25 जुलाई 2025 को भारतीय रेलवे ने चेन्नई स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) में अपनी पहली स्वदेशी हाइड्रोजन-चालित ट्रेन का सफल परीक्षण करके एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की। यह परीक्षण भारत के परिवहन क्षेत्र को कार्बन-मुक्त और सतत ऊर्जा विकल्पों की दिशा में ले जाने वाला एक मील का पत्थर है। हाइड्रोजन ट्रेनें डीज़ल इंजनों का स्वच्छ विकल्प प्रस्तुत करती हैं, विशेष रूप से उन रेलवे मार्गों के लिए जो अब तक विद्युतीकृत नहीं हैं। यह पहल ‘हाइड्रोजन फॉर हेरिटेज’ कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य धरोहर रेलमार्गों, पर्वतीय क्षेत्रों और पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील स्थानों में स्वच्छ और टिकाऊ रेल परिवहन को बढ़ावा देना है।
भारत सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ नीति के तहत निर्मित यह कोच 1,200 हॉर्सपावर की क्षमता के साथ चलता है और शून्य टेलपाइप उत्सर्जन करता है, जिससे केवल जलवाष्प ही निकलता है। इसके माध्यम से भारत न केवल अपने 2070 तक नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को साकार करने की दिशा में अग्रसर है, बल्कि वैश्विक स्तर पर हरित रेल प्रौद्योगिकी में नेतृत्वकर्ता के रूप में भी उभर रहा है। इस परियोजना की लागत, भविष्य की संभावनाएं, तकनीकी लाभ और पर्यावरणीय प्रभाव इस लेख में विस्तार से वर्णित हैं, जो भारत के रेलवे भविष्य को नया आकार देने की एक प्रेरक कहानी प्रस्तुत करता है।
हरित भारत की ओर बढ़ता कदम
25 जुलाई 2025 को भारत ने स्वदेशी तकनीक से विकसित हाइड्रोजन ट्रेन के पहले सफल परीक्षण के साथ एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की। चेन्नई स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) में इस हाइड्रोजन-चालित कोच के परीक्षण ने भारतीय रेलवे को टिकाऊ, स्वच्छ और पर्यावरण-अनुकूल भविष्य की ओर अग्रसर कर दिया है। यह कदम भारत को उन गिने-चुने देशों की सूची में ला खड़ा करता है, जिन्होंने हाइड्रोजन तकनीक को रेलवे परिवहन में शामिल करने का प्रयास किया है।
यह उपलब्धि भारत सरकार की “नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन” की प्रतिबद्धता और रेलवे सेक्टर को हरित ऊर्जा विकल्पों से सशक्त करने की दिशा में मील का पत्थर है।
हाइड्रोजन ट्रेन की अवधारणा: वैश्विक पृष्ठभूमि
हाइड्रोजन ट्रेनों की अवधारणा 21वीं सदी के दूसरे दशक में जोर पकड़ने लगी, जब जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को लेकर वैश्विक चिंता बढ़ने लगी। कई देशों ने यह महसूस किया कि विशेष रूप से उन रेलवे मार्गों पर जहाँ अभी तक विद्युतीकरण नहीं हुआ है, वहां डीजल इंजन का उपयोग पर्यावरण के लिए हानिकारक है।
