स्पैगेटी बाउल परिघटना | वैश्वीकरण और मुक्त व्यापार समझौते

वैश्वीकरण के इस युग में देशों के बीच आर्थिक संबंधों को मजबूत करने के लिए मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) को एक प्रभावी उपकरण माना जाता है। इन समझौतों का उद्देश्य व्यापार बाधाओं को हटाकर आर्थिक विकास को बढ़ावा देना रहा है। हालांकि, हाल के वर्षों में FTAs की संख्या में तेजी से वृद्धि ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सरल बनाने के बजाय उसे और अधिक जटिल बना दिया है। इस जटिल स्थिति को प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जगदीश भगवती ने ‘स्पैगेटी बाउल परिघटना’ (Spaghetti Bowl Phenomenon) का नाम दिया था।

इस लेख में हम स्पैगेटी बाउल परिघटना के उद्भव, इसके प्रभाव, समस्याओं तथा संभावित समाधानों का विस्तार से अध्ययन करेंगे।

स्पैगेटी बाउल परिघटना की उत्पत्ति

स्पैगेटी बाउल परिघटना का विचार सबसे पहले 1995 में अर्थशास्त्री जगदीश भगवती ने प्रस्तुत किया था। उन्होंने FTAs के प्रसार की आलोचना करते हुए कहा कि इन समझौतों ने वैश्विक व्यापार को एक उलझे हुए जाल में बदल दिया है। भगवती ने एक कटोरे में फैले स्पैगेटी के तंतु-जैसी उलझी हुई स्थिति का उल्लेख कर बताया कि कैसे विभिन्न देशों के बीच हस्ताक्षरित कई FTAs ने व्यापार को सरल करने के बजाय अधिक जटिल बना दिया है।

स्पैगेटी बाउल परिघटना क्या है?

विश्व बैंक के अनुसार, स्पैगेटी बाउल परिघटना उन उलझनों और जटिलताओं को दर्शाती है जो विभिन्न देशों के बीच हस्ताक्षरित अनेक मुक्त व्यापार समझौतों के चलते उत्पन्न होती हैं। प्रत्येक FTA के अपने नियम, शर्तें और विशेष ‘उत्पत्ति नियम’ (Rules of Origin – ROO) होते हैं। जब एक ही देश अनेक FTAs का हिस्सा बनता है, तो व्यापार करने वाले व्यवसायों के लिए यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि किस समझौते के नियमों का पालन करें और किसके तहत लाभ उठाएं।

उत्पत्ति नियम (Rules of Origin – ROO) | समस्या की जड़

उत्पत्ति नियम (ROO) इस बात को निर्धारित करते हैं कि कोई उत्पाद किस देश से उत्पन्न हुआ है और वह किस FTA के तहत टैरिफ रियायतों का लाभ उठा सकता है।

ROO का उद्देश्य था व्यापार विचलन (Trade Deflection) को रोकना — यानी ऐसे मामलों से बचाव करना जब कोई देश कम शुल्क वाले मार्ग से अपने उत्पादों को दूसरे देश में भेजकर FTA का अनुचित लाभ उठाए।

हालांकि, अलग-अलग समझौतों में भिन्न-भिन्न ROO होने के कारण व्यापार करने वाले उत्पादकों को कई बार विरोधाभासी मानकों को पूरा करना पड़ता है। इससे न केवल अनुपालन लागत बढ़ती है, बल्कि FTAs का मूल उद्देश्य — व्यापार को सरल और सुगम बनाना — भी बाधित होता है।

स्पैगेटी बाउल परिघटना के प्रभाव

स्पैगेटी बाउल प्रभाव के कारण वैश्विक व्यापार व्यवस्था में अनेक जटिलताएँ उत्पन्न हुई हैं। इन प्रभावों को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:

1. लेनदेन लागत में वृद्धि

व्यापारियों को प्रत्येक अलग FTA के उत्पत्ति नियमों को समझने, उनका पालन करने और आवश्यक प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त संसाधन और समय खर्च करना पड़ता है। इससे उनके संचालन खर्च में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।

2. FTAs का कम उपयोग

विशेषकर छोटे और मध्यम उद्यम (SMEs) अक्सर FTAs का लाभ नहीं उठा पाते क्योंकि जटिल नियमों के पालन की लागत उनके लिए बहुत अधिक होती है। इसका परिणाम यह होता है कि FTAs के माध्यम से व्यापार बढ़ाने का लक्ष्य अधूरा रह जाता है।

