हिन्दी साहित्य – काल विभाजन, वर्गीकरण, नामकरण और इतिहास

हिन्दी साहित्य भारतीय सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग है। इसकी उत्पत्ति लोकभाषा में निहित सहज अभिव्यक्ति से हुई और यह समय के साथ-साथ विविध रूपों में विकसित होता गया। हिन्दी साहित्य का इतिहास अत्यंत समृद्ध, व्यापक और विविधता से परिपूर्ण है, जिसमें धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक, नैतिक और भावनात्मक विषयों का विस्तृत चित्रण देखने को मिलता है।

हिन्दी साहित्य ने पद्य (काव्य) के रूप में अपनी यात्रा प्रारंभ की और गद्य का विकास अपेक्षाकृत बाद में हुआ। इस यात्रा के दौरान हिन्दी साहित्य ने कई उतार-चढ़ाव, सामाजिक परिवर्तन, राजनैतिक परिवेश और भाषाई प्रयोगों के दौर देखे। यह लेख हिन्दी साहित्य के इतिहास, काल विभाजन, वर्गीकरण और नामकरण पर एक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।

Table of Contents

हिन्दी साहित्य का इतिहास: एक दृष्टि

हिन्दी साहित्य का आरम्भिक रूप हमें 8वीं शताब्दी की अपभ्रंश भाषा में मिलता है। अपभ्रंश से ही हिन्दी का विकास हुआ और इसके आरंभिक स्वरूप में अवधी, ब्रज, मागधी, अर्धमागधी, मैथिली और मारवाड़ी जैसी बोलियाँ प्रमुख रही हैं। इन भाषाओं में रचित साहित्य को हिन्दी साहित्य का पूर्वरूप कहा जा सकता है।

हिन्दी की जड़ें संस्कृत में हैं, लेकिन जनसामान्य की भाषा में भाव व्यक्त करने की क्षमता और सरसता के कारण हिन्दी ने व्यापक स्वीकृति प्राप्त की। हिन्दी साहित्य का सबसे पहले पद्य रूप में विकास हुआ और गद्य साहित्य की नींव अपेक्षाकृत बाद में पड़ी।

चम्पू साहित्य

हिन्दी साहित्य को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा गया है—गद्य, पद्य और चम्पू। चम्पू वह विधा है जिसमें गद्य और पद्य दोनों का सम्मिलन होता है। यह विधा संस्कृत साहित्य से आयातित है और हिन्दी साहित्य में भी प्रारंभिक दौर में इसकी झलक देखने को मिलती है।

“गद्यपद्यमयं काव्यं चम्पूरित्यभिधीयते”

गद्य का प्रारंभ

हिन्दी गद्य साहित्य का आरंभिक विकास आधुनिक काल में हुआ। अधिकांश विद्वान लाला श्रीनिवासदास द्वारा लिखित उपन्यास “परीक्षा गुरु” (1882) को हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं। इसके बाद हिन्दी गद्य ने समाचार पत्रों, कहानियों, निबंधों, उपन्यासों और आत्मकथाओं के रूप में तेजी से विकास किया।

हिन्दी साहित्य का काल विभाजन (वर्गीकरण) और नामकरण

हिन्दी साहित्य के विकास को समझने और अध्ययन की सुविधा के लिए विभिन्न विद्वानों ने समयानुसार इसे अलग-अलग कालों में विभाजित किया है। इस काल-विभाजन और नामकरण को लेकर विद्वानों में मतभेद भी रहे हैं, लेकिन कुछ प्रमुख वर्गीकरण सार्वभौमिक रूप से मान्य हो गए हैं।

आरंभिक प्रयास – जॉर्ज ग्रियर्सन

हिन्दी साहित्य का पहला संगठित काल-विभाजन जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा किया गया था, लेकिन हिन्दी के विद्वानों ने इसे अस्वीकार कर दिया क्योंकि यह भारतीय सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टिकोण से मेल नहीं खाता था।

जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा हिंदी साहित्य का काल विभाजन (वर्गीकरण)

हिंदी साहित्य का काल विभाजन सर्वप्रथम जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने किया। उन्होंने अपनी पुस्तक “The Modern Vernacular Literature of Hindustan” में हिंदी साहित्य का वर्गीकरण प्रस्तुत किया।
👉 यह पुस्तक “द मॉडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान” 1888 ई. में रचित है।