इस समस्या के समाधान के रूप में हाइड्रोजन ईंधन सेल प्रौद्योगिकी सामने आई, जो शून्य टेलपाइप उत्सर्जन के साथ ट्रेनों को ऊर्जा प्रदान कर सकती है। जर्मनी ने 2018 में दुनिया की पहली हाइड्रोजन ट्रेन ‘Coradia iLint’ का संचालन शुरू किया। इसके बाद फ्रांस, जापान, नीदरलैंड्स और चीन जैसे देशों ने भी इस दिशा में पहल की।
भारत में हाइड्रोजन ट्रेनों की शुरुआत: ‘हाइड्रोजन फॉर हेरिटेज’ पहल
भारत सरकार ने वर्ष 2023 में “Hydrogen for Heritage” नामक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की शुरुआत की, जिसके तहत डीज़ल इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट्स (DEMU) को हाइड्रोजन से संचालित इकाइयों में परिवर्तित करने की योजना बनाई गई।
इस पहल का उद्देश्य विशेष रूप से ऐसे मार्गों — जैसे धरोहर रेलवे, पर्वतीय क्षेत्र, और पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र — को हाइड्रोजन चालित ट्रेनों से जोड़ना है जहाँ विद्युतीकरण कठिन या अव्यवहारिक है।
इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) में पहला परीक्षण
25 जुलाई 2025 को चेन्नई के ICF में भारत का पहला स्वदेशी रूप से निर्मित हाइड्रोजन कोच सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। यह ड्राइविंग पावर कोच हाइड्रोजन ईंधन सेल पर आधारित था, जिसे भारत में ही डिजाइन और निर्मित किया गया।
प्रमुख विशेषताएं:
- शक्ति क्षमता: 1,200 हॉर्सपावर की उच्च क्षमता।
- ऊर्जा स्रोत: हाइड्रोजन ईंधन सेल और बैटरी।
- उत्सर्जन: शून्य टेलपाइप उत्सर्जन — केवल जलवाष्प।
- निर्माण: पूर्णतः मेक इन इंडिया पहल के अंतर्गत।
हाइड्रोजन ट्रेन की आवश्यकता और लाभ
1. हरित परिवहन को बढ़ावा:
भारत में रेलवे सेक्टर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में एक बड़ा योगदान देता है। हाइड्रोजन ट्रेनें शून्य उत्सर्जन प्रणाली के तहत कार्य करती हैं और जलवाष्प के अतिरिक्त कुछ नहीं छोड़तीं। इससे ग्रीनहाउस गैसों में उल्लेखनीय कमी आएगी।
2. ऊर्जा सुरक्षा और आत्मनिर्भरता:
भारत अब भी अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए बड़े पैमाने पर आयातित डीज़ल और कोयले पर निर्भर है। हाइड्रोजन, विशेष रूप से हरित हाइड्रोजन, स्वदेशी स्रोतों से उत्पादित किया जा सकता है जिससे ऊर्जा आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा।
3. धरोहर और पर्यटन मार्गों का कायाकल्प:
हाइड्रोजन ट्रेनें पर्यावरण के अनुकूल पर्यटन को प्रोत्साहित करेंगी, विशेषकर उन ऐतिहासिक और पर्वतीय रेलमार्गों पर जहाँ डीजल इंजनों के कारण पर्यावरण को क्षति पहुँचती है।
4. वैश्विक नेतृत्व और तकनीकी नवाचार:
भारत की यह पहल न केवल घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति करती है, बल्कि वैश्विक स्तर पर हाइड्रोजन तकनीक के निर्यातक के रूप में उभरने की क्षमता भी रखती है।
लागत और संरचना: क्या कहती है योजना?