3. क्षेत्रीय व्यापार स्थिरता

हालांकि FTAs को क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया था, फिर भी दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया जैसे क्षेत्रों में व्यापार का स्तर अपेक्षाकृत स्थिर बना हुआ है। अत्यधिक प्रशासनिक बाधाओं ने व्यापार विस्तार को हतोत्साहित किया है।

4. व्यापार पैटर्न में विकृति

अक्सर कंपनियां उन देशों के साथ व्यापार करना पसंद करती हैं जहाँ अनुपालन सरल हो, भले ही वह आर्थिक दृष्टि से सबसे फायदेमंद न हो। इससे प्राकृतिक प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त के आधार पर व्यापार नहीं होता, जिससे वैश्विक व्यापार प्रणाली विकृत होती है।

क्षेत्रीय उदाहरण

एशिया

एशिया में व्यापार समझौतों की भारी भरमार देखने को मिलती है। ASEAN मुक्त व्यापार क्षेत्र (AFTA), चीन-ASEAN FTA, भारत-ASEAN FTA सहित अनेक द्विपक्षीय समझौते एक-दूसरे पर चढ़े हुए हैं। इन समझौतों के विभिन्न उत्पत्ति नियमों ने कंपनियों के लिए यह तय करना कठिन बना दिया है कि किस FTA के तहत लाभ उठाया जाए। कई बार कंपनियां सबसे सरल अनुपालन वाले समझौते का चुनाव करती हैं, चाहे वह आर्थिक दृष्टि से सबसे अधिक लाभकारी न हो।

लैटिन अमेरिका

लैटिन अमेरिका में भी MERCOSUR, NAFTA (अब USMCA) और अन्य द्विपक्षीय समझौतों के कारण व्यापार में जटिलताएँ देखी गई हैं। अलग-अलग समझौतों की अलग-अलग शर्तों ने इस क्षेत्र में व्यापार को अधिक कठिन बना दिया है, जिससे कंपनियों को अतिरिक्त लेनदेन लागत वहन करनी पड़ती है।

संभावित समाधान

स्पैगेटी बाउल परिघटना के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए कई समाधान सुझाए गए हैं:

1. उत्पत्ति नियमों का सामंजस्य

विभिन्न FTAs के बीच ROO को सरल और एकरूप बनाना व्यापारियों का अनुपालन बोझ काफी हद तक कम कर सकता है। यदि एक समान उत्पत्ति नियम बनाए जाएं, तो उत्पादकों को प्रत्येक समझौते के लिए अलग-अलग प्रमाणन प्रक्रियाओं का सामना नहीं करना पड़ेगा।

2. मेगा-क्षेत्रीय व्यापार समझौते

RCEP (Regional Comprehensive Economic Partnership) और CPTPP (Comprehensive and Progressive Agreement for Trans-Pacific Partnership) जैसे बड़े बहुपक्षीय समझौते, कई छोटे द्विपक्षीय समझौतों को एकीकृत कर सकते हैं। इससे व्यापार नियमों में सामंजस्य आएगा और स्पैगेटी बाउल प्रभाव कम होगा।

3. बहुपक्षवाद को मजबूत करना

विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे बहुपक्षीय संस्थानों के माध्यम से वैश्विक व्यापार वार्ताओं को पुनर्जीवित करना भी एक महत्वपूर्ण उपाय हो सकता है। यदि व्यापक बहुपक्षीय समझौतों पर सहमति बनती है, तो द्विपक्षीय और क्षेत्रीय समझौतों की आवश्यकता कम हो जाएगी, जिससे व्यापार प्रणाली अधिक सरल बन सकेगी।

स्पैगेटी बाउल परिघटना वैश्वीकरण की एक विडंबनापूर्ण स्थिति को दर्शाती है। जिन मुक्त व्यापार समझौतों का उद्देश्य व्यापार को सरल बनाना था, वे आज व्यापार को जटिल बनाने वाले कारक बन गए हैं।

जब तक उत्पत्ति नियमों का सामंजस्य नहीं किया जाता, मेगा-क्षेत्रीय समझौतों को बढ़ावा नहीं दिया जाता और बहुपक्षवाद को सशक्त नहीं किया जाता, तब तक FTAs वैश्विक व्यापार के लिए एक पुल बनने के बजाय बाधा बने रहेंगे।

इसलिए, नीति-निर्माताओं के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वे स्पैगेटी बाउल प्रभाव को गंभीरता से लें और ऐसी रणनीतियाँ अपनाएं जो व्यापार प्रणाली को सरल, अधिक पारदर्शी और समावेशी बनाएं। तभी वैश्विक आर्थिक एकीकरण के सपने को साकार किया जा सकेगा।

Economics – KnowledgeSthali


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