ग्रियर्सन ने हिंदी साहित्य का विभाजन साहित्यिक प्रवृत्तियों के बजाय राजनीतिक और ऐतिहासिक घटनाओं को आधार बनाकर किया। इसमें साहित्यिक प्रवृत्तियों या शैलियों को स्पष्ट रूप से विभाजित नहीं किया गया। इसी कारण यह हिंदी साहित्य की दृष्टि से उपयोगी नहीं माना गया और हिंदी साहित्यकारों द्वारा इस काल विभाजन को अस्वीकार कर दिया गया।
👉 मुग़ल दरबार, अट्ठारहवीं शताब्दी, कंपनी के शासन में हिंदुस्तान आदि के आधार पर किए गए इस काल विभाजन से किसी साहित्यिक परिवर्तन का संकेत नहीं मिलता है।

जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक “द मॉडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान” में साहित्यिक प्रवृत्तियों के बजाय राजनीतिक और सामाजिक घटनाओं को आधार बनाकर हिंदी साहित्य को 11 भागों में विभाजित किया, जो निम्न हैं –

1️⃣ चारण काल (700 – 1300 ई.)
2️⃣ पंद्रहवीं सदी का धार्मिक पुनर्जागरण
3️⃣ जायसी की प्रेम कविता
4️⃣ ब्रज का कृष्ण संप्रदाय (1500 – 1600 ई.)
5️⃣ मुग़ल दरबार
6️⃣ तुलसी दास
7️⃣ रीति काव्य (1580 – 1692 ई.)
8️⃣ तुलसी के अन्य परवर्ती (1600 – 1700 ई.)
9️⃣ अट्ठारहवीं शताब्दी
🔟 कंपनी के शासन में हिंदुस्तान (1800 – 1857 ई.)
1️⃣1️⃣ महारानी विक्टोरिया के शासन में हिंदुस्तान एवं विविध

जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन द्वारा हिंदी साहित्य के 11 कालखंड – संक्षिप्त तालिका

क्रम संख्याकालखंडअवधि (ईस्वी सन्)
1️⃣चारण काल700 – 1300 ई.
2️⃣पंद्रहवीं सदी का धार्मिक पुनर्जागरण
3️⃣जायसी की प्रेम कविता
4️⃣ब्रज का कृष्ण संप्रदाय1500 – 1600 ई.
5️⃣मुग़ल दरबार
6️⃣तुलसी दास
7️⃣रीति काव्य1580 – 1692 ई.
8️⃣तुलसी के अन्य परवर्ती1600 – 1700 ई.
9️⃣अट्ठारहवीं शताब्दी
🔟कंपनी के शासन में हिंदुस्तान1800 – 1857 ई.
1️⃣1️⃣महारानी विक्टोरिया के शासन में हिंदुस्तान एवं विविध

प्रमुख विद्वानों द्वारा हिन्दी साहित्य का काल विभाजन

हिन्दी साहित्य के काल विभाजन और नामकरण का प्रयास निम्नलिखित विद्वानों ने किया है:

  • मिश्र बंधु
  • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
  • हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • रामकुमार वर्मा
  • डॉ. नगेन्द्र
  • डॉ. बच्चन
  • रामस्वरूप चतुर्वेदी
  • गणपति चंद्र गुप्त
  • रामखेलावन

इनमें आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हजारी प्रसाद द्विवेदी का काल-विभाजन सर्वाधिक स्वीकृत और लोकप्रिय माना जाता है।

मिश्र बंधुओं द्वारा हिंदी साहित्य का काल विभाजन (वर्गीकरण)

मिश्र बंधुओं ने अपनी पुस्तक “मिश्र बंधु विनोद” (लेखन: 1913 ई.) में हिंदी साहित्य का एक विस्तृत और क्रमबद्ध काल विभाजन प्रस्तुत किया। उन्होंने हिंदी साहित्य को विषयवस्तु, शैली और प्रवृत्तियों के आधार पर पाँच प्रमुख कालों में बाँटा और उनके भीतर उपकाल भी निर्धारित किए। यह वर्गीकरण हिंदी साहित्य के ऐतिहासिक विकास को विस्तार से दर्शाता है।

1️⃣ प्रारंभिक काल
👉 पूर्वारंभिक काल: 643 – 1286 ई.
👉 उत्तरारंभिक काल: 1286 – 1387 ई.