प्रस्तावित योजना:
- 35 हाइड्रोजन ट्रेनें ‘हाइड्रोजन फॉर हेरिटेज’ कार्यक्रम के तहत संचालित की जाएंगी।
- प्रत्येक ट्रेन की लागत: ₹80 करोड़
- प्रत्येक मार्ग पर बुनियादी ढांचे की लागत: ₹70 करोड़
पायलट प्रोजेक्ट:
- एक DEMU ट्रेन को हाइड्रोजन ईंधन पर परिवर्तित किया जाएगा।
- मार्ग: जिंद–सोनीपत (उत्तर रेलवे)
- लागत: ₹111.83 करोड़
लंबी अवधि में लागत दक्षता:
हालांकि प्रारंभिक निवेश अधिक है, लेकिन बड़े पैमाने पर उत्पादन, स्थानीय निर्माण, और तकनीकी नवाचार के साथ आने वाले वर्षों में प्रति यूनिट लागत में गिरावट आने की संभावना है।
भविष्य की संभावनाएं और चुनौतियाँ
भविष्य की संभावनाएं:
- गैर-विद्युतीकृत मार्गों पर क्रांति:
भारत में अभी भी लगभग 38% रेलवे मार्ग गैर-विद्युतीकृत हैं। हाइड्रोजन ट्रेनें इन मार्गों पर डीज़ल ट्रेनों का स्थान ले सकती हैं। - हाइड्रोजन ईंधन का उत्पादन और भंडारण:
भारत का राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (National Green Hydrogen Mission) हाइड्रोजन उत्पादन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का विकास कर रहा है, जिससे ट्रेनों के संचालन को गति मिलेगी। - निर्यात और वैश्विक भागीदारी:
भविष्य में भारत हाइड्रोजन आधारित रेलवे उपकरणों, कोचों और तकनीकों का निर्यातक देश बन सकता है, जिससे रोजगार, विदेशी मुद्रा, और तकनीकी नेतृत्व को बल मिलेगा। - हरित ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र का विकास:
इससे न केवल रेलवे, बल्कि पूरे ऊर्जा क्षेत्र में हरित ऊर्जा तकनीकों के विकास को बढ़ावा मिलेगा।
चुनौतियाँ:
- हाइड्रोजन का भंडारण और ट्रांसपोर्ट: हाइड्रोजन एक अत्यंत ज्वलनशील गैस है, और इसके सुरक्षित भंडारण एवं उपयोग के लिए विशेष प्रौद्योगिकी की आवश्यकता होती है।
- बुनियादी ढांचे की आवश्यकता: हाइड्रोजन भराव स्टेशन, रखरखाव सुविधाएँ, और प्रशिक्षित मानव संसाधन की उपलब्धता अभी सीमित है।
- वित्तीय वहन क्षमता: रेलवे की वित्तीय स्थिति और प्रति किलोमीटर निवेश के मुद्दे भविष्य में योजना के विस्तार को प्रभावित कर सकते हैं।
राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन और रेलवे
2023 में लॉन्च हुआ “National Green Hydrogen Mission” भारत सरकार की प्रमुख योजनाओं में से एक है। इसका उद्देश्य हरित हाइड्रोजन उत्पादन को प्रोत्साहित करना है ताकि उद्योग, परिवहन और ऊर्जा क्षेत्रों में जीवाश्म ईंधन की निर्भरता को कम किया जा सके।
इस मिशन के अंतर्गत रेलवे सेक्टर को प्राथमिक उपभोक्ता के रूप में चिन्हित किया गया है, और हाइड्रोजन ट्रेनें इसी रणनीति का हिस्सा हैं। इससे रेलवे न केवल हरित ऊर्जा का उपभोग करेगा बल्कि इसके औद्योगिक विस्तार में भी सहायता करेगा।
निष्कर्ष: हरित भविष्य की ओर एक साहसिक कदम
भारत में हाइड्रोजन ट्रेन का सफल परीक्षण केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि हरित विकास, ऊर्जा आत्मनिर्भरता, और पर्यावरणीय संरक्षण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण नीति पहल है। यह भारत को वैश्विक रेलवे नवाचार के अग्रणी राष्ट्रों में स्थान दिलाने की क्षमता रखता है।
भविष्य में जब ये ट्रेनें हिमालय की घाटियों, घने जंगलों, और शहरों के भीड़भाड़ वाले मार्गों पर बिना धुएँ, बिना शोर और बिना प्रदूषण के दौड़ेंगी, तब यह स्पष्ट होगा कि भारत ने समय रहते सही दिशा में कदम उठाया।
यह पहल न केवल भारत के 2070 नेट-ज़ीरो लक्ष्य को साकार करने में सहायक होगी, बल्कि विश्व को यह भी दिखाएगी कि सतत विकास की दिशा में भारत अब केवल एक अनुयायी नहीं, बल्कि मार्गदर्शक भी है।
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