भाषा मानव की सबसे बड़ी संपत्ति है और ध्वनि उसकी आत्मा। हिंदी भाषा की नींव उसके ध्वनियों और वर्णों पर आधारित है। जब उच्चारित ध्वनियों को लिखने की आवश्यकता होती है, तब उनके लिए जो चिह्न बनाए जाते हैं उन्हें ‘वर्ण’ कहा जाता है। वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है। इन वर्णों का व्यवस्थित समूह वर्णमाला कहलाता है।
हिंदी वर्णमाला में कुल 52 वर्ण माने जाते हैं। इनमें – 11 स्वर, 2 आयोगवाह (अं, अः) और 39 व्यंजन सम्मिलित हैं। स्वर वे वर्ण हैं जिनका उच्चारण स्वतंत्र रूप से किया जा सकता है, जबकि व्यंजन स्वरों की सहायता से ही उच्चारित किए जा सकते हैं। इस दृष्टि से स्वर और व्यंजन, दोनों ही भाषा की ध्वन्यात्मक संरचना के अनिवार्य अंग हैं।
स्वर भाषा के आधार स्तंभ हैं, जिन पर उच्चारण और अभिव्यक्ति की नींव टिकी होती है। हिंदी भाषा की ध्वनि प्रणाली में इनका विशेष महत्व है क्योंकि ये स्वतंत्र रूप से उच्चारित होने वाली ध्वनियाँ हैं और साथ ही व्यंजनों को ध्वनि प्रदान करने में सहायक भी होती हैं। दूसरे शब्दों में, स्वर वे वर्ण हैं जिनका उच्चारण बिना किसी अन्य वर्ण की सहायता के किया जा सकता है, तथा यही ध्वनियाँ व्यंजनों के उच्चारण को भी पूर्णता प्रदान करती हैं।
इस लेख में हम विशेष रूप से स्वरों पर चर्चा करेंगे। व्यंजनों की विस्तृत जानकारी को अलग लेख में प्रस्तुत किया जाएगा। यहाँ हम स्वरों की परिभाषा, प्रकार, भेद, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और उनके व्यावहारिक महत्व पर विस्तार से विचार करेंगे।
स्वर की परिभाषा
स्वर हमारी भाषा के ऐसे आधार स्तंभ हैं, जिन पर बोलने और समझाने की नींव टिकी होती है। हिंदी की ध्वनि प्रणाली में स्वरों का बहुत महत्व है क्योंकि इन्हें अकेले भी बोला जा सकता है और ये व्यंजनों को बोलने में मदद भी करते हैं। आसान शब्दों में कहें तो –
“स्वर वे ध्वनियाँ हैं जिन्हें किसी और ध्वनि की ज़रूरत नहीं होती, लेकिन वे व्यंजनों को आवाज़ देकर उन्हें भी पूर्ण बनाते हैं।”
स्वर की परिभाषा:
- “जिन वर्णों का उच्चारण करते समय वायु का प्रवाह बिना किसी रुकावट के मुख से बाहर निकलता है, उन्हें स्वर कहते हैं।”
- स्वर स्वतंत्र ध्वनि इकाई हैं, जैसे – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ आदि।
हिंदी में स्वर की संख्या
हिंदी वर्णमाला में स्वरों की संख्या 11 मानी जाती है। ये स्वर हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
👉 ध्यान देने योग्य बात है कि पहले स्वरों की संख्या 13 मानी जाती थी क्योंकि ‘अं’ और ‘अः’ को भी स्वर वर्ग में रखा जाता था। लेकिन आधुनिक मान्यता के अनुसार इन्हें ‘आयोगवाह’ की श्रेणी में रखा गया है।
स्वर के भेद
स्वरों का वर्गीकरण विभिन्न दृष्टियों से किया गया है। इनमें उच्चारण की अवधि, संधि और समानता के आधार पर, मुख की स्थिति, जीभ के प्रयोग, तथा ध्वनि की खुलावट जैसे आधार महत्वपूर्ण हैं।
(1) उच्चारण के समय की दृष्टि से
स्वरों को उच्चारण की अवधि के आधार पर तीन भागों में बाँटा गया है:
(क) ह्रस्व स्वर
- जिन स्वरों के उच्चारण में अत्यल्प समय लगता है, वे ह्रस्व स्वर कहलाते हैं।
- ये छोटे स्वर होते हैं और इन्हें एकमात्रिक स्वर भी कहा जाता है।
- ह्रस्व स्वर चार हैं: अ, इ, उ, ऋ।
(ख) दीर्घ स्वर
- जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है, वे दीर्घ स्वर कहलाते हैं।
- दीर्घ स्वर सात हैं: आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
- ध्यान देने योग्य है कि दीर्घ स्वर ह्रस्व का मात्र लंबा रूप नहीं हैं, बल्कि उनकी ध्वन्यात्मकता स्वतंत्र है।
(ग) प्लुत स्वर
- जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ से भी अधिक समय लगता है, उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं।
- इनका प्रयोग सामान्यतः दूर से पुकारने या मंत्रोच्चार में होता है।
- उदाहरण: आऽऽ, राऽऽम, ओ३म्।
(2) संधि और समानता के आधार पर स्वर
(क) संधि स्वर (संयुक्त स्वर)
- जब दो असमान या भिन्न स्वर मिलकर एक नया स्वर उत्पन्न करते हैं तो उसे संधि स्वर कहते हैं।
- हिंदी में संधि स्वर चार हैं: ए, ऐ, ओ, औ।
- उदाहरण:
- ए = अ + इ, ऐ = अ + ए, ओ = अ + उ, औ = अ + ओ
(ख) समान स्वर (सजातीय स्वर)
- जब दो समान स्वरों के मिलने से नया स्वर बनता है तो उसे समान स्वर कहते हैं।
- हिंदी में समान स्वर तीन हैं: आ, ई, ऊ।
- उदाहरण:
- आ = अ + अ, ई = इ + इ, ऊ = उ + उ
संधि स्वर (संयुक्त स्वर) और समान स्वर (सजातीय स्वर) को दीर्घ स्वरों के भेद के रूप में भी जाना जाता है।
(3) जीभ के प्रयोग के आधार पर
(क) अग्र स्वर
- जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का अग्र भाग (सामने का भाग) प्रयुक्त होता है।
- स्वर: इ, ई, ए, ऐ।
(ख) मध्य स्वर
- जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का मध्य भाग प्रयुक्त होता है।
- स्वर: अ।
(ग) पश्च स्वर
- जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पिछला भाग प्रयुक्त होता है।
- स्वर: आ, उ, ऊ, ओ, औ।
(4) मुख की खुलावट (संवृत और विवृत स्वर)
(क) संवृत स्वर
- जिन स्वरों के उच्चारण में मुख द्वार संकरा हो जाता है।
- स्वर: इ, ई, उ, ऊ।
(ख) अर्द्ध संवृत स्वर
- जिन स्वरों के उच्चारण में मुख द्वार कुछ कम संकरा होता है।
- स्वर: ए, ओ।
(ग) विवृत स्वर
- जिन स्वरों के उच्चारण में मुख द्वार पूरी तरह खुला रहता है।
- स्वर: आ, आँ।
(घ) अर्द्ध विवृत स्वर
- जिन स्वरों के उच्चारण में मुख द्वार आंशिक रूप से खुला होता है।
- स्वर: अ, ऐ, औ, ऑ।
स्वरों के भेद – तालिका रूप में
आधार / दृष्टि | प्रकार | स्वर / उदाहरण | विशेषता |
---|---|---|---|
(1) उच्चारण की अवधि के आधार पर | ह्रस्व स्वर | अ, इ, उ, ऋ | अल्प समय में उच्चारित (छोटे स्वर, एकमात्रिक) |
दीर्घ स्वर | आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ | ह्रस्व से दुगुना समय, स्वतंत्र ध्वन्यात्मकता | |
प्लुत स्वर | आऽऽ, राऽऽम, ओ३म् | दीर्घ से भी अधिक समय, पुकार या मंत्रोच्चार में प्रयोग | |
(2) संधि और समानता के आधार पर | संधि स्वर (संयुक्त स्वर) | ए, ऐ, ओ, औ | दो असमान स्वरों के मेल से बने स्वर |
समान स्वर (सजातीय स्वर) | आ, ई, ऊ | दो समान स्वरों के मेल से बने स्वर | |
(3) जीभ के प्रयोग के आधार पर | अग्र स्वर | इ, ई, ए, ऐ | जीभ का अग्र (सामने) भाग कार्य करता है |
मध्य स्वर | अ | जीभ का मध्य भाग कार्य करता है | |
पश्च स्वर | आ, उ, ऊ, ओ, औ | जीभ का पिछला भाग कार्य करता है | |
(4) मुख की खुलावट (संवृत-विवृत) के आधार पर | संवृत स्वर | इ, ई, उ, ऊ | मुख द्वार संकरा (बंद) रहता है |
अर्द्ध संवृत स्वर | ए, ओ | मुख द्वार कुछ कम संकरा | |
विवृत स्वर | आ, आँ | मुख द्वार पूरी तरह खुला | |
अर्द्ध विवृत स्वर | अ, ऐ, औ, ऑ | मुख द्वार आंशिक रूप से खुला |
स्वर और आयोगवाह
हिंदी में ‘अं’ (अनुस्वार) और ‘अः’ (विसर्ग) को पहले स्वर माना जाता था। लेकिन आधुनिक व्याकरण में इन्हें आयोगवाह की श्रेणी में रखा गया है। आयोगवाह का अर्थ है – स्वर और व्यंजन के बीच की ध्वनि।
- अनुस्वार (अं): यह नासिक्य ध्वनि को प्रकट करता है।
- विसर्ग (अः): यह हल्की श्वास के साथ उच्चारित होता है।
स्वर का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