2️⃣ माध्यमिक काल
👉 पूर्व माध्यमिक काल: 1388 – 1503 ई.
👉 प्रौढ़ माध्यमिक काल: 1504 – 1623 ई.

3️⃣ अलंकृत काल
👉 पूर्व अलंकृत काल: 1624 – 1733 ई.
👉 उत्तर अलंकृत काल: 1734 – 1832 ई.

4️⃣ परिवर्तन काल
👉 1833 – 1868 ई.

5️⃣ वर्तमान काल
👉 1869 ई. – अब तक

मिश्र बंधुओं द्वारा हिंदी साहित्य के कालखंड – संक्षिप्त तालिका (ईस्वी सन् में)

कालखंडउपकालईस्वी सन् (AD)
प्रारंभिक कालपूर्वारंभिक काल643 – 1286 ई.
उत्तरारंभिक काल1286 – 1387 ई.
माध्यमिक कालपूर्व माध्यमिक काल1388 – 1503 ई.
प्रौढ़ माध्यमिक काल1504 – 1623 ई.
अलंकृत कालपूर्व अलंकृत काल1624 – 1733 ई.
उत्तर अलंकृत काल1734 – 1832 ई.
परिवर्तन काल1833 – 1868 ई.
वर्तमान काल1869 ई. – अब तक

आचार्य राम चन्द्र शुक्ल द्वारा हिंदी साहित्य का काल विभाजन (वर्गीकरण)

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपनी प्रसिद्ध कृति “हिंदी साहित्य का इतिहास” (रचना: 1927 ई., प्रकाशन: 1929 ई.) में पहली बार हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक और तर्कसंगत काल विभाजन प्रस्तुत किया। उन्होंने हिंदी साहित्य के विकास को चार प्रमुख कालखंडों में वर्गीकृत किया, जो ऐतिहासिक दृष्टि से हिंदी साहित्य के स्वरूप, प्रवृत्ति और विषयवस्तु को स्पष्ट करते हैं।

1️⃣ आदिकाल (वीरगाथाकाल)
👉 विक्रम संवत: 1050 – 1375
👉 ईस्वी सन्: 993 – 1318 ई.
👉 विशेषता: वीर गाथाओं और आदिम काव्य परंपराओं का काल।

2️⃣ पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल)
👉 विक्रम संवत: 1375 – 1700
👉 ईस्वी सन्: 1318 – 1643 ई.
👉 विशेषता: भक्ति आंदोलन और संत काव्य का उत्कर्ष।

3️⃣ उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल)
👉 विक्रम संवत: 1700 – 1900
👉 ईस्वी सन्: 1643 – 1843 ई.
👉 विशेषता: रीति-बद्ध काव्य, शृंगार रस की प्रधानता, दरबारी संस्कृति।

4️⃣ आधुनिक काल (गद्यकाल)
👉 विक्रम संवत: 1900 – 1984
👉 ईस्वी सन्: 1843 – 1927 ई.
👉 विशेषता: नवजागरण, गद्य का विकास, सामाजिक चेतना और राष्ट्रीयता।

आचार्य राम चन्द्र शुक्ल द्वारा हिंदी साहित्य के कालखंड – संक्षिप्त तालिका (विक्रम संवत एवं ईस्वी सन् में)

कालखंडविक्रम संवत (VS)ईस्वी सन् (AD)विशेषता
आदिकाल (वीरगाथाकाल)1050 – 1375993 – 1318 ई.वीरगाथाएँ, आदिम काव्य
पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल)1375 – 17001318 – 1643 ई.भक्ति काव्य, संत परंपरा
उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल)1700 – 19001643 – 1843 ई.रीति-बद्धता, शृंगार प्रधान
आधुनिक काल (गद्यकाल)1900 – 19841843 – 1927 ई.गद्य लेखन, नवजागरण, समाज सुधार

हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा हिंदी साहित्य का काल विभाजन (वर्गीकरण)

