की तुलना में बहुत कम सिक्के जारी किए। उसके सिक्कों में सोने की कम मात्रा लगाई गई। जिससे यह प्रतीत है कि उसने बहुत सारे युद्ध किए थे। और उन युद्धों के कारण राज्य के राजकोष पर पर प्रभाव पड़ा। सोने व धन के अभाव के कारण शायद उसने कम सिक्के जारी करवाए थे।
![सम्राट स्कन्दगुप्त | 455 ईस्वी – 467 ईस्वी सम्राट स्कन्दगुप्त | 455 ईस्वी – 467 ईस्वी](https://knowledgesthali.com/wp-content/uploads/2023/01/sjkandgupta-sikke.jpg)
पांच प्रकार के सोने के सिक्के
- राजा और रानी
- धनुर्धारी
- छत्र
- घुड़सवार
- शेर कातिल
चार प्रकार के चांदी के सिक्के
- गरुड़
- सांड
- मध्य देश
- अल्तार
इनके पिता कुमारगुप्त प्रथम के समय जारी हुए सिक्कों का वजन लगभग 8.4 ग्राम बताया गया है परंतु स्कंदगुप्त के सिक्के 9.2 ग्राम के मिले हैं।
सुदर्शन झील
स्कन्दगुप्त के समय में सौराष्ट्र (काठियावाड़) का प्रान्तीय शासक ‘पर्णदत्त’ था। उसने गिरिनार की प्राचीन सुदर्शन झील की फिर से मरम्मत कराई थी। इस झील का निर्माण सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के समय में हुआ था। तब सुराष्ट्र का शासक वैश्य ‘पुष्यगुप्त’ था। पुष्यगुप्त ही इस झील का निर्माता था। बाद में अशोक के समय में प्रान्तीय शासक यवन ‘तुषास्प’ ने और फिर महाक्षत्रप ‘रुद्रदामा’ ने इस झील का पुनरुद्धार किया। और गुप्त काल में यह झील पुनः ख़राब हो गई थी।
स्कन्दगुप्त के आदेश से ‘पर्णदत्त’ ने इस झील का पुनः जीर्णोद्वार किया। स्कंदगुप्त के शासन के पहले ही साल में इस झील का बाँध टूट गया था, जिससे प्रजा को बड़ा कष्ट हो गया था। स्कन्दगुप्त ने उदारता के साथ इस बाँध पर खर्च किया। पर्णदत्त का पुत्र ‘चक्रपालित’ भी इस प्रदेश में राज्य सेवा में नियुक्त था। उसने झील के तट पर विष्णु भगवान के मन्दिर का निर्माण कराया। स्कन्दगुप्त ने किसी नए प्रदेश को जीतकर गुप्त साम्राज्य का विस्तार नहीं किया। सम्भवतः इसकी आवश्यकता भी नहीं थी, क्योकि गुप्त साम्राज्य का विस्तार पहले से ही बहुत ज्यादा हो चुका था।
स्कन्दगुप्त की मृत्यु
स्कन्दगुप्त की मृत्यु 467 ई. के बाद हुई थी। इसकी मृत्यु के निश्चित वर्ष का कहीं उल्लेख नहीं है। उसने 467 ई. तक गुप्त साम्राज्य पर शासन किया था, उसके बाद उसने शासन छोड़ दिया था। कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि स्कन्दगुप्त ने 467 ई. के बाद तक भी शासन किया था, परंतु इस बात के कहीं साक्ष्य नहीं मिले हैं।
उत्तराधिकारी पुरुगुप्त
स्कंदगुप्त ने 467-468 ई. (गुप्त वंश के 148 वें वर्ष) तक शासन किया। स्कंदगुप्त के बाद उसका भाई पुरुगुप्त गुप्त साम्राज्य के सिंहासन पर बैठा जो स्कन्दगुप्त का सौतेला भाई था। पुरुगुप्त कुमारगुप्त प्रथम व अनंता देवी का पुत्र था।
ऐसा कहा जाता है कि पूरुगुप्त की माता एक विशिष्ट रानी थी जिसके कारण पुरुगुप्त राजा बन पाया। पिता कुमारगुप्त प्रथम की मृत्यु के समय संभवतः पुरुगुप्त स्कंदगुप्त जितना योग्य नहीं था, जिसकी वजह से स्कंदगुप्त राजा बना था।
इन्हें भी देखें –
- कुमारगुप्त प्रथम | परमदैवत, महेंद्रादित्य | 415 ई.- 455 ई.
- बहमनी वंश 1347-1538
- परमार वंश (800-1327 ई.)
- चोल साम्राज्य (300 ई.पू.-1279ई.)
- चालुक्य वंश (6वीं शताब्दी – 12हवीं शताब्दी)
- सैयद वंश (1414-1451 ई.)
- तुगलक वंश (1320-1413ई.)
- लोदी वंश (1451-1526 ई.)
- विश्व के 7 महाद्वीप | 195 देश उनकी राजधानी एवं मुद्रा
- उत्तर की महान पर्वत श्रृंखला | The Great Mountains of North
- भारत और उसके पड़ोसी राज्य | India and Its Neighboring Countries
- भारत का भौतिक विभाजन | Physical divisions of India
- भारत का भौगोलिक परिचय | Geographical Introduction of India