संस्कृत और प्राकृत भाषाओं से हिंदी भाषा का विकास हुआ है। संस्कृत में स्वर की संख्या अधिक थी, जिसमें दीर्घ, ह्रस्व और प्लुत के अतिरिक्त कई विशेष स्वर भी सम्मिलित थे। हिंदी ने इन स्वर परंपराओं को सरल रूप में अपनाया और वर्तमान स्वर प्रणाली विकसित हुई।
संस्कृत के 16 स्वर → प्राकृत में 14 स्वर → हिंदी में 11 स्वर।
इस प्रकार स्वर प्रणाली का क्रमशः सरलीकरण हुआ।
स्वर का व्यावहारिक महत्व
- शब्द निर्माण में सहायक: स्वर के बिना शब्द का निर्माण संभव नहीं। उदाहरण के लिए, केवल व्यंजन ‘क’ को स्वतंत्र रूप से नहीं बोला जा सकता, इसे स्वर की आवश्यकता होती है जैसे – ‘क + अ = क’ या ‘क + आ = का’।
- व्यंजनों को जीवन प्रदान करना: व्यंजन स्वर के बिना निःशब्द रहते हैं। स्वर ही उन्हें उच्चारण योग्य बनाते हैं।
- काव्य और छंद में भूमिका: कविता और छंद में ह्रस्व-दीर्घ स्वरों का विशेष महत्व है क्योंकि वे लय और छंद की गणना का आधार बनते हैं।
- संस्कृति और उच्चारण: संस्कृत मंत्रों, भजनों और लोकगीतों में स्वरों का खिंचाव और लयात्मकता आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है।
- संचार की स्पष्टता: स्वर ही उच्चारण को मधुर, स्पष्ट और प्रभावशाली बनाते हैं।
तालिका: स्वर और व्यंजन का संक्षिप्त विवरण
श्रेणी | वर्ण | उदाहरण शब्द |
---|---|---|
स्वर | अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः | अनार, आम, इमली, ईख, उल्लू, ऊन, ऋषि, एक, ऐनक, ओखली, औरत, अंगूर, दःख |
व्यंजन | क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह | कलम, घर, झूला, ठंड, थाली, नमक, फल, बल्ला, भाषा, समय |
Quick Revision Table: हिंदी के स्वर
क्रम | स्वर | प्रकार | उच्चारण अवधि | उदाहरण | विशेष टिप्पणी |
---|---|---|---|---|---|
1 | अ | ह्रस्व स्वर | अल्पकालिक | अनार | सबसे मूल स्वर |
2 | आ | दीर्घ स्वर | दीर्घकालिक | आम | अ का दीर्घ रूप |
3 | इ | ह्रस्व स्वर | अल्पकालिक | इमली | तीव्र उच्चारण वाला |
4 | ई | दीर्घ स्वर | दीर्घकालिक | ईख | इ का दीर्घ रूप |
5 | उ | ह्रस्व स्वर | अल्पकालिक | उल्लू | छोटा स्वर |
6 | ऊ | दीर्घ स्वर | दीर्घकालिक | ऊन | उ का दीर्घ रूप |
7 | ऋ | ह्रस्व स्वर | अल्पकालिक | ऋषि | संस्कृतनिष्ठ स्वर |
8 | ए | दीर्घ स्वर | दीर्घकालिक | एक | संयुक्त स्वर |
9 | ऐ | दीर्घ स्वर | दीर्घकालिक | ऐनक | यौगिक स्वर |
10 | ओ | दीर्घ स्वर | दीर्घकालिक | ओखली | संयुक्त स्वर |
11 | औ | दीर्घ स्वर | दीर्घकालिक | औरत | यौगिक स्वर |
12 | अं | अनुनासिक स्वर | दीर्घकालिक | अंगूर | नासिक्य ध्वनि वाला |
13 | अः | विसर्ग स्वर | दीर्घकालिक | दःख | अनुनाद स्वर |
निष्कर्ष
हिंदी भाषा में स्वर सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये ध्वनियाँ स्वतंत्र भी हैं और व्यंजनों की सहचरी भी। इनके बिना भाषा अधूरी है। स्वर न केवल व्याकरण और ध्वनि विज्ञान के लिए आधारभूत हैं, बल्कि साहित्य, काव्य और संस्कृति में भी इनका अमूल्य योगदान है।
स्वरों के प्रकार – ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत; संधि और समान स्वर; अग्र, मध्य और पश्च स्वर; संवृत और विवृत स्वर – इन सबके अध्ययन से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि भाषा का वैज्ञानिक पक्ष कितना गहरा है। हिंदी स्वर केवल उच्चारण की ध्वनियाँ नहीं हैं, बल्कि वे उस संगीत और लय के प्रतीक हैं, जिनके बिना भाषा का अस्तित्व अधूरा है।
इन्हें भी देखें –
- हिन्दी के प्रमुख कवियों और लेखकों के उपनाम
- हिंदी ध्वनियों (वर्णों) के उच्चारण स्थान, वर्गीकरण एवं विशेषतायें
- गुरु-शिष्य परम्परा: भारतीय संस्कृति की आत्मा और ज्ञान की धरोहर
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