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी साहित्य के काल विभाजन में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के वर्गीकरण को स्वीकार किया, लेकिन उसमें कुछ परिवर्तन किए। उन्होंने कालखंडों की शताब्दियों को थोड़ा भिन्न रूप में रखा। उनका विभाजन मुख्यतः साहित्यिक प्रवृत्तियों पर आधारित था।

1️⃣ आदिकाल (10वीं से 14वीं शताब्दी तक)
2️⃣ भक्ति काल (14वीं से 16वीं शताब्दी तक)
3️⃣ रीति काल (16वीं से 19वीं शताब्दी तक)
4️⃣ आधुनिक काल (19वीं शताब्दी से अब तक)

हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा हिंदी साहित्य के कालखंड – संक्षिप्त तालिका

क्रम संख्याकालखंडअवधि
1️⃣आदिकाल10वीं – 14वीं शताब्दी
2️⃣भक्ति काल14वीं – 16वीं शताब्दी
3️⃣रीति काल16वीं – 19वीं शताब्दी
4️⃣आधुनिक काल19वीं शताब्दी – अब तक

रामकुमार वर्मा द्वारा हिंदी साहित्य का काल विभाजन (वर्गीकरण)

हिंदी साहित्य के काल विभाजन में रामकुमार वर्मा ने विक्रम संवत को आधार बनाकर साहित्यिक विकास की ऐतिहासिक यात्रा को पाँच प्रमुख कालखंडों में विभाजित किया। यह काल विभाजन हिंदी भाषा और साहित्य के रूप, विषयवस्तु, प्रवृत्ति तथा शैलीगत विशेषताओं पर आधारित है। नीचे प्रत्येक काल की सीमा विक्रम संवत और ईस्वी सन् दोनों में दी गई है।

1️⃣ संधिकाल
👉 विक्रम संवत: 750 – 1000
👉 ईस्वी सन्: 693 – 943 ई.
👉 विशेषता: प्राचीन और मध्यकालीन हिंदी का संक्रमणकाल।

2️⃣ चारणकाल
👉 विक्रम संवत: 1000 – 1375
👉 ईस्वी सन्: 943 – 1318 ई.
👉 विशेषता: वीर रस प्रधान साहित्य, चारण कवियों का उत्कर्ष।

3️⃣ भक्तिकाल
👉 विक्रम संवत: 1375 – 1700
👉 ईस्वी सन्: 1318 – 1643 ई.
👉 विशेषता: भक्ति भावनाओं से ओतप्रोत साहित्य, संत काव्य की प्रमुखता।

4️⃣ रीतिकाल
👉 विक्रम संवत: 1700 – 1900
👉 ईस्वी सन्: 1643 – 1843 ई.
👉 विशेषता: शृंगार रस, रीति-बद्धता और दरबारी काव्य की प्रधानता।

5️⃣ आधुनिक काल
👉 विक्रम संवत: 1900 – अब तक
👉 ईस्वी सन्: 1843 – अब तक
👉 विशेषता: राष्ट्रीय चेतना, समाज सुधार, विविध विधाओं का विकास।

रामकुमार वर्मा द्वारा हिंदी साहित्य के कालखंड – संक्षिप्त तालिका (विक्रम संवत एवं ईस्वी सन् में)

कालविक्रम संवत (VS)ईस्वी सन् (AD)
संधिकाल750 – 1000693 – 943 ई.
चारणकाल1000 – 1375943 – 1318 ई.
भक्तिकाल1375 – 17001318 – 1643 ई.
रीतिकाल1700 – 19001643 – 1843 ई.
आधुनिक काल1900 – अब तक1843 – अब तक

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान

हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की दृष्टि से आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का नाम सर्वोपरि माना जाता है। उन्होंने 1929 ई. में अपनी प्रसिद्ध कृति “हिंदी साहित्य का इतिहास” की रचना की, जो आज भी हिंदी साहित्य का सर्वाधिक प्रामाणिक, शोधपरक और मानक इतिहास ग्रंथ माना जाता है।

शुक्ल जी ने यह ग्रंथ मूल रूप से “हिंदी शब्दसागर” के लिए भूमिका के रूप में तैयार किया था। किंतु इसकी गहराई, शोधमूलकता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को देखते हुए इसे एक स्वतंत्र पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया।

इस ग्रंथ की विशेषता यह है कि इसमें लगभग 1000 कवियों के जीवन और उनके काव्य का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। शुक्ल जी ने मात्र संख्यात्मक विवरण देने तक ही सीमित न रहकर साहित्यिक प्रवृत्तियों, काव्यगत विशेषताओं और साहित्यिक मूल्यों का वस्तुपरक और तर्कपूर्ण मूल्यांकन किया। उन्होंने साहित्य को समाज और युगीन परिस्थितियों से जोड़कर देखा और साहित्यिक इतिहास को एक वैज्ञानिक रूप प्रदान किया।

हिंदी साहित्य का आदर्श वर्गीकरण एवं काल विभाजन

हिंदी साहित्य के विकास को अध्ययन की सुविधा के लिए चार ऐतिहासिक भागों में विभाजित किया गया है। ये कालखंड साहित्यिक प्रवृत्तियों और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के आधार पर निर्धारित किए गए हैं। इस वर्गीकरण में आदिकाल, मध्यकाल (जिसमें भक्ति और रीति दोनों उपकाल आते हैं) और आधुनिक काल शामिल हैं।

1️⃣ आदिकाल (वीरगाथा काल) – 1000 ई. से 1350 ई. तक
2️⃣ मध्यकाल – 1350 ई. से 1850 ई. तक
  (a) भक्ति काल (पूर्व मध्यकाल) – 1350 ई. से 1650 ई. तक
  (b) रीति काल (उत्तर मध्य काल) – 1650 ई. से 1850 ई. तक
3️⃣ आधुनिक काल (गद्यकाल) – 1850 ई. से अब तक
  (a) पुनर्जागरण काल (भारतेंदु युग) – 1850 ई. से 1900 ई. तक
  (b) जागरण सुधार काल (द्विवेदी युग) – 1900 ई. से 1920 ई. तक
  (c) छायावाद काल – 1920 ई. से 1936 ई. तक
  (d) प्रगतिवाद काल – 1936 ई. से 1943 ई. तक
  (e) प्रयोगवाद काल – 1943 ई. से 1953 ई. तक
  (f) नव लेखन काल – 1953 ई. से अब तक

हिंदी साहित्य का आदर्श वर्गीकरण एवं कालखंड – संक्षिप्त तालिका

क्रम संख्याकालखंडअवधि
1️⃣आदिकाल (वीरगाथा काल)1000 – 1350 ई.
2️⃣मध्यकाल1350 – 1850 ई.
2️⃣ (a)भक्ति काल (पूर्व मध्यकाल)1350 – 1650 ई.
2️⃣ (b)रीति काल (उत्तर मध्य काल)1650 – 1850 ई.
3️⃣आधुनिक काल (गद्यकाल)1850 – अब तक
3️⃣ (a)पुनर्जागरण काल (भारतेंदु युग)1850 – 1900 ई.
3️⃣ (b)जागरण सुधार काल (द्विवेदी युग)1900 – 1920 ई.
3️⃣ (c)छायावाद काल1920 – 1936 ई.
3️⃣ (d)प्रगतिवाद काल1936 – 1943 ई.
3️⃣ (e)प्रयोगवाद काल1943 – 1953 ई.
3️⃣ (f)नव लेखन काल1953 – अब तक

हिन्दी साहित्य के चार प्रमुख काल

हिन्दी साहित्य को चार प्रमुख कालों में विभाजित किया जाता है। यह काल-विभाजन साहित्यिक प्रवृत्तियों, भाषायी प्रयोगों और सामाजिक-राजनैतिक परिवेश के आधार पर किया गया है:

1. आदिकाल (वीरगाथा काल) – 1000 ई. से 1350 ई. तक

प्रमुख विशेषताएँ:

  • इस काल को वीरगाथा काल भी कहा जाता है।
  • इसमें मुख्यतः वीर रस से परिपूर्ण रचनाएँ हुईं।
  • अधिकांश रचनाएँ चारणों और भाटों द्वारा रची गईं जिनका उद्देश्य अपने राजा या वंश की वीरता का गुणगान करना था।
  • रचनाएँ अपभ्रंश, प्रारंभिक अवधी और ब्रजभाषा में लिखी गईं।

प्रमुख रचनाकार:

  • चंदबरदाई – “पृथ्वीराज रासो”
  • नरपति नाल्ह – “बीसलदेव रास”
  • जयचंद्र – “हमीर रासो”

2. भक्ति काल (1350 ई. से 1650 ई. तक)

प्रमुख विशेषताएँ:

  • इसे हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग कहा जाता है।
  • इस काल में धार्मिक चेतना, भक्ति भावना और सामाजिक समरसता को प्रमुख स्थान मिला।
  • इस काल में दो प्रमुख धाराएँ थीं – निर्गुण भक्ति धारा और सगुण भक्ति धारा

भक्ति काल की उपधाराएँ:

  1. निर्गुण धारा – संत काव्य परंपरा
    • प्रमुख कवि: कबीर, रैदास, दादू, सैना
  2. सगुण धारा – कृष्ण भक्ति शाखा और राम भक्ति शाखा
    • कृष्ण भक्ति शाखा – सूरदास, मीराबाई, नंददास
    • राम भक्ति शाखा – तुलसीदास, केशवदास

3. रीति काल (1650 ई. से 1850 ई. तक)

प्रमुख विशेषताएँ:

  • इसे श्रृंगारिक काव्य काल या आलंकारिक काव्य काल भी कहा जाता है।
  • काव्य में श्रृंगार रस, नायिका-भेद, रस, छंद, अलंकार आदि की प्रधानता रही।
  • दरबारी संस्कृति और काव्यशास्त्र के प्रभाव से साहित्य शास्त्रनिष्ठ हुआ।

प्रमुख रचनाकार:

  • बिहारी – “सतसई”
  • देव – “भवानी विलास”
  • भूषण – वीर रस प्रधान रचनाएँ, जैसे – शिवराज भूषण
  • पद्माकर – जमुना वर्णन

4. आधुनिक काल (1850 ई. से वर्तमान तक)

प्रमुख विशेषताएँ:

  • यह काल हिन्दी गद्य का विकासकाल है।
  • इसमें यथार्थवाद, राष्ट्रवाद, सामाजिक चेतना, नारी विमर्श, दलित विमर्श, प्रगतिवाद, नवयथार्थवाद, और आधुनिकीकरण की प्रवृत्तियाँ प्रमुख हैं।
  • आधुनिक काल को भी अनेक उपकालों में विभाजित किया जाता है:

(क) भारतेन्दु युग (1850-1900)

  • हिन्दी गद्य और नाटक की नींव पड़ी
  • प्रतिनिधि लेखक: भारतेन्दु हरिश्चंद्र

(ख) द्विवेदी युग (1900-1920)

  • गद्य को विवेचनात्मक और राष्ट्रीय स्वरूप मिला
  • प्रमुख लेखक: माहावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल

(ग) छायावाद युग (1920-1936)

  • काव्य में कल्पना, सौंदर्य, रहस्यवाद की प्रधानता
  • कवि: जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, निराला

(घ) प्रगतिवाद युग (1936-1950)

  • समाज और यथार्थ की मुखरता
  • प्रमुख लेखक: मुक्तिबोध, अज्ञेय, रेणु, यशपाल

(ङ) नयी कविता, अकविता, समकालीन युग (1950 से अब तक)

  • विविध विमर्श: नारी, दलित, आदिवासी, उत्तर-आधुनिकता
  • समकालीन रचनाकार: धूमिल, कुमार विकल, ज्ञानरंजन, उदय प्रकाश

निष्कर्ष

हिन्दी साहित्य का इतिहास एक जीवंत सांस्कृतिक दस्तावेज है, जिसमें समय, समाज और संस्कृति के परिवर्तनों का गहरा प्रतिबिंब देखा जा सकता है। इसके काल विभाजन से हम साहित्यिक प्रवृत्तियों को समझ सकते हैं और यह जान सकते हैं कि कैसे एक लोकभाषा धीरे-धीरे राष्ट्रभाषा के रूप में उभरी और आज विश्व की प्रमुख भाषाओं में गिनी जाती है।

हिन्दी साहित्य केवल लेखन की परंपरा नहीं है, बल्कि यह एक आंदोलन, संवेदना, और चेतना है जो समाज को दिशा देने में आज भी सक्षम है।


इन्हें भी देखें –

Leave a Comment

Table of Contents

Contents
सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.